निर्माता
एंटोनी पेरुम्बवूर, सुभास्करण अल्लीराजा और गोकुलम गोपालन तथा
निर्देशक पृथ्वीराज सुकुमारन की चौकड़ी ने वामपंथी सोच वाले मुरली गोपी से वामपंथी
सोच वाली कथा तो लिखवा ली। निर्माताओं ने
कथित रूप से १७५ करोड़ भी झोंक दिए। फिल्म की लोकेशन यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका और यूनाइटेड अरब अमीरात भी ले गए। कहने का तात्पर्य यह कि कैनवास बड़ा कर दिया
गया। किन्तु, महँगी
दूकान में फीके पकवान बेच बैठे।
फिल्म की सबसे बड़ी कमी है सशक्त कथानक। जब दिमाग में राजनीति घुस जाए, धार्मिक विद्वेष भर जाए तो सब कुछ लूसिफर का दूसरा हिस्सा बन जाता है। फिल्म में कोई कथानक नहीं है। यद्यपि निर्माताओं ने अपने वामपंथी सोच वाले निर्देशक और लेखक से हिन्दुओं को निशाना बनाने वाला गुजरात दंगों का घटनाक्रम ले लिया। इस फिराक में उन्होंने केरल के हिन्दू सगठनों का भारी विरोध मोल ले लिया। उपयुक्त होता यदि वह गुजरात दंगे के पीछे के गोधरा कांड को दिखाने की हिम्मत भी करते। किन्तु, यदि नीयत खराब हो तो एल २ का एमपुराण प्रभाव खो बैठता है।
फिल्म पहली
रील से ही भटकती लगती है। फिल्म का प्रारम्भ अरब के दो गुटों में संघर्ष का चित्रण
कराती है। फिर तत्काल बिना उल्लेख किये
गुजरात दंगों में एक मुस्लिम परिवार का हिन्दुओं द्वारा क़त्ल करना दिखा देती है। जबकि इस दंगे में २५४ हिन्दू भी मारे गए थे।
बहरहाल, गोपी इस दृश्य के द्वारा एक मुस्लिम चरित्र के मन में बदले की भावना
भर देते है। रातों रात यह मुस्लिम चरित्र
भागता हुआ केरल आ जाता है। उसके बाद
हिन्दू भी केरल में दिखाया जाता है।
इसके बाद
कहानी भटकती हुई कभी अरब, कभी अमेरिका और कभी ब्रिटेन में
भटकती रहती है। कहानी में राजनीति, अपराध और नशीली दवाओं का जिक्र आ जाता है। और अंत मुस्लिम चरित्र एक ईसाई लूसिफर की
सहायता से हिन्दू को मार देता है।
इतनी
पूर्वाग्रह से ग्रसित फिल्म बनाने वाले पृथ्वीराज सुकुमारन एक भी दृश्य ऐसा नहीं
बना सके, जो लूसिफर के पहले भाग को पीछे छोड़ पाता। फिल्म का अधिकतर काम फिल्म
में बारूद और बंदूकों का प्रयोग कर एक्शन पार्टी ने किया है। मोहनलाल और टॉविनो थॉमस जैसे प्रतिभाशाली
अभिनेता भी बारूद के धुवें में घिरे छुप जाते है।
अभिनय की
बात की जाए तो पहले हिस्से के लूसिफर से अधिक टॉविनो के जतिन रामदास के सामने फीके
दिखाई देते है। लेखक ने यदि जतिन के
चरित्र को थोड़ा ठोस बनाया होता तो टॉविनो छा जाते। निर्देशक पृथ्वीराज सुकुमारन का ज़ायेद मसूद
अप्रभावी है। प्रभास की फिल्म सालार पार्ट
१ में सुकुमारन ने उनके मित्र वरदराज की भूमिका की थी। लूसिफर २ में मसूद के बचपन की भूमिका करने वाले
अभिनेता कार्तिकेय देव सालार १ में भी उनके बचपन की भूमिका कर रहे थे।दोनों ने ही
प्रभावशाली अभिनय किया था। किन्तु, लूसिफर २ में यह दोनों फीके रहे।
फिल्म में, जतिन की बहन प्रियदर्शिनी की भूमिका में अभिनेत्री मंजू वर्रियर संयत
अभिनय कर प्रभावित करती है। खल चरित्र बलराज करने वाले बॉलीवुड अभिनेता अभिमन्यु
सिंह बिलकुल प्रभावित नहीं कर पाते। बाकी कलाकारों के बारे में क्या ही कहा जाये!
यह फिल्म जिओ हॉटस्टार पर हिंदी में देखी जा सकती है। मोहनलाल और टॉविनो थॉमस के प्रशंसक दर्शक इस फिल्म को यहाँ देख सकते है।
