इस साल की शुरू में, बॉलीवुड फिल्म निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली को राजस्थान में अपनी काल्पनिक-ऐतिहासिक-मेलोड्रामा फिल्म पद्मावती की शूटिंग कैंसिल कर मुम्बई वापस लौटना पड़ा । फिल्म में रानी पद्मावती के किरदार को तोड़-मरोड़ का पेश किया जा रहा है, का आरोप लगाते हुए श्री राजपूत करणी सेना ने शूटिंग स्थल पर भंसाली पर आक्रमण कर दिया। उनके बाल खींचे और कथित तौर पर थप्पड़ मारे। पद्मावती को लेकर यह विवाद उठा था इस अफवाह के बाद कि रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच रोमांटिक दृश्य फिल्माया जा रहा है। पहले शूटिंग शिड्यूल के साथ शुरू हुआ पद्मिनी-अलाउद्दीन खिलजी विवाद आज भी कायम है।
अथ पद्मावती कथा ?
इतिहास की किताबों में पढ़ें तो पद्मावती का विवाद से परे नज़र आता है। वह चित्तोड़ की राजा रावल रतन सिंह की दूसरी पत्नी थी। जायसी और कुछ दूसरे सन्दर्भों से पता चलता है कि दिल्ली के सुल्तान को पद्मावती की एक झलक देखने को मिली थी। वह उसे देख कर कामुक हो उठा और उसने पद्मिनी को पाने की कोशिशें शुरू कर दी। इसी का परिणाम चित्तोड़ पर खिलजी का आक्रमण था। इस युद्ध में रतन सिंह की पराजय हुई और वह युद्ध मे मारे गये। यह खबर सुन कर रानी पद्मिनी ने एक आक्रान्ता के हाथों अपनी इज्जत लुटाने के बजाय जौहर करना उचित समझा। सामूहिक चिताए जलवा कर रानी किले की तमाम औरतों के साथ धधकी अग्नि में कूद पड़ी। रानी पद्मिनी की दंतकथा पद्मिनी की यही जौहर गाथा है। संजय लीला भंसाली को ऐसे ऐतिहासिक-काल्पनिक चरित्रों को अपनी कल्पनाशीलता, भव्यता, महंगे वस्त्र-आभरणों और संगीत से सजा कर पेश करने का शौक है। गोलियों की रासलीला : रामलीला के बाद बनाई गई फिल्म बाजीराव मस्तानी उनकी इसी मंशा का चित्रण थी।
क्यों और कैसे विवादों में फंसी पद्मावती ?
संजय लीला भंसाली को रोमांस भाता है। उनकी रोमांटिक फिल्मों की भी खासियत होती है कि उनके नारी चरित्र मज़बूत होते हैं। हम दिल दे चुके सनम से लेकर बाजीराव-मस्तानी तक उनके तमाम चरित्र इसकी पुष्टि करते हैं। भंसाली की फिल्मों के रोमांटिक दृश्य रूमानी होते हैं। वह स्वप्न जैसे प्रतीत होते हैं। रोमांस में वासना नहीं, गहराई होती है। अपनी फिल्म में रोमांस और ड्रामा दिखाने के लिए वह आवश्यक स्वतंत्रता लेने से भी नहीं हिचकते। मसलन, उन्होंने फिल्म देवदास में चंद्रमुखी और पारो का युगल डांस डोला डोला रे डाल दिया था, जबकि मूल कथा में चंद्रमुखी और पारो कभी मिले ही नहीं। उस समय भी ठाकुर बिरादरी ने एक ठकुरानी के यों एक वैश्या के साथ नृत्य करने का विरोध किया था। फिल्म बाजीराव मस्तानी में भी उन्होंने मस्तानी और काशीबाई के बीच नृत्य दिखा दिया था। उनकी इसी आदत ने उन्हें राजस्थान के राजपूतों के क्रोध का शिकार बना दिया था। अख़बारों की खबरों के अनुसार राजस्थान शिड्यूल के दौरान खुद भंसाली ने बातचीत में कहा था कि वह रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी के बीच एक रोमांटिक गीत फिल्माने जा रहे हैं। यह खबर आग की तरह राजपूत बिरादरी में फ़ैल गई और वही हुआ जिसके कल्पना भंसाली के समर्थक नहीं कर रहे होंगे।
करणी सेना या लडैती सेना !
राजस्थान की संस्कृति और परंपरा की कथित सरंक्षक राजपूत करणी सेना के लिए यह खबर अपने संगठन की इमेज चमकाने के लिहाज़ से काफी थी। इंडिया टुडे द्वारा किये गए एक स्टिंग में यह संगठन महाराष्ट्र के राज ठाकरे के संगठन जैसा साबित होता था, जो जबरन धन उगाही के लिए इस प्रकार के बवाल खड़े करते रहते हैं। इस सेना का भारत के दूसरे हिस्से मे ज़िक्र कुछ इसी प्रकार के संस्कृति की रक्षा के लिए बवाल में ही लिया जाता है। इस सेना ने २००८ में आशुतोष गोवारिकर द्वारा जोधा बाई को अकबर की बीवी बताये जाने पर भी इसी प्रकार का बवाल मचाया था। गोवारिकर के सेट तोड़ फोड़ की गई। आशुतोष गोवारिकर को मार डालने की धमकी भी दी गई। हालाँकि, गोवारिकर ने फिल्म पूरी की। यह फिल्म पूरे भारत में रिलीज़ हो कर सफल भी हुई । लेकिन, राजस्थान के लोग जोधा अकबर को नहीं देख सके । २०१४ में भी करणी सेना इ ने एकता कपूर के सीरियल जोधा अकबर को लेकर बवाल काटा था। इसके सदस्यों ने जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में हिस्सा लेने पहुंची सीरियल की निर्माता एकता कपूर के खिलाफ वापस जाओ के नारे लगाए और पानी की बॉटल्स फेंकी।
रानी पद्मावती या पद्मिनी पर फ़िल्में और सीरियल
१३ वी सदी की जो रानी, आज इक्कीसवीं सदी में तहलका मचाये हुए हैं, उस पर हिंदी फिल्मों के इतिहास में इक्का दुक्का फ़िल्में ही बनी हैं। इस लिहाज़ से एक तमिल फिल्म उल्लेखनीय है। डायरेक्टर चित्रापू नारायणमूर्ति निर्देशित फिल्म चित्तौड़ रानी पद्मिनी १९६३ में रिलीज़ हुई थी। फिल्म में वैजयंतीमाला ने रानी पद्मावती, शिवाजी गणेशन ने चित्तौड़ के राजा रतन सिंह और उस समय के प्रमुख विलेन एमएन नाम्बियार ने अलाउद्दीन खिलजी का किरदार किया था। इस फिल्म में गीतों की भरमार थी। जो फिल्म की कहानी के अनुरूप नहीं थी। इसलिए फिल्म असफल रही। हिंदी में जसवंत झावेरी ने १९६१ में फिल्म जय चितौड़ बनाने के बाद १९६४ में रिलीज़ महारानी पद्मिनी में जायसी के पद्मावत को पूरी गंभीरता और ईमानदारी से परदे पर उतारा था। महारानी पद्मिनी (१९६४) में जयराज, अनीता गुहा और सज्जन ने राणा रतन सिंह, रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी का किरदार किया था। इस फिल्म में झावेरी ने खिलजी को बतौर विलेन नहीं दिखाया था। फिल्म में खिलजी पद्मिनी माफ़ी मांगता है। पद्मिनी उसे माफ़ कर देती और खुद जौहर के लेती है। इस फिल्म के निर्माण में तत्कालीन राजस्थान सरकार ने भरपूर सहयोग किया था। सोनी पर सीरियल चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का जौहर २००९ में प्रसारित हुआ था। पद्मावती से पहले संजय लीला भंसाली ने ओपेरा पद्मावती का निर्देशन किया था।
भंसाली भी जिम्मेदार
पद्मावती को लेकर जो बवाल मचा है, उसके लिए काफी हद तक संजय लीला भंसाली का विवादित ट्रैक रिकॉर्ड भी है। देवदास चंद्रमुखी और पारो के नृत्य को लेकर बंगाल में विरोध के सुर उठे थे। गोलियों की रासलीला राम-लीला का पहला नाम राम-लीला को लेकर भी विवाद हुआ था। इसी के बाद भंसाली ने फिल्म का शीर्षक राम-लीला से बदल कर गोलियों की रासलीला : राम-लीला रखा गया। बाजीराव मस्तानी पर मस्तानी के वंशजों ने सवाल उठाये थे। पद्मावती में भी संजय लीला भंसाली ने यही लिबर्टी लेने की कोशिश में पद्मिनी-खिलजी रोमांस गीत फिल्माने का ऐलान कर दिया था। भंसाली के नकारने के बावजूद फिल्म का विरोध इस लिए भी हो रहा है कि संजय लीला भंसाली ने गोलियों की रासलीला राम-लीला और बाजीराव मस्तानी में गर्मागर्म करने वाले दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह के जोड़े को पद्मिनी और खिलजी का किरदार दिया है। लोगों को सहज विश्वास नहीं होता कि एक रोमांटिक जोड़ा ऐसे विलेन ट्रैक में इस्तेमाल हो सकता है।
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