फातिमा बेगम का जन्म एक मुस्लिम परिवार
मे १८९२ में हुआ था। उन्होंने
स्टेज आर्टिस्ट के बतौर अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। फिल्मों की बढाती लोकप्रियता ने उन्हें मुस्लिम
समाज का होने के बावजूद फिल्मों में जाने के लिए प्रेरित किया। अर्देशर ईरानी की मूक फिल्म वीर अभिमन्यु
(१९२२) उनकी पहली फिल्म थी। फातिमा बेगम
को भारतीय सिनेमा पहली महिला फिल्म निर्देशक के रूप में याद करता है। उन्होंने १९२८ में फातिमा फिल्म्स की स्थापना
की। बाद में यह विक्टोरिया-फातिमा फिल्म्स
कहलाई। इस बैनर के तहत फातिमा बेगम ने
बुलबुल-ए- परिस्तान का निर्माण और निर्देशन किया।
इस फिल्म ने उन्हें पहली महिला फिल्म निर्देशक बना दिया। इस फिल्म की लेखिका भी फातिमा ही थी। फिल्म में उनकी दोनों बेटियों ज़ुबैदा और
सुल्ताना ने भी अभिनय किया था। ज़ुबैदा
हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा'
की नायिका थी। फातिमा बेगम अपने
स्टूडियो की फिल्म के अलावा वह कोहिनूर और इम्पीरियल की फ़िल्में भी करती थी। फातिमा बेगम ने वीर अभिमन्यु के अलावा सती
सरदारबा, पृथ्वी वल्लभ, काला नाग, गुल- ए-
बकावली और मुंबई नी मोहिनी में भी अभिनय किया।
उन्होंने गॉडेस ऑफ़ लव, हीर राँझा, चन्द्रावली, शकुंतला, मिलान दिनार,
कनकतरा और गॉडेस ऑफ़ लक का निर्देशन किया।
उनकी आखिरी फिल्म दुनिया क्या है १९३८ में रिलीज़ हुई थी। १९८३ में ९१ साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Monday, 24 August 2020
फातमा बेगम : फिल्म निर्देशन करने वाली पहली महिला
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झिलमिल अतीत
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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