१९८७ में एक फिल्म रिलीज़ हुई थी 'वाल स्ट्रीट' । अमेरिका की आर्थिक बाजार वाल स्ट्रीट की अंदरुनी हकीकत को बयान करने वाली फिल्म 'वाल स्ट्रीट' का निर्देशन ओलिवर स्टोन ने किया था। यह फिल्म कहानी थी एक युवा स्टॉकब्रोकर बड फॉक्स की, जो सफलता पाने के लिए बेक़रार है। उसका आइडल गॉर्डोन गेक्को है। वह वाल स्ट्रीट का धनी, मगर निर्मम कॉर्पोरेट खिलाड़ी हैं। बड उसकी कंपनी में काम करना चाहता है। इंटरव्यू के दौरान बड कई बुद्धिमत्तापूर्ण चीज़े बताता है। लेकिन, गॉर्डोन प्रभावित नहीं होता। इस पर बड ब्लूस्टार एयरलाइन्स की उन अंदरूनी सूचनाओं को गॉर्डोन को बता देता है, जो उसने अपने पिता और एयरलाइन्स के यूनियन लीडर कार्ल से बातों बातों में सुनी थी। गॉर्डोन बड की आकाँक्षाओं को भांप जाता है। वह उसका इस्तेमाल करना चाहता है। गेक्को बड फॉक्स को अपने साथ शामिल कर लेता है। लेकिन, सिलसिला यहीं नहीं रुकता। गेक्को चाहता है कि बड फॉक्स उसे कुछ और अंदरुनी सूचना दिलवाए। चाहे इसके लिए बड को कुछ भी करना पड़े। इसके साथ ही मुश्किलों की शुरुआत हो जाती है। ओलिवर स्टोन गॉर्डोन गेक्को के रोल के लिए वारेन बीटी को लेना चाहते थे। लेकिन, वारेन ने मना कर दिया। फिर वह रिचर्ड गेर के पास गए। लेकिन अंततः इस रोल के लिए माइकल डगलस फाइनल हुए। बड फॉक्स का किरदार २२ साल के चार्ली शीन कर रहे थे। जब ओलिवर के सामने बड फॉक्स के पिता कार्ल फॉक्स के किरदार के लिए अभिनेता के चुनाव का सवाल उठा तो उन्होंने मार्टिन शीन पर छोड़ दिया कि वह जैक लेमन और अपने रियल लाइफ पिता मार्टिन शीन में से किसी को चुन ले। चार्ली शीन ने अपने रियल पिता को रील के लिए भी चुन लिया। चार्ली ने मार्टिन का चुनाव इस लिए किया था कि मार्टिन में भी वही नैतिकता थी, जो कार्ल के करैक्टर में थी।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Friday, 6 November 2015
जब बेटे चार्ली शीन ने दिलाया पिता मार्टिन शीन को रोल
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Hollywood
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
क्या पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री में सांस ले पायेगा बॉलीवुड का बादशाह खान !
शाहरुख़ खान से लोग कह रहे हैं कि पाकिस्तान चले जाओ। शाहरुख़ खान गाना-बजाना करने और नाचने वाला एक्टर है। उसकी साल में औसतन दो फ़िल्में रिलीज़ होती हैं। अगर वह पकिस्तान धर्म के लिहाज़ से न सही, एक्टर के लिहाज़ से चला जाये तो वह वहाँ क्या करेगा! एक्टिंग ही न। आइये जान लेते हैं पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री का हाल। आजादी से पहले हिन्दुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री मुख्य रूप से लाहौर में केन्द्रित थी। इसीलिए, आज की भाषा में पाकिस्तानी इंडस्ट्री को लोलिवुड कहा जाता है। पाकिस्तान की पहली फिल्म १९२८ में बनाई गई। इस फिल्म का नाम डॉटर ऑफ़ टुडे था। पाकिस्तान की पहली पंजाबी फिल्म शीला (पिंड दि कुड़ी) लाहौर में नहीं, बल्कि कलकत्ता में के डी मेहरा ने बनाई थी। पाकिस्तान बनने के बाद गैर मुस्लिम कलाकारों का पाकिस्तान से भागने का सिलसिला शुरू हो गया। अभिनेत्री शहनाज़ बेगम को इसलिए पाकिस्तान से भागना पड़ा, क्योंकि उनकी मातृ भाषा बंगाली थी और उनका रंग काला था। पार्टीशन के दौरान संगीतकार ओ पी नय्यर पर हमला हुआ। एक मुसलमान पडोसी ने उनकी जान बचाई। वह भारत भाग आये। १९५५ में शीला रमानी और मीना शोरी अपने 'वतन' पाकिस्तान गई। शीला रमानी का जल्द ही पाकिस्तान से मोह भंग हो गया। वह हिंदुस्तान वापस आ गई। लेकिन, मीना शोरी वापस नहीं आई। विडम्बना देखिये की अविभाजित भारत की इस पॉपुलर एक्ट्रेस की १९८९ में मौत हुई तो उनको दफनाने के लिए पैसे नहीं थे। १९७१ से पहले पाकिस्तान में लाहौर, कराची और ढाका में फिल्मों का निर्माण होता था। १९७१ में बांगलादेश बनने के बाद ढाका अलग हो गया। पाकिस्तान में मुख्य रूप से उर्दू भाषा में फिल्मे बनाई जाती हैं। पंजाबी, पश्तो, बलूची और सिन्धी भाषा में भी फ़िल्में बनाई जाती है। पाकिस्तानी फिल्म उद्योग हमेशा से इस्लामिक एजेंडा का शिकार होता रहा है। जनरल जिया-उल- हक के शासन काल में इस पर काफी प्रतिबन्ध थोपे गए। नतीजे के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री का ख़ास तौर पर प्रोडक्शन और एक्सिबिशन सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ। नतीजे के तौर पर कभी साल में ८० फ़िल्में बनाने वाला लोलिवुड मुश्किल से दो फ़िल्में बनाने लगा। सिनेमाघर बंद होते चले गए। साठ के दशक में जिस कराची में १०० सिनेमाघर हुआ करते थे और यह सेंटर १०० फिल्मे बनाया करता था, सत्तर के दशक में उसी कराची में दसेक सिनेमाघर ही बचे रह सके। २००२ से सिनेमाघरों को खोले जाने का प्रयास किया जाने लगा। सिनेप्लेक्स के ज़रिये स्क्रीन बढ़ाने की कोशिशें जारी है। वर्तमान में (२००९) पाकिस्तान में ३१९ सिनेमाघर हैं। पाकिस्तानी फिल्म उद्योग साल में १५ फ़िल्में ही बना पाता है। बताते हैं कि एक समय सिनेमाघरों से दूर हो गए दर्शक २०१० में सलमान खान की फिल्म दबंग की रिलीज़ के बाद वापस आने लगे। पाकिस्तान में बॉलीवुड फिल्मों के लिए टिकट दरें ३००-५०० की रेंज में रखी जाती हैं। बॉलीवुड की फ़िल्में दुनिया के जिन ९० देशों में रिलीज़ होती है, वहाँ घुसने की कल्पना तो पाकिस्तानी फ़िल्में करती भी नहीं हैं। पाकिस्तान की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म १९१५ में रिलीज़ जवानी फिर न आनी' है। इस फिल्म ने ३७ करोड़ का बिज़नेस किया है। पाकिस्तान की केवल सात फिल्मे ही १० करोड़ से ज़्यादा का बिज़नेस कर सकी है। पाकिस्तान में अगर कोई फिल्म १० करोड़ कमा ले जाती है तो वह भारतीय फिल्मों के १०० करोड़ में शामिल मानी जाती है। ज़ाहिर है कि पाकिस्तान में १० करोड़ का इलीट क्लब बना हुआ है।
इसे पढने के बाद आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि पाकिस्तानी आर्टिस्ट भारत की और क्यों भागते हैं। ऐसे में अगर हफ़ीज़ सईद के बुलावे पर 'असहिष्णुता' का शिकार शाहरुख़ खान पाकिस्तान चला जाये तो वह वहां क्या धोएगा, क्या निचोड़ेगा और क्या ख़ाक सुखायेगा। खुद सूख जायेगा। अगर शाहरुख़ खान इसे सोच ले तो उसका दम पाकिस्तान से दूर मुंबई में मन्नत में बैठे बैठे ही घुट जायेगा।
इसे पढने के बाद आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि पाकिस्तानी आर्टिस्ट भारत की और क्यों भागते हैं। ऐसे में अगर हफ़ीज़ सईद के बुलावे पर 'असहिष्णुता' का शिकार शाहरुख़ खान पाकिस्तान चला जाये तो वह वहां क्या धोएगा, क्या निचोड़ेगा और क्या ख़ाक सुखायेगा। खुद सूख जायेगा। अगर शाहरुख़ खान इसे सोच ले तो उसका दम पाकिस्तान से दूर मुंबई में मन्नत में बैठे बैठे ही घुट जायेगा।
सबसे ज्यादा बॉक्स ऑफिस कलेक्शन करने वाली पाकिस्तानी फिल्म 'जवानी फिर नहीं आनी' |
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सरहद पार
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Thursday, 5 November 2015
जेनिफर एनिस्टन और डेमी मूर से प्रेरित हुई 'मस्तीज़ादे' की सनी लियॉन
दिसंबर में रिलीज़ होने जा रही सनी लियॉन की फिल्म 'मस्तीज़ादे' में दर्शकों को सनी लियॉन की डबल मस्ती देखने को मिलेगी। इस फिल्म में सनी लियॉन दोहरी भूमिका में हैं। वह फिल्म में दो बहनों हॉट और सेक्सी लैला लेले और सुन्दर मगर मूर्ख लिली लेले की भूमिकाएं कर रही हैं। हालाँकि, लिली लेले बेवक़ूफ़ किस्म की है, इसके बावजूद वह अपनी बहन के साथ मिल कर स्ट्रिपटीज़ डांस करते हुए वीर दास और तुषार कपूर को ललचाते हुए नज़र आएंगी। चूंकि, एक सनी के यह दो किरदार हैं तो स्वाभाविक रूप से इनमे उन्हें फर्क रखना ही होगा। सनी लियॉन ने दो बहनों के इस फर्क को फिल्म में अपने स्ट्रिपटीज़ डांस में भी कायम रखा है। उन्होंने, जहाँ लैला लेले की स्ट्रिपटीज़ डांस की शैली फिल्म 'वी आर द मिलरस' में जेनिफर एनिस्टन के स्ट्रिपटीज़ डांस वाली रखी हैं, वहीँ लिली लेले का स्ट्रिपटीज़ डांस फिल्म 'स्ट्रिपटीज़' में डेमी मूर के स्ट्रिपटीज़ की शैली में किया है। 'मस्तीज़ादे' फिल्मों के कथा-पटकथा लेखक मिलाप जावेरी की बतौर निर्देशक दूसरी फिल्म है। उनकी पहली फिल्म 'जाने कहाँ से आई है' बॉक्स ऑफिस पर असफल हुई थी। इसलिए, 'ग्रैंड मस्ती' के इस लेखक मिलाप कामुक हावभाव और द्विअर्थी संवादों वाली फिल्म से हिंदी फिल्म दर्शकों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। इस दो बहनों के स्ट्रिपटीज़ डांस सीक्वेंस के बारे में मिलाप जावेरी बताते हैं, "मैंने जब सनी लियॉन को यह सीक्वेंस सुनाया तो उनकी आँखों के सामने जेनिफर एनिस्टन और डेमी मूर के स्ट्रिपटीज़ डांस सीक्वेंस घूम गए। मैं इस सीक्वेंस से चकित कर देने वाला प्रभाव चाहता था। सनी लियॉन ने ज़बरदस्त डांस किये हैं।" मस्तीज़ादे पिछले दो सालों से बनती रुकती और बनती फिल्म है। इस फिल्म में सनी लियॉन, वीर दास और तुषार कपूर के अलावा रितेश देशमुख का एक्सटेंडेड कैमिया है।
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ये ल्लों !!!
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
अपनी फिल्मों को प्रचार दिलाने की एसआरके की 'असहिष्णुता' साज़िश !
शाहरुख़ खान और उनके माय नाम इज खान, बट आई एम नॉट टेररिस्ट टाइप के विवादों का चोली दामन का नाता है। इसे यों कहा जा सकता है कि वह इन विवादों से खुद का नाता ज़बरन जोड़ लेते हैं, बशर्ते कि उनकी कोई नई फिल्म रिलीज़ होने जा रही हो। वैसे यह बात आमिर खान पर भी लागू होती हैं। लेकिन, यहाँ सिर्फ शाहरुख़ खान की बात ही करते हैं। शाहरुख़ खान और लश्कर ए तैयबा के फाउंडर हफ़ीज़ सईद का पुराना नाता है। २०१३ में शाहरुख़ खान ने 'आउटलुक टर्निंग पॉइंट' को दिए इंटरव्यू में शाहरुख़ खान ने एक बार फिर खुद को मुसलमान बताते हुए, यह आरोप लगाया कि लोग मेरा हिंदुस्तान के बजाय पाकिस्तान से नाता जोड़ देते हैं। जबकि, शाहरुख़ खान के पारिवारिक परिचय से पता चलता है कि उनके पिता अविभाजित भारत के पेशावर से थे, जो इस समय पाकिस्तान में है। खान के इस कंट्रोवर्सियल बयान के बाद पाकिस्तान से हफ़ीज़ सईद की आवाज़ बुलंद हुई कि अगर शाहरुख़ खान खुद को भारत में असुरक्षित महसूस करते हैं, तो पाकिस्तान में आ सकते हैं। अब यह बात दीगर है कि २०१३ में खान की फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' रिलीज़ हुई। फिल्म इंडस्ट्री में सबसे ज़्यादा झगड़ालू शाहरुख़ खान ही हैं। सलमान खान, आमिर खान, शिरीष कुंदर, अभिजीत भट्टाचार्य (कभी अभिजीत फिल्मों में शाहरुख़ की आवाज़ हुआ करते थे), प्रियंका चोपड़ा, अमिताभ बच्चन और अमर सिंह, आदि के साथ शाहरुख़ खान पंगा लेते रहते हैं। लेकिन, जब उनकी कोई फिल्म रिलीज़ होने को होती है तो वह खुद को खान घोषित करते हुए यह भी कहते हैं, "आई एम नॉट टेररिस्ट" (भाई तुमको टेररिस्ट कहा किसने) . फरवरी २०१० को शाहरुख़ खान की करण जौहर निर्देशित फिल्म 'माय नाम इज खान' रिलीज़ होने को थी। उस दौरान फिल्म की शूटिंग तेज़ी पर थी। शाहरुख़ खान आम तौर पर अपनी फिल्म का प्रचार छह महीना पहले से ही शुरू कर देते हैं। जैसे अभी से रईस और फैन का प्रचार शुरू हो चूका है। जबकि, यह फ़िल्में अगले साल जुलाई और अप्रैल में रिलीज़ होनी है। शाहरुख़ खान ने २००९ में यह सुर्रा छोड़ा कि अगस्त २००९ में उन्हें नेवार्क एयरपोर्ट पर दो घंटे तक रोके रखा, क्योंकि मेरे नाम के साथ खान लगा है। जबकि वास्तविकता यह थी कि अमेरिका में ऎसी तलाशिया होती रहती हैं। उत्तर प्रदेश के एक मंत्री आज़म खान भी इसका शिकार हो चुके हैं। खान ने इस घटना को अपने पीआर और मीडिया के दोस्तों के ज़रिये खूब भुनाया। कुछ इसी प्रकार का सुर्रा, इसी एयरपोर्ट पर पहुँच कर खान ने अप्रैल २०१० में फिर छोड़ा और खुद को बड़ा स्टार साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब इसे इत्तेफ़ाक़ तो नहीं ही कहा जायेगा। ध्यान दें तो शाहरुख़ खान किसी एक्टर या को स्टार के साथ ज़बरदस्ती झगड़ा मोल लेकर प्रचार जुटाते हैं। अपनी फिल्म 'जब तक हैं' जान को उन्होंने जानबूझ कर अजय देवगन की फिल्म 'सन ऑफ़ सरदार' के सामने ला खड़ा किया। यह विवाद कोर्ट तक पहुंचा। २०१३ को आउटलुक को दिया इंटरव्यू फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' को प्रचार दिलाने के मक़सद से ही दिया गया था। दिवाली २०१४ में शाहरुख़ खान की फिल्म 'हैप्पी न्यू ईयर' रिलीज़ होनी थी। यह साल लोकसभा चुनाव का वर्ष था। बीजेपी को बढ़त साफ़ नज़र आ रही थी। नरेंद्र मोदी के खिलाफ सांप्रदायिक प्रचार धूर्तता की हद तक हो रहा था। ऐसे समय में शाहरुख़ खान ने भी बहती गंगा में हाथ धो लिया। खान का विवादित बयान सामने आया कि अगर नरेंद्र मोदी जीते तो मैं हिंदुस्तान छोड़ दूंगा। यह उनका अपनी फिल्म को प्रचार देने का शोशा इसलिए था कि खान ने न तो इसका खंडन किया, न ही वह देश छोड़ कर गए। इस बार भी खान की फिल्म 'दिलवाले' डेढ़ महीने बाद रिलीज़ होने वाली है। खान ने अपनी यह फिल्म भी संजय लीला भंसाली को छेड़ने के लिए पहले से तय फिल्म 'बाजीराव मस्तानी ' की रिलीज़ डेट को ही रिलीज़ करने की घोषणा कर दी। चूंकि, प्रचार के मामले में संजयलीला भंसाली काफी आगे निकल गए हैं, इसलिए शाहरुख़ खान ने फिर खुद के खान होने और देश में असहिष्णुता का राग अलाप दिया। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि मामला सिर्फ 'दिलवाले' को प्रचार दिलाने का नहीं, बल्कि ईडी की उन नोटिसों का भी है, जो उन्हें और उनकी पत्नी को आईपीएल के ज़रिये फेमा के उल्लंघन पर पूछताछ के लिए भेजी गई थी तथा जिसमे अगर खान फंस गए तो उन्हेंऔर उनकी बीवी को जेल जाने से कोई नहीं बचा सकता। इसलिए सरकार पर दबाव और प्रचार का दोहरा लाभ पाने के लिए शाहरुख़ खान ने असहिष्णुता की घी भरी कड़ाही में अपनी उंगली या सर नहीं डाला बल्कि, खुद को पूरी तरह से डुबो दिया।
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सोनाली बेंद्रे बतायेंगी कि कौन बेस्ट ड्रामेबाज़ !
कुछ समय पहले टीवी सीरियल 'अजीब दास्तान है यह' से टीवी दर्शकों के दिलों में जगह बनाने वाली सोनाली बेंद्रे अब पूरी तरह से टीवी शोज में रम गई लगती हैं। तभी तो वह एक रियलिटी टीवी शो में फिर से ड्रामेबाज़ की खोज करती नज़र आयेंगी। पोपुलर रियलिटी शो 'इंडियाज बेस्ट ड्रामेबाज़' के दूसरे सीजन में सोनाली बेन्द्र एक बार फिर बेस्ट ड्रामेबाज़ चुनने के लिए इस शो को जज करने जा रही है। इस शो में बच्चों के एक्टिंग टैलेंट को जांचा परखा जाता है उसमे से श्रेष्ठ को चुना जाता है। इस शो के पिछले सीजन में श्रेष्ठ बाल प्रतिभाओं के प्रदर्शन ने सोनाली बेंद्रे को बहुत प्रभावित किया था। वह कहती है, "अजीब दास्ताँ है ये' की शूटिंग में बेहद व्यस्त रहने के बाद मैं कुछ दिन आराम करना चाहती थी। अपने बेटे रणवीर और परिवार को समय देना चाहती थी। लेकिन, चूंकि यह ड्रामेबाज़ था, इसलिए मैंने इस जज करना मंज़ूर कर लिया। वैसे रियलिटी शो मेरे लिए उपयुक्त है। क्योंकि, मुझे ऐसे शोज को शूट करने के लिए महीने में पांच या छः दिन ही देने होंगे। "
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Television
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फिर साथ साथ रजनीकांत और अमिताभ बच्चन !
दक्षिण में खबरे गर्म हैं कि २०१० की तमिल ब्लॉकबस्टर फिल्म 'एंधीरन' की सीक्वल फिल्म 'एंधिरन २' में रजनीकांत के साथ अमिताभ बच्चन नज़र आ सकते हैं। शंकर द्वारा निर्देशित फिल्म 'एंधिरन' को हिंदी में 'रोबोट' शीर्षक के साथ रिलीज़ किया गया था। अब इसके सीक्वल पर काम किया जा रहा है। पिछले दिनों, यह खबर गर्म थी कि शंकर 'एंधिरन २' के मुख्य विलेन के लिए हॉलीवुड के एक्शन स्टार अर्नाल्ड श्वार्ज़नेगर को लेना चाहते हैं। लेकिन, पता चला है कि अर्नाल्ड ने जो शर्ते रखी हैं उसे पूरी करना शंकर के वश की बात नहीं है। अर्नाल्ड ने 'एंधिरन २' का मुख्य विलेन बनने के लिए शर्त रखी है कि पहले फिल्म की स्क्रिप्ट को किसी हॉलीवुड स्क्रिप्ट राइटर से फिर लिखवाया जाये । उन्होंने फिल्म में काम करने की एवज में १०० करोड़ का पारिश्रमिक भी मांगा है। ज़ाहिर है कि सुपर स्टार रजनीकांत को ध्यान में लिखी गई फिल्म की स्क्रिप्ट को अर्नाल्ड की शर्त के अनुसार बदला जाना संभव नहीं है। एक सौ करोड़ का पारिश्रमिक तो बहुत बाद की बात है। अर्नाल्ड के बाद अमिताभ बच्चन को फिल्म में लिए जाने की चर्चा भी ज़ोरों पर है। शंकर ने अमिताभ बच्चन से कांटेक्ट कर फिल्म में काम करने का ऑफर किया। बताते हैं कि अमिताभ बच्चन अपने अच्छे मित्र तथा अंधा कानून और गिरफ्तार जैसी फिल्मों के को-स्टार रजनीकांत के साथ फिल्म करने के इच्छुक भी हैं। यहाँ याद दिला दें कि 'एंधिरन' में रजनीकांत की नायिका अमिताभ बच्चन की बहु ऐश्वर्या राय बच्चन थी। लेकिन, 'एंधिरन २' में ससुर-बहु टकराव नहीं होने जा रहा। क्योंकि, 'एंधिरन २' में रजनीकांत की नायिका एमी जैक्सन हैं। इस विज्ञानं फंतासी फिल्म के शुरू होने का ऐलान १२ दिसंबर को रजनीकांत के जन्मदिन पर क्या जायेगा। इस फिल्म को ३ डी तकनीक से बनाया जायेगा।
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साउथ सिनेमा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
एक थी अजूरी
भारतीय सिनेमा के शुरूआती यहूदी सितारों की परंपरा में अज़ूरी भी थी। उनका पूरा नाम अन्ना मारिए गुएजलोर था। वह बेंगलोर में १९०७ में पैदा हुई। वह हिंदी फिल्मों की नर्तकी अभिनेत्री थी। अज़ूरी ने बहुत फ़िल्में नहीं की। वह ज़्यादा फिल्मों की नायिका भी नहीं बनी। उन्होंने 'जजमेंट ऑफ़ अल्लाह', 'जवानी की हवा', 'चंद्रसेना', 'सुनहरा संसार', 'लग्न बंधन', 'भूकैलाश', 'नया संसार', शेख चिल्ली', तस्वीर', 'रतन', 'शाहजहाँ', 'परवाना', आदि १६ फिल्मों में बतौर नर्तकी अभिनेत्री किरदार किये। वास्तविकता तो यह है कि अज़ूरी की पहचान भी हिंदी फिल्मों की नर्तकी अभिनेत्रियों के बतौर ही है। हिंदी फिल्मों की आइटम डांसर या कैबरे डांसर के बतौर हेलेन को याद किया जाता है। हेलेन कुकु की देन थी। कुकु ने हिंदी फिल्म निर्माताओं का परिचय हेलेन से करवाया। कुकु के हिंदी फिल्मों में नृत्य गीत फिल्मों को हिट बनाने की गारंटी हुआ करते थे। लेकिन, कुकु भी हिंदी फिल्मों की पहली डांसर अभिनेत्री नहीं थी। फिल्मों को आवाज़ मिलने के बाद, हिंदी फिल्मों की पहली डांसर अज़ूरी थी। तीस और चालीस के दशक में अज़ूरी की तूती बोला करती थी। सच कहा जाए तो भारतीय और पाकिस्तानी फिल्मों में अज़ूरी ने अपने नृत्यों को इतना पॉपुलर बनाया कि फिल्मों में अज़ूरी का डांस होना ज़रूरी हो गया था । उनकी पहली फिल्म 'नादिरा' १९३४ में रिलीज़ हुई थी। अज़ूरी की माँ हिन्दू ब्राह्मण थी और पिता एक जर्मन यहूदी डॉक्टर । अज़ूरी ने एक मुसलमान से शादी की थी। देश के बंटवारे के बाद अज़ूरी पाकिस्तान नहीं गईं। लेकिन, १९६० में वह पाकिस्तान चली गई। अलबत्ता, उनकी दो बहने भारत में ही रह गई। उन्होंने पाकिस्तान में भी झूमर जैसी फिल्मों में अभिनय किया। उनकी आखिरी भारतीय फिल्म बहना थी, जो १९६० में रिलीज़ हुई। अज़ूरी की मृत्यु १९९८ में ९० साल की उम्र में हुई। अज़ूरी की बदौलत हिंदी फिल्मों में डांसर अभिनेत्रियों का जन्म हुआ। कुकु, हेलेन, सीमा वाज, शशिकला, बिंदु, आदि के लिए हिंदी फिल्मों की राह खोलने वाली अज़ूरी ही थी। कुकु तो अज़ूरी के डांस से काफी प्रेरित थी।
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हस्तियां
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सीले हुए पटाखों से निकला 'असहिष्णुता' का धुंवा !
हिन्दुओं की असहिष्णुता को लेकर अपने अवार्ड लौटने वाले फिल्मकारों की हकीकत-
आनंद पटवर्धन को डाक्यूमेंट्री 'जय भीम कामरेड' बनाने में १४ साल लगे. यह डाक्यूमेंट्री २०११ में दिखाई गई. इसके बाद से सन्नाटा है.
कुंदन शाह की फुल लेंग्थ फिल्म 'एक से बढ़ कर एक' २००४ में रिलीज़ हुई. इसके १० साल बाद उनकी एक वैश्या के प्रधान मंत्री बनने के कथानक पर घटिया फिल्म 'पी से पीएम तक' २०१४ में रिलीज़ हुई. इस फिल्म से बेहतर तो मलिका शेरावत की फिल्म 'डर्टी पॉलिटिक्स' ज्यादा बेहतर थी .इस कथित इन्टेलेक्ट की यह फिल्म शायद खुद उनके, समीक्षकों और उनके दोस्तों के अलावा किसी ने भी नहीं देखी.
कुंदन शाह के दोस्त सईद अख्तर मिर्ज़ा तो १९९५ में 'नसीम' बनाने के बाद सन्नाटे में आ गए. बीस साल में वह केवल एक फिल्म 'एक ठो चांस' ही बना सके, जिसे एक ठो दर्शक ने भी नहीं देखा.
उपरोक्त से ज़ाहिर है कि उपरोक्त फिल्मकार विदेशी शोहरत के सहारे अभी टिके हुए हैं और जिनकी प्रतिभा का सूखा तो दसियों साल से पडा हुआ है. यह तो सहिष्णु माहौल में तक एक्को फिल्म न बना सके. वह अब इसके अलावा और कर ही क्या सकते हैं!
कुछ फिल्मकार जो सक्रिय हैं, उनके हकीकत पढ़िए-
खोसला का घोसला की फ्लूक कामयाबी के सहारे इन्टेलेक्ट बने दिबाकर बनर्जी ने लव सेक्स एंड धोखा जैसे गटर में गोता लगाया. शंघाई और डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी जैसी टोटल वाशआउट फ़िल्में बनाई. इधर उनकी 'तितली' रिलीज़ होने वाली थी. इसे प्रचार दिलाने के लिए उन्होंने वह पुरस्कार लौटा दिया, जो उनका था नहीं. खोसला का घोसला के निर्माता दिबाकर नहीं थे तो वह यह पुरस्कार कैसे लौटा सकते थे. यह धोखाधड़ी का मामला ही तो है.
आनंद पटवर्धन को डाक्यूमेंट्री 'जय भीम कामरेड' बनाने में १४ साल लगे. यह डाक्यूमेंट्री २०११ में दिखाई गई. इसके बाद से सन्नाटा है.
कुंदन शाह की फुल लेंग्थ फिल्म 'एक से बढ़ कर एक' २००४ में रिलीज़ हुई. इसके १० साल बाद उनकी एक वैश्या के प्रधान मंत्री बनने के कथानक पर घटिया फिल्म 'पी से पीएम तक' २०१४ में रिलीज़ हुई. इस फिल्म से बेहतर तो मलिका शेरावत की फिल्म 'डर्टी पॉलिटिक्स' ज्यादा बेहतर थी .इस कथित इन्टेलेक्ट की यह फिल्म शायद खुद उनके, समीक्षकों और उनके दोस्तों के अलावा किसी ने भी नहीं देखी.
कुंदन शाह के दोस्त सईद अख्तर मिर्ज़ा तो १९९५ में 'नसीम' बनाने के बाद सन्नाटे में आ गए. बीस साल में वह केवल एक फिल्म 'एक ठो चांस' ही बना सके, जिसे एक ठो दर्शक ने भी नहीं देखा.
उपरोक्त से ज़ाहिर है कि उपरोक्त फिल्मकार विदेशी शोहरत के सहारे अभी टिके हुए हैं और जिनकी प्रतिभा का सूखा तो दसियों साल से पडा हुआ है. यह तो सहिष्णु माहौल में तक एक्को फिल्म न बना सके. वह अब इसके अलावा और कर ही क्या सकते हैं!
कुछ फिल्मकार जो सक्रिय हैं, उनके हकीकत पढ़िए-
खोसला का घोसला की फ्लूक कामयाबी के सहारे इन्टेलेक्ट बने दिबाकर बनर्जी ने लव सेक्स एंड धोखा जैसे गटर में गोता लगाया. शंघाई और डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी जैसी टोटल वाशआउट फ़िल्में बनाई. इधर उनकी 'तितली' रिलीज़ होने वाली थी. इसे प्रचार दिलाने के लिए उन्होंने वह पुरस्कार लौटा दिया, जो उनका था नहीं. खोसला का घोसला के निर्माता दिबाकर नहीं थे तो वह यह पुरस्कार कैसे लौटा सकते थे. यह धोखाधड़ी का मामला ही तो है.
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Wednesday, 4 November 2015
अब गॉडजिला और किंग कॉंग
फ्रेडी और जैसन, एलियन और प्रिडेटर, बैटमैन और सुपरमैन तथा क्रेमर और क्रेमर की परंपरा में गॉडजिला और किंग कॉंग भी चल निकले हैं। हॉलीवुड फिल्मों के दर्शक अब गॉडजिला और किंग कॉंग को एक ही फिल्म में देखा पाएंगे। फिल्म होगी गॉडजिला वर्सेज किंग कॉंग। पिछले दिनों, वार्नर ब्रदर्स और लीजेंडरी पिक्चर्स के प्रवक्ताओं ने इस बात की संयुक्त घोषणा की। इन दोनों लीजेंड विशाल आकृतियों पर फिल्म २०२० में रिलीज़ होगी। २०१४ में 'गॉडजिला' पर रिबूट फिल्म की सफलता ने लीजेंडरी पिक्चर्स का इस दैत्य आकृति पर विश्वास पुख्ता हुआ था। हालाँकि, गॉडजिला पर रिबूट फिल्म के बाद इस करैक्टर पर एक फिल्म २०१८ में रिलीज़ होने जा रही है। यहाँ, बताते चले कि १९६२ में जापान के तोहो स्टूडियोज ने गॉडजिला सीरीज की तीसरी फिल्म किंग कॉंग के साथ 'किंग कॉन्ग वर्सेज गॉडजिला' बनाई थी। यह फिल्म १९६३ में अमेरिका में भी रिलीज़ हुई। लेकिन, २०२० की 'गॉडजिला वर्सेज किंग कॉन्ग ' का १९६२ की फिल्म से कोई सरोकार नहीं। खबरे हैं कि २०२० की गॉडजिला वर्सेज किंग कॉन्ग उस ट्राइलॉजी का तीसरा हिस्सा है, जो २०१७ में फिल्म 'कॉन्ग: स्कल आइलैंड' की रिलीज़ के साथ शुरू होगी। इस फिल्म के बाद 'गॉडजिला २' को रिलीज़ किया जायेगा। यह २०१४ में रिलीज़ अमेरिकन फिल्म 'गॉडजिला' की सीक्वल फिल्म है। 'गॉडजिला वर्सेज किंग कॉन्ग' मोनार्क के विज्ञानी अपनी 'गॉडजिला' की खोज को आगे बढ़ाएंगे। यह भी ऐलान किया गया है कि 'द किंग ऑफ़ समर' के डायरेक्टर जॉर्डन वॉट-रॉबर्ट्स ट्राइलॉजी की पहली फिल्म 'स्कल आइलैंड' का निर्देशन करेंगे। गैरेथ एडवर्ड्स 'गॉडजिला २' का निर्देशन करेंगे। अभी इसके कलाकारों का चुनाव नहीं किया गया है।
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Hollywood
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
नारी हिरा : फिल्म पत्रकारिता का चेहरा बदल देने वाला 'हीरा'
सितारों की ज़िन्दगी
में झांकने, वह फिल्म की शूटिंग के बाद क्या करते हैं, कहाँ जाते हैं, किसके साथ
घूमते फिरते हैं, आदि आदि बातों का ज़िक्र होते ही आँखों के सामने गॉसिप मैगज़ीन ‘स्टारडस्ट’
का लेटेस्ट कवर घूम जाता है। इसके साथ ही, पैंतालिस साल पहले हिंदी फिल्म स्टार्स की ज़िन्दगी
को बेपर्दा कर देने वाली अंग्रेजी फिल्म मासिक ‘स्टारडस्ट’ के संस्थापक नारी हिरा
का नाम भी याद आ जाता है। नारी हिरा ने बम्बइया फिल्म पत्रकारिता का जैसे चेहरा
ही बदल दिया था। उस समय कोई सोच भी नहीं सकता था कि कोई मैगज़ीन किसी फिल्म स्टार
की ज़िन्दगी में इतने बेबाकी से झाँकेगी, उस के निजी जीवन की बेशर्म सच्चाइयों को उस आम फिल्म प्रेमी को बताएगी, जो अपने
पसंदीदा सितारे को ईश्वर की तरह पूजता है। नारी हिरा को एक मैगज़ीन के जरिया ऐसा करने का विचार उस समय आया, जब वह उस दौर की एक
लोकप्रिय फिल्म पत्रिका ‘फिल्मफेयर’ के एक अंक को देख कर। मैगज़ीन में इस उस समय की लोकप्रिय
फिल्म अभिनेत्रियों साधना, आशा पारेख और वहीदा रहमान को मुंबई के जुहू बीच पर रेत के किले बनाते दिखाया गया था। यह
अभिनेत्रियाँ मैगज़ीन के पत्रकार से अपनी फिल्मों के बारे में बात कर रही थी। नारी हिरा को लगा क्या
मज़ाक है ! यह क्यों नहीं जाना जाता कि यह अभिनेत्रियाँ फिल्म की शूटिंग के बाद
क्या करती हैं। उनके जीवन की सच्चाइयों को क्यों नहीं बताया जाता ! इसके साथ ही ‘स्टारडस्ट’ का जन्म हुआ। दरअसल, नारी हिरा हॉलीवुड की
तीसवे और चालीसवे दशक में निकलने वाली फिल्म मैगज़ीन ‘फोटोप्ले’ जैसी कोई पत्रिका
निकालना चाहते थे। उन्होंने किया भी ऐसा ही। उस समय राजेश खन्ना का सितारा बुलंदी पर था। नारी हिरा मैगज़ीन के लॉन्चिंग अंक की कवर स्टोरी का हीरो राजेश खन्ना को ही बनाना चाहते थे। उस समय
अंजू महेन्द्रू का राजेश खन्ना के साथ रोमांस चल रहा था। नारी हिरा अंजू
महेन्द्रू को जानते थे। उन्होंने अंजू से कहा कि मैं अपनी मैगज़ीन के लिए स्टोरी
करना चाहता हूँ। उन्होंने पूछा कि क्या तुम बताओगी कि क्या तुम दोनों शादी करना चाहते हो या सिर्फ रोमांस ही करोगे ? अंजू को
नारी हिरा की स्टोरी का यह आईडिया पसंद आया। अंजू ने जवाब दिया मैं आपको यह तो
नहीं बताने जा रही कि हम दोनों ने गुप्त रूप से शादी कर ली है या नहीं। लेकिन
बाकी सब कुछ बताऊंगी। अक्टूबर १९७१ में स्टारडस्ट का पहला अंक बाज़ार में आया। कवर स्टोरी थी- इज
राजेश खन्ना सीक्रेटली मैरिड ? यह अंक अक्टूबर के पहले हफ्रते में बाज़ार में आया। इसके साथ ही
बॉम्बे की फिल्म पत्रकारिता का चरित्र ही बदल गया।
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फिल्म पुराण
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कैरोलिन कोस्सेय : जेम्स बांड गर्ल वाज अ बॉय
यह कैरोलीन कोस्सेय हैं (देखें चित्र) । ३१ अगस्त १९५४ को जन्मी कैरोलिन ब्रिटिश मॉडल हैं। वह १९८१ में रिलीज़ बांड फिल्म ‘फॉर योर आईज ओनली’ की बांड गर्ल रह चुकी हैं। लेकिन, दसियों खूबसूरत और सेक्सी बांड गर्ल्स के बीच कैरोलिन की खासियत क्या है ! दरअसल, कैरोलीन ट्रांसजेंडर हैं। किशोर कैरोलिन में लड़कों से ज्यादा
लड़कियों के लक्षण देखे गए। साथी उनका मज़ाक उड़ाया करते थे। कैरोलिन को भी अपनी बहन
के साथ माँ की तरह तैयार होना पसंद था। इसी कारण से कैरोलिन को १५ साल की उम्र के
बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। कैरोलिन ने १७ साल की उम्र में खुद के शरीर में थोडा
परिवर्तन करवा कर, लन्दन के एक नाईट क्लब में शो गर्ल का काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद कैरोलीन ने अपनी छातियों को बड़ा करने के लिए सर्जरी करवाई। इसमे सफलता
के बाद वह पेरिस के नाईट क्लब में शोगर्ल और रोम में टॉपलेस डांसर का काम करने लगी। अब कैरोलिन पूरी तरह से स्त्री का जीवन जीने लगी थी। उन्होंने ने ‘टूला’ नाम से
मॉडलिंग शुरू कर दी। वह ऑस्ट्रेलिया के पत्रिका वोग और हार्पर्स बाज़ार में नज़र आने
लगी। इस तरह से कैरोलिन ने बड़े पैमाने पर ग्लैमरस मॉडलिंग करनी शुरू कर दी। ब्रिटिश टेबलायड की वह पेज थ्री गर्ल थी। १९९१ में प्लेबॉय में भी नज़र आई। १९७८ कैरोलिन उर्फ़ टुलू
ने ब्रिटिश गेम शो ३-२-१ का एक पार्ट जीत लिया था। तभी एक पत्रकार ने उससे कहा कि
वह जानता है कि टुलू ट्रांसजेंडर है। उसने खुद को कुछ इस तरह पेश किया, जैसे वह
टुलू का भला चाहने वाला है। इसकी भनक लगते ही दूसरे पत्रकार भी कैरोलिन के अतीत
को टटोलने लगे। टुलू को इस गेम शो से बाहर कर दिया गया। इसी दौरान १९८१ में वह
बांड फिल्म ‘फॉर योर आईज ओनली’ में बांड गर्ल बनी अभिनेता रॉजर मूर के साथ खड़ी नज़र आई। यही से शुरू होती है
टुलू की संघर्ष और विजय की कहानी। जेम्स बांड की रिलीज़ के ठीक बाद एक टेबलायड ‘न्यूज़ ऑफ़ द
वर्ल्ड’ में खबर थी ‘जेम्स बांड गर्ल वाज अ बॉय' । इस खबर ने टुलू को काफी निराश
किया। वह आत्महत्या करने की सोचने लगी। फिर, काफी सोच विचार के बाद कैरोलिन ने अपना मॉडलिंग करियर जारी
रखने का निश्चय किया। अख़बार की खबर के जवाब में कैरोलीन कोस्सेय की आत्मकथा ‘आई
एम् अ वुमन’ बाज़ार में आई। इसी दौरान टुलू के जीवन में आया एक इटलियन एडवरटाइजिंग एग्जीक्यूटिव
काउंट ग्लुको लासिनियो, जो उसके अतीत से परिचित होने के बावजूद उससे प्रेम करता था और उसने टुलु से सगाई भी कर ली थी। काउंट ने उससे ट्रांसजेंडर को लेकर बने ब्रितानी कानून को बदलने के लिए मुक़दमा
दायर करने के लिए कहा। हालाँकि, इस मुकदमे के दौरान ही, काउंट से टुलू की सगाई टूट गई। लेकिन, ब्रितानी कानून में बदलाव का टुलू का संघर्ष जारी रहा। सात साल लम्बे कानूनी संघर्ष के बाद टुलू
ब्रिटिश कानून में बदलाव ला पाने में सफल हुई। इस फैसले के बाद, टुलू ने चार साल
पहले छोड़ी गई मॉडलिंग फिर शुरू कर दी। १९९१ में कैरोलीन कोस्सेय की दूसरी आत्मकथा
‘माय स्टोरी’ रिलीज़ हुई। इसी साल प्लेबॉय ने उस पर ‘द ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ़ टुलू’
टाइटल के साथ फोटो फीचर निकाला। आजकल टुलू कनाडा के डेविड
फिंच के साथ शादी कर एटलांटा में रह रही है .
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Tuesday, 3 November 2015
आई वी ससि : जिसकी पारिवारिक फ़िल्में गरम हुआ करती थी
सत्तर से लेकर नब्बे के दशक के फिल्म प्रेमी आई
वी ससि को जानते होंगे . कभी वह अपनी फिल्मों के लिये कुख्यात हुआ करते थे.
कुख्यात इसलिए की उनकी तमाम फिल्मे सॉफ्ट पोर्न श्रेणी की फ़िल्में मानी जाती थी . उस
दौरान यह कहा जाता था कि उन्होंने तमाम मलयाली फिल्म निर्माताओं को सेक्स परोसने
का रास्ता दिखाया . इर्रुप्पम वीडु शाशिधरन, जी हाँ आई वी ससि का यही पूरा नाम था.
१९४६ में केरल में जन्मे आई वी ससि ने अपने पूरे करियर के दौरान कोई डेढ़ सौ
फ़िल्में बनाई . इनमे कुछ हिंदी में थी और ज्यादा मलयालम से हिंदी में डब कर रिलीज़
की जाती थी . इन्ही डब फिल्मों ने शाशिधरन को पोर्न फिल्मों के डायरेक्टर का
दर्ज़ा दे दिया. ‘अवलुड़े रावुकल’ उनकी बतौर निर्देशक पहली ऎसी मलयालम फिल्म थी . यह एक
किशोरी वैश्या की कहानी थी . सत्तर के दशक में तत्कालीन मलयाली एक्ट्रेस को यह बेहद
बोल्ड फिल्म लगी और उन्होंने वैश्या की इस भूमिका को करने से मना कर दिया. तब ससि
अभिनेत्री सीमा के पास गए. सीमा की यह पहली फिल्म थी. फिल्म को ज़बरदस्त सफलता
मिली. यह फिल्म मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की दूसरी एडल्ट फिल्म थी. इस फिल्म को बाद
में हिंदी सहित कुछ अन्य भाषाओँ में डब कर रिलीज़ किया गया . हिंदी दर्शकों ने इस
फिल्म को ‘हर नाइट्स’ टाइटल के साथ देखा होगा . हिंदी में भी ‘हर नाइट्स’ खूब सफल
हुई. इस फिल्म से पूरे देश में मलयालम की सेक्सी फिल्मों का क्रेज बन गया . सीमा
बड़ी स्टार बन गई . बाद में ससि ने सीमा से शादी कर ली. दो साल बाद ससि ने ‘हर
नाइट्स’ को ‘पतिता’ टाइटल के साथ हिंदी में मिथुन चक्रवर्ती, राज किरण, शोमा आनंद
और विक्रम के साथ बनाया . फिल्म को प्रशंसा ढेर मिली, लेकिन दर्शक कम मिले. इसके
बाद आई वी ससि निर्देशित फिल्म ‘वादाकक्कू ओरु ह्रुदयम’ . इस फिल्म को हिंदी में ‘मन
का आँगन’ टाइटल के साथ डब कर रिलीज़ किया गया . इसके साथ ही हिंदी की डब सेक्सी
फिल्मों में आई वी ससि का नाम जुड़ गया. हालाँकि, उन्होंने अनोखा रिश्ता, अनुरोध,
प्रतिशोध, करिश्मा, आदि हिंदी फिल्मो का निर्माण भी किया . आई वी ससि की फ़िल्मों
का विषय पारिवारिक हुआ करता था. इसके बावजूद अपने बोल्ड दृश्यों के कारण ससि पोर्न
फिल्मकार की तरह जाने जाते थे. एक समय यह कहा जाता था कि ससि बोल्ड विषय पर
फ़िल्में ज़रूर बनाते थे, लेकिन एक्सीबिटर उनकी फिल्मों में पोर्न फिल्मों की क्लिपिंग जोड़
कर, इन फिल्मों को गरम फिल्म बना देते थे. हालाँकि, ससि की इमेज गरम फिल्म के
निर्माता की बनी हुई थी, लेकिन उन्होंने बहुत सी सार्थक और सन्देश देने वाली
फिल्मों का निर्माण किया. उनकी मलयालम फिल्म ‘१९२१’ बाल विवाह पर थी . इस फिल्म को
इटली के फिल्म समारोह में दिखाया गया . ससि की फिल्म ‘आरूदम’ को राष्ट्रीय एकता की
श्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला . कमल हासन, मोहनलाल, मम्मूती,
प्रेम नज़ीर, आदि दक्षिण के सितारो का पहला परिचय आई वी ससि की फिल्मे से ही हुआ . मलयालम
फिल्मों से रजनीकांत का डेब्यू आई वी ससि की फिल्म के द्वारा ही हुआ.
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पृथ्वीराज कपूर : एक सिकंदर, जो पोरस भी था
वह सिकंदर भी थे और पोरस भी . वह अर्जुन भी थे और कर्ण भी . वह अकबर थे तो वही महाराणा प्रताप भी थे। १९४६ की फिल्म 'पृथ्वीराज संयोगिता' में पृथ्वीराज का किरदार करने वाले अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने लगभग सभी मुख्य धार्मिक, ऐतिहासिक और अर्ध ऐतिहासिक किरदार किये। ३ नवंबर १९०६ को अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के लायलपुर में पैदा पृथ्वीराज कपूर ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत लायलपुर और पेशावर के थिएटर से की। उन्होंने अपने फिल्म करियर की शुरुआत मूक फिल्म दो धारी तलवार से की। उन्होंने नौ मूक फिल्मों में एक्स्ट्रा की भूमिका की। १९२९ में रिलीज़ मूक फिल्म 'कॉलेज गर्ल' के वह नायक थे। पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' में उन्होंने आलम आरा के पिता सेनापति आदिल की भूमिका की । यह वह समय था, जब हिंदी-उर्दू सिनेमा शैशवावस्था में था। उस दौरान ऎसी फ़िल्में ज़्यादा बनाई जाती थी, जिनके करैक्टर आम आदमी के जाने पहचाने होते थे। इसीलिए पृथ्वीराज कपूर ने काफी कॉस्ट्यूम ड्रामा फ़िल्में की। आलम आरा के बाद पृथ्वीराज कपूर ने फिल्म 'द्रौपदी' में अर्जुन, रामायण में राम, राजरानी मीरा में महाराणा प्रताप, सीता में फिर राम, विद्यापति में राजा शिव सिंह, द कोर्ट डांसर: राज नर्तकी में राजकुमार चन्द्रकीर्ति, सिकंदर में सिकंदर महान, महारथी कर्ण में कर्ण, विक्रमादित्य में राजा विक्रमदित्य, छत्रपति शिवाजी में राजा जयसिंह, मुग़ल- ए- आज़म में सम्राट अकबर, रुस्तम सोहराब में योद्धा रुस्तम ज़ाबुली, हरिश्चंद्र तारामती में राजा हरिश्चंद्र, राजकुमार में महाराजा, जहाँआरा में शाहजहाँ, सिकंदर-ए-आज़म में राजा पोरस, श्री रामभरत मिलाप में राजा दशरथ, जहाँ सटी वहां भगवान में महाराजा करंधम, आदि फिल्मों के अलावा शेर ए अफगान, बलराम श्रीकृष्ण, सटी सुलोचना, हीर रांझा, नाग पंचमी जैसी फिल्मों में धार्मिक ऐतिहासिक किरदार किये। हालाँकि, पृथ्वीराज कपूर कर्ण और अर्जुन बने, अकबर और शाहजहाँ भी बने, लेकिन वह यादगार रहे फिल्म 'मुग़ल ए आज़म के शहंशाह अकबर के रूप में। आज भी उनकी भारी भरकम शरीर के साथ दमदार आवाज़ अकबर को परदे पर महान छवि देती लगती है। उन्होंने १९४४ में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की। २९ मई १९७२ को ६५ साल की उम्र में मृत्यु के बाद पृथ्वीराज कपूर की तीन फ़िल्में नया नशा, बॉम्बे बय नाईट और जुदाई रिलीज़ हुई। १९६९ में पृथ्वीराज कपूर को पद्म भूषण दिया गया और हिंदी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान के लिए १९७१ का दादासाहब फालके अवार्ड मरणोपरांत दिया गया।
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Sunday, 1 November 2015
चंद्रलेखा: पहली तमिल फिल्म जो पूरे देश में चमकी
आजादी के सात महीने बाद रिलीज़ तमिल फिल्म ‘चंद्रलेखा’ इस मायने में अलग थी कि यह फिल्म पूरे भारत में रिलीज़ होने वाली पहली तमिल फिल्म थी . इस २०७ मिनट लम्बी ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म को इसकी भव्यता और नगाड़ों पर डांस के लिए याद किया जाता है . एस एस वासन की इस फिल्म में टी एस राजकुमारी, एम के राधा और रंजन जैसे बड़े सितारे थे . यह फिल्म कहानी थी दो राजकुमारों की - एक बुरा दूसरा भला . बुरा भाई अपने पिता की गद्दी पाने की कोशिश में रहता . दोनों ही एक नर्तकी से प्रेम करते थे . मोटे तौर पर यह फिल्म हॉलीवुड की फिल्म ‘द प्रिजनर ऑफ़ जेंटा’ से प्रेरित थी . इस फिल्म में बुरे राजकुमार का किरदार राजकुमार शशांकन का किरदार रंजन ने निभाया था . भले राजकुमार वीरसिम्हन एम के राधा बने थे . नर्तकी चंद्रलेकः की भूमिका टी आर राजकुमारी ने की थी. ‘चंद्रलेखा’ को बनने में पांच साल का समय लगा . हालाँकि, फिल्म पर काम चालीस के दशक की शुरुआत में ही शुरू हो गया था . उस दौरान एस एस वासन की दो फ़िल्में लगातार हिट हो गई थी . वासन ने अपनी अगली फिल्म के टाइटल ‘चंद्रलेखा’ का ऐलान कर दिया . जैमिनी स्टूडियोज का स्टोरी डिपार्टमेंट फिल्म की कहानी पर काम करने लगा. इस फिल्म की कहानी को विकसित करने में कई उपन्यासों का सहारा लिया गया . १९४३ में इस फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई . फिल्म के डायरेक्शन की कमान टी जी राघवाचारी के हाथों में थी . उन्होंने आधी से ज्यादा फिल्म शूट भी की . लेकिन, फिर मतभेदों के चलते वासन ने राघवाचारी को बाहर का रास्ता दिखा दिया और निर्देशन की कमान खुद सम्हाल ली . १९४३ में बननी शूरू चंद्रलेखा पांच साल बाद १९४८ में पूरी हुई . फिल्म के निर्माण के दौरान इसकी कास्ट, कहानी और प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में बार बार फेर बदल हुए . इस फिल्म के निर्माण में उस समय ३० लाख खर्च हुए थे. फिल्म को पूरी करने के लिए एस एस वासन को अपनी तमाम संपत्ति गिरवी रखनी पड़ी और जेवर बेच देने पड़े . वासन इस फिल्म को अखिल भारतीय स्तर पर रिलीज़ करना चाहते थे . जैमिनी की फिल्म ‘चंद्रलेखा’ के बाद ही एवीएम् और प्रसाद प्रोडक्शनस ने हिंदी फिल्मों का निर्माण शुरू किया . इस फिल्म की कहानी के अनुसार रंजन का विलेन किरदार चंद्रलेखा से ज़बरदस्ती शादी करना चाहता है . इस पर चंद्रलेखा उसके सामने शर्त रखती है कि वह नगाड़ा डांस के बाद ही उससे शादी करेगी . चंद्रलेखा की इच्छा को पूरा करने के लिए खुले दरबार में नगाड़े सजाये जाते हैं . चंद्रलेखा उन पर डांस करती है . इसी दौरान नगाड़ों में बैठे राजकुमार बने राधा के सैनिक बाहर निकल आते हैं . खूब तलवारबाज़ी होती है . आखिर में चंद्रलेखा भले राजकुमार की हो जाती है . इस फिल्म की खासियत तलवारबाज़ी के हैरतंगेज़ दृश्य थे . रंजन खुद में अच्छे तलवारबाज़ थे . फिल्म का नगाड़ा डांस चकाचौंध कर देने वाला भव्य बन पडा था . इस डांस की बदौलत फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई . दर्शक केवल इस डांस को देखने के लिए ही फिल्म देखने जाते थे . इस नगाड़ा डांस को २५ साल के कोरियोग्राफर एस राजेश्वर राव ने तैयार किया था . इस दर्शनीय फिल्म के कैमरामैन कमल घोष और के रामनाथ थे . फिल्म के संगीत में भारतीय और पाश्चात्य संगीत की घालमेल थी. एस एस वासन ने इस फिल्म के तमिल संस्करण को भरपूर प्रचार के साथ रिलीज़ किया. फिल्म को समीक्षकों ने सराहा भी . इसके बावजूद फिल्म अपनी लागत वसूलवाने में नाकामयाब हुई . तब वासन ने फिल्म को कुछ बदलाव के साथ हिंदी में रिलीज़ किया . हिंदी में रिलीज़ होते ही चंद्रलेखा बड़ी हिट फिल्मों में शुमार हो गई . फिल्म ने उस समय ७० लाख का ग्रॉस किया, जो आज के लिहाज़ से ४७६.६२ करोड़ है . इस फिल्म की सफलता ने दक्षिण के निर्माताओं को अपनी फ़िल्में हिंदी में रिलीज़ करने के लिए उत्साहित किया . बाद में चंद्रलेखा इंग्लिश, जापानीज, डेनिश तथा अन्य विदेशी भाषाओँ में डब कर रिलीज़ की गई . कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में भी यह फिल्म दिखाई गई. देखिये चंद्रकांता के इस दर्शनीय और भव्य नगाड़ा डांस को इस विडियो में-
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साउथ सिनेमा
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'शोले' से भी ज़्यादा हिंसक थी यह फिल्म !
चौंतीस
साल पहले, २३ नवंबर १९८१ को कडाके की ठण्ड पड़ रही थी . लखनऊ के चाइना बाज़ार के
पास बने उस समय के सबसे खूबसूरत थिएटर तुलसी में जीतेंद्र और हेमा मालिनी की मुख्य
भूमिका वाली फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ लगी थी . यह फिल्म कडाके की ठण्ड में भी गर्म
थी . खबर थी कि इस फिल्म में पहली बार किसी नेता और अधिकारी पर उंगली उठाई गई है,
उन्हें अपराधी करार दिया गया है . यह अभूतपूर्व था . इससे पहले की हिंदी फिल्मों
में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी और नेता पवित्र गाय हुआ करते थे, उन पर उंगली
उठाना सेंसर का शिकार होना होता था . इसलिए फिल्म के बैन किये जाने की अफवाह गर्म
थी . थिएटर के बाहर हाउसफुल का बोर्ड उतरने का नाम नहीं ले रहा था, दर्शकों की
लम्बी कतारें फिल्म के हिट होने की ओर इशारा कर रही थी . ऐसे में फिल्म को यकायक
सिनेमाघर से उतार दिया गया था . जो नहीं देख पाए, उन्हें अफ़सोस हो रहा था .
जिन्होंने देखी वह फिल्म में बर्बर हिंसा से हतप्रभ थे. फिल्म में ईमानदार पुलिस
अधिकारी को नेता, अपराधी और पुलिस ऑफिसर प्रताड़ित करते हैं . उसकी गर्भवती पत्नी
का गर्भ पेट पर लात मार मार कर गिरा देता हैं . पुलिस अधिकारी की हाथों की
उँगलियों के नाखून उतार देते हैं. यह अभूतपूर्व दृश्य थे . हालाँकि, हिंदी फिल्म ‘मेरी
आवाज़ सुनो’ के तमाम हिंसक दृश्य काफी कम कर दिए गए थे . लेकिन, मेरी आवाज़ सुनो की
रिलीज़ के कोई छह महीना पहले मूल फिल्म कन्नड़ ‘अंत’ ने बंगलोर को हिला कर रख दिया गया था . निर्देशक एस वी राजेंद्र सिंह की फिल्म की प्रीमियर के बाद
से ही अत्यधिक हिंसा के कारण आलोचना शुरू हो गई थी और फिल्म पर बैन लगाये जाने की खबरे उड़ने लगी थी . बंगलौर के
दो कन्नड़ दैनिकों प्रजावाणी और कन्नड़ प्रभा ने फिल्म का विरोध शुरू कर दिया . इस
फिल्म को शोले से ज्यादा हिंसक बताया गया . फिल्म पर यह भी आरोप लगाए गए कि इसमे
हिंसक दृश्य सेंसर से पारित कराये जाने के बाद शामिल किये गए . फिल्म में पुलिस अधिकारी बने अम्बरीश को अपराधी
नेता और पुलिस वाले यातना देते हुए उनकी उँगलियों के नाखून उतार लेते हैं . यह
दृश्य बड़े विस्तार से दिखाया गया था . इसके अलावा फिल्म में ईमानदार पुलिस अधिकारी
की गर्भवती पत्नी का गर्भ उसके पेट में लात मार मार कर गिरा दिया जाता दिखाया गया
था . इन दृश्यों ने क्रूरता की तमाम हदें लांघ ली थी . जब शोर शराबा मचा तो सेंसर
बोर्ड ने इससे यह कह कर पल्ला झाड लिया कि फिल्म के तमाम दृश्य उन्हें नहीं दिखाए
गए. इस देखते हुए बंगलौर के जिला अधिकारी ने फिल्म को थिएटर से उतार जाने के आदेश
जारी कर दिए . लेकिन, इस समय तक फिल्म को तीन हफ्ते बीत चुके थे . सिनेमाघरों में
इस फिल्म ने ज़बरदस्त कलेक्शन कर लिया था . यह फिल्म तीन हफ़्तों में ही सुपर हिट
बिज़नस कर चुकी थी और अम्बरीश कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार बने . इस फिल्म के कारण
उन्हें ‘रिबेल स्टार’ कहाँ जाने लगा. इसी इमेज के बल पर अम्बरीश १२ वी लोकसभा के
लिए चुने गए . वह १३ वी और १४ वी लोकसभा के भी सदस्य बने . २००६ में वह मनमोहन
सिंह सरकार में सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री बनाए गए . वर्तमान में
वह मांड्या से विधायक है और कर्णाटक सरकार में मंत्री . अब फिर बात करते हैं
जीतेंद्र की फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ की . यह फिल्म भी जब तक सिनेमाघरों से उतारी
जाती ज़बरदस्त हिट हो चुकी थी . हालाँकि, इस फिल्म में कन्नड़ फिल्म के मुकाबले
हिंसा के दृश्य काफी प्रतीकात्मक थे . हेमा मालिनी के गर्भ पर लात मारने के
दृश्यों को मुर्गी के अंडे तोड़ कर दिखाया गया था . अलबत्ता, नाखून उखाड़े जाते समय
जीतेंद्र के किरदार की चीख दहलाने वाली थी . बैन के बाद यह फिल्म फिर रिलीज़ हुई और
सबसे बड़ी हिट फिल्मों में शुमार हुई . इस फिल्म ने उस समय १० करोड़ का ग्रॉस किया था, जो आज के लिहाज़ से ३०६.१७ करोड़ है। मेरी आवाज़ सुनो और अर्द्धसत्य के बाद हिंदी
फिल्मों में नेता और सरकारी अधिकारी पवित्र गाय नहीं रह गए .
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यादें,
साउथ सिनेमा
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Saturday, 31 October 2015
गायकों के पहले गीत
इरोसनाउ ने एल्बम 'आगाज़' के अंतर्गत हिंदी फिल्मों के १० गायक गायिकाओं के गाये पहले गीतों को संकलित किया है। इस एल्बम के गीतों के फर्स्ट होने की खोज में कुछ तथ्य सामने आये हैं। जिन्हे आपके सामने गायकवार रख रहा हूँ -
तलत महमूद का गाया पहला गीत !
तलत महमूद का गाया पहला गीत १९५० में रिलीज़ 'आरजू' फिल्म का 'ऐ दिल मुझे ऎसी जगह ले चल' बताया है। इस फिल्म में दिलीप कुमार, कामिनी कौशल, शशिकला, कुकु और राम शास्त्री ने अभिनय किया था। शाहिद लतीफ़ के निर्देशन में इस फिल्म के संगीतकार अनिल बिस्वास थे। यह अपने समय का काफी लोकप्रिय गीत था। लेकिन, काफी लोग इसे तलत महमूद का पहला गाया गीत नहीं मानते। दावा यह किया जाता है कि इसी साल रिलीज़ फिल्म 'जोगन' का 'सुंदरता के सभी पुजारी' तलत महमूद का गाया पहला गीत था। इस गीत को बुलो सी रानी ने संगीतबद्ध किया था। आरज़ू भी दिलीप कुमार की फिल्म थी। निर्देशक केदार नाथ शर्मा की इस फिल्म में दिलीप कुमार की नायिका नर्गिस थी और राजेंद्र कुमार ने फिल्म से डेब्यू किया था। एक दूसरा दावा यह है कि तलत महमूद ने अपने कलकत्ता प्रवास के दौरान कानन देवी के संगीत निर्देशन में राजलक्ष्मी (१९४५) फिल्म के लिए दो गीत 'जागो मुसाफिर जागो खोलो मन का द्वार' और 'तू सुन ले मतवाले' गाये थे। वैसे अगर नॉन फिल्म सांग की बात करें तो तलत महमूद एचएमवी के लिए १९४१ में ही एक गीत 'सब दिन एक समान, बन जाऊंगा क्या से क्या मैं, इसका तो कुछ ध्यान नहीं था' गा चुके थे।
मुकेश का गाया पहला गीत !
इसी प्रकार से इरोस ने फिल्म 'निर्दोष' के गीत 'दिल ही हो बुझा हुआ तो' को मुकेश का गाया पहला गीत बताया है। यह फिल्म १९४१ में रिलीज़ हुई थी। वीरेंदर देसाई निर्देशित इस फिल्म का संगीत अशोक घोष ने दिया था। फिल्म में मुकेश ने नलिनी जयवंत, कन्हैया लाल और आगा के साथ मुख्य भूमिका भी की थी। यह उनकी पहली बतौर एक्टर और सिंगर फिल्म थी। लेकिन, इस दावे को इस बिना पर खारिज किया जाता है कि संगीतकार बुलो सी रानी खुद के द्वारा संगीतबद्ध फिल्म 'मूर्ती' के 'बदरिया बरस गई' गीत को मुकेश का गाया पहला हिंदी गीत बताते थे । ऐसा मनाने वाले लोगों की भी कमी नहीं, जो फिल्म पहली नज़र (१९४५) के गीत 'दिल जलता है तो जलने दो को मुकेश का गाया पहला गीत मानते हैं। परन्तु यह गीत उनका पहला हिट गीत था।
मोहम्मद रफ़ी का पहला गीत
इरोस ने १९४४ में रिलीज़ फिल्म 'पहले आप' के 'हिंदुस्तान के हम हैं हिंदुस्तान हमारा' को मोहम्मद रफ़ी का गाया पहला गाया गीत बताया है। इस गीत के संगीतकार नौशाद अली हैं। इस गीत को रफ़ी साहब का पहला गीत बताने को लेकर भी विवाद है। यह नौशाद अली के साथ रफ़ी का पहला गीत ज़रूर है। लेकिन, उनका पहला रिकॉर्ड गीत श्याम सुन्दर के संगीत निर्देशन में १९४५ में रिलीज़ फिल्म 'विलेज गर्ल' का जी एम दुर्रानी के साथ गाया दोगाना 'अजी दिल हो काबू में तो दिलदार की ऐसी तैसी' है। इस फिल्म में नूरजहाँ, दुर्गा खोटे और प्रेम अदीब की मुख्य भूमिका थी।
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
अब टफ हो रही है बॉलीवुड फिल्मों की नायिका
आजकल अमेरिका के एबीसी नेटवर्क पर एफबीआई के ट्रेनीज पर सीरियल 'क्वांटिको'
चल रहा
है। फिलहाल, इस सीरियल में कहानी प्रियंका
चोपड़ा के इर्दगिर्द घूम रही है। ऍफ़बीआई के वास्तविक ट्रेनिंग सेंटर 'क़्वान्टिको' में रंगरूटों की ट्रेनिंग काफी कड़ी और तनावपूर्ण होती है। प्रियंका चोपड़ा सीरियल में एक ऐसे ही रंगरूट अलेक्स परिश का किरदार कर रही हैं, जिसे मज़बूत और कठोर जिस्म एफबीआई एजेंट बनना है। इसलिए सीरियल में उनकी ट्रेनिंग भी काफी टफ है। प्रियंका चोपड़ा अपनी आगामी कुछ फिल्मों में बॉलीवुड की
नाज़ुक बदन रोमांटिक नायिका से अलग टफ जॉब
करती नज़र आएंगी । वही क्या, बॉलीवुड की कई रोमांटिक नायिकाएं टफ जॉब कर रही होंगी। साफ़ तौर पर, अब बॉलीवुड की अभिनेत्रियों का खूबसूरत, कोमल और सेक्सी दिखने से काम नहीं चलेगा। उन्हें कुछ रफ़ और कुछ टफ करना है। कई अभिनेत्रियों ने पहले भी ऐसा किया और आगे की फिल्मों में भी करने जा रही हैं।
बॉलीवुड की रफ़-टफ नायिका
क्वांटिको की प्रियंका चोपड़ा,
बॉलीवुड एक ऎसी अभिनेत्री हैं, जिन्होंने सेक्सी फिगर और
इमेज के बावजूद हट कर फ़िल्में करने की कोशिश
की। अब चाहे वह मधुर भंडारकर की बोल्ड
फिल्म 'फैशन' हो या विशाल भरद्वाज की मराठी नायिका वाली फिल्म 'कमीने' या फिर विशाल भरद्वाज की ही '७ खून माफ़'
और
अनुराग बासु की फिल्म 'बर्फी', प्रियंका चोपड़ा अपनी हमेशा इमेज से अलग नज़र आई। ओमंग कुमार की फिल्म 'मैरी कॉम' में ओलंपिक्स की एथलीट मैरी
कॉम का किरदार जीवंत करना प्रियंका चोपड़ा के बस की ही बात थी। वह एक बॉक्सर की मज़बूती के लिए ज़रूरी ट्रेनिंग लेती हुई दिखाई जा रही थी। प्रियंका चोपड़ा ने उस समय कमाल कर दिखाया था, जब गोल्डी बहल की सुपर हीरो फिल्म 'द्रोणा' में अभिषेक बच्चन की
बॉडीगार्ड सोनिया के किरदार में उन्होंने सिख योद्धाओं के अस्त्र गटका को चला कर
दिखाया। दीपिका पादुकोण ने भी फिल्म 'चांदनी चौक टू चाइना' में अपने किरदार के लिए जापानी मार्शल आर्ट जुजित्सु की छह
माह तक कड़ी ट्रेनिंग ली। उन्होंने
हांगकांग में ट्रेनर से केबल और वायर पर चढ़ना तथा तलवार चलाना सीखा । वैसे, दीपिका पादुकोण से काफी पहले ऐश्वर्या राय बच्चन फिल्म 'जोधा अकबर'
में
जोधा के किरदार में ह्रितिक रोशन के साथ तलवारबाजी के जौहर दिखा चुकी हैं। इस फिल्म के लिए ऐश्वर्या ने दो महीने तक कड़ी
ट्रेनिंग ली थी। फिल्म 'रावण' में तो उनके स्टंट देख कर कलेजा मुंह को आता था। कटरीना कैफ ने धूम ३ के लिए पिलेट्ज़ सिस्टम के ज़रिये खुद को एक जिमनास्ट के किरदार
के लिए फिट किया। जिमनास्टिक की ट्रेनिंग भी ली। कटरीना कैफ ने एक था टाइगर और फैंटम के लिए कार्डिओ और वेट
ट्रेनिंग ली। ऊंची ईमारत से कूदने और गलियों-सडकों में तेज़ भागने का अभ्यास किया। माधुरी दीक्षित को इंडस्ट्री की सबसे ट्रेंड एक्ट्रेस कही जा सकती हैं। उन्होंने फिल्म गुलाब गैंग के लिए चीन की शाओलिन कुंग फु, पेकिटी-तिरसिआ काली और शाओलिन चिन ना की ट्रेनिंग ली। लाठी भांजने के लिए शाओलिन जॉइंट लॉकिंग और कलि नाइफ की भी ट्रेनिंग ली। फिल्म रेस २ के लिए जैक्विलिन फर्नांडीज़ ने एक्शन डायरेक्टर पीटर हैंस चाकू के साथ तलवार चलाने की ट्रेनिंग ली थी।
और तलवार भी भांजेंगी की नाज़ुक कलाइयां
'बाजीराव मस्तानी' में प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण एक साथ हैं। फिल्म में प्रियंका चोपड़ा बाजीराव की पत्नी काशीबाई के किरदार में हैं, तो दीपिका पादुकोण एक नर्तकी मस्तानी का किरदार कर रही हैं। यह एक मुग़ल नर्तकी का
किरदार है, जिससे मराठा पेशवा बाजीराव
प्रेम करने लगता है। लेकिन, 'बाजीराव मस्तानी' की
मस्तानी दीपिका पादुकोण केवल नृत्य और रोमांस ही नहीं कर रही। वह तीर तलवार भी चला रही हैं। इसके लिए उन्होंने बाकायदा ट्रेनिंग ली
है। भारी जिरह बख्तर पहन कर खुद को टफ बनाने में कोई कसर नहीं
छोड़ रही हैं दीपिका पादुकोण। प्रियंका चोपड़ा भी कहाँ पीछे हैं। वह परदे के पीछे पत्नी धर्म नहीं निभा रही। दिसंबर में रिलीज़ होने जा रही संजयलीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में
बाजीराव की पत्नी काशीबाई के किरदार में वह तलवार चलाते दिखाई देंगी । प्रकाश झा की फिल्म 'जय गंगाजल' में वह एक टफ पुलिस अफसर का
किरदार कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने बाकायदा टफ फिजिकल ट्रेनिंग भी ली है। ज़ाहिर है कि फिल्म में हैरतअंगेज एक्शन तो
होंगे ही।
घोड़े पर सवार नायिका
बॉलीवुड में कंगना रनौत घुड़सवारी सीख रही हैं। विशाल भरद्वाज की दूसरे
विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर फिल्म 'रंगून' में उनका किरदार ही ऐसा है, जिसे घुड़सवारी करनी है। वह केतन मेहता की आगामी ऐतिहासिक फिल्म में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का किरदार करेंगी। इस किरदार के लिए तो उन्हें घुड़सवारी के अलावा तलवार चलना भी सीखना होगा। फिल्म की कहानी के अनुसार रानी लक्ष्मीबाई अपने बच्चे को पीठ पर बांड कर, एक हाथ घोड़े की रास पकड़ कर तलवार चलाती हैं। कंगना रनौत को इस सीन को करने के लिए खुद को काफी ट्रेंड करना होगा। जहाँ तक घोड़ा चलाने का सवाल है विकास बहल की फिल्म 'शानदार' में आलिया भट्ट ने भी इसके लिए उन्होंने घोडा चलाने की बाकायदा ट्रेनिंग ली है।
किक बॉक्सिंग भीबॉलीवुड अभिनेत्री किक बॉक्सिंग में भी ज़ोर आजमा रही हैं। इसकी शुरुआत अभिनेत्री कंगना रनौत ने राकेश रोशन की फिल्म 'कृष ३' के काया के रोल से कर दी थी। इस फिल्म के लिए उन्होंने किक बॉक्सिंग की ट्रेनिंग ली थी। उन्ही की तरह अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा भी फिल्म 'फ़ोर्स २' में एक रॉ एजेंट के किरदार में किक बॉक्सिंग के एक्शन दिखाती नज़र आएंगी। वह अकीरा में भी हैरतअंगेज एक्शन कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने बाकायदा ट्रेनिंग ली है।
एक्शन करने में बॉलीवुड एक्ट्रेस अपने मेल काउंटरपार्ट पर भारी पड़ने जा रही है। इसका नज़ारा हालिया रिलीज़ निर्देशक प्रभुदेवा की फिल्म 'सिंह इज़ ब्लिंग' में देखने को मिला। इस फिल्म में एमी जैक्सन ने मार्शल आर्ट्स के चकित कर देने वाले एक्शन आसानी से किये हैं। एमी जैक्सन के इस कारनामे को देख कर सिनेमाघरों में बैठे दर्शक सीटियां और तालियां बजा कर एमी जैक्सन की तारीफ करते हैं। वह अपने मार्शल आर्ट्स एक्शन के कारण अक्षय कुमार पर भारी पड़ती हैं। अभिनेत्री जैक्विलिन फर्नांडीज़ ने रोहित धवन की फिल्म 'ढिशूम' में अपने किरदार को ढंग से करने के लिए अक्षय कुमार के मार्शल आर्ट्स ट्रेनिंग स्कूल मे दाखिला ले रखा है। पिछले दिनों, नर्गिस फाखरी भी अपनी एक आगामी बॉलीवुड फिल्म के लिए फुकेट में मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग के लिए १२ दिनों तक रही।
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
नवम्बर बॉर्न बॉलीवुड स्टार्लेट्स
बॉलीवुड को एहसानमंद होना चाहिए कैलेंडर के नवंबर महीने का। नवंबर ने बॉलीवुड को अच्छा बिज़नेस करने वाला त्योहारी माहौल दिया ही है। खूबसूरत, सेक्सी और प्रतिभाशाली चेहरे भी दिए हैं। इन चेहरों ने बॉलीवुड फिल्मों में आकर बॉलीवुड को ग्लैमर के साथ मान- सम्मान भी दिलवाया। यह चेहरे देश के किसी कोने से भी आये और विदेशी ज़मीन से भी। लेकिन, इनका एक ही मक़सद था बॉलीवुड की फिल्मों में अपने हुस्न का जलवा बिखेरना और अपनी अभिनय प्रतिभा का कायल करवाना । ऎसी तमाम अभिनेत्रियों ने नायिका के कद को नायक के आसपास रखने की भरपूर कोशिश की ।
भारत सुंदरियाँ/विश्व सुंदरियाँ
१९९४ में भारत ने दुनिया की श्रेष्ठ सुंदरियों की प्रतियोगिता में पहले दो टाइटल जीते तो भारतीय प्रतिभागी सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय की 'ब्यूटी विथ ब्रेन' के कारण। सुष्मिता सेन ने मिस यूनिवर्स का खिताब जीता तो ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड बनी। सुष्मिता सेन १९७५ में १९ नवंबर को पैदा हुई थी और ऐश्वर्य राय १ नवंबर १९७३ को। इन दोनों अभिनेत्रियों ने बॉलीवुड में धमाकेदार शुरुआत की। लेकिन, सुष्मिता सेन से बहुत ज़्यादा सफल हुई ऐश्वर्या राय बच्चन। लेकिन, एक समय इन दोनों सुंदरियों ने अपनी खूबसूरती का डंका बजा दिया था। ओ पी रल्हन की फिल्म हंगामा से फिल्म डेब्यू करने वाली मिस एशिया की थर्ड रनर अप और मिस एशिया पसिफ़िक ज़ीनत अमान ने 'हरे रामा हरे कृष्णा ' फिल्म में देव आनंद की बहन की भूमिका से धूम मचा दी। इसके बाद ज़ीनत ने 'धुंध', यादों की बरात, हीरा पन्ना, मनोरंजन, रोटी कपड़ा और मकान, आदि दसियों बड़े बजट की बड़े अभिनेताओं की फिल्मे की। वह एक समय बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेस बन गई थी। वह राजकपूर की फिल्म की नायिका भी बनी। उन्होंने उस समय के तमाम बड़े सितारों धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, फ़िरोज़ खान आदि के साथ फ़िल्में की। वह बॉलीवुड की बोल्ड अभिनेत्री मानी जाती थी, जिसे कपडे उतारने में कोई हिचक नहीं थी। मनोरंजन, क़ुरबानी, सत्यम शिवम सुंदरम, आदि फ़िल्में इसका प्रमाण हैं।
प्रतिभावान अभिनेत्रियां
भारत सुंदरियाँ/विश्व सुंदरियाँ
१९९४ में भारत ने दुनिया की श्रेष्ठ सुंदरियों की प्रतियोगिता में पहले दो टाइटल जीते तो भारतीय प्रतिभागी सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय की 'ब्यूटी विथ ब्रेन' के कारण। सुष्मिता सेन ने मिस यूनिवर्स का खिताब जीता तो ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड बनी। सुष्मिता सेन १९७५ में १९ नवंबर को पैदा हुई थी और ऐश्वर्य राय १ नवंबर १९७३ को। इन दोनों अभिनेत्रियों ने बॉलीवुड में धमाकेदार शुरुआत की। लेकिन, सुष्मिता सेन से बहुत ज़्यादा सफल हुई ऐश्वर्या राय बच्चन। लेकिन, एक समय इन दोनों सुंदरियों ने अपनी खूबसूरती का डंका बजा दिया था। ओ पी रल्हन की फिल्म हंगामा से फिल्म डेब्यू करने वाली मिस एशिया की थर्ड रनर अप और मिस एशिया पसिफ़िक ज़ीनत अमान ने 'हरे रामा हरे कृष्णा ' फिल्म में देव आनंद की बहन की भूमिका से धूम मचा दी। इसके बाद ज़ीनत ने 'धुंध', यादों की बरात, हीरा पन्ना, मनोरंजन, रोटी कपड़ा और मकान, आदि दसियों बड़े बजट की बड़े अभिनेताओं की फिल्मे की। वह एक समय बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेस बन गई थी। वह राजकपूर की फिल्म की नायिका भी बनी। उन्होंने उस समय के तमाम बड़े सितारों धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, फ़िरोज़ खान आदि के साथ फ़िल्में की। वह बॉलीवुड की बोल्ड अभिनेत्री मानी जाती थी, जिसे कपडे उतारने में कोई हिचक नहीं थी। मनोरंजन, क़ुरबानी, सत्यम शिवम सुंदरम, आदि फ़िल्में इसका प्रमाण हैं।
प्रतिभावान अभिनेत्रियां
बॉलीवुड के संगीत की प्रतिभा वाले मंगेशकर परिवार से सम्बन्ध रखने वाली पद्मिनी कोल्हापुरे ने राजकपूर की फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम की बाल भूमिका से अपने अभिनय का लोहा मनवाया। उन्होंने राजकपूर के बैनर की ही फिल्म 'प्रेम रोग' में एक विधवा का बोल्ड किरदार किया। अनिल कपूर के साथ फिल्म सात दिन ने उन्हें लीड भूमिकाओं में जमा दिया। धर्मेन्द्र और हेमा मालिनी की बेटी एषा देओल को फ़िल्मी परिवार का होने के बावजूद सफलता नहीं मिली । हालाँकि, उनके करियर की शुरुआत कोई मेरे दिल से पूछे जैसी सशक्त फिल्म से की थी। सत्यदेव दुबे की वर्कशॉप से एक्टिंग मांजने वाली सोनाली कुलकर्णी ने अपने भाई के साथ समन्वय नाट्य समूह की स्थापना की। उन्होंने कई भाषाओँ में दोघी, देऊल, दिल चाहता है और टैक्सी नंबर ९२११ जैसी फ़िल्में की। उन्हें पहचान मिली फिल्म 'मिशन कश्मीर' में ह्रितिक रोशन की माँ की भूमिका से। अपनी प्रतिभा से बॉलीवुड को चकाचौंध कर देने वाली अभिनेत्रियों में कलकत्ता में जन्मी रितुपर्णा सेनगुप्ता का नाम भी शामिल किया जा सकता है। रितुपर्णा के हिंदी फिल्म करियर की शुरुआत पार्थो घोष निर्देशित फिल्म 'तीसरा कौन' से हुई थी। मोहिनी, ज़ख़्मी सिपाही, उन्नस, दादागिरी, आक्रोश, आदि फिल्मों की इस अभिनेत्री को सराहना मिली बेमेल विवाह वाली राजपाल यादव की फिल्म 'मैं मेरी पत्नी और वह' में ठिंगने राजपाल यादव की लम्बे कद की पत्नी की भूमिका से। फिल्मों में अपनी प्रतिभा का परचम फैलाने वाली मीनाक्षी शेषाद्रि ने हिंदी और दक्षिण की फिल्मों में साथ नाम कमाया। वह सुभाष घई की सुपर हिट फिल्म 'हीरो' में जैकी श्रॉफ की नायिका थी। इस फिल्म के बाद मीनाक्षी शेषाद्रि ने कोई ७० फिल्मों में अभिनय किया। एक समय, वह श्रीदेवी और जया प्रदा के साथ बॉलीवुड में छाई हुई थी।
कभी बोलती थी इनकी तूती
नवंबर में बर्थडे मनाने वाली बहुत सी अभिनेत्रियों की बॉलीवुड में तूती बोला करती थी। क्या याद है नशीली आँखों वाली माला सिन्हा। नेपाली सूरत वाली इस अभिनेत्री की खासियत थी स्वाभाविक और मार्मिक अभिनय करना। वह अपनी शोखी से फिल्मों में ग्लैमर भरा करती थी। पचास से सत्तर के दशक की पारिवारिक फिल्मों की नायिका माला सिन्हा को धुल का फूल, प्यासा, अनपढ़, दिल तेरा दीवाना, गुमराह, हिमालय की गोद में और आँखे जैसी फिल्मों से याद किया जाता है। उन्होंने किदार शर्मा की फिल्म 'रंगीन राते' से शम्मी कपूर के साथ डेब्यू किया था। माला सिन्हा ने दिलीप कुमार, राजकपूर, राजेंद्र कुमार, प्रदीप कुमार, धर्मेन्द्र, मनोज कुमार, आदि लगभग सभी नामचीन बॉलीवुड स्टार्स के साथ फ़िल्में की। दक्षिण की फिल्मों में नाम कमा चुकी रति अग्निहोत्री ने १९८१ में कमल हासन के साथ के० बालाचंदर की फिल्म 'एक दूजे के लिए' से बॉलीवुड डेब्यू किया। रति ने हिट फिल्म के बावजूद कमल हासन के साथ दूसरी फिल्म नहीं की। लेकिन, वह उस दौर के टॉप अभिनेताओं अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर, मिथुन चक्रवर्ती, शशि कपूर, धर्मेन्द्र, आदि की फिल्मों की नायिका बनी । वह उस दौर की टॉप की एक्ट्रेस में शुमार की जाती थी। मिस इंडिया जूही चावला ने फ्लॉप फिल्म 'सल्तनत' से अपने करियर की शुरुआत की थी। लेकिन, आमिर खान के साथ 'क़यामत से क़यामत तक' के हिट हो जाने के बाद वह टॉप की एक्ट्रेस में शुमार की जाने लगी। विद्या सिन्हा ने अमोल पालेकर के साथ रजनीगंधा और छोटी सी बात जैसी हिट फ़िल्में दी थी। यह लीक से हट कर विषय पर ख़ास निर्माताओं की फिल्म थी। लेकिन, विद्या सिन्हा ने मुक्ति, कर्म, किताब, पति पत्नी और वह, तुम्हारे लिए, आदि फ़िल्में भी की। चेतना और दस्तक फिल्मों ने रेहाना सुल्तान को स्वाभाविक अभिनय करने वाली अभिनेत्री के बतौर स्थापित कर दिया। उन्हें फिल्म दस्तक के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड्स भी मिला।
नवंबर में बर्थडे मनाने वाली बहुत सी अभिनेत्रियों की बॉलीवुड में तूती बोला करती थी। क्या याद है नशीली आँखों वाली माला सिन्हा। नेपाली सूरत वाली इस अभिनेत्री की खासियत थी स्वाभाविक और मार्मिक अभिनय करना। वह अपनी शोखी से फिल्मों में ग्लैमर भरा करती थी। पचास से सत्तर के दशक की पारिवारिक फिल्मों की नायिका माला सिन्हा को धुल का फूल, प्यासा, अनपढ़, दिल तेरा दीवाना, गुमराह, हिमालय की गोद में और आँखे जैसी फिल्मों से याद किया जाता है। उन्होंने किदार शर्मा की फिल्म 'रंगीन राते' से शम्मी कपूर के साथ डेब्यू किया था। माला सिन्हा ने दिलीप कुमार, राजकपूर, राजेंद्र कुमार, प्रदीप कुमार, धर्मेन्द्र, मनोज कुमार, आदि लगभग सभी नामचीन बॉलीवुड स्टार्स के साथ फ़िल्में की। दक्षिण की फिल्मों में नाम कमा चुकी रति अग्निहोत्री ने १९८१ में कमल हासन के साथ के० बालाचंदर की फिल्म 'एक दूजे के लिए' से बॉलीवुड डेब्यू किया। रति ने हिट फिल्म के बावजूद कमल हासन के साथ दूसरी फिल्म नहीं की। लेकिन, वह उस दौर के टॉप अभिनेताओं अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर, मिथुन चक्रवर्ती, शशि कपूर, धर्मेन्द्र, आदि की फिल्मों की नायिका बनी । वह उस दौर की टॉप की एक्ट्रेस में शुमार की जाती थी। मिस इंडिया जूही चावला ने फ्लॉप फिल्म 'सल्तनत' से अपने करियर की शुरुआत की थी। लेकिन, आमिर खान के साथ 'क़यामत से क़यामत तक' के हिट हो जाने के बाद वह टॉप की एक्ट्रेस में शुमार की जाने लगी। विद्या सिन्हा ने अमोल पालेकर के साथ रजनीगंधा और छोटी सी बात जैसी हिट फ़िल्में दी थी। यह लीक से हट कर विषय पर ख़ास निर्माताओं की फिल्म थी। लेकिन, विद्या सिन्हा ने मुक्ति, कर्म, किताब, पति पत्नी और वह, तुम्हारे लिए, आदि फ़िल्में भी की। चेतना और दस्तक फिल्मों ने रेहाना सुल्तान को स्वाभाविक अभिनय करने वाली अभिनेत्री के बतौर स्थापित कर दिया। उन्हें फिल्म दस्तक के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड्स भी मिला।
दक्षिण का ग्लैमर
दक्षिण के भिन्न शहरों में नवंबर में जन्मे खूबसूरत चेहरों ने दक्षिण की तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में तहलका मचाया ही. बॉलीवुड में अपनी मौजूदगी भी दर्ज़ कराई। अब यह बात दीगर है कि इनमे से ज़्यादा को सफलता नहीं मिली। 'बाहुबली द बेगिनिंग' में राजमाता शिवकामी देवी का प्रभावशाली किरदार करने वाली अभिनेत्री राम्या कृष्णन ने विनोद खन्ना की फिल्म दयावान में एक डांसर की भूमिका से अपने हिंदी फिल्म करियर की शुरुआत की थी । उन्होंने अमिताभ बच्चन के अपोजिट बड़े मिया छोटे मिया समेत नौ हिंदी फ़िल्में की। बाहुबली में राम्या कृष्णन के साथ अनुष्का शेट्टी ने देवसेना का किरदार किया था। उन्हें हिंदी दर्शकों ने उनकी डब फिल्म 'रुद्रमादेवी' की टाइटल भूमिका में भी देखा। नेत्रा रघुरामन ने तक्षक, भोपाल एक्सप्रेस और अवगत जैसी आठ फ़िल्में की। कीर्ति रेड्डी का बॉलीवुड डेब्यू अभिषेक बच्चन के साथ 'तेरा जादू चल गया' जैसी हिट फिल्मों से हुआ। लेकिन, 'प्यार इश्क़ और मोहब्बत' के बाद वह हिंदी फिल्मो से दूर चली गई। दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में श्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीत चुकी तेलंगाना में जन्मी तब्बू ने हिंदी के अलावा इंग्लिश, तमिल तेलुगु और मलयालम फ़िल्में भी की हैं। लेकिन, उन्हें हिंदी फिल्मों चांदनी बार, अस्तित्व, मक़बूल, आदि ने ही मशहूर बनाया। चेन्नई में जन्मी २०११ के किंगफ़िशर कैलेंडर का चेहरा एंजेला जॉनसन हिंदी फिल्मों में पैर जमाने के लिए हिंदी सीख रही हैं।
नवंबर में यह भी
नीलम कोठारी को दर्शक अस्सी के दशक में डांसर एक्टर गोविंदा की इलज़ाम, लव ८६, सिन्दूर, खुदगर्ज़, हत्या, फ़र्ज़ की जंग और ताक़तवर जैसी हिट फिल्मों की जोड़ीदार के रूप में याद किया जाता है। आजकल वह ज्वेलरी डिजाइनिंग पर काम कर रही हैं। सी हॉक्स और हिना जैसी पॉपुलर टेलीविज़न सीरीज से मशहूर सिमोन सिंह को कभी ख़ुशी कभी गम, एक रिश्ता : द बांड ऑफ़ लव, हाँ मैंने भी प्यार किया, सुर, आदि फिल्मों में छोटी मोटी भूमिकाये ही मिली। पिछले दिनों उन्हें टीवी सीरियल 'एक हसीना थी' में साक्षी गोयनका की सशक्त भूमिका में देखा गया। नवंबर में जन्मी फिल्म अभिनेत्रियों में प्रियंका (निशा) कोठारी (जेम्स, सरकार, द किलर, शिवा, डार्लिंग), चित्रांशी रावत (चक दे इंडिया), एषा गुप्ता (जन्नत २ और राज़ ३), माही गिल (देव डी, साहब बीवी और गैंगस्टर), कोयल पूरी (मिक्स्ड डबल्स), यामी गौतम (विक्की डोनर), सेलिना जेटली (खेल, नो एंट्री), आरती छाबरिया (तुमसे अच्छा कौन है, आवारा पागल दीवाना), शिल्पा शिरोड़कर (भ्रष्टाचार, किसन कन्हैया, हम, त्रिनेत्र), कैनाज़ मोतीवाला (रागिनी एमएमएस), सुहासिनी मुले (भुवन शोम, भवानी भवाई), डायना पेंटी (कॉकटेल) और भैरवी गोस्वामी (भेजा फ्राई), आदि भी हैं।
थिएटर से शुरुआत
तमिल, तेलुगु और कन्नड़ भाषा की बी-ग्रेड सॉफ्ट पॉर्न फिल्मों की नायिका शकीला भी नवंबर में पैदा हुई। इस एक्ट्रेस ने २० साल की उम्र में तमिल सॉफ्ट पॉर्न फिल्म 'प्लेगर्ल्स' करके तहलका मचा दिया। उनकी एक हिंदी फिल्म 'आखिरी गुलाम' १९८९ में रिलीज़ हुई थी। बॉलीवुड की बेबाक और बड़बोली आइटम गर्ल राखी सावंत और पिछले दशक की मज़ा मज़ा, चेतना, फन कैन बी डेंजरस समटाइम, तौबा तौबा और लैला जैसी सेक्सी फिल्मों से तहलका मचा देने वाली पायल रोहतगी भी नवंबर की पैदाईश हैं। टीवी एक्ट्रेस रूपा गांगुली, टीना 'उतरन' दत्ता, सुकृति कांडपाल और प्रियल गोर भी नवंबर में पैदा हुई थी। बॉलीवुड की तमाम अभिनेत्रियों को अपने स्टेप्स पर थिरकाने वाली सरोज खान २२ नवंबर को जन्मी थी। पुराने ज़माने की फिल्मों की गायिका गीता दत्त भी नवंबर में ही जन्मी।
दक्षिण के भिन्न शहरों में नवंबर में जन्मे खूबसूरत चेहरों ने दक्षिण की तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में तहलका मचाया ही. बॉलीवुड में अपनी मौजूदगी भी दर्ज़ कराई। अब यह बात दीगर है कि इनमे से ज़्यादा को सफलता नहीं मिली। 'बाहुबली द बेगिनिंग' में राजमाता शिवकामी देवी का प्रभावशाली किरदार करने वाली अभिनेत्री राम्या कृष्णन ने विनोद खन्ना की फिल्म दयावान में एक डांसर की भूमिका से अपने हिंदी फिल्म करियर की शुरुआत की थी । उन्होंने अमिताभ बच्चन के अपोजिट बड़े मिया छोटे मिया समेत नौ हिंदी फ़िल्में की। बाहुबली में राम्या कृष्णन के साथ अनुष्का शेट्टी ने देवसेना का किरदार किया था। उन्हें हिंदी दर्शकों ने उनकी डब फिल्म 'रुद्रमादेवी' की टाइटल भूमिका में भी देखा। नेत्रा रघुरामन ने तक्षक, भोपाल एक्सप्रेस और अवगत जैसी आठ फ़िल्में की। कीर्ति रेड्डी का बॉलीवुड डेब्यू अभिषेक बच्चन के साथ 'तेरा जादू चल गया' जैसी हिट फिल्मों से हुआ। लेकिन, 'प्यार इश्क़ और मोहब्बत' के बाद वह हिंदी फिल्मो से दूर चली गई। दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में श्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीत चुकी तेलंगाना में जन्मी तब्बू ने हिंदी के अलावा इंग्लिश, तमिल तेलुगु और मलयालम फ़िल्में भी की हैं। लेकिन, उन्हें हिंदी फिल्मों चांदनी बार, अस्तित्व, मक़बूल, आदि ने ही मशहूर बनाया। चेन्नई में जन्मी २०११ के किंगफ़िशर कैलेंडर का चेहरा एंजेला जॉनसन हिंदी फिल्मों में पैर जमाने के लिए हिंदी सीख रही हैं।
नवंबर में यह भी
नीलम कोठारी को दर्शक अस्सी के दशक में डांसर एक्टर गोविंदा की इलज़ाम, लव ८६, सिन्दूर, खुदगर्ज़, हत्या, फ़र्ज़ की जंग और ताक़तवर जैसी हिट फिल्मों की जोड़ीदार के रूप में याद किया जाता है। आजकल वह ज्वेलरी डिजाइनिंग पर काम कर रही हैं। सी हॉक्स और हिना जैसी पॉपुलर टेलीविज़न सीरीज से मशहूर सिमोन सिंह को कभी ख़ुशी कभी गम, एक रिश्ता : द बांड ऑफ़ लव, हाँ मैंने भी प्यार किया, सुर, आदि फिल्मों में छोटी मोटी भूमिकाये ही मिली। पिछले दिनों उन्हें टीवी सीरियल 'एक हसीना थी' में साक्षी गोयनका की सशक्त भूमिका में देखा गया। नवंबर में जन्मी फिल्म अभिनेत्रियों में प्रियंका (निशा) कोठारी (जेम्स, सरकार, द किलर, शिवा, डार्लिंग), चित्रांशी रावत (चक दे इंडिया), एषा गुप्ता (जन्नत २ और राज़ ३), माही गिल (देव डी, साहब बीवी और गैंगस्टर), कोयल पूरी (मिक्स्ड डबल्स), यामी गौतम (विक्की डोनर), सेलिना जेटली (खेल, नो एंट्री), आरती छाबरिया (तुमसे अच्छा कौन है, आवारा पागल दीवाना), शिल्पा शिरोड़कर (भ्रष्टाचार, किसन कन्हैया, हम, त्रिनेत्र), कैनाज़ मोतीवाला (रागिनी एमएमएस), सुहासिनी मुले (भुवन शोम, भवानी भवाई), डायना पेंटी (कॉकटेल) और भैरवी गोस्वामी (भेजा फ्राई), आदि भी हैं।
थिएटर से शुरुआत
नवंबर की पौंध कुछ अभिनेत्रियां वाया नाटक फिल्मों में आई। टिस्का चोपड़ा ने पहले नाटक किये। वह १९९३ में रिलीज़ अजय देवगन की फिल्म 'प्लेटफार्म' में रोशनी चोपड़ा नाम से फिल्मों में आई। उन्होंने दर्शकों ध्यान खींचा तारे ज़मीन पर, दिल तो बच्चा है जी और फ़िराक़ जैसी फिल्मों की चरित्र भूमिकाओं से। टिस्का चोपड़ा से पहले मीता वशिष्ट नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से नाटक और फिर टीवी पर मशहूर हुई। टीवी पर क्यूंकि सास भी कभी बहु थी उनका मशहूर सीरियल था। उन्हें अभी फिल्म रहस्य में एक ग्रे शेड वाली भूमिका में देखा गया। थिएटर ग्रुप जन नाट्य मंच से अपने अभिनय जीवन की शुरुआत करने वाली नंदिता दास ने १० भाषाओँ में ३० फ़िल्में की है। उन्होंने १९४७ अर्थ, बवंडर, अक्स, एक दिन २४ घंटे, जैसी फिल्मों से उन्होंने पहचान गया। वह बतौर निर्देशक फ़िराक़ फिल्म में विवादित हुई।
पॉर्न स्टार भीतमिल, तेलुगु और कन्नड़ भाषा की बी-ग्रेड सॉफ्ट पॉर्न फिल्मों की नायिका शकीला भी नवंबर में पैदा हुई। इस एक्ट्रेस ने २० साल की उम्र में तमिल सॉफ्ट पॉर्न फिल्म 'प्लेगर्ल्स' करके तहलका मचा दिया। उनकी एक हिंदी फिल्म 'आखिरी गुलाम' १९८९ में रिलीज़ हुई थी। बॉलीवुड की बेबाक और बड़बोली आइटम गर्ल राखी सावंत और पिछले दशक की मज़ा मज़ा, चेतना, फन कैन बी डेंजरस समटाइम, तौबा तौबा और लैला जैसी सेक्सी फिल्मों से तहलका मचा देने वाली पायल रोहतगी भी नवंबर की पैदाईश हैं। टीवी एक्ट्रेस रूपा गांगुली, टीना 'उतरन' दत्ता, सुकृति कांडपाल और प्रियल गोर भी नवंबर में पैदा हुई थी। बॉलीवुड की तमाम अभिनेत्रियों को अपने स्टेप्स पर थिरकाने वाली सरोज खान २२ नवंबर को जन्मी थी। पुराने ज़माने की फिल्मों की गायिका गीता दत्त भी नवंबर में ही जन्मी।
पाकिस्तान से आई ज़ेबा बख्तियार का जन्म ५ नवंबर को हुआ। पाकिस्तानी टीवी के शो 'अनारकली' से उन्हें इतनी शोहरत मिली कि वह बॉलीवुड में राजकपूर की रणधीर कपूर निर्देशित फिल्म 'हिना' में ऋषि कपूर की नायिका बना दी गई। लेकिन, फिल्म 'जय विक्रान्ता ' के बाद बॉलीवुड से गायब हो गई।
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मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
जैसन वूरहीस के लिए रिंग्स हादसा
हॉरर फ्रैंचाइज़ी ‘परानोर्मल
एक्टिविटी’ सीरीज की तीसरी फिल्म ‘परानोर्मल एक्टिविटी: द घोस्ट डायमेंशन’ की
रिलीज़ डेट २३ अक्टूबर के ठीक पहले इस फ्रैंचाइज़ी के प्रोडक्शन हाउस पैरामाउंट
पिक्चरस द्वारा चौंकाने वाला निर्णय लिया गया। खबर है कि इस स्टूडियो की ‘रिंग्स’
फ्रैंचाइज़ी की तीसरी फिल्म अब १३ नवम्बर को रिलीज़ नहीं होगी। बल्कि अब इसे अगले साल फूल्स
डे पर १ अप्रैल को रिलीज़ किया जायेगा । यह खबर कम से कम जैसन वूरहीस के लिए बुरी है। जैसन वूरहीस इस सीरीज की फिल्मों का मास्क वाला मुख्य करैक्टर है। इस करैक्टर को
सबसे पहले १९८० में फिल्म ‘फ्राइडे द थर्टीज’ में देखा गया था। इस फिल्म की
सफलता, ख़ास तौर पर डरावने मास्क वाल जैसन वूरहीस के डर ने उसे दूसरी डरावनी फिल्मों
का हीरो बना दिया। पैरामाउंट को ‘परानोर्मल एक्टिविटी: द घोस्ट
डायमेंशन’ के दो हफ़्तों बाद ही दूसरी हॉरर फिल्म का रिलीज़ किया जाना ठीक नहीं लगा। रिंग्स का एक अप्रैल तक के लिए टलना जैसन के लिए इसलिए भी बुरी खबर है कि इस
करैक्टर के साथ लोकप्रिय टीवी सीरीज ‘फ्राइडे द थर्टीज सीरीज भी अगले साल १५ मई से
शुरू नहीं होने जा रही। यह तीसरा मौका है, जब इस सीरीज को प्रसारण से पहले ही टाल
दिया गया। अब यह सीरीज १३ जनवरी २०१७ से प्रसारित होगी। यह खबर जैसन वूरहीस के
लिए बुरी इस लिहाज़ से भी है कि अब रिंग्स को निकोलस हौल्ट और फ़ेलिसिटी जोंस की फिल्म
कोलाइड और फॉक्स स्टूडियो की ओलंपिक्स बायोपिक ‘एडी द ईगल से टकराना होगा। वहीँ रिंग्स सीरीज को भी सोनी के स्टेफेन
किंग के टेलीविज़न संस्करण ‘द डार्क टावर, वार्नर ब्रदर्स की डिजास्टर सीरीज जिओस्टोर्म
और फॉक्स की नासा थीम पर हिडन फिगर्स’ का सामना करना होगा।
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