आज से ४५ साल पहले, तत्कालीन तानाशाह प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लागू कर, देश को एक बड़ी जेल में तब्दील कर दिया था. शासन की वास्तविक बागडोर उनके २८ साल के बेटे संजय गांधी और उनके कुछ लम्पट दोस्तों के हाथ में थी. इस समय सिनेमा ने क्या झेला, इसका के किस्सा फिल्म किस्सा कुर्सी का का उल्लेखनीय है.
किस्सा कुर्सी का का निर्माण कांग्रेस के बाड़मेर से सांसद अमृत नाहटा ने दो बार किया था. पहली बार,उनकी फिल्म किस्सा कुर्सी का सेंसर के लिए १९७५ में पेश की गई. इस फिल्म की कहानी एक काल्पनिक अंधेर नगरी के भ्रष्ट शासक और उसके परिवार की थी. १९७५ की किस्सा कुर्सी का की कहानी और पत्र इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी की ओर इशारा करते थे. इस प्रतीकात्मक फिल्म में शबाना आज़मी ने गूंगी जनता की भूमिका की थी रेहाना सुल्तान इंदिरा गाँधी का स्क्रीन रूपांतरण थी. इंदिरा गाँधी के इर्द गिर्द के कुछ भ्रष्ट चरित्र भी इस फिल्म में दिखाए गए थे. नतीज़े के तौर पर यह फिल्म सेंसर में फंस गई. सेंसर की क्या मजाल कि वह इंदिरा गाँधी का मज़ाक उड़ाने की अनुमति देता. फिल्म पर ५१ कट लगाने के आदेश दिए गए. इसी दौरान देश में आपातकाल लग गया. संजय गाँधी ने तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ला को आदेश दे कर किस्सा कुर्सी का के प्रिंट सेंसर ऑफिस से लदवा कर गुडगाव स्थित अपनी मारुती फैक्टर पर मंगवा लिए. किस्सा कुर्सी का में इस फैक्ट्री का जिक्र हुआ था. मारुती के परिसर में इस फिल्म के प्रिंट जला दिए गए. लेकिन,किस्सा कुर्सी का का किस्सा अभी ख़त्म नहीं हुआ था. आपातकाल हटा. आम चुनाव हुए. इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी की बुरी हार हुई. j जनता पार्टी की सरकार बनी. अमृत नाहटा जनता पार्टी के टिकेट पर एक बार फिर सांसद बने. उन्होंने एक बार फिर किस्सा कुर्सी का का निर्माण किया. लेकिन, अब फिल्म काफी बदली हुई थी. इंदिरा गाँधी नदारद थी. अब एक काल्पनिक प्रधान मंत्री मनोहर सिंह आ गए थे.फिल्म रिलीज़ हुई. पर यह फिल्म अब धार खो चुकी थी. फिल्म को बुरी तरह से असफलता मिली.
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