चिल्ड्रेन फिल्म सोसायटी औफ इंडिया के चेयरमैन मुकेश खन्ना ने तो अपना
कार्यकाल खत्म होने के दो माह पहले ही सूचना प्रसारण मंत्रालय व केंद्रीय सूचना
प्रसारण मंत्री स्मृति इरानी की कार्यशैली के विरोध में त्यागपत्र दे दिया. कई फिल्मों के अलावा कई सीरियलों में अभिनय कर चुके मुकेश खन्ना की पहचान ‘शक्तिमान’
के रूप में होती है. मुकेश खन्ना ने बच्चों के लिए ‘शक्तिमान’
नामक सीरियल का निर्माण और उसमें पहले भारतीय सुपर हीरो शक्तिमान का मुख्य
किरदार भी निभाया था. यह सीरियल पूरे सात वर्ष तक प्रसारित हुआ. आज भी ‘शक्तिमान’
बच्चों का सबसे पसंदीदा सीरियल माना जाता है. लगभग तीन वर्ष पहले जब मुकेश खन्ना को ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ का चेयरमैन बनाया गया था,
तब उम्मीद जगी थी कि अब बच्चों के लिए कुछ बेहतरीन फिल्मों का निर्माण ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ करेगी. मगर परिणाम वही ढाक के तीन पात रहे.
अब अपने पद से त्यागपत्र देने के बाद मुकेश खन्ना ने बताया कि उन्हे बच्चों के लिए
बेहतर काम करने के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय और इस मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों
से आपेक्षित सहयोग नहीं मिला. मुकेश खन्ना का दावा है कि उनके हर कदम का विरोध
किया गया.
मुकेश खन्ना कहते हैं- ‘‘केंद्र में
नई सरकार बनने के बाद मेरे पास ‘पुणे फिल्म
इंस्टीट्यूट’ और ‘केंद्रीय
फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ में से किसी एक का चेयरमैन बनने का प्रस्ताव
आया था. मैने बड़ी विनम्रता से इंकार कर दिया था. उसके बाद मेरे पास ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ का चेयरमैन बनने का प्रस्ताव आया. दो दिन
मैने सोचा, तो मुझे लगा कि ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ से जुड़कर मैं बच्चों के लिए कुछ अच्छी
फिल्मों का निर्माण कर सकता हूं.’’
मुकेश खन्ना आगे कहते हैं- ‘‘मगर मेरे
अनुभव बहुत ही खराब व दुःखदायी रहे. ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ का चेयरमैन बनने के बाद मैने पाया कि हालात
ऐसे हैं कि कोई भी चेयरमैन बच्चों के लिए कुछ कर ही नहीं सकता. मैने देखा कि ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ ने अब तक 260 फिल्मों का निर्माण किया है,
पर सभी ‘कलात्मक सिनेमा’
और ‘फेस्टिवल’ वाली
फिल्में है, जिन्हें बच्चें तो क्या बूढ़ा भी न देखना
चाहे. मैने अपने तरीके से चीजों को सही करने का प्रयास किया. मैने सबसे पहले
फिल्मों की पटकथा चयन करने वाली में बदलाव कर कुछ समझदार व अच्छे लोगों को जोडा.
काफी मशक्कत के बाद करीबन 12 फिल्मों को स्वीकृति प्रदान की. इनमें से चार एनीमेशन
फिल्में हैं. पर मसला बजट का अड़ गया. ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ को प्रति वर्ष फिल्मों का निर्माण करने के
लिए दस करोड़ रूपए मिलते हैं. इनमें से एक करोड़ रूपए ‘उत्तरपूर्वी
भारत’ की फिल्म के लिए होता है. अब आप बताएं कि इस
युग में इतने कम पैसे में बेहतर सिनेमा कैसे बनेगा? खैर,हमने कुल
चार फिल्मों का निर्माण किया. पर समस्या यह आ गयी कि इनका वितरण कैसे किया जाए. जब
तक यह फिल्में सही ढंग से सिनेमा घरों में रिलीज नहीं होंगी,
बच्चों को इन फिल्मों की जानकारी नहीं मिलेगी,
बच्चे यह फिल्में नहीं देखेंगे, तब तक इनका
निर्माण बेकार है. मगर फिल्म के प्रमोशन और उन्हे सिनेमाघर में रिलीज करने के लिए ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’के पास कोई बजट नही है.’’
मुकेश खन्ना आगे कहते हैं- ‘‘हमने इसका
रास्ता निकालने के लिए प्रयास किए और बड़ी मशक्कत के बाद यह नियम बनवाया कि ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ की फिल्म को निजी निर्माता के साथ मिलकर
सिनेमाघर में पहुंचाया जाए. पर इसमें भी मंत्रालय के अधिकारी कई तरह के रोड़े डालते
रहते हैं.’’
मुकेश खन्ना आगे कहते हैं- ‘‘जब मैने ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’’ के चेयरमैन का पद संभाला,
तो उस वक्त सूचना प्रसारण मंत्री अरूण जेटली थे. उनसे मेरा परिचय ‘शक्तिमान’
के निर्माण के दौरान से रहा है. तो उन्होने मेरी बातों को सुना और उस पर
अमल करने का आश्वासन दिया. पर कुछ काम होता, उससे पहले
उनके हाथ से मंत्रालय चला गया. फिर वेंकैया नायडू आए. उनसे भी पहचान रही है. उन्हे
भी मेरे सुझाव पसंद आए. कुछ काम हुआ भी. पर बात आगे बढ़ती,
उससे पहले ही वह उपराष्ट्रपति बन गए. अब सूचना प्रसारण मंत्री के रूप में
स्मृति ईरानी आ गयी. उनके आने के बाद तो मेरे लिए काम करना बहुत मुश्किल हो गया.
अब तो सेक्रेटरी, ज्वाइंट सेक्रेटरी सहित सभी कई तरह के कानून
का हवाला देकर मेरे हर कदम का विरोध करने लगे. कह दिया कि फिल्म को सिनेमाघर में
प्रदर्शित करने के लिए पहले टेंडर मंगवाइए, वगैरह वगैरह.
मैने सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी से मिलने का वक्त मांगा. मगर स्मृति जी ने
मेरे पत्र को पाने की सूचना देना भी उचित नहीं समझा. पूरे चार माह तक इंतजार करने
के बाद मैने ‘चिल्ड्रेन फिल्म सोसायटी’
के चेयरमैन पद से त्यागपत्र देने का निर्णय लेते हुए अपना त्यागपत्र भेज
दिया. पूरे सत्रह दिन तक मैं चुप रहा. सत्रह दिन बाद ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ के सीईओ के पास पत्र आया कि चेयरमैन के पद
से मेरा त्यागपत्र मंजूर कर लिया गया है. दुःख की बात यह है कि मंत्री महोदया ने
मेरा त्यागपत्र स्वीकार करने से पहले यह भी नही पूछा कि मुझे ऐसा करने की जरुरत
क्यों पड़ी?
मुकेश खन्ना कहते हैं- ‘‘मैं महसूस
कर रहा हूं कि यहां किसी की कोई सुनवायी नही है. जब ‘चिल्ड्रेन
फिल्म सोसायटी’ के चेयरमैन को मिलने के लिए ‘सूचना
प्रसारण मंत्री’ समय नहीं दे सकती,
तो काम कैसे होगा? सब कुछ ठप्प सा हो गया है.’’
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