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Thursday 25 March 2021

निम्मी क्यों कहलाती थी अनकिस्ड गर्ल?


निम्मी को अनकिस्ड गर्ल ऑफ़ इंडिया या बॉलीवुड कहा जाता है. उन्हें अनकिस्ड गर्ल क्यों कहा जाता है ? इसके बारे में दो कहानियाँ सुनने और पढ़ने को मिलती हैं. दिलीप कुमार और नादिरा की फिल्म आन में निम्मी ने एक गाँव की लड़की मंगला की भूमिका निबाही थी. पहली कहानी यह है कि इस फिल्म का लन्दन में प्रीमियर आन उर्फ़ सैवेज प्रिंसेस के टाइटल के साथ प्रदर्शित किया गया था. इस फिल्म के प्रीमियर पर विदेशी हस्तियों के साथ महबूब, उनकी पत्नी और निम्मी मौजूद थे. जब एक विदेशी हस्ती से निम्मी को मिलाया गया तो वह हस्ती निम्मी का  हाथ चूमने आगे बढी. इस पर निम्मी ने पीछे हटते हुए कह कर इनकार कर दिया कि मैं एक भारतीय लड़की हूँ. आप मुझे नहीं चूम सकते. इसी घटना पर खबर लगाई गई कि द अनकिस्ड गर्ल ऑफ़ इंडिया निम्मी.

परन्तु, दूसरी कहानी ज्यादा दमदार लगती है. निम्मी के होंठ काफी सेक्सी थे. हर फिल्म में उनके चरित्र की खासियत होंठ भी हुआ करते थे. निम्मी के प्रचार में इन होठों को लेकर यह प्रचारित किया गया कि आज तक कोई निम्मी के होंठ नहीं चूम सका. अंग्रेजी पत्रकारों ने उन्हें द अनकिस्ड गर्ल ऑफ़ बॉलीवुड के खिताब से उनके होंठो के कारण ही नवाज़ा. बताते हैं कि जब निम्मी ने लेखक निर्देशक एस अली रजा से निकाह किया, तब यह कहा गया कि अली रजा ने पहली बार निम्मी के होंठों को चूमा था.

ऎसी थी बॉलीवुड की अनकिस्ड गर्ल निम्मी, जो पिछले साल आज के दिन दिवंगत हो गई.

पहली फिल्म में लड़का बनी थी नंदा !



आज पुराने जमाने की अभिनेत्री नंदा की पुण्य तिथि है. आम बच्चों की तरह नंदा भी कैमरे का सामना नहीं करना चाहती थी. पर उनके फिल्म निर्माता पिता उन्हें अपनी फिल्म मंदिर में लेना चाहते थे. माँ के समझाने पर वह इसके लिए राजी हो गई. सात साल की नंदा ने फिल्म में एक लडके की भूमिका की थी. इसे उनके दूसरे भाई कर सकते थे. परन्तु पिता मास्टर विनायक को नंदा पर ही भरोसा था. अब यह बात दूसरी है कि मंदिर के पूरा होने से पहले ही मास्टर विनायक का आकस्मिक निधन हो गया. इस फिल्म को दिनकर पाटिल ने पूरा किया. इस प्रकार से लडके की भूमिका से फिल्मों में प्रवेश पाने वाली नंदा ने भिन्न तरह की भूमिकाओं से हिंदी फिल्म दर्शकों में अपनी जगह बनाई. उन्हें श्रद्धांजलि.आज पुराने जमाने की अभिनेत्री नंदा की पुण्य तिथि है. आम बच्चों की तरह नंदा भी कैमरे का सामना नहीं करना चाहती थी. पर उनके फिल्म निर्माता पिता उन्हें अपनी फिल्म मंदिर में लेना चाहते थे. माँ के समझाने पर वह इसके लिए राजी हो गई. सात साल की नंदा ने फिल्म में एक लडके की भूमिका की थी. इसे उनके दूसरे भाई कर सकते थे. परन्तु पिता मास्टर विनायक को नंदा पर ही भरोसा था. अब यह बात दूसरी है कि मंदिर के पूरा होने से पहले ही मास्टर विनायक का आकस्मिक निधन हो गया. इस फिल्म को दिनकर पाटिल ने पूरा किया. इस प्रकार से लडके की भूमिका से फिल्मों में प्रवेश पाने वाली नंदा ने भिन्न तरह की भूमिकाओं से हिंदी फिल्म दर्शकों में अपनी जगह बनाई.

दिलचस्प तथ्य यह भी है कि बालिग़ नन्दा ने पहली फिल्म तूफ़ान और दिया में बहन की भूमिका की थी. वह सतीश व्यास की बहन बनी थी. राजेंद्र कुमार उनके नायक थे. नंदा की १९९५ में रिलीज़ एक फिल्म का नाम दिया और तूफ़ान था.

उन्हें श्रद्धांजलि. 

Sunday 27 December 2020

दलपति की याद करा गया रजनीकांत को माम्मूटी का सन्देश !



पिछले कुछ दिनों से, फिल्म अभिनेता रजनीकांत रक्तचाप में तीव्र उतार चढाव के शिकार हो कर, हॉस्पिटल में भर्ती हैं. उनके स्वास्थ्य के प्रति चिंतित उनके प्रशंसको और उनके साथ फ़िल्में कर चुके कलाकारों के शुभकामना सन्देश सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं. लेकिन, सबसे ज्यादा मर्मस्पर्शी साबित हो रहा है, मलयालम - सुपरस्टार माम्मूटी का ट्विटर सन्देश. माम्मूटी ने ट्वीट किया-

Get Well Soon Soorya

Anpudan Deva.

रजनीकांत के लिए माम्मूटी का यह सन्देश मर्मस्पर्शी क्यों हैं? इसे जानने के लिए ३० साल पीछे जाना होगा. ५ नवम्बर १९९१ को निर्देशक मणिरत्नम की एक क्राइम ड्रामा फिल्म दलपति प्रदर्शित हुई थी. इस फिल्म में रजनीकांत ने झुग्गी में पालने वाले अनाथ बच्चे सूर्या तथा माम्मूटी ने शहर के डॉन देवराज उर्फ़ देवा की भूमिका की थी. यह फिल्म इन दोनों की ज़बरदस्त दोस्ती की दास्ताँ थी. फिल्म बड़ी हिट हुई. इन दोनों की जोड़ी को खूब पसंद किया गया. लेकिन, इसके बावजूद यह दोनों फिर कभी स्क्रीन पर साथ नहीं आ सके. २०१७ में एक मराठी फिल्म में इन्हें लिए जाने की खबर थी. लेकिन, वह भी सच्ची साबित नहीं हुई.

रजनीकांत के स्वस्थ्य की कामना करते समय माम्मूटी ने अपने और रजनीकांत के प्रशंसकों के दिलों में दलपति के दो गहरे मित्रों की याद ताज़ा कर दी थी.

Tuesday 3 November 2020

संयोग से जन्मी रुस्तम सोहराब की पृथ्वीराज कपूर-प्रेमनाथ जोड़ी



बॉलीवुड की भयावनी फिल्मो मशहूर रामसे बंधुओं के पिता एफयु रामसे, विभाजन के बाद, पाकिस्तान से हिंदुस्तान आये थे. उन्होंने मुंबई के लमिंगटन रोड पर रेडियो की दूकान खोल ली थी. जब वह फिल्म निर्माण के कारोबार में उतरे तो उनकी पहली फिल्म एक ईरानी कॉस्टयूम ड्रामा फिल्म रुस्तम सोहराब का निर्माण किया.



रुस्तम सोहराब की कहानी ईरान की राजकुमार शहजादी तहमीना और योद्धा रुस्तम ज़बोली के रोमांस की थी. दोनों में प्रेम हो जाता है. दोनों निकाह कर लेते हैं. दोनों के एक बेटा होता है. रुस्तम युद्ध में चला जाता है. वह तहमीना से कह जाता है कि वह अपनी और बेटे सोहराब की पहचान गुप्त रखेगी ताकि दुश्मन कोई नुकसान न पहुंचा सकें. अब यह बात दीगर है कि एक बार दोनों बाप बेटा आमने सामने आ जाते हैं. दोनों में भयंकर युद्ध होता है. इस युद्ध में रुस्तम के हाथों सोहराब मारा जाता है.



यह फिल्म एफयु रामसे की पहली फिल्म थी, पर नायिका सुरैया की आखिरी फिल्म थी. इस फिल्म में रुस्तम की भूमिका पृथ्वीराज कपूर ने की थी. उनके बेटे सोहराब प्रेमनाथ बने थे. यहाँ ख़ास बात यह थी कि पृथ्वीराज कपूर और प्रेमनाथ की रिश्तेदारी थी. प्रेमनाथ की बहन कृष्णा की शादी पृथ्वीराज कपूर के बड़े बेटे राजकपूर से हुई थी.



यहाँ एक दुखद बात यह है कि आज पृथ्वीराज कपूर का जन्मदिन है. परन्तु, आज ही के दिन ३ नवम्बर १९९२ को प्रेमनाथ का निधन हो गया था.


Sunday 18 October 2020

प्रिंट नष्ट होने की सज़ा भुगतनी पड़ी थी 'बेगुनाह' को !


हिंदी फिल्मों के इतिहास में एक फिल्म ऎसी है, जिसने इतिहास बना दिया और खुद इतिहास बन गई।यह फिल्म है निर्देशक नरेंद्र सूरी की फिल्म बेगुनाह।  यह फिल्म १९५७ में प्रदर्शित हुई थी।  सिनेमाघरों में रिलीज़ की बात करे तो यह फिल्म सिर्फ दस दिनों तक ही सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो सकी थी।  इसके बाद, इस फिल्म को उतारना पड़ा था। क्यों? आगे बताते हैं।


 

निर्देशक नरेंद्र सूरी की इस फिल्म बेगुनाह को लेखक, निर्माता, निर्देशक और अभिनेता आईएस जोहर ने लिखा था।  इस फिल्म की मुख्य भूमिका में किशोर कुमार,  शकीला, राधाकृष्ण, हेलेन, मुबारक, कृष्णकांत, आदि थे।  फिल्म का हिट संगीत शंकर-जयकिशन जोड़ी का तैयार किया हुआ था।  यह इकलौती ऐसी फिल्म थी, जिसमे शंकर-  जयकिशन जोड़ी के जयकिशन ने अभिनय किया था।  वह फिल्म के एक गीत में पियानो पर बजाते नज़र आते थे।


 

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि बेगुनाह सिनेमाघरों में सिर्फ दस दिनों तक ही दिखाई जा सकी। इसके बाद, इसे बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद  सिनेमाघरों से उतार दिया गया।  माननीय न्यायालय ने इस मौत की सजा दी। यानि न्यायलय ने फिल्म के प्रिंट नष्ट कर देने की  सज़ा सुनाई थी। क्योंकि, यह फिल्म हॉलीवुड फिल्म की नक़ल थी।


 

फिल्म बेगुनाह भारत और अफ्रीका के सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई।  बताते हैं कि जब यह फिल्म  बॉम्बे में  दिखाई जा रही थी, उस समय हॉलीवुड फिल्म अभिनेता डैनी काये किसी काम के सिलसिले में बॉम्बे आये।  किसी ने उन्हें  बेगुनाह के बारे में बताया गया।  वह इस फिल्म को देखने सिनेमाघर गए।  फिल्म के हिंदी संवाद उनके संवाद उनके पल्ले तो नहीं पड़े। पर वह इतना ज़रूर समझ गए कि यह फिल्म उनकी फिल्म नॉक ऑन वुड (१९५४) की नक़ल है।  डैनी  ने इसकी सूचना अमेरिका में फिल्म के स्टूडियो पैरामाउंट पिक्चर को दी।  दूसरे ही दिन कंपनी का वकील बॉम्बे पहुंचा और मुक़दमा दायर कर दिया।  मुकदमे का फैसला एक महीने के अंदर हो गया।  न्यायलय ने फिल्म के ओरिजिनल प्रिंट्स नेगेटिव सहित  नष्ट कर देने के आदेश दिए।



बॉम्बे हाईकोर्ट के इस आदेश का  खामियाज़ा फिल्म के  गुजराती निर्माताओं शाह   बंधुओ को अपना फिल्म निर्माण का कारोबार बंद करके  भुगतना पड़ा।  शाह बंधुओं का दुर्भाग्य यही ख़त्म नहीं हुआ।  निज़ाम टेरिटरी भेजे गए फिल्म के कुछ प्रिंट्स दो साल तक नष्ट नहीं किये जा सके थे।  इस पर पैरामाउंट पिक्चर ने उन पर कोर्ट की मानहानि का दावा ठोंक दिया।  निर्माताओं को अपना क़र्ज़ और हर्जाना चुकाने के लिए अपना सारा कारोबार बेच देना पड़ा।

फिल्म का कसूर सिर्फ इतना था कि फिल्म की  शुरुआत में ही इसके नॉक ऑन वुड पर आधारित है।  अगर ऐसा लिखा होता तो बात हरजाने पर ख़त्म हो जाती।  फिल्म को मौत की सज़ा न होती।



यह इकलौती फिल्म थी जिसमे शंकर जयकिशन जोड़ी के जयकिशन ने अभिनय किया था। यह जयकिशन अभिनीत इकलौती फिल्म थी। बताते है कि इस फिल्म का ६० प्रतिशत हिस्सा भारत सरकार के आर्काइव को मिला है। वह कोर्ट का आदेश ढूंढ रहे है ताकि आगे की कार्यवाही की जा सके।

बेगुनाह, निर्देशक नरेंद्र सूरी की पहली फिल्म थी।  इस फिल्म के बाद सूरी ने लाजवंती,  मजबूर, पूर्णिमा,  बड़ी दीदी और वंदना का निर्देशन किया।  बड़ी दीदी और वंदना के निर्माता भी नरेंद्र सूरी ही थे। 

Tuesday 1 September 2020

राजकपूर को 'राज' कहने वाले के एन सिंह

 
अपनी भौहों के सञ्चालन, खास प्रकार की संवाद अदायगी और मुंह से सिगार का धुआ उगलते हुए, सामने वाले के पसीने छुडा देने वाले विलेन के एन सिंह ने अभिनय के दुनिया में जाने की कभी नहीं सोची थी. वह तो अपने क्रिमिनल लॉयर पिता की तरह वकील बनना चाहते थे. लेकिन, एक दिन पिता के डिफेन्स की वजह से एक वास्तविक अपराधी के छूट जाने पर उन्हें लगा की न्यायालय से न्याय नहीं दिलाया जा सकता. उनका मन वकालत से हट गया. वह खेल में रूचि रखते थे. वह जेवेलिन थ्रो के खिलाड़ी थे. उनका १९३६ के ओलंपिक्स में चयन होना था. लेकिन, उसी दौरान उन्हें अपनी बीमार बहन को देखने कलकत्ता जाना पडा. वह ओलिंपिक नहीं खेल पाए. क्योंकि, वह तो फिल्मों में खेल दिखाने के लिए बने थे. पृथ्वीराज कपूर उनके पारिवारिक मित्र थे. उन्होंने, कलकत्ता में के एन सिंह का परिचय देबकी बोस से करा दिया. देबकी बोस ने उन्हें फिल्म सुनहरा संसार में डॉक्टर की छोटी सी भूमिका सौंप दी. इसके साथ ही अभिनेता के एन सिंह का जन्म हो गया. कलकत्ता में उन्होंने चार दूसरी फ़िल्में हवाई डाकू, अनाथ आश्रम, विद्यापति और मिलाप भी की. मिलाप का निर्देशन ए आर कारदार ने किया था. जब कारदार बॉम्बे जाने लगे तो उन्होंने के एन सिंह को भी साथ ले लिया. इसके बाद, के एन सिंह बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री में इतना रमे कि उन्होंने १९८० के दशक तक कोई २५० फ़िल्में कर डाली. उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में एक रात, इशारा, ज्वार भाता, द्रौपदी, इंस्पेक्टर, हावड़ा ब्रिज, बरसात, आवारा, तीसरी मंजिल, एन इवनिंग इन पेरिस, लाट साहब, हाथी मेरे साथी उल्लेखनीय थी. फिल्म इशारा में के एन सिंह ने उम्र में बड़े पृथ्वीराज के पिता की भूमिका की थी. उस समय पृथ्वीराज कपूर ने उनसे कहा था कि फिल्म में तुम साबित करो की एक्टिंग में तुम मेरे बाप हो. के एन सिंह ने राजकपूर की निर्देशित लगभग सभी फिल्मों में अभिनय किया था. लेकिन, उन्होंने कभी राजकपूर को दूसरों की तरह राज साब नहीं कहा. वह कहते थे यह लड़का तो मेरी गोद में खेला है. के एन सिंह का जन्म आज के दिन १ सितम्बर १९०८ को देहरादून में हुआ था. उनका देहांत ३१ जनवरी २००० को मुंबई में हुआ.

Monday 24 August 2020

फातमा बेगम : फिल्म निर्देशन करने वाली पहली महिला


फातिमा बेगम का जन्म एक मुस्लिम परिवार  मे १८९२ में हुआ था।  उन्होंने स्टेज आर्टिस्ट के बतौर अपने अभिनय करियर की शुरुआत की।  फिल्मों की बढाती लोकप्रियता ने उन्हें मुस्लिम समाज का होने के बावजूद फिल्मों में जाने के लिए प्रेरित किया।  अर्देशर ईरानी की मूक फिल्म वीर अभिमन्यु (१९२२) उनकी पहली फिल्म थी।  फातिमा बेगम को भारतीय सिनेमा पहली महिला फिल्म निर्देशक के रूप में याद करता है।  उन्होंने १९२८ में फातिमा फिल्म्स की स्थापना की।  बाद में यह विक्टोरिया-फातिमा फिल्म्स कहलाई।  इस बैनर के तहत फातिमा बेगम ने बुलबुल-ए- परिस्तान का निर्माण और निर्देशन किया।  इस फिल्म ने उन्हें पहली महिला फिल्म निर्देशक बना दिया।  इस फिल्म की लेखिका भी फातिमा ही थी।  फिल्म में उनकी दोनों बेटियों ज़ुबैदा और सुल्ताना ने भी अभिनय किया था।  ज़ुबैदा हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' की नायिका थी।  फातिमा बेगम अपने स्टूडियो की फिल्म के अलावा वह कोहिनूर और इम्पीरियल की फ़िल्में भी करती थी।  फातिमा बेगम ने वीर अभिमन्यु के अलावा सती सरदारबा, पृथ्वी वल्लभ, काला  नाग, गुल- ए- बकावली और मुंबई नी मोहिनी में भी अभिनय किया।  उन्होंने गॉडेस ऑफ़ लव, हीर  राँझा, चन्द्रावलीशकुंतला, मिलान दिनार, कनकतरा और गॉडेस ऑफ़ लक का निर्देशन किया।  उनकी आखिरी फिल्म दुनिया क्या है १९३८ में रिलीज़ हुई थी।  १९८३ में ९१ साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

Sunday 23 August 2020

भारतीय फिल्मों में काम करने वाली पहली महिलाएं


दुर्गाबाई कामथ और कमला बाई का नाम भारतीय सिनेमा के पन्नों पर अमर हो गया है।  दुर्गाबाई और कमला बाई ने उस समय फिल्मों में काम करना मंज़ूर किया था, जब इस काम को घटिया माना जाता था।  दुर्गाबाई का अपने पति के साथ तलाक़ हो चूका था।  उन्हें अपनी बेटी को पालने के लिए तीन रास्तों में से एक को चुनना था। उन्होंने घरेलु नौकरानी का काम करने, अभिनय करने या वेश्यावृत्ति करने में से किसी एक को चुनना था।  दुर्गाबाई ने अभिनय का रास्ता चुना। वह मराठी नाटकों में काम करने लगी।  उस समय के ब्राह्मण समुदाय को यह नागवार गुजरा। उनका ज़ोरदार विरोध हुआ। लेकिन, दुर्गाबाई ने अपना काम ज़ारी रखा। १९१३ में पहली मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र का प्रदर्शन हुआ था। लेकिन, इस फिल्म में तारामती की भूमिका के लिए दादासाहेब फालके को कोई महिला नहीं मिली थी। इसलिए उन्हें एक पुरुष सालुंके को धोती पहनानी पड़ी थी। राजा हरिश्चंद्र की सफलता के बाद महिलाएं फिल्मों की ओर आकर्षित  होने लगी। इनमे से एक दुर्गाबाई कामत भी थी।  जब फाल्के ने अपनी दूसरी फिल्म मोहिनी भस्मासुर का निर्माण किया तो उन्हें महिला किरदार के लिए कलाकार ढूँढने में ख़ास परेशानी नहीं हुई।  दुर्गा बाई ने मोहिनी भस्मासुर में पार्वती का किरदार करना मंज़ूर कर लिया। उनके साथ उनकी बेटी कमलाबाई भी थी, जो मोहिनी के किरदार में थी। इस प्रकार से कामत परिवार की माँ बेटी ने पहली बार  फिल्मों में कदम रख कर इतिहास रच दिया।  कमलाबाई ने रघुनाथराव गोखले से  विवाह किया था।  इस  विवाह से उनके तीन बेटे चंद्रकांत गोखले, लालजी गोखले और सूर्यकांत गोखले हुए।  चंद्रकांत गोखले की संतान फिल्म और टीवी अभिनेता विक्रम गोखले हैं।

Thursday 13 August 2020

दक्षिण से आई टॉप पर पहुंची थी आज जन्मी वैजयंतीमाला और श्रीदेवी


आज दक्षिण की फिल्मों से बॉलीवुड में आई और टॉप पर पहुंची दो अभिनेत्रियों की बातें करना उपयुक्त होगा. यह दो अभिनेत्रियाँ वैजयंतीमाला और श्रीदेवी हैं. इन दोनों अभिनेत्रियों की परदे की ज़िन्दगी बाल भूमिका से शुरू हुई थी. वैजयंतीमाला की पहली फिल्म वाज़कई (१९४९) थी. वह इस फिल्म में किशोरी नायिका की भूमिका में थी. श्रीदेवी ने बीस साल बाद, फिल्म तुनिवन (१९६९) भगवान मुरूग की भूमिका की थी. वह उस समय पांच साल की थी.


चूंकि, वैजयंतीमाला का दक्षिण की फिल्मों में अभिनय जीवन १३ साल की उम्र में शुरू हुआ था. इसलिए वह दो साल बाद ही हिंदी फिल्मों में आ गई. उनकी पहली फिल्म बहार (१९५०), उनकी डेब्यू तमिल फिल्म वाज़कई की हिंदी रीमेक थी. वैजयंतीमाला को हिंदी फिल्मों में सफलता का यह नतीजा हुआ कि उनके बाद, दक्षिण की काफी अभिनेत्रियों का हिंदी फिल्मों में प्रवेश आसान हो गया. इनमे एक श्रीदेवी भी थी. चूंकि, श्रीदेवी का अभिनय जीवन पांच साल की उम्र में ही प्रारंभ हो गया था. इसलिए श्रीदेवी को हिंदी फिल्मों के लिए १० साल तक इन्तजार करना पडा. उनकी बतौर नायिका पहली फिल्म सोलहवां सावन (१९७९) थी, जो उनकी तमिल फिल्म १६ वयतिनिले की रीमेक थी. तमिल फिल्म में श्रीदेवी रजनीकांत और कमल हसन के साथ थी. अलबत्ता, श्रीदेवी को बाल भूमिका में फिल्म जूली (१९७५) में लक्ष्मी की छोटी बहन के रूप में देखा गया.


वैजयंतीमाला और श्रीदेवी के फिल्म करियर के लिहाज़ से मधुमती और चाल बाज़ का महत्व है. वैजयंतीमाला ने फिल्म मधुमती में और श्रीदेवी ने चाल बाज़ में दोहरी भूमिका की थी. मधुमती पुनर्जन्म पर थी. चालबाज़ में दो जुड़वा बहने बिछुड़ जाती हैं.


वैजयंतीमाला और श्रीदेवी के जीवन में नाग-नागिन पर आधारित फिल्मों का भी महत्त्व है. वैजयंतीमाला ने १९५३ में रिलीज़ नागिन फिल्म में नाग जनजाति के मुखिया की बेटी की भूमिका की थी, जो विरोधी जनजाति के लडके से प्रेम करती है. श्रीदेवी की फिल्म नगीना (१९८६) इच्छाधारी नागिन श्रीदेवी पर केन्द्रित फिल्म थी.


दोनों ही अभिनेत्रियाँ गजब की नृत्यांगना थी. दोनों ही भारतीय शास्त्रीय नृत्य में पारंगत थी. इन दोनों की आम्रपाली (१९६६) और चांदनी (१९८९) फ़िल्में इनके नृत्य के कारण मशहूर हुई थी. वैजयंतीमाला का फिल्म ज्वेल थीफ में होठों पे ऐसी बात और श्रीदेवी का मिस्टर इंडिया में हवा हवाई गीत नृत्य के लिहाज़ से श्रेष्ठतम थे.


इन दोनों की समानता यहीं ख़त्म नहीं होती. यह दोनों अभिनेत्रियाँ आज ही के दिन जन्मी थी. वैजयंतीमाला का जन्म १३ अगस्त १९३६ को ब्रिटिश इंडिया के मद्रास में हुआ था. जबकि श्रीदेवी का जन्म २७ साल बाद १३ अगस्त १९६३ को, मद्रास राज्य के मीनाम्पल्ली में हुआ था. श्रीदेवी की मृत्यु ५४ साल की उम्र १८ फरवरी २०१८ को हो गई थी.

Wednesday 12 August 2020

हिंदी फिल्मों का पहला गोविंदा गीत


शम्मी कपूर की श्वेत श्याम फिल्म ब्लफ मास्टर अपने कथानक, रोमांस और गीतों के लिए काफी चर्चित हुई थी. इस फिल्म में शम्मी कपूर और सायरा बानू, जंगली (१९६१) के बाद दूसरी बार साथ काम कर रहे थे. हालाँकि, जंगली के निर्माण के दौरान शम्मी कपूर और सायरा बानू के बीच जम कर तकरार हुई थी. इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत फिल्म के मधुर संगीत में से एक गीत गोविंदा आला रे था. यह गीत फिल्म के निर्देशक मनमोहन देसाई के दिमाग की उपज था. एक दिन ऐसे ही उनके मन में फिल्म में एक गोविंदा डांस रखने का हुआ, जिसमे शम्मी कपूर का किरदार दही हांडी फोड़ता है. इस गीत की खासियत यह थी कि इस गीत को सीधे फिल्माया गया था. इसके कोरियोग्राफी नहीं की गई थी. इस गीत के कारण फिल्म को बड़ी संख्या में दर्शक मिले. यह गोविंदा गीत रखने वाली पहली फिल्म बन गई. इस फिल्म से हिंदी फिल्मों में गोविंदा गीत रखने का चलन बन गया. मटकी फोड़ने वाले गीतों को अग्निपथ में हृथिक रोशन, ओएमजी: ओह माय गॉड में प्रभुदेवा और सोनाक्षी सिन्हा, वास्तव में संजय दत्त, हेल्लो ब्रोदर में सलमान खान और अरबाज़ खान तथा खुद्दार में अमिताभ बच्चन ने भी किया. लेकिन, जो धूम शम्मी कपूर के गोविंदा आला गीत ने मचाई, वह कोई दूसरा गीत नहीं मचा सका.

Tuesday 11 August 2020

दिल की धड़कन रोक देने वाले किस्सों से भरी धड़कन


बीस साल पहले, आज ही के दिन ११ अगस्त २००० को प्रदर्शित फिल्म धड़कन में अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी की हिट जोड़ी ली गई थी. लेकिन,  धड़कन में यह जोड़ी एक्शन नहीं, बल्कि इमोशन की जंग लड़ रही थी. इस फिल्म की खासियत यह थी कि फिल्म चार साल देर से रिलीज़ हुई थी. इस   कारण से फिल्म के हिट होने की उम्मीद किसी को भी नहीं थी. लेकिन, अच्छी कहानी और उम्दा गीतों की बदौलत फिल्म सुपर हिट केटेगरी में आ गई. इस फिल्म में देव की भूमिका के लिए संजय दत्त को लिया गया था. उनके जेल जाने के बाद अरबाज़ खान ले लिए गए. लेकिन, वितरकों के यह कहने पर कि अक्षय कुमार के साथ सुनील शेट्टी को लेने पर अच्छे दाम मिलेंगे, सुनील शेट्टी को ले लिया गया. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान अक्षय कुमार और शिल्पा शेट्टी वास्तव में प्रेम संबंधों में थे. इसी कारण से इन दोनों के बीच एक गर्मागर्म चुम्बन फिल्माया गया था. लेकिन, सेंसर इस चुम्बन के लिए कैंसर साबित हुआ. इस फिल्म का एक गीत दूल्हे का सेहरा नुसरत फ़तेह अली खान ने गाया था. इसे नुसरत फ़तेह अली खान पर ही फिल्माया जाना था. लेकिन, इसी बीच उनकी मौत हो गई. तब इस गीत को कादर खान पर फिल्माया गया. इस गीत की एक दूसरी खासियत यह थी कि इस गीत में अक्षय कुमार की सौतेली बहन के रूप में नवीन निशान दिखाई गई थी. लेकिन, इस गीत के बाद, इस भूमिका में मंजीत कुल्लर नज़र आने लगी. यह ऎसी फिल्म थी, जिसके निर्देशक धर्मेश दर्शन फिल्म को आमिर खान की फिल्म मेला के लिए बीच में छोड़ चले गए थे. बाद में धर्मेश दर्शन की वापसी हुई. इस फिल्म के सभी गीतों में धड़कन शब्द ज़रूर आया.

Monday 10 August 2020

आज की तारीख़ में 'सौदागर'

 


आज से ३० साल पहले, ९ अगस्त १९९१ को सुभाष घई की कास्टिंग कु करने वाली फिल्म सौदागर रिलीज़ हुई थी. इस फिल्म में दिलीप कुमार और राजकुमार प्रमुख भूमिका में थे. फिल्म से नेपाली सुंदरी मनीषा कोइराला और विवेक मुश्रान का फिल्म डेब्यू हुआ था. दिलीप कुमार और राजकुमार की जोड़ी ने इससे पहले सिर्फ एक फिल्म पैगाम (१९५९) में अभिनय किया था. निर्देशक एसएस वासन की इस फिल्म में राजकुमार ने आमने सामने के मुकाबले में दिलीप कुमार को मात दे दी थी. उनके मुकाबले नवोदित राजकुमार को मिली ज्यादा तालियों से दिलीप कुमार कुछ इतने विचलित हुए कि उन्होंने फिर कभी राजकुमार के साथ कोई फिल्म नहीं की. दिलीप कुमार का फिल्म करियर १९४४ में ज्वार भाटा फिल्म से हुआ था. पैगाम से पहले वह २५ फ़िल्में कर चुके थे. जबकि राजकुमार का फिल्म करियर १९५२ में रिलीज़ फिल्म रंगीली से शुरू हुआ था. पैगाम से पहले तक उनकी सिर्फ १२ फ़िल्में रिलीज़ हुई थी.

Wednesday 5 August 2020

आज के दिन रिलीज़ हुई थी मुग़ल ए आज़म और हम आपके हैं कौन

अगर ५ अगस्त के महत्त्व की बात की जाए तो दिलजले सेक्युलर भी प्रधान मंत्री द्वारा राम मंदिर के भूमि पूजन का ही ज़िक्र करेंगे. बेशक यह महत्वपूर्ण हैं. लेकिन, अगर यह दिन आज का न होता, तो भी ५ अगस्त का बड़ा महत्व है. ख़ास तौर पर सिने प्रेमियों के लिए. आज के दिन, अलग अलग सालों में दो मील का पत्थर फ़िल्में रिलीज़ हुई थी. आज से ठीक ६० साल पहले, ५ अगस्त १९६० को निर्देशक के आसिफ की पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला अभिनीत रोमांटिक छद्म ऐतिहासिक फिल्म मुग़ल ए आज़म रिलीज़ हुई थी. इस भव्य फिल्म के निर्माण में के आसिफ को १६ साल लगे थे. फिल्म की शुरुआत १९४४ में हुई थी. लेकिन, यह फिल्म आर्थिक अनिश्चितता के कारण १९५० के दशक में ही शुरू हो सकी. इसके बावजूद दूसरे प्रकार की अस्थिरता जारी रही. यही कारण है कि फिल्म के निर्माण में उस समय भी के आसिफ के डेढ़ करोड़ रुपये खर्च हो गए थे. लेकिन, फिल्म ने बॉक्स ऑफिस अपर ११ करोड़ का कारोबार किया.

५ अगस्त को रिलीज़ होने वाली दूसरी फिल्म हम आपके हैं कौन थी. सलमान खान और माधुरी दीक्षित की मुख्य भूमिका वाली सूरज बडजात्या के निर्देशन में बनी दूसरी फिल्म थी. यह फिल्म राजश्री प्रोडक्शन्स की १९८२ में प्रदर्शित और गोविन्द मूनिस द्वारा निर्देशित फिल्म नदिया के पार की रीमेक थी. हम आपके हैं कौन के निर्माण में राजश्री प्रोडक्शन्स के सवा चार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस फिल्म ने अब तक बॉक्स ऑफिस पर २०० करोड़ की ज़बरदस्त कमाई कर ली है. यह इस प्रोडक्शन हाउस की सबसे बढ़िया कमाई करने वाली फिल्म है.

मुग़ल ए आज़म और हम आपके हैं कौन की ख़ास बात यह थी कि यह दोनों ही फ़िल्में संगीतमय थी. मुग़ल ए आज़म के लिए नौशाद ने १२ गीत संगीतबद्ध किये थे. इन गीतों को लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, शमशाद बेगम और बड़े गुलाम अली खान ने गाया था. हम आपके हैं कौन में १४ धुनें थी. इन सभी को रामलक्ष्मण ने संगीतबद्ध किया था. इन गीतों को लता मंगेशकर और एसपी बलासुब्रह्मन्यम ने गाया था. यहाँ बताते चलें कि रामलक्ष्मण कोई संगीतकार जोड़ी नहीं थी. यह संगीतकार विजय पाटिल थे, जो रामलक्षमण के नाम से धुनें बांधते थे.


Thursday 30 July 2020

शेल्व्ड फिल्मों के डॉन चंद्रा बारोट




आज सोनी मैक्स २ पर शाम ७ बजे से अमिताभ बच्चन, प्राण और जीनत अमान अभिनीत फिल्म डॉन प्रसारित हो रही है. निर्माता नरीमन ईरानी की इस फिल्म को सलीम-जावेद की जोड़ी ने लिखा था. इस फिल्म मे अमिताभ बच्चन एक डॉन और एक बनारसी गवार की दोहरी भूमिका में थे. इस फिल्म के निर्देशक चंद्रा बारोट फिल्म पूरब पश्चिम, यादगार, रोटी कपड़ा और मकान तथा शोर में मनोज कुमार के सहायक थे. डॉन उनकी स्वतंत्र रूप से निर्देशित पहली फिल्म थी. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस बड़ी हिट फिल्म के बावजूद चंद्रा बारोट की दूसरी फिल्म प्यार भरा दिल को रिलीज़ होने में १३ साल लग गए. इसके २४ साल बाद, उनकी तीसरी फिल्म हम बाजा बजा देंगे बिना किसी प्रचार के रिलीज़ हुई. चंद्रा बारोट को बंद कर दी गई यानि शेल्व्ड फिल्मों के डॉन कहा जाना ठीक होगा. उन्होंने, डॉन के बाद, विनोद खन्ना के साथ बॉस, शशि कपूर के साथ खुंडा, दिलीप कुमार और सायरा बानो के साथ मास्टर, फिर दिलीप कुमार के साथ ही फिल्म कृष्णा, राज बब्बर और सारिका के साथ तितली, चंकी पाण्डेय के साथ टाइम, नाना पाटेकर के साथ २० रुपये, रेखा के साथ काली और फिर इसी फिल्म को फरहा नाज़ के साथ तथा एक फिल्म फ़िरोज़ खान के साथ शुरू की. पर यह सभी फ़िल्में पूरी होने से पहले ही बंद कर दी गई. पिछले सात सालों से ब्लॉकबस्टर डॉन के निर्देशक चंद्रा बरोट फेफड़े की बीमारी से पीड़ित हैं । उनकी दशा गंभीर बताई जा रही है।


Monday 20 July 2020

किशोर कुमार ने इस गीत को गाने से क्यों मना किया ?


मशहूर निर्माता मुशीर- रियाज़ ने गुलशन नंदा के उपन्यास सिसकते साज़ पर एक फिल्म मेहबूबा का निर्माण १९७६ में किया था। शक्ति सामंत द्वारा निर्देशित पुनर्जन्म पर आधारित इस संगीतमय फिल्म का संगीत राहुल देव  बर्मन ने संजोया था। इस फिल्म में राजेश खन्ना, हेमा मालिनी, प्रेम चोपड़ा, असरानी और आशा सचदेव की भूमिकाये थी।  इस फिल्म के तमाम गीत लोकप्रिय हुए थे।  इनमे एक लता मंगेशकर और किशोर कुमार का अलग अलग गाया गया गीत मेरे नैना सावन भादो  भी था।  क्या आप जानते हैं कि किशोर कुमार ने पहली बार में इस गीत को गाने से मना कर दिया थालेकिन, क्या आप यह भी जानते हैं कि उन्हें इसे गाने से क्यों मना किया था ? कहते हैं कि जब पंचम दा ने किशोर कुमार को इस गीत के बारे में बताया तो उन्होंने इसे गाने से मना कर दिया । ऐसा नहीं था कि वह राग शिवरंजनी में इस गीत को गाना नहीं चाहते थे । उन्होंने पंचमदा से कहा कि पहले तुम इसे लता मंगेशकर से रिकॉर्ड करवा लो । पंचमदा ने किशोर कुमार की बात मान ली और गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में रिकॉर्ड करवा लिया । किशोर कुमार ने लता द्वारा गाये गए इस गीत को खूब सुना । इसके बाद ही उन्होंने इस गीत को रिकॉर्ड करवाया। अब यह बात दीगर है कि दर्शकों ने लता और किशोर के गाये इस गीत को पसंद किया. लेकिन, ज्यादा सफलता मिली किशोर कुमार के गये वर्शन को । 

Monday 6 July 2020

डिरेल हो गई सितारों से भरी बीआर चोपड़ा की द बर्निंग ट्रेन !


निर्माता राजकुमार कोहली के बैनर शंकर मूवीज के तहत बनाई गई नागिन और जानी दुश्मन जैसी सितारा बहुल फिल्मों की ज़बरदस्त सफलता ने, बॉलीवुड के फिल्म निर्माताओं में सितारा बहुल फिल्मों के प्रति रुझान पैदा किया था. हालाँकि, बीआर चोपड़ा ने, १९६५ में एक सितारा बहुल फॅमिली ड्रामा फिल्म वक़्त का निर्माण कर सफलता हासिल की थी. लेकिन, इसके बाद, उन्होंने १५ साल तक, किसी सितारा बहुल फिल्म के निर्माण की नहीं सोची. नागिन और जानी दुश्मन के बाद, बलदेव राज चोपड़ा ने फिल्म द बर्निंग ट्रेन का निर्माण किया. इस फिल्म की खासियत यह थी कि यह जापानी फिल्म बुलेट ट्रेन (१९७५) की तर्ज पर बनाई जा रही थी. द बर्निंग ट्रेन की कहानी की ट्रेन सुपर एक्सप्रेस थी, जो पहली बार नई दिल्ली से मुंबई जा रही थी. बीआर चोपड़ा के बेटे रवि चोपड़ा के निर्देशन में बनने वाली इस ट्रेन में धर्मेन्द्र, विनोद खन्ना, हेमा मालिनी, जीतेंद्र, परवीन बाबी, नीतू सिंह, डेनी डेंगजोप्पा, विनोद मेहरा, इफ़्तेख़ार, रणजीत, नज़ीर हुसैन, सुजीत कुमार, ओम शिवपुरी, मदन पूरी, असरानी, केस्टो मुख़र्जी, पेंटल, नवीन निश्चंल, सिमी ग्रेवाल, इन्द्राणी मुख़र्जी, आशा सचदेव, पद्मिनी कोल्हापुरे, कोमिला विर्क, राजेंद्र नाथ, युनुस परवेज़, खुशबू, दिनेश ठाकुर, जानकीदास और मास्टर बबलू जैसे उस समय के लोकप्रिय चहरे सवाल थे. चूंकि इस फिल्म को कमलेश्वर ने लिखा था, इसलिए उम्मीदें कुछ ज्यादा ही थी. फिल्म का मसालेदार संगीत राहुल देव बर्मन ने दिया था. फिल्म का छायांकन, बीआर चोपड़ा के भाई धरम चोपड़ा ने किया था. सितारों की भीड़ की वजह से २८ मार्च १९८० को रिलीज़ इस फिल्म ने, शुरुआत में, सिनेमाघरों में भीड़ भी खूब जुटाई. परन्तु, कमज़ोर कथा- पटकथा के कारण इस फिल्म को दर्शकों ने नकार दिया. फिल्म ने ३.२ करोड़ का टॉप १० वाला कलेक्शन किया था. लेकिन, सितारा बहुल होने के कारण इस फिल्म की लागत इतनी ज्यादा थी कि फिल्म को फ्लॉप घोषित करना पडा. बीआर चोपड़ा का एक प्रयोग बेक-फायर कर गया. कुछ समय पहले जैकी भगनानी ने इस फिल्म का रीमेक बनाये जाने का ऐलान किया था। 

Thursday 25 June 2020

Shahrukh Khan और Amrita Singh की माँ ने चलवाए थे ४५ साल पहले बुलडोज़र


यह किस्सा भी आपातकाल की ज्यादतियों से जुडा एक किस्सा है. यह किस्सा पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट का है. इस मुस्लिम बहुल इलाके में, मुस्लिम आबादी की अनुमति के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता था. लेकिन, आपातकाल के दौरान इस तुर्कमान गेट के अन्दर परिंदा नहीं, बुलडोज़र घुसे थे.

आपातकाल के युवा तानाशाह संजय गाँधी, मुस्लिम आबादी की नसबंदी और पुरानी दिल्ली के इलाकों की सफाई के लिए कुख्यात थे. इसमे उनकी लेफ्टिनेंट थी रुखसाना सुल्तान. संजय गाँधी को तुर्कमान गेट से दिल्ली का व्यू पसंद नहीं आया था. उसने तुर्कमान गेट की सफाई के आदेश दे दिए. रुखसाना सुल्तान सबसे आगे थी. वह सबसे आगे बुलडोज़रों और सफाई कर्मियों और पुलिस की फौज का नेतृत्व कर रही थी. देखते ही देखते जिस तुर्कमान गेट इलाके में परिंदा भी पर नहीं मार सकता था, वहां बुलडोज़रों की आवाज़ तब तक गूंजती रही, जब तक इलाका साफ़ नहीं होगा. संजय गांधी को यह सफलता बॉलीवुड की दो माँओ के कारण मिली थी. तुर्कमान गेट को साफ़ कर देने वाली रुखसाना सुल्तान, फिल्म बेताब से सनी देओल के साथ डेब्यू करने वाली अमृता सिंह की माँ थी. यानि वह सैफ अली खान की पहली सास और सारा अली खान और इब्राहीम अली खान की नानी थी. और क्या आप दूसरी माँ को जानना चाहते हैं.

तुर्कमान गेट सहित भीड़भाड भरे मुस्लिम इलाकों में अतिक्रमण हटाने का आदेश एक आनरेरी मजिस्ट्रेट लतीफ़ फातिमा ने दिया था. यह लतीफ़ फातिमा और कोई नहीं बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख़ खान की माँ लतीफ़ फातिमा खान ही थी.


किस्सा कुर्सी का का ४५ साल पहले का किस्सा !


आज से ४५ साल पहले, तत्कालीन तानाशाह प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लागू कर, देश को एक बड़ी जेल में तब्दील कर दिया था. शासन की वास्तविक बागडोर उनके २८ साल के बेटे संजय गांधी और उनके कुछ लम्पट दोस्तों के हाथ में थी. इस समय सिनेमा ने क्या झेला, इसका के किस्सा फिल्म किस्सा कुर्सी का का उल्लेखनीय है. 

किस्सा कुर्सी का का निर्माण कांग्रेस के बाड़मेर से सांसद अमृत नाहटा ने दो बार किया था. पहली बार,उनकी फिल्म किस्सा कुर्सी का सेंसर के लिए १९७५ में पेश की गई. इस फिल्म की कहानी एक काल्पनिक अंधेर नगरी के भ्रष्ट शासक और उसके परिवार की थी. १९७५ की किस्सा कुर्सी का की कहानी और पत्र इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी की ओर इशारा करते थे. इस प्रतीकात्मक फिल्म में शबाना आज़मी ने गूंगी जनता की भूमिका की थी रेहाना सुल्तान इंदिरा गाँधी का स्क्रीन रूपांतरण थी. इंदिरा गाँधी के इर्द गिर्द के कुछ भ्रष्ट चरित्र भी इस फिल्म में दिखाए गए थे. नतीज़े के तौर पर यह फिल्म सेंसर में फंस गई. सेंसर की क्या मजाल कि वह इंदिरा गाँधी का मज़ाक उड़ाने की अनुमति देता. फिल्म पर ५१ कट लगाने के आदेश दिए गए. इसी दौरान देश में आपातकाल लग गया. संजय गाँधी ने तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ला को आदेश दे कर किस्सा कुर्सी का के प्रिंट सेंसर ऑफिस से लदवा कर गुडगाव स्थित अपनी मारुती फैक्टर पर मंगवा लिए. किस्सा कुर्सी का में इस फैक्ट्री का जिक्र हुआ था. मारुती के परिसर में इस फिल्म के प्रिंट जला दिए गए. लेकिन,किस्सा कुर्सी का का किस्सा अभी ख़त्म नहीं हुआ था. आपातकाल हटा. आम चुनाव हुए. इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी की बुरी हार हुई. j जनता पार्टी की सरकार बनी. अमृत नाहटा जनता पार्टी के टिकेट पर एक बार फिर सांसद बने. उन्होंने एक बार फिर किस्सा कुर्सी का का निर्माण किया. लेकिन, अब फिल्म काफी बदली हुई थी. इंदिरा गाँधी नदारद थी. अब एक काल्पनिक प्रधान मंत्री मनोहर सिंह आ गए थे.फिल्म रिलीज़ हुई. पर यह फिल्म अब धार खो चुकी थी. फिल्म को बुरी तरह से असफलता मिली.


Monday 22 June 2020

५५ के आमिर, ५३ की माधुरी और ३० का दिल !



२२ जून १९९० का दिन, अरुणा इरानी के छोटे भाई इंद्रकुमार के लिए ख़ास था. क्योंकि, उनकी बतौर निर्देशक पहली फिल्म दिल प्रदर्शित होने जा रही थी. यह एक नए निर्देशक के लिए सम्मान की बात थी कि उसकी फिल्म में  आमिर खान और माधुरी दीक्षित जैसे स्थापित नाम, नायक नायिका की भूमिका में थे. यह खालिस म्यूजिकल रोमांस फिल्म दिल बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त हिट हुई. इसके आनंद मिलिंद और समीर रचित तमाम गीत मुझे नींद न आये, हम प्यार करने वाले, हमने घर छोड़ा है, खम्बे जैसी खडी है, ओ प्रिया प्रिया, आदि गीत ज़बरदस्त हिट हुए थे. राजीव कौल और प्रफुल्ल पारेख की पटकथा तथा कमलेश पाण्डेय और नौशिर खटाऊ के लिखे संवादों के ज़रिये इंद्रकुमार ने आमिर खान, माधुरी दीक्षित और अनुपम खेर के बीच परदे पर ऐसा ड्रामा रचा था कि दर्शक फिल्म को अपना दिल दे था. दो करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर २० करोड़ का कारोबार कर डाला था.

आज आमिर खान ५५ के हैं और माधुरी दीक्षित ५३ की मगर उनका दिल आज सिर्फ ३० का है.