शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे के जीवन पर,
अभिजीत पनसे की फिल्म ठाकरे कल रिलीज़ हो रही है। इस फिल्म में बालासाहेब ठाकरे की भूमिका एक्टर
नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने की है।
२०१९ के गणतंत्र दिवस पर रिलीज़ हो रही फिल्म ठाकरे का,
शिवसेना के लिए महत्व है। बाल ठाकरे की, १७ नवंबर
२०१२ को मृत्यु के बाद,
सेना की कमान उनके बेटे उद्धव
ठाकरे के हाथ में आ गई। शिवसेना से,
कजिन राज ठाकरे निकल गए। उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली।
बाल
ठाकरे, हिन्दू ह्रदय सम्राट कहलाते थे। शिवसेना की
कमान सम्हालने के बाद उद्धव ठाकरे हिन्दू टैग से हटते चले गए। वह कमज़ोर नेता थे। इसलिए उनका दूसरी
हिन्दू पार्टी भारतीय जनता पार्टी से अलगाव बढ़ता चला गया। उद्धव ने खुद को सेक्युलर सांचे में ढालने की
कलाबाज़ियां भी खाई। लेकिन,
इससे शिवसेना को नुकसान ही हुआ। क्या यह फिल्म इसकी भरपाई कर पाएगी ?
ऐसे माहौल में, ठाकरे रिलीज़ हो रही है। फिल्म की टोन ठेठ हिन्दू जैसी है। लेकिन, दक्षिण भारतीय विरोधी। रील लाइफ ठाकरे के पीछे चलता एक मुस्लिम किरदार,
ठाकरे को सेक्युलर दिखाने की कोशिश लगती है। यानि काफी घालमेल है। तो क्या ठाकरे, शिवसेना को
एक बार फिर हिन्दू पार्टी के रूप में स्थापित कर पाएगी ?
क्या शिवसेना की महाराष्ट्र में
वापसी होगी ?
यह सभी और इस जैसे कई सवाल फिल्म देखते समय दर्शकों के जेहन
में आएंगे। इस फिल्म का निर्माण शिवसेना
सांसद संजय राउत ने किया है। वह एक बारे फिर शिवसेना को हिन्दू पार्टी साबित करने की फिराक में होंगे।
परन्तु बड़ा सवाल यह है कि क्या यह फिल्म दर्शकों को आकर्षित भी कर पाएगी ?
इस फिल्म से शिवसेना और बालठाकरे के मराठी जनमानस पर बचेखुचे प्रभाव का
पता चलेगा। फिल्म का,
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
पर फिल्म मणिकर्णिका द क्वीन झाँसी से हो
रहा है। क्या,
ठाकरे का चरित्र लक्ष्मी बाई के व्यक्तित्व से उबर पायेगा? बालठाकरे को महाराष्ट्र में पूजा जाता
होगा। लेकिन,
दूसरे प्रांतों में वह कोई प्रभाव नहीं रखते।
उन्हें आज भी दक्षिण भारतीय और दक्षिण भारतीय विरोधी माना जाता है। ऐसे में
यह फिल्म महाराष्ट्र के बाहर कितने थिएटर और दर्शक पाएगी,
इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है।
देखिये,क्या होता है कल के बाद !
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