Wednesday 25 March 2015

समाज और व्यवस्था की बखिया उधेड़ती है 'कोर्ट'

चैतन्य ताम्हाणे अभी केवल २८ साल के हैं।  लेकिन, उनकी समाज और व्यवस्था की समझ उनकी लेखनी से साफ़ समझ आती है।  जब वह इसे सेल्युलाइड पर उतारते हैं तो पूरी गहराई, ड्रामे और व्यंग्यात्मक अंदाज़ के साथ, सीधा दर्शक के दिलोदिमाग को झकझोरता हुआ ।  जिस किसी को चैतन्य ताम्हाणे की समझ को समझना हो, उसे इस साल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाली बहुभाषी फिल्म 'कोर्ट' को देखना होगा। 'कोर्ट' कहानी है एक बूढ़े लोक गायक की।  उस पर एक सीवर कर्मचारी को अपने उत्तेजक गीत के ज़रिये आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया जाता है।  कोर्ट में उसका मुकदमा जाता है।  कोर्ट की सुनवाई के दौरान जो कुछ होता है, वह अभूतपूर्व होता है।  सुनवाई के दौरान मुक़दमा लड़ रहे वकीलों और सुनवाई कर रहे जज की निजी ज़िंदगी की परते उघड़ने लगती है।  मूल रूप से मराठी के अलावा गुजराती, इंग्लिश और हिंदी में बनाई गई इस फिल्म का प्रीमियर अमेरिका में २६ मार्च को होना है।  इसके बाद १७ अप्रैल को यह फिल्म भारत में रिलीज़ होगी।  इस ११६ मिनट की फिल्म को पिछले साल वेनिस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था।  इस फेस्टिवल में ताम्हाणे ने दो पुरस्कार जीते।

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