पद्मावती की रिलीज़ अनिश्चित काल तक टल गई है। पद्मावती का विरोध कर रहे कुछ ग्रुप अपनी पीठ ठोंक सकते हैं कि उनका विरोध काम आ गया। फिल्म की रिलीज़ टल गई। लेकिन, पद्मावती की १ दिसंबर की रिलीज़ के टलने का सेहरा ठाकुर-राजपूत विरोध के सर बांधना ज़ल्दबाज़ी होगी। यह तब माना जाता, जब पद्मावती सेंसर हो जाती। पद्मावती तो अभी सेंसर ही नहीं हुई है। सच कहा जाये तो अभी फिल्म के फाइनल प्रिंट ही नहीं तैयार हुआ है। अगर, पद्मावती के टलने का श्रेय सेंसर बोर्ड को ख़ास तौर पर इसके चीफ को दिया जाये तो ज़्यादा ठीक होगा। लेकिन, यह भी फिल्म निर्माताओं की करनी का नतीजा है।
पद्मावती के निर्माताओं ने सेंसर बोर्ड के चीफ प्रसून जोशी को नाराज़ कर दिया है। सेंसर बोर्ड ने पद्मावती को कागज़ी कार्यवाही पूरी न होने के कारण वापस कर दिया गया था। फिल्म के निर्माताओं ने तेजी दिखा कर फिल्म को फिर सेंसर बोर्ड के पास भेजने के बजाय न्यूज़ चैनलों के पत्रकारों की प्राइवेट स्क्रीनिंग करानी शुरू कर दी। कवि ह्रदय प्रसून जोशी को यह हरकत सेंसर पर दबाव डालने जैसी लगी। उन्होंने सिनेमेटोग्राफ एक्ट १९५२ के रूल ४१ को कड़ाई से लागू करवा दिया। इस रूल के अनुसार किसी भी फिल्म को पारित करने के लिए ६८ दिनों की ज़रुरत होती है। मतलब यह कि फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों को ६८ दिन पहले सेंसर को भेज दें। सेंसर उन पर यथा समय विचार कर ६८ दिनों के अंदर पारित कर देगा।
सेंसर के द्वारा इस रूल का कड़ाई से पालन कराने का पहला शिकार हुए हॉलीवुड की फिल्म जस्टिस लीग के हिंदी, तमिल और तेलुगु संस्करण। वार्नर ब्रदर्स की फिल्म जस्टिस लीग का अंग्रेजी संस्करण पारित हो गया था। लेकिन, जिस समय हिंदी, तमिल और तेलुगु संस्करण सेंसर के पास भेजे गए, बोर्ड ने ६८ दिनों का नियम लागू कर दिया। इसके फलस्वरूप जस्टिस लीग के यह संस्करण लटक गए। वार्नर ब्रदर्स के अधिकारियों ने लाख कोशिशे की कि सेंसर इन्हे इस आधार पर पारित कर दे कि इंग्लिश जस्टिस लीग पारित हो गई थी, लेकिन सेंसर बोर्ड टस से मस नहीं हुआ। जबकि, हिंदी, तमिल और तेलुगु फिल्मों के टिकटों की एडवांस बुकिंग भी हो चुकी थी। इसके परिणामस्वरुप इस शुक्रवार तमाम सिनेमाघरों में हिंदी, तमिल और तेलुगु के बजाय इंग्लिश जस्टिस लीग दिखाई गई। क्या ठाकुरों-राजपूतों ने जस्टिस लीग के भारतीय संस्करणों का विरोध किया था ? नहीं न।
लेकिन, जस्टिस लीग के भारतीय भाषाओं के संस्करण न रिलीज़ हो पाना बॉलीवुड के लिए चिंता की बात है। अगर, सेंसर बोर्ड नियमों में ढील नहीं दी, तो वह तमाम फ़िल्मे जो दिसंबर मे रिलीज़ होनी हैं, उनमे से काफी रिलीज़ नहीं हो पाएंगी। यह बड़ी फिल्मों के निर्माताओं के लिए चिंता की बात है। अभी तक वह थोड़ा एडवांस प्रिंट भेज कर फिल्म रिलीज़ डेट से पहले पारित करवा लेते थे। लेकिन, अब ऐसा नहीं हो सकेगा। ऐसे में दिसंबर में रिलीज़ हो रही दो बड़ी फिल्मों पद्मावती और टाइगर ज़िंदा है की रिलीज़ पर खतरा मंडरा रहा था । पद्मावती को सेंसर बोर्ड कागज़ी खानापूर्ति न होने के कारण वापस कर चुका था । पद्मावती सेंसर बोर्ड की ६८ दिन की सीमा से बाहर थी। इसलिए, इसके १ दिसंबर को रिलीज़ होने का सवाल ही नहीं उठता था । फिल्म खानापूर्ति के बाद फिर सेंसर के लिए भेजी जाती, लाइन में फंस ही जाती । इसलिए,पद्मावती की रिलीज़ टालना वायाकॉम १८ की मज़बूरी थी। इस समय सेंसर के पास २०० फ़िल्में सेंसर के लिए पड़ी है। इनमे से कुछ फ़िल्में पारित भी हो गई है। सेंसर बोर्ड को टीवी सीरियल, विज्ञापन, जिंगल, वीडियो फ़िल्में भी पारित करनी होती हैं। ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन के लिए बुक कराने के नियम का नतीज़ा है कि लाइन तोड़ कर किसी फिल्म का पारित किया जाना संभव ही नहीं है। इस लिहाज़ से टाइगर ज़िंदा है की हालत ज़्यादा खराब है। यह फिल्म २२ दिसंबर को रिलीज़ होनी है। फिल्म की शूटिंग ही कुछ समय पहले ही पूरी हो सकी है। अब, जब यह फिल्म सेंसर के पास भेजी जाएगी, तब यह भी डेड लाइन की लाइन में अटक जाएगी। ऐसे में ज़ाहिर है कि दिसंबर में टाइगर ज़िंदा है भी रिलीज़ नहीं हो पाएगी। अब इन फिल्मों को जनवरी या इसके बाद के लिए टाला जाना होगा। शायद, यह फ़िल्में फरवरी में ही रिलीज़ हो। क्योंकि, जनवरी में कई बड़ी फ़िल्में रिलीज़ होनी है।
ऐसे समय में बॉलीवुड को वह पहलाज निहलानी याद आ रहे हैं, जिन्हे बॉलीवुड हर रोज कोसता रहता था, उन्हें हटाने की मांग करता रहता था। पहलाज खुद भी फिल्म निर्माता थे। वह बड़े फिल्म निर्माताओं की कठिनाइयों को समझते हुए रूल से हट कर फ़िल्में पारित करवा देते थे। जबकि, प्रसून जोशी तो मशक्कत करने के बावजूद किसी से मिल नहीं रहे। ऐसे में जब पत्रकारों ने पहलाज निहलानी से यह बात कही तो उनका जवाब बड़ा दिलचस्प था, "जब छोटी बहु घर आती है तो सास को बड़ी बहु काम ज़हरीली लगती है।" इसे कहते है पहलाज निहलानी का दहला।
पद्मावती के निर्माताओं ने सेंसर बोर्ड के चीफ प्रसून जोशी को नाराज़ कर दिया है। सेंसर बोर्ड ने पद्मावती को कागज़ी कार्यवाही पूरी न होने के कारण वापस कर दिया गया था। फिल्म के निर्माताओं ने तेजी दिखा कर फिल्म को फिर सेंसर बोर्ड के पास भेजने के बजाय न्यूज़ चैनलों के पत्रकारों की प्राइवेट स्क्रीनिंग करानी शुरू कर दी। कवि ह्रदय प्रसून जोशी को यह हरकत सेंसर पर दबाव डालने जैसी लगी। उन्होंने सिनेमेटोग्राफ एक्ट १९५२ के रूल ४१ को कड़ाई से लागू करवा दिया। इस रूल के अनुसार किसी भी फिल्म को पारित करने के लिए ६८ दिनों की ज़रुरत होती है। मतलब यह कि फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों को ६८ दिन पहले सेंसर को भेज दें। सेंसर उन पर यथा समय विचार कर ६८ दिनों के अंदर पारित कर देगा।
सेंसर के द्वारा इस रूल का कड़ाई से पालन कराने का पहला शिकार हुए हॉलीवुड की फिल्म जस्टिस लीग के हिंदी, तमिल और तेलुगु संस्करण। वार्नर ब्रदर्स की फिल्म जस्टिस लीग का अंग्रेजी संस्करण पारित हो गया था। लेकिन, जिस समय हिंदी, तमिल और तेलुगु संस्करण सेंसर के पास भेजे गए, बोर्ड ने ६८ दिनों का नियम लागू कर दिया। इसके फलस्वरूप जस्टिस लीग के यह संस्करण लटक गए। वार्नर ब्रदर्स के अधिकारियों ने लाख कोशिशे की कि सेंसर इन्हे इस आधार पर पारित कर दे कि इंग्लिश जस्टिस लीग पारित हो गई थी, लेकिन सेंसर बोर्ड टस से मस नहीं हुआ। जबकि, हिंदी, तमिल और तेलुगु फिल्मों के टिकटों की एडवांस बुकिंग भी हो चुकी थी। इसके परिणामस्वरुप इस शुक्रवार तमाम सिनेमाघरों में हिंदी, तमिल और तेलुगु के बजाय इंग्लिश जस्टिस लीग दिखाई गई। क्या ठाकुरों-राजपूतों ने जस्टिस लीग के भारतीय संस्करणों का विरोध किया था ? नहीं न।
लेकिन, जस्टिस लीग के भारतीय भाषाओं के संस्करण न रिलीज़ हो पाना बॉलीवुड के लिए चिंता की बात है। अगर, सेंसर बोर्ड नियमों में ढील नहीं दी, तो वह तमाम फ़िल्मे जो दिसंबर मे रिलीज़ होनी हैं, उनमे से काफी रिलीज़ नहीं हो पाएंगी। यह बड़ी फिल्मों के निर्माताओं के लिए चिंता की बात है। अभी तक वह थोड़ा एडवांस प्रिंट भेज कर फिल्म रिलीज़ डेट से पहले पारित करवा लेते थे। लेकिन, अब ऐसा नहीं हो सकेगा। ऐसे में दिसंबर में रिलीज़ हो रही दो बड़ी फिल्मों पद्मावती और टाइगर ज़िंदा है की रिलीज़ पर खतरा मंडरा रहा था । पद्मावती को सेंसर बोर्ड कागज़ी खानापूर्ति न होने के कारण वापस कर चुका था । पद्मावती सेंसर बोर्ड की ६८ दिन की सीमा से बाहर थी। इसलिए, इसके १ दिसंबर को रिलीज़ होने का सवाल ही नहीं उठता था । फिल्म खानापूर्ति के बाद फिर सेंसर के लिए भेजी जाती, लाइन में फंस ही जाती । इसलिए,पद्मावती की रिलीज़ टालना वायाकॉम १८ की मज़बूरी थी। इस समय सेंसर के पास २०० फ़िल्में सेंसर के लिए पड़ी है। इनमे से कुछ फ़िल्में पारित भी हो गई है। सेंसर बोर्ड को टीवी सीरियल, विज्ञापन, जिंगल, वीडियो फ़िल्में भी पारित करनी होती हैं। ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन के लिए बुक कराने के नियम का नतीज़ा है कि लाइन तोड़ कर किसी फिल्म का पारित किया जाना संभव ही नहीं है। इस लिहाज़ से टाइगर ज़िंदा है की हालत ज़्यादा खराब है। यह फिल्म २२ दिसंबर को रिलीज़ होनी है। फिल्म की शूटिंग ही कुछ समय पहले ही पूरी हो सकी है। अब, जब यह फिल्म सेंसर के पास भेजी जाएगी, तब यह भी डेड लाइन की लाइन में अटक जाएगी। ऐसे में ज़ाहिर है कि दिसंबर में टाइगर ज़िंदा है भी रिलीज़ नहीं हो पाएगी। अब इन फिल्मों को जनवरी या इसके बाद के लिए टाला जाना होगा। शायद, यह फ़िल्में फरवरी में ही रिलीज़ हो। क्योंकि, जनवरी में कई बड़ी फ़िल्में रिलीज़ होनी है।
ऐसे समय में बॉलीवुड को वह पहलाज निहलानी याद आ रहे हैं, जिन्हे बॉलीवुड हर रोज कोसता रहता था, उन्हें हटाने की मांग करता रहता था। पहलाज खुद भी फिल्म निर्माता थे। वह बड़े फिल्म निर्माताओं की कठिनाइयों को समझते हुए रूल से हट कर फ़िल्में पारित करवा देते थे। जबकि, प्रसून जोशी तो मशक्कत करने के बावजूद किसी से मिल नहीं रहे। ऐसे में जब पत्रकारों ने पहलाज निहलानी से यह बात कही तो उनका जवाब बड़ा दिलचस्प था, "जब छोटी बहु घर आती है तो सास को बड़ी बहु काम ज़हरीली लगती है।" इसे कहते है पहलाज निहलानी का दहला।
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