मॉडल से एक्ट्रेस
बनीं मुग्धा गोडसे को ग्लैमरस भूमिकाएं निभाने से कोई परहेज
नहीं है। बशर्ते कि ऎसी भूमिकाएं अधिक
शक्तिशाली होनी चाहियें । वह अपनी आगामी फिल्म ‘इश्क ने क्रेजी किया रे’ में एक शक्तिशाली बिजनेस वुमन, एक चैनल की मालकिन का किरदार निभा रही
हैं। मुग्धा ने इस फिल्म के साथ हाल ही में एक फिल्म समारोह में शिरकत की। वहां पूछे जाने पर उन्होंने बताया,‘मुझे ग्लैमर से किसी किस्म का परहेज नहीं है।
फिल्मों में ग्लैमरस रोल करने में मुझे कोई आपत्ति नजर नहीं आती। हालांकि मुझे
भावुक किरदार करना पसंद हैं। अब तक की फिल्मों में किए शक्तिशाली किरदारों को
मैंने खूब एंजॉय किया। मुझे इन्हें करने में आनंद मिलता है।’ मुग्धा की यह फिल्म नरेश मल्होत्रा के डायरेक्शन
में बन रही है। नरेश मल्होत्रा ने इस फिल्म से पहले 'ये दिल्लगी’ और ‘दिल का रिश्ता’ जैसी सफल फिल्मों को डायरेक्ट किया था। अपनी फिल्म के निर्देशक नरेश मल्होत्रा के बारे में मुग्धा कहती हैं,‘नरेश जी एक अनुभवी डायरेक्टर हैं। उन्होंने पहले
कई सफल फिल्में बनाई हैं और अब वह इस फिल्म के साथ वापसी कर रहे हैं। उनके साथ
काम करने का फायदा यह है कि वह अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हैं और फिल्म बनाने के
लिए खुद को उसके अनुरूप बना लेते हैं। उन्हें पता है कि आजकल दर्शक क्या देखना
चाहते हैं।’ फिल्म में निशांत
मलकानी और मधुरिमा बनर्जी भी प्रमुख भूमिका अदा करते दिखेंगे। नए कलाकारों के बारे
में मुग्धा ने कहा,‘आजकल नए लोगों को
प्रशिक्षण की जरूरत नहीं होती। वे अपना काम जानते हैं। मुझे उम्मीद है कि वो अच्छा
करेंगे।’
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Monday, 12 October 2015
मुग्धा को पसंद है ग्लैमरस रोल
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हस्तियां
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
प्यार का पंचनामा करेगा मोहब्बत मुक्ति मोर्चा
लव यानि प्यार नींद के लिए घातक है। प्यार आपके बैंक बैलेंस के लिए भी घातक है। प्यार आपकी स्वतंत्र के लिए भी खतरनाक है। यह संदेसा है 'फिल्म प्यार का पंचनामा 2' की टीम का। स्त्री स्वतंत्रता नहीं, स्त्रियों से स्वतंत्रता की वकालत करने वाले फिल्म के तीन युवा कार्तिक आर्यन, ओमकार कपूर और सनी सिंह फिल्म में मोहब्बत मुक्ति मोर्चा निकालते हैं। यह मोर्चा स्त्री पुरुष संबंधो में मर्दों पर थोपे गए नियमों और शादी के बाद अपने मर्द से औरत की अपेक्षाओं के विरोध में है। यह रियल मोर्चा फिल्म 'प्यार का पंचनामा 2' के प्रमोशन के सिलसिले में था। जुहू बीच पर इस मोर्चे को देखने के लिए लम्बी दूरी तक लोगों की भीड़ इकठ्ठा हो गयी थी। मोर्चे में प्रदर्शनकारियों के हाथों में पोस्टर थे, जिन पर लिखा था 'जानू मुझे जाने दो' । मोर्चे के दौरान रोमांस के प्रतीक टेडी बियर को जलाया गया। अब देखने वाली बात होगी कि प्यार का पंचनामा 2 की ऐसे प्रमोशन की कवायद फिल्म को कितना फायदा पंहुचा सकती है।
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ये ल्लों !!!
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
'धारा ३०२' का आइटम 'कशमकश'
फिल्मों में आइटम सोंग आज भी डिमांड में ! कम से कम निर्माता भवानी शंकर योगी और निर्देशक जीतेन्द्र सिंह नरुका की फिल्म 'धारा ३०२' के आइटम सोंग से तो ऐसा ही साबित हो रहा है। आइटम सोंग 'कशमकश' की शूटिंग पिछले दिनों मुंबई के एक नाईट क्लब में हुई। इस तेज़ गति के गीत की धुन पर एक्टर रुफी खान और दीप्ती धोत्रे खूब थिरक रहे थे। इस गीत में इन दोनों की केमिस्ट्री खूब जम रही थी। हालाँकि, दीप्ति धोत्रे ने साड़ी पहन रखी थी। लेकिन, साड़ी को इस तरह से बाँध रखा था कि उनकी सेक्स अपील फूटे पड़ रही थी। तारीफ करनी होगी दीप्ति की, जो साडी के बावजूद इस तेज़ गति के डांस को बड़ी अच्छी तरह से कर पा रही थी। दीप्ति कहती हैं, "मुझे डांस करना काफी पसंद है। हालाँकि, यह गाना खालिस डांस नंबर नहीं है। फिर भी, रुफी के साथ इस डांस को करने में बड़ा मज़ा आया।" 'धारा ३०२' का आखिरी शिड्यूल ख़त्म होने को है। फिल्म के इस साल के आखिर तक रिलीज़ होने की संभावना की जा सकती है।
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गीत संगीत
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इरोस रिलीज़ करेगा दिलजीत दोसांझ की पंजाबी फिल्म
इरोस इंटरनेशनल मीडिया ने दिलजीत दोसांझ की पंजाबी फिल्म 'मुख्तियार चड्ढा' वर्ल्डवाइड रिलीज़ के अधिकार प्राप्त कर लिए हैं। यह फिल्म २७ नवम्बर को रिलीज़ होनी है। ब्लाकबस्टर कॉमेडी फिल्म 'सरदारजी' के बाद दिलजीत एक बार फिर कॉमेडी फिल्म लेकर आ रहे हैं। 'मुख्तियार चड्ढा' में दिलजीत दोसांझ के साथ ओशिन साईं नायिका के किरदार में हैं। इस फिल्म को चेतन परवाना के साथ खुद दिलजीत दोसांझ ने लिखा है। फिल्म का डायरेक्टर गिफ्फी करेंगे। फिल्म की अन्य भूमिकाओं में यशपाल शर्मा, किरण जुनेजा, जसवंत, राठोर ख्याली के नाम शामिल हैं। फिल्म का संगीत जसपाल सिंह ने किया है।
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पंजाबी फिल्म
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सलमान को पसंद आया दूसरा 'पंचनामा'
सलमान को इंडस्ट्री
में आए न्यूकमर्स को सपोर्ट करने के लिए जाना जाता है। वो इंडस्ट्री के नए
खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाते रहते हैं और ऐसा इस बार उन्होंने फिल्म प्यार का
पंचनामा-2 के एक्टर्स के साथ
किया है।
सलमान चूंकि फिल्म
की एक्ट्रेस सोनाली सहगल के साथ एक ऐड में काम कर चुके हैं, साथ ही फिल्म के दोनों मुख्य एक्टर्स ओमकार और
सनी सिंह को उनके बचपन से जानते हैं। सलमान ने इनके लिए ट्वीट किया,‘फिल्म ‘प्यार का पंचनामा-2’ का प्रोमो देख रहा था। हाहाहाहा...। सोनाली सहगल को देखकर अच्छा लगा।
कुछ समय पहले उसके साथ ‘थम्सअप’ का ऐड किया था। उसके लिए खुश हूं।’ सलमान ने एक्शन डायरेक्टर जय के बेटे सनी और
फिल्म ‘जुड़वा’ में सलमान के बचपन की भूमिका निभाने वाले ओमकार
की भी तारीफ की। सलमान ने लिखा,‘फिल्म ‘जुड़वा’ में जिस बच्चे ने मेरे बचपन का किरदार निभाया था,
वह ओमकार भी इस फिल्म में है।
एक्शन-डायरेक्टर से ज्यादा एक फाइटर माने जाने वाले जय भाई का बेटा सनी सिंह भी
इसमें है। वाह। मैं खुश हूं। उम्मीद करता हूं कि फिल्म अच्छा प्रदर्शन करेगी।
ईश्वर का आशीर्वाद रहे।’ लव रंजन के डायरेक्शन में बनी यह फिल्म साल 2011 में सुपरहिट हुई फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ का सीक्वल है।
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ये ल्लों !!!
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रुपहले पर्दे पर ‘आत्मा मालिक’
फ़िल्में समाज का आइना होती है, इसीलिए इर्द गिर्द घटी सत्य घटनाओं को फिल्मों में दर्शाया जाता रहा है। हिंदी फिल्मों में अभी तक
कई देवी- देवताओं और संतों के जीवन पर कई धार्मिक और चरित्रात्मक फिल्मों को भिन्न फिल्मकारों ने रुपहले पर्दे पर बडी सुंदरता से पेश किया है । अब मराठी फिल्मों की फिल्म निर्माण कंपनी शिवलीला फिल्म्स के बैनर तले निर्माता शिवंम लोणारी, जो फिल्म बनाने जा रहे हैं, वह सभी देवी- देवताओं और संतों का निर्माण करने वाली आत्मा पर हिंदी फ़िल्म 'आत्मा मालिक' का निर्माण कर रहे है। हांल ही में इस फ़िल्म की घोषणा शिर्डी के पास
कोपरगांव मंश बसे प्रख्यात जंगलीदास महाराजजी के आश्रम में बडी उत्साह के साथ की
गई। नीलिमा लोणारी इस फिल्म का
निर्देशन कर रही हैं। फ़िल्म के बारें
में बताते हुए परमानंद महाराजजी कहते हैं, " देवी- देवताओं पर कई फ़िल्में आ चुकी है, पर विश्वात्मक और व्यापक शक्ति आत्मा पर कोई फिल्म नहीं बनी है। इस फ़िल्म का उद्देश्य यह बताना है कि उस आत्मा
की पहचान हर इंसान को होनी चाहिए । हर एक इंसान, चाहे वह कोई भी जाति- धर्म - प्रांत का हो, जब उसे अपने अंदर बसी उस आत्मा की पहचान होगी तभी इस धरती पर शान्ति और
अमन की लहर आएगी।" अपनी फ़िल्म के बारें में
निर्देशिका नीलिमा लोणारी कहती है, "यह कोई पौराणिक फ़िल्म नही हैं।" इस फिल्म का निर्माण आठ महीनों में पूरा किया जाएगा। फ़िल्म में बॉलीवुड के कई बड़े कलाकार भी काम कर सकते हैं ।
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मराठी फिल्म इंडस्ट्री
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मिस इंटरनेशनल २०१५ में भारत को रिप्रेजेंट करेंगी सुप्रिया ऐमन
ग्लैमानन्द सुपरमॉडल इंडिया द्वारा इस साल मिस इंटरनेशनल में भारत को रिप्रेजेंट करने के लिए सुप्रिया ऐमन को चुना गया है। यह प्रतियोगिता टोक्यो जापान में ५ नवंबर को आयोजित हो रही है। सुप्रिया अभी मात्र २४ साल की हैं। उनका कद ५ फुट ८ इंच है। वह पटना की निवासी है। सौंदर्य प्रतियोगिताएं के लिहाज़ से सुप्रिया नया नाम नहीं। वह मिस कोलकाता २०१३ की फाइनलिस्ट हैं। मिस इंडिया २०१३ में वह टॉप की २३ मॉडल्स में शामिल थी। उस साल नवनीत कौर ढिल्लों विजेता रही थी। सुप्रिया पिछले कुछ सालों से मॉडलिंग कर रही हैं। उन्हें रैंप का अच्छा अनुभव है। मिस इंटरनेशनल के लिहाज़ से यह सुप्रिया के लिए फायदेमंद रहेगा। सुप्रिया ने इस कांटेस्ट के लिए बढियां तैयारियां कर रखी हैं। वह भारत को ऊंचे से ऊंचा स्थान दिलाना चाहती हैं। यहाँ बताते चले कि भारत की सुंदरियाँ कभी इस प्रतियोगिता को नहीं जीत सकी हैं। २०१२ में भारत की सुंदरी रोशेल मारिया राव ने टॉप १५ में जगह बनाई थी।
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हस्तियां
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बॉलीवुड के पाँच हास्य कलाकारों का हो गया दिमाग़ का दही
एक समय था जब हास्य कलाकारों ने बॉलीवुड पर राज किया था । ऋषिकेश मुखर्जी से गोविंदा तक, निर्देशकों ने और कलाकारों ने फिल्म दर्शकों को खूब हसाया और गुदगुगया । अब दर्शकों को उसी तरह से हसने और हंसाने के लिए फिल्म निर्देशिका फ़ौज़िया अर्शी ने एक दो नहीं बल्कि पांच हास्य कलाकारों को लेकर फिल्म ‘हो गया दिमाग़ का दही’ बनाई है । यह हिंदी फिल्मों में हास्य को नए स्तर पर ले जाने में अपने साफ सुथरे अंदाज़ के साथ सक्षम होगी। फिल्म में ओम पूरी, राजपाल यादव, संजय मिश्रा, रज़ाक खान और हसी के बादशाह कदर खान दर्शकों के दिमाग का ऐसा दही कर देंगे कि उनकी हँसी रोके नहीं रुकेगी । फिल्म की निर्देशक फ़ौज़िया अर्शी कहती है, “ये फिल्म रोलर कोस्टर सफारी की तरह है, जिसमे डबल मीनिंग कुछ भी नहीं है । यह फिल्म आपको
बदलते वक़्त की सच्चाई भी बताएगी । 'हो गया दिमाग़ का दही' आपको हसाएगी भी और जीवन के बारे में सोचने पर मजबूर भी करेगी, मगर बिना किसी उपदेश के ।" फ़ौज़िया अर्शी के साथ संतोष भारतीय इस फिल्म के
निर्माता है । हो गया दिमाग़ का दही १६ अक्टूबर को रिलीज़ होगी ।
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इस शुक्रवार
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शौर्य गीत 'पोवाडा' से होगी बाजीराव मस्तानी के 'दीवानी मस्तानी' गीत की शुरुआत
इरोस इंटरनेशनल और संजय लीला भंसाली की दिसंबर में रिलीज़ होने जा रही ऐतिहासिक रोमांस कथा फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' मराठा युद्ध बाजीराव पेशवा के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म के एक गीत 'दीवानी
मस्तानी' की शुरुआत पोवाडा से होगी, जिसमे बाजीराव के शौर्य और प्यार को दर्शाया जायेगा। संजय
लीला भंसाली अपनी फिल्म में मराठा साम्राज्य की शान शौकत को बड़े पैमाने पर दिखाना चाहते है। इसीलिए वह हर छोटी बड़ी चीजो का बहुत ही बारीकी से ध्यान रख
रहे हैं। इसीलिए उन्होंने 'दीवानी मस्तानी' गाने में पोवाडा के
लिए खास तौर पर काफी अभ्यास किया। इसके पश्चात पोवाडा लिखने वालो से विशेष तौर पर
पोवाडा लिखवाया गया। सूत्र बताते हैं कि यह पोवाडा इतना
अच्छा बना है कि इसके कारण गीत को और भी उल्लेखनीय बन गया है । खास मराठी भाषा में पोवाडा का मतलब एक शौर्य गीत से है, जो
किसी राजा या योद्धा के पराक्रम को गीत स्वरूप बयान करता है ।
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आज जी
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प्रोतिमा की कहानी : जुहू बीच से हिमालय तक
प्रोतिमा की प्रोतिमा बेदी और फिर प्रोतिमा गौरी बनने की कहानी करनाल हरियाणा के एक व्यापारी लक्ष्मीचंद गुप्ता के परिवार में दिल्ली में पैदा होने से शुरू होती है। लक्ष्मीचंद ने एक बंगाली लड़की रेबा से शादी की थी, इसलिए उन्हें लोगों के विरोध के कारण करनाल छोड़ कर दिल्ली आना पड़ा। दिल्ली में प्रोतिमा का जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा किंमिंस हाई स्कूल, पंचगनी में हुई। उन्होंने ग्रेजुएशन बॉम्बे के सेंट ज़ेवियरस कॉलेज से किया। यह तो प्रोतिमा गुप्ता की, हर सामान्य लड़की की दास्तान हैं। प्रोतिमा के बेदी बनाने की दास्ताँ शुरू होती है मॉडल बनने के साथ। १९६० तक वह बड़ी मॉडल बन चुकी थी। उन दिनों कबीर बेदी का सितारा भी बुलंद था। प्रोतिमा कबीर बेदी के साथ रहने के लिए घर छोड़ कर निकल आई। १९६९ में उन्होंने कबीर बेदी से शादी कर ली। प्रोतिमा बेदी के सुर्खियां बटोरने की कहानी बनती है १९७४ में। यह वह समय था, अब दुनिया के तमाम देशो के साथ भारत में भी नारी स्वतंत्र के नारे बुलंद किये जा रहे थे। अंगिया-जाँघिया जलाये जाने की होड़ मची थी। ऐसे माहौल में, १९७४ में अंग्रेजी फिल्म पत्रिका 'सिनेब्लिट्ज़' का प्रकाशन शुरू होने वाला था। इस मैगज़ीन को रूसी करंजिया का ब्लिट्ज मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड कर रहा था। इस मैगज़ीन के प्रचार में प्रोतिमा बेदी ने अपनी अंगिया-जाँघिया जलाई तो नहीं, बल्कि उतार फेंकी। वह दौड़ पड़ी जुहू बीच की रेतीली दुनिया में। महा मॉडर्न बॉम्बे के लिए भी यह अभूतपूर्व दृश्य था। प्रोतिमा बेदी रातों रात पूरी दुनिया में मशहूर हुई। अपनी वैयक्तिकता साबित करने का यह सुनहरा मौका जो था। इस घटना के बाद प्रोतिमा बेदी के भाग्य ने करवट लेनी शुरू कर दी। अगस्त १९७५ में वह भूलाभाई मेमोरियल इंस्टिट्यूट में दो युवा लड़कियों के ओडिसी डांस प्रोग्राम को देख रही थी। इसे देखते हुए जैसी उनकी ज़िंदगी बदलने लगी। कठिन ओडिसी डांस स्टेप्स ने उन्हें आकर्षित किया। उन्होंने इस डांस शैली का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। उन्होंने ओडिसी नृत्य गुरु केलुचरण महापात्र से नृत्य शिक्षा लेनी शुरू कर दी। वह १२ से १४ घंटे तक लगातार रियाज़ करती रहती। उस गुरुकुल में उनका स्वरुप ही बदला हुआ था। वहां की लड़कियां उन्हें गौरी अम्मा या गौरी माँ नाम से पुकारने लगी। वह जल्द ही ओडिसी डांस फॉर्म में पारंगत हो गई। फिर प्रोतिमा ने मद्रास के गुरु कलानिधि नारायण से अभिनय की शिक्षा ली। भारतीय नृत्य शैली में हाव भाव यानि अभिनय का महत्त्व होता है। बॉम्बे वापस आ कर, प्रोतिमा बेदी ने पृथ्वी थिएटर में अपना डांस स्कूल खोला, जो बाद में ओडिसी डांस सेंटर में तब्दील हो गया। १९७८ में कबीर बेदी के साथ अलगाव के बाद प्रोतिमा ने खुद को ओडिसी नृत्य में डुबो दिया। उन्होंने बेंगलोर के बाहरी हिस्से में नृत्यग्राम की स्थापना की। यह नृत्यग्राम नृत्य शिक्षा लेने वालों के लिया बड़ा केंद्र है। १९९२ में प्रोतिमा बेदी ने पामेला रूक्स की इंग्लिश फिल्म ' मिस बेट्टीज चिल्ड्रन' में अभिनय भी किए। १९९७ में प्रोतिमा की ज़िंदगी ने फिर करवट ली। कबीर से प्रोतिमा के दो बच्चे थे- पूजा बेदी, जिसने विषकन्या, जो जीता वही सिकंदर, आदि कुछ फिल्मों में अभिनय किया और सिद्धार्थ बेदी। सिद्धार्थ शिज़ोफ्रेनिआ का मरीज़ था। वह नार्थ कैरोलिना में पढ़ाई कर रहा था। वहीँ, अगस्त १९९७ में उसने आत्म हत्या कर ली। बेटे की दर्दनाक मौत ने प्रोतिमा को हिला कर रख दिया। वह सब छोड़ कर संन्यासी बन गई और अपना नाम प्रोतिमा गौरी रख लिया। वह हिमालय चली गई। उन्होंने लेह से अपनी हिमालय यात्रा शुरू की। मकसद पहाड़ों के लिए कुछ करना था। जिस दौरान वह कैलाश मानसरोवर की तीर्थ यात्रा पर थी, मालपा में भूस्खलन के दौरान प्रोतिमा गौरी भी काफी लोगों के साथ मलवे में दब गई। हालाँकि, कई दिनों बाद अन्य शवों के साथ प्रोतिमा बेदी के शरीर के अवशेष और वस्तुएं बरामद हुई। इसके साथ ही प्रोतिमा गुप्ता से प्रोतिमा बेदी और फिर प्रोतिमा गौरी के जीवन का सफर ख़त्म हो गया।
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श्रद्धांजलि,
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Sunday, 11 October 2015
अमिताभ बच्चन से होकर गुजरती है यह रेखा
जन्मदिन के लिहाज़ से रेखा और अमिताभ बच्चन का चोली दमन का साथ है. रेखा १० अक्टूबर को पैदा हुई थी. अमिताभ बच्चन आज के दिन (११ अक्टूबर को) क्विट इंडिया मूवमेंट के वर्ष में पैदा हुए थे। रेखा आजादी के सात साल बाद पैदा हुई लेकिन, इन दोनों का हिंदी फिल्म करियर एक साथ शुरू हुआ . रेखा ने पहली हिंदी फिल्म 'अनजाना सफ़र' १९६९ में साइन की थी, जबकि पहले रिलीज़ हुई 'सावन भादो' . अमिताभ बच्चन ने पहली फिल्म 'सात हिन्दुस्तानी' भी १९६९ में की थी . जहाँ तक रूपहले परदे पर अभिनय का सवाल है, रेखा अमिताभ बच्चन से सीनियर हैं. उनकी पहली तेलुगु फिल्म 'रंगुला रत्नम' १९६६ में रिलीज़ हो गई थी. इसे अमिताभ बच्चन का भाग्य ही कहेंगे कि जिस सात हिन्दुस्तानी से उनका फिल्म करियर शुरू हुआ था, उसके बाकी छः हिन्दुस्तानियों का फिल्म करियर या तो ख़त्म हो चूका है या वह स्वर्गवासी हो चुके हैं. उनके साथ ही करियर शुरू करने वाली रेखा भी खामोश रहना पसंद करती हैं. आज रेखा का जिक्र इस लिए कि अमिताभ बच्चन रेखा के बिना अधूरे हैं. रेखा अपने आप में पूरी रेखा हैं. लेकिन, अमिताभ बच्चन रेखा के बिना पूरे नहीं. इन दोनों की लव स्टोरी ३३ साल बाद भी जीवंत है. आर० बल्कि को अपनी फिल्म शमिताभ में अमिताभ बच्चन और रेखा के रिश्तों को दिखाने की ज़रुरत महसूस हुई थी. अमिताभ बच्चन के लिए रेखा का कितना महत्व था, यह अमिताभ ही बता सकते हैं. लेकिन, रेखा के फिल्म करियर में अमिताभ का ज़बरदस्त प्रभाव था . वास्तविकता तो यह है कि अमिताभ बच्चन ने रेखा को उस समय संरक्षण दिया, जब बॉलीवुड के छिछोरे रेखा के हिंदी न समझ पाने का गलत फायदा उठाया करते थे. उनसे भद्दे मज़ाक किया करते थे. ज़ंजीर के बाद सुपर स्टार बन गए अमिताभ बच्चन ने रेखा के साथ अपनी जोड़ी बनानी शुरू कर दी . हालाँकि उस समय तक रेखा 'एलान', 'गोरा और काला', 'एक बेचारा', 'दो यार', 'रामपुर का लक्षमण', 'कीमत', 'कहानी किस्मत की', 'धर्मा', आदि बड़ी हिट फ़िल्में दे चुकी थी. अमिताभ बच्चन के साथ उनकी पहली फिल्म ऋषिकेश मुख़र्जी की 'नमक हराम' थी. लेकिन, वह इस फिल्म में अमिताभ की नायिका नहीं थी. इन दोनों का साथ बना 'दो अनजाने' से. इन दोनों ने एक साथ अलाप, इमान धरम, खून पसीना, गंगा की सौगंध, कसमे वादे, मुकद्दर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, राम बलराम और सिलसिला जैसी फ़िल्में की . सिलसिला के बाद इन दोनों की फिल्मों का सिलसिला थम गया. दोनों फिर कभी परदे पर आमने सामने नहीं आये. लेकिन, रेखा के जीवन में अमिताभ बच्चन का जो गहरा प्रभाव पडा, उसकी एक झलक रेखा की फिल्मों में मिलती है. एक तरफ रेखा जहाँ खूबसूरत, जुदाई, मांग भरो सजना, उमराव जान, अगर तुम न होते, आदि फिल्मों से खुद को संवेदनशील अभिनेत्री साबित कर रही थी, वहीँ मुझे इन्साफ चाहिए, इन्साफ की आवाज़, खून भरी मांग, भ्रष्टाचार, आज़ाद देश के गुलाम, फूल बने अंगारे, जैसी फिल्मों में अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन का लेडी संस्करण पेश कर रही थी. अमिताभ बच्चन के प्रति रेखा की भावनाओं को बाल्की ने अपनी फिल्म 'शमिताभ' में अमिताभ की आवाज़ के सहारे पेश किया था. रेखा ने भी सिर्फ इसी कारण से फिल्म साइन की थी.
अमिताभ बच्चन आज भी सक्रिय हैं. उनकी भूमिका ज़रूर बदल चुकी है अब वह वृद्ध भूमिकाएं कर रहे हैं. टीवी पर शो भी कर रहे हैं. लेकिन, रेखा चुनिन्दा फ़िल्में भी बहुत सोच समझ कर करती. फिल्म 'फितूर' को बीच में ही छोड़ देना इसका उदाहरण है. अलबता इस तुलना में एक मामले में रेखा अमिताभ बच्चन पर भारी हैं. अमिताभ बच्चन को कांग्रेसी और समाजवादी राजनीती रास नहीं आई. लेकिन, रेखा मनोनीत राज्य सभा सदस्य के रूप में अपनी भूमिका चुपचाप निभाती चली आ रही हैं.
अमिताभ बच्चन आज भी सक्रिय हैं. उनकी भूमिका ज़रूर बदल चुकी है अब वह वृद्ध भूमिकाएं कर रहे हैं. टीवी पर शो भी कर रहे हैं. लेकिन, रेखा चुनिन्दा फ़िल्में भी बहुत सोच समझ कर करती. फिल्म 'फितूर' को बीच में ही छोड़ देना इसका उदाहरण है. अलबता इस तुलना में एक मामले में रेखा अमिताभ बच्चन पर भारी हैं. अमिताभ बच्चन को कांग्रेसी और समाजवादी राजनीती रास नहीं आई. लेकिन, रेखा मनोनीत राज्य सभा सदस्य के रूप में अपनी भूमिका चुपचाप निभाती चली आ रही हैं.
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Saturday, 10 October 2015
कहाँ है अमिताभ बच्चन का क्रोधित युवा !
इस महीने ११ अक्टूबर को अमिताभ बच्चन ७३ साल के हो जायेंगे। इस उम्र में अमिताभ बच्चन न केवल सक्रीय हैं, बल्कि हिंदी फिल्मों में मुख्य भूमिका भी अदा कर रहे हैं। आर० बल्कि जैसे फिल्म निर्देशक उन्हें ध्यान में रख कर फिल्मों की कहानियाँ गढ़ते हैं। भिन्न उत्पादों के लिए वह सबसे अच्छे ब्रांड एम्बेसडर हैं। बेशक आज वह चरित्र नायक बन गए हैं, लेकिन कभी वह हिंदी फिल्मों के क्रोधी युवा नायक को रिप्रेजेंट कर रहे थे, जो सिस्टम से नाराज़ था, बुरे किरदारों से सताया गया था। किसी के भी साथ होने वाला अन्याय उसे नाराज़ कर देता था। उन्होंने इस किरदार को सबसे पहले परदे पर उतारा प्रकाश मेहरा की १९७३ में रिलीज़ फिल्म 'ज़ंजीर' में। ज़ंजीर का नायक भयावने अतीत से जूझ रहा इंस्पेक्टर विजय खन्ना था, जो एक लोकल दादा से टकराने के लिए सरेआम अपनी खाकी वर्दी उतार कर, उसी के मोहल्ले में उससे भिड़ जाता है। इस किरदार को सच्चा बनाने में अमिताभ बच्चन की धंसी हुई उदास आँखों और गहरी आवाज़ ने, उनके अभिनेता का भरपूर साथ दिया। अभी तक १३ फ्लॉप फ़िल्में दे चुके अमिताभ बच्चन को 'ज़ंजीर' ने हिट बना दिया। १९७५ में यश चोपड़ा की फिल्म 'दीवार' और रमेश सिप्पी की फिल्म 'शोले' के रिलीज़ होते होते अमिताभ बच्चन सुपर स्टार बन गए। वह हिंदी फिल्मों के एंग्रीयंगमैन कहलाने लगे। हालाँकि, दीवार और शोले की रिलीज़ के साल यानि १९७५ में उनकी चुपके चुपके जैसी हिट कॉमेडी फिल्म भी रिलीज़ हुई थी। ज़ाहिर है कि अमिताभ बच्चन के हास्य नायक पर क्रोधित नायक भारी पड़ा था।
हालाँकि, अमिताभ बच्चन को हिंदी फिल्मों का एंग्री यंगमैन बताया जाता है। लेकिन, वास्तव में यह करैक्टर ओरिजिनल नहीं। हिंदी फिल्मों में क्रुद्ध युवा साठ के दशक में भी हुआ करते थे। बताते हैं कि शत्रुघ्न सिन्हा ने १९७० में पुणे फिल्म इंस्टिट्यूट के छात्र शम्सुद्दीन की डिप्लोमा फिल्म 'ऐन एंग्री यंग मैन' में एक क्रोधी युवक का किरदार किया था। इस फिल्म के एक सीन में शत्रुघ्न सिन्हा एक आदमी के झापड़ मारने के बाद अपने हाथ को झटक कर अपनी रिस्ट वाच की जांच करते हैं। इस फिल्म में जया भादुड़ी भी थीं। शत्रुघ्न सिन्हा हमेशा खुद को ओरिजिनल एंग्री यंग मैन समझते रहे। उन्हें मलाल था कि उनकी ईज़ाद एंग्री यंग मैन करैक्टर का फायदा अमिताभ बच्चन उठा ले गए। १९७१ में रिलीज़ गुलज़ार की फिल्म 'मेरे अपने' के चैनू को और किस केटेगरी में रखा जा सकता है ! डॉन और कालीचरण के कथानक लगभग समान हमशक्ल किरदारों वाले थे। कालीचरण में पुलिस कमिश्नर एक अपराधी को मृत पुलिस अधिकारी की जगह प्लांट कर देता है। डॉन में, एक गंवई को मृत डॉन की जगह प्लांट किया जाता है। हालाँकि, दोनों फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट गई। लेकिन, शत्रुघ्न सिन्हा की फिल्म से ज़्यादा अमिताभ बच्चन की फिल्म का ज़िक्र होता है । जिस दौरान अमिताभ बच्चन फिल्म दर फिल्म एंग्री यंग मैन किरदारों से मेगा स्टार बनाते जा रहे थे, शत्रुघ्न सिन्हा को उतना भाव नहीं मिल रहा था।
शत्रुघ्न सिन्हा की बात छोड़िये, वह तो अमिताभ बच्चन के समकालीन थे। लेकिन, मदर इंडिया में सुनील दत्त के किरदार बिरजू, फूल और पत्थर में धर्मेन्द्र के किरदार शाका और गंगा जमुना में दिलीप कुमार के किरदार गंगा को क्या नाम दिया जायेगा। मदर इंडिया का बिरजू गाँव के साहूकार के अत्याचारों को बचपन से देखता आ रहा है। जब पानी सर से ऊपर चला जाता है तो वह साहूकार को मार डालता है। फूल और पत्थर में धर्मेन्द्र ने छोटा मोटा अपराध करने वाले अपराधी शाका का किरदार किया था। वह नरम दिल है। जब एक विधवा पर अत्याचार होते देखता है तो उबल पड़ता है। इस फिल्म ने धर्मेन्द्र को गरम धरम और ही-मैन के खिताब दिलवाए थे। गंगा जमुना का गंगा सीधा सादा गंवई था। लेकिन, उसे भी अन्याय स्वीकार नहीं। अंत में वह साहूकार को मार देता है। मदर इंडिया १९५७, गंगा जमुना १९६२ और फूल और पत्थर १९६६ में रिलीज़ हुई थी। उस समय तक शत्रुघ्न सिन्हा और अमिताभ बच्चन का स्क्रीन डेब्यू तक नहीं हुआ था। अलबत्ता, सुनील दत्त, दिलीप कुमार और धर्मेन्द्र का क्रोध हिंसा को अंतिम हथियार मानता था। जबकि, अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन हिंसा करके ही अपने क्रोध की अभिव्यक्ति करता था।
हालाँकि, क्रोधी नायक हिंदी फिल्मों की शुरुआत से ही किसी न किसी रूप में था। लेकिन, उसे बॉलीवुड का किंग बनाया अमिताभ बच्चन ने ही। अमिताभ बच्चन के उदय के साथ ही हिंदी फिल्मों में गीत संगीत, परिवार, हास्य अभिनेता और भारतीय नारी का नामोनिशान मिट गया। इन सबकी जगह एंग्री यंग मैन ने ले ली। नतीजे के तौर पर नारी प्रधान फिल्मों के बजाय पुरुष प्रधान (क्रुद्ध युवा) फ़िल्में बनने लगी। हर अभिनेता एंग्री यंग मैन के लिए छटपटाने लगा। 'वह सात दिन' में पटियाला से आये सीधे सादे युवक प्रेम प्रताप पटियालावाला का किरदार करके मशहूर होने वाले अभिनेता अनिल कपूर भी अपनी अंदर-बाहर, युद्ध, मेरी जंग, जांबाज़, कर्मा, आदि फिल्मो में क्रोधित हो कर अनियंत्रित हिंसा कर रहे थे। बॉलीवुड के तमाम स्टार किड्स कुमार गौरव, सनी देओल, संजय दत्त, फरदीन खान, ज़ायद खान, ह्रितिक रोशन, आदि की बॉलीवुड एंट्री चाहे रोमांस फिल्मों से हुई हो या एक्शन, लेकिन अंततः सभी ने एंग्री यंग मैन को अपना ईश्वर माना। शाहरुख़
खान, जैकी श्रॉफ, गोविंदा, अक्षय कुमार, अजय देवगन, आदि ने भी परदे पर क्रोध दिखाने की कोशिश की। अनिल कपूर ने तो कई ऎसी फ़िल्में की, जो मूल रूप से अमिताभ बच्चन के लिए लिखी गई थी। अनिल कपूर तो एक समय एंग्री यंग मैन के सहारे टॉप पर पहुँचाने का ख्वाब देखने लगे। हालाँकि, बॉलीवुड के कई अभिनेताओं ने एंग्री यंग मैन को अपनाया, लेकिन लम्बी रेस का घोड़ा वही बने, जिन्होंने अपने एंग्री यंग मैन को कुछ हट कर पेश किया। सनी देओल का चेहरा काफी मासूम है।
इसलिए उन्हें एक छात्र या बेरोजगार के किरदार में दिखाया गया, जो विलन के सताए जाने पर हथियार उठाता है। जैकी श्रॉफ भी भोले भाले रोमांटिक हीरो थे, जो अपने परिवार पर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है। अजय देवगन खामोश एंग्री यंग मैन थे, जिसके अंदर लावा उबल रहा है। अक्षय कुमार देश विरोधी ताक़तों को ख़त्म करने वाले क्रोधित युवा थे। जॉन अब्राहम ने टपोरी एंग्री यंग मैन का चोला पहना।
इस समय नज़ारा थोड़ा बदला बदला सा है। क्रोधित युवा रूपहले परदे पर आते हैं। लेकिन, नए चहरे रोमांस या रोमांटिक कॉमेडी या म्यूजिकल रोमांस के ज़रिये अपना करियर बनाना चाहते हैं। रणबीर कपूर एक्शन करते हैं, लेकिन रोमांस उनके करैक्टर की खासियत है। सिद्धार्थ मल्होत्रा रोमांस को प्रेफर कर रहे हैं। वरुण धवन ने रोमांटिक कॉमेडी और एक्शन फिल्मों में जगह बनानी शुरू कर दी है। आदित्य रॉय कपूर, आयुष्मान खुराना, आदि रोमांस कॉमेडी फ़िल्में करते हैं। रणवीर सिंह रोमांटिक नायक बन कर उभर रहे हैं। कभी एंग्री यंग मैन को खुदा मानने वाले तमाम सीनियर अभिनेता भी अब हट कर भूमिकाये कर रहे हैं। अब सलमान खान की किसी भी फिल्म में युवा क्रोधित नहीं होता। अक्षय कुमार अब देश के दुश्मनों से बदला लेने लगे हैं। अजय देवगन और जॉन अब्राहम को देश के अंदर जूझना है। सनी देओल का मुक्का आज भी ढाई किलो का है। सैफ अली खान किसी ख़ास इमेज के गुलाम नहीं। पिछले महीने रिलीज़ फिल्म 'हीरो' का सूरज पंचोली एक्शन धुंआधार करता है, लेकिन उसे अथिया शेट्टी से मोहब्बत है। यानि की एंग्री यंग मैन फिलहाल आराम कर रहा है।
आगामी फिल्मों में कहाँ है एंग्री यंग मैन !
एक नज़र डालते हैं इस साल अक्टूबर से रिलीज़ होने जा रही फिल्मों पर कि इनमे एंग्री यंग मैन कहाँ हैं।
रॉकी हैंडसम- जॉन अब्राहम इस फिल्म में ड्रग माफिया पर नकेल डालने की कोशिश करते हैं। इस फिल्म में ड्रामा खूब है, एक्शन तो है ही।
सिंह इज़ ब्लिंग- अक्षय कुमार की यह फिल्म खालिस कॉमेडी फिल्म है। वैसे अक्षय कुमार है तो थोड़ा बहुत एक्शन होगा ही।
शानदार- शाहिद कपूर की यह फिल्म अलिया भट्ट के साथ खालिस रोमांस की है। कॉमेडी का तड़का भी है।
प्रेम रतन धन पायो- सलमान खान की यह फिल्म राजश्री कैंप की विशुद्ध पारिवारिक फिल्म है।
घायल वन्स अगेन- घायल की सीक्वल फिल्म में सनी देओल का ढाई किलो का मुक्का खूब चलेगा। इस फिल्म में सनी देओल एंग्रीमैन के किरदार में नज़र आएंगे।
तमाशा- निर्देशक इम्तियाज़ अली की रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण के यह फिल्म विशुद्ध रोमांस फिल्म है, लैला मजनू टाइप की।
बाजीराव मस्तानी- यह ऐतिहासिक ड्रामा रोमांस त्रिकोण फिल्म है। रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा का ज़बरदस्त त्रिकोण बनाया गया है।
दिलवाले- शाहरख खान, काजोल, वरुण धवन और कीर्ति सेनन की यह फिल्म ड्रामा से भरपूर फिल्म है। रोहित शेट्टी की इस फिल्म में थोड़ा एक्शन भी होगा।
हेरा फेर ३- इस सीक्वल फिल्म में पहली दो हेरा फेरी फिल्मों की तरह खूब कॉमेडी है। इस बार परेश रावल के साथ जॉन अब्राहम, अभिषेक बच्चन और सुनील शेट्टी दर्शकों को हंसाने का प्रयास करेंगे।
हालाँकि, अमिताभ बच्चन को हिंदी फिल्मों का एंग्री यंगमैन बताया जाता है। लेकिन, वास्तव में यह करैक्टर ओरिजिनल नहीं। हिंदी फिल्मों में क्रुद्ध युवा साठ के दशक में भी हुआ करते थे। बताते हैं कि शत्रुघ्न सिन्हा ने १९७० में पुणे फिल्म इंस्टिट्यूट के छात्र शम्सुद्दीन की डिप्लोमा फिल्म 'ऐन एंग्री यंग मैन' में एक क्रोधी युवक का किरदार किया था। इस फिल्म के एक सीन में शत्रुघ्न सिन्हा एक आदमी के झापड़ मारने के बाद अपने हाथ को झटक कर अपनी रिस्ट वाच की जांच करते हैं। इस फिल्म में जया भादुड़ी भी थीं। शत्रुघ्न सिन्हा हमेशा खुद को ओरिजिनल एंग्री यंग मैन समझते रहे। उन्हें मलाल था कि उनकी ईज़ाद एंग्री यंग मैन करैक्टर का फायदा अमिताभ बच्चन उठा ले गए। १९७१ में रिलीज़ गुलज़ार की फिल्म 'मेरे अपने' के चैनू को और किस केटेगरी में रखा जा सकता है ! डॉन और कालीचरण के कथानक लगभग समान हमशक्ल किरदारों वाले थे। कालीचरण में पुलिस कमिश्नर एक अपराधी को मृत पुलिस अधिकारी की जगह प्लांट कर देता है। डॉन में, एक गंवई को मृत डॉन की जगह प्लांट किया जाता है। हालाँकि, दोनों फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट गई। लेकिन, शत्रुघ्न सिन्हा की फिल्म से ज़्यादा अमिताभ बच्चन की फिल्म का ज़िक्र होता है । जिस दौरान अमिताभ बच्चन फिल्म दर फिल्म एंग्री यंग मैन किरदारों से मेगा स्टार बनाते जा रहे थे, शत्रुघ्न सिन्हा को उतना भाव नहीं मिल रहा था।
शत्रुघ्न सिन्हा की बात छोड़िये, वह तो अमिताभ बच्चन के समकालीन थे। लेकिन, मदर इंडिया में सुनील दत्त के किरदार बिरजू, फूल और पत्थर में धर्मेन्द्र के किरदार शाका और गंगा जमुना में दिलीप कुमार के किरदार गंगा को क्या नाम दिया जायेगा। मदर इंडिया का बिरजू गाँव के साहूकार के अत्याचारों को बचपन से देखता आ रहा है। जब पानी सर से ऊपर चला जाता है तो वह साहूकार को मार डालता है। फूल और पत्थर में धर्मेन्द्र ने छोटा मोटा अपराध करने वाले अपराधी शाका का किरदार किया था। वह नरम दिल है। जब एक विधवा पर अत्याचार होते देखता है तो उबल पड़ता है। इस फिल्म ने धर्मेन्द्र को गरम धरम और ही-मैन के खिताब दिलवाए थे। गंगा जमुना का गंगा सीधा सादा गंवई था। लेकिन, उसे भी अन्याय स्वीकार नहीं। अंत में वह साहूकार को मार देता है। मदर इंडिया १९५७, गंगा जमुना १९६२ और फूल और पत्थर १९६६ में रिलीज़ हुई थी। उस समय तक शत्रुघ्न सिन्हा और अमिताभ बच्चन का स्क्रीन डेब्यू तक नहीं हुआ था। अलबत्ता, सुनील दत्त, दिलीप कुमार और धर्मेन्द्र का क्रोध हिंसा को अंतिम हथियार मानता था। जबकि, अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन हिंसा करके ही अपने क्रोध की अभिव्यक्ति करता था।
हालाँकि, क्रोधी नायक हिंदी फिल्मों की शुरुआत से ही किसी न किसी रूप में था। लेकिन, उसे बॉलीवुड का किंग बनाया अमिताभ बच्चन ने ही। अमिताभ बच्चन के उदय के साथ ही हिंदी फिल्मों में गीत संगीत, परिवार, हास्य अभिनेता और भारतीय नारी का नामोनिशान मिट गया। इन सबकी जगह एंग्री यंग मैन ने ले ली। नतीजे के तौर पर नारी प्रधान फिल्मों के बजाय पुरुष प्रधान (क्रुद्ध युवा) फ़िल्में बनने लगी। हर अभिनेता एंग्री यंग मैन के लिए छटपटाने लगा। 'वह सात दिन' में पटियाला से आये सीधे सादे युवक प्रेम प्रताप पटियालावाला का किरदार करके मशहूर होने वाले अभिनेता अनिल कपूर भी अपनी अंदर-बाहर, युद्ध, मेरी जंग, जांबाज़, कर्मा, आदि फिल्मो में क्रोधित हो कर अनियंत्रित हिंसा कर रहे थे। बॉलीवुड के तमाम स्टार किड्स कुमार गौरव, सनी देओल, संजय दत्त, फरदीन खान, ज़ायद खान, ह्रितिक रोशन, आदि की बॉलीवुड एंट्री चाहे रोमांस फिल्मों से हुई हो या एक्शन, लेकिन अंततः सभी ने एंग्री यंग मैन को अपना ईश्वर माना। शाहरुख़
खान, जैकी श्रॉफ, गोविंदा, अक्षय कुमार, अजय देवगन, आदि ने भी परदे पर क्रोध दिखाने की कोशिश की। अनिल कपूर ने तो कई ऎसी फ़िल्में की, जो मूल रूप से अमिताभ बच्चन के लिए लिखी गई थी। अनिल कपूर तो एक समय एंग्री यंग मैन के सहारे टॉप पर पहुँचाने का ख्वाब देखने लगे। हालाँकि, बॉलीवुड के कई अभिनेताओं ने एंग्री यंग मैन को अपनाया, लेकिन लम्बी रेस का घोड़ा वही बने, जिन्होंने अपने एंग्री यंग मैन को कुछ हट कर पेश किया। सनी देओल का चेहरा काफी मासूम है।
इसलिए उन्हें एक छात्र या बेरोजगार के किरदार में दिखाया गया, जो विलन के सताए जाने पर हथियार उठाता है। जैकी श्रॉफ भी भोले भाले रोमांटिक हीरो थे, जो अपने परिवार पर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है। अजय देवगन खामोश एंग्री यंग मैन थे, जिसके अंदर लावा उबल रहा है। अक्षय कुमार देश विरोधी ताक़तों को ख़त्म करने वाले क्रोधित युवा थे। जॉन अब्राहम ने टपोरी एंग्री यंग मैन का चोला पहना।
इस समय नज़ारा थोड़ा बदला बदला सा है। क्रोधित युवा रूपहले परदे पर आते हैं। लेकिन, नए चहरे रोमांस या रोमांटिक कॉमेडी या म्यूजिकल रोमांस के ज़रिये अपना करियर बनाना चाहते हैं। रणबीर कपूर एक्शन करते हैं, लेकिन रोमांस उनके करैक्टर की खासियत है। सिद्धार्थ मल्होत्रा रोमांस को प्रेफर कर रहे हैं। वरुण धवन ने रोमांटिक कॉमेडी और एक्शन फिल्मों में जगह बनानी शुरू कर दी है। आदित्य रॉय कपूर, आयुष्मान खुराना, आदि रोमांस कॉमेडी फ़िल्में करते हैं। रणवीर सिंह रोमांटिक नायक बन कर उभर रहे हैं। कभी एंग्री यंग मैन को खुदा मानने वाले तमाम सीनियर अभिनेता भी अब हट कर भूमिकाये कर रहे हैं। अब सलमान खान की किसी भी फिल्म में युवा क्रोधित नहीं होता। अक्षय कुमार अब देश के दुश्मनों से बदला लेने लगे हैं। अजय देवगन और जॉन अब्राहम को देश के अंदर जूझना है। सनी देओल का मुक्का आज भी ढाई किलो का है। सैफ अली खान किसी ख़ास इमेज के गुलाम नहीं। पिछले महीने रिलीज़ फिल्म 'हीरो' का सूरज पंचोली एक्शन धुंआधार करता है, लेकिन उसे अथिया शेट्टी से मोहब्बत है। यानि की एंग्री यंग मैन फिलहाल आराम कर रहा है।
आगामी फिल्मों में कहाँ है एंग्री यंग मैन !
एक नज़र डालते हैं इस साल अक्टूबर से रिलीज़ होने जा रही फिल्मों पर कि इनमे एंग्री यंग मैन कहाँ हैं।
रॉकी हैंडसम- जॉन अब्राहम इस फिल्म में ड्रग माफिया पर नकेल डालने की कोशिश करते हैं। इस फिल्म में ड्रामा खूब है, एक्शन तो है ही।
सिंह इज़ ब्लिंग- अक्षय कुमार की यह फिल्म खालिस कॉमेडी फिल्म है। वैसे अक्षय कुमार है तो थोड़ा बहुत एक्शन होगा ही।
शानदार- शाहिद कपूर की यह फिल्म अलिया भट्ट के साथ खालिस रोमांस की है। कॉमेडी का तड़का भी है।
प्रेम रतन धन पायो- सलमान खान की यह फिल्म राजश्री कैंप की विशुद्ध पारिवारिक फिल्म है।
घायल वन्स अगेन- घायल की सीक्वल फिल्म में सनी देओल का ढाई किलो का मुक्का खूब चलेगा। इस फिल्म में सनी देओल एंग्रीमैन के किरदार में नज़र आएंगे।
तमाशा- निर्देशक इम्तियाज़ अली की रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण के यह फिल्म विशुद्ध रोमांस फिल्म है, लैला मजनू टाइप की।
बाजीराव मस्तानी- यह ऐतिहासिक ड्रामा रोमांस त्रिकोण फिल्म है। रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा का ज़बरदस्त त्रिकोण बनाया गया है।
दिलवाले- शाहरख खान, काजोल, वरुण धवन और कीर्ति सेनन की यह फिल्म ड्रामा से भरपूर फिल्म है। रोहित शेट्टी की इस फिल्म में थोड़ा एक्शन भी होगा।
हेरा फेर ३- इस सीक्वल फिल्म में पहली दो हेरा फेरी फिल्मों की तरह खूब कॉमेडी है। इस बार परेश रावल के साथ जॉन अब्राहम, अभिषेक बच्चन और सुनील शेट्टी दर्शकों को हंसाने का प्रयास करेंगे।
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फिल्म पुराण
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Friday, 9 October 2015
नहीं रहे राम तेरी गंगा मैली के रविन्द्र जैन
आज मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल में लम्बी बीमारी के बाद मशहूर संगीतकार, गीतकार और गायक रविन्द्र जैन का देहांत हो गया। इसके साथ ही बॉलीवुड फिल्म संगीत में भक्ति का मिश्रण करने वाली एक प्रतिभा का भी अवसान हो गया। वह ७१ साल के थे। रविन्द्र जैन जन्मांध थे। इसके बावजूद उन्होंने ऐसे जीवंत संगीत की रचना की, जिसे ४२ साल बाद भी दर्शक भूले नहीं। क्या आपको याद है १९७३ में रिलीज़ अमिताभ बच्चन, नूतन और पद्मा खन्ना की फिल्म 'सौदागर' के गीतों की! कौन भूल सकता है 'सजना है मुझे सजना के लिए', 'क्यों लायो सैयां पान मेरे होंठ तो यूँ ही लाल', 'हर हंसीं चीज का मैं तलबगार हूँ' और 'तेरा मेरा साथ रहे' जैसे गीत । सौंदर्य शास्त्र के लिहाज़ से यह गीत लाजवाब हैं। इन गीतों को सुनते हुए नायिका का सौंदर्य और अपने प्रीतम के लिए भावनाएं आखों के सामने तैर जाती हैं। इन सभी गीतों के रचयिता रविन्द्र जैन ही थे। सत्तर के दशक में रविन्द्र जैन के संगीत की धूम मचा करती थी। वह राजश्री बैनर की फिल्मों के स्थाई संगीतकार थे। सिर्फ सूरज बड़जात्या के निर्देशन मेंबनी किसी फिल्म का संगीत रविन्द्र जैन ने नहीं दिया। अन्यथा, वह ताराचंद बड़जात्या की फिल्मों से लेकर राजकपूर की फिल्मों के संगीतकार भी बने। उनके संगीत में भावनाएं होती थी, भक्ति होती थी और उत्साह होता था। उन्होंने, चोर मचाये शोर और फकीरा जैसी महा कमर्शियल फिल्मों में भी अपने संगीत के स्तर को गिरने नहीं दिया। उन्होंने, फिल्म चोर मचाये शोर के लिए 'एक डाल पर तोता बोले एक डाल पर मैना और घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ जैसे हिट गीत लिखे। फकीरा फिल्म में चल फकीरा चल और तोता मैना की कहानी जैसे गीत सुपर हिट हुए। अमिताभ बच्चन के एंग्री यंगमैन के उदय के बाद, जब आरडी बर्मन जैसे संगीतकार स्तरहीन संगीत दे रहे थे, उसी दौरान रविन्द्र जैन ने तपस्या, चितचोर, कोतवाल साब, राम भरोसे, दुल्हन वही जो पिया मन भाये, अँखियों के झरोखों से, पति पत्नी और वह, सुनयना, आदि फिल्मों में आत्मा को छूने वाले कर्णप्रिय संगीत की रचना की। उनके संगीतबद्ध किये फिल्म 'गीत गाता चल' के तमाम गीत मंदिरों में तक बजाये जाते थे। वह ऐसे संगीतकार थे जिन पर राजकपूर तक का जादू नहीं चला। उन्होंने राजकपूर की दो फिल्मों राम तेरी गंगा मैली और हिना के लिए संगीत रचना की। राजकपूर संगीत के जानकार फिल्मकार थे। लेकिन, रविन्द्र जैन ने राजकपूर के प्रभाव के बिना अपनी शैली का संगीत दिया। उन्हें राम तेरी गंगा मैली के लिए श्रेष्ठ संगीतकार की श्रेणी में फिल्मफेयर अवार्ड मिला। छोटे परदे पर रामानंद सागर और धीरज कुमार के सीरियलों से रविन्द्र जैन का संगीत घर घर पहुंचा।
रविन्द्र जैन उत्तर प्रदेश में अलीगढ में पैदा हुए थे। संगीत प्रभाकर की डिग्री लेने के बाद १९७० में वह मुंबई आ गए। उन्हें पहला मौका फिल्मकार एनएन सिप्पी ने अपनी फिल्म 'सिलसिला है प्यार का' के लिए दिया। लेकिन, यह फिल्म बन ही नहीं सकी। १९७४ में रविन्द्र जैन ने एनएन सिप्पी की फिल्म 'चोर मचाये शोर' का संगीत दिया। उनकी पहली रिलीज़ फिल्म 'कांच और हीरा' थी। इस फिल्म का मोहम्मद रफ़ी का गाया गीत 'नज़र आती नहीं मंज़िल' ज़बरदस्त हिट हुआ। लेकिन,रविन्द्र जैन के संगीत को बुलंदिया दी अमिताभ बच्चन अभिनीत राजश्री बैनर की फिल्म 'सौदागर' ने। उन्होंने बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री को येसुदास, हेमलता, जसपाल सिंह, आरती मुख़र्जी, चंद्रानी मुख़र्जी, आदि जैसी बहुत सी प्रतिभाओं से परिचित कराया। वह लाइव शो भी किया करते थे। वह अच्छे शायर भी थे। उनकी उर्दू शायरी के संग्रह 'उजालों का सिलसिला' को उत्तर प्रदेश हिन्दू-उर्दू साहित्य अवार्ड कमिटी ने साहित्य अवार्ड से नवाज़ा। उन्हें कई राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान मिले। उन्हें इसी साल पद्मश्री से दी गई। उन्होंने आत्मकथा 'सुनहरे पल' भी लिखी। उनकी गैर हिंदी रचनाओं में आशा भोंसले का प्राइवेट एल्बम ओम नमः शिवाय, गुरु वंदना, टाइमलेस्स महात्मा, काशी पुष्पांजलि, मिशन बोध गया और संपूर्ण रामायण के नाम उल्लेखनीय हैं। सम्पूर्ण रामायण को बॉलीवुड के कई गायकों ने गाया था।
रविन्द्र जैन उत्तर प्रदेश में अलीगढ में पैदा हुए थे। संगीत प्रभाकर की डिग्री लेने के बाद १९७० में वह मुंबई आ गए। उन्हें पहला मौका फिल्मकार एनएन सिप्पी ने अपनी फिल्म 'सिलसिला है प्यार का' के लिए दिया। लेकिन, यह फिल्म बन ही नहीं सकी। १९७४ में रविन्द्र जैन ने एनएन सिप्पी की फिल्म 'चोर मचाये शोर' का संगीत दिया। उनकी पहली रिलीज़ फिल्म 'कांच और हीरा' थी। इस फिल्म का मोहम्मद रफ़ी का गाया गीत 'नज़र आती नहीं मंज़िल' ज़बरदस्त हिट हुआ। लेकिन,रविन्द्र जैन के संगीत को बुलंदिया दी अमिताभ बच्चन अभिनीत राजश्री बैनर की फिल्म 'सौदागर' ने। उन्होंने बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री को येसुदास, हेमलता, जसपाल सिंह, आरती मुख़र्जी, चंद्रानी मुख़र्जी, आदि जैसी बहुत सी प्रतिभाओं से परिचित कराया। वह लाइव शो भी किया करते थे। वह अच्छे शायर भी थे। उनकी उर्दू शायरी के संग्रह 'उजालों का सिलसिला' को उत्तर प्रदेश हिन्दू-उर्दू साहित्य अवार्ड कमिटी ने साहित्य अवार्ड से नवाज़ा। उन्हें कई राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान मिले। उन्हें इसी साल पद्मश्री से दी गई। उन्होंने आत्मकथा 'सुनहरे पल' भी लिखी। उनकी गैर हिंदी रचनाओं में आशा भोंसले का प्राइवेट एल्बम ओम नमः शिवाय, गुरु वंदना, टाइमलेस्स महात्मा, काशी पुष्पांजलि, मिशन बोध गया और संपूर्ण रामायण के नाम उल्लेखनीय हैं। सम्पूर्ण रामायण को बॉलीवुड के कई गायकों ने गाया था।
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श्रद्धांजलि
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
संजय गुप्ता का कोरियाई 'सेवेन डेज' 'जज्बा' !
संजय गुप्ता यह तो मानते हैं कि उनकी फिल्म 'जज्बा' कोरियाई फिल्म 'सेवेन डेज' का अधिकारिक रीमेक फिल्म है. लेकिन, मौखिक रूप से . वह फिल्म में कहीं भी 'जज्बा' को 'सेवेन डेज' की कॉपी नहीं बताते. जबकि, वास्तविकता तो यह है कि 'जज्बा' कोरियाई फिल्म की कॉपी नहीं कार्बन कॉपी है. एक एक और छोटे से छोटा डिटेल भी कोरियाई फिल्म से है. जहाँ उन्होंने दिमाग लगाने की कोशिश की है, वहां बचकानापन आ गया है. फिल्म में ऐश्वर्या राय की बेटी की खोज में इरफ़ान एक मिटटी के टीले पर बैठ कर बिना दूरबीन के एक घर की निगरानी कर रहे हैं, जबकि मूल फिल्म का पुलिस ऑफिसर उस घर के सामने के घर से निगरानी कर रहा है. बाकी, फिल्म का एक एक सीन सेवेन डेज से कॉपी किया हुआ है. यहाँ तक कि फिल्म का एक गीत आज रात का सीन मूल फिल्म की नक़ल में ही डाला गया है . फिल्म डायलाग भी मौलिक नहीं, अनुवाद हैं . संजय गुप्ता की फिल्म के क्रेडिट में योएन जाए-गु का नाम बतौर पटकथा लेखक नहीं दिया गया है. जबकि, फिल्म के सीन्स की कॉपी करने वाले संजय गुप्ता और रोबिन भट्ट पूरा क्रेडिट लेते हैं. डायलाग राइटर के रूप में कमलेश पाण्डेय का नाम है. जबकि, वास्तव में वह 'सेवेन डेज' के डायलाग के ट्रांसलेटर ज्यादा हैं. हर संवाद अनुवाद किया हुआ है. चूंकि, यह एक वकील माँ की कहानी है, इसलिए भारतीयकरण करना आसान हो जाता है. अन्यथा संजय गुप्ता कितनी मौलिकता दिखा सकते हैं पता चल जाता. चूंकि, सेवेन डेज की कार्बन कॉपी फिल्म है जज्बा, इसलिए इसकी कथा-पटकथा और निर्देशन पर टिपण्णी करना बेकार है. बस इतना कहा जा सकता है कि फिल्म की रफ़्तार तेज़ है. मूल फिल्म थोड़ा लम्बी हो गई थी, जज्बा में वह बात नहीं.
इस फिल्म का ज़िक्र अभिनय के लिए किया जा सकता है. इस फिल्म को शबाना आजमी, इरफ़ान खान और ऐश्वर्या राय बच्चन के लिए इसी क्रम में देखा जा सकता है. सबसे बढ़िया अभिनय शबाना आजमी का है. हालाँकि, वह जिस प्रोफेशनल तरीके से अपनी बेटी के कातिल को जेल से बाहर लाती हैं और जला कर मार डालती हैं, वह गले नहीं उतरता. लेकिन, अपने अभिनय से शबाना आजमी ऐश्वर्या राय बच्चन पर भारी पड़ती हैं. इरफ़ान का अभिनय भी अच्छा है. वह पंच लाइन मारते समय स्वर्गीय राजकुमार की याद दिलाते हैं. लेकिन, अब उनका स्टाइल थोड़ा बासी होता जा रहा है. वह बहुत बार ऐसे किरदारों को बखूबी कर चुके हैं. ऐश्वर्या राय बच्चन ने बढ़िया अभिनय किया है, लेकिन शानदार नहीं. वह 'सेवेन डेज' की युनजिन किम के आसपास तक नहीं. युनजिन ने एक माँ के दर्द को खूसुरती से उभारा था. ऐश्वर्या राय बच्चन इसे लाउड होकर खेलने की कोशिश करती हैं.
अब रही बात फिल्म देखने की ! भाई आपने कोरियाई फिल्म 'सेवेन डेज' नहीं देखि तो जज्बा देख डालिए. एक टिकट में दो फ़िल्में देखने को कहाँ मिलती हैं.
इस फिल्म का ज़िक्र अभिनय के लिए किया जा सकता है. इस फिल्म को शबाना आजमी, इरफ़ान खान और ऐश्वर्या राय बच्चन के लिए इसी क्रम में देखा जा सकता है. सबसे बढ़िया अभिनय शबाना आजमी का है. हालाँकि, वह जिस प्रोफेशनल तरीके से अपनी बेटी के कातिल को जेल से बाहर लाती हैं और जला कर मार डालती हैं, वह गले नहीं उतरता. लेकिन, अपने अभिनय से शबाना आजमी ऐश्वर्या राय बच्चन पर भारी पड़ती हैं. इरफ़ान का अभिनय भी अच्छा है. वह पंच लाइन मारते समय स्वर्गीय राजकुमार की याद दिलाते हैं. लेकिन, अब उनका स्टाइल थोड़ा बासी होता जा रहा है. वह बहुत बार ऐसे किरदारों को बखूबी कर चुके हैं. ऐश्वर्या राय बच्चन ने बढ़िया अभिनय किया है, लेकिन शानदार नहीं. वह 'सेवेन डेज' की युनजिन किम के आसपास तक नहीं. युनजिन ने एक माँ के दर्द को खूसुरती से उभारा था. ऐश्वर्या राय बच्चन इसे लाउड होकर खेलने की कोशिश करती हैं.
अब रही बात फिल्म देखने की ! भाई आपने कोरियाई फिल्म 'सेवेन डेज' नहीं देखि तो जज्बा देख डालिए. एक टिकट में दो फ़िल्में देखने को कहाँ मिलती हैं.
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फिल्म समीक्षा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Thursday, 8 October 2015
एमटीवी की शर्मीली लड़की की दास्ताँ
एमटीवी बिग ऍफ़ के पहले एपिसोड में छोटे शहर की शर्मीली (!) लड़की श्रुति (प्रियल गोर) के रहस्यों पर से पर्दा हटाएगा। वह एक खूबसूरत आर्मी अफसर विक्रम (अभिनव शुक्ल) से प्रेम करती है और शादी करना चाहती है। लेकिन, वह उलझी हुई है सदियों पुरानी परम्पराओं से, जो यह कहती हैं कि लड़की को अपने पिता की पसंद के लडके से शादी करनी चाहिए। दूसरी ओर वह अपनी वैचारिक और निर्णय लेने की स्वतंत्रता के अधीन आर्मी अफसर से शादी करना चाहती है। श्रुति क्या करेगी ! अपने पिता की इच्छा का पालन करेगी या अपने पसंदीदा आर्मी ऑफिस को चुनेगी। श्रुति की उलझन की परत दरपरत खोलेंगे गौतम गुलाटी, जो पहली बार इस शो को होस्ट कर रहे हैं। एमटीवी बिग ऍफ़ का प्रसारण एमटीवी पर ११ अक्टूबर से रविवार की शाम ७ बजे से होगा।
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Television
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Wednesday, 7 October 2015
क्या ६४ साल बाद होगा 'पाताल भैरवी' का रीमेक ?
एक मालन का बेटा उज्जैन की राजकुमारी को पहली नज़र में देखते ही प्रेम करने लगता है। वह उससे शादी करना चाहता है, लेकिन उज्जैन का राजा इस शादी से इंकार कर देता है। इस पर वह एक जादूगर के पास मदद के लिए जाता है। जादूगर के मन में उस लडके की पाताल भैरवी को बलि देकर जादुई प्रतिमा पाने की योजना है। इस प्रतिमा से वह अपनी सारी इच्छाएं पूरी कर सकता है। लेकिन, मालन का लड़का जादूगर की बलि दे कर पाताल भैरवी को खुश कर लेता है।
यह कहानी १५ मार्च १९५१ को रिलीज़ तेलुगु फिल्म 'पाताल भैरवी' की है। इस फिल्म में मालन के बेटे की भूमिका नंदीमुरी तारक रामाराव ने की थी। राजकुमारी की भूमिका मालती ने की थी। इस फंतासी फिल्म के संवादों, उच्च गुणवत्ता की अभिनय क्षमता और अद्भुत सेट्स ने फिल्म मेकिंग में नए आयाम स्थापित कर दिए थे। यह फिल्म दर्शकों को कल्पना के अनूठे संसार में ले जाती थी। फिल्म में घंटशाला का संगीत और कैमरा वर्क शानदार था। फिल्म के संवाद पिंगली नागेन्द्र राव ने लिखे थे। फिल्म के निर्देशक के वी रेड्डी थे। इस फिल्म ने न केवल तेलुगु सिनेमा में बल्कि भारतीय सिनेमा में नया ट्रेंड स्थापित कर दिया।
दक्षिण के क्या पूरे भारतीय सिनेमा में पातळ भैरवी के दबदबे का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि लम्बे समय तक किसी ने भी 'पाताल भैरवी' का किसी भाषा में रीमेक करने की कोशिश नहीं की। दक्षिण में तो आज भी इस फिल्म का रीमेक करने का प्रयास नहीं किया गया। अस्सी के दशक में जी० हनुमंतराव ने निर्देशन की कमान के बापैया को थमा कर हिंदी में 'पाताल भैरवी' का निर्माण किया था।
हिंदी 'पाताल भैरवी' में एनटी रामाराव वाली भूमिका यानि मालन के बेटे जीतेन्द्र बने थे। उस समय जीतेन्द्र दक्षिण के फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद थे। फिल्म में जयाप्रदा राजकुमारी इन्दुमति बनी थी। प्राण महाराजा विजय सिंह, अमजद खान विश्वनाथ चंचल और कादर खान मांत्रिक बने थे। फिल्म में सेक्सी सिल्क स्मिता का डांस था।प्रेमा नारायण का अंग प्रदर्शन था। डिंपल कपाडिया भी यक्ष कन्या बनी जीतेंद्र को अपने शरीर के विटामिन से तरसा रही थी। जादू था, पातळ लोक था, गायब होते भगवान् थे। कहने का मतलब यह कि फिल्म में सारा मसाला था।
लेकिन, सब बेहद घटिया किस्म का। हालाँकि, के० बपैया उस समय तक दिल और दीवार, टक्कर, बंदिश, मवाली और मकसद जैसी हिट फ़िल्में दे चुके थे। लेकिन, रामाराव की कल्ट फिल्म का रीमेक करने में वह बुरी तरह से नाकाम रहे। कादर खान के घटिया संवादों और कलाकारों के खराब अभिनय ने फिल्म को बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया। हिंदी रीमेक में जिस भूमिका को शक्ति कपूर ने किया था, मूल तेलुगु फिल्म में उसी भूमिका को तेलुगु के कॉमेडी एक्टर बालाकृष्ण ने किया था। उन्होंने इस खूबी से वह भूमिका की थी कि दर्शक उन्हें अंजी के नाम से याद करते थे।
बहरहाल, आज एन टी रामाराव की १९५१ की फिल्म 'पाताल भैरवी' का जिक्र इसलिए कि फिल्म का ६४ साल बाद रीमेक बनाने की तैयारी की जा रही है। रामाराव की तेलुगु फिल्म का तेलुगु रीमेक ही बनाया जायेगा। इस फिल्म से रामाराव के पोते मोक्षाग्न का तेलुगु फिल्म डेब्यू होगा। आज के ट्रेंड को देखते हुए फिल्म को अन्य भाषाओ में डब किया जा सकता है। मोक्षाग्न के पिता बालकृष्ण का इरादा फिल्म को भव्य रूप में बनाने का है। यह फिल्म 'बाहुबली' से आगे की फिल्म साबित हो सकती है। भविष्य बताएगा ६४ साल तक कल्ट फिल्म साबित होती रही 'पाताल भैरवी' का रीमेक पोते को किस ऊंचाई तक पहुंचा पाता है !
यह कहानी १५ मार्च १९५१ को रिलीज़ तेलुगु फिल्म 'पाताल भैरवी' की है। इस फिल्म में मालन के बेटे की भूमिका नंदीमुरी तारक रामाराव ने की थी। राजकुमारी की भूमिका मालती ने की थी। इस फंतासी फिल्म के संवादों, उच्च गुणवत्ता की अभिनय क्षमता और अद्भुत सेट्स ने फिल्म मेकिंग में नए आयाम स्थापित कर दिए थे। यह फिल्म दर्शकों को कल्पना के अनूठे संसार में ले जाती थी। फिल्म में घंटशाला का संगीत और कैमरा वर्क शानदार था। फिल्म के संवाद पिंगली नागेन्द्र राव ने लिखे थे। फिल्म के निर्देशक के वी रेड्डी थे। इस फिल्म ने न केवल तेलुगु सिनेमा में बल्कि भारतीय सिनेमा में नया ट्रेंड स्थापित कर दिया।
दक्षिण के क्या पूरे भारतीय सिनेमा में पातळ भैरवी के दबदबे का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि लम्बे समय तक किसी ने भी 'पाताल भैरवी' का किसी भाषा में रीमेक करने की कोशिश नहीं की। दक्षिण में तो आज भी इस फिल्म का रीमेक करने का प्रयास नहीं किया गया। अस्सी के दशक में जी० हनुमंतराव ने निर्देशन की कमान के बापैया को थमा कर हिंदी में 'पाताल भैरवी' का निर्माण किया था।
हिंदी 'पाताल भैरवी' में एनटी रामाराव वाली भूमिका यानि मालन के बेटे जीतेन्द्र बने थे। उस समय जीतेन्द्र दक्षिण के फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद थे। फिल्म में जयाप्रदा राजकुमारी इन्दुमति बनी थी। प्राण महाराजा विजय सिंह, अमजद खान विश्वनाथ चंचल और कादर खान मांत्रिक बने थे। फिल्म में सेक्सी सिल्क स्मिता का डांस था।प्रेमा नारायण का अंग प्रदर्शन था। डिंपल कपाडिया भी यक्ष कन्या बनी जीतेंद्र को अपने शरीर के विटामिन से तरसा रही थी। जादू था, पातळ लोक था, गायब होते भगवान् थे। कहने का मतलब यह कि फिल्म में सारा मसाला था।
लेकिन, सब बेहद घटिया किस्म का। हालाँकि, के० बपैया उस समय तक दिल और दीवार, टक्कर, बंदिश, मवाली और मकसद जैसी हिट फ़िल्में दे चुके थे। लेकिन, रामाराव की कल्ट फिल्म का रीमेक करने में वह बुरी तरह से नाकाम रहे। कादर खान के घटिया संवादों और कलाकारों के खराब अभिनय ने फिल्म को बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया। हिंदी रीमेक में जिस भूमिका को शक्ति कपूर ने किया था, मूल तेलुगु फिल्म में उसी भूमिका को तेलुगु के कॉमेडी एक्टर बालाकृष्ण ने किया था। उन्होंने इस खूबी से वह भूमिका की थी कि दर्शक उन्हें अंजी के नाम से याद करते थे।
बहरहाल, आज एन टी रामाराव की १९५१ की फिल्म 'पाताल भैरवी' का जिक्र इसलिए कि फिल्म का ६४ साल बाद रीमेक बनाने की तैयारी की जा रही है। रामाराव की तेलुगु फिल्म का तेलुगु रीमेक ही बनाया जायेगा। इस फिल्म से रामाराव के पोते मोक्षाग्न का तेलुगु फिल्म डेब्यू होगा। आज के ट्रेंड को देखते हुए फिल्म को अन्य भाषाओ में डब किया जा सकता है। मोक्षाग्न के पिता बालकृष्ण का इरादा फिल्म को भव्य रूप में बनाने का है। यह फिल्म 'बाहुबली' से आगे की फिल्म साबित हो सकती है। भविष्य बताएगा ६४ साल तक कल्ट फिल्म साबित होती रही 'पाताल भैरवी' का रीमेक पोते को किस ऊंचाई तक पहुंचा पाता है !
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साउथ सिनेमा
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
क्या लौट रहा है ऐतिहासिक-कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों का ज़माना !
क्या ऐतिहासिक और कॉस्ट्यूम फिल्मों का दौर शुरू हो रहा है। ऐसा सोचने के कारण है। इसके लिए ज़िम्मेदार है साउथ का सिनेमा। साल के मध्य में 'बाहुबली: द बेगिनिंग' ने पूरी दुनिया में अपनी धाक जमानी शुरू कर दी थी। इस फिल्म ने चकित किया था बॉलीवुड सिनेमा को। हालाँकि, बाहुबली को बड़े पैमाने पर रिलीज़ करने वाले करण जौहर थे। लेकिन, अपने कंटेंट के कारण बाहुबली का जादू दर्शकों के सर पर इस तरह बोला कि सलमान खान की फिल्म 'बजरंगी भाईजान' का जादू वैसा नहीं चढने पाया । अब २ अक्टूबर से तमिल फिल्म 'पुलि' हिंदी में डब हो कर रिलीज़ हो गई है। इसके बाद, रुद्रमादेवी आएगी। यह सभी कॉस्ट्यूम ड्रामा या ऐतिहासिक फिल्में है। दिसंबर में संजयलीला भंसाली पेशवा बाजीराव की कहानी 'बाजीराव मस्तानी' लेकर आएंगे। अगले साल बाहुबली का दूसरा भाग 'बाहुबली : द कंक्लूजन' रिलीज़ होगी। २०१६ में ही आशुतोष गोवारिकर प्रागैतिहासिक काल की पृष्ठभूमि वाली फिल्म 'मोहन जोदड़ो' लेकर हाज़िर होंगे। केतन मेहता भी कंगना रनौत को लेकर रानी लक्ष्मी बाई पर फिल्म बनाएंगे। साफ़ तौर पर ऐतिहासिक और कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों का दौर चलने जा रहा है।
इसमे कोई शक नहीं कि 'बाहुबली : द बेगिनिंग' ने अपने चकित करने वाले फंतासी दृश्यों और झिलमिलाती रंगीन भारी पोशाकों से दर्शकों को आकर्षित किया। आम तौर पर ऐतिहासिक फ़िल्में हिंदी दर्शकों को रास आती है। दरअसल, दर्शकों को अपना इतिहास देखना अच्छा लगता है। किताबों में पढ़े हुए कुछ ऐतिहासिक चरित्र जब सेलुलाइड पर उतरते हैं तो अपनी भव्यता के कारण दर्शकों को चकाचौंध कर देते हैं। इनका कथ्य भी प्रभावित करने वाला प्रेरणादाई होता है। १९२४ में बाबुराव पेंटर ने एक ऐतिहासिक फिल्म 'सति पद्मिनी' निर्देशित की थी। यह फिल्म १४ वी सदी के चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की थी, जिसकी एक झलक दिल्ली का सुलतान अलाउद्दीन ख़िलजी देख लेता और उसे पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण कर देता है। अब यह बात दीगर है कि ख़िलजी राजपूतों को तो हरा देता है। लेकिन पद्मिनी उसके हाथ आने से पहले ही जौहर कर लेती है। इस फिल्म को उस समय इंग्लैंड में बहुत दर्शक मिले। वेम्ब्ले एग्जिबिशन में इसे प्रदर्शित किया गया। सति पद्मिनी मूक फिल्म थी। लेकिन, बोलती फिल्मों की शुरुआत ही कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म 'आलमआरा' से हुई थी। यह एक राजकुमारी की प्रेम कहानी थी। मिनर्वा मूवीटोन के मालिक और अभिनेता निर्देशक सोहराब मोदी की यह मील का पत्थर साबित हुई । सोहराब मोदी की अन्य ऐतिहासिक फिल्मों में पुकार, सिकंदर, पृथ्वी बल्लभ और झाँसी की रानी उल्लेखनीय थी। झांसी की रानी हिंदुस्तान की पहली टैक्नीकलर फिल्म थी। वैसे, बॉलीवुड ने मुग़ल-काल पर फ़िल्में अधिक बनाई। अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ पसंदीदा करैक्टर साबित हुए।
ऐतिहासिक फिल्मों में महिला किरदारों को ख़ास अहमियत मिली। अकबर के बेटे जहांगीर की अनारकली से मोहब्बत फिल्म अनारकली और मुग़ल-ए-आज़म में हिट हुई। अनारकली का काल्पनिक चरित्र सेल्युलाइड पर जीवंत और अमर हो गया। मुग़ल-ए- आज़म में अकबर और जोधा का टकराव बेटे जहांगीर के कारण होता था। लेकिन, आशुतोष गोवारिकर ने फिल्म 'जोधा-अकबर में इसे प्रेम कहानी में तब्दील कर दिया। कमाल अमरोही की १९८३ में रिलीज़ हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र और परवीन बॉबी की फिल्म 'रज़िया सुल्तान' दिल्ली की सुल्तान रज़िया के जीवन पर थी। इस फिल्म में रज़िया और उसके गुलाम याकूत के प्रेम को ज़्यादा महत्व दिया गया था। इस लिहाज़ से १९६१ में देवेन्द्र गोयल की फिल्म 'रज़िया सुलतान' रज़िया के योद्धा और शासक करैक्टर के साथ न्याय करती थी। फिल्म में निरुपा रॉय ने रज़िया और कामरान ने याकूत की भूमिका की थी। ताजमहल की मुमताज़ महल शौहर शाहजहाँ द्वारा उसकी याद में बनाये गए ताज के कारण अमर हो गई। शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा पर भी इसी टाइटल के साथ फिल्म बनाई गई थी। सभी ऐतिहासिक फिल्मों में महिला किरदार अपने पुरुष किरदारों की टक्कर के थे।
तलवारबाज़ी की महारथी
ऐतिहासिक फिल्मों की नायिका बनने का मतलब है कि फुटेज ज़्यादा मिलना और तलवार भांजना। रज़िया सुल्तान की हेमा मालिनी के हाथों में शयन कक्ष के अलावा हर समय में तलवार हुआ करती थी। हेमा मालिनी को युद्ध के मैदान पर तलवार से स्टंट करते दिखाया गया था। संतोष सिवान की ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म अशोक में तलवारबाज़ी के सीन ज़बरदस्त थे। यह तलवारबाज़ी अशोक बने शाहरुख खान ने भी की थी और राजकुमारी कौरवाकी की भूमिका में करीना कपूर भी तलवार चला रही थी । गोल्डी बहल की फिल्म 'द्रोण' में प्रियंका चोपड़ा ने अभिषेक बच्चन की बॉडीगार्ड सोनिया के किरदार में सिख युद्ध अस्त्र गटका चला कर दर्शकों को चकित कर दिया था । सोहराब मोदी की फिल्म 'झाँसी की रानी' में अभिनेत्री मेहताब ने लक्ष्मीबाई के किरदार में खूब तलवारें भांजी थी। इसी साल रिलीज़ एस एस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली द बेगिनिंग' में महारानी शिवागामी बनी राम्या कृष्णन ने तलवार भांज कर अपनी बाजुओं की ताक़त का प्रदर्शन किया था। अब 'बाहुबली द कनक्लूजन' में अवंतिका के किरदार में तमन्ना भाटिया और देवसेना के किरदार में अनुष्का शेट्टी तलवारबाज़ी करती नज़र आ सकती हैं। इसी साल दिसंबर में रिलीज़ होने जा रही 'बाजीराव मस्तानी' में दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा ने तलवारबाज़ी की है। दीपिका पादुकोण ने तो धनुष उठा कर तीर भी छोड़े हैं। अगर कंगना रनौत ने केतन मेहता की फिल्म छोड़ी नहीं तो वह रानी लक्ष्मीबाई के किरदार में तलवारबाज़ी के हुनर दिखा सकती है।
जॉन अब्राहम १८ वी सदी के एक चर्चित करैक्टर पर एक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म बना रहे हैं। अभी फिल्म का नाम नहीं रखा गया है। यह फिल्म एक पुस्तक पर आधारित है, जिसके फिल्म निर्माण अधिकार निर्माता मधु मोंतेना ने खरीद लिए हैं। यह कौन सा किरदार होगा, इसका खुलासा जॉन अब्राहम नहीं करते। परन्तु इतना तय है कि वह फिल्म में योद्धा के किरदार में होंगे। इस रोल के लिए उन्हें खुद में चपलता लानी होगी। चीते जैसी पैंतरेबाज़ी सीखनी होगी। मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग भी लेनी है। खुद को १८ वी शताब्दी के उस वंशज में बदल लेना है। इस फिल्म का निर्देशन जॉन अब्राहम के दोस्त सबल शेखावत करेंगे। यह जॉन अब्राहम की पहली पीरियड फिल्म होगी। जॉन से अलग, ह्रितिक रोशन दूसरी बार कोई पीरियड फिल्म कर रहे होंगे। आशुतोष गोवारिकर की फिल्म अकबर में अकबर का किरदार सफलतापूर्वक करने वाले ह्रितिक रोशन के लिए प्रागैतिहासिक काल पर आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'मोहन जोदड़ों' के किरदार से खदु को जोड़ पाना मुश्किल होगा। ह्रितिक रोशन का लुक काफी आधुनिक है। जोधा अकबर में उन्हें इसका सामना करना पड़ा था। लेकिन, भारी कस्टयूम के पीछे उनकी यह कमी छिप गई थी। क्या वह मोहन जोदड़ो में इस
कमी से निजात पा लेंगे?
बॉलीवुड ने ऐतिहासिक फिल्मों में रोमांस को तरजीह दी है। इन फिल्मों में रोमांस भर देने से गीत-संगीत की अच्छी गुंजाईश हो जाती है। जहाँ एक तरफ एक्शन होता है, वहीँ रोमांस के फूल भी खिलते है। इससे इमोशनल दृश्य दर्शकों को विविधता देते हैं। रोमांस के ज़रिये ही दिलीप कुमार सलीम में रूप में आज भी याद किये जाते हैं। बीना रॉय और मधुबाला अनारकली के रूप में अमर हैं। ताजमहल का ज़िक्र करते ही फिल्म की मुमताज़ बीना रॉय याद आ जाती हैं। एक समय माला सिन्हा ने जहाँआरा फिल्म में जहाँआरा के किरदार में अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन किया था। महताब आज भी लक्ष्मी बाई के नाम से याद की जाती हैं। अब, जबकि संजयलीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में मोहब्बत के फूल खिल रहे हैं, दीपिका पादुकोण मस्तानी के किरदार के लिए बरसों याद की जाती रहेंगी।
इसमे कोई शक नहीं कि 'बाहुबली : द बेगिनिंग' ने अपने चकित करने वाले फंतासी दृश्यों और झिलमिलाती रंगीन भारी पोशाकों से दर्शकों को आकर्षित किया। आम तौर पर ऐतिहासिक फ़िल्में हिंदी दर्शकों को रास आती है। दरअसल, दर्शकों को अपना इतिहास देखना अच्छा लगता है। किताबों में पढ़े हुए कुछ ऐतिहासिक चरित्र जब सेलुलाइड पर उतरते हैं तो अपनी भव्यता के कारण दर्शकों को चकाचौंध कर देते हैं। इनका कथ्य भी प्रभावित करने वाला प्रेरणादाई होता है। १९२४ में बाबुराव पेंटर ने एक ऐतिहासिक फिल्म 'सति पद्मिनी' निर्देशित की थी। यह फिल्म १४ वी सदी के चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की थी, जिसकी एक झलक दिल्ली का सुलतान अलाउद्दीन ख़िलजी देख लेता और उसे पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण कर देता है। अब यह बात दीगर है कि ख़िलजी राजपूतों को तो हरा देता है। लेकिन पद्मिनी उसके हाथ आने से पहले ही जौहर कर लेती है। इस फिल्म को उस समय इंग्लैंड में बहुत दर्शक मिले। वेम्ब्ले एग्जिबिशन में इसे प्रदर्शित किया गया। सति पद्मिनी मूक फिल्म थी। लेकिन, बोलती फिल्मों की शुरुआत ही कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म 'आलमआरा' से हुई थी। यह एक राजकुमारी की प्रेम कहानी थी। मिनर्वा मूवीटोन के मालिक और अभिनेता निर्देशक सोहराब मोदी की यह मील का पत्थर साबित हुई । सोहराब मोदी की अन्य ऐतिहासिक फिल्मों में पुकार, सिकंदर, पृथ्वी बल्लभ और झाँसी की रानी उल्लेखनीय थी। झांसी की रानी हिंदुस्तान की पहली टैक्नीकलर फिल्म थी। वैसे, बॉलीवुड ने मुग़ल-काल पर फ़िल्में अधिक बनाई। अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ पसंदीदा करैक्टर साबित हुए।
ऐतिहासिक फिल्मों में महिला किरदारों को ख़ास अहमियत मिली। अकबर के बेटे जहांगीर की अनारकली से मोहब्बत फिल्म अनारकली और मुग़ल-ए-आज़म में हिट हुई। अनारकली का काल्पनिक चरित्र सेल्युलाइड पर जीवंत और अमर हो गया। मुग़ल-ए- आज़म में अकबर और जोधा का टकराव बेटे जहांगीर के कारण होता था। लेकिन, आशुतोष गोवारिकर ने फिल्म 'जोधा-अकबर में इसे प्रेम कहानी में तब्दील कर दिया। कमाल अमरोही की १९८३ में रिलीज़ हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र और परवीन बॉबी की फिल्म 'रज़िया सुल्तान' दिल्ली की सुल्तान रज़िया के जीवन पर थी। इस फिल्म में रज़िया और उसके गुलाम याकूत के प्रेम को ज़्यादा महत्व दिया गया था। इस लिहाज़ से १९६१ में देवेन्द्र गोयल की फिल्म 'रज़िया सुलतान' रज़िया के योद्धा और शासक करैक्टर के साथ न्याय करती थी। फिल्म में निरुपा रॉय ने रज़िया और कामरान ने याकूत की भूमिका की थी। ताजमहल की मुमताज़ महल शौहर शाहजहाँ द्वारा उसकी याद में बनाये गए ताज के कारण अमर हो गई। शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा पर भी इसी टाइटल के साथ फिल्म बनाई गई थी। सभी ऐतिहासिक फिल्मों में महिला किरदार अपने पुरुष किरदारों की टक्कर के थे।
तलवारबाज़ी की महारथी
ऐतिहासिक फिल्मों की नायिका बनने का मतलब है कि फुटेज ज़्यादा मिलना और तलवार भांजना। रज़िया सुल्तान की हेमा मालिनी के हाथों में शयन कक्ष के अलावा हर समय में तलवार हुआ करती थी। हेमा मालिनी को युद्ध के मैदान पर तलवार से स्टंट करते दिखाया गया था। संतोष सिवान की ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म अशोक में तलवारबाज़ी के सीन ज़बरदस्त थे। यह तलवारबाज़ी अशोक बने शाहरुख खान ने भी की थी और राजकुमारी कौरवाकी की भूमिका में करीना कपूर भी तलवार चला रही थी । गोल्डी बहल की फिल्म 'द्रोण' में प्रियंका चोपड़ा ने अभिषेक बच्चन की बॉडीगार्ड सोनिया के किरदार में सिख युद्ध अस्त्र गटका चला कर दर्शकों को चकित कर दिया था । सोहराब मोदी की फिल्म 'झाँसी की रानी' में अभिनेत्री मेहताब ने लक्ष्मीबाई के किरदार में खूब तलवारें भांजी थी। इसी साल रिलीज़ एस एस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली द बेगिनिंग' में महारानी शिवागामी बनी राम्या कृष्णन ने तलवार भांज कर अपनी बाजुओं की ताक़त का प्रदर्शन किया था। अब 'बाहुबली द कनक्लूजन' में अवंतिका के किरदार में तमन्ना भाटिया और देवसेना के किरदार में अनुष्का शेट्टी तलवारबाज़ी करती नज़र आ सकती हैं। इसी साल दिसंबर में रिलीज़ होने जा रही 'बाजीराव मस्तानी' में दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा ने तलवारबाज़ी की है। दीपिका पादुकोण ने तो धनुष उठा कर तीर भी छोड़े हैं। अगर कंगना रनौत ने केतन मेहता की फिल्म छोड़ी नहीं तो वह रानी लक्ष्मीबाई के किरदार में तलवारबाज़ी के हुनर दिखा सकती है।
जॉन अब्राहम १८ वी सदी के एक चर्चित करैक्टर पर एक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म बना रहे हैं। अभी फिल्म का नाम नहीं रखा गया है। यह फिल्म एक पुस्तक पर आधारित है, जिसके फिल्म निर्माण अधिकार निर्माता मधु मोंतेना ने खरीद लिए हैं। यह कौन सा किरदार होगा, इसका खुलासा जॉन अब्राहम नहीं करते। परन्तु इतना तय है कि वह फिल्म में योद्धा के किरदार में होंगे। इस रोल के लिए उन्हें खुद में चपलता लानी होगी। चीते जैसी पैंतरेबाज़ी सीखनी होगी। मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग भी लेनी है। खुद को १८ वी शताब्दी के उस वंशज में बदल लेना है। इस फिल्म का निर्देशन जॉन अब्राहम के दोस्त सबल शेखावत करेंगे। यह जॉन अब्राहम की पहली पीरियड फिल्म होगी। जॉन से अलग, ह्रितिक रोशन दूसरी बार कोई पीरियड फिल्म कर रहे होंगे। आशुतोष गोवारिकर की फिल्म अकबर में अकबर का किरदार सफलतापूर्वक करने वाले ह्रितिक रोशन के लिए प्रागैतिहासिक काल पर आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'मोहन जोदड़ों' के किरदार से खदु को जोड़ पाना मुश्किल होगा। ह्रितिक रोशन का लुक काफी आधुनिक है। जोधा अकबर में उन्हें इसका सामना करना पड़ा था। लेकिन, भारी कस्टयूम के पीछे उनकी यह कमी छिप गई थी। क्या वह मोहन जोदड़ो में इस
कमी से निजात पा लेंगे?
बॉलीवुड ने ऐतिहासिक फिल्मों में रोमांस को तरजीह दी है। इन फिल्मों में रोमांस भर देने से गीत-संगीत की अच्छी गुंजाईश हो जाती है। जहाँ एक तरफ एक्शन होता है, वहीँ रोमांस के फूल भी खिलते है। इससे इमोशनल दृश्य दर्शकों को विविधता देते हैं। रोमांस के ज़रिये ही दिलीप कुमार सलीम में रूप में आज भी याद किये जाते हैं। बीना रॉय और मधुबाला अनारकली के रूप में अमर हैं। ताजमहल का ज़िक्र करते ही फिल्म की मुमताज़ बीना रॉय याद आ जाती हैं। एक समय माला सिन्हा ने जहाँआरा फिल्म में जहाँआरा के किरदार में अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन किया था। महताब आज भी लक्ष्मी बाई के नाम से याद की जाती हैं। अब, जबकि संजयलीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में मोहब्बत के फूल खिल रहे हैं, दीपिका पादुकोण मस्तानी के किरदार के लिए बरसों याद की जाती रहेंगी।
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फिल्म पुराण
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पैंसठ साल के पीनट्स बच्चों के बीच आज भी जवान
पीनट्स ६५ साल के हो गए। चार्ल्स एमओ शुल्ज़ की रेखांकित कॉमिक स्ट्रिप 'पीनट्स' का जन्म २ अक्टूबर १९५० को हुआ था। रेखाचित्र पीनट्स की पहली स्ट्रिप में चार्ली ब्राउन, शेर्मी और पैटी किरदार थे। पहली स्ट्रिप के प्रकाशन के दो दिन बाद इसमे एक छोटा शिकारी कुत्ता स्नूपी जोड़ा गया। आगे चल कर इसमे कई नए रेखांकन चरित्र जुड़ते चले गए। इस स्ट्रिप के दूसरे मुख्य रेखा चित्र में वायलेट ग्रे, स्क्रोएडर, लूसी वान पेट, लीनस वान पेट, पिग-पेन, सैली ब्राउन, फ्रीडा, वुडस्टॉक, पिपरमिंट पैटी, फ्रेंक्लिन, मर्सी, आदि उल्लेखनीय हैं। यह कॉमिक स्ट्रिप लगभग ५० साल तक लगातार प्रत्येक रविवार प्रकाशित होती रही। १३ फरवरी २००० के बाद पुरानी स्ट्रिप्स को फिर फिर चलाया गया। इस दौरान १७, ८९७ पीनट्स स्ट्रिप्स का प्रकाशन हुआ। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है की दुनिया २६०० समाचारपत्रों में इसका प्रकाशन हुआ। इसकी पाठक संख्या दुनिया के ७५ देशों में ३५५ मिलियन पहुँच गई थी। इसका २१ भाषाओँ में अनुवाद हुआ और शुल्ज़ की एक बिलियन डॉलर की कमाई हुई। कॉमिक स्ट्रिप्स से पीनट्स टेलीविज़न तक पहुंचे। अ चार्ली ब्राउन क्रिसमस और इट्स द ग्रेट पम्पकिन, चार्ली ब्राउन ने या तो एमी अवार्ड्स जीते या नॉमिनेशन मिला। जहाँ तक इस लोकप्रिय स्ट्रिप पर फिल्मों की बात की जाये तो इस स्ट्रिप पर सीबीएस की फिल्म प्रोडक्शन कंपनी सिनेमा सेंटर फिल्म्स ने दो फ़िल्में बनाई। पहली फिल्म 'अ बॉय नेम्ड चार्ली ब्राउन' ४ दिसंबर १९६९ को रिलीज़ हुई। इसके बाद ९ अगस्त १९७२ को 'स्नूपी, कम होम' का प्रदर्शन हुआ। दूसरी दो फ़िल्में 'बॉन वॉयेज, चार्ली ब्राउन' और 'रेस ऑफ़ योर लाइफ, चार्ली ब्राउन' का निर्माण पैरामाउंट पिक्चर्स द्वारा किया गया। अब इस लोकप्रिय स्ट्रिप को पांचवी बार सेलुलाइड पर ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स के एनीमेशन स्टूडियो ब्लू स्काई स्टूडियोज द्वारा उतारा जा रहा है। 'द पीनट्स मूवी' टाइटल के साथ यह फिल्म ६ नवंबर २०१५ को रिलीज़ हो रही है। इस ३ डी कंप्यूटर-एनिमेटेड कॉमेडी फिल्म का निर्देशन स्टीव मार्टिनो कर रहे हैं। 'द पीनट्स मूवी' के निर्माण में एक सौ मिलियन डॉलर खर्च हुए हैं।
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स्पाइडर-मैन रिबूट में मालूम हो जाएगी स्पाइडर-मैन की उम्र
पीटर पार्कर एक बार फिर हाई स्कूल में पढने जा रहा है। पीटर पार्कर ही दुनिया को बचाने वाला स्पाइडर-मैन है। यह पीटर पार्कर की घर वापसी भी है। जी हाँ, स्पाइडर-मैन सीरीज को रिबूट किया जा रहा है। इस रिबूट फिल्म को सोनी पिक्चर्स और मार्वल स्टूडियोज मिल कर बना रहे हैं। स्पाइडर-मैन मूल रूप से मार्वल कॉमिक्स का ही एक चरित्र है। इस पर फिल्म बनाने के अधिकार कई स्टूडियोज के बाद सोनी पिक्चर्स एंटरटेनमेंट को १९८५ में मिले। इस सुपरमैन किरदार पर सोनी ने पांच फ़िल्में बनाई। इनमे से पहली तीन फ़िल्में सैम रैमी ने निर्देशित की तथा बाकी दो फिल्म मार्क वेब ने। फरवरी २०१५ में डिज्नी, मार्वल स्टूडियोज और सोनी पिक्चर्स ने एक संयुक्त बयान में स्पाइडर-मैन की घर वापसी यानि मार्वल स्टूडियोज के पास जाने का ऐलान किया। लेकिन, रिबूट फिल्म का निर्माण तीनो स्टूडियोज करेंगे। छटी रिबूट फिल्म का निर्देशन जॉन वाट कर रहे हैं। इस फिल्म में १५ साल के पीटर पार्कर का रोल १९ साल के एक्टर टॉम हॉलैंड कर रहे हैं। लेकिन, यह 'द इम्पॉसिबल' और 'इनटू द हार्ट ऑफ़ द सी' के एक्टर टॉम हॉलैंड का पीटर पार्कर के किरदार में डेब्यू नहीं होगा। टॉम हॉलैंड को २०१६ में रिलीज़ होने जा रही फिल्म 'कैप्टेन अमेरिका: सिविल वॉर' में पीटर पार्कर/स्पाइडर-मैन के किरदार में देखा जाएगा। लेकिन, स्पाइडर-मैन रिबूट फिल्म में पीटर पार्कर की सही उम्र का ऐलान हो जायेगा कि पीटर पार्कर १५ साल का है । जबकि, अब तक पीटर पार्कर की उम्र को लेकर अनुमान ही लगाए जाते थे।
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फार क्राई प्राइमल का ट्रेलर
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