एन चंद्रा के नाम से प्रसिद्द फिल्म निर्देशक चंद्रशेखर नार्वेकर की निर्देशित पहली फिल्म अंकुश थी। यह फिल्म २१ जुलाई १९८६ को प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म को मात्र १२ लाख के बजट से बनाया गया था। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर ९५ लाख का ग्रॉस किया था। यह एक ऐसी सुपरहिट फिल्म थी, जिसके सभी एक्टर काफी हद तक नए थे।
फिल्म का कथानक मुंबई की चॉल पर आधारित था। जहाँ एक माँ अपनी बेटी के साथ रहती थी। चार बेकार और निराश युवाओं का उनसे संपर्क हुआ। वह दोनों माँ बेटी से बहुत प्रभावित हुए। एक दिन लड़की के साथ क्रूर बलात्कार होता है। यह घटना उन चारों को अंदर तक हिला देती है। वह बदले की आग में जलने लगते है। इसके बाद चारों बलात्कारी युवा को पकड़ कर उसकी हत्या कर देते है।
इस फिल्म की विशेषता थी, इसका ईंमानदार कथानक। यद्यपि एन चंद्रा की यह कहानी गुलजार की फिल्म मेरे अपने से प्रेरित लगती है । विशेष रूप से नाना पाटेकर का चरित्र विनोद खन्ना की झलक देता था। फिर भी, यह फिल्म अछूते अभिनय और ईमानदार प्रयास के कारण दर्शकों का दिल छू पाने में सफल रही।
इस फिल्म में माँ बेटी की भूमिका आशालता और निशा सिंह ने की थी। चार बेकार युवा नाना पाटेकर, सुहास पलसीकर, मदन जैन और अर्जुन चक्रवर्ती थे। फिल्म की अन्य भूमिकाओं में राज जुत्शी, महावीर शाह, चरण राज, माला जग्गी, राबिया अमीन और राजा बुंदेला थे।
लगभग चालीस साल पहले प्रदर्शित इन फिल्मों के कलाकारों के विषय में जानकारी करना चाहें तो कुछ विशेष नहीं मिलता। यहाँ तक कि नाना पाटेकर को छोड़ कर निशा सिंह, सुहास पलसीकर, मदन जैन और अर्जुन चक्रवर्ती के बारे में भी। इन छह मुख्य चरित्र अभिनेताओं में केवल नानां पाटेकर ही अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय है।
फिल्म के निर्देशक एन चंद्रा ने, अंकुश के बाद प्रतिघात, तेज़ाब, हमला, नरसिम्हा, युगांधर, तेजस्विनी, बेकाबू, वजूद, शिकारी, स्टाइल और एक्सक्यूज़ मी जैसी सफल फिल्मों का निर्देशन किया। किन्तु, २००९ में यह मेरा इंडिया बनाने के बाद, वह नैपथ्य में चले गए। २०१४ में उनके द्वारा नई स्टारकास्ट के साथ सुपरहिट तेज़ाब का सीक्वल बनाये जाने का समाचार था। किन्तु, आज ११ साल बीतने के बाद भी इसकी को खबर नहीं है।
अंकुश में नाना पाटेकर के अतिरिक्त मदन जैन (शशि) ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने बाद में भी विजेता, क्रांति, पेज ३,संघर्ष, आदि जैसी कई फिल्मों में काम किया। किन्तु, वह कभी बड़ी फिल्मो के नायक बनने लायक नहीं समझे गए। वह अंतिम बार, शेखर सुमन और उनके बेटे अध्ययन सुमन की फिल्म हार्टलेस (२०१४) में दिखाया दिए थे।
जब, सुहास पलसीकर (लाल्या) पहली बार अंकुश में दर्शकों के समक्ष आये, तब उनकी खूब चर्चा हुई थी। क्योंकि, वह साठ के दशक की फिल्मों के चरित्र अभिनेता नाना पलसीकर के बेटे थे। वह अंकुश की सफलता के बाद, प्रतिघात, चांदनी बार, मंथन, आदि चर्चित फिल्मों में दिखाई दिए। किन्तु, उन्हें कभी भी उन पर केंद्रित भूमिकाएं नहीं मिली। उनकी विगत प्रदर्शित फिल्म बस्ता २०२१ थी।
अर्जुन चक्रवर्ती (अर्जुन) बांगला फिल्मों से आये थे। उन्हें अधिक फिल्मे बांगला में ही मिली। फिर भी, एक दिन अचानक में भाई की भूमिका के अतिरिक्त ,अनोखा मोती, रवीना टंडन की सीरीज साहब बीवी गुलाम ही उनकी उल्लेखनीय फिल्मे और सीरीज थी।
अंकुश का कथानक जिस चरित्र अनिता पर केंद्रित था, उसकी अभिनेत्री निशा सिंह ने अपने अभिनय से समीक्षकों और दर्शकों को तो प्रभावित अवश्य किया। किन्तु, वह इसे फिल्मों में बदल नहीं पाई। निशा सिंह को इसके बाद, फिल्म बात बन जाये और श्याम बेनेगल की सीरीज भारत एक खोज में संयुक्ता की भूमिका से ही पहचाना गया। इस समय वह कहाँ हैं और क्या कर रही है, सोशल मीडिया पर इसका पता नहीं चलता।



