Friday 2 August 2013

परिवार की परिवार द्वारा परिवार के लिए नहीं (तो) रब्बा मैं क्या करूं।

                      रब्बा मैं क्या करू निर्देशक अमृत सागर की दूसरी फिल्म है. उनकी  पहली फिल्म १९७१ छह  साल पहले २००७ में रिलीज़ हुई थी. अब छह साल बाद अमृत सागर की दूसरी फिल्म  रब्बा मैं क्या करू रिलीज़ हुई है तो प्रशंसित फिल्म १९७१ के निर्देशक की फिल्म के प्रति दर्शकों के मन में उत्सुकता पैदा होना स्वाभाविक है. मगर रब्बा मैं क्या करू के अमृत सागर दर्शकों को बुरी तरह से निराश करते है. सेक्स कॉमेडी शैली में अमृत सागर की यह फिल्म दो भाइयों और तीन मामाओं की कहानी है. भांजे की शादी होने वाली  है. अब कॉमेडी के नाम पर इस सेक्स कॉमेडी में बड़ा भाई अपने छोटे भाई से शादी से पहले किसी लड़की से सेक्स करने की सलाह देता है, क्योंकि उस लडके ने अपनी मंगेतर से शादी से पहले सेक्स नहीं किया है. मामा लोग भी पूरी तरह से लम्पट है. एक मामा अपनी पत्नी के सामने दूसरी औरत के साथ सेक्स करता है.  दूसरा मामा छुप कर औरतों से चुम्बन बाजी करता है. जब उसकी औरत पूछती है तो कहता है कि सिगरेट पी रहा था. तीसरा मामा पिछले कई सालों से अपने अवैध सम्बन्ध वाली औरत की ब्रा ढून्ढता  फिर रहा है. पूरी फिल्म यह समझ मे नहीं आता कि लेखक आकाश कौशिक क्या स्थापित करना चाहते हैं? क्या यह कि जो लडके शादी से पहले सेक्स नहीं करते वह मूर्ख होती हैं? तमाम औरतें बेदिमाग और मूर्ख होती हैं कि अपने अपने पतियों के लम्पटपन  को भांप नहीं पाती. पता नहीं ऎसी न जाने कितनी बेवकूफियां हैं फिल्म में, जो हंसाती नहीं सर दर्द पैदा करती हैं. अमृत सागर और आकाश कौशिक की अक्ल पर रोना आता है. हंसाने का सवाल ही कहाँ उठता है.
                      फिल्म का कोई पक्ष ऐसा नहीं जिसका जिक्र किया जा सके. इस फिल्म से रामानंद सागर के पोते और अमृत के बेटे आकाश चोपड़ा का लौन्चिंग हुई  है. पर आकाश चोप्रा बुरी तरह से असफल रहे है. उन्हें अगर अभिनय की खुजली लगी हो तो पहले किसी अच्छे इंस्टिट्यूट से अभिनय का क्रेश कोर्स कर लेना चहिये. वैसे उन्होंने फिल्म में बेक ग्राउंड म्यूजिक भी दिया है. पर वह म्यूजिक कम शोर शराबा ही लगता है. नवोदित ताहिरा कोछर से तो भगवान् बचाये. उन्हें दर्शकों पर दया करते हुए कम से कम फिल्मों में अभिनय नहीं करना चहिये. क्योंकि, दर्शक उन्हें अब झेल नहीं सकते. अर्शद वारसी अपने चचेरे भाई को शादी से पहले सेक्स करने की सलाह देते देते  कॉमेडी के नाले में डूब जाते हैं. इस फिल्म में टीनू आनंद, शक्ति कपूर और परेश रावल ने तीन मामाओं का रोल करके  अपना नाम बखूबी डुबो दिया है.  रिया सेन ग्लैमर के लिहाज़ से जितनी फीकी हैं, उतनी ही अभिनय के मामले में भी. अमृत सागर को श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने इन वरिष्ठ कलाकारों का नाम डुबोने का काम बखूबी अंजाम दिया है. फिल्म में केवल राज बब्बर ही अपना काम ठीक कर ले जाते हैं. वैसे सिनेमाघर में बैठे दर्शक उन्हें देखते ही पांच रुपये में भरपेट भोजन का नारा बुलंद करने लगते है.
                     सलीम-सुलेमान की जोड़ी ने दर्शकों के सिरों में दर्द पैदा करने में अमृत का भरपूर साथ दिया है. लगता है कि फिल्म के संपादक  सत्यजीत गज्मर को उनके पेमेंट का चेक नहीं दिया गया था. तभी तो वह संपादन के बजाय फिल्म की रीलें ही बढ़ाते रह गये.
                     इस फिल्म के प्रोडक्शन तथा अन्य विभाग से सागर परिवार के सदस्य ही जुड़े हुए हैं. इसलिए कहा जा सकता है कि परिवार की परिवार द्वारा परिवार के लिए नहीं रब्बा मैं क्या करूं। 







 

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