Sunday, 5 November 2017

कश्मीर में औरतों के अधिकारों पर रिसर्च कर रही हैं रसिका दुग्गल

हाल ही में रिलीज हुई फिल्म तू है मेरा सन्डेमें एक युवा माँ का किरदार निभाने के बाद अब रसिका दुग्गल अपने आनेवाली फिल्म हमीदमें एक कश्मीरी माँ इशरतकी भूमिका में नजर आएंगीं जिसका निर्माण सारेगामा करने जा रहा है। यह फिल्म कश्मीर में व्याप्त अन्तर्विरोधों को लक्ष्य करके एक माँ-बेटे की यात्रा पर आधारित है जिसमें एक आठ वर्षीय पुत्र अपने पिता की खोज में लगा हुआ है। कश्मीर के हालात दिन-प्रति-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। कश्मीर में पूरी मानवता शर्मों-लिहाज की हदों को पार कर दिया है, खासकर छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं के मामले में। रसिका के लिए एक ऐसी युवा महिला का किरदार निभाना एक चुनौती भरा काम था जिसका पति गुम हो चुका हो और उसका छोटा-सा बेटा अपने पिता से मिलने के लिए बेचैन हो। हालांकि रसिका इस भूमिका से मिलते-जुलते किरदार को अपनी अवार्ड विनिंग लघु फिल्म द स्कूल बैगमें निभा चुकी हैं, लेकिन यहाँ इस हमीदनामक फिल्म में दर्शकों को रसिका तथा बाल-कलाकार तल्हा रेशी एक अलग ही स्तर पर कार्य करते नजर आएंगे। रसिका इस भूमिका की तैयारी के क्रम में होम वर्क के रूप में पढ़ना शुरू कर दी थी साथ ही लेडी ऑफ़ आयरनकहलाने वाली महिला परवीन आहंगर पर बनी डाक्यूमेंट्री को भी बार-बार देखी जो एसोसिएशन ऑफ पेरंट्स ऑफ डिसअपिअर्ड पर्सन्स (एपीडीपी) की संस्थापिका हैं और जिसका नामांकन 2005 में नोबेल पीस प्राइज हेतु एक शांति व मानवाधिकार आन्दोलनकारी के रूप में किया गया था। यह अभिनेत्री इफ्फत फातिमा पर बनी 26 मिनट की एक डाक्यूमेंट्री वेर हॅव यू हिडन माय न्यू मून क्रिसेन्ट से भी काफी प्रभावित थी जो मुग़ल मासी की कहानी बयाँ करती है, जो 20 सालों तक अपने बेटे के आने की प्रतीक्षा करने के बाद मौत की आगोश में सो गई। इस क्रम में रसिका ने इन्टरनेट पर बहुत सारे पेटीशन्स को भी खंगाला, कश्मीरी महिलाओं के अधिकारों पर केन्द्रित न्यूज़-लेखों को पढ़ा जिनमें अशांत क्षेत्र की ऐसी महिलाएं अपने पतियों और बेटों के लिए फिक्रमंद थीं। उनके इस रिसर्च के बारे में पूछने पर रसिका ने बताया: एक अभिनेत्री के तौर पर यह तो मेरे काम का एक अंग है कि मैं जिस किरदार को परदे पर अंजाम देने जा रही हूँ, उसके बारे में अधिक-से-अधिक जानकारी जुटा लूं। यह मेरे लिए सबसे पहला मौलिक कार्य है। ऐसे मामलों में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे लोगों तथा ऐसी परिस्थितियों से सम्पर्क कायम किया जाए जो आपके वर्त्तमान अनुभव से परे हों। खुद की वर्तमान स्थिति में ईमानदारी पूर्वक स्वीकारने को मैं काफी उपयोगी मानती हूँ क्योंकि दूसरे व्यक्ति के अनुभव में मैं हमेशा एक बाहरी होती हूँ लेकिन साथ ही मैं उनमें शामिल भी होना चाहती हूँ। ऐसी प्रवृति मुझे घातक और जिज्ञासु दोनों बना देती है। लेकिन दिन के खत्म होते-होते मुझे यही अहसास होता है कि अपनी जानकारी की अधिकतम क्षमता के अनुसार मैं काम कर सकती हूँ और आशा करती हूँ कि मैं यथासंभव उन लोगों के प्रति संवेदनशील रही हूँ जिनकी कहानी हम कहने का प्रयास कर रहे हैं, खासकर उन लोगों के प्रति जो इतने लम्बे समय से जलजले के शिकार रहे हों।

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