तुर्की के गुलाम वंश की अंतिम शासक रज़िया सुल्तान दिल्ली सल्तनत की इकलौती महिला शासक थी। रज़िया सुल्तान ने चार साल से भी कम समय तक दिल्ली सल्तनत पर राज किया। किन्तु, वह कभी शांतिपूर्वक शासन नहीं कर सकी। उनका जीवन विवादों से भरा रहा। उनके हब्शी गुलाम से प्रेम संबंधों का मुस्लिम आबादी ने भारी विरोध किया। उन्हें समलैंगिक शासक के रूप में भी याद किया जाता है।
फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही ने इस विवादित और अनोखे चरित्र पर फिल्म बनाने का बीड़ा उठाया। कमाल अमरोही की आदत किसी फिल्म को बनाने में काफी लम्बा समय लेने की थी। उन्हें इस फिल्म को बनाने में आठ साल लगे। यद्यपि, उन्होंने फिल्म बनाने के लिए काफी शोध किया। इसके बावजूद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर टें बोल गई।
रज़िया सुल्तान की रज़िया हेमा मालिनी थी। उनके हब्शी गुलाम याकूत धर्मेंद्र बने थे। रज़िया के शौहर आमिल अल्तुनिअ की भूमिका विजयेंद्र घाटगे ने की थी। रज़िया के अब्बा हुजूर सुल्तान इल्तुमिश की भूमिका प्रदीप कुमार ने की थी। सोहराब मोदी रज़िया के वजीर बने थे।
रज़िया सुल्तान की मैराथन शूटिंग आठ साल तक शुरू और बंद होती रही। इस फिल्म के निर्माण में, निर्माता एके मिश्रा के अनुमानित सात से दस करोड़ तक व्यय हुए थे। लेकिन, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पहले दिन ही धड़ाम हो गई । पूरे देश में इसके शो कैंसिल होना शुरू हो गए। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर मात्रा दो करोड़ का ग्रॉस किया। मिश्रा जी को फिल्म ले डूबी।
कमाल अमरोही की फिल्म रज़िया सुल्तान की असफलता के क्या कारण थे ? रज़िया सुल्तान १६ सितम्बर १९८३ को प्रदर्शित हुई थी। यह अमिताभ बच्चन का दौर था। उनकी फिल्मे बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट हुआ करती थी। यह समय, हेमा मालिनी के सौतेले बेटे सनी देओल के बॉलीवुड में प्रवेश का साल था। १९८३ की सफल फिल्मों में कुली, बेताब, हीरो, हिम्मतवाला, महान, अंधा कानून, मवाली, पुकार, नौकर बीवी का, जस्टिस चौधरी बॉक्स ऑफिस पर टॉप का कारोबार कर रही थी। ऐसे बदलते समय में, एक प्राचीन कथानक वाली फिल्म को कौन देखने जाता।
कमाल अमरोही ने फिल्म में उस समय के बिकाऊ कलाकारों हेमा मालिनी, धर्मेंद्र, प्रदीप कुमार, बीना, सोहराब मोदी और परवीन बाबी को लिया था। ऐसी स्टारकास्ट वाली फिल्म का दर्शकों को आकर्षित करना स्वभाविक था। किन्तु, इन्ही बड़े सितारों ने फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर असफल भी बना दिया।
वास्तविकता यह थी कि १९८३ में अंधा कानून, जस्टिस चौधरी और नास्तिक जैसी सुपर हिट फिल्म देने वाली हेमा मालिनी फिल्म के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हुई। वह रज़िया के चरित्र के लिए बिलकुल मिसफिट थी। उनकी संवाद अदायगी बहुत ख़राब थी। कठिन उर्दू फारसी शब्द बोलने में उन्हें शब्दों को चबाना पड़ रहा था। वह रज़िया सुल्तान की घटिया नक़ल साबित हुई थी।
फिल्म रज़िया सुल्तान के याकूत धर्मेंद्र थे। उनके चेहरे पर लगी कालिख ने फिल्म को काला कर दिया। अपने समय की इस रोमांटिक जोड़ी बिलकुल भी रोमांटिक नही हो पा रही थी। यद्यपि, धर्मेंद्र की संवाद अदायगी ठीक-ठाक थी। किन्तु, वह याकूत के रूप में बिलकुल फब नहीं रहे थे। फिल्म में हेमा मालिनी के साथ उनकी केमिस्ट्री जम नहीं पाई थी।
फिल्म का सबसे नकारात्मक पक्ष इसके संवाद थे। ठेठ अरबी भाषा में संवाद, मुस्लिम कथानक होने के कारण तो उपयुक्त थे। किन्तु, आम जन के समझ से बाहर थे। मुग़ल ए आज़म (१९६०) के बाद रज़िया सुल्तान के प्रदर्शन होने तक २३ सालों में अरब सागर में बहुत सा पानी बह गया था। फारसी मिश्रित उर्दू समझने वाली पीढ़ी कब का मरखप गई थी। उस पर हेमा मालिनी के संवादों में कच्चापन फिल्म को असफलता के सागर में डुबो गया।
रज़िया सुल्तान, फिल्म के निर्देशक और निर्माता की अंतिम फिल्म तो थी ही। यह फिल्म अभिनेता सोहराब मोदी के फिल्म जीवन की भी अंतिम फिल्म बन गई। गीतकार जां निसार अख्तर की भी यह अंतिम फिल्म थी। इस फिल्म के निर्माण के समय ही उनका निधन हो गया था।
रज़िया सुल्तान की शूटिंग के समय हेमा मालिनी गर्भवती थी। इस फिल्म में पहले उनके याकूत अमिताभ बच्चन और शौहर कबीर बेदी बनने वाले थे। किन्तु, तारीखों की समस्या के कारण यह भूमिकाएं धर्मेंद्र और विजयेंद्र घाटगे के पास चली गई।

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