१८ नवंबर १९८३। लखनऊ का कैपिटल सिनेमा। इस सिनेमाहॉल में गोविन्द निहलानी
की फिल्म अर्द्धसत्य रिलीज़ हो रही थी। उस समय तक आक्रोश और विजेता फिल्म
से गोविन्द निहलानी चर्चित निर्देशक बन चुके थे। आक्रोश के भीकू लहन्या के
कारण ओम पूरी का गहरे चेचक के दंगों से भरा चेहरा दर्शकों के दिमाग पर
असर कर चुका था। अर्द्ध सत्य में ओम पूरी पुलिस अधिकारी अनंत वेलणेकर का
किरदार कर रहे थे। फिल्म शुरू हुई। दर्शक घटनाक्रम में उलझता चला गया।
फिल्म के अंत में अनंत नेता का गला घोट कर मार देता है। पूरा सिनेमाघर
दर्शकों की जोशीली तालियों से गूँज रहा था। यह तमाम तालियां अनंत वेलणेकर
यानि ओम पुरी की जीत के लिए थीं। लेकिन, दर्शकों के दिमाग में रामा
शेट्टी घूम रहा था। रामा शेट्टी, जो भ्रष्ट नेता था। वह अनंत वेलणकर का
हर तरह से शोषण करता है। लेकिन, जब वह उसके ज़मीर को ललकारता है तो अनंत
उसे मार देता है। दर्शक पूरी फिल्म में रामा शेट्टी की भृकुटियों, उसके
माथे की सलवटों और कुटिल संवाद अदायगी से उबाल रहा था। इसी लिए जब लखनऊ का
पहले शो का दर्शक सिनेमाघर से बाहर निकला, तब जुबां पर अनंत वेलणेकर से
ज़्यादा रामा शेट्टी का नाम था। बाहर निकालता दर्शक रामा शेट्टी को गंदी
गालियां बक रहा था। इस रामा शेट्टी को इस क़दर क़दर दर्शकों के जेहन पर
बैठाने का काम किया था मराठी थिएटर और फिल्मों के अभिनेता सदाशिव
अमरापुरकर ने। इसके बाद , लखनऊ के फिल्म प्रेमियों ने सदाशिव अमरापुरकर की
बुरे और
सुहृदय चरित्र वाली फ़िल्में केवल उनके कारण ही देखी थी। हुकूमत और इश्क़
की सफलता इसका प्रमाण है।
११ मई १९५० को जन्मे गणेश कुमार नर्वोडे, जब २४ साल बाद सदाशिव नाम से रंगमंच पर उतरे थे, उस समय शायद ही किसी को एहसास रहा होगा कि यह गहरे रंग वाला अहमदनगर में पैदा हुआ व्यक्ति एक दिन बॉलीवुड को एक नयी विधा देगा। अर्द्धसत्य के रामा शेट्टी के ज़रिये ही बॉलीवुड के दर्शकों का परिचय सदाशिव अमरापुरकर से हुआ । इस फिल्म में सदाशिव की संवाद अदायगी का ख़ास चुभता लहज़ा और माथे में पड़ती सलवटें हिंदी फिल्मों के खलनायक की नहीं परिभाषा गढ़ रही थी । अर्द्ध सत्य के हिट होते ही सदाशिव अमरापुरकर के रूप में हिंदी फिल्मों को भिन्न शैली में संवाद बोलने वाला विलेन और चरित्र अभिनेता मिल गया । इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला । इस फिल्म के बाद उन्हें जवानी, आर पार, तेरी मेहरबानियाँ, खामोश, आखिरी रास्ता, मुद्दत और हुकूमत जैसी बड़ी फ़िल्में मिल गयीं । हालाँकि, इन फिल्मों में ज़्यादातर में उन्हें नेगेटिव रोल ही मिले । हुकूमत के वह मुख्य विलेन थे । सदाशिव अमरापुरकर अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचे महेश भट्ट की फिल्म सड़क से । इस फिल्म में उन्होने औरत के वेश में रहने वाले खल नायक महारानी का किरदार किया था । इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को पहली बार स्थापित फिल्मफेयर का श्रेष्ठ खल अभिनेता का पुरस्कार मिला । नब्बे के दशक के मध्य में सदाशिव अमरापुरकर के करियर को कॉमेडी मोड़ मिला । उन्होंने डेविड धवन की फिल्म आँखें में इंस्पेक्टर प्यारे मोहन का कॉमिक किरदार किया था । सदाशिव अमरापुरकर और कादर खान ने एक साथ दिल लगा के देखों, हम हैं कमाल के, ऑंखें, आग, द डॉन, कुली नंबर १, याराना, छोटे सरकार,मेरे दो अनमोल रतन, आंटी नंबर १,बस्ती, परवाना, खुल्लम खुल्ला प्यार करें , कोई मेरे दिल में है, झाँसी की रानी, हम हैं धमाल के और दीवाने तथा गोविंदा के साथ आँखें, आंटी नंबर १, कुली नंबर १, दो आँखें बारह हाथ, राजा भैया को भी अच्छी सफलता मिली । इन कॉमेडी फिल्मों के बीच सदाशिव अमरापुरकर ने एक बार भी खल नायिकी के हुनर दिखाए फिल्म इश्क़ में । वह इस फिल्म में अजय देवगन के अमीर पिता बने थे। सदाशिव अमरापुरकर ने अपने पूरे फिल्म करियर में दो सौ से ज़्यादा फिल्मों में भिन्न किरदार किये । उन्हें हमेशा यह मलाल रहा कि हिंदी फिल्म निर्माताओं ने उन्हें टाइप्ड भूमिकाएं ही दी । इसीलिए उन्होंने धीरे धीरे कर हिंदी फिल्मों में अभिनय करना कम कर दिया । उनकी आखिरी फिल्म बॉम्बे टॉकीज २०१३ में रिलीज़ हुई थी । सदाशिव अमरापुरकर के दौर में कादर खान, परेश रावल, अनुपम खेर, आदि जैसे मज़बूत चरित्र अभिनेता थे । उन्होंने इन सशक्त हस्ताक्षरों के बीच अपने ख़ास अंदाज़ में अपनी ख़ास जगह बनायी । इससे साबित होता है कि अमरापुरकर हिंदी फिल्मों के हरफनमौला सदाशिव थे।
११ मई १९५० को जन्मे गणेश कुमार नर्वोडे, जब २४ साल बाद सदाशिव नाम से रंगमंच पर उतरे थे, उस समय शायद ही किसी को एहसास रहा होगा कि यह गहरे रंग वाला अहमदनगर में पैदा हुआ व्यक्ति एक दिन बॉलीवुड को एक नयी विधा देगा। अर्द्धसत्य के रामा शेट्टी के ज़रिये ही बॉलीवुड के दर्शकों का परिचय सदाशिव अमरापुरकर से हुआ । इस फिल्म में सदाशिव की संवाद अदायगी का ख़ास चुभता लहज़ा और माथे में पड़ती सलवटें हिंदी फिल्मों के खलनायक की नहीं परिभाषा गढ़ रही थी । अर्द्ध सत्य के हिट होते ही सदाशिव अमरापुरकर के रूप में हिंदी फिल्मों को भिन्न शैली में संवाद बोलने वाला विलेन और चरित्र अभिनेता मिल गया । इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला । इस फिल्म के बाद उन्हें जवानी, आर पार, तेरी मेहरबानियाँ, खामोश, आखिरी रास्ता, मुद्दत और हुकूमत जैसी बड़ी फ़िल्में मिल गयीं । हालाँकि, इन फिल्मों में ज़्यादातर में उन्हें नेगेटिव रोल ही मिले । हुकूमत के वह मुख्य विलेन थे । सदाशिव अमरापुरकर अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचे महेश भट्ट की फिल्म सड़क से । इस फिल्म में उन्होने औरत के वेश में रहने वाले खल नायक महारानी का किरदार किया था । इस फिल्म के लिए सदाशिव अमरापुरकर को पहली बार स्थापित फिल्मफेयर का श्रेष्ठ खल अभिनेता का पुरस्कार मिला । नब्बे के दशक के मध्य में सदाशिव अमरापुरकर के करियर को कॉमेडी मोड़ मिला । उन्होंने डेविड धवन की फिल्म आँखें में इंस्पेक्टर प्यारे मोहन का कॉमिक किरदार किया था । सदाशिव अमरापुरकर और कादर खान ने एक साथ दिल लगा के देखों, हम हैं कमाल के, ऑंखें, आग, द डॉन, कुली नंबर १, याराना, छोटे सरकार,मेरे दो अनमोल रतन, आंटी नंबर १,बस्ती, परवाना, खुल्लम खुल्ला प्यार करें , कोई मेरे दिल में है, झाँसी की रानी, हम हैं धमाल के और दीवाने तथा गोविंदा के साथ आँखें, आंटी नंबर १, कुली नंबर १, दो आँखें बारह हाथ, राजा भैया को भी अच्छी सफलता मिली । इन कॉमेडी फिल्मों के बीच सदाशिव अमरापुरकर ने एक बार भी खल नायिकी के हुनर दिखाए फिल्म इश्क़ में । वह इस फिल्म में अजय देवगन के अमीर पिता बने थे। सदाशिव अमरापुरकर ने अपने पूरे फिल्म करियर में दो सौ से ज़्यादा फिल्मों में भिन्न किरदार किये । उन्हें हमेशा यह मलाल रहा कि हिंदी फिल्म निर्माताओं ने उन्हें टाइप्ड भूमिकाएं ही दी । इसीलिए उन्होंने धीरे धीरे कर हिंदी फिल्मों में अभिनय करना कम कर दिया । उनकी आखिरी फिल्म बॉम्बे टॉकीज २०१३ में रिलीज़ हुई थी । सदाशिव अमरापुरकर के दौर में कादर खान, परेश रावल, अनुपम खेर, आदि जैसे मज़बूत चरित्र अभिनेता थे । उन्होंने इन सशक्त हस्ताक्षरों के बीच अपने ख़ास अंदाज़ में अपनी ख़ास जगह बनायी । इससे साबित होता है कि अमरापुरकर हिंदी फिल्मों के हरफनमौला सदाशिव थे।