भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधान मंत्री
नरेद्र मोदी पर, ओमंग कुमार
निर्देशित फिल्म पीएम नरेन्द्र मोदी को रिलीज़ होने से रोकने की अपील खारिज कर दी
थी । फिल्म को भारतीय सेंसर बोर्ड ने भी प्रदर्शन के लिए पारित कर दिया था । इस पर
कांग्रेस सहित दूसरे दलों ने चुनाव आयोग के पास गुहार लगाईं । भारत के चुनाव आयोग
को लगा कि सरकार का काम नहीं, फिल्म बोलती है । इसलिए, चुनाव आयोग ने फिल्म पीएम नरेन्द्र मोदी को चुनाव ख़त्म होने तक प्रदर्शित
होने से रोक दिया है । इस फिल्म के न रिलीज़ होने से, भारतीय जनता पार्टी को कितना नुकसान तथा कांग्रेस सहित गठबंधन दलों को
कितना फायदा होगा, इसका पता तो
२३ मई को ही चल सकेगा । लेकिन, राजनीतिक दलों को हमेशा से राजनीतिक रुझान वाली फिल्मों पर आपत्ति होती है
और वह कोर्ट की शरण लेते हैं । ऐसे पहले से कई मामले हैं । लेकिन, पीएम नरेन्द्र मोदी ऎसी पहली फिल्म है, जिसे चुनाव आयोग द्वारा प्रतिबंधित किया गया
।
इंदु सरकार पर नाराज़ कांग्रेसी
दो साल पहले, कांग्रेस द्वारा मधुर भंडारकर की फिल्म इंदु सरकार (२०१७) का आक्रामक
विरोध किया था । फिल्म के पोस्टर बैनर फाड़े, पुतले जलाए । कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पुणे और नागपुर में फिल्म की प्रेस
कांफ्रेंस को भी नहीं होने दिया। बाद में, महाराष्ट्र सरकार ने इंदु सरकार की टीम को सुरक्षा मुहैया कराई । लेकिन, कांग्रेस शांत नहीं हुई । वह सेंसर बोर्ड के पास भी फिल्म को प्रमाणित न
करने के लिए पहुंचे । उनका कहना था कि मधुर भंडारकर ने एक राजनीतिक पार्टी
(बीजेपी) के इशारे पर उनकी नेता इंदिरा गांधी और संजय गांधी की छवि खराब करने की
कोशिश की है। जबकि, मधुर भंडारकर साफ़ कर चुके थे कि यह ७० प्रतिशत
कल्पनाशीलता और ३०% सच की कहानी है। चूंकि, इंदु सरकार के साथ सेंसर बोर्ड और फिल्म उद्योग खड़ा हुआ था और चुनाव आयोग
का दखल नहीं था । इसलिए इंदु सरकार २८ जुलाई २०१७ को रिलीज़ हो ही गई ।
ममता बनर्जी ने उतारी बांगला फिल्म
इसके बावजूद तमाम ऐसे उदाहरण है, जब राजनीतिक दलों को मिर्ची लगी तो
सिनेमाहॉल से तक फिल्म उतरवा दी। कभी किसी फिल्म के विषय से, कभी उसके कलाकारों से या किसी दूसरे कारण से
विरोध करने और फिल्मों को रोकने का सिलसिला पुराना है। सरकार द्वारा विरोधी स्वरों के कारण किसी फिल्म
को रोक लगाए जाने का ताज़ा उदाहरण एक बांगला फिल्म भबिश्योतेर भूत को कलकत्ता में
तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा जबरन उतार दिया गया । यह फिल्म कोर्ट के
आदशों के बावजूद थिएटर पर प्रदर्शित नहीं हो सकी है ।
ब्रितानी शासन ने बैन किया भक्त बिदुर को
फिल्मों को बैन करने की शुरुआत तो ब्रिटिश
सरकार ही कर चुकी थी । महाभारत काल के विदुर पर कांजीभाई राठौर की फिल्म में विदुर
के चरित्र को महात्मा गांधी के व्यक्तित्व के अनुरूप ढाला गया था। फिम के विदुर बने द्वारिकादास सम्पत बिलकुल
गांधी जैसे लग रहे थे। यह पहली भारतीय
फिल्म थी, जिस पर
ब्रितानी हुकूमत ने रोक लगाईं। ब्रितानी शासनकाल में राजनीतिक स्वर वाली फ़िल्में
ही नहीं गीत तक बैन कर दिए जाते थे ।
किस्मत (१९४५) के गीत 'दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा हैँ' को देश की स्वतंत्रता से जोड़ा गया। सिनेमाघरों में यह गीत पब्लिक डिमांड पर रिपीट
किया जाता था। इसे देखते हुए गीतकार
प्रदीप को ब्रिटिश सरकार के क्रोध से बचने के लिये भूमिगत हो जाना पड़ा।
राजनीतिक कारणों से बैन
स्वतंत्रता के बाद भी भारतीय फिल्मों को
पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिली। आज़ादी के बाद चुम्बनो का फिल्मों में निषेध हो गया ।
इसके बाद किन्ही न किन्ही कारणों से फिल्मों पर रोक लगाईं जाती रही। आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री के
बेटे संजय गांधी द्वारा किस्सा कुर्सी का के प्रिंट ही जलवा दिए गए। आंधी पर रोक लगा दी गई, क्योंकि इसकी नायिका का गेटअप और मेकअप
इंदिरा गांधी की तरह किया गया था । कुछ घटनाएं इंदिरा गांधी के साथ घट चुकी शामिल
थी। यह फिल्म जनता पार्टी के शासन में आने के बाद ही रिलीज़ हो सकी। बॉम्बे के
दंगों के कारण ब्लैक फ्राइडे पर रोक लगा दी गई। १९९३ के दंगों पर अनुराग कश्यप की
फिल्म ब्लैक फ्राइडे पर तो बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी रोक लगाईं थी। दो साल बाद यह फिल्म कोर्ट के आदेश से रिलीज़
हुई। फायर, वाटर, माय नेम इज खान, आदि फ़िल्में धार्मिक राजनीतिक विरोध के कारण
रोकी गई। यशराज बैनर की फिल्म फना को तत्कालीन गुजरात सरकार के गुस्से का सामना
करना पड़ा। क्योंकि, आमिर खान मेधा पाटकर के आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे। गुजरात २००२ के
दंगों पर आधारित होने के कारण फिल्म फ़िराक़ और परज़ानिया को गुजरात में रिलीज़ के
लायक नहीं समझा गया। सिन फिल्म को एक पादरी के सेक्सुअल रिलेशन दिखाने के कारण रोक
का सामना करना पड़ा। इंशाअल्लाह कश्मीर, श्रीलंका के गृहयुद्ध पर नो फायर जोन, सिक्किम को स्वतंत्र देश दिखाने वाली फिल्म सिक्किम को भी राजनीतिक कारणों
से बैन का शिकार होना पड़ा। सिख दंगों पर
अमतेज मान की फिल्म १९८४ को दिल्ली और पंजाब में रिलीज़ नहीं होने दिया गया। इंदिरा
गांधी हत्याकांड पर पंजाब फिल्म कौम दे हीरे को इंदिरा गांधी के हत्यारों का
महिमामंडन करने के कारण बैन का शिकार होना पड़ा।
राज्य सरकारों ने रोकी फ़िल्में
काफी ऎसी फ़िल्में हैं, जिन्हे विभिन्न राज्य सरकारों ने किसी न
किसी कारण से अपने राज्य में रिलीज नहीं होने दिया। इनमे गैर हिंदी फिल्मों के अलावा
हॉलीवुड की फ़िल्में भी शामिल थी। आंध्र प्रदेश, नागालैंड और गोवा की सरकारों ने हॉलीवुड फिल्म डा विन्ची कोड को
क्रिस्चियन समुदाय विरोधी होने के कारण अपने राज्यों में रिलीज़ नहीं होने
दिया। आंध्र प्रदेश में आरक्षण को अस्थाई
तौर पर बैन किया गया। असम में असमी फिल्म
रूनुमि और हिंदी फिल्म टैंगो चार्ली बैन कर दी गई। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में बाबा राम रहीम की
फिल्म एमएसजी २- द मैसेंजर को जनजाति समुदाय विरोधी होने के कारण बैन किया गया।
गुजरात में चाँद बुझ गया, फना, फरज़ानिया और
फ़िराक़, महाराष्ट्र
में देशद्रोही, पंजाब में
डा विन्ची कोड के अलावा आरक्षण को अस्थाई तौर पर, साड्डा हक़, ओह माय प्यो जी, एमएसजी १ और २ द मैसेंजर, नानक शाह फ़क़ीर और संता बंता प्राइवेट लिमिटेड को बैन का सामना करना पड़ा।
राजस्थान में अस्थाई तौर पर जोधा अकबर, तमिलनाडु में श्रीलंका के गृहयुद्ध पर इनाम सीलोन, मद्रास कैफे, विश्वरूपम, डैम ९९९, डा विन्ची
कोड और ओरे ओरु ग्रामथिले को बैन कर दिया गया। उत्तर प्रदेश में आजा नचले, जोधा अकबर और आरक्षण को अस्थाई तौर पर बैन
किया गया। पश्चिम बंगाल में सिटी ऑफ़ जॉय और कंगाल मालसाट को बैन कर दिया गया।
पद्मावत को भी गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में रोक का सामना करना पडा ।
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