निर्माता और
अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की फिल्म परी की होली के मौके पर दर्शकों को बेसब्री से
प्रतीक्षा थी। यह कहा जा रहा था कि फिल्म
भारत की हॉरर फिल्मों के लिहाज़ से मील का पत्थर साबित होगी। अनुष्का शर्मा ने एक हॉरर फिल्म करके, हॉरर को ए-ग्रेड की अभिनेत्रियों का जॉनर
बना दिया है। लेकिन, अब जबकि फिल्म रिलीज़ हो चुकी हैं, परी कोई मील का पत्थर नहीं साबित
होती। बेशक अनुष्का शर्मा हॉरर फिल्म की नायिका बन कर हिम्मत का काम करती
हैं, लेकिन हुमा खान, कृतिका देसाई, नीलम मेहरा का श्लील संस्करण ही साबित होती है। फिल्म
की शुरुआत ही अजीबोगरीब है।
परमब्रत चटर्जी और रिताभरी चक्रवर्ती के चरित्र छत पर कॉफ़ी पीते नज़र आते हैं। कहानी का सूत्र पकड़ने का अजीबोगरीब तरीका। अगले सीन में फिल्म ढर्रे पर आती है, जब तेज़ बारिश के बीच जा रही अर्नब की विंड
स्क्रीन से एक औरत आ टकरती है। इस औरत के
साथ सामने आता है,
अनुष्का
शर्मा की रुखसाना का चरित्र। इसके बाद
कहानी बांगलादेश और कोलकत्ता के बीच घूमती रहते है। धीरे धीरे खुलासा होता है कि रुखसाना अरैबिक
कहावतों के शैतान इफरित की संतान है। इन
शैतानों को ख़त्म करने वाला क़यामत समूह है, जिसका मुखिया एक आँख वाला प्रोफेसर क़ासिम
है। कहानी का अंत होता है इस सन्देश के साथ कि प्यार शैतान को भी इंसान बना
देता है देता है। क्योंकि, अनुष्का शर्मा और परमब्रत चटर्जी के बीच
एक चुम्बन से उपजी कामुकता का नतीजा अनुष्का शर्मा की संतान शैतान नहीं, इंसान है, हालाँकि,
वह सामान्य
इंसानों के बच्चे की तरह नौ महीने में
नहीं, एक महीने में पैदा हुई है। अभिषेक बनर्जी और प्रोसित रॉय की कथा-पटकथा
में ऐसे ढेरों सूत्र है,
जो बिना
स्पष्ट किये छोड़ दिए गए हैं या दिखा दिए गए हैं।
प्रोसित रॉय
के निर्देशन की केवल यही खासियत है कि वह धीमी गति से गति से कहानी चलाते
हैं। उनकी कल्पनाशीलता में खून, विकृत चेहरे और घाव ही डरावनी फिल्म होती
है। साउंड के ज़रिये डराने की कोशिश की गई
है। लेकिन, रामगोपाल वर्मा की भूत से बहुत पीछे हैं। कुछेक दृश्य बहुत अच्छे बन पड़े हैं, मसलन पोस्टमॉर्टम हाउस से बिल्लियों की
तरह छलांग मारते हुए रुखसाना का अर्नब के घर पहुँचना, रुखसाना का अर्नब के चरित्र
का गला पकड़ लेना, अर्नब और उसकी मंगेतर पियाली के
चुम्बन के बीच रुखसाना का खिड़की की छत से झांकना, आदि आदि।
ज़्यादातर फिल्म अँधेरे में खून से
सनी हुई है। अनुष्का के चेहरे को घावों से
भरकर डरावना बनाया गया है।
जहाँ तक
अभिनय पक्ष की बात है अनुष्का शर्मा अनुष्का शर्मा ही लगाती है, चोट खाई हुई। परमब्रत चटर्जी ने अभिनय की अपनी शैली में
स्वाभाविक अभिनय किया है। क़ासिम की भूमिका
में रजित कपूर छा गए हैं। पियाली की
भूमिका में रिताभरी चक्रवर्ती असहज लगाती हैं।
मानसी मुल्तानी का असली चेहरा तो बहुत कम नज़र आता है। वह साउंड और मेकअप के बीच डरा ले जाती है।
जिश्नु
चटर्जी का कैमरा अँधेरे में भटकता रहता
है। केतन सोढा का बैकग्राउंड म्यूजिक
डराता है, लेकिन कुछ नई नहीं पुरानी शैली में। फिल्म १३४ मिनट लम्बी है। मानस मित्तल को इस पर जम कर कैंची
चलानी चाहिए थी।
नॉट अ फेयरी टेल टैग लाइन वाली यह परी फिल्म
एनएच १० और फिल्लौरी की फिल्म निर्माता अनुष्का शर्मा को रामगोपाल वर्मा नहीं, मोहन भाखरी की श्रेणी में लाने वाली है
यानि दो कदम पीछे।
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