क्या आप में से किसी ने, मेहरू मानेक काका का नाम सुना है ? कदाचित, आज की पीढ़ी में अधिकतर इस नाम से परिचित नहीं होंगे। मेहरू. १९५० के दशक की फिल्मों की नायिका हुआ करती थी। उन्होंने राइफल गर्ल, मिस तूफ़ान मेल, हंटरवाली और हरिकेन एक्सप्रेस जैसी फिल्मों में अभिनय किया था।
मेहरू का जन्म १० मई १९३३ को हुआ था। वह १९५० एक दशक और १९६० के दशक के पूर्वार्ध की बी ग्रेड एक्शन फिल्मों की नायिका थी। उन्हें और नादिया को उस समय के पुरुषों द्वारा संरक्षित एक्शन फिल्मों में अपना दबदबा बनाने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने स्वयं खतरनाक एक्शन करके अपने पुरुष साथियों को कड़ी चुनौती दी थी।
मेहरू की फिल्मों की विशेषता थी उन्होंने सत्य रॉय प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित फिल्मों में अभिनय किया। उनकी फिल्मों के विषय उस समय की दृष्टि से बोल्ड हुआ करते थे। वह शोषित लोगों को नये दिलाने के लिए सामने आती थी। निःसंदेह, उन्होंने अपनी फिल्मों में आने नायक के साथ रोमांस भी किया। इनमे से अधिकतर फिल्मों की पृष्ठभूमि में गाँव हुआ करता था। उनकी फ़िल्में महिला सशक्तिकरण का सन्देश देने वाली समझी जाती थी।
जब मेहरू फिल्मों में आई, तब हिंदी सिनेमा बदलाव की ओर अग्रसर था। प्रारंभिक हिंदी फ़िल्में धार्मिक, पौराणिक और सामाजिक विषयों पर बना करती थी। ऐसे समय में निर्माता भिन्न शैली की फिल्मों का निर्माण करना चाहते थे। इस शैली में एक्शन और साहस से भरपूर शैली को निर्माता सत्य रॉय प्रोडक्शंस ने अपनाया। उन्होंने मेहरू के साथ राजन कपूर नाम के अभिनेता को लेकर, शोषकों से भिड़ कर शोषितों को न्याय दिलाने वाले चरित्रों में संकटपूर्ण फ़िल्में बनाई। राइफल गर्ल नाम की फिल्म में मेहरू का चरित्र बहादुर नायक के साथ विपरीत परिस्थियों के बीच भी न्याय के लिए बन्दूक उठाते थे।
मेहरू की फिल्मों ने नायिका प्रधान एक्शन फिल्मों की नई शैली स्थापित कर दी। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह तमाम फ़िल्में फीयरलेस नाडिया की फिल्मों से मिलती जुलती थी। किन्तु, इनके एक बड़ा अंतर यह था कि जहाँ नाडिया की फिल्में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा पाती थी। मेहरू की फ़िल्में भारत के सांस्कृतिक प्रभाव वाले गांव और छोटे शहरों की बाते किया करती थी। यही कारण था कि मेहरू की अधिकतर फिल्मों को ग्रामीण और कस्बाई दर्शक मिले।
मेहरू, उस समय की बी ग्रेड फिल्मों में नायिका बन कर आ रही थी, जब नरगिस और मधुबाला आदि का उदय हो चुका था। एक अध्ययन में यह पाया गया कि नरगिस की तुलना में मेहरू की फ़िल्में महिला सशक्तिकरण पर अधिक दृढ़ता से बात करती थी। उदाहरण के लिए, निर्देशक मेहबूब की फिल्म मदर इंडिया की नरगिस अपने पति के जाने के बाद भी, सूदखोर सुखिया के जुल्मों का सामना करते हुए, अपने बच्चों का पालन पोषण करती थी। किन्तु, मेहरू का चरित्र इसके विपरीत स्थिति में बदलाव लाने के लिए किसी शोषक से भिड़ जाती थी।

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