Friday, 28 June 2013

घनचक्कर बनते दर्शक!

Emraan Hashmi & Vidya Balan at Ghanchakkar On The Sets
यूटीवी के सिद्धार्थ रॉय कपूर और रोनी स्क्रूवाला की जोड़ी लगता है इस बार चूक गयी। राजकुमार गुप्ता ने इनके लिए आमिर और नो वन किल्ड जेसिका जैसी बढ़िया फिल्में बनाई थी। नो वन किल्ड जेसिका को तो बॉक्स ऑफिस सक्सेस भी मिली तथा प्रशंसा और पुरुस्कार भी । इसलिए, परवेज़ शेख के साथ खुद राजकुमार गुप्ता की लिखी कथा पटकथा पर फिल्म बनाने के लिए यूटीवी की इस जोड़ी का राजी हो जाना, स्वाभाविक भी था। घनचक्कर के लिए इमरान  हाशमी विद्या बालन के साथ लिए गए थे। इस जोड़ी ने द डर्टी पिक्चर जैसी फिल्म दी थी। फिल्म में अमित त्रिवेदी की धुनों पर गीत अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे थे। फिल्म से इतने बड़े नाम जुड़े होने से दर्शकों की फिल्म से उम्मीदें भी बढ़ना स्वाभाविक था। पर यह नहीं कहा जा सकता कि घनचक्कर दर्शकों की ज़्यादा उम्मीदों का शिकार हो गयी। इस फिल्म में कमियों और खामियों का विश्व रेकॉर्ड बनाने की क्षमता है।
फिल्म की कहानी एक बैंक से 35 करोड़ की डकैती डालने की है। पंडित और हुसैन, संजय आत्रे को डरा धमका और लालच दे कर इस डकैती में तिजोरी खोलने के लिए राजी करते है। वह इसमे सफल भी हो जाते हैं। डकैती का पैसा अटैची में रखने के बाद पंडित इस पैसे को तीन महीने तक अपने पास ही रखने के लिए आत्रे से कहता है। अब होता क्या है कि संजय का आक्सीडेंट हो जाता है और वह भूलने की बीमारी का शिकार हो जाता है। सुनने में यह कहानी उम्मीदें जगाने वाली काफी उम्दा लगती है। पहली दो तीन रील तक यह उम्मीद कायम भी रहती है। लेकिन, इसके बाद फिल्म राजकुमार गुप्ता के हाथों से जो फिसलती है तो फिर फिसलती ही चली जाती है। अनावश्यक और बेसिर पैर की घटनाएँ घटती ही रहती हैं। संजय और उसकी पत्नी नीतू तथा पंडित और हुसैन के चार चरित्रों के साथ शुरू यह कहानी पात्रों के  बढ़ने के साथ हल्की पड़ती चली जाती है। कभी ऐसा लगता है कि कोई चौकाने वाला बढ़िया ट्विस्ट आने वाला है। मगर जो कुछ होता है वह फिल्म को कमजोर कर देता है। फिल्म के क्लाइमैक्स का खून खराबा भी अस्वाभाविक है।
सच कहा जाए तो एक अच्छी कहानी पर बढ़िया पटकथा लिखने में राजकुमार गुप्ता और शेख की जोड़ी बिल्कुल चूक गयी। शुरुआत करने के साथ ही वह बिखरते चले गए। इमरान हाशमी का संजय आत्रे का कैरक्टर प्रमुख है, पर उसे भी डिवैलप नहीं किया गया है कि वह तिजोरी खोलने के मामले में इतना मशहूर कैसे हो गया कि उसके पास बड़ी डकैती के प्रस्ताव आने लगे। पंडित और हुसैन किसी लिहाज से डकैत नहीं लगते। बल्कि, वह कमेडियन ज़्यादा महसूस होते हैं। दरअसल उनके कैरक्टर ही ऐसे लिखे गए हैं। राजकुमार गुप्ता न तो रफ्तार रख पाये, न थ्रिल का एहसास करा पाये। ऐसी फिल्मों में संगीत महत्वपूर्ण होता है। लेकिन, घनचक्कर में वह भी बेजान है।
दर्शक घनचक्कर को देखने अभिनेत्री विद्या बालन के चक्कर में गए थे। लेकिन, विद्या बालन को देख कर झल्लाहट पैदा होती हैं। वह फ़ैशन परास्त पंजाबन के बजाय किसी सर्कस की जोकर जैसी लगती है। वह इमरान हाशमी जैसे अभिनेता के सामने भी नहीं उभर पातीं। उन्होने अजीबो गरीब कपड़े पहने हैं। लेकिन, इनमे वह सेक्सी लगने के बजाय बेढंगी लगती हैं। घनचक्कर विद्या बालन के सबसे घटिया फिल्म कही जाएगी। विद्या के मुकाबले इमरान हाशमी का काम अच्छा है। डकैत बने नमित दासऔर राजेश शर्मा ने अपना काम अच्छी तरह से किया है। लेकिन, वह दर्शकों को हंसा पाने में नाकाम रहे हैं।
घनचक्कर को देख कर दर्शकों को चक्कर आ सकते हैं। वह खुद को ठगा महसूस कर सकते हैं । लेकिन, यह उनकी गलती है कि वह घनचक्कर को विद्या बालन की फिल्म के चक्कर में देखने जाते हैं। यह विद्या का Himalayan blonder है कि उन्होने घनचक्कर को अपने पति के चक्कर में साइन कर लिया। इससे विद्या के कैरियर को नुकसान ही होगा। दर्शक घनचक्कर को देखना चाहे तो देखें। लेकिन, अगर नहीं देखना चाहें तो बहुत बेहतर होगा।

Thursday, 27 June 2013

क्या दर्शक लगाएँगे विद्या बालन की घनचक्कर के चक्कर !

 इस शुक्रवार बड़े पर्दे पर वन वुमन शो होगा। निर्माता निर्देशक और लेखक अजय यादव की थ्रिलर फिल्म भड़ास में इतना दम नज़र नहीं आता कि वह निर्देशक राजकुमार गुप्ता की रोमांटिक कॉमेडी फिल्म घनचक्कर को बॉक्स ऑफिस पर चक्कर या टक्कर दे सके। पाकिस्तान की अभिनेत्री मीरा की भड़ास में वह बात नहीं कि वह विद्या बालन के घनचक्कर को चकरा सके । मतलब यह कहा जा सकता है कि इस हफ्ते   रिलीस हो रही दो हीरोइन ओरिएंटेड़ फिल्मों के बावजूद शो वन वुमन ही होगा। भड़ास की मीरा के बजाय घनचक्कर की विद्या बालन पूरे वीक पर्दे पर छाई रहेंगी। घनचक्कर में उनके हीरो इमरान हाशमी हैं, जो इस फिल्म से पहले विद्या बालन के साथ फिल्म द डर्टी पिक्चर्स में काम कर चुके हैं। इमरान हाशमी रश, राज़ 3 और एक थी डायन जैसी फिल्मों से खुद को एक अलग इमेज दे पाने में सफल हुए हैं। लेकिन, सबसे मुश्किल होगा विद्या बालन को दर्शकों पर अपनी पकड़ साबित करना। लगातार चार फिल्मों पा, इश्किया, नो वन किल्ड जेसिका, द डर्टी पिक्चर्स और कहानी से खुद के लिए पुरस्कार और सम्मान बटोरे ही, खुद के लिए दर्शकों में अपेक्षाएँ कुछ ज़्यादा ही जगा ली। हिन्दी फिल्मों का दर्शक, उनकी हर फिल्म से कुछ अलग और प्रभावशाली
देखने की उम्मीद करने लगा है। विद्या बालन ने अपनी हीरोइन ओरिएंटेड़ फिल्मों से खुद को स्टार एक्ट्रेस का खिताब बटोर रखा है। घनचक्कर में वह एक पंजाबी ग्रहणी की भूमिका में हैं। विद्या बालन ने बंगाली लड़की के रोल खूब किए हैं। द डर्टी पिक्चर्स में वह सिल्क स्मिथा बनीं थी। नो वन किल्ड जेसिका में वह ईसाई लड़की की भूमिका में थीं। अब वह पंजाबन के रोल में पूरे देश के दर्शकों को लुभाने के प्रयास में होंगी। राजकुमार गुप्ता के साथ घनचक्कर विद्या बालन की दूसरी फिल्म है। गुप्ता की फिल्म नो वन किल्ड जेसिका में रानी 0   के साथ विद्या बालन थीं। कहा जा सकता है कि राजकुमार गुप्ता और विद्या बालन एक हिट जोड़ा है। द डर्टी पिक्चर के बाद इमरान हाशमी भी उनके लकी जोड़े बन चुके हैं। ऐसी स्थिति में घनचक्कर की सफलता को ले कर विद्या के दुश्मन भी एक राय होंगे। लेकिन  विद्या बालन को घनचक्कर को खुद की फिल्म साबित करना होगा। यह तभी संभव होगा, जब फिल्म पूरी तरह से विद्या के इर्द गिर्द घूमती हो और उनका रोल काफी सशक्त हो। विद्या तो खैर बढ़िया अभिनेत्री हैं ही। ऐसे में घनचक्कर दर्शकों को सिनेमाघरों का चक्कर लगवाने वाली विद्या बालन की फिल्म साबित हो सकती है।



सीधे दर्शकों के दिल पर लगा धनुष का तीर


धनुष की कमान से छूटा तीर दर्शकों की दिलों पर सीधा लगा लगता है। दक्षिण के स्टार धनुष की फिल्म राँझना का वीकेंड कलेक्शन दर्शकों पर उनके प्रभाव को बताने वाला था। राँझना ने पहले दिन 5.12 करोड़ का बिज़नस किया था। दूसरे दिन यानि शनिवार को यह बढ़ कर 6.81 करोड़ तक पहुँच गया। सनडे को राँझना ने जंप मारा और कलेक्शन किया 8.15 करोड़। इस प्रकार से वीकेंड कलेक्शन 20.08 करोड़ का रहा। पैंतीस करोड़ के बजेट से बनी फिल्म का इतना कलेक्शन राँझना को हिट फिल्म की कैटेगरी में लाने के लिए काफी था। आम तौर पर वीक डेज़ में कलेक्शन गिरता है। पर सोमवार को राँझना की 3.80 करोड़ की कमाई, फिल्म का उत्साह बढ़ाने वाली थी। क्योंकि, मंगलवार को राँझना ने ज़ोर मारा और फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर दस लाख ज़्यादा बटोर मारे। इस प्रकार से राँझना ने पहले पाँच दिनों में 27.83 करोड़ कमा डाले । उम्मीद की जा रही है कि राँझना का वीक 30 करोड़ से ऊपर जाएगा।
यह धनुष के अभिनय का जलवा था कि अनावश्यक इधर उधर भटकती कहानी वाली इस फिल्म से धनुष ने बांधे रखा। उनका हर मूवमेंट तालियाँ बटोर रहा था, उनकी डाइलॉग डेलीवेरी दर्शकों की सीटियाँ बटोर रही थी। अत्यंत साधारण चेहरे मोहरे वाला  दक्षिण का यह अभिनेता अपनी असाधारण अभिनय प्रतिभा और स्क्रीन प्रेजेंस के कारण उत्तर के दर्शकों का हीरो बन कर उभरा था।
यह राँझना के साधारण रोमैन्स का प्रभाव था कि रणबीर  कपूर और दीपिका पादुकोण  फिल्म यह जवानी है दीवानी के कदम यकायक थम से गए। फुकरे बॉक्स ऑफिस पर निठल्ला साबित हुआ। राँझना के साथ रिलीस दूसरी फिल्में एनिमी और शॉर्ट कट रोमियो को 10 प्रतिशत की ओपेनिंग तक नहीं मिल सकी। इन दोनों फिल्मों के एक करोड़ की कमाई करना भी मुश्किल लग रहा है। यह जवानी है दीवानी अपने चौथे वीकेंड में 183.19 करोड़ कमा चुकी थी। जबकि फुकरे ने दूसरे वीकेंड तक 28.12 करोड़ कमा लिए थे।


  

Saturday, 22 June 2013

यह वर्ल्ड वार ज़ेड दर्शकों की भी है

जापान की ऊंची दीवार पर चढ़ते ज़ोमबीज  
यूएन का पूर्व कारिंदा गेरी लेन अपने परिवार के साथ फिलाडेल्फ़िया की भीड़ भरी सड़क पर चला जा रहा है। तभी कार ले रेडियो पर अजीबो गरीब घटनाओ का जिक्र होने लगता है। तभी सड़क पर अजीबो गरीब आवाज़ें आने लगती हैं। इसके साथ ही लोगों पर मुरदों का हमला होने लगता है। वर्ल्ड वार ज़ेड  का यह पहला  सीन  रहस्य, रोमांच और भय का ऐसा ताना बाना बुनता है, जो पूरी फिल्म में दर्शकों को जकड़े रहता है। वह गेरी के साथ दुनिया के उन देशों में जा कर चलते फिरते  मुरदों द्वारा फैलाई गयी तबाही और लाशों के ढेरो को देखता है। वह गेरी बने ब्रैड पिट के साथ मुरदों के आतंक का सामना करने की तैयारी करता है। यही कारण है कि अपने शरीर में घातक बीमारी के विषाणु इंजेक्ट कर, जोंबीज के बीच से निकल रहे ब्रैड पिट भारतीय दर्शकों की ज़बरदस्त तालियों के हकदार हो जाते हैं। ऐसी तालियाँ बॉलीवुड का कोई सलमान खान, शाहरुख खान या रितिक रोशन ही बटोर पाता है। फिल्म जब खत्म होती है तो दर्शकों के चेहरे भयमिश्रित खुशी से खिले नज़र आते हैं।
 इसे मोंस्टर'स बॉल, फाइडिग नेवर लैंड और क्वांटम ऑफ सोलेस जैसी फिल्मों के निर्देशक की कल्पनाशीलता का कमाल कहा जाना चाहिए कि वह Hollywood में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय जोंबीज की दुनिया को नष्ट करने की साजिश को स्वीकार्य बना पाते हैं। वह हर सीन कुछ इस प्रकार से पेश करते हैं कि दर्शक सुन्न बैठा सब कुछ देखता रहता है। उन्हे बीच बीच में उनके हीरो का हेरोईक कारनामा तालियाँ बजाने को प्रेरित करता है।   MatthewMichaelCarnahan और  J. Michael Straczynski  की कहानी पर चलते फिरते मुरदों के रोमांच को प्रभावशाली बनाने में Mathew Michael Carnhan, Drew Goddard और damon लिंदेलोफ की तिकड़ी ज़बरदस्त मोर्चा सम्हालती है। जापानियों द्वारा उठाई गयी ऊंची दीवार पर जोंबीज का चढ़ना दर्शकों के रोंगटे खड़ा कर देता है। ऐसे ही तमाम सींस में जब ज़िंदा लोग जीतते हैं, तो दर्शकों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं  रहता। बेन सेरेसिन अपने कैमरा के द्वारा जोंबियों के साथ रोमांचकारी दौड़ लगाते हैं। वह मार्क को ऐसा मुरदों का  संसार क्रिएट करने में भरपूर मदद करते हैं।  ऐसी फिल्मों में संगीत यानि बॅक ग्राउंड म्यूजिक का बड़ा महत्व होता है। Marco Beltrami अपने कंधों पर इस जिम्मेदारी को बड़ी मुस्तैदी से सम्हालते हैं। उनका संगीत डराता  ही नहीं, बल्कि रोमांच भी पैदा करता है। रोजर बार्टन और मट्ट चीज की एडिटिंग ने फिल्म की रफ्तार को सपोर्ट किया है।
दो सौ मिल्यन डॉलर में बनी और 116 मिनट लंबी इस फिल्म की जान ब्रैड पिट हैं। वह जहां एक पिता गेरी को अपने भवाभिनय से भिगोते हैं, वही एक जाबांज अधिकारी के रूप में हर हैरतअंगेज सीन को स्वाभाविक भी  बनाते हैं। उनके अभिनय का कमाल है कि दर्शक हर दृश्य से बंधा रहता है तथा हर इमोशन में उनके साथ होता है । ब्रैड पिट की पत्नी की भूमिका में मिरैले एनोस का अभिनय दिल को छूने वाला है। ब्रैड पिट को अन्य कलाकारों जेम्स बैज डेल, मेथ्यु फॉक्स, डेविड मोर्स, लुडी बोएकेन, आदि का खूब साथ मिला है।
अगर दर्शक चलते फिरते मुरदों से डरना चाहते हैं, रोमांचित होना चाहते हैं और उन पर मानवता की जीत दर्ज करना चाहते हैं, तो वर्ल्ड वार ज़ेड को देख कर इन खुशियों का मज़ा लूट सकते हैं।







Friday, 21 June 2013

क्या दर्शक बनाना चाहेगा धनुष को अपना राँझना!

 
 तनु वेड्स मनु जैसी 2011 में रिलीज मनोरंजक फिल्म बनाने वाले आनंद एल राज की फिल्म है आज रिलीज राँझना। उनका यूपी कनैक्शन है। इसलिए उनकी फिल्मों की पृष्ठभूमि भी उत्तर प्रदेश का कोई शहर ही होता है। तनु वेड्स मनु में कानपुर था। राँझना में वाराणसी  है। अगर नहीं भी होता तो कोई भी हो सकता था। मुंबई  में भी राँझना जैसे आशिक हैं। दिल्ली में तो ढेरों भरे हैं। गुजरात में भी आशिकों की भरमार है। विश्वास न हो तो अपने संजय लीला भंसाली से पूछ लो कि वह परदे पर कितने गुजरातियों से राम लीला या रास लीला करवा चुके हैं। अब, चूंकि, राँझना का राँझना वाराणसी का है तो वह मंदिर के पुजारी का बेटा है। मंदिर में डमरू बजाता है। चंदा मांगते फिरता है। बाकी वह सेकुलर टाइप का है। एक मुसलमान लड़की से शादी करना चाहता है। लड़की के हाथों से 15 लप्पड़ खाने के बाद 16वें लप्पड़ में लड़की भी उसे चाहने लगती है। लड़की के परिवार में पता चलता है तो हँगामा मच जाता है। लड़की को अलीगढ़  भेज दिया जाता है। वह अलीगढ़ से दिल्ली की सेकुयलर यूनिवरसिटि जेएनयू में चली जाती हैं, जहां पूरे देश को नेता और राजनीति की सप्लाइ होती है। लड़की को भी एक अदद नेता मिल जाता है। वह उसे अकरम बता कर बनारस ले आती है शादी के लिए। हिन्दू लड़का टूटे दिल के साथ लड़की के माता पिता को लड़की की शादी अकरम से करने को राजी भी करता है। लेकिन ऐन शादी के मौके पर हिन्दू लड़के के सामने भेद खुलता है कि अकरम वास्तव में हिन्दू है। वह यह भेद निकाह के वक़्त खोल देता है। लड़की के परिवार के लोग नकली अकरम को मार मार कर रेल्वे लाइन पर मरने   के लिए छोड़ देते हैं। यहाँ यह समझ में नहीं आता कि वह कुन्दन यानि धनुष को क्यों छोड़ देते हैं? क्या अकरम मारा जाता है? क्या लड़के का लड़की से शादी का रास्ता साफ हो जाता है? नहीं भाई नहीं। यूपी वाले की फिल्म है, आसानी से खत्म होने वाली नहीं। 140 मिनट से ज़्यादा चलती हैं राजनीति का तड़का लेकर।
बस इससे ज़्यादा कहानी लिखने की ताकत नहीं । आनंद की राँझना के लेखक हिमांशु शर्मा ने यह क्या किया। सेकुलर कहानी के साथ राजनीति के इतने पेंच क्यों जोड़ दिये? अगर ऐसा नहीं भी होता तो भी क्या हो जाता। कहानी कभी इधर लुढ़कती तो कभी उधर लुढ़कती और भटकती चलती चली जाती है बनारस से Jalandhar और फिर दिल्ली। अबे अगर बनारस में ही खत्म हो जाती तो क्या हो जाता। क्या वहाँ राजनीतिक नेता पैदा करने वाली बनारस हिन्दू यूनिवरसिटि नहीं? हो सकता है  उसे आनंद सेकुलर न मानते होंगे। बहरहाल, फिल्म बनारस के राँझना से निकल कर दिल्ली के जेएनयू के नेता छात्रों का नेतृत्व  करने वाले कुन्दन तक पहुँच जाती है। कहानी में इस प्रकार के अविश्वसनीय ट्विस्ट अँड टर्न देख देख कर दर्शक का भेजा फ्राई हो सकता है। यहीं कारण है कि फिल्म दर्शकों तक अपना उद्देश्य नहीं पहुंचा पाती। समझ में नहीं आता कि यह रोमैन्स फिल्म है या कुछ और।
राँझना के सबसे  मजबूत पक्ष हैं अभिनेता धनुष । क्या अभिनय कराते हैं वह। अत्यधिक गरीब और कमोबेश बदसूरत चेहरे के बावजूद वह बेहद सशक्त अभिनय करते हैं। लगता ही नहीं कि दर्शक दक्षिण के एक बड़े अभिनेता को देख रहे हैं। हर प्रकार के भाव वह बड़ी आसानी से अपने चेहरे पर लाकर दर्शकों तक पहुंचा देते हैं। पूरी फिल्म धनुष की फिल्म बन जाती है। अगर, हिन्दी दर्शकों ने दक्षिण का अभिनेता होने के नाते धनुष के साथ नाइंसाफ नहीं किया तो दर्शकों को आगे भी धनुष की अच्छे अभिनय वाली कुछ अच्छी फिल्में देखने को मिल सकती हैं। धनुष की प्रेमिका से नेताइन बनने वाली जोया की भूमिका में सोनम कपूर हैं। उनका अभिनय अच्छा है। लेकिन हिन्दी बोलते समय ऐसा लगता है जैसे सोनम के दांतों में दर्द हो रहा हो।  स्पेशल अपीयरेंस में अभय देओल जमे हैं। धनुष के दोस्त मुरारी की भूमिका में जीशान अयुब प्रभावशाली रहे हैं। स्वरा भास्कर का अभिनय भी प्रशंसनीय है। फिल्म की लंबाई को नियंत्रित किए जाने की ज़रूरत थी। पर कहानी के इधर से उधर भटकने के कारण यह संभव नहीं था। हेमल कोठारी अपने काम को ठीक तरह से अंजाम नहीं दे सके। एआर रहमान का संगीत फिल्म को खास सपोर्ट करने वाला नहीं।
अब रही बात फिल्म देखने की या न देखने की  तो धनुष के लिए, उनके सोनम के साथ रोमैन्स के लिए राँझना देखी जा सकती है । लेकिन, बनारस के लिए देखने जैसी कोई बात नहीं है फिल्म में। वैसे दर्शक जिस प्रकार से फुकरे जैसी फिल्में पसंद कर रहे हैं, उसे देखते हुए राँझना की गाड़ी बॉक्स ऑफिस पर धीमी ही सही चलती रहनी चाहिए।
एक बात यूपी के फ़िल्मकारों से। भैये क्या अपनी फिल्म के किरदारों खास तौर पर महिला किरदारों के मुंह से गालिया निकलवाना ज़रूरी है?









Thursday, 20 June 2013

फ्युचर 'टैन्स' : राँझना, एनिमी...शॉर्टकट रोमियो


कल जब आनंद एल राज की राँझना, आशु त्रिखा की एनिमी और सुशी गणेश की शॉर्टकट रोमियो रिलीज  होने  जा रही  हैं, इन फिल्मों की धनुष, महाक्षय और नील नितिन मुकेश की अभिनेता तिकड़ी के दिलो दिमाग पर टेंशन छाया होगा।  इन फिल्मों के साथ इन तीनों अभिनेताओ का भविष्य यानि फ्युचर शिद्दत से जुड़ा हुआ है। जब तक इन फिल्मों पर दर्शकों का निर्णय पता नहीं लगता, तब तक इन अभिनेताओं का तनाव में यानि टेंशन में  होना स्वाभाविक है।
राँझना दक्षिण के सुपर स्टार धनुष की फिल्म है। धनुष का भविष्य दक्षिण की तमिल और तेलुगू फिल्मों में सुरक्षित है। लेकिन, उनके हाथों में दक्षिण के अभिनेताओं का भविष्य है। अभी तक दक्षिण का कोई अभिनेता हिन्दी फिल्मों में इतना सफल नहीं हो सका है कि बॉलीवुड बादशाह या सुपेरस्टार का खिताब पा सके। इनमे कमल हासन और रजनीकान्त जैसे सुपर अभिनेता भी शामिल हैं। रजनीकान्त तो धनुष के ससुर  भी हैं। अगर वह हिन्दी फिल्मों के राँझना बन पाये तो अपने ससुर से सुपर साबित होंगे। एक प्रकार से धनुष का तनाव खुद   के लिए तो है, अपने साथी अभिनेताओं के लिए भी है।
एनिमी अस्सी के दशक के गरीब फिल्म निर्माताओं के अमिताभ बच्चन मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह उर्फ  महाक्षय चक्रवर्ती की फिल्म है। महाक्षय ने मिमोह नाम से पाँच साल पहले फिल्म जिमी से डेबू किया था। फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हुई। दूसरी फिल्म हैमिल्टन पैलेस रिलीज ही नहीं हो सकी। 2011 में महाक्षय की दो फिल्मे हौंटेड 3डी और लूट रिलीज हुई। 3डी होने के कारण हौंटेड चली। लेकिन महाक्षय को लूट के फ्लॉप होने का नुकसान अधिक हुआ। एनिमी एक कॉप एक्शन ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म में महाक्षय अपने पिता मिथुन चक्रवर्ती के सीबीआई अधिकारी के किरदार के ऑपोज़िट सीआईडी अधिकारी के रोल में हैं। फिल्म में सुनील शेट्टी, केके मेनन और ज़ाकिर हुसैन जैसे सक्षम अभिनेताओं के साथ हैं। यह फिल्म हिट हुई तो महाक्षय को अपना कैरियर खत्म होने से बचाने का थोड़ा वक़्त मिल सकेगा।
महाक्षय जैसा ही हाल नील नितिन मुकेश का भी है। मशहूर गायक मुकेश के पोते और नितिन मुकेश के बेटे नील ने अपने कैरियर की शुरुआत सस्पेन्स थ्रिलर फिल्म जॉनी गद्दार से धर्मेंद्र जैसे सीनियर अभिनेता के साथ फिल्म से हुई थी। इस फिल्म को ठीकठाक सफलता मिली थी। पर फिल्म में उनका नेगेटिव किरदार उनके कैरियर के लिहाज से मुफीद नहीं साबित हुआ। नील की अगली फिल्म बिपाशा बसु के साथ आ देखें जरा फ्लॉप हो गयी। न्यूयॉर्क और जेल अच्छी गईं। पर नील को खास फायदा नहीं हुआ। इसमे कोई शक नहीं कि नील ने अपनी अब तक रिलीज 11 फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया । पर कैरियर के लिहाज से इन्हे बॉक्स ऑफिस पर इतनी सफलता नहीं मिल सकी कि नील अपना स्थायी मुकाम बना पाते। इसीलिए नील को शॉर्टकट रोमियो से बेहद अपेक्षाएँ हैं। इस फिल्म का हिट होना नील के लिए ज़रूरी है। क्योंकि, उनकी इस साल रिलीज दो फिल्में डेविड और 3जी असफल हुई हैं। अगर, शॉर्ट कट रोमियो ठीक ठाक सफलता भी हासिल नहीं कर पायी तो नील की फिल्मों की असफलता की हैटट्रिक बन जाएगी। इसलिए नील नितिन मुकेश सबसे ज़्यादा टैन्स हो रहे होंगे।

बॉक्स ऑफिस पर कल क्या होगा? क्या धनुष, नील और महाक्षय का रिलैक्स हो पाएंगे? क्योंकि, इन तीनों को एक दूसरे से नहीं बल्कि, हॉलीवुड के सुपर सितारे ब्रैड पिट की फिल्म वर्ल्ड वार ज़ेड से डर महसूस हो रहा होगा। यह हॉलीवुड की जोम्बी फिल्म है। हॉलीवुड की जोम्बी फिल्में भारतीय दर्शकों को भी पसंद आती हैं। इसलिए धनुष को राँझना में अपना रोमैन्स, नील को शॉर्ट कट रोमियो में अपना थ्रिलर रोमैन्स और महाक्षय को एनिमी में अपना एक्शन इतना स्ट्रॉंग बनाना होगा कि वह हॉलीवुड के चलते फिरते मुरदों को टक्कर दे पाये। क्या ऐसा होगा? इन तीनों अभिनेताओं में जो भी ऐसा कर पाया वह टेंशन मुक्त होगा। यही है इन तीनों का फ्युचर टैन्स ।



Monday, 17 June 2013

'मैन ऑफ स्टील' से चुटाए गए 'अंकुर अरोरा' और 'फुकरे'


हॉलीवुड की फिल्में लगातार बॉलीवुड की फिल्मों को उन्ही के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पटखनी दे रही हैं। इस शुक्रवार, बेशक कम मशहूर चेहरों वाली छोटे बजट की फिल्में हॉलीवुड की बड़े बजट की फिल्म के सामने थीं, लेकिन यह फिल्में बड़े प्रोड्यूसरों की फिल्में थी। हॉलीवुड की ज़क Snyder निर्देशित सुपर हीरो फिल्म मैन ऑफ स्टील को वॉर्नर ब्रदर्स पिक्चर्स इंडिया द्वारा 800 प्रिंट्स में रिलीज किया गया था। पर दो हिन्दी फिल्मों फुकरे और अंकुर अरोरा मर्डर केस के निर्माता बड़ी फिल्मों के और अनुभवी निर्माता थे। फुकरे रितेश सिधवानी

और फरहान अख्तर की फिल्म थी। जबकि, अंकुर अरोरा मर्डर केस के निर्माता विक्रम भट्ट काफी अनुभवी  
फ़िल्म निर्माता निर्देशक हैं। इसलिए इन लोगों ने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप अपनी अपनी फिल्मों का जम कर प्रचार किया था। इसके बावजूद दोनों हिन्दी फिल्मों का बॉक्स ऑफिस पर बुरा हाल हुआ। हॉलीवुड के सुपर हीरो सुपरमैन की फिल्म मैन ऑफ स्टील ने छलांगों पर छलांग भरते हुए बॉक्स ऑफिस पर वीकेंड में 21 करोड़ की कमाई कर डाली। इसके मुकाबले फुकरे ने 9 करोड़ से कुछ ज़्यादा कमाए तो अंकुर अरोरा 1 करोड़ से आगे नहीं बढ़ पाये।

हॉलीवुड की विज्ञान फैंटसी भारतीय दर्शकों को खूब रास आ रही है। मैन ऑफ स्टील अपने स्पेशल एफफ़ेक्ट्स के कारण दर्शकों को रास आयी। जबकि, दूसरी ओर फुकरे की चार दोस्तों की कहानी में नयेपन की कोई गुंजायश नहीं थी। वही बासी घटनाक्रम और चुट्कुलेनुमा संवाद दर्शकों को लुभा नहीं सके। भाई रितेश और फरहान काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती। अंकुर अरोरा मर्डर केस बेशक एक ईमानदार कोशिश थी, पर दर्शक फिल्म देखने मनोरंजन के लिए जाता है। वह जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटनाओं को देखना चाहता है, पर इतने सपाट ढंग से नहीं। लेकिन, सबसे बड़ी बात यही है कि मैन ऑफ स्टील की अपील हिन्दी फिल्मों पर भरी पड़ी।
                                                                

Sunday, 16 June 2013

वर्ल्ड वार ज़ेड- चलते फिरते मुरदों से युद्ध


आज रिलीज हो रही हॉलीवुड के मशहूर अभिनेता ब्रैड पिट की फिल्म वर्ल्ड वर ज़ेड की कहानी यूनाइटेड नेशन्स के लिए काम करने वाले Gerry लेन की कहानी है, जो विश्व की सरकारों, मानवता और सेना को खत्म करती जा रही जोम्बी के आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए विश्व की यात्रा कर रहा है। वह अपने इस प्रयास में कैसे सफल होता है, यह वर्ल्ड वार ज़ेड की रोचक कहानी है। यह हॉलीवुड की जोम्बी फिल्मों की श्रखला में एक फिल्म है।

फिल्म का निर्देशन क्वांटम ऑफ सोलके, मोंस्टर्स बॉल, फिंडिंग नेवेर्लंद और द काइट रनर जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके मार्क फॉस्टर ने किया है। फिल्म को Mathew Michael carnahan ने ड्रेव गोड्डार्ड और डमों लिंदेलोफ के साथ मिल कर लिखा है। फिल्म मैक्स ब्रुक्स की पुस्तक वर्ल्ड वार ज़ेड पर आधारित है। एक घंटा 56 मिनट लंबी इस फिल्म की निर्माण लागत 200 मिल्यन डॉलर की है। फिल्म 2डी, रियलडी 3डी और आइमैक्स 3डी जैसी उत्क्रष्ट तकनीक का इस्तेमाल कर बनाई गयी है।

ब्रैड पिट की इस फिल्म को पहली बार, वर्ल्डवाइड रिलीज से पहले इंटरनेट पर देखा जा सकेगा। विडियो  ऑन डिमांड  कंपनी Netflix के इंटरनेट के जरिये फिल्म रिलीज के क्षेत्र में उतर आने के कारण यह संभव हो रहा है।  नेट्फ़्लिक्स ने उत्कृष्ट तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इस कंपनी ने मेगा टिकिट प्रणाली लागू की है। इस योजना को पैरामाउंट पिक्चर्स ने शुरू किया है। इस योजना के अंतर्गत इच्छुक दर्शकों को 50 डॉलर का टिकिट खरीदना होगा। उन्हे फिल्म देखने के लिए  3डी ग्लाससेस और पॉपकॉर्न का पाकेट तथा पोस्टर दिया जाएगा। जब इस फिल्म को ब्लू रे में जारी किया जाएगा, तब फिल्म की एक डिजिटल कॉपी भी दी जाएगी। हॉलीवुड की फिल्मों के दर्शकों को नयी फिल्म देखने के लिए 15 डॉलर का टिकिट खरीदना पड़ता है। घर से सिनेमाघर और सिनेमाघर से घर तक जाने और थिएटर में स्नैक्स आदि लेने का खर्च अलग होता है।

हालांकि, नेट्फ़्लिक्स की यह योजना काफी महंगी प्रतीत होती है। फिर भी इस योजना से दर्शकों को सिनेमाघर  तक जाने और महंगे टिकिट खरीद कर फिल्म देखने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ेगी। अगर यह योजना सफल हुई तो संभव है कि अन्य फिल्म निर्माण कंपनियां इस योजना के साथ आयें। भारत में तो कमल हासन द्वारा विश्वरूपम को फिल्म की थिएटर रिलीज से दो दिन पहले रिलीज करने की योजना बनाई तो वितरकों के विरोध के कारण अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। 

Friday, 14 June 2013

फुकरे फुकरे ही होते हैं !


इधर बॉलीवुड को दोस्तों पर फिल्में बनाने का शौक चर्राया है। कई पो चे, चश्मे बद्दूर, स्टूडेंट ऑफ द इयर  जैसी  फिल्मों की सफलता ने इस ट्रेंड को  बढ़ावा ही दिया है। इसी का नतीजा है मृगदीप सिंह लांबा निर्देशित, निर्माता रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर की फिल्म फुकरे।
फुकरे अन्य दोस्ती फिल्मों के मुकाबले अलग इस लिहाज से है कि यह फिल्म दो या तीन दोस्तों की नहीं, बल्कि चार चार दोस्तों की दोस्ती की कहानी है। फिल्म में चार दोस्तों और उनकी दो महबूबाओं के किरदार के अलावा एक महिला डॉन भोली पंजबान के किरदार को खास महत्व दिया गया। बाकी, हर लिहाज से फिल्म घिसी पिटी ही है। फुकरे यानि चार निठल्ले बेकार दोस्तों की कहानी है। दो दोस्त लॉटरी के जरिये पैसा कमाते हैं। एक दोस्त सपना देख कर नंबर बताता है। दोनों इसी नंबर के लॉटरी टिकिट खरीदते हैं और इनाम जीतते हैं। तीसरा ग्रेजुएट बनाने के लिए पेपर ओपेन करने की फिराक में रहता है। चौथा गायक बनाना चाहता है, पर मौका मिलने पर माइक के सामने गा नहीं पाता। यह चारों इत्तेफाकन मिलते हैं और ढेरों कमाने के लिए भोली पंजाबन के जाल में फंस जाते हैं।
कहानी के लिहाज से फिल्म बिल्कुल रद्दी है। विपुल विग एक अच्छी कहानी लिखने में असफल रहे हैं। विपुल ने ही मृगदीप के साथ फिल्म की पटकथा लिखी है। पर यह कल्पनाहीनता का शिकार है। लगभग सभी सीन बासी हैं। कहीं भी लेखक निर्देशक की कल्पनाशीलता नहीं झलकती। दोस्तों की फिल्म में महिला डॉन का किरदार  कोई अच्छी कल्पना नहीं। फिल्म रुकती थमती चलती रहती है। केवल क्लाइमैक्स में ही थोड़ी rafter पकड़ती है।
फिल्म के चार दोस्त पुलकित सम्राट, मनजोत सिंह, अली फज़ल  और वरुण शर्मा बने हैं। यह चारों कुछ खास करते नज़र नहीं आते। बेहद बासी अभिनय है इन चारों का। मेल कैरक्टर में इन चारों से अच्छा अभिनय पंडित के रोल में पंकज त्रिपाठी करते हैं। फ़ीमेल कैरक्टर में विशाखा सिंह और प्रिया आनंद ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। इस फिल्म में सबसे महत्वपूर्ण कैरक्टर भोली पंजाबन का है। इस भूमिका को रिचा चड्ढा ने किया है। रिचा चड्ढा को गंग्स ऑफ वासेपुर के दो भागों से सुर्खियां मिली। लेकिन, इस फिल्म में भोली पंजाबन की भूमिका में वह ख्दु को डुबोने को उतारू नज़र आती हैं। वह डॉन हैं। अच्छी बात है। अभिनेत्रियों को ऐसे रोल करने का पूरा अधिकार है। पर वह सेक्सी क्यों नज़र आ रही थीं। जहां फिल्म की दूसरी नायिकाएँ सामान्य लड़कियों की तरह नज़र आ रही थीं, रिचा चड्ढा अपने उघड़े बदन और अनावश्यक रसीलापन दिखा कर खुद को उम्र में कम बताने का प्रयास कर रही थीं। वह बहुत निराश करती हैं।
इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है, जो उल्लेखनीय हो। दर्शक फिल्म के पंचों के कारण हँसता है। पर पूरी तरह से संतुष्ट नहीं होता। वैसे फिल्म के दर्शक फिल्म में ऊबते नहीं। यही मृगदीप सिंह लांबा की सफलता है। लेकिन, फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी से ऐसी रद्दी कहानी पर फिल्म की उम्मीद नहीं थी। 

स्पेशल एफ़ेक्ट्स से बना सुपरमैन !


हॉलीवुड को भारत में अपने सुपरमैन से बहुत उम्मीदें रहती हैं। आइरन मैन 3 ने पिछले महीने ही सफलता के रेकॉर्ड तोड़े थे। इसीलिए मैन ऑफ स्टील यानि सुपरमैन से भी काफी उम्मीदें थीं। लेकिन, क्या सुपरमैन सिरीज़ की रिबूट फिल्म मैन ऑफ स्टील Hollywood की उम्मीद पर खरी उतरेगी?
सुपरमैन सिरीज़ की छठी फिल्म मैन ऑफ स्टील में काफी कुछ नया था। यह फिल्म सुपरमैन का सेकुएल नहीं  रिबूट है।  यानि इस  फिल्म में सुपरमैन के मैन ऑफ स्टील बनने और पत्रकार बनने की दास्तान है। सुपरमैन  कौन था, कहाँ से आया, उसे परा शक्तियां कहाँ और कैसे मिली? इस फिल्म की यही कहानी है। इसीलिए फिल्म में एक्शन काम है। चमत्कार हैं, पर स्पेशल इफैक्ट और कम्प्युटर ग्राफिक्स के। फिल्म के डाइरेक्टर भी नए हैं और हीरो भी नया है। सुपरमैन रिटर्न्स की बुरी असफलता के बाद Brandon रॉथ का सिरीज़ से पत्ता कट गया। वह केवल एक ही बार सुपरमैन बन पाये। जैक स्निदर निर्देशक की कुर्सी पर आ बैठे। reboot में इस नयी जोड़ी की कड़ी परीक्षा थी। पर यह जोड़ी फ़र्स्ट क्लास मार्क्स से पास नहीं हो पायी। फिल्म यह तो बताती है कि मैन  ऑफ स्टील की कहानी सुपरमैन के मैन ऑफ स्टील बनने की है। मगर पटकथा लेखक और कहानीकार डेविड एस गोयर तथा Christopher Nolan यह साबित कर पाने में असफल रहे हैं। मानव के बीच में रहने वाले इस लोहे के आदमी को सचमुच लोहा साबित होना चाहिए था। लेकिन जैक स्निडर ने हेनरी केविल के बजाय अपनी तकनीकी टीम पर ज़्यादा भारोषा किया। नतीजतन फिल्म तकनीकी उत्कृष्टता का शिकार हो गयी। इस फिल्म का जब तक क्लाइमैक्स आता है, दर्शक ठंडा हो चुका होता है। यह फिल्म मानवता के प्रति कोई संदेश नहीं देती। जबकि इसके पहले की कड़िया अमेरिका ही नहीं विश्व को बचाने का संदेशा देती थीं।
सुपरमैन के किरदार में हेनरी केविल बहुत प्रभावित नहीं करते। उन पर भारी पड़ते हैं फिल्म के विलेन Michael शेन्नॉन। तकनीकी दृष्टि से फिल्म उत्कृष्ट श्रेणी की है। लेकिन, इनमे कोई नयापन नहीं। इन्हे देखते समय गोड्ज़िला जैसी फिल्मों की याद आ जाती है। ग्लाडियाटोर से मशहूर रसेल क्रोव ने सुपरमैन के पिता की भूमिका की है। वह प्रभावशाली हैं।
 मैन ऑफ स्टील की इंडियन बॉक्स ऑफिस पर शुरुआत अच्छी रही है। इस फिल्म ने 75 प्रतिशत तक की ओपेनिंग ली है। जैसी इस ब्लॉग में मैन ऑफ स्टील के बारे में लिखते समय कहा गया था, फुकरे और अंकुर अरोरा मर्डर केस कहीं बहुत पीछे छूट गए हैं। लेकिन, मैन ऑफ स्टील वीकेंड के बाद इंडियन आडियन्स पर अपनी कितनी पकड़ दिखा पाती है, यही महत्वपूर्ण होगा।
 
 

Thursday, 13 June 2013

मैन ऑफ स्टील के सामने कैसे टिकेंगे अंकुर और फुकरे !

 इस सुपर स्टार का जन्म 81 साल पहले कॉमिक्स बूक में हुआ था। 35 साल पहले इस का रील लाइफ जन्म हुआ। आज यह दुनिया भर का पसंदीदा कैरक्टर बन चुका है। सुपरमैन !जी हाँ, दुनिया भर के दर्शक इस सुपर हीरो को इसी नाम से जानते हैं। कॉमिक्स से निकल कर यह किरदार रेडियो और टीवी से होता हुआ बड़े पर्दे पर छा गया है। 1978 में, जब इस कैरक्टर पर फिल्म सुपरमैन रिलीज हुई थी तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह इतनी सफल होएगी। इसीलिए Robert Benton की कहानी पर Richard डोनोर निर्देशित इस फिल्म को महज 817 प्रिंट्स में रिलीज किया गया। 55 मिल्यन डॉलर में बनी इस फिल्म ने 300 मिल्यन डॉलर कमा डाले। तब से यह कैरक्टर Hollywood के दूसरे सुपर पावर रखने वाले स्पाइडरमन, आइरन मेन, आदि के साथ दुनिया को अपनी ताकत का भरोसा दिलाने में जुटा हुआ है।
अब तक, सुपरमैन सिरीज़ की 5 फिल्में रिलीस हो चुकी हैं।  14 जून को रिलीस हो रही सुपरमैन सिरीज़ की छठी फिल्म मैन ऑफ स्टील, दरअसल सुपरमैन सिरीज़ का रेबूट है।  सुपरमैन सिरीज़  की पाँचवी फिल्म सुपरमैन रिटर्न्स बॉक्स ऑफिस पर वर्ल्ड वाइड कुछ खास नहीं कर सकी। 270 मिल्यन डॉलर में बनी सुपरमैन रिटर्न्स ने केवल 391 मिल्यन डॉलर ही कमाए। नतीजे के तौर पर फिल्म के निर्देशक ब्रायन सिंगर को बर्खास्त कर दिया गया। Brandon रॉथ दूसरी बार सुपरमैन नहीं बन सके।
सुपरमैन सिरीज़ की इस छठी कड़ी में सुपरमैन का रोल द काउंट ऑफ मोंटे  क्रिस्टे और रेड राइडिंग हूड़ के अभिनेता हेनरी केविल कर रहे हैं। फिल्म का निर्देशन साइन्स फिक्सन  और एक्शन फिल्मों के महारथी जैक स्निडर कर रहे हैं।

इधर कुछ सालों से, हॉलीवुड के सुपर हीरो Bollywood के सुपर हीरो को बुरी तरह से चुनौती दे रहे हैं। सुपरमैन यानि मैन ऑफ स्टील का दबदबा इस शुक्रवार बॉक्स ऑफिस पर होना स्वाभाविक है। क्योंकि, मैन ऑफ स्टील के सामने बॉलीवुड की दो छोटी चुनौतियां ही हैं। सुहेल तातारी की केके मेनन, टिस्का चोपरा, पाओली डैम और विशाखा सिंह जैसी सामान्य स्टार कास्ट वाली छोटे बजेट की फिल्म अंकुर अरोरा मर्डर केस के अलावा  बड़े निर्माता फरहान अख्तर और रेतेश सिधवानी की मृगदीप सिंह लांबा की मामूली बजेट में बनी फिल्म फुकरे रिलीस हो रही है। चार दोस्तों की कहानी वाली इस दोस्ती फिल्म में वरुण शर्मा, पुलकित सम्राट, मनोज सिंह, अली फज़ल, रिचा चड्डा, विशाखा सिंह और प्रिया आनंद जैसे नए चेहरे है। ज़ाहिर है कि यह फिल्में मैन ऑफ

स्टील  के सामने कहीं नहीं टिकतीं। इसलिए एक प्रकार से हॉलीवुड की फिल्म के लिए बॉलीवुड ने मैदान छोड़ रखा है। बॉलीवुड की छोटे बजेट वाली फिल्में माउथ पब्लिसिटी पर थोड़ा अच्छा बिज़नस  कर सकती हैं। लेकिन जिस प्रकार से अगले हफ्तों में बड़ी फिल्में लाइन में हैं उससे लगता नहीं कि फुकरे या अंकुर अरोरा मर्डर केस कुछ खास कर पाएँगी। वैसे इस हफ्ते की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मैन ऑफ स्टील को भी भारतीय दर्शकों को लुभाने के लिए ज़ोर मारना पड़ेगा। क्योंकि, सुपरमैन रिटर्न्स भारत में भी कुछ खास नहीं कर पायी थी।

Wednesday, 12 June 2013

बॉक्स ऑफिस पर यह जवानी है दीवानी से मात खा गया यमला पगला दीवाना


यमला पगला दीवाना२  अपेक्षा के अनुरूप बिज़नेस क्यों नहीं कर सकी? इस फिल्म ने वीकेंड में २२ करोड़ का साधारण बिज़नेस ही किया? क्या फिल्म दर्शकों की अपेक्षा में खरी नहीं उतरी? फिल्म में धर्मेन्द्र और उनके दो बेटे बॉबी और सनी एक साथ थे. इस तिकड़ी की पिछली रिलीज फ़िल्में अपने और यमला पगला दीवान ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिज़नेस किया था। या फिर यमला पगला दीवाना को रणबीर कपूर और दीपिका पदुकोन की फिल्म यह जवानी है दीवानी की सफलता मार गयी? यह फिल्म सबसे तेज़ सौ करोड़ कमाने वाली फिल्म बन चुकी है. वास्तविकता यह है कि यमला पगला दीवाना२ दोहरे हमले का शिकार हुइ. 
कहा जा सकता है कि  यमला पगला दीवाना २ दर्शकों की अपेक्षा  में खरी नहीं उतरी. इस फिल्म की कहानी ख़ास नहीं थी. देओल्स का आकर्षण था. धर्मेन्द्र ने अपने दोनों बेटों के साथ अच्छा तालमेल बनाया था . पर सनी देओल का किरदार काफी कमज़ोर रहा . सनी के ढाई किलो के हाथ का जलवा देखने को नहीं मिल. हालाँकि संगीत सिवन ने सनी को लार्जर देन लाइफ एक्शन में दिखाया था. लेकिन इसकी इन्तहा दर्शकों के गले नहीं उतरी. सनी का बार बार अपनी चीख से लोगों को हवा में उड़ाना बेक फायर कर गया. पहली फिल्म की तुलना में फिल्म का संगीत भी कमज़ोर था. इसके बावजूद उत्तर में देओल्स की पकड़ ने फिल्म को वाश आउट  होने से बचा लिया. यमला पगला दीवाना २ का यह जवानी है दीवानी के पीछे पीछे रिलीज़  होना भी फिल्म के बिज़नेस को प्रभावित कर गया . सफल यह जवानी है दीवानी के प्रिंट उतरने की हिम्मत प्रदर्शकों को नहीं हुइ. दर्शकों ने भी यमला पगला के बजाय यह जवानी को देखने को प्राथमिकता दी.
यमला पगला दीवाना २ ने वीकेंड में 7.50, 6.50 और 8.50 करोड़ के कलेक्शन के साथ केवल 2२ करोड़ का वीकेंड ही निकाल पायी। वही यह जवानी है दीवानी पहले दिन यानि शुक्रवार को यमला पगला दीवाना से 50 लाख से पिछड़ी, लेकिन अगले दिन यानि शनिवार को यह जवानी ने छलांग लगायी और 10.25 करोड़ का कलेक्शन कर ले गयी. सन्डे को यह जवानी है दीवानी यमला पगला दीवाना २ से कोई सवा तीन करोड़ आगे थी. इस प्रकार से फिल्म ने यमला पगला दीवाना को पहले वीकेंड में पछाड़ दिया.



 

Friday, 7 June 2013

देओल्स के लिए देख सकते हैं यमला पगला दीवाना 2


संतोष सिवन निर्देशित फिल्म यमला पगला दीवाना 2 को पूरी तरह से नकारना, देओल्स और संतोष सिवन के साथ बेईमानी होगी। हिन्दी फिल्मों में, खास तौर पर बड़े बजट और बड़े सितारों वाली फिल्मों में कहानी होती ही कहाँ है, जो यमला पगला दीवानी 2 में ढूँढी जाए। यह फिल्म 2011 में रिलीज यमला पगला दीवाना का सेकुएल है। कहानी वहीं से शुरू होती है यानि बनारस के बाप बेटा ठगों से उठ कर London आती है। पिछली यमला पगला दीवाना जहां ज़्यादा बनारस में शूट हुई थी, वही यह सेकुएल लंदन में ज़्यादा शूट हुआ है। इसलिए प्राकृतिक दृश्य देखने लायक है। धर्मेंद्र और बॉबी, अनु कपूर को ठगने लंदन आते हैं। सनी देओल अनु कपूर के लिए काम करते हैं। धर्मेंद्र और बॉबी, सनी को देख कर चौंक जाते हैं। सनी अपने तौर पर अपने पिता और भाई को सुधारने की कोशिश करते हैं। सुधार पाते हैं या नहीं, यह फिल्म देखने के बाद ही साफ होगा।
इस नदारद या कहिए की कूड़ा कहानी वाली फिल्म का खास आकर्षण देओल्स है। पिता धर्मेंद्र के साथ बेटों सनी और बॉबी की कैमिस्ट्रि खूब जमी है। वास्तविकता तो यह है कि जहां अपने और यमला पगला दीवाना में दोनों बेटे पिता से झिझकते हुए तथा बॉबी सनी से डरते हुए अभिनय करते नज़र आए थे। यमला पगला दीवाना 2 में  इन तीनों के बीच कोई झिझक नहीं है। तीनों एक दूसरे के सामने बेधड़क अभिनय करते हैं। इसी कारण से तीनों के अभिनय में काफी स्वाभाविकता है। धर्मेंद्र ने साबित किया है कि वह पुराना चावल क्यों हैं। फिल्म धर्मेंद्र के बाद पूरी तरह से सनी देओल पर टिकी है। वह अपने पुराने अवतार में है या यों कहिए सुपर अवतार में हैं। उनके ढाई किलों के घूंसों से ही उनके दुश्मन हवा में नहीं उड़ते, बल्कि, उनकी फूँक से भी दूर जा गिरते हैं। पीटर  हेन्स के एक्शन सनी को नए एक्शन करने के मौके देते हैं। सनी ने अपने एक्शन से तालियाँ भी खूब बटोरी हैं। खास तौर पर क्लाइमैक्स के एक्शन सींस बहुत बढ़िया है। बॉबी को बस ठीक ठाक कहा जा सकता है। सिंगल स्क्रीन के दर्शक नेहा शर्मा की एंट्री पर सीटियाँ मारते हैं, इसका मतलब यह है कि दर्शकों को उनमे ऊंफ नज़र आयी। अनुपम खेर बोर करते हैं। उनके साथ, उनके चमचे बने जॉनी लीवर और सुचेता खन्ना को देख कर खीज पैदा होती है। क्रिस्टीना अखीवा हिन्दी ठीक कर लें तो हिन्दी फिल्मों में उनकी दुकान चल सकती है।
जसविंदर बाथ ने पटकथा में नयापन लाने की भरसक कोशिश की है। अलबत्ता उनके लिखे संवाद साधारण हैं। फॉटोग्राफर नेहा परती ने सनी के एक्शन को खूब उभारा है। राजू सिंह का पार्श्व संगीत फिल्म के साथ न्याय करता है। चिराग जैन अगर अपनी कैंची थोड़ी बेरहम बना पाते तो फिल्म की रफ्तार थोड़ा तेज़ हो जाती। फिल्म की लंबाई कुछ ज़्यादा है। अब इसे देओल्स का जलवा ही कहा जाएगा कि दर्शक 155 मिनट की फिल्म देखते समय भी ऊबता नहीं।   
अगर दर्शक यमला पगला दीवाना 2 को नहीं देखेंगे तो कुछ खोएँगे नहीं। लेकिन अगर देओल्स के फैन हैं तो यमला पगला दीवाना 2 देखी जा सकती है। मलाल नहीं होगा। वैसे देओल्स की इस फिल्म को रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की पिछले शुक्रवार रिलीज फिल्म यह जवानी है दीवानी से नुकसान उठाना पड़ सकता है।

Thursday, 6 June 2013

क्या दीवानी की मौजूदगी में दर्शकों दीवाना बना पाएंगे यमला पगला देओल्स !


आज जब बॉलीवुड की फ़र्स्ट फॅमिली कपूर्स की पाँचवी पीढ़ी के रणबीर कपूर की फिल्म यह जवानी है दीवानी एक सौ करोड़ क्लब में प्रवेश कर गयी है, कल देओल फॅमिली की पहली और दूसरी पीढ़ी के धर्मेंद्र, उनके दो पुत्र सनी देओल और बॉबी देओल की फिल्म यमला पगला दीवाना 2 रिलीज हो रही है। यह फिल्म 2011 में रिलीज इस बाप बेटा तिकड़ी की फिल्म यमला पगला दीवाना का सेकुएल है। यमला पगला दीवाना अब तक 85 करोड़ से ज़्यादा कमा चुकी है। पहले भाग की सफलता को देखते हुए ही देओल्स ने फिल्म का सेकुएल बनाने की सोची थी। अब यह बात दीगर है कि इस दौरान फिल्म की एक्ट्रेस बदल गयी, डाइरेक्टर की कुर्सी पर संतोष सिवन बैठ गए ।
यहाँ यह बड़ा सवाल है ही कि क्या यमला पगला दीवाना की तरह इस फिल्म का सेकुएल भी हिट होगा? क्या यमला पगला दीवाना 2 भी यह जवानी है दीवानी की तरह दर्शकों को अपना दीवाना बनाते हुए 100 करोडिया क्लब में शामिल हो पाएगी?
यमला पगला दीवाना 2 में धर्मेंद्र, सनी देओल और बॉबी देओल तीसरी बार एक साथ हैं। इन तीनों की पहली दो फिल्में अपने और यमला पगला दीवाना बॉक्स ऑफिस पर हिट रही थीं। इसलिए इस तीसरी फिल्म के हिट होने में शक की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। लेकिन, इस पर शक की गुंजायश के बड़े कारण भी है। धर्मेंद्र में अब पहले वाली बात नहीं रही। उनका ही मैन अब अतीत की बात हो चुका है। वह कॉमेडी के उस्ताद हैं। लेकिन फिल्म के प्रोमो उनकी कॉमेडी को बासी बताते हैं। सनी देओल का ढाई किलो का मुक्का भी अब उतना वजनदार नहीं रहा। अगर फिल्म पूरी तरह से उन पर टिकी होती तो एक्शन से भरपूर होती, उनका ढाई किलो का मुक्का दसियों खलनायकों को हवा में उड़ा रहा होता। फिल्म में भी जब वह चीखते हैं तो सामने खड़े लोग हवा में उड़ने लगते हैं, लेकिन यह सब देखने में बचकाना लगता है। इसके बावजूद वह फिल्म को सपोर्ट करते लगते हैं। अब कितना कर पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। बॉबी देओल फिल्म को कोई फायदा नहीं पहुंचा सकते, फिल्म उनको फायदा  ज़रूर  पहुंचा सकती है। तभी तो देओल्स को अपने बीच एक बंदर की ज़रूरत भी महसूस हुई।   ऐसे में सब कुछ संतोष सिवन के निर्देशन और जसविंदर बाथ की पटकथा पर डिपेंड करेगा। अगर दोनों चुस्त रहे तो फिल्म सफल हो सकती है। कितनी सफल होगी, यह बाद की बात है।
लेकिन, यमला पगला दीवाना 2 और देओल्स की राह इतनी आसान नहीं होगी। उनकी राह पर रोड़ा बनेगा कपूर फॅमिली का पांचवा चिराग रणबीर कपूर  और उनकी फिल्म यह जवानी है दीवानी। यह फिल्म न केवल पहले हफ्ते में सौ करोडिया बन चुकी है, बल्कि इसका क्रेज़ बना हुआ हुआ है। हर वर्ग का दर्शक इस फिल्म को देखने का इच्छुक है और देख भी रहा है। सोमवार से फिल्म लगातार स्टैडि जा रही है। इसके बिज़नस में खास गिरावट नहीं हो रही है। अगर यह फिल्म ऐसे ही रोज दस दस करोड़ कमाती रही तो यमला पगला दीवाना 2 को दर्शकों को अपना दीवाना बनाने में तकलीफ होगी। इतना ही नहीं यह जवानी है दीवानी के क्रेज़ के कारण यमला पगला दीवाना 2 को पर्याप्त स्क्रीन मिलने में भी परेशानी होगी। इस फिल्म को मल्टीप्लेक्स में सुबह के शो नहीं मिल पा रहे हैं। यह टाइम स्लॉट यूथ के लिए होता है। इसमे यह जवानी है दीवानी ही जवान हो रही है।
यह जवानी  है दीवानी की कड़ी चुनौती के बावजूद यमला पगला दीवाना 2 के पक्ष में बात यह है कि यमला पगला दीवाना का genre यह जवानी है दीवानी से भिन्न है। यमला पगला दीवाना 2 और देओल्स का दर्शक रणबीर कपूर और उनकी फिल्म यह जवानी है दीवानी के दर्शकों से बिल्कुल अलग है। इसलिए देओल्स कपूर परिवार की पाँचवी पीढ़ी के सामने खड़े रह सकते हैं। लेकिन किस हद तक यह देखने वाली बात होगी।

Tuesday, 4 June 2013

बॉलीवुड टैप डांसिंग के ऑस्कर


1970 में अर्जुन हिंगोरनी की धर्मेंद्र, बबीता और प्राण अभिनीत फिल्म कब? क्यों? और कहाँ? में गो गो डांस गीत की स्वतंत्र रूप से choreography करने वाले ऑस्कर उंगेर आजीवन डांस को समर्पित रहे।  भारतीय  नौसेना के एंटि एयरक्राफ्ट गनर रहे ऑस्कर समुद्र यात्रा के दौरान नाच गा कर समय काटा करते थे। तेरे घर के सामने के एक गीत की रीहर्सल के दौरान अपने दोस्त के साथ सेट पर गए ऑस्कर को इत्तेफाक से ही तब के श्रेष्ठ डांस डाइरेक्टर सूर्य कुमार के सामने एक कठिन डांस स्टेप आसानी से करने का मौका मिल गया। यह शुरुआत थी नेवी के गनर की डांस मास्टर बनने की।  डांस मास्टर कमल के इस शिष्य ने नया ज़माना, ऐलान और भाई हो तो ऐसा में सहायक नृत्य निर्देशक की भूमिका निबाहने के बाद फिल्म बड़ा कबूतर और धर्मात्मा की स्वतंत्र कोरियोग्राफी की। Vijay के साथ मिलकर उन्होने विकास और अरुणा देसाई की फिल्म शक़ का नृत्य निर्देशन किया। इस जोड़ी की धूम मचा करती थी।  उन्होने इंकार, फांसी, लहू के दो रंग, दो और दो पाँच, कुदरत, क्रोधी, खुदा कसम, झूठा सच, कालिया, अंदर बाहर, आदि बड़ी फिल्मों की नृत्य रचना की। उनके इशारे पर Amitabh बच्चन, विनोद खन्ना, जैकी श्रोफ़्फ़, अनिल कपूर,रेखा, हेमा मालिनी,  आदि ने ठुमके लगाए। इंकार के मूंगड़ा मूंगड़ा गीत में Helen को कमर का लोच दिखने का गुर ऑस्कर ने ही सिखाया था। उन्होने गोविंदा को भी टिप्स दीं। अरमान फिल्म का रंभा हो हो हो, ज़ीनत अमान पर कुर्बानी का आप जैसा कोई तथा इल्ज़ाम में गोविंदा का आई एम अ स्ट्रीट डांसर उनके सदाबहार डांस नंबर थे। फिरोज खान की फिल्मों के वह रेगुलर choreographer थे।  उन्होने अपने 27 साल लंबे कैरियर में 103 फिल्मों का नृत्य संयोजन किया। लेकिन, जैसा की होता है। समय बदलता है, दर्शक बदलते हैं, इसके साथ ही दर्शकों की पसंदगी बदलती है, सरोज खान, फराह खान, आदि के आने के बाद विजय ऑस्कर के स्टेप्स का जादू खत्म होता चला गया। उन्होने आखिरी बार फिल्म खोया खोया चाँद के लिए कोरियोग्राफी की। उनकी अंतिम इच्छा रितिक रोशन के लिए स्टेप्स तैयार करने की थी। वह अपनी डांस अकादेमी में युवाओं को डांस के स्टेप्स सिखाया करते थे। उनकी इच्छा अपने किसी शिष्य को बॉलीवुड में  टैप डांसिंग का  अपना कमाल दिखाते हुए देखने की थी।   लेकिन, उनकी यह इच्छा अधूरी ही रह गयी। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। 

 

अबीर का यों चले जाना


मौत कब दबे पाँव पास आ जाती है और एक ज़िंदा शरीर को दबोच कर मुर्दा कर देती है, अबीर गोस्वामी इसका ताज़ातरीन उदाहरण है। इस टीवी एक्टर को क्या पता था कि वह जिस सेहत के लिए जिम में वर्कआउट कर रहा है, वह उसको बिल्कुल खत्म कर देगी। ट्रेड मिल पर दौड़ रहे अबीर को हार्ट अटैक ने वहीं दबोच लिया। उन्हे अस्पताल ले जाया गया। पर वह बच नहीं सके। मुश्किल से 34 साल के थे अबीर। यह उम्र तो अभी जवान होने की होती है। इस उम्र में कोई खाक मरता है। फिर तीन साल पहले ही तो अबीर ने शादी की थी। अच्छी ख़ासी ज़िंदगी चल रही थी। हिन्दी टीवी सिरियल कुसुम और प्यार का दर्द है काफी लोकप्रिय हुए थे। होटल किंगडम, छोटी माँ, बदलते रिश्तों की दास्तां और घर आजा परदेशी में भी उनके काम को सराहा गया। टीवी दर्शकों में अबीर की फ़ैन फॉलोइंग बन गयी थी। उन्होने एक बांगला फिल्म में षयांतनी घोष के साथ काम किया था। षयांतनी से ही उनकी आखिरी बार रात 11 बजे बात हुई थी। उन्होने पिछले साल ही अपना ऑपरेशन करा कर रक्त कैंसर से छुटकारा पाया था। लगता था कि सब ठीक हो जाएगा। पर मौत को शायद यह मंजूर नहीं था। एक दिन पहले ही ऋतुपर्णों घोष की मृत्यु पर टिवीटर पर शोक व्यक्त करने वाले अबीर को क्या पता था कि दूसरे दिन ही उनके लिए ट्वीट किए जाएंगे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

'निःशब्द' चली गयी जिया खान


सोमवार को जब मुंबई की रात जवान हो रही थी, ठीक उसी समय एक खूबसूरत चेहरा अपना जीवन समाप्त कर रहा था। निःशब्द से चर्चा में आई जिया खान ने अपने जुहू स्थित घर में गले पर अपने ही दुपट्टे का फंदा डाल कर आत्महत्या कर ली। अभी 20 फ़रवरी को जिया खान ने अपनी 25वीं सालगिरह मनाई थी।  उनका फिल्म कैरियर  2007 में  अमिताभ  बच्चन के ऑपोज़िट फिल्म निःशब्द से शुरू हुआ था। इस फिल्म के लिए उन्हे फिल्मफेयर के  श्रेष्ठ  देबू के लिए नामित किया गया था। इस फिल्म से जिया ने अपनी खूबसूरती, सेक्स अपील और अभिनय क्षमता से हिन्दी दर्शकों को परिचित कराया था।
निश्चित रूप से ब्रिटिश इंडियन नफीसा खान जब अपना नाम बदल कर मुंबई आई थी तो उसकी आँखों में भी मुंबई का पूरा आकाश नापने के सपने थे। बिग बी के साथ फिल्म एक सुनहरा अवसर था। पर यह फिल्म फ्लॉप हो गयी। 2008 में उन्हे आमिर खान के साथ फिल्म गाजिनी में देखा गया। इस फिल्म में वह सेकंड लीड में एक लेडी डॉक्टर की भूमिका कर रही  थीं। फिल्म Bollywood की पहली सौ करोडिया फिल्म बनी। यह बॉलीवुड की त्रासदी है कि यहाँ फिल्म की सफलता का पूरा फायदा हीरो को ही होता है। गाजिनी का पूरा फायदा आमिर खान को हुआ। कुछ फायदा फिल्म की नायिका असिन को हुआ, जो दक्षिण फिल्म की बड़ी अभिनेत्री थीं। जिया खान के भाग्य में गुमनामी ही आयी। हालांकि, इस फिल्म में भी उन्होने खुद के सक्षम अभिनेत्री होने का प्रमाण दिया। इसके बावजूद उनकी दूसरी फिल्म हाउसफुल रिलीज होने में दो साल लग गए। इस फिल्म में भी वह लीड में नहीं थीं। इसके बाद जिया की कोई फिल्म रिलीज नहीं हुई। हालांकि, उन्होने फिल्म पाने के लिए हरचंद कोशिश की। यहाँ तक कि अपने नाम जिया खान को रद्द कर मूल नाम नफीसा खान पर आ गईं। लेकिन, इसके बावजूद बॉलीवुड की नफीसा नहीं बन सकीं जिया खान।
मुंबई की फिल्म नगरी की त्रासदी है कि यहाँ खूबसूरत चेहरों की गोस्सिप बनाई जाती है। जिया की भी बनाई गयी.। उन्हे आमिर खान से जोड़ा गया। हाउसफुल  के दौरान अक्षय कुमार से उनके रोमैन्स के किस्से उड़े। लेकिन, फिल्म तब भी नहीं मिली। इस खूबसूरत चेहरे में कितना दर्द भरा रहा होगा कि जिया ने इसे खत्म करते समय एक मिनट भी नहीं सोचा। जिया ही क्या, बॉलीवुड या मुंबई में न जाने कितनी हसीन शक्लें आती हैं, एक्टर या मोडेल बनने। उनका शोषण होता है। कुछ इसे सहन कर अपनी कोई पोजीशन बना ले जाती हैं। लेकिन, ज्यादातर निराश हो कर ड्रग और शराब में डूब जाती है और एक दिन नशे का शिकार हो कर फूटपाथ पर मारी पायी जाती हैं, किसी अपने के हाथों मार दी जाती हैं या जिया खान की तरह फांसी लगा लेती हैं।
 जिया खान ने फांसी लगा ली। एक जीवन समाप्त हो गया। हो सकता है कि बॉलीवुड कि कुछ सेलेब्रिटी टिवीटर पर शोकपूर्ण  ट्वीट दर्ज कर दें। इसके बाद जिया खान को बिल्कुल याद नहीं किया जाएगा। क्योंकि, उनका क्या योगदान था बॉलीवुड को। छह सालों में केवल तीन फिल्में ही तो की थीं जिया खान ने। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

Monday, 3 June 2013

बॉलीवुड का नया सुपर स्टार रणबीर कपूर

            
 फिल्म यह जवानी है दीवानी की समीक्षा करते समय मैंने अंत में लिखा था कि फिल्म को दर्शक जैसा रेस्पोंस  दे रहे हैं, उससे यह फिल्म इस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्म साबित होने जा रही है। ठीक वैसा ही हुआ। बीस करोड़ की लागत में बनी यह जवानी है दीवानी बॉलीवुड की पहली ऐसी फिल्म बन गयी है, जिसने 60 करोड़ का वीकेंड मनाया है। फिल्म की रिलीज के दिन तक यही अनुमान किया जा रहा था कि फिल्म को जैसी हाइप मिली है, उससे यह फिल्म 15 करोड़ की ओपेनिंग ले लेगी तो इस साल की बड़ी हिट फिल्मों में शुमार हो जाएगी। हालांकि फिल्म 12-14 करोड़ के बीच ओपेनिंग लेने का ही अनुमान था। लेकिन, यह जवानी है दीवानी ने तमाम अनुमानों को पछाड़ते हुए 19.45 करोड़ की ओपेनिंग ले ली। उस समय यह जवानी है दीवानी सलमान खान की फिल्म दबंग 2  से पीछे थी। अमूमन, पहले दिन बड़ी ओपेनिंग ले लेने वाली बड़ी फिल्मों का शनिवार थोड़ा गिरता है। दबंग 2 का दूसरा दिन भी कमजोर गया था। लेकिन यह जवानी है दीवानी ने सलमान खान की दबंगई की भी हवा निकाल दी। जवानी का दूसरा दिन यानि शनिवार 20 करोड़ से ऊपर गया । इस प्रकार से यह जवानी है दीवानी ने दबंग 2 को 50 लाख से पीछे धकेल दिया। यहाँ यह बताते चलें कि दबंग 2 के कुल 3500 प्रिन्ट जारी किए गए थे, जबकि यह जवानी है दीवानी केवल तीन हजार प्रिंट्स में ही रिलीज की गयी थी।  सनडे को फिल्म का बिज़नस 23 करोड़ को पार कर गया। यह जवानी है दीवानी का वीकेंड बिज़नस एक था टाइगर, दबंग 2, रा1, बॉडीगार्ड तथा कुछ अन्य बड़ी फिल्मों के बिज़नस आंकड़ों को पीछे छोड़ गया। इन सभी फिल्मों ने आगे चलकर 100 करोड़ का क्लब बनाया। अब अगर दर्शकों पर यह जवानी है दीवानी का जादू वीक डेज़ में बरकरार रहा तो इस फिल्म बिज़नस आगे रिलीज होने वाली फिल्मों के लिए बड़ी चुनौती बन जाएगी।  देखते ही देखते यह शोर मच गया कि बॉलीवुड को नया सुपर स्टार मिल गया। यह सलमान खान के अब तक के रेकॉर्ड को तोड़ना ही नहीं था, बल्कि सलमान खान और अन्य तमाम खान सितारों के सुपरस्टारिज़्म को गंभीर चुनौती और खतरे का संकेत भी था। यह जवानी है दीवानी के रिलीज के 72 घंटे बीतते बीतते यह तय हो गया कि रणबीर कपूर सभी खानों को पीछे छोड़ते हुए नए सुपर स्टार बन गए हैं।
यह जवानी है दीवानी की बड़ी सफलता हाइप की सफलता नहीं है। हाइप तो पहले दिन या बहुत हुआ वीकेंड तक ही रहती है। हाइप वाली फिल्मे दिन ब दिन ज़्यादा बिज़नस नहीं करतीं। यह फिल्म का टेम्पो था। कलाकारों की कैमिस्ट्रि थी, जिसने दर्शकों को मुग्ध कर लिया। यह फिल्म हर प्रकार से अच्छी बन पड़ी फिल्म है। यह पहली फिल्म है, जो युवाओं के लिए होने के बावजूद अश्लील संवादों और हाव भाव वाली नहीं तथा इस कारण से पूरे परिवार के देखने योग्य है। रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण ऐसे स्टार बन कर उभरे हैं, बॉलीवुड  जिन पर भरोसा कर सकता है। रणबीर कपूर किसी भी अभिनेत्री के स्वीकार्य हीरो हैं और दीपिका हीरोइन। यह दोनों साथ साथ होंगे तो सुहागा होगा ही।
अब बड़ा खतरा खान अभिनेताओं के लिए है। वह अपनी घिसिपीटी मैनरिज़म के जरिये दर्शकों की जेब को चूना नहीं लगा सकते। उन्हे अपने अभिनय को सुधारना होगा, ऐसी फिल्में करनी होंगी, जो दर्शकों को मनोरंजन करने के साथ साथ संदेश भी दे।

Friday, 31 May 2013

बॉक्स ऑफिस को दीवाना बना देगी यह जवानी

     
                  यह जवानी है दीवानी क्यों देखें? देखें तो क्यों, न देखें तो क्यों? इस पर बात करने से पहले सबसे बड़ी बात यह कि रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की इस जवानी को ज़रूर देखें। यह आज के युवा की फिल्म है जो घूमना चाहता है, दौड़ना चाहता है, ऊँचाइयाँ छूना चाहता और गिरना भी चाहता है। पर फिल्म खालिस आज के युवा वाली नहीं, जैसी कुछ हफ्ते पहले रिलीज हिट फिल्म आशिक़ी 2 थी, जिसका युवा निराश, शराब में डूबा हुआ और लड़की से शादी से पहले सेक्स करने वाला। ठेठ आज के युवा की तरह, जो मिलते ही सेक्स और बिस्तर की बात ही करते हैं। कोंडोम और गर्भ निरोधक पर्स में जमे रहते हैं, न जाने कब ज़रूरत पड़ जाये। यह जवानी है दीवानी का बनी फ्लर्ट से इश्क को ज़्यादा बेहतर समझता है।
                       यह जवानी है दीवानी में आशिक़ी 2 के हीरो आदित्य रॉय कपूर भी हैं। इत्तेफाक ही है कि उनका   चरित्र अवि, आशिक़ी 2 के राहुल जैसा ही है- शराब पीने वाला, बिसतरबाज़ और कमोबेश अपनी कमजोरियों के लिए खुद को दोषी नहीं मानने वाला। अगर फिल्म अवि पर होती तो शायद आशिक़ी 2 का सेकुएल बन गयी होती। पर यह फिल्म भट्ट कैंप से नहीं, बल्कि धर्मा प्रॉडक्शन के करण जौहर की फिल्म है। यह बैनर कहीं न कहीं मूल्यों की बात करता है। अयान मुखर्जी फिल्म के डाइरेक्टर हैं, जिन्होंने वेक अप सिड बनाई थी। उनकी फिल्म का नायक कबीर थापर उर्फ बनी आज का युवा है। बनी आज का युवा है तो वह घूमना चाहता है, दौड़ना चाहता है, ऊँचाइयाँ छूना चाहता और गिरना भी चाहता है। बिल्ली यानि चशमिश पढ़ाकू नैना तलवार। हमेशा किताबों में डूबी रहने वाली। वह पढ़ाई से ऊब कर, अपने स्कूल के साथियों को मौज मजा लेते हुए देख कर, खुद भी एंजॉय करना चाहती है। इसलिए वह मनाली जाती है। स्टेशन पर मिलता है, बनी। बनी लड़कियों से फ्लर्ट करता है। लेकिन वह आज के लड़कों की तरह पहली मुलाकात में लड़कियों से सेक्स करना नहीं चाहता। नैना तलवार घरेलू प्रकार की है। अपना शहर, माता पिता और दोस्त परिवार उसकी प्राथमिकता हैं। बनी उसको देखता है। पर उससे फ्लर्ट नहीं करता। नैना पूछती है तो कहता है कि तुम फ्लर्ट के नहीं इश्क के काबिल हो। यही फर्क है आज के सेक्स के भूखे युवा से अलग इश्क को इबादत समझने वाला यह जवानी है दीवानी का बनी में।  मनाली में नैना  बिल्कुल बिंदास हो जाती है। वह उस लाइफ को एंजॉय करती है। वह बनी से प्रेम करने लगती है। वह उससे अपने प्रेम का इज़हार करना चाहती है कि बनी बताता है कि वह विदेश जा रहा है, अपना सपना पूरा करने के लिए। आठ साल बीत जाते हैं। बनी अपनी बेस्ट फ्रेंड की शादी में शामिल होने आता है। चारों दोस्त फिर मिलते हैं। बनी न जाने कब नैना से प्यार करने लगता है। वह उससे कहता है कि वह नैना से प्रेम करता है और शादी करना चाहता है। वह नैना से कहता है कि चलो, मैं तुम्हारा हाथ थाम कर दुनिया घूमना चाहता हूँ। नैना शहर, दोस्त, परिवार को तरजीह देती है। वह कहती है, हम कितनी भी कोशिश करें, कुछ न कुछ तो छूट ही जाता है। इसलिए जो सामने है उसे एंजॉय करो। बनी को एहसास होता है कि ऊँचाइयाँ  छूने   के उसके सपनों ने उसे पिता की मौत की खबर तक नहीं लगने दी थी। तब वह नैना से शादी कर अपने शहर में दोस्तों के बीच रहने का निर्णय लेता है।
यह जवानी है दीवानी युवाओं को उपदेश नहीं देती तो पतन की राह भी नहीं दिखाती। फिल्म यह नहीं कहती कि आप सपने मत देखो। लेकिन यह ज़रूर बताती है कि कुछ न कुछ तो छूट ही जाता है।  फिल्म बताती है कि कुछ ऐसे मूल्य हैं, जिनका भौतिकवादी युग में भी महत्व हैं। अयान ने इस घिसी पिटी उपदेश देती जैसी लगने वाली फिल्म को बेहद मनोरंजक ढंग से बिना अश्लील हुए बनाया है। फिल्म का कोई भी एक्टर मिडिल फिंगर नहीं दिखाता, हीरो अपनी हीरोइन से नहीं पूछता कि क्या उसने सेक्स किया है। वह उसे बिस्तर पर पटकने की कोशिश नहीं करता। दोनों इश्क को एहसास की तरह भोगते हैं, आँखों और हाव भाव से व्यक्त करते हैं। इसके बावजूद फिल्म युवा है, क्योंकि, फिल्म में वह पूरी मस्ती है जो आज का युवा करता है और करना चाहता है। बस सेक्स की डोज़ नहीं है।
फिल्म में रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण मुख्य भूमिका में हैं। यकीन जानिए क्या खूब कैमिस्ट्रि है दोनों के बीच। दोनों अपनी आँखों और चेहरे से अपने इमोशन एक्सप्रेस करते हैं। रणबीर कपूर तो गजब की एक्टिंग करते ही हैं। दीपिका पादुकोण साबित करती हैं कि वह अपनी समकालीन सभी अभिनेत्रियों को पीछे छोड़ कर बहुत आगे जाने वाली हैं। वह खूबसूरत है, वह सेक्सी हैं पर यहाँ ग्लैमरस लगती हैं। उन्होने अपने ऊम्फ फैक्टर   को यूज करने की कोई कोशिश नहीं की है। रणबीर कपूर की तरह युवाओं के दिलों में बस जाती हैं दीपिका। फिल्म में दीपिका का एक डाइलॉग है, जो फिल्म के प्रोमोस में काफी चला है- अवि तुम समझते क्यों नहीं कि अगर मैं दो मिनट भी तुम्हारे पास रही तो मुझे प्यार हो जाएगा...फिर से। यकीन जानिए सिनेमाघर में बैठे दर्शक बेतहाशा तालियाँ बजाते हैं और स्वागत करते हैं दीपिका के निर्णय का। यह प्रमाण है कि दर्शकों को दीपिका-रणबीर chemistry खूब जमी। कल्कि कोएचलीन पहली बार अच्छी लगीं। आदित्य रॉय कपूर को थोड़ा एक्टिंग से काम लेना होगा, नहीं तो वह जल्द ही बासी हो जाएंगे। बाकी कलाकार ठीक ठाक हैं।
फिल्म निर्देशक की फिल्म है, लेखकों की फिल्म है। अयान मुखर्जी इस पुरानी लगने वाली कहानी को अपनी कल्पनाशीलता के सहारे बिल्कुल नए ढंग से पेश करते हैं। देशी विदेशी लोकेशन है, पर यह कहानी को भटकाती नहीं, चरित्रों को उभारती है। मनिकन्दन का कैमरा मुख्य चरित्र की ऊंचाई तक पहुँचने की इच्छा को पूरा सहयोग देता है। एडिटिंग काफी चुस्त है, इसलिए फिल्म तेज़ तर्रार बन पड़ी है।
प्रीतम युवाओं को पसंद आने वाला संगीत बनाते हैं। यंग आडियन्स को टार्गेट करने वाली फिल्मों की वह जान हैं। यह जवानी है दीवानी का संगीत युवाओं को जवानी का एहसास कराने वाला है।
फिल्म देखिये। युवा भी देखें और युवाओं के अम्मा अब्बा भी। युवा इसलिए देखें कि सपने देखने और पूरा कराने  ज़रूरी हैं, पर उतने ही ज़रूरी माता पिता और उनके एहसास भी। फिल्म में सेक्स उतना ज़रूरी नहीं, जितना इश्क। रणबीर कपूर के स्वाभाविक अभिनय के लिए फिल्म देखी जा सकती है। यों फिल्म केवल दीपिका पादुकोण के लिए भी देखी जा सकती है। फिल्म की शुरुआत में ही माधुरी दीक्षित का घाघरा आइटम डांस है। वैसे यह फिल्म में नहीं होता तो भी फिल्म चलती ही। लेकिन, यह आइटम बताता है कि माधुरी दीक्षित में आज भी तेज़ाब है।
कल दीपिका पादुकोण अपनी फिल्म की सफलता की मन्नत मनाने Mumbai के मशहूर सिद्धिविनायक मंदिर गयी थीं। आज उनकी  फिल्म को अच्छी ओपेनिंग मिली है। लेकिन, अगर दीपिका मंदिर नहीं भी जाती तो फिल्म को हिट होना ही था। सच जानिए फिल्म को देखने के बाद दर्शक जैसे रिसपोन्स दे रहे हैं, वह इस फिल्म को इस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्म बनाने का संकेत कर रहे हैं। मार दी रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण ने हिट फिल्मों की हट्रिक्क एक साथ।




Thursday, 30 May 2013

नहीं रहे बांगला फिल्मों के ऋतु


                     
 हिन्दी फिल्मों या यों कहें कि  बॉलीवुड  फिल्मों के कारण क्षेत्रीय फिल्मों को वह महत्व नहीं मिल पाता, जो उन्हे मिलना चाहिए या यों कहें उनकी कमोबेश उपेक्षा की जाती है। बंगला फिल्मों के  प्रतिष्ठित निर्देशक ऋतुपर्णों घोष को आजीवन यही दुख रहा।  पिछले साल ऑस्कर अवार्ड्स में इंडिया एंट्री के लिए रीजनल फिल्मों की उपेक्षा करते हुए हिन्दी फिल्म बर्फी को भेजे जाने पर उन्होने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। आज जब कि ऋतुपर्णों घोष का देहांत हो चुका है तो खुद वह और उनकी फिल्में इस बात का प्रमाण है कि रीजनल फिल्मों की हिन्दी फिल्मों के सामने उपेक्षा हमेशा होती रही है। घोषदा ने जितनी फिल्में बनायीं, उन्हे पूरे विश्व में चर्चा मिली । उनकी फिल्मों दहन, उत्सब, चोखेर बाली, रेनकोट, दोसोर, द लास्ट लेयर, शोएब चरित्रों कल्पोनिक और अबोहोमन को सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। लेकिन, इन फिल्मों में से कितनों को हिन्दी बेल्ट में हिन्दी दर्शकों द्वारा देखा गया? चोखेर बाली ऐश्वर्या राय के कारण चर्चा में आई। रेनकोट को भी ऐश्वर्या राय और अजय देवगन जैसे हिन्दी के कलाकारों और हिन्दी में बनी होने के कारण सीमित दर्शकों ने देखा। रेनकोट उनकी पहली हिन्दी फिल्म थी। द लास्ट लेयर अमिताभ बच्चन, प्रीती जिंटा और अर्जुन रामपाल और विदेशी चर्चा के कारण हिन्दी बेल्ट में चर्चा के योग्य समझी गयी। लेकिन, बाकी फिल्में? ज़ाहिर है कि बॉलीवुड की घिसी पिटी मसाला फिल्मों को हाउसफूल पर हाउसफुल भीड़ मुहैया करने वाले हिन्दी दर्शकों ने ऋतुपर्णों घोष की कलात्मक और उद्देश्यपूर्ण फिल्मों को क्यों नहीं देखा। घोषदा के लिए दुख की बात यह थी कि फिल्म फ़ैडरेशन ऑफ इंडिया ने ओस्कर्स के लिए हिन्दी फिल्मों के सामने उनकी फिल्मों को इस योग्य नहीं समझा।
ऋतुपर्णों घोष ने अपने कैरियर की शुरुआत एडवर्टाइजिंग से शुरू की थी।  हिरेर अंगटी उनकी पहली बंगला फिल्म थी। अबोहमान के लिए उन्हे बेस्ट डाइरेक्टर का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। इसके बाद उन्होने कुल आठ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किए।  उन्होने अपने फिल्म कैरियर में 20 फिल्में लिखीं।  एक उड़िया फिल्म से वह पहली बार स्क्रीन में नज़र आए। उनकी फिल्मों दहन और रेन कोट को कार्लोवी वरी इंटरनेशनल  फिल्म
फेस्टिवल  में  तथा चोखेर बाली और अंतरमहल को लोकार्नो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में नामित किया गया था।