१० जनवरी को रिलीज़ निर्देशक मेघना गुलजार की फिल्म छपाक, तेज़ाब के
हमले की शिकार लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर फिल्म है। यह फिल्म इस लड़की के हमले के
घावों से उबरने की कहानी है। फिल्म में ग्लैमर के खिलाफ, एक एसिड
विक्टिम की भूमिका कर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने हिम्मत दिखाई थी। एक आम लड़की के
संघर्ष वाले कथानक के कारण यह फिल्म जनमानस को आंदोलित कर सकती थी, लेकिन
दीपिका पादुकोण के एक गलत कदम ने इसे जनमानस से दूर कर दिया। दीपिका पादुकोण, जेएनयू के
आंदोलित छात्रों के साथ क्यों खडी हुई ? इसका खुलासा तो खुद दीपिका ही कर सकती हैं।
लेकिन, आम जन तक
इसका गलत सन्देश गया। इसे देश विरोधी ताकतों के साथ खड़ा होना माना गया। छपाक, दीपिका
पादुकोण के इस कदम के कारण फ्लॉप हुई, कहना बिल्कुल ठीक नहीं होगा। मगर, फिल्म को
दूसरी फिल्मों की तरह दर्शकों ने सामान्य तरीके से नहीं देखा ।
आम आदमी, परिवार और समस्या
बॉक्स ऑफिस पर छपाक का हश्र, बॉलीवुड के लिए सबक जैसा हो सकता है कि
फिल्म निर्माण के खतरों के मद्देनज़र फिर नए खतरे मोल लेना आत्मघाती हो सकता है।
लेकिन, इसमें कोई
शक नहीं कि बॉलीवुड ऐसे खतरे लेने के लिए तैयार है। ऐसी तमाम फ़िल्में बनाई जा रही
हैं, जो एक आम
आदमी, एक आम
परिवार और एक आम समस्या पर है। इसी शुक्रवार रिलीज़ कंगना रानौत की मुख्य भूमिका
वाली फिल्म ऐसी एक फिल्म कही जा सकती है । इस फिल्म में एक कबड्डी खिलाड़ी माँ बनने
के बावजूद कबड्डी के मैदान पर उतरती ही नहीं है, अपनी टीम को विजय भी दिलाती है । इससे
मिलती-जुलती कहानी किसी भी माँ या बहन की हो सकती है । यह फिल्म सडकों पर डांस
करने वाले ग्रुप के अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतने की कहानी पर फिल्म स्ट्रीट
डांसर के सामने रिलीज़ हो रही है । स्ट्रीट डांस उम्मीदों से भरे भारतीय युवा की जीतने
की ललक की कहानी है ।
सामान्य समस्या और प्रेरणा
हालाँकि, गुल मकई हिन्दुस्तान की किसी लड़की की कहानी नहीं, लेकिन लड़कियों
की शिक्षा और आज़ादी की भारत में भी विद्यमान पाकिस्तानी पृष्ठभूमि पर फिल्म है । यह
फिल्म नोबल पुरस्कार प्राप्त मलाल युसफजाई के जीवन पर है । यहाँ सब ज्ञानी है में
हास्य के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि सुख का खजाना मकान के नीचे गड़ा
हुआ नहीं है, बल्कि हमारे अन्दर ही है । गुल मकई की तरह, विधु विनोद चोपड़ा की
फिल्म शिकारा, उन कश्मीरी पंडितों की दशा पर है, जिन्हें १९८९ में इस्लामी आतंकवादियों
ने घर छोड़ने के लिए मज़बूर कर दिया था । द कश्मीर फाइल्स भी कश्मीरी पंडितों पर
आतंकवादियों के अत्याचार की कहानी है । बायोपिक फिल्म बैंडिट शकुंतला की कहानी एक
पूर्व डकैत के, आत्मसमर्पण के बाद मुख्य धारा में जुड़ने और समाजसेवा करने की
प्रेरक कहानी है ।
रियल लाइफ के लोग
पंगा की तरह, हवाएं भी आम आदमी के सपनों की कहानी है । आदित्य अपना सब कुछ
छोड़ कर, भारत में घूमने निकल पड़ता है । रास्ते में, उसे ऐसे लोग मिलते हैं, जिनसे
मिल कर वह खुद को अपने परिवार से जोड़ पाता है और फिल्म डायरेक्टर बनने का अपना
सपना पूरा करने को तैयार होता है । गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल, भारतीय वायु सेना
का फाइटर प्लेन उड़ाने वाली गुंजन सक्सेना की प्रेरक कहानी है । फिल्म शेरशाह भी
भारतीय सेना के कैप्टेन विक्रम बत्रा की साहसिक कहानी है । भुज द प्राइड ऑफ़ इंडिया
वायु सेना के ऑफिसर के युद्ध के मैदान में गांव के लोगों के साथ मिल कर हवाई पट्टी
की मरम्मत करने की प्रेरक कहानी है । इरफ़ान खान की फिल्म अंग्रेजी मीडियम, २०१७
में रिलीज़ फिल्म हिंदी मीडियम की स्पिनऑफ फिल्म है । यानि एक बार फिर केंद्र में
आम आदमी जद्दोजहद ही है । निर्देशक श्री वरुण की फिल्म दया बाई की कहानी एक ईसाई महिला
की दया बाई बन कर जनजाति के लोगों की सेवा करने की प्रेरक कहानी है । अमिताभ बच्चन
और आयुष्मान खुराना की फिल्म गुलाबो सिताबो लखनऊ की पृष्ठभूमि पर आम आदमी के दैनिक
जीवन में संघर्ष की कहानी है ।
कुछ सामान्य कहानियां भी
कुछ कहानियाँ ऐसी होती है, जिसकी कल्पना आम जन नहीं कर सकता । फिर भी ऐसी
फ़िल्में जन-गण का प्रतिनिधित्व करती हैं। खास तौर पर युवा पीढ़ी का । इन्दू की
जवानी गाज़ियाबाद की इन्दू की है, जो डेटिंग एप के चक्कर में पड़ कर अजीबोगरीब
परिस्थितियों में फंस जाती है । मिमी की कहानी एक ऎसी माँ की है, जो अपनी कोख में
दूसरे के बच्चे को पालती है । गंगुबाई काठियावाड़ी की कहानी एक तवायफ की होने के
बावजूद, उसके ज़बरन देह व्यापार में धकेली गई औरतों-लड़कियों को बचाने की प्रेरक
कहानी है ।