Monday, 22 July 2013

सलमान खान ने शाहरुख़ खान को हग किया या दोनों गले मिले!

                           
                       लोक सभा चुनाव की पूर्व संध्या पर कुछ नए दिल मिलेंगे? इस प्रश्न का उत्तर पाने में अभी समय है. लेकिन बॉलीवुड में दिल मिलाने का सिलसिला जारी है. इसका ताजातरीन उदाहरण है बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख़ खान और टाइगर सलमान खान का कथित पैचअप . कल यानि २१  जुलाई को, मुंबई में महाराष्ट्र के एम् एल ए बाबा सिद्दीक़ की इफ्तार पार्टी में शाहरुख़ खान और सलमान खान एक दूसरे से मिले, दोनों ने बॉलीवुड की भाषा में कहें तो एक दूसरे को हग किया. दरअसल, बकौल बाबा शाहरुख़ और सलमान उनके बचपन के दोस्त है। इसलिए, जब बाबा ने इफ्तार पार्टी रखी थी तो इसी वजह से तमाम निगाहें इस पार्टी पर थीं कि क्या शाहरुख़ खान की मौजूदगी में सलमान खान इस पार्टी में शामिल होंगे ? इस पार्टी में शाहरुख़ खान पहले ही पहुँच गए थे. सलमान खान आदतन देर से आये. दोनों की नज़रे मिली, दोनों ने हग किया यानि गले मिले. लेकिन, क्या इसके साथ ही दिल मिल गये? बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री के दो बिग्गेस्ट खान एक दूसरे के दोस्त बन गए? इसे जानने के लिए थोडा पीछे जाना होगा।
                          कभी एक दूसरे के अच्छे दोस्त रहे सलमान खान और शाहरुख़ खान की दुश्मनी की शुरुआत पांच साल पहले यानि २००८  में कटरीना कैफ की जन्मदिन पार्टी पर हुई थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था. दोनों खानों ने आदतन जम कर दारू पी रखी थी. दारू पी कर सलमान खान तो नियंत्रित रहे. मगर शाहरुख बहक गये. उन दिनों सलमान खान और ऐश्वर्य रॉय का ब्रेक अप हो चूका था. सलमान खान और विवेक ओबेरॉय की मशहूर नोंक झोंक भी हो चुकी थी. जाहिर है की सलमान खान काफी झल्लाए फिरते होंगे। ऐसे में शाहरुख़ खान ने उनकी दुखती रग पकड़ ली. उन्होंने ऐश्वर्य को लेकर सलमान को छेड़ना शुरू कर दिया. सलमान खान की एक खासियत यह भी है कि वह रोमांस और ब्रेक अप ढेरों करते है। लेकिन, ब्रेक अप के बाद अपने बिछड़े प्यार के बारे में कोई बात करना या सुनना पसंद नहीं करते. अपनी लेडी लव के लिए बुरी बातें तो कतई नहीं . लेकिन बादशाह खान थे कि बहकते चले गये. उपस्थित लोग उनके इस प्रलाप का मज़ा ले रहे थे. सलमान खान खुद पर नियंत्रण रखे हुए थे. लेकिन जब शाहरुख़ ने ऐश्वर्य पर छींटा कसी शुरू की तब सलमान खान अपना आपा खो बैठे . लम्बे समय के अच्छे  मित्रों के हाथ एक दूसरे के कालर तक चले गये. बात मारा मारी तक पहुंचती कि लोगों ने दोनों को अलग कर दिय. कटरीना कैफ की पार्टी का रंग पूरी तरह से बदरंग हो चूका था. क्रोधित सलमान खान, शाहरुख़ खान से फिर कभी गले न मिलने की कसम के साथ पार्टी से चले गये. इसके बाद कई मौके ऐसे आये जब दोनों खानों ने एक दूसरे के सामने होना अवॉयड किया. फिल्म समारोह में शाहरुख़ थे तो सलमान या तो आये नहीं या तभी आये जब शाहरुख़ चले गये. अगर कभी सामना हुआ भी तो एक दूसरे को इग्नोर कर गये.
                          तब क्या एक एम् एल ए के घर में हुई पार्टी में पांच साल पहले टूटे और बिछड़े दिल मिल गये? एक नज़र में ऐसा हो गया लगता है. लेकिन, सब इतना आसन नहीं। यशराज स्टूडियो में १३  नवम्बर २०१२ को मौजूद मेहमान गवाह हैं ऐसे ही एक कथित ऐतिहासिक दृश्य के। शाहरुख़ खान, कटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा अभिनीत तथा यश चोपड़ा की अंतिम निर्देशित फिल्म जब तक है जान का प्रीमियर था. फिल्म से जुड़े शाहरुख़ खान सहित सभी लोग मौजूद थे. सभी मेहमान आ चुके थे. जब तक है जान की स्क्रीनिंग शुरू हो गयी। तभी सूचना मिली कि सलमान खान पहुँचने वाले है. इसी मिलन को देखने के लिए उत्सुक मीडिया को अवॉयड करने के लिए सलमान खान देर से पहुँच रहे थे. कटरीना कैफ को अपने प्यार को रिसीव करने के लिए गेट पर पहुँचना ही था. लेकिन, शाहरुख़ खान भी चल दिए कटरीना के साथ सलमान का स्वागत करने को. गेट पर मौजूद लोग अभूतपूर्व दृश्य के गवाह बने. दोनों खान, जैसे सचमुच सब भुला कर, एक दूसरे के गले मिल रहे थे और थपथपा रहे थे. इसके साथ ही यह मान लिया गया कि दोनों खान फिर दोस्त बन गये. क्या सचमुच!
                          कल यानि २१ नवम्बर को, ठीक २४१ दिनों बाद बाबा सिद्दीक की इफ्तार पार्टी में सलमान खान और शाहरुख़ खान गले मिले तो क्या दोनों के दिल मिल गए?
                          दोस्तों यह बॉलीवुड हग है, इसे गले मिलना कहा जा सकता है, लेकिन दिल मिलना नहीं। देखते जाइये आगे आगे यह दोनों खान कैसे कैसे नाटक दिखाते है।


                          


          








 

Sunday, 21 July 2013

वाइट हाउस डाउन - हॉलीवुड से एक और सुपर हीरो !

   हॉलीवुड अपने बलशाली मानव, मशीन मानव या सुपर मैन गढ़ता रहता है. बैटमैन, सुपर मैन, स्पाइडर मैन इसके सुपर मैन है। कुछ ऐसे मानव भी हैं जो सुपर मैन के आस पास की शक्ति और क्षमता वाले करैक्टर है. पाइरेट्स ऑफ़ द कॅरीबीयन सीरीज के  जोनी डेप के  जैक स्पैरो, ब्रितानी जासूस जेम्स बांड, बॉर्न सीरीज की फिल्मों के  मैट डेमन का करैक्टर जैसन बॉर्न तथा ट्रिपल एक्स सीरीज की फिल्मों में विन डीजल का जेंडर केज  ऐसे ही करैक्टर है। एक समय तो मैट डेमन और विन डीजल के चरित्रों को जेम्स बांड का जवाब मान लिया गया था. अब रोलां एम्मेरीच निर्देशित फिल्म वाइट हाउस डाउन से अमेरिकन सिक्यूरिटी फाॅर्स के एजेंट जॉन केल  के रूप में अभिनेता चंनिंग Tatum  आये है. वाइट हाउस डाउन में जॉन केल प्रेजिडेंट की सिक्यूरिटी में भरती होने के लिए इंटरव्यू के लिए अपनी बेटी के साथ वाइट हाउस जाता है. उसे उसके बायो डाटा के आधार पर इस पोस्ट के अयोग्य  मान लिया जाता है. निराश केल अपनी बेटी को वाइट हाउस घुमाने के लिए गाइड के साथ हो लेता है कि तभी वाइट हाउस पर हमला हो जाता है. उस समय केल की बेटी वाश रूम गयी होती है।  केल वाइट हाउस से निकल जाता है. लेकिन उसकी बेटी वाइट हाउस में ही फंसी है, इसलिए वह वापस आता है. तभी उसे प्रेजिडेंट खतरे में फंसे नज़र आते है। अब उसके कन्धों पर बेटी को बाहर निकालने के अलावा प्रेजिडेंट को बचाने  का भी दायित्व है. इस दायित्व को केल कैसे निभाता है, यह देखना बेहद रोमांचक है.

फिल्म में एक्शन की भरमार है. वाइट हाउस में विस्फोट के बाद तो पूरी फिल्म में बम के धमाके और गोलियों की आवाज़ ही गूंजती रहती है. ऐसे में केल सुपर मैन बना नज़र आता है. केल के रूप चंनिंग खूब जमे हैं . उनका अकेले ही आतंकी हमले को विफल कर प्रेजिडेंट को बचा ले जाना गले नहीं उतरता, लेकिन अपने प्रेजिडेंट के प्रति एक अमिरीकी का समर्पण साफ़ नज़र आता है. अपने गठीले शरीर से चंनिंग दर्शकों को तमाम अविश्वसनीय दृश्यों पर यकीन करने के लिए विवश कर देते हैं . केल के करैक्टर की खासियत यह है कि वह खालिस देश भक्त नहीं! वह आतंकी हमले को इसलिए विफल करता है कि उसकी बेटी फंसी हुई है. लेकिन, चंनिंग टाटम का यह आम आदमी अमेरिकी दर्शकों को भी ज्यादा रास आएगा, इसमे शक है. फिल्म में अमेरिकी प्रेजिडेंट जेम्स W सॉयर के रोल में ऑस्कर पुरस्कार विजेता अभिनेता जमी फॉक्स है. वह अपने रोल को बेहतरीन ढंग से करते है. अमेरिकी प्रेजिडेंट की खासियत उसकी विट्स  और सेंस ऑफ़ humour  होता है. जेमी इसे भी बखूबी व्यक्त करते है. वह ऐसा करते समय कोई कॉमिक करैक्टर नहीं लगते.  फिल्म की शुरुआत केल  की बेटी एमिली के अपनी खिड़की से अमेरिकी प्रेजिडेंट के हेलीकाप्टर को उड़ते देखते हुए होती है. एमिली के रोल को बाल कलाकार जोए किंग ने की है. चौदह साल की इस बाल अभिनेत्री का चेहरा खूबसूरत है ही, वह एक्टिंग भी खूब करती है. जैसन क्लार्के ने डेल्टा फाॅर्स के बर्खास्त सदस्य और अब भाड़े के हत्यारे एमिल स्तेंज़ की भूमिका बड़ी स्वाभाविकता से की है. जेम्स वुड्स वाइट हाउस पर हमले के मास्टर माइंड  और अमेरकी प्रेजिडेंट की सुरक्षा के मुखिया बने है। वह बेहतरीन अभिनय करते है. गाइड के रोल में निकोलस राइट हंसाने में कामयाब रहे है.
लेखक जेम्स vanderbitt ने साधारण सी कहानी को ग्रिप्पिंग स्क्रिप्ट के ज़रिये सांस रोक देने वाली फिल्म बना दिया है. Adam Wolfe ने अपनी कैंची के सहारे फिल्म की चुस्ती बरकरार रखी है. एना फोरेस्टर का छायांकन वाइट हाउस के तमाम दृश्यों का उत्कृष्ट चित्रण करता है. वाइट हाउस को परदे पर साकार करने के लिए फिल्म की आर्ट टीम का काम काबिले तारीफ है.
वाइट हाउस डाउन को आम अमेरिकन की अपने देश और प्रेजिडेंट के प्रति समर्पण, राजनेताओं के कुचक्रों बेहतरीन एक्शन और अभिनय के लिए देखा जा सकता है.













 

Friday, 19 July 2013

डी-डे ने गोली मार दी दाऊद को या फिल्म को!


क्या दर्शक दाऊद इब्राहीम को भारत में गोली मारते देखना चाहते है? क्या रील में इसे देख कर वह तालियाँ बजाने के अलावा देखने भी आएंगे और अपने दोस्तों को भी न्योता देंगे? अगर हां, तो समझ लीजिये कि डी-डे  हिट फिल्म है.
फिल्म की कहानी के अनुसार एक रिटायर्ड फ़ौजी कराची में रॉ के एजेंटों के साथ मिल कर दाऊद की फ़िल्मी कॉपी गोल्डमन को भारत में लाने की कोशिश करता है. इस फिल्म में भारत की सर्वोच्च संस्था के एजेंट जिस बचकाने तरीके से गोल्डमन को पाकिस्तान से भारत लाने का प्रयास करते है, अगर उसका एक प्रतिशत भी रॉ के एजेंट रियल में करते है, तो आसानी से समझा जा सकता है कि हम बार बार मुंह की क्यों खाते है। जिस प्रकार से निर्देशक निखिल आडवानी अपनी फिल्मों के एजेंट्स से काम करवाते है, वह वास्तव में बचकाना है. हाई सिक्यूरिटी के घेरे वाले होटल में दाऊद को उसके बेटे की शादी से उठाना, कल्पना की बकवास उड़ान ही कहा जा सकता है. उचित होता अगर निखिल इस कहानी से दोनों देशों की कूटनीति और रॉ एजेंट्स के प्रति भारत सर्कार की नीति को डिस्कस करते. निखिल फिल्म की कहानी को फ़्लैशबेक में दिखाते है। घटनाओं और चरित्रों की इतनी भरमार है कि दर्शक समझ नहीं पाटा कि कौन क्या और क्यों कर रहा है. अर्जुन रामपाल ठीक है. इरफ़ान खान को अब इस प्रकार के रोले नहीं करने चाहिये . ऋषि कपूर  सावधान! अब आप चुकने जा रहे है। ऐसे रोले कतई नहीं करे. श्रुति हासन अपने रोल की तरह भ्रमित लगती है। हुम कुर्रेशी न तो सुन्दर लगती हैं न अभिनय कर पाती है। नासर ने रॉ के अधिकारी के रूप में अपने काम को अच्छी तरह से किया है.
बाकी कुछ भी उल्लेखनीय नही।


 

मैंने प्यार किया है रमैया वस्तावैया !


प्रभु देवा निर्देशित फिल्म रमैया वस्तावैया को देखते समय सलमान खान की १९८९ की ब्लॉकबस्टर फिल्म मैंने प्यार किया की याद आ सकती है. ग्रामीण परिवेश यहाँ भी है. गिरीश कुमार का नाम भी राम है. श्रुति हासन सुमन नहीं सोना है। मैंने प्यार किया में भाग्यश्री का पिता सलमान खान को अपनी मेहनत की कमाई ला कर दिखाने को कहता है. जबकि रमैया वस्तावैया में श्रुति हासन का भाई गिरीश कुमार से खेत में ज्यादा बीज उगा कर दिखाने का चैलेंज देता है. गिरीश इस लक्ष्य को पायेगा, यह तो तय था.लेकिन किस प्रकार, यह देखना सचमुच रोचक है.  सूरज बडजात्या के ठीक विपरीत इसमे प्रभुदेवा का  तड़का है, स्टाइल है. प्रभुदेवा ने २०० ५ में मैंने प्यार किया का ब्लॉकबस्टर तेलुगु रीमेक बनाया था. प्रभुदेवा ने अब अपनी ही फिल्म का रीमेक किया है. मानना पड़ेगा कि प्रभुदेवा को दर्शकों की नब्ज की समझ है. वह हर फ्रेम को रोचक ढंग से पेश करते है। यही कारण है कि जानी पहचानी कहानी पर फिल्म होने के बावजूद दर्शकों को पर्याप्त नयापन मिलता रहता है. सचिन जिगर का संगीत कहानी के माहौल के अनुरूप मस्त है. ख़ास तौर पर, जीने लगा हूँ गीत पर सिनेमाघर सीटियों से गूंजने लगते है. जेक्विलिन फर्नांडीज के साथ प्रभु देवा की जादू की झप्पी दर्शकों को मस्त कर देती है. कहानी गाँव की होने के बावजूद किसी प्रकार के पुरानेपन  या ऊब का एहसास नहीं होता. इसके लिए प्रभुदेवा के अलावा लेखक शिराज़ अहमद तारीफ के हक़दार है कि दर्शकों में मैंने प्यार किया के दोहराव का शिकार होने नहीं देते. नयापन बनाये रखते है.
तारीफ तो श्रुति हासन और गिरीश कुमार की भी करनी होगी. श्रुति तो खैर दक्षिण की पुरस्कार प्राप्त और अनुभवी अभिनेत्री है। वह अपने सोना के किरदार को बड़े स्वभाविक ढंग से करती है। इमोशनल मोमेंट में वह अपनी आँखों और चेहरे से प्रभावित करती है। लेकिन, तालियों के हक़दार हैं डेब्यू एक्टर गिरीश कुमार. वह बेहद कॉन्फिडेंस से अपने किरदार को अंजाम देते है। हालाँकि इस फिल्म में  उन को देखते समय सलमान खान की याद आती है, लेकिन वह सलमान खान से कहीं बहुत आगे है. सलमान खान तो आज भी चेहरा बनाने को अभिनय समझते है। मैंने प्यार किया में वह इसे काफी बचकाने तरीके से करते थे. लेकिन, गिरीश कुमार कॉमेडी और इमोशनल दृश्यों में बढ़िया काम करते है। वह अच्छे डांसर भी साबित होते है। दर्शक उन के किरदार से बंधा हुआ महसूस करते है। गिरीश पूरी फिल्म को अपने कंधे पर सम्हाल लेते है। अगली फिल्म में गिरीश कुमार क्या करते हैं, यह पता नही. लेकिन इस फिल्म में वह दर्शकों की अपेक्षाओं में खरे उतरते है. सोनू सूद श्रुति के भाई रघुवीर की भूमिका में प्रभावित करते है। गिरीश कुमार के दोस्त बिजली की भूमिका में परेश  गणात्रा हंसाने में सफल रहते है. फिल्म में विनोद खन्ना पूनम ढिल्लों और गोविन्द नामदेव जैसे वरिष्ठ सितारे है. दक्षिण के नासर कॉमिक विलेन बने है. यह सब अपना काम ठीक कर ले जाते है. लेकिन, सतीश शाह और जाकिर हुसैन को देख कर कोफ़्त होती है. यह सक्षम अभिनेता पैसों की खातिर बेकार की भूमिकाएं पूरे बेकार ढंग से कैसे कर ले जाते है.
दर्शकों ने धनुष के अभिनय के कारण राँझना को देखा था. उम्मीद है कि इस बार वह रमैया वस्तावैया के गिरीश कुमार के लिए सिनेमाघरों तक आयेंगे।




 

Thursday, 18 July 2013

क्या रमैया वस्तावैया होगा गिरीश के मामले में !

शुक्रवार को गिरीश कुमार की बॉक्स ऑफिस पर कड़ी परीक्षा होनी है. वह टिप्स इंडस्ट्री के मालिक कुमार तौरानी के बेटे है। पर खुद को साबित करने के लिए गिरीश कुमार के लिए इतना परिचय काफी नही। टिप्स फ़िल्में भी  बनाती  है. इसलिए कुमार तौरानी के लिए अपने बेटे गिरीश को हीरो बनाने के लिए फिल्म बनाना आसान था. उन्होंने एक बड़ा सेटअप और प्रभु देवा के रूप में एक सफल डायरेक्टर भी जुटा लिया। मगर परदे पर दर्शकों का सामना तो गिरीश को ही करना है. ठीक एक महीना पहले दक्षिण के सुपर स्टार रजनीकांत के दामाद और तमिल फिल्मों के स्टार धनुष की राँझना से परीक्षा हुई थी. वह  चेहरे से कहीं से भी हीरो मटेरियल  नहीं रखते थे. शरीर से दुबले धनुष को देख कर उनके हीरो होने पर शक होता था . लेकिन खास अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर वह उत्तर के दर्शकों को अपनी पहली हिंदी फिल्म से ही अपना मुरीद बना पाने में कामयाब हुए. गिरीश कुमार के सामने धनुष की सफलता चुनौती भी है और प्रेरणा भी. वह आश्वस्त हो सकते है कि वह भी हिंदी फिल्मों के हीरो बन सकते है. हालाँकि उनका चेहरा भी हिंदी फिल्मों के हीरो जैसा नहीं . धनुष अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर ही सफल हुए थे. गिरीश के लिए यह चुनौती है. क्योंकि उन्हें अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर हिंदी दर्शकों को रिझाना होगा! फिल्म की कहानी सलमान खान की फिल्म मैंने प्यार किया जैसी है. इस हीरो सेंट्रिक कहानी के बल पर सलमान खान जैसा कम प्रतिभाशाली अभिनेता भी हिंदी दर्शको का प्रेम बन गया। पर वह ज़माना दूसरा था. आज हिंदी फिल्मों का कैनवास काफी बदल गया है. स्क्रिप्ट और निर्देशकीय कल्पनाशीलता काफी मायने रखने लगी है. कहानी को कुछ इस तरह मोड़ लेना चाहिए होगा कि दर्शकों को लगे कि वाह वाह कमाल हो गया. इसके बावजूद गिरीश का अभिनय मायने रखेगा. गिरीश के पास अच्छा मौका है. उन्हें वांटेड और राऊडी राठौर  जैसी फिल्मों का प्रभु मिला है, जो हिंदी दर्शकों की नब्ज़ समझता है. प्रभु की यह पहली हिंदी रोमकॉम फिल्म है. फिल्म में गिरीश की नायिका शुर्ती हासन है. श्रुति तमिल तेलुगु फिल्मों में अपनी अभिनय प्रतिभा साबित कर चुकी है. उन्हें एक फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार भी मिल चूका है. वह गिरीश को काफी सपोर्ट कर सकती है. श्रुति की आज ही एक अन्य फिल्म डी-डे भी रिलीज़ हो रही है. डी-डे में श्रुति ने एक वैश्य का किरदार किया है. श्रुति के लिए हिंदी फिल्म में अपनी लक कायम करने का सुनहरा मौका है.
गिरीश कुमार ने बढ़िया अभिनय किया. दर्शकों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और फिल्म हिट हो गयी तो समझिये की दर्शकों की योग्यता भी साबित हो गयी. क्योंकि, अभी तक सलमान खान जैसे अभिनेताओं की माइंडलेस फिल्मों को सुपर डुपेर हिट बनाता हिंदी दर्शक दुनिया के सामने मूर्ख साबित होता था. रमैया वस्तावैया का मतलब हिंदी में राम क्या तुम मेरे लिए आओगे होता है. क्या इस तेलुगु कहावत की तरह हिंदी दर्शक गिरीश के लिए रमैया वस्तावैया बनेगा!


 

Tuesday, 16 July 2013

पसिफ़िक रिम : मशीन के सामने बेदम मनुष्य


हॉलीवुड की फिल्मों में मानव के बजाय मशीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. ख़ास तौर पर विज्ञान  फंतासी फिल्मों में विश्व को संकट से बचने की लड़ाई जीतने में या तो मशीन आगे रहती है या मानव के साथ सक्रिय सहयोग करती है. कभी इन फिल्मों में तो मशीन ही हीरो बन जाती है. हॉलीवुड फिल्मों में स्पेशल इफेक्ट्स और कंप्यूटर ग्राफ़िक्स का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. ब्लेड २  और हेलबॉय सीरीज की फिल्मों के निर्देशक गुइलेर्मो डेल टोरो की पिछले शुक्रवार रिलीज़ फिल्म पसिफ़िक रिम एक ऐसी ही फिल्म है. पसिफ़िक रिम २०२० की दुनिया की परिकल्पना है, जिसमे ड्रैगन कायजू शहरों पर हमला कर देते है. उनको रोकना किसी एक मानव के वश की बात नही। मानव युक्त मशीन ही यह काम कर सकती है. इस मशीन को एक मनुष्य  का दिमाग भी संचालित नहीं कर सकता. इसके लिए दो दिमागों की ज़रुरत है. विश्व के सभी देशों के दिमाग मिल कर उस कायजू का नाश करते है। कैसे !
फिल्म में मशीन को महत्त्व दिया गया है. अन्दर से मानव द्वारा संचालित की जा रही मशीन है तो स्पेशल इफेक्ट्स, VFX, कंप्यूटर ग्राफ़िक्स, आदि नाना वैज्ञानिक अविष्कारों का उपयोग कर जैगर की ईजाद की गयी है. वही कायजू को मारने में सक्षम है. चूंकि फिल्म में मशीन का महत्व है, इसलिए अभिनय की ख़ास गुंजाईश नही. इसीलिए चार्ली हुन्नम, रिनको किकुची, इदरिस एल्बा, चार्ली डे और रोन पेर्लमन ने अभिनय की रस्म अदायगी कर दी है. १९० मिलियन डॉलर में बनी इस फिल्म की पटकथा ट्रेविस बेअचेम के साथ खुद गुइलेर्मो ने लिखी है. कयाजू और जैगर की फाइट थ्रिल पैदा करती है. लेकिन दर्शक ऐसी कल्पना से तालमेल नहीं बैठा पाते कि सात साल बाद विश्व पर किसी कायजू  का हमला होगा और उनकी रक्षा मानव मशीन करेगी. किसी भी विज्ञानं फंतासी फिल्म में मशीन का होना स्वाभाविक है. लेकिन, क्लाइमेक्स में मशीन की मदद से मानव को ही जीतते दिखाया जाना चहिये. पसिफ़िक रिम में इसे कुछ इस तरह से दिखाया गया है कि आम दर्शक खुशी से चीख नहीं पड़ता . यही फिल्म की बड़ी असफलता है.
उच्च तकनीक के इस्तेमाल से बनायी गयी इस फिल्म में तकनीकी टीम का काम बहुत सराहनीय है. अगर इस टीम को अच्छी पटकथा मिली होती तो यह टीम एक सफल फिल्म दे पाती.

बॉक्स ऑफिस पर तीसरे स्थान पर 'मिल्खा'

निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म भाग मिल्खा भाग १९६०  के रोम ओलंपिक्स की चार सौ मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रह कर भारत के उड़न सिख बनने वाले मिल्खा सिंह की तरह बॉक्स ऑफिस पर दौड़ मार रही है. इस फिल्म ने वीकेंड में ३२  करोड़ कम कर, वीकेंड में १९  करोड़ कमाने वाली रनवीर  सिह और सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म लुटेरा, २० करोड़ से ज्यादा कमाने वाली धनुष और सोनम की फिल्म रान्झना तथा २२ -३० करोड़ कमाने वाली इमरान हाश्मी और विद्या बालन की फिल्म घनचक्कर को पछाड़ दिया है. यह फिल्म इस साल सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्मों में तीसरे और चौथे स्थान की फिल्म शूटआउट एट वडाला  तथा हिम्मतवाला के कलेक्शन को पीछे छोड़ कर, तीसरे स्थान पर पहुँच गयी है. अलबत्ता भाग मिल्खा भाग बॉक्स ऑफिस के रेस में यह जवानी है दीवानी तथा रेस २ से पिछड़ गयी है. भाग मिल्खा भाग की यह दौड़ मुंबई दिल्ली-यूपी, पंजाब और मैसूर सर्किट के बॉक्स ऑफिस की बदौलत है. भाग मिल्खा भाग को मल्टीप्लेक्स थिएटर में ज्यादा पसंद किया गय.
भाग मिल्खा भाग ने साबित कर दिया कि  अगर सूझ बूझ से फिल्म लिखी गयी हो निर्देशक कल्पनाशील हो तो स्पोर्ट्स बार बनी फिल्मों को भी सफलता मिल सकती है. यह फिल्म राकेश ओमप्रकाश मेहरा की दिल्ली ६ की पिछली असफलता के दाग को ख़त्म कर दिया है. भाग मिल्खा भाग अभिनेता फरहान अख्तर के कद को ऊँचाई देने वाली फिल्म है.  

 

Saturday, 13 July 2013

बॉलीवुड हीरो के 'प्राण'

तिरानबे साल पहले 12 फरवरी को जन्मे प्राण कृष्ण सिकंद का 12 जुलाई को देहांत हो गया. आज अख़बारों की सुर्खियाँ हैं कि हिंदी फिल्मों के मशहूर विलेन प्राण का निधन हो गया . एक बेजोड़ अभिनेता का यह कैसा  मूल्यांकन ? वह किस कोण से विलेन थे. इतने सुन्दर चहरे और शानदार व्यक्तित्व वाला केवल विलेन कैसे? बहुत कम लोग जानते होंगे कि शिमला में नाटक के दिनों में मदन पूरी की रामलीला में प्राण ने सीता का रोल किया था. फिल्मों में भी वह अपने अभिनय के नए कीर्तिमान स्थापित करते रहे. उन्होंने विलीन और करैक्टर रोल्स को एक जैसी महारत से किया. शहीद का डाकू केहर सिंह किधर से विलेन था, जो भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के लिए उपवास रखता है, आंसू बहता है. उपकार का मलंग चाचा, जो हीरो को बचने में अपनी जान दे देता. क्या रियल लाइफ में ऐसा चाचा विलेन कहलाता  है? नहीं ना! तब प्राण का मलंग चाचा विलेन कैसे हो गया? क्या इसलिए कि इस किरदार को करने वाला अभिनेता सैकड़ों हिंदी फिल्मों में खलनायिकी के तेवर दिखा चुका था. यह तो एक  अच्छे अभिनेता की निशानी है कि इतना खूबसूरत आदमी हिंदी फिल्मों के विलेन को तेवर दे रहा था. लेकिन प्राण ने तो खानदान पिलपिली साहेब और हलाकू जैसी फिल्मों का हीरो बनाने के बाद जब खुद का चेहरा देखा तो उन्हें लगा कि वह हीरो के रूप में इतने खूबसूरत नहीं। वह तो हिंदी फिल्मों के विलेन को नए नए चहरे देना चाहते थे, नई ऊँचाइयाँ देना चाहते थे ताकि वह हर हिंदी फिल्म की ज़रुरत बन जाये. जिद्दी में देव आनंद के अपोजिट विलेन बन कर प्राण ने न केवल देव आनंद को हिट बनाया, फिल्म हिट हुई, बल्कि खुद प्राण भी बतौर विलेन सुपर डुपेर हिट हो गये. एक समय ऐसा था जब प्राण के लिए ख़ास तौर पर रोल  रखे और लिखाये जाते थे. फिल्म की कास्टिंग में ...एंड अबोव आल प्राण।
प्राण कितने अच्छे अभिनेता थे इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने बिना लाउड हुए अपने चरित्र को इतना दुष्ट बनाया कि विश्वजीत और जॉय मुख़र्जी जैसे मामूली अभिनय करने वाले बड़े हीरो बन गये. जब भी वह परदे पर आये दर्शक गालियों और तालियों से उनका स्वागत करते. क्या अभी तक कोई ऐसा विलेन हुआ है जिसे गालियों के साथ तालियाँ  भी मिले. लेकिन, रियल लाइफ में वह लोगों के कितने बड़े हीरो थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब 1963 में रिलीज़ फिल्म फिर वही दिल लाया हूँ का क्लाइमेक्स पहलगाम में फिल्माया जा रहा था तो फिल्म के डायरेक्टर नासिर हुसैन ने रियलिटी के लिए स्थानीय लोगों को भीड़ के रूप में जूता लिया था. लेकिन, हुआ यह कि जब प्राण जॉय मुख़र्जी को मरते तो भीड़ तालियाँ बजाने लगती और उन्हें चीयर करने लगती. इस पर फिल्म के क्रू मेम्बर्स को भीड़ को समझाना पड़ा कि हीरो प्राण नहीं जॉय मुख़र्जी हैं, इसलिए जॉय के प्राण को मारने पर तालियाँ बजायी जाये। ऐसा था प्राण का हीरो विलेन। प्राण ही अकेले अभिनेता थे जिन्हें अमिताभ से ज्यादा फीस दी गयी. वह भी डॉन के दिनों में।
प्राण ने अपने जीवन में कई देशी विदेशी अवार्ड्स जीते। वह पद्मभूषण थे और दादा साहेब फालके अवार्ड्स विनर भी. उन्हें चार फिल्मफेयर अवार्ड्स भी मिले.
प्राण साहब बॉलीवुड के प्राण थे, हीरो के हीरो प्राण थे. उनके जाने के बाद भी हिंदी फिल्मों के दर्शक उन्हें अभिनय के स्कूल के रूप में याद करते रहेंगे। श्रद्धांजलि।





 

भाग मिल्खा बॉक्स ऑफिस पर भाग


किसी घटना, जीवित व्यक्ति या हस्ती पर फिल्म बनाने के अपने खतरे होते हैं . सबसे बड़ा खतरा होता है बॉक्स ऑफिस। क्या दर्शक ऎसी फ़िल्में स्वीकार करेंगे? बॉलीवुड फिल्म मेकर्स को यही सवाल सबसे ज्यादा परेशां करता है.
इसके बावजूद राकेश ओमप्रकाश  मेहरा ने उड़न सिख मिल्खा सिंह पर फिल्म बना कर यह खतरा उठाया है. किसी फिल्म की सफलता उसके कल्पनाशील निर्देशन के अलावा चुस्त लेखन पर भी निर्भर करती हैं, घटनाये कुछ इस तरह पिरोया जाना, ताकि दर्शक बंधा रहे, ऊबे नहीं और फिल्म का प्रभाव और आत्मा भी ख़त्म न हो. उड़न सिख पर भाग मिल्खा भाग बना कर राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने यह खतरा उठाया है. इसमे वह काफी हद तक सफल भी रहे हैं, कैसे यह एक अलग बात है.
भाग मिल्खा भाग की कहानी शुरू होती है ओलंपिक्स की चार सौ मीटर दौड़ में भारत की पदकों की एक मात्र उम्मीद  मिल्खा सिंह के चौथे स्थान पर रहने से. इसी जगह पर राकेश ने यह जताने की कोशिश की है कि मिल्खा सिंह पूरी दौड़ में आगे रहने के बावजूद चौथे स्थान पर कैसे पिछड़ गये. इसके बाद फिल्म एक के बाद एक फ़्लैश बेक और फ़्लैश बेक में फ़्लैश बेक के साथ आगे बढ़ती जाती है. मिल्खा सिंह का बचपन, विभाजन में परिवार को खो देने का दर्द, सबसे तेज़ भागने की जिजीविषा और प्रारंभिक असफलता, सफलता और असफलता और क्लाइमेक्स की सफलता पर आकर फिल्म ख़त्म होती है. इस समय तक फिल्म तीन घंटा सात मिनट  हो जाती है. इसमे कोई शक नहीं कि मेहरा दर्शकों को बांधे रहते हैं . वह मिल्खा सिंह के जीवन से जुडी  घटनाओं को हलके फुल्के तरीके से दिखाते है। मसलन उनका सोनम कपूर से रोमांस बच्चो के साथ कोयला   चोरी करना दरोगा को चाकू मारना और पकड़ा जाना, फिर पैसों और अच्छे जीवन के लिए सेना से जुड़ना . राकेश यह सारे प्रसंग प्रभावशाली ढंग से रखते है। लेकिन न जाने क्यों वह पचास साथ के दशक की एक खिलाडी के जीवन पर फिल्म में  बहन के अपने पति के साथ सेक्स और मिल्खा सिंह के ऑस्ट्रेलिया की लड़की के साथ वाइल्ड सेक्स का मोह नहीं छोड़ पाते. शायद बॉक्स ऑफिस का भूत उन्हें काट रहा था. यह स्वाभाविक भी था. मिल्खा और उनकी बहन के यह रोमांस फिल्म में नहीं भी होते तो कोई फर्क नहीं पड़ना था. इन द्रश्यों को काट कर फिल्म की लम्बाई कम की जा सकती है. इससे फिल्म रफ़्तार वाली और दर्शकों को ज्यादा बाँध सकने वाली बन जायेगी.

भाग मिल्खा भाग का शीर्षक मिल्खा सिंह के पिता द्वारा स्क्रीन पर बोले गए आखिरी शब्दों पर रखा गया है, लेकिन या मिल्खा सिंह की जीवनी को उभारता है. हालाँकि फिल्म लिखते समय राकेश के समझौते साफ़ नज़र आते है। वह भारत के सफलतम धावक मिल्खा सिंह के जीवन को दिखाना चाहते थे, यह तो तय है. लेकिन बॉक्स ऑफिस पर सफल होने के लिए उन्होंने पाकिस्तान से जुड़े भारतीय सेंटीमेंट को उभारने की कोशिश की है. भारत के लिए अब्दुल खालिक पाकिस्तान से चुनौती था. उसे हराना उस समय के भारत के लिहाज़ से भी बड़ी बात थी. मिल्खा उसे एशियाई खेलों में हरा भी चुके थे. लेकिन, उसे फ्रेंडली गेम में पाकिस्तान में पाकिस्तान को हराना को अपनी फिल्म का क्लाइमेक्स बनाना, राकेश की पाकिस्तान को खलनायक बनाने की सफल कोशिश कहा जा सकता है. मिल्खा सिंह के लिए पाकिस्तान दुश्मन देश था. उसे उसी की ज़मीन में हराना मिल्खा सिंह के लिए बड़ी बात थी. लेकिन उसे फिल्म का क्लाइमेक्स बनाना फिल्म के लिए बड़ी बात नहीं हो सकती. मिल्खा सिंह का शीर्ष रोम ओलंपिक्स में चार सौ मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रहना था. राकेश इसे अपनी फिल्म का क्लाइमेक्स बना कर और इस सम्मानित खिलाडी को उसकी पराजय में विजय दिखा कर सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते थे. लेकिन वह बॉक्स ऑफिस को श्रद्धांजलि देते नज़र आये. बहरहाल भारतीय जन मानस के लिहाज से और अँधेरे सिनेमाघर में  बैठे दर्शकों की तालियाँ बटोरने के लिहाज से राकेश का यह अंदाज़ सफल रहा है.
जहाँ तक अभिनय की बात है, यह फिल्म फरहान अख्तर और पवन मल्होत्रा की फिल्म है. फरहान अख्तर अपने एथेलीट लुक से मिल्खा सिंह होने का एहसास कराते है. वह मिल्खा सिंह की हर जद्दो जहद को कामयाबी से प्रस्तुत करते है। वह इमोशन में भी पीछे नहीं रहते. लेकिन, उन पर भारी पड़ते है मिल्खा सिंह के कोच गुरुदेव सिंह के रोले में पवन मल्होत्रा. पवन ने काबिले तारीफ अभिनय किया है. हालाँकि वह कई बार सिख की भूमिका में नज़र आये है. लेकिन हर बार लाउड लगे है. जिस प्रकार से गुरुदेव सिंह ने रियल मिल्खा सिंह को कालजयी मिल्खा सिंह बनाया वैसे पवन मल्होत्रा फरहान को सही मायनों में मिल्खा सिंह नज़र आने के लिए सुपोर्ट करते है. लेकिन, बॉलीवुड और हॉलीवुड के तमाम दिग्गज कलाकारों की मौजूदगी में उभर कर आते हैं  दिल्ली के मुंडे पारस रतन शारदा . मिल्खा सिंह के साथी सैनिक के रोले में दिल्ली का यह एमबीए पास लड़का फिल्म के हवन कुंड मस्तों का झुण्ड हम हवन करेंगे गीत में फरहान अख्तर के सामने भी वह अपने ज़बरदस्त और मस्त डांस के कारण छा जाते है। इंडियन कोच के रूप में क्रिकेटर युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह, आर्मी में प्रशिक्षक  प्रकाश राज, मिल्खा सिंह का पहला प्यार सोनम कपूर, मिल्खा सिंह के पिता की भूमिका में आर्ट मालिक तथा मिल्खा की बड़ी बहन दिव्या दत्ता अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करते है।
जवाहर लाल नेहरु के रूप में दलीप ताहिल कुछ ख़ास नहीं . प्रसून जोशी के गीत तथा शंकर एहसान लोय का संगीत मस्त और माहौल के अनुरूप है. सिनेमेटोग्राफर बिनोद प्रधान का काम लाजवाब है. वह मिल्खा सिंह की सफलता असफलता को अपने कैमरा में दर्ज करते चले जाते है। फ्लैशबैक के द्रश्यों में बिनोद प्रधान ने कुछ मिनट तक ब्लैक एंड वाइट फिर रंगीन छायांकन कर दर्शकों को फ़्लैश बेक में कहानी सफलतपूर्वक समझा दी है. डॉली अहलुवालिया की प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने समय काल का ध्यान रख कर तमाम चरित्रों को उनके अनुरूप पोशाके पहनायी। फिल्म के एडिटर पी एस भारती अगर अपनी कैंची को तेज़ तर्रार रखते तो फिल्म का मज़ा ज्यादा होता।






 

Tuesday, 9 July 2013

लुटेरा के कंटेंट से हार गयी संजय दत्त की स्टार पॉवर

 
हिंदी फिल्मों के दर्शकों के लिए कंटेंट इम्पोर्टेन्ट है या स्टार पॉवर ? इस सप्ताह रिलीज फिल्मों ने इसे एक बार फिर साबित कर दिया. ५ जुलाई को विक्रमादित्य मोटवाने निर्देशित और सोनाक्षी सिन्हा के साथ रणवीर कपूर की जोड़ी वाली फिल्म लुटेरा तथा संजय दत्त, प्रकाश राज और प्राची देसी के अभिनय वाली दक्षिण के डायरेक्टर के एस रविकुमार की डेब्यू फिल्म पुलिसगिरी  रिलीज हुई . अब तक सलमान खान अक्षय कुमार और अजय देवगन की फिल्मों की नायिका सोनाक्षी पहली बार रणवीर सिंह के साथ जोड़ी बना रही थी. यह फिल्म अपने प्रोमो से क्लास फिल्म भी लग रही थी. फिर भी दर्शकों को फिल्म के निर्देशक विक्रमादित्य मोटवाने  से काफी उम्मीदें थी. लेकिन, पुलिसगिरी की सारी  उम्मीदें अभिनेता संजय दत्त पर थीं, जो फिल्म की रिलीज से कुछ दिन पहले ही जेल भेजे गए थे. सहानुभूति लहर की उम्मीद किसे नहीं होती. लेकिन हुआ क्या?
बॉक्स ऑफिस पर पहले दिन ही दोनों फिल्मों को स्लो स्टार्ट मिला. पहले दिन लुटेरा ने 4. ५ करोड़ का कलेक्शन किय. जबकि पुलिसगिरी केवल २.७ ५  करोड़ ही कमा सकी. शनिवार को पुलिस गिरी में ड्राप हुआ। कमाए ढाई करोद. यह फिल्म सन्डे को तीन करोड़ का नेट करके , वीकेंड में कुल 8.2 5  का कलेक्शन ही कर सकी. दूसरी और लुटेरा ने अच्छे रिव्यु और माउथ पब्लिसिटी के जरिये छलांगे मारनी शुरू दी. शनिवार और रविवार इस फिल्म ने पचीस से तीस परसेंट तक की ऊंची छलांग मारी। शनिवार को लुटेरा का कलेक्शन साढ़े पांच करोड़ हो गया। रविवार को तो फिल्म ने सवा छह करोड़ का कलेक्शन कर संजय दत्त की फिल्म के मुकाबले दो गुने से ज्यादा यानि 19 करोड़ का बिज़नस कर डाला .
साफ तौर पर स्टार पॉवर दर्शकों पर काम नहीं कर सकी। पोलिसगिरी की कमज़ोर कहानी और निर्देशन ने संजय दत्त का कबाड़ा कर दिय. इस फिल्म को दबंग ३ का खिताब दे दिया गया. पोलिसगिरी का इतना बिज़नस भी सिंगल स्क्रीन थिएटर की वज़ह से ही हो सक. जबकि, कंटेंट के सहारे लुटेरा ने मल्टीप्लेक्स दर्शकों को अपना मुरीद बनाया ही. मेट्रो शहरों में इसने अच्छा बिज़नस किय. अलबत्ता, लुटेरा बिहार राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा पसंद नहीं की गयी.
साफ़ तौर पर लुटेरा के कंटेंट से हार गयी संजय दत्त की स्टार पॉवर।

Monday, 8 July 2013

नहीं रहे दिलीप कुमार को डाइरेक्टर बनाने वाले सुधाकर बोकाड़े


दो दशक लंबा फिल्म निर्माता सुधाकर बोकाड़े का कैरियर 6 सेप्टेम्बर को दिल का दौरा पड़ने के बाद  यकायक खत्म हो गया । सुधाकर बोकाड़े ने दिव्या इंटरनेशनल की स्थापना सामाजिक संदेश देने वाली हिन्दी और क्षेत्रीय भाषा की फिल्मे बनाने के लिए की थी । उन्होने अपने समय के तमाम बड़े सितारों के साथ फिल्में बनायीं। लॉरेंस डीसूजा निर्देशित फिल्म साजन से उन्होने माधुरी दीक्षित के साथ सलमान खान और संजय दत्त की तिकड़ी को पेश किया। यह अपने समय की सुपर हिट रोमांटिक त्रिकोण फिल्म थी। उनकी पहली फिल्म दिलीप कुमार, गोविंदा और माधुरी दीक्षित के साथ फिल्म इज़्ज़तदार से की। जीतेंद्र और जया प्रदा के साथ फिल्म न्याय अन्याय, नाना पाटेकर और माधुरी दीक्षित के साथ प्रहार, जैकी श्रोफ, डिंपल कपाड़िया के साथ सपने साजन के, अजय देवगन, मनीषा कोइराला और करिश्मा कपूर के साथ धनवान, सुमीत सहगल, नीलम और विकास भल्ला के साथ सौदा, दिलीप कुमार और जैकी श्रोफ के साथ कलिंगा और सैफ आली खान, अतुल अग्निहोत्री, पूजा भट्ट और शीबा के साथ सनम तेरी कसम का निर्माण किया। उन्हे दिलीप कुमार और नाना पाटेकर को निर्देशक की कुर्सी पर बैठाने के श्रेय भी जाता है। उन्होने संगीतकार आदेश श्रीवास्तव, सिंगर सुखाविंदर, एक्शन डाइरेक्टर शाम कौशल और चीता यग्नेश शेट्टी, डांस डाइरेक्टर बीएच तरुणकुमार, रेखा चिन्नी प्रकाश, लेखिका रीमा राकेश नाथ और सिनेमैटोग्राफर कबीर लाल को मौका दिया। उनकी आखिरी दो फिल्में कलिंगा और सनम तेरी कसम विवादों में फंस कर या तो रिलीज नहीं हो सकी या फिर काफी लंबे समय बाद सीमित सिनेमा घरों में ही रिलीज हो सकी। कलिंगा के दौरान दिलीप कुमार के नखरों के कारण बड़े बजेट की फिल्म कलिंगा के निर्माण में काफी देरी होती चली गयी। इससे सुधाकर बोकाड़े को काफी नुकसान हुआ। उनके परिवार में दो बेटियाँ और एक बेटा था। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

 

Sunday, 7 July 2013

बैंग बैंग करेगी रितिक कैटरीना की जोड़ी !

रितिक रोशन ने अपनी अगले साल रिलीज होने वाली फिल्म बेंग बेंग का फ़र्स्ट लुक टिवीटर पर जारी किया है। इस पिक्चर में रितिक और कैटरीना  एक दूजे में खोये हुए नज़र आते हैं। सिद्धार्थ राज आनंद निर्देशित फिल्म बेंग बेंग हॉलीवुड की 2010 में रिलीज टॉम क्रुज़ और कैमरुन डियाज़ अभिनीत एक्शन कॉमेडी  फिल्म नाइट अँड डे का हिन्दी रीमेक है। इस फिल्म से मशहूर अभिनेता डैनी डेंग्ज़ोपा वापसी कर रहे हैं। फिलहाल, रितिक रोशन के दिमाग से क्लोट हटाने के लिए हुए माइनर ऑपरेशन के कारण इस फिल्म का तीसरा शैड्यूल कुछ समय के लिए टल गया है। लेकिन, यह फिल्म 1 मई 2014 को निश्चित रूप से रिलीज होगी। तो तैयार हो जाइए मई दिवस के दिन सिनेमा हाल में रितिक के साथ बेंग बेंग करने को ।

सूर्य के सिंगम 2 से थर्राया बॉक्स ऑफिस

Singam 2 First Look Posters
स्टार पावर देखनी हो तो साउथ में जा कर देखिये। साउथ के सितारे है असली स्टार और उन्हे स्टार बनाता है उनके  दर्शकों का क्रेज़। इस शुक्रवार, जब बॉलीवुड से दो फिल्में पुलिसगिरी और लुटेरा रिलीज हुई थी, उसी दिन साउथ के सुपर स्टार सूर्य की अनुष्का (शेट्टी, शर्मा नहीं) और हंसिका के साथ फिल्म सिंगम 2 रिलीज हुई थी। सिंगम 2 तीन साल पहले रिलीज 2010 की सबसे बड़ी हिट फिल्म सिंगम का सेकुएल है। सिंगम का हिन्दी रीमेक सिंघम (सिंहम) 2011 मे सूर्य वाला रोल करके अपने बॉलीवुड के बड़े स्टार अजय देवगन सौ करोड़िया फिल्म के नायक बन गए थे। सिंगम 2 में सूर्य की नायिका हंसिका मोटवानी को हिन्दी दर्शक आपका सुरूर और मनी है तो हनी है जैसी फिल्मों में देखने के बाद रिजैक्ट कर चुके है। हंसिका साउथ की बड़ी अभिनेत्रियों में है। हिन्दी दर्शकों ने सूर्य को भी नहीं बख्शा। वह उन्हे रामगोपाल वर्मा की फिल्म रक्त चरित्र में बिल्कुल नकार चुके हैं। यह 2010 था, जब सूर्य की तमिल फिल्म सिंगम 75 करोड़ पीट रही थी, वहीं उनकी हिन्दी फिल्म रक्त चरित्र बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिट रही थी।
बहरहाल, 5 जुलाई को सूर्य की तमिल फिल्म सिंगम 2 तमिलनाडु के अलावा शेष भारत और पूरे विश्व में रिलीज हुई। यकीन कीजिये बॉक्स ऑफिस थर्रा रहा था। सिंगम 2 ने सिंगल स्क्रीन क्या मल्टीप्लेक्स में भी 100 प्रतिशत की ओपेनिंग ली। सुबह के शो से ही सिनेमाघरों में लंबी कतारे लगी हुई थी। कई थेयट्रेस में मैनेजमेंट को पुलिस बुलानी पड़ी थी।  पहले दिन के टिकिट की एडवांस बूकिंग पहले ही हो चुकी थी। बचे खुचे टिकिट सुबह ही बिक गए। सूर्य के प्रशंसक पहला दिन पहला शो में फिल्म देखने के लिए कलाबाज़ारियों को ढूंढ रहे थे। उन्होने इसके लिए एक हजार में टिकिट खरीदना भी मुनासिब समझा।  सिंगम ने साउथ की फिल्मों के तमाम रेकॉर्ड ध्वस्त कर दिये थे। जब तक सिंगम 2 का शुक्रवार का आखिरी शो खत्म होता, इससे पहले सिंगम 2 ने बॉक्स ऑफिस पर 20 करोड़(अनुमानित) कमा लिए थे।  क्या ऐसी स्टार पावर अपने संजय दत्त में है। बिल्कुल नहीं। वह अपने परम मित्र सलमान खान की तरह, सिंगल स्क्रीन थिएटर के हीरो हैं। पुलिसगिरी को मल्टीप्लेक्स में पुअर स्टार्ट मिला। सिंगल स्क्रीन दर्शकों में भी उत्तर के दर्शक ज़्यादा थे। फिल्म ने कुल जमा ढाई करोड़ का बिज़नस किया। कह सकते हैं कि सिंगम 2 के बिज़नस का आठवा हिस्सा। पुलिसगिरी से दुनी कमाई तो रणवीर सिंह की सोनाक्षी सिन्हा के साथ फिल्म लुटेरा ने कर ली।
क्या कहते हैं हिन्दी फिल्मों के प्रशंसक!!!  

Friday, 5 July 2013

दर्शकों दिल लूट लेगा यह 'लुटेरा' और उसकी लुटेरी


1907 में अमेरिकी कहानीकार ओ हेनरी की लघु कथा द लास्ट लीफ़ प्रकाशित हुई थी। ग्रीनविच गाँव की पृष्ठभूमि पर यह कहानी निमोनिया से पीड़ित एक युवती की थी। वह खिड़की से बाहर अंगूर की बेल की पत्तियां झड़ती देखती रहती है। वह सोचती है कि जब इस अंगूर की आखिरी पत्ती गिर जाएगी तब वह भी मर जाएगी.। उसके घर के नीचे एक हताश चित्रकार भी रहता है, जो चाहता है एक मास्टरपीस पेंटिंग बनाना, जिसे सब सराहें। उसे जब युवती की सोच के बारे में पता चलता है तो वह उससे कहता है कि वह ऐसा न सोचे। पत्ती कभी नहीं गिरेगी। एक दिन तूफानी रात में आखिरी पत्ती भी झाड जाती है। आर्टिस्ट को पता चलता है तो वह बेल पर एक पत्ती की पेंटिंग बना कर लगा देता है। समय के साथ वह लड़की दवा लेकर ठीक हो जाती है। उधर आर्टिस्ट को निमोनिया हो जाता है। उसे अस्पताल ले जाया जाता है, पर वह बच नहीं पाता।
ओ हेनरी की यह कहानी जीने की आशा से लबरेज संदेश देने वाली थी। उड़ान से मशहूर विक्रमादित्य मोटवाने की फिल्म लुटेरा देखते हुए आप रोमैन्स से लिपटी इस जीवन की आशा की खुशबू को महसूस करते हैं। वरुण श्रीवास्तव प्राचीन मूर्तियों के लुटेरों के गिरोह का सदस्य है। वह एक जमींदार के मंदिर से प्राचीन मूर्ति चुराने विभाग के कर्मचारी की रूप मे आता है। जमींदार की लड़की पाखी उसे देख कर पहली नज़र  में उससे प्यार करने लगती है। धीरे धीरे वरुण भी पाखी के प्यार में पड़ जाता है। मगर अपने चाचा की खातिर उसे ऐन मंगनी के वक़्त मूर्ति चुरा कर भागना पड़ता है। जमींदार को दिल का दौरा पड़ता और वह मर जाता है। एक साल बाद वरुण और पाखी डलहौजी में अजीब परिस्थिति में फिर मिलते हैं। पाखी को टीबी है। वह मरने के करीब है, जबकि वरुण को पुलिस से भागते समय गोली लगी हुई है। इसी अनोखे मिलन से द लास्ट लीफ़ का प्रवेश होता है। पाखी को लगता है कि जब उस के घर के सामने लगे पेड़ की आखिरी पत्ती गिर जाएगी तो वह भी मर जाएगी।

विक्रमादित्य ने लुटेरा की कहानी भवानी अइयर के साथ लिखी है। फिल्म की स्क्रिप्ट कुछ इस प्रकार लिखी गयी है कि हर रील के साथ दर्शकों में उत्सुकता बढ़ती जाती है, सस्पेन्स गहराता जाता है, इसके बावजूद रोमैन्स की खुशबू महसूस होती रहती है। फिल्म 1953 के कलकत्ता पर है। विक्रमादित्य ने कहानी की प्राचीनता को बनाए रखने के बावजूद वरुण और पाखी की जोड़ी के रोमैन्स की रुचिकर लहर बनाए रखी है। यह फिल्म मसाला थ्रिलर हो सकती थी, लेकिन मोटवाने ने इसे बैलेन्स रखते हुए रोमांटिक थ्रिलर बनाए रखा है। इसके बावजूद कि वरुण और पाखी के बीच गहरे रोमांटिक क्षण आते हैं, लेकिन दर्शक बिना किसी चुंबन या गरमा गरम आह ऊह की आवाज़ों के रोमैन्स को महसूस करता है। यह विक्रमादित्य, भवानी अय्यर की कथा पटकथा के अलावा अनुराग कश्यप के संवादों का असर था। फिल्म में अमित त्रिवेदी का संगीत रोमैन्स को महसूस कराता है। हल्की धुनों के बावजूद दर्शक ऊबता नहीं। अन्यथा आज का दर्शक तो तेज़ धुनों का आदि हो गया है। महेंद्र शेट्टी का केमरा डलहौजी की खूबसूरती को पाखी की खूबसूरती से कुछ इस प्रकार मिलाता है कि दर्शक मुग्ध हो जाता है। उन्होने डलहौजी की गलियों में एक्शन को बेहतर ढंग से फिल्माया है। फिल्म की संपादक दीपिका कैरा से ज़्यादा मेहनत की अपेक्षा थी। उन्हे फिल्म को थोड़ा छोटा करना चाहिए था। सुबरना रॉय चौधरी ने बंगाली वेश भूषा में प्राचीन गहने और वस्त्रों को शामिल कर फिल्म को वास्तविकता देने की भरपूर कोशिश की है। Kazvin दंगोर और धारा जैन की सेट डिज़ाइनिंग माहौल के अनुकूल है।

अब आते है अभिनय पर। सोनाक्षी सिन्हा को अभी तक दर्शकों ने सलमान खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे एक्शन अभिनेताओं के साथ शोख अदाएं बिखेरते देखा था। इन आधा दर्जन फिल्मों में सोनाक्षी सजावटी गुड़िया से अधिक नहीं थी। लेकिन, लुटेरा की पाखी के रूप में वह जितनी सुंदर दिखती हैं, उससे कहीं आधिक प्रभावशाली और दिल को छू लेने वाला अभिनय करती हैं। पाखी के वरुण बने रणवीर सिंह को प्यार भरी निगाह से देखती सोनाक्षी की हिरणी जैसी जैसी आँखें दर्शकों के दिलों में धंस जाती हैं। बीमार पाखी के दर्द और असहायता को सोनाक्षी ने बेहद मार्मिक ढंग से अपनी आँखों और चेहरे के भावों से प्रस्तुत किया है। इस फिल्म के बाद सोनाक्षी का अपनी समकालीन अभिनेत्रियों को काफी पीछे छोड़ देना तय है। उनका पूरा पूरा साथ देते हैं वरुण श्रीवास्तव बने रणवीर सिंह। अभी तक रणवीर सिंह ने खिलंदड़े रोल ही किए हैं। इस फिल्म में वह अपने मूर्तियों के चोर और पाखी के प्रेम में पड़े , उसकी पीड़ा से छटपटते प्रेमी को बेहद स्वाभाविक तरीके से प्रस्तुत किया है। उन्होने साबित कर दिया है कि उनमे अभिनय की क्षमता है, बशर्ते की डाइरेक्टर भी सक्षम हो। अन्य भूमिकाओं में विक्रांत मैसी, आरिफ ज़ाकरिया, अदिल हुसैन, शिरीन गुहा और प्रिंस हैदर मुख्य पत्रों को सपोर्ट करते हैं।
लुटेरा की शुरुआत धीमी गति से होती हैं। खास तौर पर फ़र्स्ट हाफ थोड़ा धीमा है, पर यह कहानी बिल्ड करता है, इधर उधर भटकता नहीं। रोमैन्स के फूल खिलने लगते हैं। दूसरे हाफ में रणवीर के फिर प्रवेश के बाद फिल्म में थ्रिल पैदा होता है, जो ऐसा अमर प्रेम पैदा करता है, जिसकी कल्पना हिन्दी दर्शकों ने की नहीं होगी।
लुटेरा को देखा जाना चाहिए अपनी साफ सुथरी कहानी, माहौल, रोमैन्स तथा सोनाक्षी सिन्हा और रणवीर सिंह के बेहतरीन अभिनय के लिए। जो दर्शक अच्छी फिल्मों की चाहत रखते हो वह निश्चित तौर पर निराश नहीं होंगे।


Thursday, 4 July 2013

क्या पुलिस की गिरफ्त में आएगा या पुलिस को भी लूट लेगा लुटेरा!


कल दो फिल्में रिलीज हो रही हैं। एकता कपूर, शोभा कपूर, अनुराग कश्यप और विकास बहल के पिटारे से निकली है विक्रमादित्य मोटवाने की फिल्म  लुटेरा । इस साल जिस प्रकार से एक के बाद एक फिल्मे सौ करोडिया क्लब मे शामिल होती जा रही हैं, उससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि थोड़ा स्लो स्टार्ट के बावजूद लुटेरा पिक करेगी और सौ करोड़ क्लब में शामिल हो जाएगी। यह सच हो सकता था अगर लुटेरा का मुकाबला पुलिसगिरि  से  न हो रहा होता। पुलिसगिरि निर्माता Rahul अग्रवाल और टीपी अग्रवाल की फिल्म है। इसका निर्देशन दक्षिण के केएस रविकुमार कर रहे हैं। फिल्म के संजय दत्त हैं। यह वही संजय दत्त हैं जो अभी जेल गए है तथा कथित सहानुभूति लहर उनके साथ है। संजय दत्त की स्टार पावर के कारण लुटेरा का पुलिसगिरि की हवा निकालना आसान नहीं होगा, लेकिन कठिन कतई नहीं।
सवाल यहा यह है कि दर्शक पुलिसगिरि या लुटेरा को देखे ही क्यों?  संजय दत्त अब चुक चुके अभिनेता हैं। प्राची देसाई, हालांकि फिल्म का सक्रिय प्रचार कर रही हैं। लेकिन, उनमे इतनी दम नहीं कि  वह दर्शकों को सिनेमाहाल तो क्या पत्रकारों को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में तक ले आ पाएँ । इसलिए अब फिल्म के प्रचार में संजय दत्त की गांधीगिरी के चर्चे हो रहे हैं। उनकी फिल्म को संजय दत्त के जेल के साथी कैदियों को विशेष स्क्रीनिंग में दिखलाया जाएगा। पर ऐसा संभव होगा? पुलिसगिरि की कहानी सत्तर के दशक की ज़ंजीर के जमाने की है। एक ईमानदार कॉप का तबादला एक बदनाम थाने में जाता हैं, जहां दबंगों का बोलबाला है। ऐसे दबंगों को संजय दत्त कैसे खत्म कराते हैं, यही फिल्म की घिसिपीटी कहानी है। इस फिल्म को पहले संजय दत्त की 1990 में रिलीज फिल्म थानेदार के सेकुएल के रूप में किया जा रहा था। फिल्म का नाम थानेदार 2 रखा जाना था। लेकिन, संजय दत्त को यह टाइटल पसंद नहीं आया। नतीजे के तौर पर उन्हीं के सुझाव पर थानेदार 2 को पुलिसगिरि कर दिया गया। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पुलिसगिरि बॉक्स ऑफिस पर क्या गुल खिलाएगी।
 
पुलिसगिरि के ऑपोज़िट लुटेरा है। इस फिल्म की कहानी साथ साल पहले के कलकत्ता की है। एक जमींदार के पास एक युवक पुरातत्ववेत्ता का पत्र लेकर आता है, जिसमे उस लड़के को मदद देने का अनुरोध किया गया है। जमींदार लड़के को अपने घर रख लेता है तथा खोज में उसकी मदद करता है। इसी बीच लड़का और लड़की यानि रणवीर कपूर और सोनाक्षी सिन्हा के बीच प्यार पननपने लगता है। दोनों के विवाह की तारीख तय होती ही है कि एक दिन लड़का पुरातत्व के महत्व की एक कीमती चीज़ चुरा कर भाग जाता है। इससे जमींदार का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो जाता है। इसके काफी समय बाद लड़का एक बार फिर उसके घर रहस्यमयी स्थितियों में पहुँच जाता है। फिर क्या होता है?
संजय दत्त और प्राची देसाई के मुकाबले रणवीर और सोनाक्षी की जोड़ी अपने समय की बेहद गरम जोड़ी  है। हालांकि, रणवीर का संजय दत्त से कोई मुकाबला नहीं, पर सोनाक्षी सिन्हा बेजोड़ हैं। वह एक के बाद एक हिट फिल्में दे रही हैं। रणवीर की भी पहले की दो फिल्में बैंड बाजा बारात और  लेडिज वरसेस रिकी बहल सफल रही थीं। इस लिहाज से मधुर संगीत, फिल्म के माहौल और विक्रमादित्य मोटवाने के निर्देशन के कारण लुटेरा पुलिसगिरि को पछड़ सकती है।
क्या लुटेरा पुलिस को लूट ले जाएगा? क्या पुलिसगिरि लुटेरा को अपनी गिरफ्त में ले पाएगी? कहा जा रहा है कि संजय दत्त के जेल जाने के बाद उनके पक्ष में दर्शकों के बीच सहानुभूति की लहर है। यह लहर उनकी फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की भीड़ बहा ले आएगी। कल इसी लहर की परीक्षा भी है।  क्या होगा यह कल पता लगेगा। लेकिन इतना तय है कि सिंगल स्क्रीन थिएटर में पुलिसगिरि की पुलिसगिरि ही चलेगी। लुटेरा मल्टीप्लेक्स में बढ़िया प्रदर्शन करेगी। हो सकता है कि माउथ पब्लिसिटी के बाद लुटेरा सिंगल स्क्रीन दर्शकों का दिल भी जीत ले। लेकिन, क्या ऐसा संभव है कि संजय दत्त अपनी पुलिसगिरि से सिंगल स्क्रीन दर्शकों को इतना आकर्षित करे कि वह मल्टीप्लेक्स के सहारे आसमान छू रही फिल्म लुटेरा को पछाड़ सके। क्या ऐसा होगा?  

Wednesday, 3 July 2013

इमरान हाशमी के पैरों में क्लार्क गेबल और आमिर खान के जूते !

बाईस साल पहले हॉलीवुड फिल्मों के चोर महेश भट्ट ने एक फिल्म दिल है कि मानता नहीं बनाई थी। इस फिल्म में उनकी बेटी पूजा भट्ट चाकलेटी अभिनेता आमिर खान की नायिका थी। दिल है कि मानता नहीं अस्सी साल पहले रिलीज हॉलीवुड की फिल्म इट हैप्पेंड वन नाइट की कार्बन कॉपी थी। वैसे इसी फिल्म पर निर्माता निर्देशक और अभिनेता राजकपूर ने नर्गिस को लेकर 1956 में रिलीज फिल्म चोरी चोरी का निर्माण किया था। दोनों ही हिन्दी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही थीं।
अब यानि दिल है कि मानता नहीं की रिलीज के 22 साल बाद महेश भट्ट ने इट हैप्पेंड वन नाइट के रीमेक चोरी चोरी और चोरी चोरी के रीमेक दिल है कि मानता नहीं का फिर से रीमेक करने का फैसला किया है। वैसे महेश भट्ट को अभी यह तय करना है कि घर से भागी एक अमीर बाप की बिगड़ैल लड़की की कहानी को जस का तास रखा जाए या उसमे कुछ फेर बदल किया जाए। होगा क्या यह बाद में मालूम पड़ेगा। फिलहाल इतना मालूम पड़ चुका  है हॉलीवुड के क्लार्क गेबल और आंकिर खान के जूतों में पैर बॉलीवुड के आरिजिनल सिरियल किसर इमरान हाशमी डालेंगे। महेश भट्ट अपनी फिल्म और अपने भांजे को सुपर डुपर हिट बनाना चाहते हैं। क्या वह ऐसा कर पाएंगे? लेकिन, महेश भट्ट के ऐसा कहने से कि इट हैप्पेंड वन नाइट में जो किरदार क्लार्क गेबल और एमी ने निभाया था वह कुछ जांच नहीं पाया था। हम दिखाएँगे कि लड़की लड़के को दिल ही दिल में नहीं प्यार करती बल्कि, वह लड़के के प्यार में पूरी तरह से डूबी हुई है। इसका साफ मतलब यह है कि बॉलीवुड के आधुनिक क्लार्क गेबल इमरान हाशमी अपने प्यार में डूबी हुई लड़की के कितने गहरे और ज़्यादा चुंबन लेते है और अपने बिस्तर पर ले जाते हैं।

फरहान और रेबेका के इंटिमेट दृश्य हटाये गए


भाग मिल्खा भाग की कहानी भारत के मशहूर धावक मिल्खा सिंह पर है। इस फिल्म में मिल्खा सिंह के ज़िन्दगी के कई पहलू को सामने लाया जायेगा। राकेश ओमप्रकाश मेहरा जो कि फिल्म के निर्देशक हैं उनका कहना है कि ये फिल्म सिर्फ मिल्खा के खेल करियर पर ही आधारित नहीं किया गया है बल्कि उनके जीवन में बीते अच्छे से अच्छे और बुरे से बुरे चीज़ों का ज़िक्र किया गया है। 
हाल ही में आये भाग मिल्खा भाग के ट्रेलर में फरहान अख्तर और रेबेका के बीच किसिंग सीन को देखकर दर्शक काफी आश्चर्य चकित रह गए थे लेकिन दर्शकों को इस बात की खबर नहीं कि ट्रेलर में सिर्फ एक छोटी सी किसिंग सीन दिखाई गयी है जबकि फिल्म में उनके बीच अच्छा ख़ासा इंटिमेट सीन है। लेकिन फिल्म के मेकर्स ने ये तय किया कि फिल्म से कुछ दृश्य हटा देने चाहिए। हालाकि उनका मानना है कि ये सभी दृश्य फिल्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं पर वो नहीं चाहते थे कि इनकी वजह से फिल्म के मायने बदल जायें। 
फरहान जो कि मिल्खा का किरदार निभा रहे हैं वो रेबेका से ऑस्ट्रेलिया में ऑलंपिक के दौरान मिलते हैं और दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं। फिल्म के सूत्रों के हिसाब से इन दोनों की प्रेम कहानी को फिल्म में बड़े ही दिलचस्प तरीके से फिल्माया गया है। 
भाग मिल्खा भाग 5 जुलाई को रिलीज़ होने वाली है।  

आज रिलीज होगा सत्या 2 का फ़र्स्ट लूक

पंद्रह साल पहले आज ही के दिन 3 जुलाई को निर्देशक रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या रिलीज हुई थी। इस फिल्म ने मनोज बाजपई, उर्मिला मतोंदकर, जेडी चक्रवर्ती, शेफाली शाह, सौरभ शुक्ल, आदि के कैरियर को नयी दिशा दी थी। सौरभ शुक्ल ने इस गंगस्टेर फिल्म से अपनी कलम की ताक़त का प्रदर्शन किया था। भिखू म्हात्रे और कल्लू मामा के चरित्र cult कैरक्टर बन गए। रामगोपाल वर्मा की फिल्म मात्र दो करोड़ के बजेट से बनाई गयी थी। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर साढ़े पंद्रह करोड़ का बिज़नस किया था। सत्या के बाद रामगोपाल वर्मा ने दो अन्य गंगस्टेर फिल्में कंपनी और डी बनायीं। इन फिल्मों को गंगस्टेर त्रिलोजी कहा जाता है।
आज रामगोपाल वर्मा अपनी फिल्म सत्या 2 का फ़र्स्ट लुक रेलीज़  कर रहे हैं। इस फिल्म को उनकी 15 साल पहले की फिल्म सत्या का सेकुएल कहा जा रहा है। वर्मा ने इस फिल्म को इसी टाइटल के साथ तेलुगू में भी शूट किया है। सत्या की तरह सत्या 2 में भी नयी स्टार कास्ट है। अब देखने की बात यह होगी कि क्या सत्या की सत्या 2 भी हिट साबित होगी? क्या सत्या की नयी स्टार कास्ट की तरह सत्या 2 के नए चेहरे भी हिन्दी दर्शकों के जाने पहचाने चेहरे बन जाएंगे?


छोटी फिल्में... बड़ा धमाका

छोटी फिल्में आजकल बड़ी फिल्मों के मुकाबले ज्यादा आगे हैं। देखा जाये तो ये एक नया ट्रेंड बन चूका है। छोटी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब कमाल दिखा रही हैं। अगर 2013 के 6 महीनों की बात करें तो इस बीच कई कम बजट वाली फिल्में आयीं जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर उम्मीद से दुगना कमाया। इस सूची में कई फिल्में शामिल हैं जैसे- फुकरे, आशिकी, मेरे डैड की मारुति, कमांडो, एबीसीडी, काई पो चे, गो गोवा गोन आदि।  
हाल फिलहाल की फिल्में देखें तो फुकरे ने एक बहुत अच्छा उदाहरण दिया है कि एक छोटी फिल्म किस स्तर पर पहुँच सकती है। फुकरे एक छोटी बजट वाली फिल्म होने के साथ साथ नए कलाकारों को लेकर बनाई गयी फिल्म है। यहाँ तक की फिल्म के निर्देशक भी सिर्फ एक फिल्म पुराने हैं बॉलीवुड में। उस हिसाब से देखा जाये तो फिल्म ने ज़ोरदार धमाका मचाया है। बॉलीवुड में जहाँ सिर्फ बड़े बजट या बड़े सितारों की फिल्में चलने का चलन है वहां फुकरे जैसी फिल्म ने ये साबित कर दिया है कि अगर फिल्म की कहानी अच्छी हो और उसका सही तरीके से निर्देशन किया जाये तो दर्शकों को वो ज़रूर लुभाती हैं। फिल्म में भले ही सारे नए चहरे थे लेकिन उन सब ने अपने किरदारों को बहतरीन तरीके से निभाया। वहीँ निर्देशक मृगदीप सिंह लाम्बा ने भी अपने प्रतिभा को साबित किया। 
आशिकी 2 की बात करें तो इस फिल्म में भी 2 नए चहरे आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर ने काम किया है। फिल्म का निर्देशन मोहित सूरी ने किया है। इस फिल्म ने अपनी उम्मीदों और बजट के भी हिसाब से कई गुना ज्यादा बिजनेस किया। फिल्म ने धीरे धीरे सभी दर्शकों का दिल जीत लिया और फिल्म ने करोडों का आंकड़ा पार कर लिया। 
वहीँ यशराज की भी छोटे बजट वाली फिल्म मेरे डैड की मारुति में सारे नए कलाकार ही थे। फिल्म का निर्देशन आशिमा छिब्बर ने किया था जिनकी ये पहली फिल्म थी। इस फिल्म को भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छा रिस्पोन्स मिला।
विपुल शाह की फिल्म कमांडो ने भी नए चहरों के साथ कुछ कम असर नहीं छोड़ा दर्शकों पर। ये एक ऐक्शन फिल्म थी जिसका निर्देशन दिलीप घोष ने किया था।
आने वाली फिल्मों में माना जा रहा है कि आनंद गांधी की शिप ऑफ़ थिसियस और नीरज पाण्डेय की अमन की आशा बॉक्स ऑफिस पर बड़ी छाप छोड़ेंगी।     

Tuesday, 2 July 2013

घनचक्कर को बॉक्स ऑफिस पर आया चक्कर


घनचक्कर को बॉक्स ऑफिस पर चक्कर आना ही था। दिलचस्प बात यह थी कि विद्या बालन और इमरान  हाशमी  स्टारर इस फिल्म को बढ़िया वीकेंड भी नहीं मिला। इस फिल्म ने वीकेंड में 6.38, 6.45 और 7.15 के बिज़नस के साथ 19.98 करोड़ का बिज़नस किया। साफ तौर पर विद्या-इमरान जोड़ी द डर्टी पिक्चर वाला जादू नहीं जगा सकी। इससे एक बात और साफ हुई कि अगर फिल्म में एंटर्टेंमेंट एंटर्टेंमेंट और एंटर्टेंमेंट नहीं होगा, कोई विद्या बॉक्स ऑफिस को नहीं पढ़ा सकेगी। विद्या बालन और इमरान हाशमी की जोड़ी वाली यह फिल्म इन दोनों के बीच की ठंडक का शिकार हो गयी। विद्या बालन बेहद नॉन-स्टार्टर लग रही थीं। इमरान हाशमी जब तक स्मूचिंग नहीं करेंगे और अपनी हीरोइन को बिस्तर तक नहीं ले जाएंगे, दर्शकों उन्हे स्वीकार करने नहीं जा रहा। इससे पहले शंघाई भी उनकी अपनी सिरियल किसर इमेज तोड़ने के प्रयास का शिकार हो गयी थी । इमरान हाशमी को यह समझ लेना चाहिए कि आप बिना अभिनय के इमेज थाम कर ही सफल हो सकते हैं। हालांकि, इस फिल्म में इमरान की भूमिका काफी सशक्त और केन्द्रीय थी।
दूसरी ओर पहले सप्ताह में 34.98 करोड़ कमाने वाली दक्षिण के सुपर स्टार धनुष की फिल्म राँझना ने दूसरे वीकेंड में 10.75 करोड़ का बिज़नस किया और इस प्रकार कुल दस दिनों में 45 करोड़ से ऊपर का बिज़नस कर पाने में सफल हुई।