जेनीवा रॉय भारत की एक.मात्र ऐसी ग़ज़ल सिंगर हैं जिन्होंने ग़ज़ल गायिकी के क्षेत्र में ना केवल महारत हांसिल की है, बल्कि उनकी ग़ज़लों की.एलबम-"एहसास प्यार का" और"सोचते-सोचते" को देश विदेश के संगीत प्रेमियों द्वारा काफी पसंद किया गया है। खनकदार आवाज़ की मल्लिका, प्रतिभा सम्पन्न और समर्पित भावना से ओतप्रोत युवा ग़ज़ल गायिका जेनीवा रॉय मरहूम ग़ज़ल मैस्ट्रो जगजीत सिंह की ग़ज़ल गायिकी से बेहद प्रभावित हैं। शायद इसीलिए उन्होंने ढेर सारे एक्टिंग और प्लेबैक सिंगिंग के ऑफर ठुकरा कर 'फीमेल जगजीत सिंह' बनने का नारा बुलंद किया है। पिछले दिनो मैं जेनीवा रॉय से उनके कैरियर और भावी योजनाओं को लेकर हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-
आपकी ग़ज़लों की एलबम 'एहसास प्यार का' और 'सोचते सोचते' को.ग़ज़ल प्रेमियों से बढ़िया रिस्पांस मिला है ?
मैं अपने आपको बड़ी ख़ुशक़िस्मत मानती हूँ क़ि. अब जब न्यू जनरेशन की.गैलेरी. में म्यूजिक. की शक्ल बिलकुल अलग थलग हो गईं है, ऐसे.में मेरी. दोनों एलबमस को अच्छ खासा रिस्पांस म्यूजिक लवर्स में मिला। और तो.और मुझे गल्फ कंट्रीज में बहुत मान सम्मान मिला। कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिये भी नॉमिनेट हुई।
आपने तो काफी सालों से अलग अलग मिज़ाज़ की ग़ज़लों को सुना-गुना है आपकी अपनी राय में ग़ज़लों में क्या विशेषता होनी चाहिए ?
मैंने तो हमेशा से ही देखा है क़ि ग़ज़लों की कॉम्पोजिशन के साथ साथ दिल को झंकृत करने वाले कलाम यानि लिरिक्स का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। शायद यही वजह है क़ि उन ग़ज़ल गायकों को सफलता नहीं मिली जिन्हें शायरी, पोएट्री की नोलॉज नहीं थी।
क्या आपने इस यूएसपी को अपनी अलबमों में अपनाया है ?
यक़ीनन क्योंक़ि मैं अच्छी तरह से जानती हूँ क़ि ग़ज़लों की आत्मा लफ़्ज़ों की अदायगी है। वह उन्हें लोकप्रिय बनाने में कितना बड़ा रोल निभाती है। इसलिए मैंने अपनी दोनों एलबम्स में शायरों के चयन का विशेष ध्यान. रखा है। एहसास प्यार का में. दुबई के मशहूर शायर सैयद अब्बू वाकर मलिकी, सोचते सोचते में नक़्श लायलपुरी को लिया और अब मेरी नई एलबम संगदिल में मुन्नवर राणा. और नवाब आरज़ू ने ग़ज़लें लिखी हैं।
आप.भारत की पहली महिला गायिका है.जो फीमेल जगजीत सिंह बनने का बीड़ा उठाए हुए हैं। इसकी क्या वजह है? क्या आपकी ग़ज़ल.गायिकी मे वह विशेषताएं है, जिनके लिए जगजीत सिंह का बिलकुल अलग मुकाम अब तक.बना हुआ है ?
जी हाँ कुदरतन मुझमें वह सारी खूबियाँ है, जिनकी वजह से जगजीत सिंह ग़ज़लों के बादशाह कहलाए। मैं .ऐसा समझती हूँ क़ि जगजीत सिंह मेरे रोल मॉडल.उस समय से रहे जब मैं उनकी .ग़ज़लों से गहरी पैठ बना रही.थी। उनकी गायिकी के गुण जैसे, आवाज़ का सही मात्रा में उतार चढाव, कलाम के मर्म को समझकर लफ़्ज़ों की अदायगी, सुरों में संतुलन, आदि मुझमें स्वाभाविक रूप से उतरता चला गया। इसी तारतम्य में दुबई के दुबई क्लब में आयोजित ग़ज़ल तुम्हारी आवाज़ मेरी प्रोग्राम में जब मैंने अपने ग़ज़लों के आराध्य की गाई ग़ज़ल अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको को गाया तो ऑडियन्स ने मुझे किसी दूसरे फनकार की ग़ज़लें गाने ही नहीं दी। प्रोग्राम की कुछ लिमिटेशन थी, मेरे प्रोग्राम के बाद बॉलीवुड के एक नामचीन सिंगर का परफॉर्मेन्स होना था मगर ऑडियंस की डिमांड्स पर मैं रात भर जगजीत सिंह की ग़ज़लें गाती रही। दुबई बहरीन, मॉरीशस, आदि देश विदेशों में मुझे ग़ज़ल सिंगर के तौर पर बम्फर रिस्पांस मिला। बस तभी से मैंने "फीमेल जगजीत सिंह" बनना ज़िन्दगी का मक़सद बना लिया।
आपकी ग़ज़लों की एलबम 'एहसास प्यार का' और 'सोचते सोचते' को.ग़ज़ल प्रेमियों से बढ़िया रिस्पांस मिला है ?
मैं अपने आपको बड़ी ख़ुशक़िस्मत मानती हूँ क़ि. अब जब न्यू जनरेशन की.गैलेरी. में म्यूजिक. की शक्ल बिलकुल अलग थलग हो गईं है, ऐसे.में मेरी. दोनों एलबमस को अच्छ खासा रिस्पांस म्यूजिक लवर्स में मिला। और तो.और मुझे गल्फ कंट्रीज में बहुत मान सम्मान मिला। कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिये भी नॉमिनेट हुई।
आपने तो काफी सालों से अलग अलग मिज़ाज़ की ग़ज़लों को सुना-गुना है आपकी अपनी राय में ग़ज़लों में क्या विशेषता होनी चाहिए ?
मैंने तो हमेशा से ही देखा है क़ि ग़ज़लों की कॉम्पोजिशन के साथ साथ दिल को झंकृत करने वाले कलाम यानि लिरिक्स का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। शायद यही वजह है क़ि उन ग़ज़ल गायकों को सफलता नहीं मिली जिन्हें शायरी, पोएट्री की नोलॉज नहीं थी।
क्या आपने इस यूएसपी को अपनी अलबमों में अपनाया है ?
यक़ीनन क्योंक़ि मैं अच्छी तरह से जानती हूँ क़ि ग़ज़लों की आत्मा लफ़्ज़ों की अदायगी है। वह उन्हें लोकप्रिय बनाने में कितना बड़ा रोल निभाती है। इसलिए मैंने अपनी दोनों एलबम्स में शायरों के चयन का विशेष ध्यान. रखा है। एहसास प्यार का में. दुबई के मशहूर शायर सैयद अब्बू वाकर मलिकी, सोचते सोचते में नक़्श लायलपुरी को लिया और अब मेरी नई एलबम संगदिल में मुन्नवर राणा. और नवाब आरज़ू ने ग़ज़लें लिखी हैं।
आप.भारत की पहली महिला गायिका है.जो फीमेल जगजीत सिंह बनने का बीड़ा उठाए हुए हैं। इसकी क्या वजह है? क्या आपकी ग़ज़ल.गायिकी मे वह विशेषताएं है, जिनके लिए जगजीत सिंह का बिलकुल अलग मुकाम अब तक.बना हुआ है ?
जी हाँ कुदरतन मुझमें वह सारी खूबियाँ है, जिनकी वजह से जगजीत सिंह ग़ज़लों के बादशाह कहलाए। मैं .ऐसा समझती हूँ क़ि जगजीत सिंह मेरे रोल मॉडल.उस समय से रहे जब मैं उनकी .ग़ज़लों से गहरी पैठ बना रही.थी। उनकी गायिकी के गुण जैसे, आवाज़ का सही मात्रा में उतार चढाव, कलाम के मर्म को समझकर लफ़्ज़ों की अदायगी, सुरों में संतुलन, आदि मुझमें स्वाभाविक रूप से उतरता चला गया। इसी तारतम्य में दुबई के दुबई क्लब में आयोजित ग़ज़ल तुम्हारी आवाज़ मेरी प्रोग्राम में जब मैंने अपने ग़ज़लों के आराध्य की गाई ग़ज़ल अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको को गाया तो ऑडियन्स ने मुझे किसी दूसरे फनकार की ग़ज़लें गाने ही नहीं दी। प्रोग्राम की कुछ लिमिटेशन थी, मेरे प्रोग्राम के बाद बॉलीवुड के एक नामचीन सिंगर का परफॉर्मेन्स होना था मगर ऑडियंस की डिमांड्स पर मैं रात भर जगजीत सिंह की ग़ज़लें गाती रही। दुबई बहरीन, मॉरीशस, आदि देश विदेशों में मुझे ग़ज़ल सिंगर के तौर पर बम्फर रिस्पांस मिला। बस तभी से मैंने "फीमेल जगजीत सिंह" बनना ज़िन्दगी का मक़सद बना लिया।
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