ज़ोंबी फिल्मों के पितामह जॉर्ज ए रोमेरो का कल निधन हो गया। उनकी कम बजट की नाईट ऑफ़ द लिविंग डेड और डॉन ऑफ़ द डेड जैसी फिल्मों के ज़ोंबी यानि चलते फिरते मुर्दों ने दुनिया के दर्शकों को दशकों तक दहलाया। मृत्यु के समय वह ७७ साल के थे। वह कैंसर से पीड़ित थे। पिट्सबर्ग के लेखक-निर्देशक रोमेरो ने १९६८ में केवल १ लाख १४ हजार डॉलर के बजट से नाईट ऑफ़ द लिविंग डेड का निर्माण किया था । गांव के फार्महाउस में ज़ोम्बियों से घिर गए सात दोस्तों की कहानी वाली इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर ३० मिलियन डॉलर का ग्रॉस किया। इसके बाद तो ज़ोंबी फिल्मों और टीवी शो का सिलसिला चल निकला। लेकिन, इस फिल्म के कारण वह कॉपीराइट एक्ट के लफड़े में फंस गए। इसके फलस्वरूप उन्हें न केवल अपने मुनाफे से हाथ धोना पड़ा, बल्कि ज़ोंबी फिल्मों से दूरी भी बनानी पड़ी। इस दौरान उन्होंने देयर इज ऑलवेज वनीला, हंगरी वाइव्स और द क्रैजीज जैसी फ़िल्में बनाई। उन्होंने डौन ऑफ़ द डेड से पुनः वापसी की।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Tuesday, 18 July 2017
ज़ोंबी फिल्मों के पितामह रोमेरो का देहांत
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श्रद्धांजलि
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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