बिग बीच की फिल्म पजल में बॉलीवुड अभिनेता इरफ़ान खान स्कॉटिश एक्ट्रेस केली मैक्डोनाल्ड के साथ फिल्म पजल में अभिनय करेंगे। मार्क टर्टलटॅब निर्देशित इस फिल्म में डेविड डेन्मन भी अभिनय कर रहे हैं। चालीस के आसपास की उपनगर में रहने वाली एक महिला में पजल हल करने में महारत हासिल है। घर में उसका कोई कहा नहीं मानता। ऐसे में वह अपनी इस खूबी का फायदा कैसे उठाती है, यही इस फिल्म की कहानी है। पजल २०१० में रिलीज़ और बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन बेयर के लिए नामांकित निर्देशक नतालया स्मिर्नऑफ की अर्जेंटीनियन फिल्म रॉम्पेकाबेजस की रीमेक फिल्म है। फिल्म में इरफ़ान खान की भूमिका बताई नहीं गई है। वैसे इरफ़ान खान हॉलीवुड की इन्फर्नो, जुरैसिक वर्ल्ड और लाइफ ऑफ़ पइ जैसी फिल्मों से काफी मशहूर हो चुके हैं। फिल्म में उनकी नायिका केली मैक्डोनाल्ड ने हाल ही में फॉक्स सर्चलाईट की फिल्म गुडबाय क्रिस्टोफर रॉबिन और सोनी की होल्म्स वाट्सन पूरी की है। वह ऐसी प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, जिनकी चार फ़िल्में एलिज़ाबेथ, गोस्फोर्ड पार्क, फाइंडिंग नेवरलैंड और नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन ऑस्कर पुरस्कारों में श्रेष्ठ फिल्म की श्रेणी में नामित हो चुकी हैं। नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन ने ऑस्कर भी जीता। इस फिल्म की शूटिंग इस महीने के आखिर में न्यूयॉर्क में शुरू हो जाएगी।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Saturday, 13 May 2017
केली मैक्डोनाल्ड के साथ इरफ़ान खान की पजल
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
म्यामार का सुपर स्टार बॉलीवुड में
लू मिन का परिचय म्यांमार सेंसर बोर्ड के मेंबर के बतौर करना ही काफी नहीं। वह हरफनमौला हैं। वह म्यांमार अकादमी अवार्ड विजेता अंतर्राष्ट्रीय स्टार हैं। वह अपने फिल्म करियर में एक हजार फ़िल्में कर चुके हैं। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। वह फिल्म निर्देशक भी हैं। म्यांमार की फिल्म और टेलीविज़न इंडस्ट्री में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के बाद बहुमुखी प्रतिभा वाले अभिनेता, निर्माता और निर्माता लू मिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार फिल्म उद्योग का विस्तार करना चाहते है। इस लिए लू
मिन अब बर्मा से बॉलीवुड की तरफ चल दिए हैं। लू मिन, म्यांमार में जॉन अब्राहिम और नाना पाटेकर की सुपर डूपर हिट फिल्म टैक्सी नंबर ९२११ का रीमेक बनाने जा रहे है। टैक्सी नंबर ९२११ एक हिट कॉमेडी, ड्रामा फिल्म है । मिन कहते हैं, "मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे इस फिल्म को म्यांमार के लिए बनाने का मौका मिल रहा है। मै चाहता हूँ कि बॉलीवुड और म्यांमार फिल्म इंडस्ट्री के बीच मजबूत सम्बन्ध और ज्यादा मज़बूत हों।" म्यामार में सिनेमाघरों की भारी कमी है। पचास लाख जनसँख्या वाले देश म्यामार में कुल ४२ सिनेमा हॉल हैं। यहाँ लोग ५ टीवी चैनल्स के द्वारा अपना मनोरंजन करते है। इससे म्यामार में पायरेसी का धंधा फलाफूला है। लू मिन के मुंबई पहुँचाने पर जोरदार स्वागत किया गया। वह कहते है- "मैंने दोनों ही देशो में सांस्कृतिक समानताएं देखी है। यहाँ का संगीत और संस्कृति मुझे आकर्षित करते है । मैं हमेशा से भारत आना चाहता था। आज मुझे यह मौका मिला है। मै अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझता हूँ, कि मुझे इतने प्यारे लोगों के बीच आने का सौभाग्य मिला।"
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सरहद पार
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
अब सिद्धांत कपूर बने दाऊद इब्राहिम
अभी सिद्धांत कपूर के बॉम्बे बम ब्लास्ट के दोषी भगोड़े डॉन दाऊद इब्राहिम के स्वांग वाले चित्र मीडिया पर पसरे पड़े थे। इन चित्रों के साथ यह भी बताया गया था कि सिद्धांत ने रोल के गेटअप में अपने पिता और हिंदी फिल्मों के खलनायक शक्ति कपूर के सनग्लासेस और सूट का उपयोग किया था। बताते चलें कि सिद्धांत कपूर का यह दाऊद अवतार अपूर्व लखिया की गैंगस्टर ड्रामा फिल्म हसीना के लिए हुआ था। इस फिल्म में उनकी बड़ी बहन श्रद्धा कपूर गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पार्कर का किरदार कर रही हैं। सिद्धांत उनके रील लाइफ भाई दाऊद इब्राहिम का किरदार कर रहे हैं।
बात यह नहीं है कि सिद्धांत अपने रोल के लिए क्या और कैसा गेटअप इस्तेमाल किया और कैसे किया ? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सिद्धांत ने अपने विलेन के किरदार के लिए अपने पूर्व विलेन पिता की वस्तुएं इस्तेमाल की। सिर्फ गेटअप से किरदार पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। सवाल यह है कि सिद्धांत कपूर रियल लाइफ करैक्टर, जिससे ज़्यादातर हिंदुस्तानी नफ़रत करते हैं, कितना वास्तविक या रियल कर पाते हैं ? सिद्धांत कपूर के सामने कई रील लाइफ दाऊद इब्राहिम हैं, जिन्हे बॉलीवुड के कई छोटे बड़े अभिनेताओं ने किया। क्या अपनी पहली ही फिल्म से वह अपने वरिष्ठ अभिनेताओं के दाऊद को चुनौती दे पाएंगे ? आइये जानने की कोशिश करते हैं ब्लैक फ्राइडे से लेकर हसीना तक के दाऊद और इस करैक्टर को करने वाले अभिनेताओं के बारे में। यह अभिनेता अपने करैक्टर को कितना प्रभावशाली बना पाए ?
ब्लैक फ्राइडे का दाऊद विजय मौर्या
बॉलीवुड के अपराध फिल्मों के निर्माताओं में से एक अनुराग कश्यप की इस मामले में तारीफ की जाती है कि उन्होंने पहली बार अपनी फिल्म ब्लैक फ्राइडे (२००४) में दाऊद इब्राहिम का उसके नाम से चित्रण किया। इससे पहले कोई भी फिल्म निर्माता इतना साहस नहीं बटोर पाता था कि दाऊद इब्राहिम को बुरे किरदार में चित्रित कर सके। १९९३ के बॉम्बे सीरियल बम ब्लास्ट पर अपनी इस फिल्म में दाऊद इब्राहिम को चिन्हित और इंगित किया था। हालाँकि, यह फिल्म लम्बे समय तक सेंसर के लफड़े में फंसी रही। लेकिन, इसके पीछे दाऊद इब्राहिम का ज़िक्र कारण नहीं था। फिल्म में दाऊद का किरदार अभिनेता और लेखक विजय मौर्या ने किया था। विजय ने अपने करियर की बड़ी शुरुआत रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या में कल्लू मामा के गैंग के सदस्य के बतौर की थी। वह अब तक २४ फ़िल्में कर चुके हैं। डॉन के किरदार में विजय मौर्या के अभिनय की तारीफ हुई। वह रियल डॉन के काफी करीब लग रहे थे।
बात यह नहीं है कि सिद्धांत अपने रोल के लिए क्या और कैसा गेटअप इस्तेमाल किया और कैसे किया ? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सिद्धांत ने अपने विलेन के किरदार के लिए अपने पूर्व विलेन पिता की वस्तुएं इस्तेमाल की। सिर्फ गेटअप से किरदार पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। सवाल यह है कि सिद्धांत कपूर रियल लाइफ करैक्टर, जिससे ज़्यादातर हिंदुस्तानी नफ़रत करते हैं, कितना वास्तविक या रियल कर पाते हैं ? सिद्धांत कपूर के सामने कई रील लाइफ दाऊद इब्राहिम हैं, जिन्हे बॉलीवुड के कई छोटे बड़े अभिनेताओं ने किया। क्या अपनी पहली ही फिल्म से वह अपने वरिष्ठ अभिनेताओं के दाऊद को चुनौती दे पाएंगे ? आइये जानने की कोशिश करते हैं ब्लैक फ्राइडे से लेकर हसीना तक के दाऊद और इस करैक्टर को करने वाले अभिनेताओं के बारे में। यह अभिनेता अपने करैक्टर को कितना प्रभावशाली बना पाए ?
ब्लैक फ्राइडे का दाऊद विजय मौर्या
बॉलीवुड के अपराध फिल्मों के निर्माताओं में से एक अनुराग कश्यप की इस मामले में तारीफ की जाती है कि उन्होंने पहली बार अपनी फिल्म ब्लैक फ्राइडे (२००४) में दाऊद इब्राहिम का उसके नाम से चित्रण किया। इससे पहले कोई भी फिल्म निर्माता इतना साहस नहीं बटोर पाता था कि दाऊद इब्राहिम को बुरे किरदार में चित्रित कर सके। १९९३ के बॉम्बे सीरियल बम ब्लास्ट पर अपनी इस फिल्म में दाऊद इब्राहिम को चिन्हित और इंगित किया था। हालाँकि, यह फिल्म लम्बे समय तक सेंसर के लफड़े में फंसी रही। लेकिन, इसके पीछे दाऊद इब्राहिम का ज़िक्र कारण नहीं था। फिल्म में दाऊद का किरदार अभिनेता और लेखक विजय मौर्या ने किया था। विजय ने अपने करियर की बड़ी शुरुआत रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या में कल्लू मामा के गैंग के सदस्य के बतौर की थी। वह अब तक २४ फ़िल्में कर चुके हैं। डॉन के किरदार में विजय मौर्या के अभिनय की तारीफ हुई। वह रियल डॉन के काफी करीब लग रहे थे।
रामगोपाल वर्मा की कंपनी और डी
रामगोपाल वर्मा की फिल्म कंपनी (२००२) की कहानी विशुद्ध रूप से दाऊद इब्राहिम से प्रेरित थी। लेकिन, वर्मा ने अपने किरदारों के नाम बदल दिए थे। अजय देवगन ने फिल्म में दाऊद के रील लाइफ मलिक का किरदार किया था। इस फिल्म से छोटा राजन के रोल (चंदू) में विवेक ओबेरॉय का बॉलीवुड डेब्यू हुआ था। अजय देवगन ने दाऊद के रील लाइफ किरदार का वास्तविक चित्रण किया था। आठ साल बाद अजय देवगन दाऊद के गुरु हाजी मस्तान का किरदार सुल्तान मिर्ज़ा को फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई में कर रहे थे। निर्माता रामगोपाल वर्मा की क्राइम फिल्म 'डी' का निर्देशन विश्राम सावंत ने किया था। इस फिल्म में डी का मतलब देशु था। यह फिल्म का नायक था। लेकिन, जिस घटनाक्रम से इसका जिक्र हुआ था, वह काफी कुछ दाऊद इब्राहिम से प्रेरित था। रणदीप हुडा की बतौर नायक पहली फिल्म थी। इस किरदार के लिए रणदीप की प्रशंसा हुई।
दाऊद बनने का 'रिस्क' लिया विनोद खन्ना ने
कोई पांच साल के अंतराल के बाद एक्टर विनोद खन्ना फिल्मों में वापसी कर रहे थे। इस वापसी के लिए उनका डॉन का करैक्टर करना काफी रिस्की था। लेकिन विनोद खन्ना ने यह रिस्क उठाया। विश्राम सावंत की फिल्म रिस्क (२००७) में वह दाऊद इब्राहिम का रील लाइफ किरदार खालिद बिन जमाल कर रहे थे। हालाँकि, रिस्क के खालिद के दाऊद इब्राहिम से प्रेरित होने से सभी इंकार कर रहे थे। लेकिन, इस फिल्म की घटनाएं दाऊद द्वारा की गई वारदातों के काफी निकट थी। विनोद खन्ना इस फ्लॉप फिल्म में अपने गैंगस्टर किरदार में काफी फबे थे।
दाऊद बनने का 'रिस्क' लिया विनोद खन्ना ने
कोई पांच साल के अंतराल के बाद एक्टर विनोद खन्ना फिल्मों में वापसी कर रहे थे। इस वापसी के लिए उनका डॉन का करैक्टर करना काफी रिस्की था। लेकिन विनोद खन्ना ने यह रिस्क उठाया। विश्राम सावंत की फिल्म रिस्क (२००७) में वह दाऊद इब्राहिम का रील लाइफ किरदार खालिद बिन जमाल कर रहे थे। हालाँकि, रिस्क के खालिद के दाऊद इब्राहिम से प्रेरित होने से सभी इंकार कर रहे थे। लेकिन, इस फिल्म की घटनाएं दाऊद द्वारा की गई वारदातों के काफी निकट थी। विनोद खन्ना इस फ्लॉप फिल्म में अपने गैंगस्टर किरदार में काफी फबे थे।
शूटआउट एट लोखंडवाला मे दाऊद का जिक्र
अपूर्व लखियाऔर निर्देशित फिल्म शूटआउट एट लोखंडवाला (२००७) १९९१ के मशहूर लोखण्डवाला शूटआउट पर थी। इस शूटआउट में खतरनाक गैंगस्टर माया डोलास पुलिस द्वारा घेर कर मार गिराया गया था। फिल्म में माया डोलास का किरदार विवेक ओबेरॉय ने किया था। इस फिल्म में ब्लैक फ्राइडे के बाद खुल कर दाऊद इब्राहिम का जिक्र किया गया था। दरअसल माया डोलास कभी दाऊद इब्राहिम का गुर्गा था। लेकिन, फिर उसने दाऊद के साथ विद्रोह कर दिया था। इस पर दाऊद ने ही उसे मरवाने की सुपारी मुंबई पुलिस को दी थी।
मिलन लुथरिया के दो दाऊद
मिलन लुथरिया ने एक ही टाइटल वाली दो फिल्मों में दो अलग अलग दाऊद इब्राहिम पेश किये थे। २०१० में रिलीज़ फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई में सत्तर के दशक में बॉम्बे में वर्चस्व के लिए स्मगलरों के टकराव की कहानी का चित्रण किया था। उनकी इस फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा और शोएब खान के चरित्र रियल स्मगलर हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम के थे। कभी दाऊद इब्राहिम सुल्तान मिर्ज़ा का दांया हाथ हुआ करता था। लेकिन, उसकी खून खराबा करने की आदतों ने उसे सुल्तान से दूर कर दिया। फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा का किरदार अजय देवगन ने और दाऊद इब्राहिम का किरदार इमरान हाश्मी ने किया था। दोनों ही अभिनेता अपने किरदारों में काफी फबे थे। मिलन ने जब दाऊद इब्राहिम की बॉम्बे को दिखाने के लिए सीक्वल फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा में कथानक को दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित किया तो दाऊद इब्राहिम इमरान हाश्मी नहीं अक्षय कुमार बने थे। इमरान हाश्मी की जगह आये इमरान खान। उन्होंने शोएब के साथी असलम का किरदार किया था। मगर फिल्म का सीक्वल ढीली कथा-पटकथा के कारण दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका।
शूटआउट एट वडाला में दाऊद
संजय गुप्ता ने अपनी फिल्म शूटआउट एट वडाला (२०१३) में मुंबई के हिन्दू गैंगस्टर मान्या सुर्वे के किरदार को महिमामंडित किया था। कहानी के अनुसार मान्या सुर्वे की ताक़त से घबड़ा कर दाऊद इब्राहिम ने पुलिस की मदद से वडाला के कॉलेज में उसका एनकाउंटर करवा दिया था। इस फिल्म में जॉन अब्राहम मान्या सुर्वे बने थे तथा दाऊद इब्राहिम और उसके बड़े भाई साबिर का किरदार सोनू सूद और मनोज बाजपेई ने किया था। यह दोनों ही ज़बरदस्त अभिनेता हैं। इन दोनों ने अपने किरदार बखूबी अंजाम दिए थे। अब यह बात दीगर है कि फिल्म को सेंसर बोर्ड के पचड़े से बचाने के लिए संजय गुप्ता ने इन दोनों किरदारों के नाम दिलावर और ज़ुबैर कर दिए।
जब चॉकलेटी ऋषि कपूर बने दाऊद
निखिल आडवाणी की फिल्म डी-डे (२०१३) भारत के रॉ एजेंट द्वारा दाऊद इब्राहिम का अपहरण कर भारत लाने के काल्पनिक मिशन पर फिल्म थी। फिल्म में दाऊद के रील करैक्टर गोल्डमैन का किरदार बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो ऋषि कपूर ने किया था। ऋषि कपूर ने दाऊद के हावभाव और चालढाल को बेहतरीन तरीके से अपनाया था। फिल्म में उनके अभिनय की प्रशंसा हुई।
दाऊद की फ्लॉप 'डी' कॉमेडी
दाऊद इब्राहिम के करैक्टर को अब तक की एक्शन थ्रिलर फिल्मों से अलग कथानक में पेश करने की कोशिश की निर्देशक विशाल मिश्रा ने। उन्होंने कॉफ़ी विथ डी में एक पत्रकार द्वारा दाऊद इब्राहिम के लाइव इंटरव्यू को कॉमेडी के सहारे दर्शाने की कोशिश की थी। फिल्म में सुनील ग्रोवर ने रील लाइफ अर्नब गोस्वामी का किरदार किया था, जो दाऊद से लाइव इंटरव्यू करना चाहता है। फिल्म में डी यानि दाऊद का किरदार अभिनेता ज़ाकिर हुसैन ने किया था। लेकिन, ढीली ढाली कथानक वाली यह फिल्म फ्लॉप हो गई थी।
उपरोक्त रील लाइफ डी करैक्टरों पर बात करने से यह साफ हो जाता है कि दाऊद का किरदार करने के अपने खतरे हैं। इस करैक्टर से लाउड होने की आज़ादी नहीं ली जा सकती। इसका मज़ाक उड़ाना तो खतरनाक होगा। अजय देवगन और ऋषि कपूर जैसे अभिनेताओं ने इसे काफी संतुलित हो कर किया। नतीजे के तौर पर इनकी फिल्मों को सफलता मिली। देखने वाली बात होगी कि सिद्धांत कपूर रील लाइफ दाऊद बन कर अपनी रील लाइफ में भी बहन हसीना को कितनी मदद कर पाते हैं। क्योंकि, सिद्धांत का सशक्त अभिनय श्रद्धा के हसीना के किरदार को उभारने में मदद करेगा।
अपूर्व लखियाऔर निर्देशित फिल्म शूटआउट एट लोखंडवाला (२००७) १९९१ के मशहूर लोखण्डवाला शूटआउट पर थी। इस शूटआउट में खतरनाक गैंगस्टर माया डोलास पुलिस द्वारा घेर कर मार गिराया गया था। फिल्म में माया डोलास का किरदार विवेक ओबेरॉय ने किया था। इस फिल्म में ब्लैक फ्राइडे के बाद खुल कर दाऊद इब्राहिम का जिक्र किया गया था। दरअसल माया डोलास कभी दाऊद इब्राहिम का गुर्गा था। लेकिन, फिर उसने दाऊद के साथ विद्रोह कर दिया था। इस पर दाऊद ने ही उसे मरवाने की सुपारी मुंबई पुलिस को दी थी।
मिलन लुथरिया के दो दाऊद
मिलन लुथरिया ने एक ही टाइटल वाली दो फिल्मों में दो अलग अलग दाऊद इब्राहिम पेश किये थे। २०१० में रिलीज़ फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई में सत्तर के दशक में बॉम्बे में वर्चस्व के लिए स्मगलरों के टकराव की कहानी का चित्रण किया था। उनकी इस फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा और शोएब खान के चरित्र रियल स्मगलर हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम के थे। कभी दाऊद इब्राहिम सुल्तान मिर्ज़ा का दांया हाथ हुआ करता था। लेकिन, उसकी खून खराबा करने की आदतों ने उसे सुल्तान से दूर कर दिया। फिल्म में सुल्तान मिर्ज़ा का किरदार अजय देवगन ने और दाऊद इब्राहिम का किरदार इमरान हाश्मी ने किया था। दोनों ही अभिनेता अपने किरदारों में काफी फबे थे। मिलन ने जब दाऊद इब्राहिम की बॉम्बे को दिखाने के लिए सीक्वल फिल्म वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा में कथानक को दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित किया तो दाऊद इब्राहिम इमरान हाश्मी नहीं अक्षय कुमार बने थे। इमरान हाश्मी की जगह आये इमरान खान। उन्होंने शोएब के साथी असलम का किरदार किया था। मगर फिल्म का सीक्वल ढीली कथा-पटकथा के कारण दर्शकों को आकर्षित नहीं कर सका।
शूटआउट एट वडाला में दाऊद
संजय गुप्ता ने अपनी फिल्म शूटआउट एट वडाला (२०१३) में मुंबई के हिन्दू गैंगस्टर मान्या सुर्वे के किरदार को महिमामंडित किया था। कहानी के अनुसार मान्या सुर्वे की ताक़त से घबड़ा कर दाऊद इब्राहिम ने पुलिस की मदद से वडाला के कॉलेज में उसका एनकाउंटर करवा दिया था। इस फिल्म में जॉन अब्राहम मान्या सुर्वे बने थे तथा दाऊद इब्राहिम और उसके बड़े भाई साबिर का किरदार सोनू सूद और मनोज बाजपेई ने किया था। यह दोनों ही ज़बरदस्त अभिनेता हैं। इन दोनों ने अपने किरदार बखूबी अंजाम दिए थे। अब यह बात दीगर है कि फिल्म को सेंसर बोर्ड के पचड़े से बचाने के लिए संजय गुप्ता ने इन दोनों किरदारों के नाम दिलावर और ज़ुबैर कर दिए।
जब चॉकलेटी ऋषि कपूर बने दाऊद
निखिल आडवाणी की फिल्म डी-डे (२०१३) भारत के रॉ एजेंट द्वारा दाऊद इब्राहिम का अपहरण कर भारत लाने के काल्पनिक मिशन पर फिल्म थी। फिल्म में दाऊद के रील करैक्टर गोल्डमैन का किरदार बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो ऋषि कपूर ने किया था। ऋषि कपूर ने दाऊद के हावभाव और चालढाल को बेहतरीन तरीके से अपनाया था। फिल्म में उनके अभिनय की प्रशंसा हुई।
दाऊद की फ्लॉप 'डी' कॉमेडी
दाऊद इब्राहिम के करैक्टर को अब तक की एक्शन थ्रिलर फिल्मों से अलग कथानक में पेश करने की कोशिश की निर्देशक विशाल मिश्रा ने। उन्होंने कॉफ़ी विथ डी में एक पत्रकार द्वारा दाऊद इब्राहिम के लाइव इंटरव्यू को कॉमेडी के सहारे दर्शाने की कोशिश की थी। फिल्म में सुनील ग्रोवर ने रील लाइफ अर्नब गोस्वामी का किरदार किया था, जो दाऊद से लाइव इंटरव्यू करना चाहता है। फिल्म में डी यानि दाऊद का किरदार अभिनेता ज़ाकिर हुसैन ने किया था। लेकिन, ढीली ढाली कथानक वाली यह फिल्म फ्लॉप हो गई थी।
उपरोक्त रील लाइफ डी करैक्टरों पर बात करने से यह साफ हो जाता है कि दाऊद का किरदार करने के अपने खतरे हैं। इस करैक्टर से लाउड होने की आज़ादी नहीं ली जा सकती। इसका मज़ाक उड़ाना तो खतरनाक होगा। अजय देवगन और ऋषि कपूर जैसे अभिनेताओं ने इसे काफी संतुलित हो कर किया। नतीजे के तौर पर इनकी फिल्मों को सफलता मिली। देखने वाली बात होगी कि सिद्धांत कपूर रील लाइफ दाऊद बन कर अपनी रील लाइफ में भी बहन हसीना को कितनी मदद कर पाते हैं। क्योंकि, सिद्धांत का सशक्त अभिनय श्रद्धा के हसीना के किरदार को उभारने में मदद करेगा।
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Wednesday, 10 May 2017
अमिताभ बच्चन को तीसरी बार 'सरकार' बना पाएंगे रामगोपाल वर्मा !
यह सवाल सामायिक है। रामगोपाल वर्मा के करियर की ५२ वी फिल्म तथा अमिताभ बच्चन के साथ आठवीं फिल्म १२ मई को रिलीज़ हो रही है। सरकार राज (२००८) के ९ साल बाद रामगोपाल वर्मा एक बार फिर सरकार ३ में अमिताभ बच्चन को सरकार बना कर ला रहे हैं। नौ साल बहुत लम्बा अरसा होता है। ऐसे में रामगोपाल वर्मा का १२ साल पहले सरकार (२००५) में क्रिएट किये गए सरकार के करैक्टर को फिर परदे पर लाना कितना कामयाब होगा ? क्या वर्मा इस फिल्म के ज़रिये बिग बी को बॉक्स ऑफिस की सरकार बना पाएंगे ? वह खुद को कितना कल्पनाशील डायरेक्टर साबित कर पाएंगे ?
यह सब कुछ निर्भर करेगा वर्मा- बच्चन जोड़ी की आपसी केमिस्ट्री पर। जब रामगोपाल वर्मा अन्य अभिनेताओं के अलावा अमिताभ बच्चन के साथ फ़िल्में बनाते हैं तब वह किस हद तक डायरेक्टर होते हैं और कितना एडमायर या प्रशंसक होते हैं ? खुद रामगोपाल वर्मा ने स्वीकार किया है कि अमिताभ बच्चन की फिल्मों ने उन्हें फिल्ममेकर बनने के लिए प्रेरित किया था। रामगोपाल वर्मा ने हिंदी फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ७ दिसंबर १९९० को रिलीज़ अपराध फिल्म शिवा से कदम रखा। यह फिल्म उनकी तेलुगु हिट फिल्म शिवा का हिंदी रीमेक थी। इस फिल्म में वह नागार्जुन का परिचय हिंदी दर्शकों से करा रहे थे। फिल्म हिट हुई। इस फिल्म के बाद नागार्जुन तो हिंदी फिल्मों के नायक बहुत सफल नहीं हुए। लेकिन रामगोपाल वर्मा गैंगस्टर फिल्मों के पकड़ रखने वाले निर्देशक बन गए।
रामगोपाल वर्मा ने १५ साल बाद, जब अमिताभ बच्चन के साथ पहली सरकार बनाई तब तक वह हिंदी दर्शकों के बीच हॉरर फिल्म रात और गैंगस्टर फिल्म द्रोही (एक बार फिर हीरो नागार्जुन) से खुद को हरफनमौला डायरेक्टर साबित कर चुके थे। रामगोपाल वर्मा पहले ऐसे डायरेक्टर थे, जिसने उर्मिला मातोंडकर और आमिर खान के साथ फिल्म रंगीला से फिल्मों के कॉस्ट्यूम के क्षेत्र में फैशन डिज़ाइनर की भूमिका को रेखांकित किया था । सुपर हिट रंगीला के बाद दौड़ बुरी तरह पिटी। लेकिन, उनकी निर्देशित गैंगस्टर फिल्म सत्या (१९९८) और थ्रिलर फिल्म कौन (१९९९) मील का पत्थर साबित हुई। मस्त (१९९९) और जंगल (२०००) से वर्मा की निर्देशकीय पकड़ कमज़ोर होती लगी। मगर, फिल्म कंपनी (२००२) और भूत (२००३) से वह एक बार फिर फ़ीनिक्स की तरह उभरे। नाच (२००४) जैसी क्लासिक फिल्म के बाद रामगोपाल वर्मा ने सरकार बनाई थी। इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता था कि रामगोपाल वर्मा को अमिताभ बच्चन के स्टारडम की सख्त ज़रुरत थी। रामगोपाल वर्मा की ज़रुरत अमिताभ बच्चन को इसलिए ज़रूर थी कि उन्हें अपनी उम्र के अनुरूप सशक्त भूमिकाओं की सख्त ज़रुरत थी। सरकार के प्रधान पुरुष के बतौर अमिताभ बच्चन को एक सशक्त भूमिका मिल गई। महाराष्ट्र के हिन्दू संगठन शिवसेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे से इस करैक्टर की तुलना ने फिल्म को ज़बरदस्त प्रचार दिया। फिल्म हिट हो गई।
रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन के लिए सरकार हिट होने का मतलब सफल सरकार फ्रैंचाइज़ी बनना ज़रूर था। यह सफलता सरकार सीरीज की फिल्मों के निर्माण लिहाज़ से ख़ास थी । लेकिन, इन दोनों डायरेक्टर- निर्देशक के लिहाज़ से ख़ास था सरकार करैक्टर। यह चरित्र अमिताभ बच्चन के १९७० और १९८० के दशक के एंग्रीयंगमैन के समान था। वह बीच सड़क पर वर्दी उतार कर गुंडों से नहीं भिड़ता था, लेकिन अपने घर के आलीशान कमरे में बैठा अपने गुर्गों की मदद से मज़लूमों की मदद ज़रूर करता था। बहुत कम और धीमी आवाज़ में बोलने वाला यह करैक्टर किसी लिहाज़ से एंग्रीयंगमैन से कम नहीं था।
अमिताभ बच्चन के एंग्रीयंगमैन को ख़त्म हुए एक दशक से ज़्यादा हो रहा है। सरकार को भी पहली बार परदे पर आये १२ साल हो चुके हैं। ऐसे में सरकार राज के आठ साल बाद सरकार ३ बनाने की क्या वजह है ? क्या अपने कमरे में बैठ कर सरकार इतना थ्रिल पैदा कर सकेगा कि दर्शक सिनेमाघरों तक पहुंचे ? सरकार ३ के प्री रिलीज़ प्रमोशन के दौरान रामगोपाल वर्मा से यह सवाल पूछा गया था। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि सरकार ३ से दर्शकों का परिचय कराने की पहल रामगोपाल वर्मा ने फेसबुक पर पोस्ट के ज़रिये की थी। इसमें उन्होंने खुद से खुद पूछा था कि सरकार ३ बनाने की क्या ज़रुरत पड़ गई थी ? अपने सवाल के जवाब में रामगोपाल वर्मा ने लिखा था, "मैंने सरकार राज बनाते समय एक गलती की थी। मैंने सरकार के करैक्टर को डाउनप्ले किया था। मैंने शंकर (अभिषेक बच्चन का चरित्र) को ज़्यादा महत्व दिया। मैं यह भूल गया कि सरकार इसलिए सरकार था कि वह सरकार था। मुझे इस गलती के लिए शंकर को सरकार में ढालना चाहिए था, लेकिन मैंने इस करैक्टर को ही मार डाला।" सरकार ३ में तमाम दूसरे करैक्टर हैं। माइकल वाळल्या (जैकी श्रॉफ), गोकुल साटम (रोनित रॉय), गोरख रामपुर (भारत दाभोलकर) और रुक्कू बाई देवी (रोहिणी हट्टंगड़ी) जैसे बहुत से करैक्टर हैं। यह सभी बुरे चरित्र है, जो सुभाष नागरे उर्फ़ सरकार के दुश्मन हैं। इस गिरोह से ज़्यादा खतरनाक है अन्नू करकरे (यामी गौतम) जो सुभाष नागरे से अपने पिता की ह्त्या का बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। कोढ़ पे खाज का काम करता है सरकार का पोता शिवजी नागरे उर्फ़ चीकू (अमित साध) जो उद्यंड युवा है और घमंडी भी। सरकार को इन सभी से निबटना है। केवल इसलिए नहीं कि उसे परिवार बचाना है। उसे इन सब की महत्वाकांक्षाओं से दो दो हाथ करने हैं। रामगोपाल वर्मा कहते हैं, "इस प्रक्रिया में सरकार कुछ ज़्यादा कठोर तरीके से पेश आएगा। फिल्म में सरकार जितना देखने में आकर्षक लगेगा, उतना ही बर्बर उसके कारनामे होंगे।"
सरकार राज और सरकार ३ के बीच के अंतराल में रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन रण और डिपार्टमेंट जैसी फिल्मों में नज़र आये थे। निःशब्द, रामगोपाल वर्मा की आग और सरकार राज में अमिताभ बच्चन के चरित्रों के विकास से बुरी तरह से निराश दर्शकों को रण में अमिताभ बच्चन का एक चैनल के मालिक विजय हर्षवर्द्धन मलिक और डिपार्टमेंट में एक गैंगस्टर गायकवाड़ का किरदार काफी उबाऊ और कमज़ोर लगा। इन सभी फिल्मों में अमिताभ बच्चन का अभिनेता रामगोपाल वर्मा के निर्देशक पर भारी था। दरअसल, जब रामगोपाल वर्मा का निर्देशक अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित कर लेता है तो सरकार जैसी मील का पत्थर फिल्म बन जाती है। लेकिन, जैसे ही वह अमिताभ बच्चन के अभिनेता का प्रशंसक बनता है, पूरी फिल्म हाथ से निकल जाती है।
सरकार राज में सरकार के करैक्टर के साथ गलती कर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार ३ में इस गलती को सुधार रहे हैं। वह सरकार को अपने चारों और फैली बुरी ताकतों से लौह हाथों से निबटने देंगे । लेकिन, क्या ऐसे समय में भी रामगोपाल वर्मा डायरेक्टर बने रहे होंगे ? क्या उन्होंने अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित किया होगा ? अगर रामगोपाल वर्मा ने अमिताभ बच्चन को ऎसी निगेटिव भूमिका में लाउड नहीं होने दिया तो समझिये कि रामगोपाल वर्मा ने सरकार राज में की अपनी गलती सुधार ली है। अन्यथा, अपने निर्देशक के 'डिपार्टमेंट' में बुरी तरह घिर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार के 'रण' में खेत रहेंगे।
यह सब कुछ निर्भर करेगा वर्मा- बच्चन जोड़ी की आपसी केमिस्ट्री पर। जब रामगोपाल वर्मा अन्य अभिनेताओं के अलावा अमिताभ बच्चन के साथ फ़िल्में बनाते हैं तब वह किस हद तक डायरेक्टर होते हैं और कितना एडमायर या प्रशंसक होते हैं ? खुद रामगोपाल वर्मा ने स्वीकार किया है कि अमिताभ बच्चन की फिल्मों ने उन्हें फिल्ममेकर बनने के लिए प्रेरित किया था। रामगोपाल वर्मा ने हिंदी फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ७ दिसंबर १९९० को रिलीज़ अपराध फिल्म शिवा से कदम रखा। यह फिल्म उनकी तेलुगु हिट फिल्म शिवा का हिंदी रीमेक थी। इस फिल्म में वह नागार्जुन का परिचय हिंदी दर्शकों से करा रहे थे। फिल्म हिट हुई। इस फिल्म के बाद नागार्जुन तो हिंदी फिल्मों के नायक बहुत सफल नहीं हुए। लेकिन रामगोपाल वर्मा गैंगस्टर फिल्मों के पकड़ रखने वाले निर्देशक बन गए।
रामगोपाल वर्मा ने १५ साल बाद, जब अमिताभ बच्चन के साथ पहली सरकार बनाई तब तक वह हिंदी दर्शकों के बीच हॉरर फिल्म रात और गैंगस्टर फिल्म द्रोही (एक बार फिर हीरो नागार्जुन) से खुद को हरफनमौला डायरेक्टर साबित कर चुके थे। रामगोपाल वर्मा पहले ऐसे डायरेक्टर थे, जिसने उर्मिला मातोंडकर और आमिर खान के साथ फिल्म रंगीला से फिल्मों के कॉस्ट्यूम के क्षेत्र में फैशन डिज़ाइनर की भूमिका को रेखांकित किया था । सुपर हिट रंगीला के बाद दौड़ बुरी तरह पिटी। लेकिन, उनकी निर्देशित गैंगस्टर फिल्म सत्या (१९९८) और थ्रिलर फिल्म कौन (१९९९) मील का पत्थर साबित हुई। मस्त (१९९९) और जंगल (२०००) से वर्मा की निर्देशकीय पकड़ कमज़ोर होती लगी। मगर, फिल्म कंपनी (२००२) और भूत (२००३) से वह एक बार फिर फ़ीनिक्स की तरह उभरे। नाच (२००४) जैसी क्लासिक फिल्म के बाद रामगोपाल वर्मा ने सरकार बनाई थी। इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता था कि रामगोपाल वर्मा को अमिताभ बच्चन के स्टारडम की सख्त ज़रुरत थी। रामगोपाल वर्मा की ज़रुरत अमिताभ बच्चन को इसलिए ज़रूर थी कि उन्हें अपनी उम्र के अनुरूप सशक्त भूमिकाओं की सख्त ज़रुरत थी। सरकार के प्रधान पुरुष के बतौर अमिताभ बच्चन को एक सशक्त भूमिका मिल गई। महाराष्ट्र के हिन्दू संगठन शिवसेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे से इस करैक्टर की तुलना ने फिल्म को ज़बरदस्त प्रचार दिया। फिल्म हिट हो गई।
रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन के लिए सरकार हिट होने का मतलब सफल सरकार फ्रैंचाइज़ी बनना ज़रूर था। यह सफलता सरकार सीरीज की फिल्मों के निर्माण लिहाज़ से ख़ास थी । लेकिन, इन दोनों डायरेक्टर- निर्देशक के लिहाज़ से ख़ास था सरकार करैक्टर। यह चरित्र अमिताभ बच्चन के १९७० और १९८० के दशक के एंग्रीयंगमैन के समान था। वह बीच सड़क पर वर्दी उतार कर गुंडों से नहीं भिड़ता था, लेकिन अपने घर के आलीशान कमरे में बैठा अपने गुर्गों की मदद से मज़लूमों की मदद ज़रूर करता था। बहुत कम और धीमी आवाज़ में बोलने वाला यह करैक्टर किसी लिहाज़ से एंग्रीयंगमैन से कम नहीं था।
अमिताभ बच्चन के एंग्रीयंगमैन को ख़त्म हुए एक दशक से ज़्यादा हो रहा है। सरकार को भी पहली बार परदे पर आये १२ साल हो चुके हैं। ऐसे में सरकार राज के आठ साल बाद सरकार ३ बनाने की क्या वजह है ? क्या अपने कमरे में बैठ कर सरकार इतना थ्रिल पैदा कर सकेगा कि दर्शक सिनेमाघरों तक पहुंचे ? सरकार ३ के प्री रिलीज़ प्रमोशन के दौरान रामगोपाल वर्मा से यह सवाल पूछा गया था। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि सरकार ३ से दर्शकों का परिचय कराने की पहल रामगोपाल वर्मा ने फेसबुक पर पोस्ट के ज़रिये की थी। इसमें उन्होंने खुद से खुद पूछा था कि सरकार ३ बनाने की क्या ज़रुरत पड़ गई थी ? अपने सवाल के जवाब में रामगोपाल वर्मा ने लिखा था, "मैंने सरकार राज बनाते समय एक गलती की थी। मैंने सरकार के करैक्टर को डाउनप्ले किया था। मैंने शंकर (अभिषेक बच्चन का चरित्र) को ज़्यादा महत्व दिया। मैं यह भूल गया कि सरकार इसलिए सरकार था कि वह सरकार था। मुझे इस गलती के लिए शंकर को सरकार में ढालना चाहिए था, लेकिन मैंने इस करैक्टर को ही मार डाला।" सरकार ३ में तमाम दूसरे करैक्टर हैं। माइकल वाळल्या (जैकी श्रॉफ), गोकुल साटम (रोनित रॉय), गोरख रामपुर (भारत दाभोलकर) और रुक्कू बाई देवी (रोहिणी हट्टंगड़ी) जैसे बहुत से करैक्टर हैं। यह सभी बुरे चरित्र है, जो सुभाष नागरे उर्फ़ सरकार के दुश्मन हैं। इस गिरोह से ज़्यादा खतरनाक है अन्नू करकरे (यामी गौतम) जो सुभाष नागरे से अपने पिता की ह्त्या का बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। कोढ़ पे खाज का काम करता है सरकार का पोता शिवजी नागरे उर्फ़ चीकू (अमित साध) जो उद्यंड युवा है और घमंडी भी। सरकार को इन सभी से निबटना है। केवल इसलिए नहीं कि उसे परिवार बचाना है। उसे इन सब की महत्वाकांक्षाओं से दो दो हाथ करने हैं। रामगोपाल वर्मा कहते हैं, "इस प्रक्रिया में सरकार कुछ ज़्यादा कठोर तरीके से पेश आएगा। फिल्म में सरकार जितना देखने में आकर्षक लगेगा, उतना ही बर्बर उसके कारनामे होंगे।"
सरकार राज और सरकार ३ के बीच के अंतराल में रामगोपाल वर्मा और अमिताभ बच्चन रण और डिपार्टमेंट जैसी फिल्मों में नज़र आये थे। निःशब्द, रामगोपाल वर्मा की आग और सरकार राज में अमिताभ बच्चन के चरित्रों के विकास से बुरी तरह से निराश दर्शकों को रण में अमिताभ बच्चन का एक चैनल के मालिक विजय हर्षवर्द्धन मलिक और डिपार्टमेंट में एक गैंगस्टर गायकवाड़ का किरदार काफी उबाऊ और कमज़ोर लगा। इन सभी फिल्मों में अमिताभ बच्चन का अभिनेता रामगोपाल वर्मा के निर्देशक पर भारी था। दरअसल, जब रामगोपाल वर्मा का निर्देशक अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित कर लेता है तो सरकार जैसी मील का पत्थर फिल्म बन जाती है। लेकिन, जैसे ही वह अमिताभ बच्चन के अभिनेता का प्रशंसक बनता है, पूरी फिल्म हाथ से निकल जाती है।
सरकार राज में सरकार के करैक्टर के साथ गलती कर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार ३ में इस गलती को सुधार रहे हैं। वह सरकार को अपने चारों और फैली बुरी ताकतों से लौह हाथों से निबटने देंगे । लेकिन, क्या ऐसे समय में भी रामगोपाल वर्मा डायरेक्टर बने रहे होंगे ? क्या उन्होंने अमिताभ बच्चन के अभिनेता को नियंत्रित किया होगा ? अगर रामगोपाल वर्मा ने अमिताभ बच्चन को ऎसी निगेटिव भूमिका में लाउड नहीं होने दिया तो समझिये कि रामगोपाल वर्मा ने सरकार राज में की अपनी गलती सुधार ली है। अन्यथा, अपने निर्देशक के 'डिपार्टमेंट' में बुरी तरह घिर चुके रामगोपाल वर्मा सरकार के 'रण' में खेत रहेंगे।
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
द्वितीय विश्वयुद्ध पर क्रिस्टोफर नोलान की फिल्म
आधुनिक दुनिया में द डार्क नाइट ट्राइलॉजी के डायरेक्टर के बतौर मशहूर क्रिस्टोफर नोलान अपनी जड़ों की तरफ लौटते लगते हैं। फॉलोइंग (१९९८) जैसी अपराध फिल्म से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने वाले क्रिस्टोफर नोलान ने मेमेंटो (इस फिल्म का रीमेक हिंदी फिल्म गजिनी थी) जैसी साइकोलॉजिकल थ्रिलर और द प्रेस्टीज जैसी रहस्य ड्रामा फिल्म भी बनाई है। ऐसे में जबकि वह इंटरस्टेलर और इन्सेप्शन जैसी फिल्मों से काल्पनिक नायकों नायकों की दुनिया में खोते नज़र आ रहे थे, द्वितीय विश्वयुद्ध पर उनकी फिल्म डंकिर्क उन्हें यथार्थ के धरातल पर विचरते दिखाने वाली फिल्म बन जाती है। यह फिल्म दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान (१९४० में) डंकिर्क के समुद्री किनारे पर फंसे मित्र राष्ट्रों के चार लाख सैनिकों को बाहर निकालने की वास्तविक कहानी है। इस फिल्म में टॉम हार्डी, मार्क रयलांस, केनेथ ब्रना, सिलियन मर्फी, फिओन वाइटहेड, अनेउरिन बर्नार्ड, जेम्स डार्सी, जैक लौडेन, बैरी कोहन, टॉम ग्लीन-करने और हैरी स्टाइल्स द्वितीय विश्वयुद्ध के वास्तविक और काल्पनिक किरदारों में हैं। डंकिर्क २१ जुलाई को पूरी दुनिया में रिलीज़ हो रही है।
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Hollywood
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
अगले साल रिलीज़ होंगी एक्स-मेन से जुडी तीन फ़िल्में
ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स ने आधिकारिक रूप से पुष्टि कर दी है कि उनके द्वारा तीन एक्स-मेन करैक्टर वाली फ़िल्में रिलीज़ की जाएँगी। पहली फिल्म द न्यू म्यूटेंट्स १३ अप्रैल को रिलीज़ होगी। यह फिल्म प्रशिक्षण ले रहे किशोर म्यूटेंट्स सुपरहीरोज़ के एक समूह की कहानी है। इस फिल्म के म्यूटेंट्स मार्वल सीरीज की तीन अलग अलग कॉमिक बुक से लिए गए हैं। यह म्यूटेंट्स एक दूसरे के विरोधी भी हैं और खुद पर मुसीबत आने पर एक दूसरे की मदद भी करते हैं । इस कॉमिक बुक सीरीज में भरपूर एक्शन और एडवेंचर था। इससे नई फिल्म में दर्शकों को काफी रोमांचकारी एक्शन देखने को मिलेंगे। इस फिल्म से केबल और डेडपूल का परिचय भी होगा। फिल्म का निर्देशन जॉश बून करेंगे। दूसरी फिल्म डेडपूल २ अगले साल ही ०१ जून को रिलीज़ होगी। इस फिल्म वेड विल्सन में कपट प्रयोग के बाद हीलिंग पावर में बढ़ोतरी हो जाती है। वह अपने सूक्ष्म शरीर डेडपल में प्रवेश कर जाता है। डेडपूल इस फिल्म में केबल और डॉमिनो की रहस्यमय म्युटेंट जोड़ी का सामना करेगा। इस फिल्म में दूसरी बार डेविड लीच डेडपूल अभिनेता रयान रेनॉल्ड्स को निर्देशित करेंगे। तीसरी एक्स-मेन करैक्टर फिल्म डार्क फ़ीनिक्स २ नवंबर को रिलीज़ होगी। जीन ग्रे एक ओमेगा म्युटेंट हैं। उसमे ब्रह्मांडीय शक्तियां लगातार बढती जा रही हैं। निर्देशक सिमोन किनबर्ग अपनी इस फिल्म में दिखाएंगे कि प्रोफेसर एक्स और एक्स- मेन किस प्रकार ओमेगा म्यूटैंट की बुरी शक्तियों से निबटते हैं। अगले साल टेलीविज़न पर एफएक्स की सीरीज लीजन और फॉक्स पर द गिफ्टेड शुरू हो रही हैं। इन्हे मिला लिया जाए २० एक्स-मेन का ही हो जाता है।
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Sunday, 7 May 2017
धर्मेन्द्र ने ५१ रुपये में साइन की थी पहली फिल्म
क्या आप जानते हैं कि धर्मेन्द्र ने अपनी पहली फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे (१९६०) मात्र ५१ रुपये में साइन की थी। इस फिल्म के निर्देशक अर्जुन हिंगोरानी थे। यह अर्जुन हिंगोरानी की बतौर निर्देशक दूसरी फिल्म थी। फिल्म में धर्मेन्द्र की नायिका कुमकुम थी। बाद में, फिल्म आँखें (१९६८) में कुमकुम और धर्मेन्द्र ने बहन और भाई का किरदार किया था। फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे में बलराज साहनी मुख्य भूमिका में थे। श्वेत-श्याम रंगों में यह फिल्म बुरी तरह से असफल हुई थी। लेकिन अर्जुन हिंगोरानी और धर्मेन्द्र की जोड़ी जम गई। बाद में, इस जोड़ी ने कब क्यों और कहाँ?, कहानी किस्मत की, खेल खिलाडी का, कातिलों के कातिल और कौन करे क़ुरबानी जैसी हिट फ़िल्में की। बतौर निर्माता अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म करिश्मा कुदरत का से अर्जुन के बेटे सुनील हिंगोरानी का बतौर निर्देशक डेब्यू हुआ। इस फिल्म में धर्मेन्द्र की नायिका अनीता राज थी। सुनील और अनीता ने बाद में शादी भी कर ली। अर्जुन हिंगोरानी को धर्मेन्द्र के साथ 'थ्री के' सीरीज की फ़िल्में बनाने के कारण काफी शोहरत मिली। लेकिन, जब इस जोड़ी ने 'थ्री के' का साथ छोड़ कर सल्तनत (निर्देशक मुकुल आनंद) बनाई तो फिल्म बुरी तरह से असफल हुई। सल्तनत से मिस इंडिया जूही चावला का डेब्यू हुआ था। फिल्म में पिता धर्मेन्द्र की बेटे सनी के साथ जोड़ी बनी थी।
दिल भी तेरा हम भी तेरे (१९६०) |
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झिलमिल अतीत
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मॉर्टल इंजिन्स में गेम ऑफ़ थ्रोन्स, एरो और रूट्स के एक्टर
वाय-ए बुक यानि यंग एडल्ट बुक मॉर्टल इंजिन्स पर निर्माता पीटर जैक्सन की फिल्म में गेम ऑफ़ थ्रोन्स के एक्टर पैट्रिक मलहिड़े, एरो के कॉलिन साल्मोन और रूट्स के रेगे- जीन पेज को भी शामिल कर लिया गया है। लेखक फिलिप रीव की चार उपन्यासों की मॉर्टल इंजिन्स सीरीज की पहली किताब भविष्य के लंदन पर है, जिसमे एक विशालकाय मशीन पर बैठे लोगों को ख़त्म हो रही दुनिया को बचाना है। इस फिल्म में चरित्रों की भरमार है। इसलिए फिल्म में उपरोक्त तीन एक्टरों के अलावा मिसफ़िट्स के रॉबर्ट शीहान के नेतृत्व में हेरा हिलमर, ह्यूगो वीविंग और स्टेफेन लँग को पहले ही शामिल किया जा चूका है। फिल्म की कहानी पारिस्थितिक और तकनीकी रूप से ख़त्म हो चुकी भविष्य की दुनिया में केवल लंदन ही ऐसा शहर है, जो इंजिनों के ज़रिये चलाया जा रहा है और लोग पृथ्वी से दूर छोटे शहरों के संसाधनों पर निर्भर हैं। एक किशोर टॉम नाट्सवर्थी नज़दीकी क्षेत्र आउटलैंड्स की एक युवती के साथ एक ऐसे रहस्य का पता लगा लेता है, जिससे विश्व व्यवस्था में बड़ा बदलाव आ जायेगा। फिल्म का निर्देशन पीटर जैक्सन के चेले क्रिस्चियन रिवर्स कर रहे हैं। एमआरसी और यूनिवर्सल की इस फिल्म की शूटिंग न्यू ज़ीलैण्ड में जारी है।
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Hollywood
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कॉस्ट्यूम फिल्मों की चमक-दमक और भव्यता
इस शुक्रवार पूरे हिंदुस्तान में सिनेमाघरों का रूपहला पर्दा बाहुबलीमय हो जायेगा। दक्षिण के महिष्मति साम्राज्य के इस फंतासी महाकाव्य बाहुबली द बेगिनिंग का निर्माण एसएस राजामौली ने तमिल और तेलुगु में किया था। हिंदुस्तान की उस समय की सबसे महँगी (बजट १८० करोड़) फिल्म को हिंदी सहित देश की दूसरी भाषाओं में भी डब कर रिलीज़ किया गया। बाहुबली द बिगिनिंग ने वर्ल्डवाइड ६५० करोड़ का बिज़नेस किया। यह पहली गैर हिंदी भाषी फिल्म थी, जिसने १०० करोड़ से ज़्यादा का बिज़नेस किया। इससे हिंदी बेल्ट में ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों की लोकप्रियता का संकेत मिलता था। ऐसे में क्या दावे के साथ कहा जा सकता है कि अब राजसी ऐश्वर्य वाली भव्य फिल्मों का ज़माना आ रहा है ?
पहली मूक और सवाक फिल्मों की राजसी कहानी
वास्तविकता तो यह है कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की नीव ही कॉस्ट्यूम ड्रामा या राजा रजवाड़ों के कथाानकों पर फिल्मों से पड़ी। पहली भारतीय मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र रामायण और महाभारत में उल्लिखित राजा हरिश्चंद्र के चरित्र पर बनाई गई थी। उस समय आवाज़ न होने के कारण जाने पहचाने धार्मिक-ऐतिहासिक चरित्र ही फिल्मों का विषय हो सकते थे, ताकि दर्शक कहानी आसानी से समझ सकें । हालाँकि, उस दौर में भी कुछ सामाजिक फिल्मे बनाई गई। इसी प्रकार से पहली सवाक फिल्म आलमआरा भी काल्पनिक कुमारपुर राज्य के राजकुमार आदिल और एक जिप्सी गर्ल आलमआरा की मोहब्बत की कहानी थी। चमकदार पोशाकें, भव्य महल और राजदरबार के सेट्स इस फिल्म की खासियत थे। ज़ाहिर है कि राजसी फिल्मों का जलवा था।
मूक हो या सवाक फ़िल्में, इंडस्ट्री के शुरूआती दौर की फिल्मों में भव्यता और चमक दमक के साथ ड्रामा दिखाने के लिए राजसी या शाही फ़िल्में ही मुफीद थी। अब यह बात दीगर है कि ऐसे तमाम चरित्र धार्मिक या पौराणिक थे या ऐतिहासिक या फिर राजशाही को दर्शाने वाले काल्पनिक चरित्र।
एक ख़ास बात यह रही कि नई तकनीक को दर्शकों के बीच लोकप्रिय किया। कहा जा सकता है कि हिंदी फिल्मों में श्वे त-श्याम रंगों के अलावा अन्य रंगों को कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों अथवा ऐतिहासिक धार्मिक फिल्मों ने ही लोकप्रिय बनाया।
कॉस्ट्यूम फिल्मों से उभरे परदे पर रंग
कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों से हिंदी फिल्मों में क्रांतिकारी बदलाव हुए । हिंदी फिल्मों में रंग १९३३ में रिलीज़ वी० शांताराम निर्देशित फिल्म सैरंध्री से ही आ गए थे। महाकाव्य महाभारत की उपकथा पर आधारित फिल्म सैरंध्री मल्टीकलर में शूट हुई थी। लेकिन, जर्मनी में फिल्म की प्रोसेसिंग के दौरान इसके रंग नष्ट हो गए। इसलिए, यह फिल्म दर्शकों को परदे पर श्वेत- श्याम रंगों में ही देखने को मिली । इसके बाद १९३५ में रिलीज़ आर्देशर ईरानी की फिल्म किसान कन्या पहली कलर फिल्म बनी। इसे सिनेकलर प्रोसेस से रंगीन बनाया गया था। इस फिल्म की किसान और गरीबी की कहानी दर्शकों को रास नहीं आई। फिल्म असफल हो गई। फिर १७ साल बाद रंगों ने दर्शकों का ध्यान खींचा महबूब खान की राजसी रोमांस ड्रामा फिल्म आन (१९५२) से । आन एक काल्पनिक राज्य की बिगड़ैल राजकुमारी (नादिरा) से एक गरीब ग्रामीण युवक (दिलीप कुमार) द्वारा प्रेम करने की कहानी फिल्माई गई थी। इस फिल्म को गेवाकलर में १६ एमएम रील से शूट किया गया था। बाद में ३५ एमएम टैक्नीकलर में फैलाया गया। इस फिल्म को ज़बरदस्त सफलता मिली। इस फिल्म की निर्माण लागत ३५ लाख थी। लेकिन फिल्म ने डेढ़ करोड़ का बिज़नेस किया।
पहली टैक्नीकलर फिल्म झांसी की रानी
सोहराब मोदी की फिल्म झाँसी की रानी पहली हिंदी फिल्म थी, जो ३५ एमएम में टैक्नीकलर रंग में शूट हुई थी। इस फिल्म का छायांकन गॉन विथ द विंड के लिए ऑस्कर विजेता सिनेमेटोग्राफर अर्नेस्ट हैलर ने शूट किया था। फिल्म का संपादन इंग्लैंड से रसेल लॉयड ने किया था। जिस दशक में रंगों से सजी झनक झनक पायल बाजे (१९५५), मदर इंडिया (१९५७) और नवरंग (१९५९) बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई, उसी दशक में सोहराब मोदी की महताब की मुख्य भूमिका वाली ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म झाँसी की रानी बुरी तरह से असफल हुई ।
मील का पत्थर साबित हुआ ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा
सोहराब मोदी ने तीन ऐतिहासिक फ़िल्में पुकार (१९३९), झाँसी की रानी (१९५३) और मिर्ज़ा ग़ालिब (१९५४) बनाई थी। यह तीनों फिल्में ऐतिहासिक फिल्मों में मील का पत्थर रखने वाली मानी जाती हैं। पुकार की कहानी जहांगीर के इन्साफ पर थी। नूरजहां के तीर से एक धोबी की हत्या हो जाती है। वह इन्साफ के लिए जहांगीर का घंटा बजाती है। जहांगीर न्याय करता है कि धोबन नूरजहां के पति को मार दे। मिर्ज़ा ग़ालिब में भारत भूषण ने ग़ालिब और सुरैया ने एक नर्तकी का किरदार किया था। इस फिल्म को दूसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस फिल्म को ग़ालिब को जीवंत कर देने वाली फिल्म कहा था। कोई १६ साल बाद निर्माता जीपी सिप्पी ने जहांगीर के इसी इन्साफ को प्रदीप कुमार, मीना कुमारी और सप्रू के साथ बनाया। फिल्म का नाम था आदिल ए जहांगीर यानि जहांगीर का इन्साफ। जीपी सिप्पी ने इस फिल्म के लिए पहली बार निर्देशन की कमान सम्हाली थी। फिल्म हिट हुई। दक्षिण में भी सलीम अनारकली और अकबर की तिकड़ी का जलवा रहा।
कॉस्टयूम ड्रामा फिल्मों के-
वाडिया बंधु
जीबीएच वाडिया के नाम से मशहूर जमशेदजी बोमन होमी वाडिया ने १९३३ में वाडिया मूवीटोन स्टूडियो की स्थापना की। उन्होंने अपने एक्टिव करियर में स्टंट (हंटरवाली, हरिकेन हंसा, मिस फ्रंटियर मेल), फैन्टसी (लाल ए यमन, नूर ए यमन) और माइथोलॉजिकल (श्रीगणेश, लव कुश, सम्पूर्ण रामायण) फिल्मों का निर्माण किया। उनके भाई होमी वाडिया की पहचान एक्शन फैन्टसी कॉस्ट्यूम फिल्मों से बनी। उन्होंने आम जनता की भलाई के लिए अपना राजपाट छोड़ देने वाली राजकुमारी पर फिल्म द प्रिंसेस एंड द हंटर से फिल्म निर्देशन की शुरुआत की। उन्होंने, जंगल प्रिंसेस, शेर-ए- बग़दाद, रामभक्त हनुमान, श्री गणेश महिमा, हनुमान पाताल विजय, अलादीन और जादुई चिराग, अलीबाबा एंड ४० थीव्स, हातिमताई, ज़बक, चार दरवेश, श्री कृष्ण लीला, एडवेंचर ऑफ़ अलादीन जैसी माइथोलॉजिकल फ़न्तासी कॉस्ट्यूम फ़िल्में बनाई।
गुजरात के भट्ट
फिल्मों के शुरूआती दौर में गुजरात के भट्ट महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पहले भट्ट यानि विजय भट्ट १९२० के दशक में भावनगर से बॉम्बे आये थे। उन्होंने बतौर पटकथा लेखक फिल्मों में कदम रखा। उन्हें हिन्दुओं के ईष्ट भगवान् राम और सीता पर फिल्म रामराज्य (१९४३) ने अमर कर दिया। यह फिल्म बड़ी हिट फिल्म थी ही, यह ऎसी इकलौती फिल्म थी, जिसे महात्मा गांधी ने देखा था। उन्होंने नरसि भगत, भरत मिलाप, विक्रमादित्य, रामबाण, बैजू बावरा, श्री चैतन्य महाप्रभु, बाल रामायण, अंगुलिमाल, आदि माइथोलॉजिकल और ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों के लिए याद किया जाता है। पोरबंदर में जन्मे नानाभाई भट्ट ने ज़्यादातर क्राइम एक्शन फ़िल्में बनाई। परन्तु, उनकी माइथोलॉजिकल कॉस्ट्यूम फिल्में मीराबाई, वीर घटोत्कच, जन्माष्टमी, राम जनम, लव कुश, लक्ष्मी नारायण और फ़न्तासी कॉस्ट्यूम फिल्मों सिंदबाद जहाजी, बग़दाद और सन ऑफ़ सिंदबाद जैसी फ़िल्में कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्में यादगार हैं।
हिंदी फिल्मों के प्रिंस थे प्रदीप कुमार
हिंदी फिल्मों में काम करने के लिये बंगाली अभिनेता प्रदीप कुमार प्रदीप कुमार ने अपनी भूमिकाओं के लिए अपनी उर्दू को माजा । उनकी पहली हिंदी फिल्म आनंदमठ (१९५२) थी। भारतीय स्वतंत्र संग्राम के १८ वी शताब्दी के संन्यासी विद्रोह पर इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने एक युवा संन्यासी का किरदार किया था। प्रदीप कुमार अच्छी कद काठी, तलवार कट मूछों और राजसी भावभंगिमाओं के कारण हिंदी फिल्मों में राजसी भूमिकाओं के उपयुक्त मान लिए गए। उन्हें यह दर्ज़ा दिलवाया १९५३ में रिलीज़ फिल्म अनारकली ने। इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने शहज़ादा सलीम का किरदार किया था। फिल्म बड़ी हिट साबित हुई। प्रदीप कुमार ने बादशाह, राज हठ, दुर्गेश नंदिनी, हीर, यहूदी की लड़की, चित्रलेखा, बहु बेगम, महाभारत और रज़िया सुल्तान में राजसी किरदार किये थे। हालाँकि, उन्होंने काफी सोशल फ़िल्में की। लेकिन वह यादगार हुए अनारकली के जहांगीर और ताजमहल के शाहजहां के किरदार से।
ऐतिहासिक फिल्मों की शाहकार
निर्माता निर्देशक के आसिफ ने केवल दो फिल्मों फूल और मुग़ल ए आज़म का निर्माण-निर्देशन किया। मुग़ल ए आज़म को परदे पर आने में १५ साल लगे। इस फिल्म की परिकल्पना १९४५ में की गई थी। कई कलाकारों से गुजरते हुए, इस फिल्म को पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला, अजित और दुर्गा खोटे के साथ बनाया गया। यह उस समय की सबसे महँगी फिल्म थी, जिसके निर्माण में डेढ़ करोड़ खर्च हुए। इस फिल्म के एक गीत प्यार किया तो डरना क्या की शूटिंग शीश महल में हुई थी। इस के फिल्मांकन में ही १० लाख खर्च हो गए। फिल्म के युद्ध दृश्यों में दो हजार ऊँट, चार हजार घोड़े और आठ हजार सिपाहियों का इस्तेमाल किया गया। झांसी की रानी में रंगों की सफलता को देख कर, के० आसिफ ने फिल्म के २० मिनट के क्लाइमेक्स और दो गीतों को टैक्नीकलर में रीशूट किया। हिंदी, तमिल और इंग्लिश में शूट की गई इस फिल्म को बॉलीवुड की शाहकार फिल्म माना जाता है। हैदराबाद, सूरत, कोल्हापुर, राजस्थान, आदि से बुलाये गए तकनीशियनों से फिल्म के जेवर, वेशभूषा और तीर तलवार का निर्माण करवा गया।
हिंदी फिल्मों में कॉस्ट्यूम ड्रामा पर संजयलीला भंसाली काफी काम कर रहे हैं। उनकी पिछली फिल्म बाजीराव मस्तानी पेशवा बाजीराव की नर्तकी मस्तानी के साथ प्रेम कहानी थी। आजकल वह मेवाड़ रानी पद्मावती पर फिल्म बना रहे हैं। उनके अलावा यूनाइटेड अरब अमीरात के अरबपति व्यवसाई डॉक्टर बी आर शेट्टी भी भारत की अब तक की सबसे महँगी महाकाव्य पर फिल्म 'महाभारत' बनाने जा रहे हैं। इस फिल्म का बजट १००० करोड़ होगा. इस फिल्म में हिंदुस्तान और हॉलीवुड के कलाकार काम करेंगे। पिछले दिनों यह भी खबर थी कि आमिर खान और शाहरुख़ खान की दिलचस्पी भी महाभारत में है। सुशांत सिंह राजपूत और कृति सैनन की फिल्म राब्ता साउथ की कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म मगधीरा का रीमेक है।
पहली मूक और सवाक फिल्मों की राजसी कहानी
वास्तविकता तो यह है कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की नीव ही कॉस्ट्यूम ड्रामा या राजा रजवाड़ों के कथाानकों पर फिल्मों से पड़ी। पहली भारतीय मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र रामायण और महाभारत में उल्लिखित राजा हरिश्चंद्र के चरित्र पर बनाई गई थी। उस समय आवाज़ न होने के कारण जाने पहचाने धार्मिक-ऐतिहासिक चरित्र ही फिल्मों का विषय हो सकते थे, ताकि दर्शक कहानी आसानी से समझ सकें । हालाँकि, उस दौर में भी कुछ सामाजिक फिल्मे बनाई गई। इसी प्रकार से पहली सवाक फिल्म आलमआरा भी काल्पनिक कुमारपुर राज्य के राजकुमार आदिल और एक जिप्सी गर्ल आलमआरा की मोहब्बत की कहानी थी। चमकदार पोशाकें, भव्य महल और राजदरबार के सेट्स इस फिल्म की खासियत थे। ज़ाहिर है कि राजसी फिल्मों का जलवा था।
मूक हो या सवाक फ़िल्में, इंडस्ट्री के शुरूआती दौर की फिल्मों में भव्यता और चमक दमक के साथ ड्रामा दिखाने के लिए राजसी या शाही फ़िल्में ही मुफीद थी। अब यह बात दीगर है कि ऐसे तमाम चरित्र धार्मिक या पौराणिक थे या ऐतिहासिक या फिर राजशाही को दर्शाने वाले काल्पनिक चरित्र।
एक ख़ास बात यह रही कि नई तकनीक को दर्शकों के बीच लोकप्रिय किया। कहा जा सकता है कि हिंदी फिल्मों में श्वे त-श्याम रंगों के अलावा अन्य रंगों को कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों अथवा ऐतिहासिक धार्मिक फिल्मों ने ही लोकप्रिय बनाया।
कॉस्ट्यूम फिल्मों से उभरे परदे पर रंग
कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों से हिंदी फिल्मों में क्रांतिकारी बदलाव हुए । हिंदी फिल्मों में रंग १९३३ में रिलीज़ वी० शांताराम निर्देशित फिल्म सैरंध्री से ही आ गए थे। महाकाव्य महाभारत की उपकथा पर आधारित फिल्म सैरंध्री मल्टीकलर में शूट हुई थी। लेकिन, जर्मनी में फिल्म की प्रोसेसिंग के दौरान इसके रंग नष्ट हो गए। इसलिए, यह फिल्म दर्शकों को परदे पर श्वेत- श्याम रंगों में ही देखने को मिली । इसके बाद १९३५ में रिलीज़ आर्देशर ईरानी की फिल्म किसान कन्या पहली कलर फिल्म बनी। इसे सिनेकलर प्रोसेस से रंगीन बनाया गया था। इस फिल्म की किसान और गरीबी की कहानी दर्शकों को रास नहीं आई। फिल्म असफल हो गई। फिर १७ साल बाद रंगों ने दर्शकों का ध्यान खींचा महबूब खान की राजसी रोमांस ड्रामा फिल्म आन (१९५२) से । आन एक काल्पनिक राज्य की बिगड़ैल राजकुमारी (नादिरा) से एक गरीब ग्रामीण युवक (दिलीप कुमार) द्वारा प्रेम करने की कहानी फिल्माई गई थी। इस फिल्म को गेवाकलर में १६ एमएम रील से शूट किया गया था। बाद में ३५ एमएम टैक्नीकलर में फैलाया गया। इस फिल्म को ज़बरदस्त सफलता मिली। इस फिल्म की निर्माण लागत ३५ लाख थी। लेकिन फिल्म ने डेढ़ करोड़ का बिज़नेस किया।
पहली टैक्नीकलर फिल्म झांसी की रानी
सोहराब मोदी की फिल्म झाँसी की रानी पहली हिंदी फिल्म थी, जो ३५ एमएम में टैक्नीकलर रंग में शूट हुई थी। इस फिल्म का छायांकन गॉन विथ द विंड के लिए ऑस्कर विजेता सिनेमेटोग्राफर अर्नेस्ट हैलर ने शूट किया था। फिल्म का संपादन इंग्लैंड से रसेल लॉयड ने किया था। जिस दशक में रंगों से सजी झनक झनक पायल बाजे (१९५५), मदर इंडिया (१९५७) और नवरंग (१९५९) बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई, उसी दशक में सोहराब मोदी की महताब की मुख्य भूमिका वाली ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म झाँसी की रानी बुरी तरह से असफल हुई ।
मील का पत्थर साबित हुआ ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा
सोहराब मोदी ने तीन ऐतिहासिक फ़िल्में पुकार (१९३९), झाँसी की रानी (१९५३) और मिर्ज़ा ग़ालिब (१९५४) बनाई थी। यह तीनों फिल्में ऐतिहासिक फिल्मों में मील का पत्थर रखने वाली मानी जाती हैं। पुकार की कहानी जहांगीर के इन्साफ पर थी। नूरजहां के तीर से एक धोबी की हत्या हो जाती है। वह इन्साफ के लिए जहांगीर का घंटा बजाती है। जहांगीर न्याय करता है कि धोबन नूरजहां के पति को मार दे। मिर्ज़ा ग़ालिब में भारत भूषण ने ग़ालिब और सुरैया ने एक नर्तकी का किरदार किया था। इस फिल्म को दूसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस फिल्म को ग़ालिब को जीवंत कर देने वाली फिल्म कहा था। कोई १६ साल बाद निर्माता जीपी सिप्पी ने जहांगीर के इसी इन्साफ को प्रदीप कुमार, मीना कुमारी और सप्रू के साथ बनाया। फिल्म का नाम था आदिल ए जहांगीर यानि जहांगीर का इन्साफ। जीपी सिप्पी ने इस फिल्म के लिए पहली बार निर्देशन की कमान सम्हाली थी। फिल्म हिट हुई। दक्षिण में भी सलीम अनारकली और अकबर की तिकड़ी का जलवा रहा।
कॉस्टयूम ड्रामा फिल्मों के-
वाडिया बंधु
जीबीएच वाडिया के नाम से मशहूर जमशेदजी बोमन होमी वाडिया ने १९३३ में वाडिया मूवीटोन स्टूडियो की स्थापना की। उन्होंने अपने एक्टिव करियर में स्टंट (हंटरवाली, हरिकेन हंसा, मिस फ्रंटियर मेल), फैन्टसी (लाल ए यमन, नूर ए यमन) और माइथोलॉजिकल (श्रीगणेश, लव कुश, सम्पूर्ण रामायण) फिल्मों का निर्माण किया। उनके भाई होमी वाडिया की पहचान एक्शन फैन्टसी कॉस्ट्यूम फिल्मों से बनी। उन्होंने आम जनता की भलाई के लिए अपना राजपाट छोड़ देने वाली राजकुमारी पर फिल्म द प्रिंसेस एंड द हंटर से फिल्म निर्देशन की शुरुआत की। उन्होंने, जंगल प्रिंसेस, शेर-ए- बग़दाद, रामभक्त हनुमान, श्री गणेश महिमा, हनुमान पाताल विजय, अलादीन और जादुई चिराग, अलीबाबा एंड ४० थीव्स, हातिमताई, ज़बक, चार दरवेश, श्री कृष्ण लीला, एडवेंचर ऑफ़ अलादीन जैसी माइथोलॉजिकल फ़न्तासी कॉस्ट्यूम फ़िल्में बनाई।
गुजरात के भट्ट
फिल्मों के शुरूआती दौर में गुजरात के भट्ट महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पहले भट्ट यानि विजय भट्ट १९२० के दशक में भावनगर से बॉम्बे आये थे। उन्होंने बतौर पटकथा लेखक फिल्मों में कदम रखा। उन्हें हिन्दुओं के ईष्ट भगवान् राम और सीता पर फिल्म रामराज्य (१९४३) ने अमर कर दिया। यह फिल्म बड़ी हिट फिल्म थी ही, यह ऎसी इकलौती फिल्म थी, जिसे महात्मा गांधी ने देखा था। उन्होंने नरसि भगत, भरत मिलाप, विक्रमादित्य, रामबाण, बैजू बावरा, श्री चैतन्य महाप्रभु, बाल रामायण, अंगुलिमाल, आदि माइथोलॉजिकल और ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों के लिए याद किया जाता है। पोरबंदर में जन्मे नानाभाई भट्ट ने ज़्यादातर क्राइम एक्शन फ़िल्में बनाई। परन्तु, उनकी माइथोलॉजिकल कॉस्ट्यूम फिल्में मीराबाई, वीर घटोत्कच, जन्माष्टमी, राम जनम, लव कुश, लक्ष्मी नारायण और फ़न्तासी कॉस्ट्यूम फिल्मों सिंदबाद जहाजी, बग़दाद और सन ऑफ़ सिंदबाद जैसी फ़िल्में कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्में यादगार हैं।
हिंदी फिल्मों के प्रिंस थे प्रदीप कुमार
हिंदी फिल्मों में काम करने के लिये बंगाली अभिनेता प्रदीप कुमार प्रदीप कुमार ने अपनी भूमिकाओं के लिए अपनी उर्दू को माजा । उनकी पहली हिंदी फिल्म आनंदमठ (१९५२) थी। भारतीय स्वतंत्र संग्राम के १८ वी शताब्दी के संन्यासी विद्रोह पर इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने एक युवा संन्यासी का किरदार किया था। प्रदीप कुमार अच्छी कद काठी, तलवार कट मूछों और राजसी भावभंगिमाओं के कारण हिंदी फिल्मों में राजसी भूमिकाओं के उपयुक्त मान लिए गए। उन्हें यह दर्ज़ा दिलवाया १९५३ में रिलीज़ फिल्म अनारकली ने। इस फिल्म में प्रदीप कुमार ने शहज़ादा सलीम का किरदार किया था। फिल्म बड़ी हिट साबित हुई। प्रदीप कुमार ने बादशाह, राज हठ, दुर्गेश नंदिनी, हीर, यहूदी की लड़की, चित्रलेखा, बहु बेगम, महाभारत और रज़िया सुल्तान में राजसी किरदार किये थे। हालाँकि, उन्होंने काफी सोशल फ़िल्में की। लेकिन वह यादगार हुए अनारकली के जहांगीर और ताजमहल के शाहजहां के किरदार से।
ऐतिहासिक फिल्मों की शाहकार
निर्माता निर्देशक के आसिफ ने केवल दो फिल्मों फूल और मुग़ल ए आज़म का निर्माण-निर्देशन किया। मुग़ल ए आज़म को परदे पर आने में १५ साल लगे। इस फिल्म की परिकल्पना १९४५ में की गई थी। कई कलाकारों से गुजरते हुए, इस फिल्म को पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला, अजित और दुर्गा खोटे के साथ बनाया गया। यह उस समय की सबसे महँगी फिल्म थी, जिसके निर्माण में डेढ़ करोड़ खर्च हुए। इस फिल्म के एक गीत प्यार किया तो डरना क्या की शूटिंग शीश महल में हुई थी। इस के फिल्मांकन में ही १० लाख खर्च हो गए। फिल्म के युद्ध दृश्यों में दो हजार ऊँट, चार हजार घोड़े और आठ हजार सिपाहियों का इस्तेमाल किया गया। झांसी की रानी में रंगों की सफलता को देख कर, के० आसिफ ने फिल्म के २० मिनट के क्लाइमेक्स और दो गीतों को टैक्नीकलर में रीशूट किया। हिंदी, तमिल और इंग्लिश में शूट की गई इस फिल्म को बॉलीवुड की शाहकार फिल्म माना जाता है। हैदराबाद, सूरत, कोल्हापुर, राजस्थान, आदि से बुलाये गए तकनीशियनों से फिल्म के जेवर, वेशभूषा और तीर तलवार का निर्माण करवा गया।
हिंदी फिल्मों में कॉस्ट्यूम ड्रामा पर संजयलीला भंसाली काफी काम कर रहे हैं। उनकी पिछली फिल्म बाजीराव मस्तानी पेशवा बाजीराव की नर्तकी मस्तानी के साथ प्रेम कहानी थी। आजकल वह मेवाड़ रानी पद्मावती पर फिल्म बना रहे हैं। उनके अलावा यूनाइटेड अरब अमीरात के अरबपति व्यवसाई डॉक्टर बी आर शेट्टी भी भारत की अब तक की सबसे महँगी महाकाव्य पर फिल्म 'महाभारत' बनाने जा रहे हैं। इस फिल्म का बजट १००० करोड़ होगा. इस फिल्म में हिंदुस्तान और हॉलीवुड के कलाकार काम करेंगे। पिछले दिनों यह भी खबर थी कि आमिर खान और शाहरुख़ खान की दिलचस्पी भी महाभारत में है। सुशांत सिंह राजपूत और कृति सैनन की फिल्म राब्ता साउथ की कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म मगधीरा का रीमेक है।
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
कपिल शर्मा के शो में एडल्ट फिल्मों की अभिनेत्री !
कपिल शर्मा अपने शो को बचाने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं। इसी कोशिश में नई कोशिश है मोनिका कैस्टेलिनो। मोनिका कैस्टेलिनो पेशे से एक्ट्रेस है। वह हिंदी टीवी सीरियल प्रतिज्ञा, मणिबेन डॉट कॉम, प्यार की यह कहानी सुनो, तू मेरे अगल बगल है, हर मर्द को दर्द होता है, आदि में काम कर चुकी है। लेकिन, कपिल शर्मा ने मोनिका को इसलिए अपने शो में शामिल नहीं किया है कि वह भी अभिनेत्री है, बल्कि इस वजह से साइन किया है कि वह एक एडल्ट फिल्म एक्ट्रेस हैं। मोनिका अपनी फिल्मों में उत्तेजक कपडे पहनती है और हाव भाव प्रदर्शित करती है। उनकी फिल्मों के नाम भी काफी उत्तेजक होते है। मेन नोट अलाउड वह लेस्बियन एक्ट कर रही थी। काम सुंदरी में वह कामुकता की देवी बनी थी। सूत्र बताते हैं कि कपिल शर्मा ने मोनिका को सुगंध मिश्र के जाने के बाद स्थाई सदस्य के तौर पर अपने शो में शामिल किया है। खबर यह भी है कि मोनिका शो में बेहद ग्लैमरस और बोल्ड अंदाज़ में आयेंगी । क्या द कपिल शर्मा शो को 'बंद होने से बचा पायेगी यह 'काम सुंदरी' !
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मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
दिव्या दत्ता पर फिल्मों की बारिश, शादी में ज़रूर आना, भावेश जोशी, विवेक ओबेरॉय, प्रीती और पिंकी
दिव्या दत्ता पर फिल्मों की बारिश !
चालीस साल की दिव्या दत्ता पर खुशियों की बारिश हो रही है। उन्हें हमेशा से भिन्न प्रकार के रोल मिलते रहे हैं। वह कभी टाइप्ड नहीं हुई। उनकी हाल ही में रिलीज़ किताब मी एंड माँ को काफी सराहा गया है। इस किताब के लिए उन्हें लिटरेरी एक्सेलेन्स अवार्ड मिला है। उन पर फिल्मों की भी बारिश हो रही है। १९९४ में मिराक़ मिर्ज़ा की फिल्म इश्क़ में जीना इश्क़ में मरना से दिव्या दत्ता का हिंदी फिल्म डेब्यू हुआ था। यह फिल्म भी उन्हें अनायास मिली। मिराक ने अपनी यह फिल्म किसी दूसरी अभिनेत्री के साथ शुरू की थी। लेकिन, दिव्या दत्ता को देख कर वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस अभिनेत्री को निकाल कर दिव्या को फिल्म में ले लिया। दिव्या की दूसरी फिल्म सलमान खान के साथ फिल्म वीरगति थी। यह दोनों ही फ़िल्में असफल हुई। इसके बावजूद दिव्या दत्ता को फ़िल्में मिलती रही। अलबत्ता ज़्यादातर फिल्मों में उन्होंने सह भूमिकाएं ही की थी। चालीस साल की दिव्या दत्ता ने अब तक एक सौ के करीब फ़िल्में की हैं। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में बदलापुर, भाग मिल्खा भाग, स्पेशल २६, हीरोइन, डेंजरस इश्क़, दिल्ली ६, ओह माय गॉड, वेलकम टू सज्जनपुर, आजा नचले, उमराव जान, अपने, वीर ज़रा, एलओसी कारगिल, बड़े मिया छोटे मिया, आदि के नाम शामिल हैं। इस समय दिव्या दत्ता कोई आठ फिल्मों में काम कर रही हैं। इरफ़ान खान, नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी और अरुणोदय सिंह के साथ फिल्मों में उनकी भूमिका सशक्त है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा की अगली फिल्म में अगली फिल्म में भी दिव्या दत्ता हैं। नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी के साथ बाबूमोशाय बन्दूकबाज़ मई में रिलीज़ होने वाली है। वह इरफ़ान खान के साथ रायता की शूटिंग कर रही हैं।
राजकुमार ने कृति से कहा शादी में ज़रूर आना !
राजकुमार राव और कृति खरबंदा की फिल्म शादी में ज़रूर आना की शूटिंग लखनऊ और इलाहबाद में पूरी हो गई है। इस फिल्म में राजकुमार राव कृति खरबंदा पहली बार एक साथ आ रहे हैं। दरअसल, कृति खरबंदा साउथ की ख़ास तौर पर तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों की बड़ी एक्ट्रेस हैं। उनका हिंदी फिल्म डेब्यू पिछले साल रिलीज़ हॉरर फिल्म राज़ रिबूट से इमरान हाश्मी और गौरव अरोरा के साथ हुआ था। राज़ रिबूट फ्लॉप हुई। शादी में ज़रूर आना कृति की दूसरी फिल्म है। निर्माता विनोद बच्चन की इस फिल्म की निर्देशक रत्ना सिंह हैं। यह उत्तर प्रदेश की खालिस देसी कहानी वाली फिल्म है। फिल्म दो युवा प्रेमियों सत्येंद्र मिश्रा और आरती शुक्ल की है, जो शादी करना चाहते हैं। लेकिन, एक दिन आरती यकायक निर्णय लेती है कि वह पहले अपने सपने पूरे करेगी। दोनों अलग हो जाते हैं। पांच साल दोनों मिलते हैं तो अजीब परिस्थितियों में। अब तक आईएएस अफसर बन गए सत्येंद्र को पीसीएस अधिकारी आरती के एक मामले की जांच सौंपी जाती है। फिल्म के बारे में रत्ना सिन्हा कहती हैं, "हम लोग पूरी कोशिश कर रहे हैं कि फिल्म दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करे।" कमल पांडेय की लिखी फिल्म शादी में ज़रूर आना रत्ना सिन्हा की पहली फिल्म है।
भावेश जोशी के लिए हर्षवर्धन कपूर ने किया बडा बदलाव
चालीस साल की दिव्या दत्ता पर खुशियों की बारिश हो रही है। उन्हें हमेशा से भिन्न प्रकार के रोल मिलते रहे हैं। वह कभी टाइप्ड नहीं हुई। उनकी हाल ही में रिलीज़ किताब मी एंड माँ को काफी सराहा गया है। इस किताब के लिए उन्हें लिटरेरी एक्सेलेन्स अवार्ड मिला है। उन पर फिल्मों की भी बारिश हो रही है। १९९४ में मिराक़ मिर्ज़ा की फिल्म इश्क़ में जीना इश्क़ में मरना से दिव्या दत्ता का हिंदी फिल्म डेब्यू हुआ था। यह फिल्म भी उन्हें अनायास मिली। मिराक ने अपनी यह फिल्म किसी दूसरी अभिनेत्री के साथ शुरू की थी। लेकिन, दिव्या दत्ता को देख कर वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस अभिनेत्री को निकाल कर दिव्या को फिल्म में ले लिया। दिव्या की दूसरी फिल्म सलमान खान के साथ फिल्म वीरगति थी। यह दोनों ही फ़िल्में असफल हुई। इसके बावजूद दिव्या दत्ता को फ़िल्में मिलती रही। अलबत्ता ज़्यादातर फिल्मों में उन्होंने सह भूमिकाएं ही की थी। चालीस साल की दिव्या दत्ता ने अब तक एक सौ के करीब फ़िल्में की हैं। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में बदलापुर, भाग मिल्खा भाग, स्पेशल २६, हीरोइन, डेंजरस इश्क़, दिल्ली ६, ओह माय गॉड, वेलकम टू सज्जनपुर, आजा नचले, उमराव जान, अपने, वीर ज़रा, एलओसी कारगिल, बड़े मिया छोटे मिया, आदि के नाम शामिल हैं। इस समय दिव्या दत्ता कोई आठ फिल्मों में काम कर रही हैं। इरफ़ान खान, नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी और अरुणोदय सिंह के साथ फिल्मों में उनकी भूमिका सशक्त है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा की अगली फिल्म में अगली फिल्म में भी दिव्या दत्ता हैं। नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी के साथ बाबूमोशाय बन्दूकबाज़ मई में रिलीज़ होने वाली है। वह इरफ़ान खान के साथ रायता की शूटिंग कर रही हैं।
राजकुमार ने कृति से कहा शादी में ज़रूर आना !
राजकुमार राव और कृति खरबंदा की फिल्म शादी में ज़रूर आना की शूटिंग लखनऊ और इलाहबाद में पूरी हो गई है। इस फिल्म में राजकुमार राव कृति खरबंदा पहली बार एक साथ आ रहे हैं। दरअसल, कृति खरबंदा साउथ की ख़ास तौर पर तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों की बड़ी एक्ट्रेस हैं। उनका हिंदी फिल्म डेब्यू पिछले साल रिलीज़ हॉरर फिल्म राज़ रिबूट से इमरान हाश्मी और गौरव अरोरा के साथ हुआ था। राज़ रिबूट फ्लॉप हुई। शादी में ज़रूर आना कृति की दूसरी फिल्म है। निर्माता विनोद बच्चन की इस फिल्म की निर्देशक रत्ना सिंह हैं। यह उत्तर प्रदेश की खालिस देसी कहानी वाली फिल्म है। फिल्म दो युवा प्रेमियों सत्येंद्र मिश्रा और आरती शुक्ल की है, जो शादी करना चाहते हैं। लेकिन, एक दिन आरती यकायक निर्णय लेती है कि वह पहले अपने सपने पूरे करेगी। दोनों अलग हो जाते हैं। पांच साल दोनों मिलते हैं तो अजीब परिस्थितियों में। अब तक आईएएस अफसर बन गए सत्येंद्र को पीसीएस अधिकारी आरती के एक मामले की जांच सौंपी जाती है। फिल्म के बारे में रत्ना सिन्हा कहती हैं, "हम लोग पूरी कोशिश कर रहे हैं कि फिल्म दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करे।" कमल पांडेय की लिखी फिल्म शादी में ज़रूर आना रत्ना सिन्हा की पहली फिल्म है।
भावेश जोशी के लिए हर्षवर्धन कपूर ने किया बडा बदलाव
एक्टर हर्षवर्धन कपूर निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी की फिल्म भावेश
जोशी में केंद्रीय किरदार में नजर आनेवाले हैं। इस फिल्म में उनके तीन अलग अलग लुक हैं। एक लूक में वह दुबले-पतले कॉलेज जानेवाले युवा बने हैं । दुसरा लुक अधेड़ गंजे व्यक्ति के और तीसरे लुक में सुडौल और तंदुरूस्त शरीर के व्यक्ति के रूप में नज़र आएंगे । तीन अलग अलग लुक्स पाने के लिए हर्षवर्धन ने अपने शरीर में काफी मशक्कत कर बदलाव किया है । कॉलेज जानेवाले युवा के
किरदार के लिए हर्षवर्धन ने छह कार्डियो करके अपना वजन छह किलो घटाया। नकली पेट और गंजे लुक से मध्यम आयु का
किरदार निभाया । फिर सुडोल और तंदुरूस्त लुक के लिए मिक्स्ड मार्शल आर्ट फायटर एन्ड्र्यु
नील से मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग ली। शूटिंग के आखिरी हफ्ते में हर्ष को
चोट आयी थी। लेकिन उसके बावजुद १४ घंटे की शिफ्ट करके हर्ष जिम जाते रहे और
ट्रेनिंग भी करते रहे। अपने इन किरदारों के बारे में हर्षवर्धन कहते हैं, "कितनी भी लंबी शिफ्ट रहें, मैं
नियमित तौर पर जिम जाता था। फिल्म के इंटेन्स एक्शन सीन्स के लिए
मेरे मसल्स दिखने जरूरी थे। एक बार एक सीन के लिए कूदते वक्त मेरे सर पर और हाथ में दो जगह चोट
आयी थी। लेकिन फिल्म करते समय इस तरह के हादसे होते रहते हैं।"
तमिल फिल्म में विवेक ओबेरॉय का एक्शन
बॉलीवुड एक्टर विवेक
ओबेरॉय अपनी पहली तमिल फिल्म विवेगम की शूटिंग सर्बिआ में कड़ाके की ठंड में कर रहे है। इस समय सर्बिआ का तापमान
मायनस १२ डिग्री है। एक्शन थ्रिलर फिल्म
के लिए सह लेखन और निर्देशन सिवा कर रहे
है। फिल्म में दक्षिण के सितारे अजित, काजल अग्रवाल और अक्षरा हसन मुख्य भूमिका में है। फिल्म में विवेक
ओबेरॉय मुख्य खलनायक की भूमिका में है । बॉलीवुड फिल्मों में भी विवेक ओबेरॉय ने ज्यादातर एंटी हीरो किरदार किये है। फिल्म में विवेक युद्धक टैंक पर सवार हुए है। विवेक के तमाम हाई वोल्टेज स्टंट्स बेलग्रेड वायु सेना बेस
पर शून्य से १२ डिग्री काम तापमान में है । यह फिल्म १२० करोड़
बजट की लागत से बन रही है। इस फिल्म के एक्शन सीन्स वर्ल्ड के जानेमाने एक्शन डायरेक्टर और
उनके क्रू ने कोरियोग्राफ किये है।
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खबर है
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Saturday, 6 May 2017
क्या बनेगी बाहुबली ३ ?
बाहुबली द कांक्लुजन पूरी दुनिया में धूम मचाये हुए है। हिंदुस्तान की यह इकलौती फिल्म बन गई है, जिसने मात्र छह दिनों में ७८० करोड़ का ग्रॉस किया है। ट्रेड पंडितों का अनुमान है कि बाहुबली २ बॉक्स ऑफिस पर एक हजार करोड़ का ग्रॉस कर ले जाएगी। इस प्रकार से वर्ल्डवाइड ग्रॉस के मामले में फिल्म ने दंगल (७४४ करोड़) को पीछे छोड़ दिया है। अब यह पीके (७९० करोड़) से ही पीछे है। (खबर यह भी है कि बाहुबली २ का गुरुवार का फाइनल कलेक्शन शामिल करने पर फिल्म ने ७९२ करोड़ का ग्रॉस कर लिया है। यानि पीके पीछे। इस फिल्म का डब हिंदी संस्करण छः दिनों में २२१ करोड़ का ग्रॉस कर टॉप १० ग्रॉसर की लिस्ट में सलमान खान की दिवाली में रिलीज़ फिल्म प्रेम रतन धन पायो से ऊपर ९ वी पोजीशन में आ चुका है। यह फिल्म गुरुवार को शाहरुख़ खान की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस (२२७ करोड़) और सलमान खान की फिल्म किक (२३२ करोड़) के तथा शुक्रवार को हृथिक रोशन की फिल्म कृष ३ (२४४.९२ करोड़) और धूम ३ (२८४ करोड़) के ग्रॉस को पीछे छोड़ देगी। इस समय जैसा बाहुबली २ का क्रेज बना हुआ है, ट्रेड यह उम्मीद कर रहा है कि केवल दस दिनों में यह फिल्म सबसे तेज़ी से कलेक्शन करते हुए ३०० करोड़ क्लब में शामिल हो जाएगी। इस प्रकार से बाहुबली २ सलमान खान की फिल्म सुल्तान (३०१.५० करोड़) और बजरंगी भाईजान (३२१ करोड़) तथा आमिर खान की फिल्म पीके (३४०.८० करोड़) और दंगल (३८७.३८ करोड़) के ग्रॉस को जल्द ही काफी पीछे छोड़ देगी। ख़ास बात यह है कि इस हफ्ते (शुक्रवार ५ मई) बाहुबली २ को कोई भी हिंदी फिल्म चुनौती नहीं दे रही। इसका मतलब यह है कि पूरा बॉक्स ऑफिस बाहुबली २ के लिए खुला हुआ है। विदेशों में भी बाहुबली २ का डंका बजा हुआ है। यह फिल्म अब तक १५० करोड़ का ग्रॉस कर चुकी है। केवल उत्तरी अमेरिका में ही फिल्म ने ७९ करोड़ से अधिक का ग्रॉस किया है। इस प्रकार से बाहुबली २ ने दंगल के लाइफ टाइम ग्रॉस को पीछे धकेल दिया है। पिछले बुद्धवार फिल्म के निर्देशक एसएस राजामौली ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट लंदन में फिल्म की सोल्ड आउट स्क्रीनिंग में मौजूद थे। फिल्म देखने के बाद दर्शकों को लगा कि इस फ्रैंचाइज़ी का तीसरा हिस्सा भी बनाया जायेगा। यह अनुमान एन्ड क्रेडिट के दौरान के वॉयस ओवर के देख कर लगाया गया था। हालाँकि, वैरायटी के पत्रकार द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने इसे प्रशंसकों के लिए मज़ेदार चीज़ बताया था। इसके साथ ही राजामौली ने बाहुबली ३ के बनने की ओर इशारा भी कर दिया था। बाहुबली फ्रैंचाइज़ी की कहानियां राजामौली के पिता विजयेंद्र प्रसाद ने लिखी है। विजयेंद्र प्रसाद की कहानी पर ही सलमान खान की सुपर हिट फिल्म बजरंगी भाईजान बनाई गई थी। राजामौली ने बातों ही बातों में कहा, "कौन जाने मेरे पिता पहले की तरह कोई सम्मोहक कहानी ले कर आ जाये तब मैं खुद को कैसे रोक पाऊंगा। तब हम ज़रूर बनाएंगे।" जहाँ तक बाहुबली २ की विजय रथ यात्रा का सवाल है, फिल्म के निर्माता ताइवान और कोरिया पर निगाहें रख रहे है। उनका अगला लक्ष्य चीन का बाजार पकड़ना है। आमिर खान की फिल्म पीके ने चीनी बॉक्स ऑफिस पर किसी हिंदी फिल्म का सबसे ज़्यादा १२२ करोड़ का ग्रॉस किया था।यहाँ एक ख़ास बात यह कि राजामौली बड़े परदे के लिए महाभारत बनाना चाहते हैं। लेकिन, राजामौली की महाभारत अभी नहीं १० साल बाद बनेगी।
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बॉक्स ऑफिस पर
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
बाइबिल से भी प्रभावित है वॉर फॉर द प्लेनेट ऑफ़ द एप्स
जब मैट रीव्स और मार्क बॉम्बैक की निर्देशक- स्क्रीन राइटर जोड़ी को २०१४ की फिल्म डॉन ऑफ़ द प्लेनेट ऑफ़ द एप्स की कमान सौंपी गई, उस समय फिल्म की रिलीज़ की तारिख का ऐलान किया जा चुका था। ऐसे में इस जोड़ी को समय के साथ रफ़्तार पकड़नी थी। रीव्स कहते हैं, "हम पागलों की तरह काम कर रहे थे।" लेकिन इसका परिणाम काफी सुखद रहा। डॉन ऑफ़ द प्लेनेट ऑफ़ द एप्स ने वर्ल्डवाइड ७०० मिलियन डॉलर से अधिक का ग्रॉस किया। इसके साथ ही फिल्म के सीक्वल की नींव भी पड़ गई। मगर, पेंच तो अभी बाकी था। यह पेंच फॉक्स स्टूडियोज ने डाला। उन्होंने इस बार इस जोड़ी को खूब समय दिया। इस जोड़ी ने हर वह काम किया, जो एक राइटर करता है। रीव्स कहते हैं, "हमने अपनी ज़िन्दगी के बारे में बात की, ऐतिहासिक कहानियों को पढ़ा और ढेरों फ़िल्में देखी।" रीव्स-बॉम्बैक जोड़ी ने एप्स फ्रैंचाइज़ी पर बनी तमाम फ़िल्में देखी। ब्रिज ऑफ़ द रिवर क्वाई और ग्रेट एस्केप के अलावा स्क्रिप्ट को बाइबिल प्रभावित बनाने के लिए बेन हर और द टेन कमांडमेंट्स देखी। कहने का मतलब यह कि कुछ प्रभाव इसका, कुछ उसका। इन सभी को रीव्स और बॉम्बैक ने गहराई से लिया। इसलिए, जब यह जोड़ी फिल्म लिखने बैठी तो उन्हें अपनी पसंदीदा फिल्मों की प्रतिध्वनि सुनाई दे रही थी। फिल्म में बंदरों के नेता सीजर (एंडी सर्किस) और कर्नल (वुडी हर्रेलसन) के किरदार के बीच के संवाद-विवाद ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई में एलेक गिनेस के ब्रिटिश कमांडर कर्नल निकोल्सन और सेसुए हायकावा के प्रिजन कैंप के कर्नल सैतो की प्रतिध्वनि हैं। वॉर फॉर द प्लेनेट ऑफ़ द एप्स १४ जुलाई को रिलीज़ हो रही है।
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Hollywood
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जेम्स गन चाहें फिर फिर स्टैलॉन !
गार्डियंस ऑफ़ द गैलेक्सी वॉल्यूम २ में सिल्वेस्टर स्टैलॉन ने स्टाकर ओगॉर्ड का किरदार किया है। सिल्वेस्टर स्टैलॉन फिल्म देखते समय पहचान में नहीं आने वाले तमाम चेहरों के बीच आसानी से पहचाने जाते हैं। स्टैलॉन की मौजूदगी से निर्देशक जेम्स गन कुछ इतना प्रभावी हुए हैं कि वह चाहते हैं कि हर गार्डियंस फ्रैंचाइज़ी फिल्म में स्टाकर ओगॉर्ड का किरदार हो और उसे सिल्वेस्टर स्टैलॉन ही करें। अभी यह कहना मुश्किल हैं है गार्डियंस फ्रैंचाइज़ी के वॉल्यूम ३ में स्टैलॉन होंगे या नहीं, लेकिन इतना तय है कि मार्वल सिनेमेटिक यूनिवर्स की अगली फिल्मों में सिल्वेस्टर स्टैलॉन को फबने वाले किरदार रखे जाएँ। गार्डियंस ऑफ़ द गैलेक्सी के तीन वॉल्यूम में एक ही कहानी आगे बढ़ाई गई है। जैसी संभावना है, वॉल्यूम ४ का निर्माण भी होगा। लेकिन, इस वॉल्यूम से कहानी में बदलाव होगा। क्योंकि, स्टार-लार्ड, गमोरा, आदि किरदार वॉल्यूम ३ से साथ ही ख़त्म हो जायेंगे। चौथे वॉल्यूम के निर्देशन के लिए जेम्स गन उपलब्ध नहीं होंगे। लेकिन मार्वल के केविन फीज के सलाहकार जेम्स गन बन रहेंगे। ऐसे में पूरी संभावना है कि मार्वेल की भविष्य की फिल्मों में सिल्वेस्टर स्टैलॉन भी नज़र आएं।
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फिर वापस आ रहा है आम आदमी ?
जी हाँ, आम आदमी पर फ़िल्में बनने का सिलसिला शुरू हो गया है। यह आम आदमी छोटे शहर का ज़रूर है। लेकिन, तिग्मांशु धुलिया और अनुराग कश्यप की फिल्मों की तरह शातिर अपराधी या गैंगस्टर नहीं। यह आम आदमी, आम आदमी के लिए है। इन फिल्मों को आम आदमी की आम आदमी द्वारा आम आदमी पर फिल्म कहा जा सकता है।
बाहुबली से उबरने पर आम आदमी
जब तक छोटे शहरों के दर्शकों के दिलोंदिमाग से बाहुबली के भव्य सेट्स, चमकते दमकते गहनों कपड़ों और राजाओं- महाराजाओं का खुमार उतरेगा, सेल्युलाइड पर आम आदमी उनके बीच होगा। यह आम आदमी उनका जैसा दिखाई भी देगा। उनकी जैसी समस्याओं से जूझेगा। फिर भी हिम्मत नहीं हार रहा होगा। १२ मई को आम आदमी की कहानियों वाली तीन फ़िल्में मेरी प्यारी बिंदु, थोड़ी थोड़ी सी मनमानियां और हिंदी मीडियम रिलीज़ होंगी। यह शुरुआत होगी आम आदमी पर फिल्मों की। इसके अगले हफ़्तों में हाफ गर्लफ्रेंड, मुज़फ्फरनगर २०१३, वी फॉर विजय, अतिथि इन लंदन, बहन होगी तेरी, मुन्ना माइकल, बरेली की बर्फी, टॉयलेट एक प्रेम कथा, शुभ मंगल सावधान, पोस्टर बॉयज, लखनऊ सेंट्रल, लव स्क्वायर फुट, आदि टाइटल वाली फ़िल्में रिलीज़ होने जा रही हैं। यह सभी फ़िल्में आम आदमी की परेशानियों और दुश्वारियों का खट्टा मीठा दुःख बयान करती हैं। कोई शक नहीं अगर इन फिल्मों को देखते समय दर्शक किसी फिल्म में खुद को पाए।
आम आदमी की कैसी कैसी कहानियां
आम आदमी की फिल्मों के सन्दर्भ में एक दिलचस्प बात यह है कि यह फ़िल्में किसी ख़ास राजनीतिक लाइन पर बनी भ्रष्टाचार गाथा नहीं है। इन फिल्मों का कैनवास काफी बड़ा है। शायद ही कोई पहलू बचा हो, जिसे इन फिल्मों ने न छुआ हो। मेरी प्यारी बिंदु एक लेखक की कहानी है, जो उतना सफल नहीं हो पाता, जितना वह खुद को समझता है। निराश हो कर वह अपने देश कलकत्ता वापस चला जाता है। वहां वह लिखना शुरू करता है कहानी आम ज़िन्दगी की, अपनी प्यारी बिंदु की। थोड़ी थोड़ी सी मनमानियां एक बच्चे पर उसकी माँ की आशाओं और अपेक्षाओं की हैं। माँ चाहती है कि उसका बेटा संगीत की दुनिया में सफल बने और उसके सपने पूरे हों। हिंदी मीडियम और हाफ गर्लफ्रेंड का विषय तो बहुत कुछ आम आदमी की भाषाई परेशानी वाला है। यह परेशानी है अंग्रेजी न जानने और बोल पाने की। इस कहानी को एक परिवार और एक बिहारी प्रेमी के माध्यम से कहा गया है। मुज़फ्फर नगर २०१३ रियल लाइफ फिल्म है। २०१३ के मुज़फ्फरनगर दंगों में किस प्रकार से युवा राजनीतिक पैंतरेबाज़ी का शिकार होते हैं। वी फॉर विक्ट्री गरीबी की कहानी है। छोटू को उसका मज़दूर पिता पढ़ाना लिखाना चाहता है। लेकिन, एक दिन पिता ऐसा बीमार पड़ जाता है कि परिवार की देखभाल के लिए छोटू को मज़दूरी करनी पड़ती है। अतिथि इन लंदन का कैनवास आधुनिक है, लंदन की पृष्ठभूमि पर है। लेकिन कहानी वही आम आदमी की है। यकायक आ टपकते मेहमानों से कौन नहीं त्रस्त है। बहन होगी तेरी लखनऊ के एक लडके के क्रिकेट प्रेम और रोमांस की कहानी है। मुन्ना माइकल एक स्ट्रीट डांसर है। उसका आदर्श माइकल जैक्सन है। वह भी माइकल जैक्सन की तरह डांसर बनना चाहता है। उसे एक दिन मौक़ा मिल ही जाता है। टाइटल से इतर बरेली की बर्फी लखनऊ में प्रिंटिंग प्रेस में काम करने वाले लोगों की कहानी है। इसमें प्रेम की मिठास बेशक है। टॉयलेट एक प्रेम कथा प्रधान मंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के समर्थन में गाँव में टॉयलेट के निर्माण की प्रेरक और दिलचस्प कहानी है। शुभ मंगल सावधान आम शादियों की रस्मों को लेकर है। यह एक तमिल फिल्म का रीमेक है। लखनऊ सेंट्रल कहानी है जेल में बंद कैदियों की। फिल्म में फरहान अख्तर का किरदार कैदियों के साथ मिल कर एक रॉक बैंड बनाता है। लव पर स्क्वायर फुट एक लड़का लड़की की कहानी है, जो मुंबई में मकान पाने के लिए परेशान हैं।
रुपहले परदे पर आम आदमी के चेहरे
इसमें कोई शक नहीं कि हिंदी फ़िल्में आम आदमी की ज़िंदगी के हर पहलू को छू रही है। अब केवल गरीबी और भ्रष्टाचार ही मुद्दा नहीं रहा। आम आदमी की बहुत सी दूसरी परेशानियां है। यह फिल्म में कैसे उभर कर आती हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। लेकिन, उससे ज़्यादा महत्वपूर्ण है आम आदमी को परदे पर उतारने वाले चेहरे। कभी बलराज साहनी और उनके साथ निरुपा रॉय आम आदमी के प्रतिनिधित्व किया करते थे। बाद में अमोल पालेकर ने आम आदमी को परदे पर उतारा।
हिंदी मीडियम में इरफ़ान खान चांदनी चौक के साड़ी विक्रेता की भूमिका कर रहे हैं। उनकी और उनकी पत्नी की समस्या यह है कि उन्हें इंग्लिश नहीं आती। इसलिए वह ऊंची सोसाइटी में उठ बैठ नहीं पाते। इस फिल्म में उनका साथ पाकिस्तान की सबा क़मर दे रही हैं। इरफ़ान खान आम आदमी का चेहरा है। अलबत्ता उनके चेहरे के साथ हॉलीवुड फ़िल्में जुड़ चुकी है। मेरी प्यारी बिंदु, बरेली की बर्फी और शुभ मंगल सावधान में आयुष्मान खुराना आम आदमी का चेहरा है। शुभ मंगल सावधान में आयुष्मान का साथ भूमि पेंडणेकर दे रही हैं तो बरेली की बर्फी में कृति सेनन जैसी सेक्सी अभिनेत्री उनकी जोड़ीदार हैं। मेरी प्यारी बिंदु में आयुष्मान के अभिमन्यु की बिंदु परिणीति चोपड़ा हैं। अपनी पहली फिल्म विक्की डोनर से आयुष्मान ने खुद को आम आदमी का चेहरा बना कर ही पेश किया था। बरेली की बर्फी में प्रेस में काम करने वाले कामगार का आम सा किरदार राजकुमार राव ने किया है। बहन होगी तेरी में भी वह लखनऊ की सडकों पर क्रिकेट खेलने वाले लडके के किरदार में हैं। इस फिल्म में उनकी नायिका ग्लैमरस श्रुति हासन है।
बड़े और बिकाऊ आम आदमी के चेहरे
यह फिल्म निर्माता पर निर्भर करता है कि वह अपनी फिल्म का कैनवास कितना बड़ा रखना चाहता है। अगर एक सौ करोड़ की कमाई की चाहत है तो हिन्दू फिल्मों का कोई स्टार या सुपर स्टार ज़रूरी है। मसलन, अक्षय कुमार को ही लीजिये। वह आदमी का चेहरा बनते रहते हैं। इसी साल रिलीज़ निर्देशक सुभाष कपूर की फिल्म जॉली एलएलबी २ में अक्षय कुमार ने लखनऊ के एक धूर्त वकील का किरदार किया था। इस किरदार को मूल फिल्म में अरशद वारसी ने किया था। अब अक्षय कुमार गाँव की कहानी टॉयलेट एक प्रेम कथा में गाव वालों को खुले में शौच न करने और घरों में शौचालय बनाने के लिए प्रेरित करने वाले आम आदमी बने हैं। फिल्म में दम लगा के हईशा की नायिका भूमि पेंडेकर वह फिल्म पैडमैन में स्त्रियों के लिए सेनेटरी पैड की ईज़ाद करने वाले रियल लाइफ करैक्टर बने हैं। इसी श्रेणी में अभिनेता टाइगर श्रॉफ को भी रखा जा सकता है। कमर्शियल फिल्मों का यह सफल चेहरा फिल्म मुन्ना माइकल में स्ट्रीट डांसर का किरदार कर रहा है। हाफ गर्लफ्रेंड अंग्रेजी न जानने वाले एक आम बिहारी की कहानी है। लेकिन, इस आम आदमी के लिए निर्देशक मोहित सूरी को अर्जुन कपूर ही पसंद आये। उनका साथ उनसे ज़्यादा ग्लैमरस अभिनेत्री श्रद्धा कपूर दे रही हैं। अब आप ही बताइएं पोस्टर बॉयज में पोस्टर पर आम आदमी बने सनी देओल आपको कैसे लगेंगे ? निखिल अडवाणी की फिल्म लखनऊ सेंट्रल में फरहान अख्तर, डायना पेंटी और गिप्पी ग्रेवाल ने आम किरदार किये हैं।
आम आदमी के कुछ नए चेहरे
फिल्म थोड़ी थोड़ी सी मनमानियां में अर्श सेहरावत संगीत की दुनिया में चमक कर माँ का स्वप्न पूरा करने की चाहत रखने वाले आम आदमी बने हैं। वी फॉर विक्ट्री के तमाम चेहरे बिलकुल नए हैं। मुज़फ्फरनगर २०१३ में मुर्सलीम कुरैशी, ऐश्वर्या देवन, एकांश भरद्वाज, देव शर्मा, आदि बिलकुल नए चेहरे कस्बाई युवाओं की भूमिका में हैं। अतिथि इन लंदन में परेश रावल के साथ कृति खरबंदा और कार्तिक आर्यन के कम पहचाने चेहरे आम आदमी का चेहरा बने हैं। लव पर स्क्वायर फुट के दो मुख्य किरदार विक्की कौशल और अंगिरा धर हैं। इन नवोदित चेहरों ने खुद को किरमार में कैसा ढाला है, यही देखना ख़ास होगा।
आम आदमी पर फिल्मों की लिस्ट यहीं ख़त्म नहीं होती। आम आदमी की ढेरों कहानियां इंतज़ार कर रही हैं, परदे पर उतरने का और उन्हें उतारने वाले फिल्मकार का। लेकिन, खेद की बात यही है कि आम आदमी पर आम आदमी के लिए आम आदमी की फिल्म को देखना आम आदमी भी पसंद नहीं करता। क्यों नहीं मिलता सेलुलाइड के आम आदमी को रियल लाइफ के आम आदमी का प्यार ?
बाहुबली से उबरने पर आम आदमी
जब तक छोटे शहरों के दर्शकों के दिलोंदिमाग से बाहुबली के भव्य सेट्स, चमकते दमकते गहनों कपड़ों और राजाओं- महाराजाओं का खुमार उतरेगा, सेल्युलाइड पर आम आदमी उनके बीच होगा। यह आम आदमी उनका जैसा दिखाई भी देगा। उनकी जैसी समस्याओं से जूझेगा। फिर भी हिम्मत नहीं हार रहा होगा। १२ मई को आम आदमी की कहानियों वाली तीन फ़िल्में मेरी प्यारी बिंदु, थोड़ी थोड़ी सी मनमानियां और हिंदी मीडियम रिलीज़ होंगी। यह शुरुआत होगी आम आदमी पर फिल्मों की। इसके अगले हफ़्तों में हाफ गर्लफ्रेंड, मुज़फ्फरनगर २०१३, वी फॉर विजय, अतिथि इन लंदन, बहन होगी तेरी, मुन्ना माइकल, बरेली की बर्फी, टॉयलेट एक प्रेम कथा, शुभ मंगल सावधान, पोस्टर बॉयज, लखनऊ सेंट्रल, लव स्क्वायर फुट, आदि टाइटल वाली फ़िल्में रिलीज़ होने जा रही हैं। यह सभी फ़िल्में आम आदमी की परेशानियों और दुश्वारियों का खट्टा मीठा दुःख बयान करती हैं। कोई शक नहीं अगर इन फिल्मों को देखते समय दर्शक किसी फिल्म में खुद को पाए।
आम आदमी की कैसी कैसी कहानियां
आम आदमी की फिल्मों के सन्दर्भ में एक दिलचस्प बात यह है कि यह फ़िल्में किसी ख़ास राजनीतिक लाइन पर बनी भ्रष्टाचार गाथा नहीं है। इन फिल्मों का कैनवास काफी बड़ा है। शायद ही कोई पहलू बचा हो, जिसे इन फिल्मों ने न छुआ हो। मेरी प्यारी बिंदु एक लेखक की कहानी है, जो उतना सफल नहीं हो पाता, जितना वह खुद को समझता है। निराश हो कर वह अपने देश कलकत्ता वापस चला जाता है। वहां वह लिखना शुरू करता है कहानी आम ज़िन्दगी की, अपनी प्यारी बिंदु की। थोड़ी थोड़ी सी मनमानियां एक बच्चे पर उसकी माँ की आशाओं और अपेक्षाओं की हैं। माँ चाहती है कि उसका बेटा संगीत की दुनिया में सफल बने और उसके सपने पूरे हों। हिंदी मीडियम और हाफ गर्लफ्रेंड का विषय तो बहुत कुछ आम आदमी की भाषाई परेशानी वाला है। यह परेशानी है अंग्रेजी न जानने और बोल पाने की। इस कहानी को एक परिवार और एक बिहारी प्रेमी के माध्यम से कहा गया है। मुज़फ्फर नगर २०१३ रियल लाइफ फिल्म है। २०१३ के मुज़फ्फरनगर दंगों में किस प्रकार से युवा राजनीतिक पैंतरेबाज़ी का शिकार होते हैं। वी फॉर विक्ट्री गरीबी की कहानी है। छोटू को उसका मज़दूर पिता पढ़ाना लिखाना चाहता है। लेकिन, एक दिन पिता ऐसा बीमार पड़ जाता है कि परिवार की देखभाल के लिए छोटू को मज़दूरी करनी पड़ती है। अतिथि इन लंदन का कैनवास आधुनिक है, लंदन की पृष्ठभूमि पर है। लेकिन कहानी वही आम आदमी की है। यकायक आ टपकते मेहमानों से कौन नहीं त्रस्त है। बहन होगी तेरी लखनऊ के एक लडके के क्रिकेट प्रेम और रोमांस की कहानी है। मुन्ना माइकल एक स्ट्रीट डांसर है। उसका आदर्श माइकल जैक्सन है। वह भी माइकल जैक्सन की तरह डांसर बनना चाहता है। उसे एक दिन मौक़ा मिल ही जाता है। टाइटल से इतर बरेली की बर्फी लखनऊ में प्रिंटिंग प्रेस में काम करने वाले लोगों की कहानी है। इसमें प्रेम की मिठास बेशक है। टॉयलेट एक प्रेम कथा प्रधान मंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के समर्थन में गाँव में टॉयलेट के निर्माण की प्रेरक और दिलचस्प कहानी है। शुभ मंगल सावधान आम शादियों की रस्मों को लेकर है। यह एक तमिल फिल्म का रीमेक है। लखनऊ सेंट्रल कहानी है जेल में बंद कैदियों की। फिल्म में फरहान अख्तर का किरदार कैदियों के साथ मिल कर एक रॉक बैंड बनाता है। लव पर स्क्वायर फुट एक लड़का लड़की की कहानी है, जो मुंबई में मकान पाने के लिए परेशान हैं।
रुपहले परदे पर आम आदमी के चेहरे
इसमें कोई शक नहीं कि हिंदी फ़िल्में आम आदमी की ज़िंदगी के हर पहलू को छू रही है। अब केवल गरीबी और भ्रष्टाचार ही मुद्दा नहीं रहा। आम आदमी की बहुत सी दूसरी परेशानियां है। यह फिल्म में कैसे उभर कर आती हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। लेकिन, उससे ज़्यादा महत्वपूर्ण है आम आदमी को परदे पर उतारने वाले चेहरे। कभी बलराज साहनी और उनके साथ निरुपा रॉय आम आदमी के प्रतिनिधित्व किया करते थे। बाद में अमोल पालेकर ने आम आदमी को परदे पर उतारा।
हिंदी मीडियम में इरफ़ान खान चांदनी चौक के साड़ी विक्रेता की भूमिका कर रहे हैं। उनकी और उनकी पत्नी की समस्या यह है कि उन्हें इंग्लिश नहीं आती। इसलिए वह ऊंची सोसाइटी में उठ बैठ नहीं पाते। इस फिल्म में उनका साथ पाकिस्तान की सबा क़मर दे रही हैं। इरफ़ान खान आम आदमी का चेहरा है। अलबत्ता उनके चेहरे के साथ हॉलीवुड फ़िल्में जुड़ चुकी है। मेरी प्यारी बिंदु, बरेली की बर्फी और शुभ मंगल सावधान में आयुष्मान खुराना आम आदमी का चेहरा है। शुभ मंगल सावधान में आयुष्मान का साथ भूमि पेंडणेकर दे रही हैं तो बरेली की बर्फी में कृति सेनन जैसी सेक्सी अभिनेत्री उनकी जोड़ीदार हैं। मेरी प्यारी बिंदु में आयुष्मान के अभिमन्यु की बिंदु परिणीति चोपड़ा हैं। अपनी पहली फिल्म विक्की डोनर से आयुष्मान ने खुद को आम आदमी का चेहरा बना कर ही पेश किया था। बरेली की बर्फी में प्रेस में काम करने वाले कामगार का आम सा किरदार राजकुमार राव ने किया है। बहन होगी तेरी में भी वह लखनऊ की सडकों पर क्रिकेट खेलने वाले लडके के किरदार में हैं। इस फिल्म में उनकी नायिका ग्लैमरस श्रुति हासन है।
बड़े और बिकाऊ आम आदमी के चेहरे
यह फिल्म निर्माता पर निर्भर करता है कि वह अपनी फिल्म का कैनवास कितना बड़ा रखना चाहता है। अगर एक सौ करोड़ की कमाई की चाहत है तो हिन्दू फिल्मों का कोई स्टार या सुपर स्टार ज़रूरी है। मसलन, अक्षय कुमार को ही लीजिये। वह आदमी का चेहरा बनते रहते हैं। इसी साल रिलीज़ निर्देशक सुभाष कपूर की फिल्म जॉली एलएलबी २ में अक्षय कुमार ने लखनऊ के एक धूर्त वकील का किरदार किया था। इस किरदार को मूल फिल्म में अरशद वारसी ने किया था। अब अक्षय कुमार गाँव की कहानी टॉयलेट एक प्रेम कथा में गाव वालों को खुले में शौच न करने और घरों में शौचालय बनाने के लिए प्रेरित करने वाले आम आदमी बने हैं। फिल्म में दम लगा के हईशा की नायिका भूमि पेंडेकर वह फिल्म पैडमैन में स्त्रियों के लिए सेनेटरी पैड की ईज़ाद करने वाले रियल लाइफ करैक्टर बने हैं। इसी श्रेणी में अभिनेता टाइगर श्रॉफ को भी रखा जा सकता है। कमर्शियल फिल्मों का यह सफल चेहरा फिल्म मुन्ना माइकल में स्ट्रीट डांसर का किरदार कर रहा है। हाफ गर्लफ्रेंड अंग्रेजी न जानने वाले एक आम बिहारी की कहानी है। लेकिन, इस आम आदमी के लिए निर्देशक मोहित सूरी को अर्जुन कपूर ही पसंद आये। उनका साथ उनसे ज़्यादा ग्लैमरस अभिनेत्री श्रद्धा कपूर दे रही हैं। अब आप ही बताइएं पोस्टर बॉयज में पोस्टर पर आम आदमी बने सनी देओल आपको कैसे लगेंगे ? निखिल अडवाणी की फिल्म लखनऊ सेंट्रल में फरहान अख्तर, डायना पेंटी और गिप्पी ग्रेवाल ने आम किरदार किये हैं।
आम आदमी के कुछ नए चेहरे
फिल्म थोड़ी थोड़ी सी मनमानियां में अर्श सेहरावत संगीत की दुनिया में चमक कर माँ का स्वप्न पूरा करने की चाहत रखने वाले आम आदमी बने हैं। वी फॉर विक्ट्री के तमाम चेहरे बिलकुल नए हैं। मुज़फ्फरनगर २०१३ में मुर्सलीम कुरैशी, ऐश्वर्या देवन, एकांश भरद्वाज, देव शर्मा, आदि बिलकुल नए चेहरे कस्बाई युवाओं की भूमिका में हैं। अतिथि इन लंदन में परेश रावल के साथ कृति खरबंदा और कार्तिक आर्यन के कम पहचाने चेहरे आम आदमी का चेहरा बने हैं। लव पर स्क्वायर फुट के दो मुख्य किरदार विक्की कौशल और अंगिरा धर हैं। इन नवोदित चेहरों ने खुद को किरमार में कैसा ढाला है, यही देखना ख़ास होगा।
आम आदमी पर फिल्मों की लिस्ट यहीं ख़त्म नहीं होती। आम आदमी की ढेरों कहानियां इंतज़ार कर रही हैं, परदे पर उतरने का और उन्हें उतारने वाले फिल्मकार का। लेकिन, खेद की बात यही है कि आम आदमी पर आम आदमी के लिए आम आदमी की फिल्म को देखना आम आदमी भी पसंद नहीं करता। क्यों नहीं मिलता सेलुलाइड के आम आदमी को रियल लाइफ के आम आदमी का प्यार ?
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फिल्म पुराण
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Friday, 5 May 2017
यूरोपियन फिल्मों से जर्मन पॉप सिंगर बनने वाली डलियाह लावी
जेम्स बांड की स्पूफ फिल्म कैसिनो रोयले और द साइलेंसर की इसरायली अभिनेत्री डलियाह लावी का ७४ साल की उम्र में निधन हो गया। डलियाह लावी को फिल्मों में लाने का श्रेय किर्क डगलस को जाता है। डलियाह लावी अपनी १०वी वर्षगाँठ के जश्न के मौके पर किर्क डगलस से मिली थी। जो उस समय अपनी फिल्म द जगलर की शूटिंग लावी के शहर (तब के फलस्तीनी और अब इजराइल में) शावै तज़िओं में कर रहे थे। उन्होंने लावी की बैले की शिक्षा का प्रबंध कर दिया। इसके दस साल बाद डलियाह लावी ने किर्क डगलस के साथ फिल्म टू वीक्स इन अनदर टाउन (१९६२) में अभिनय किया था। इस फिल्म के लिए लावी को मोस्ट प्रोमिसिंग न्यूकमर का गोल्डन ग्लोब अवार्ड मिला था। लेकिन, इस फिल्म से पहले ही डलियाह लावी यूरोपियन फिल्मों में अभिनय करने लगी थी। वह कई भाषाओं को धारा प्रवाह बोल सकती थी। उन्होंने जर्मन, फ्रेंच, इटेलियन स्पेनिश और इंग्लिश फिल्मों में अभिनय किया। लावी, डलियाह लेइनबक का रंगमंच का दिया नाम था। इस नाम का मतलब हिब्रू भाषा में शेरनी होता है। लावी ने द रिटर्न ऑफ़ डॉक्टर माबूसे (१९६१), द डेमों (१९६३) और द व्हिप एंड द बॉडी (१९६३) जैसी यूरोपियन फिल्मों में अभिनय किया। इसके बाद वह रिचर्ड ब्रूक की एडवेंचर फिल्म लार्ड जिम की द गर्ल के बतौर मशहूर हो गई। अगाथा क्रिस्टी की फिल्म रीमेक टेन लिटिल इंडियंस (१९६५) में अभिनेत्री इलोना बर्जेन का किरदार किया। उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्मों में दोज फैंटास्टिक फ्लाइंग फूल्स, नोबडी रन्स फॉरएवर और कैलोव उल्लेखनीय हैं। १९७० की शुरुआत में उन्होंने संगीत की ओर रुख किया। उनके जर्मन एल्बम व्हेन आर यू कमिंग और डू यू वांट टू गो विथ मी? को बड़ी सफलता मिली। उनका अंतिम संस्कार इजराइल में किया गया।
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श्रद्धांजलि
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Thursday, 4 May 2017
श्रीदेवी की मॉम में नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी का लुक
अभी ज़ी स्टूडियोज ने श्रीदेवी की फिल्म मॉम का फर्स्ट लुक पोस्टर रिलीज़ किया। लेकिन इस पोस्टर में श्रीदेवी के बजाय अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी का चेहरा नज़र आ रहा था। पर पोस्टर में नवाज़उद्दीन को पहचानना भी आसान नहीं था। मेकअप के ज़रिये उनका चेहरा अनजाना सा लग रहा था। यह प्रोस्थेटिक मेकअप का कमाल था। कोई दो हफ्ता पहले राजकुमार राव का फिल्म राब्ता का एक फर्स्ट लुक जारी हुआ था। ३२४ साल के बूढ़े आदमी के मेकअप में राजकुमार राव पहचाने नहीं जा रहे थे। कुछ वैसा ही मॉम में नवाज़ुद्दीन का लुक नज़र आता है। श्रीदेवी की फिल्म में नवाज़ुद्दीन के रोल का खुलासा नहीं किया गया है। खुद नवाज़ भी कुछ बताना नहीं चाहते। लेकिन,वह अपने मेकअप के बारे में ज़रूर बताते हैं। वह कहते हैं, "मुझसे जब फिल्म के लिए एप्रोच किया गया तो मैं श्रीदेवी के साथ फिल्म को न नहीं कर सकता था। मैं बहुत उत्साहित था। ख़ास तौर पर अपने लुक के बारे में जान कर । क्योंकि यह मेरे लिए कुछ अलग करने और अलग दिखने का मौका था।" श्रीदेवी, नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी और अक्षय खन्ना की फिल्म मॉम हिंदी, तमिल, तेलुगु और मलयालम में ७ जुलाई को रिलीज़ हो रही है।
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हस्तियां
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प्रियंका चोपड़ा क्यों बनी बेवाच की विलेन !
प्रियंका चोपड़ा अच्छी तरह से जानती हैं कि बुरे किरदार खेल कर, कितनी शोहरत पाई जा सकती है। २००४ में अब्बास मुस्तान की फिल्म ऐतराज में सोनिया राय का खल किरदार करके प्रियंका चोपड़ा ने खुद के सेक्स अपील को भी साबित किया था और अच्छे अभिनय के लिए सराहना भी प्राप्त की थी। इस फिल्म के लिए वह फिल्मफेयर अवार्ड्स में सह नायिका और खल नायिका की श्रेणी में नामांकित हुई थी। उन्होंने श्रेष्ठ खल नायिका का फिल्मफेयर अवार्ड जीता भी। खल किरदार के इस करिश्मे को प्रियंका चोपड़ा ने हॉलीवुड में भी दोहराया। प्रियंका चोपड़ा ने एबीसी के शो क्वांटिको में एफबीआई एजेंट से खून-खराबा करने वाली अलेक्स परीश के कमोबेश निगेटिव किरदार को किया, जो आतंकवादियों के खतरे से न्यू यॉर्क शहर ही नहीं, दुनिया को बचा ले जाती है। इस रोल के लिए उन्हें पूरे अमेरिका में पहचाना जाने लगा। इसी पहचान का तकाज़ा था, अमेरिकन टेलीविज़न पर बेहद पॉपुलर सीरीज बेवॉच का फिल्म संस्करण बेवॉच। समुद्र के किनारे घूम घूम कर, डूबते या किसी संकट में फंसे लोगों को बचाने वाले लाइफ गार्ड्स की इस कहानी में प्रियंका चोपड़ा एक निगेटिव किरदार विक्टोरिया लीडस् को कर रही हैं। यह किरदार बेहद धनी और अति महत्वकांक्षी औरत का है। वह समुद्र तट का उपयोग ड्रग स्मगलिंग के लिए करती है। इसमें उसका टकराव होता है मिच बुचनान (ड्वेन जॉनसन) और मैट ब्रॉडी (ज़क एफ्रोन) से। वह कितनी ताक़तवर है, इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि एक दूसरे के विरोधी मिच और मैट को मिल कर काम करना पड़ता है। प्रियंका चोपड़ा अपने इस किरदार को महिला सशक्तिकरण से जोड़ती हैं, "यह करैक्टर औरत को साबित करता है। पुरुषों की दुनिया में वह एक औरत है। वह पैसों के सहारे बनी अमीर औरत नहीं। वह सेल्फ-मेड है। उसके लिए महत्वपूर्ण ड्रग और दौलत नहीं, बल्कि ताक़त है। इसी लिए मैंने इस किरदार को किया।" बताते चलें कि पहले इस किरदार को किसी पुरुष एक्टर के लिए लिखा गया था। परन्तु, निर्देशक सेठ गॉर्डन को ऐसा लगा कि प्रियंका चोपड़ा ज़्यादा बढ़िया चुनाव हो सकती है। प्रियंका चोपड़ा ने प्रस्ताव मिलते ही इसे मंज़ूर कर लिया। फिल्म को स्वीकार करने के पीछे बचपन भी छुपा था। प्रियंका चोपड़ा ने याद करते हुए कहा था, "मैं और मॉम की पसंदीदा सीरीज थी बेवॉच। मुझे सीरीज का थीम सांग पसंद था।" दर्शक प्रियंका चोपड़ा को विक्टोरिया लीडस् के किरदार में २५ मई से देख सकेंगे, जब फ़िल्म बेवॉच भारत में रिलीज़ होगी।
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गर्मागर्म
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Wednesday, 3 May 2017
अमिताभ ने ‘सरकार 3’ के लिए गाई गणेश आरती
बॉलीवुड
के मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने आगामी फिल्म ‘सरकार 3’ में
एक गणेश आरती के लिए अपनी आवाज दी है. फिल्मकार रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘सरकार’ की
तीसरी कड़ी में भी 74 वर्षीय अभिनेता ‘सुभाष नागरे’ के
किरदार को निभाते दिखेंगे. यह
रामगोपाल वर्मा की सरकार सीरीज की तीसरी फिल्म है। खास चीज है फिल्म में शामिल
गणपति बप्पा की आरती जिसे खुद अमिताभ बच्चन ने आवाज दी है। इस गाने को रोहन विनायक
ने कंपोज किया है। इस गाने की शूटिंग मुंबई के एक बीच पर की गई। इसमें गणपति बप्पा
के विसर्जन का सीन फिल्माया गया है। जिसमें बप्पा की एक विशाल मूर्ति दिखाई गई है।
इस
गाने के बारे में बात करते हुए अमिताभ बच्चन ने बताया, गणेश
आरती में कुछ ऐसा है जो आपने अंदर एक अच्छी भावना पैदा करना है। यह अलग और देर तक
दिमाग में रहने वाला है। संत रामदास ने इस आरती को 16वीं सदी में राग जोगिया में
बनाया था। गाने के बोल मराठी में हैं। जिस तरह से आरती बनाई गई है वह भाषा के सभी
बंधनों को तोड़ती है। मैं अपने आप को बहुत खास मानता हूं कि मुझे आरती गाने का
मौका मिल। मैंने सिद्धिविनायक में भी आरती गाई थी। जब मैंने इस बारे में राम गोपाल
वर्मा से बात की तो मैंने उन्हें सुझाया कि क्यों ना हम फिल्म के लिए भी कुछ ऐसा
करें। हमने इसे एक अलग टोन दी है। लेकिन इसके भाव वही हैं। फिल्म
का पहला पार्ट साल 2005 में आया थो जो काफी लोकप्रिया हुआ था। उस फिल्म में
एक्ट्रेस कैटरीना कैफ और अभिषेक बच्चन मुख्य किरदार में थे। इस फिल्म का दूसरा
पार्ट 2008 में रिलीज किया गया जिसमें में अभिषेक बच्चन के अपोजिट ऐश्वर्या राय
बच्चन भी नजर आईं। दोनों ही फिल्मों ने बॉक्स आॅफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया था।
इस
बार फिल्म की स्टार कास्ट में भी काफी बदलवा है। सरकार 3 में फिल्म में एक बार फिर
अमिताभ सुभाष नागर के किरदार में होंगे और अमिताभ बच्चन के अलावा रोनित रॉय, जैकी
श्रॉफ, मनोज वाजपेयी, अमित साध और
यामी गौतम प्रमुख भूमिकाएं निभा रहे हैं। काबिल एक्ट्रेस यामी गौतम भी अब तक
रोमांटिक रोल निभाती आई हैं लेकिन सरकार 3 में वह पहली बार नेगेटिव किरदार में नजर
आएंगी।
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Monday, 1 May 2017
विक्रम भट्ट : सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया !
हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में फिल्म निर्माता-निर्देशक विक्रम भट्ट ने क़ुबूल किया है कि उन्होंने सुष्मिता सेन के लिए अपनी बीवी और बच्चों को धोखा दिया, उन्हें दुःख पहुंचाया। विक्रम भट्ट बात कर रह थे, उस दौर की जब वह गुलाम से पॉपुलर नहीं हुए थे। उनकी टेली फिल्म जनम पसंद की गई थी, उन्हें सराहना मिली थी। लेकिन, उनके द्वारा निर्देशित फ़िल्में मदहोश, गुनहगार, बम्बई का बाबू और फरेब फ्लॉप हो चुकी थी। उसी दौरान, महेश भट्ट एक फिल्म दस्तक निर्देशित कर रहे थे। इस फिल्म के लेखक विक्रम भट्ट ही थे। इस फिल्म की नायिका १९९४ की मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन थी। फिल्म के निर्माण के दौरान २१ साल की सुष्मिता सेन के साथ २७ साल के विक्रम भट्ट का रोमांस गर्म होने लगा। विक्रम भट्ट मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन के प्रेमी के बतौर पहचाने जाने लगे। उन्होंने मैगज़ीन के सामने क़बूल किया कि वह उस समय तक सुष्मिता सेन के प्रेमी के बतौर ही पहचाने जाते थे। गुलाम रिलीज़ नहीं हुई थी। मोहब्बत के इसी नशे में पत्नी गायत्री को बिलकुल भूल गए। दस्तक बुरी तरह से फ्लॉप हो गई। सुष्मिता सेन को समझ में आ गया कि वह विक्रम भट्ट के साथ अपना समय बर्बाद कर रही हैं। वह विक्रम भट्ट को रानी मुख़र्जी के साथ गुलाम बनाते छोड़ कर आगे बढ़ ली। विक्रम भट्ट भी सुष्मिता सेन की बेवफाई को लिसा रे, बिपाशा बासु, अमीषा पटेल, आदि अपनी फिल्मों की अभिनेत्रियों की वफ़ा में ढूंढने लगे। अब २१ साल बाद, जब वह हिट-फ्लॉप फिल्मों के चक्कर से उबर चुके हैं, विक्रम भट्ट को लग रहा है कि उन्होंने अपनी गृहस्थी खुद ही बर्बाद कर ली। पता नहीं अभी तक अविवाहित सुष्मिता सेन क्या सोचती होंगी !
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Sushmita Sen,
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