Thursday 17 October 2013

त्यौहार है...अक्षय कुमार है....तो देखने में कोई हर्ज नहीं है....बॉस!!!

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                   एक स्कूल टीचर सत्यकांत के दो बेटे सूर्य और शिव हैं. सूर्य गुस्सैल है. एक हादसे में उसके हाथों से अपने सहपाठी का क़त्ल हो जाता है. उसे जुवेनाइल कोर्ट द्वारा तीन साल कीसज़ा हो जाती है. जब वह लौट कर आता है तो पिता सूर्यकांत उसे घर सेनिकाल देता है . वह ट्रांसपोर्ट की आड़ में गलत धंधे करने वाले बिग बॉस के लिए काम करने लगता है. बिग बॉस उसे बॉस नाम देता है. एक दिन उसे एक मंत्री द्वारा अपने ही छोट भाई का क़त्ल करने की सुपाड़ी दी जाती है. जब उसे इस बात का पता चलता है तो वह उस मंत्री और उसके लिए काम करने वाले क्रूर पुलिस ऑफिसर का खत्म कर देता है. कैसे? यह अविश्वसनीय घटनाओं से भरी कहानी है.
                        बॉस मलयाली फिल्म पोक्किरी राजा का हिंदी रीमेक है. बॉलीवुड में अक्षय कुमार और उनके मित्रों ने इसे इसी लिए रीमेक किया था कि यह फिल्म साउथ में सुपर हिट थी. इसलिए कहानी तो मोटा मोटी वहीँ से उडायी गयी है, हालाँकि फिल्म में फरहाद साजिद को इसका क्रेडिट दिया गया है. इस जोड़ी ने फिल्म की पटकथा और संवाद भी लिखे हैं. इस क्षेत्र में यह नवेली जोडी कुछ हद तक ही सफल हुई है. लेकिन, इसे एक बड़ी फिल्म के अनुरूप लिखा नहीं माना जा सकता. बचकाने प्रसंगों से भरी हुई यह फिल्म. डरपोक पुलिस वाला जीजा अपने साले को वर्दी पहना कर, मंत्री की बेटी की सुरक्षा में भेज देता है. जहाँ वह मंत्री के बेटे और साथियों को ही पीट देता है. एक पुलिस अधिकारी अपने इलाके से हट कर कहीं भी गोला बारी, क़त्ल, आदि कर लेता है. कोई अख़बार या चैनल इसे नहीं छपता-देखता, जब तक बॉस नहीं आ जाता है. फिल्म की सबसे कमज़ोर कड़ी मंत्री के लिए काला सफ़ेद करने वाले पुलिस अधिकारी आयुष्मान ठाकुर की भूमिका में रोनित रॉय. इसमे कोई शक नहीं कि वह एक्टिंग अच्छी करते हैं. लेकिन, एक्शन फिल्मों के विलेन के लिए अभिनय से ज्यादा विश्वसनीयता का संकट होता है. वह अक्षय कुमार के बॉस को टक्कर देने वाले विलेन साबित नहीं होते. उन्हें देखते समय कसौटी ज़िंदगी की और बड़े अच्छे लगते हैं के रोनित रॉय की याद आती रहती है. अलबत्ता वह अदालत के पाठक से बाहर नज़र आते हैं. रोनित रॉय की कमी का खामियाजा फिल्म को भोगना पड़ेगा. अक्षय कुमार का काम हमेशा की तरह है. वह ऐसे रोल आसानी से कर ले जाते हैं. या यों कहा जा सकता है कि वह ऐसे रोल ही कर सकते हैं. 'शैतान' शिव पंडित में कमर्शियल फिल्मों का हीरो बनने का मटेरियल नहीं. वह अनुराग कश्यप और उनके चेले चपाटों की फिल्मों में ही बेहतर हैं. अदिति राव हैदरी अगर हैदरी न होती तो उन्हें फिल्म कैसे मिलती! उन्हें  इलाज़ की सख्त ज़रुरत है. वह एक्टिंग और शरीर से भी कमज़ोर लगती हैं. उनकी बिकनी को अनावश्यक तूल दिया गया. वह बिकनी बाड तो हैं ही नहीं.सुदेश बेरी तो अपने चहरे पर नारियल फोड़वा कर ढेर हो जाते हैं. संजय मिश्र, जोनी लीवर, परीक्षित साहनी और मुकेश तिवारी को अपनी बरबादियों पर रोना आ रहा होगा. आना भी चाहिए, ऐसे घटिया रोल कोई पैसे के लिए ही लेगा, कला के नाम पर तो कतई नहीं. फिल्म का चेहरा बचाते हैं बॉस के रोल में डेनी तथा सूर्यकान्त की भूमिका में मिथुन चक्रवर्ती. दोनों ने फिल्म को खूब सम्हाला है. निश्चित रूप से मंत्री बने अभिनेता गोविन्द नामदेव ने खल भूमिकाओं की टिप्स इन दोनों वेटेरन एक्टर्स से ज़रूर ली होगी. आकाश धाबडे कुछ हद तक हंसाने में कामयाब हुए हैं, लेकिन जोनी लीवर से अधिक.
                             अन्थोनी डिसूजा ने बॉस को नया कलेवर देने की कोशिश की है. लेकिन, वह इतना नया तो अपनी पहली फिल्म ब्लू में कर चुके थे. लेकिन, बाप बेटा सम्बन्ध फिल्म को थोडा हट कर बनाते हैं.  आजकल फिल्मों में यो यो हनी सिंह के आइटम रखने का चलन हो गया है. अब वह आइटम सोंग सिंगर के रूप में पोपुलर हो गए हैं. निश्चित रूप से किसी दिन, मिका के साथ वह भी फिल्म इतिहास के कूड़ेदान में नज़र आयेंगे. फिलहाल तो वह खूब बेसुरा गा रहे हैं और माल बटोर रहे हैं. मीत ब्रदर्स, यो यो हनी सिंह, पी ए दीपक और चिरंतन भट्ट ने दर्शकों को बाथरूम जाने का खूब मौका दिया है. संदीप शिरोधकर का बैकग्राउंड म्यूजिक ठीक है. लक्ष्मण उटकर का छायांकन फिल्म का मूड उभरता है. एडिटर रामेश्वर एस भगत अगर फिल्म के सारे गीत उड़ा देते तो दर्शकों की गालियों के हक़दार होते, क्योंकि तब दर्शक सू सू करने नहीं जा पाते. लेकिन, वह अपना काम सही अंजाम देते. क्योंकि, फिल्म के सभी गीत अनावश्यक हैं. अनल अरासु के स्टंट फिल्म की जान हैं. वह अक्षय कुमार को तालियाँ दिला जाते हैं.प्रभु देवा से लेकर गणेश आचार्य तक फिल्म के पांच कोरियोग्राफर कुछ भी थिरकता हुआ नहीं दे पाए.
                                 अक्षय कुमार को बाज़ार और दर्शकों की समझ है. उन्होंने बॉस को ११ के बजाय १६ को बकरीद वीकेंड में रिलीज़ किया. अगर वह ११ को रिलीज़ करते तो फिल्म की कमजोरी का खामियाजा भुगतते. बकरीद आते आते, फिल्म बॉक्स ऑफिस का बकरा बन जाती. इसका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फिल्म के कैमिया में सोनाक्षी सिन्हा तक जान नहीं डाल पातीं. वैसे यह त्यौहार का मौका है, आप अक्षय कुमार के फैन हैं, तो इस फिल्म को देखने में कोई हर्ज नहीं है. लेकिन, इल्तिजा है कि अपना दिमाग घर पर रख के आइयेगा. फिल्म और अक्षय कुमार से बहुत उम्मीदें मत रखियेगा. खुश रहेंगे. 

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