Monday 23 March 2015

अब दादासाहेब फालके शशि कपूर

इसी साल १८  मार्च को शशि कपूर ने उम्र के ७७वे पड़ाव पर कदम रखा था।  कोई जश्न नहीं हुआ।  सोशल मीडिया और अख़बारों में शशि कपूर के लिए बधाई सन्देश नहीं लिखे गए।  ऐसा होना यह स्वाभाविक भी था। लोग चढ़ते सूरज को ही सलाम करते हैं। जिस एक्टर की आखिरी हिंदी फिल्म २० साल पहले रिलीज़ हुई हो, उसका जन्मदिन किसको याद आएगा।  लेकिन, अब जब उन्हें भारत सरकार ने अपने सर्वोच्च फिल्म पुरस्कार 'दादासाहेब फाल्के अवार्ड' से नवाज़ा है, तब शशि कपूर सबको याद आ गए हैं।  उनके प्रशंसक ख़ास तौर पर खुश हैं कि भारत  सरकार ने देर में ही सही, अभिनय के प्रति समर्पितपृथ्वीराज कपूर  सबसे छोटे बेटे शशि कपूर के  समर्पण को भी मान्यता दे दी गई । शशि कपूर के अभिनय कला के प्रति समर्पण का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें आज भी,  बीमारी के बावजूद अपनी बेटी संजना के साथ या उसके बिना मुंबई में पृथ्वी थिएटर के बाहर व्हील चेयर पर बैठे देखा जा सकता है।
रंगमंच के महान चितेरे और अभिनेता के बादशाह पृथ्वीराज कपूर का अपना पृथ्वी थिएटर था।  वह शहर शहर घूम कर नाटक खेला करते थे। शशि कपूर भी अपने पिता के घुमक्कड़ ट्रुप के साथ शहर शहर जाया करते थे। उन्होंने केवल चार साल की उम्र में रंगमंच पर काम करना शुरू कर दिया था। १९४० के दशक की तदबीर और आग जैसी फिल्मों में शशि कपूर ने बाल भूमिकाएं की थी। आवारा के प्यार हुआ इकरार हुआ गीत में हाथ में हाथ डाले बारिश में भीगते जा रहे तीन बच्चों में एक शशि कपूर भी थे।  उन्होंने १९६१ में रिलीज़ फिल्म चार दिवारी से बतौर रोमांटिक हीरो अपना फिल्म करियर शुरू किया।  फिल्म में उनकी नायिका नंदा थी। चार दिवारी की असफलता के बावजूद शशि कपूर बतौर रोमांटिक हीरो  स्थापित हो गए। शशि कपूर ने नंदा के साथ आठ फ़िल्में की। यह वह दौर था, जब उनके दो बड़े भाई राजकपूर और शम्मी कपूर भी बॉलीवुड में अपना परचम लहराए हुए थे।  शशि कपूर ने अपने भाइयों से अलग अपनी रोमांटिक इमेज बनाई। वह ज़्यादा फिल्मों के गरीब हीरो हुआ करते थे। वक़्त, जब जब फूल खिले, प्यार किये जा, नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे, आमने सामने, कन्यादान, जहाँ प्यार मिले, राजा साब,  प्यार का मौसम, अभिनेत्री, शर्मीली, आ गले लग जा, नैना, चोर मचाये शोर, आदि उनकी सुपर डुपर हिट फ़िल्में थी।  शशि कपूर के अभिनय के प्रति समर्पण का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने मल्टी- स्टारर फिल्मों में काम करने से परहेज नहीं किया।  जबकि, उस समय उनकी सोलो हीरो फ़िल्में हिट हो रही थीं। वह जहाँ एक ओर फकीरा, चोरी मेरा काम, सलाखें, पाप और पुण्य जैसी सोलो हीरो फिल्म करते  रहे, वही रोटी कपड़ा और मकान, क्रांति, कभी कभी, दीवार, त्रिशूल, हीरालाल पन्नालाल, आदि मल्टी हीरो फ़िल्में भी की। उन्होंने डेढ़ सौ से ज़्यादा फिल्मों में  अभिनय किया। उन्होंने १२ अंग्रेजी फिल्मों में भी अभिनय किया। उन्होंने १९७५ से १९९४ के बीच ५५ मल्टी स्टारर फिल्मे की। सत्तर के दशक में शशि कपूर को टैक्सी हीरो कहा जाता था।  क्योंकि, वह एक ही दिन में चार चार पांच पांच  शिफ्टों में काम किया करते थे। उन्हें मुंबई में एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो भागते देखा जाता था।  उनकी ६१ सोलो हीरो फिल्मों में ३३ सुपर हिट हुई थी। शशि कपूर अपने समय के सबसे ज़्याइदा फीस पाने वाले अभिनेता थे।
शशि कपूर ने अपने समय की लगभग सभी अभिनेत्रियों के साथ हिट फ़िल्में की।  उन्होंने राखी, आशा पारेख, शर्मीला टैगोर, ज़ीनत अमान के साथ सोलो हीरो फ़िल्में की।  जब उनकी सोलो हीरो फ़िल्में फ्लॉप होने लगी तो शशि कपूर ने विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन, जीतेन्द्र, धर्मेन्द्र, संजीव कुमार, राजेश खन्ना, आदि के जोड़ीदार बन कर फ़िल्में की।  अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी ख़ास सफल रही। इस जोड़ी की ११ फिल्मों में छह हिट हुई। १९७५ में रिलीज़ अमिताभ बच्चन के साथ की फिल्म दीवार में इन दोनों के बीच टकराव के संवादों में शशि कपूर का 'मेरे पास माँ है' संवाद अमर हो चूका है। एक समय शशि कपूर को मल्टी स्टारर फिल्मों में अपने को-स्टार्स विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन और जीतेन्द्र से ज़्यादा फीस मिला करती थी। संजीव कुमार, प्राण और धर्मेन्द्र बराबर फीस पाते थे।  केवल राजेश खन्ना को ही शशि से ज़्यादा फीस मिला करती थी।
शशि कपूर ने शर्मीला टैगोर के साथ १२ फ़िल्में की, जिनमे ६ वक़्त, आमने सामने, सुहाना सफर, आ गले लग जा, पाप और पुण्य और स्वाति सफल रही। शशि कपूर और ज़ीनत अमान जोड़ी की दस फिल्मों में रोटी कपड़ा और मकान, चोरी मेरा काम, दीवानगी, हीरालाल पन्नालाल, पाखंडी और भवानी जंक्शन सफल हुई थी। राखी के साथ की १० फिल्मों में पांच शर्मीली, जानवर और इंसान, कभी कभी, तृष्णा और बसेरा हिट साबित हुई। १९५२ में रिलीज़ फिल्म संस्कार में शशि कपूर प्राण के साथ बाल भूमिका में थे।  शशि कपूर ने बतौर हीरो प्राण के साथ ९ फ़िल्में की। उनके करियर की दो डबल रोल फिल्मो हसीना मान जाएगी और शंकर दादा को बॉक्स ऑफिस पर सफलता मिली। 
फिल्मों में सफलता के बावजूद शशि कपूर का स्टेज के प्रति लगाव कम नहीं हुआ था।  उन्होंने १९५६ में एक ब्रितानी एक्टर ज्यॉफ्री केंडल के साथ ट्रवेल थिएटर 'शकेस्पीयराना' की स्थापना की। इसी थिएटर के कारण वह 'द टेम्पेस्ट' की नायिका जेनिफर से मिले।  जल्द ही दोनों ने शादी कर ली।  शशि कपूर ने अपने परिवार की परम्परा में जेनिफर को अभिनय छोड़ने के लिए नहीं कहा।  वह पहले भारतीय एक्टर थे, जिसने इंटरनेशनल फिल्मों में काम किया। सिद्धार्थ फिल्म में सिमी गरेवाल के साथ उनके इंटिमेट सीन ने फिल्म को चर्चित कर दिया। उन्होंने  भारत सोवियत सहयोग से बनी फंतासी फिल्म अजूबा का निर्देशन भी किया।  उन्हें १९७५ में फिल्म दीवार के  लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का पुरस्कार मिला। शशि कपूर में अच्छी फिल्मों के निर्माण का जूनून था।  उन्होंने जूनून, कलयुग, ३६ चौरिंघी लेन, विजेता, उत्सव और अजूबा बनाई। जूनून और कलयुग के प्रोडूसर के रूप में भी उन्होंने यह पुरस्कार जीता। उन्हें २०११ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। वह दादासाहेब फालके अवार्ड पाने वाले तीसरे कपूर थे।  उनसे पहले उनके पिता पृथ्वीराज कपूर और बड़े भाई राजकपूर को भी यह पुरस्कार मिला था।




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