Wednesday 26 October 2016

बॉलीवुड ने ही ‘पिंक’ को शर्म से ‘लाल’ किया !

निर्माता शूजित सरकार की फिल्म पिंक में अमिताभ बच्चन का चरित्र स्थापित करता है कि अगर औरत न कह रही है तो उसे न समझा जाना चाहिए सेक्सुअल रिलेशन बनाने के लिए ज़बरदस्ती नहीं की जानी चाहिए। हालाँकि, इससे पहले फिल्म इसे स्वीकार करती हैं कि अगर कोई लड़की छोटे कपडे पहन कर क्लब या पार्टी में जाती है, दोस्त या दोस्त के दोस्तों के साथ शराब पीती है और डिनर खाती है और पैसे मांगती है तो वह चरित्रहीन समझी जाती है। कोई लड़का उससे ज़बरदस्ती कर सकता है। हालाँकि, ऐसा उस लडके की घटिया मानसिकता का परिणाम दिखाया गया है। लेकिन, यहाँ सवाल यह है कि किसी लडके में यह संस्कार आये कहाँ से। यह संस्कार किसने दिए। पिंक तो यह कह ही रही है। 

क्या बॉलीवुड ज़िम्मेदार नहीं !
बड़ा सवाल यह है कि इस प्रकार के संस्कार युवाओं या पुरुषों के मन में किसने भरे ! उस समाज ने जिसके परिवारों में बेटों के साथ बेटियाँ भी होती हैं ! बेशक, पड़ोस की आधुनिक या तेज़ तर्रार लड़की को देख कर ऐसा समझा जा सकता है। लेकिन क्या हिंदी फ़िल्में युवाओं में गंदे संस्कार भरने के आरोप से बरी हो सकती है ? बिलकुल नहीं। हिंदी फिल्मों ने ही महिला चरित्र को रसातल में डुबोने की साज़िश की है, अपने हीरो की हीरोइज्म स्थापित करने के लिए। बॉलीवुड का इतिहास गवाह है कि तमाम अभिनेता अपनी नायिका को अपमानित कर सुपर स्टार ही नहीं मेगा स्टार तक बने।  
कोड़े से पीटने वाले अमिताभ !
पिंक में अमिताभ बच्चन का चरित्र महिला की न को महत्त्व देता था। लेकिन इन्ही अमिताभ बच्चन की फिल्मों में बॉक्स ऑफिस की खातिर नायिका के चरित्र को रसातल में डुबो दिया। उसकी अवमानना की। अमिताभ की ज़्यादातर फिल्मों की नायिका शो पीस थी। वह खुद एंटी सोशल करैक्टर किया करते थे।  जिसे एंग्री यंगमैन खिताब दिया गया था। यह करैक्टर अपनी नायिका कोा छेड़ता ही नहीं था, बल्कि, शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी करता था। फिल्म शहंशाह में अमिताभ बच्चन के करैक्टर के लिए मीनाक्षी शेषाद्री का चरित्र इस लिए हल्का था कि वह आधुनिक थी और कम कपडे पहन कर घूमा करती थी। वह फिल्म में उसे नोचते खसोटते दिखाए गए। फिल्म मर्द में अमिताभ बच्चन बिगडैल, बददिमाग अमृता सिंह को कोड़े से पीटते हैं और उसकी पीठ पर नमक मलते हैं। दर्शक उस समय सीटियाँ बजाते हैं, जब अमृता सिंह उनकी इस हरकत का मज़ा ले रही होती हैं। अमिताभ बच्चन ने ही यह स्थापित किया कि अमीर होना बुरी बात है। ऎसी अमीरज़ादियों का अपहरण कर घर में बाँध कर रखा जा सकता है (फिल्म कुली) और पीटा जा सकता है। दीवार में परवीन बॉबी को हमबिस्तर बनाने वाले अमिताभ बच्चन हीरो है लेकिन परवीन बॉबी को कॉल गर्ल होने के कारण जान देनी पड़ती है। 
हीरो बना अपहर्ता
नायिका का अपहरण कर हीरो बनना तो कई अभिनेताओं का शगल रहा है। सनी देओल अपनी पहली फिल्म बेताब की नायिका अमृता सिंह का उसके घर से अपहरण कर बंधक बना लेते हैं। फिल्म हीरो का नायक (जैकी श्रॉफ) भी मीनाक्षी शेषाद्री का अपहरण कर लेता है।  बॉबी, लव स्टोरी, आदि तमाम टीन एज रोमांस वाली फिल्मों में नायक अपनी नायिका को भगा ले जाता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि दर्शक इन चरित्रों के अभिनेताओं को सुपर स्टार बना देता है। नायिका ऐसे लम्पट चरित्र पर मर मिटती है। नायिका के घरवालों को नायक को स्वीकार करना पड़ता है। 
जंपिंग जैक जीतेंद्र
कदाचित जीतेंद्र पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने ऑन स्क्रीन अपनी नायिका को सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया। अपनी पहली एक्शन फिल्म फ़र्ज़ में जीतेंद्र बबिता को बेतरह झिंझोड़ कर रख देते थे। जीतेंद्र की नायिका बनने वाली हेमा मालिनी, श्रीदेवी, जयाप्रदा आदि इस नोचखसोटी की गवाह हैं। इन फिल्मों की नायिका माने या न माने जीतेंद्र के करैक्टर को खुद को उसका प्यार साबित करवाना ही है। फिल्मों में इसी प्रकार के रोल कर जीतेंद्र सबसे ज्यादा कमाई करने वाले स्टार बने। आज भी दक्षिण की फिल्मों में जीतेंद्र वाला हीरो कायम है। जीतेंद्र से पहले शम्मी कपूर, विश्वजीत और जॉय मुख़र्जी भी अपनी नायिकाओं को जबरन छेड़ा करते थे।  
पवित्र रिश्ता, बिन ब्याही माँ
अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र, शम्मी कपूर या किसी दूसरे अभिनेता को क्या दोष दें, हिंदी फिल्मों ने हमेशा से स्त्री चरित्र को ढीले चरित्र वाली महिला के बतौर दिखाया है। पचास-साठ के दशक तक महिला चरित्र कामुकता में बह कर पहली रात ही शारीरिक सम्बन्ध बना लेती थी। नतीजे के तौर पर वह गर्भवती हो जाती थी। अब इस बिन ब्याही माँ को समाज के ताने सुनने ही हैं, अपने बच्चे को भी पालपोस कर बड़ा करना है। नायिका अपने प्रेम को पवित्र बताते हुए ढाई घंटे की फिल्म में रोती बिलखती हुई बेटे को पालती रहती है। अमर में दिलीप कुमार का चरित्र एक रात का सम्बन्ध बना कर निम्मी को छोड़ कर चल देता है। धुल का फूल की माला सिन्हा भी ऐसे ही पवित्र प्रेम के परिणामस्वरूप गर्भवती हो जाती है। एक फूल दो माली की साधना, आखिरी ख़त की इन्द्राणी मुख़र्जी, अंदाज़ की हेमा मालिनी ऎसी ही बिन ब्याही माँ के फ़िल्मी उदाहरण है। हिंदी फिल्मों में टू पीस बिकनी की ईजाद करने वाली शर्मीला टैगोर ने तो आ गले लग जा फिल्म में शशि कपूर के साथ एक रात के सम्बन्ध से माँ बनने के बाद दाग, आराधना, मौसम, आ गले लग जा, सत्यकाम, सनी, स्वाति, आदि फिल्मों में बिन ब्याही माँ बनने का कीर्तिमान स्थापित कर दिया। तभी तो फिल्म क्या कहना की प्रीती जिंटा अपनी कामुकता से लज्जित होने के बजाय ताल ठोंक कर खुद को पवित्र रिश्ता बनाने वाली बिन ब्याही माँ घोषित करती है। हिंदी फिल्मकारों ने नायिका की एक रात की कामुकता को पवित्र प्यार का दर्ज़ा दे कर समाज के (ख़ास तौर पर महिला दर्शकों के) आंसू निकालने और दर्शक बटोरने में कामयाबी हासिल की थी। 
ठण्ड का इलाज़
हिंदी फिल्मों के नायक ने कई फार्मूले ईजाद किये। इनमे से एक फार्मूला ठण्ड का ईलाज था। तमाम हिंदी फिल्मों में नायक ठण्ड से ठिठुरती नायिका का शरीर गर्म करने के लिए खुद नंगा हो कर, नंगी नायिका के साथ सो जाता है। कथित रूप से शरीर गर्म करने की इस प्रक्रिया को आ गले लग जा में शर्मीला टैगोर पर शशि कपूर ने आजमाया था। अमिताभ बच्चन फिल्म गंगा जमुना सरस्वती में अपनी नायिका मीनाक्षी शेषाद्री के ठन्डे शरीर को गर्म करने के लिए यही तरीका अपनाते हैं। शक्ति सामंत अपनी फिल्म आराधना में बारिश में भीग चुकी शर्मीला टैगोर और राजेश खन्ना पर एक कामुक टॉवल डांस (रूप तेरा मस्ताना) फिल्माते हैं और इसके बाद दोनों को सांकेतिक भाषा में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करते दिखाते हैं। उस दौर की फिल्मों को देखने वाले दर्शको याद होगा कि कैसे ऐसे दृश्य के शुरू होते ही सिनेमाघरों में दर्शक सीटियाँ बजाना और चिल्लाना शुरू कर देते थे। 
कुलटा! हमें कहीं का न छोड़ा !
उस दौर की फिल्मों की खासियत थी कि इन में नायिका की निजता का कोई महत्त्व नहीं था। उस दौर की उन फिल्मों में जहां नायिका एक रात के संबंधों के कारण गर्भवती हो जाती थी, उसकी दाई या डॉक्टर तमाम लोगों के सामने खुलेआम ऐलान करती थी कि नायिका गर्भवती है। इस ऐलान के लिए लीला मिश्रा ख़ास तौर पर मशहूर थी जो निराशा भरे तेवरों के साथ यह कहती थी ‘अरे कुलटा तूने हमें कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ा। पुराने ज़माने की सुलोचना और लीला चिटनिस से लेकर नयी जमाने की प्रीटी जिंटा तक को यह डायलाग सुनने पड़े। इसके बावजूद ऎसी कुलटा नायिका बॉलीवुड फिल्मों में बार बार नज़र आती रही। 

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