फिल्म वालों के पीआर कभी कभी गज़ब ही कर डालते हैं। तथ्यों का ज्ञान तो इन्हे पांचवी क्लास में पढने वाले बच्चे के बराबर नहीं होता। अभी मेरे पास एक पीआर की रिलीज़ आई, जिसके अनुसार अभिनेता विवेक ओबेरॉय को दादा साहेब फालके अवार्ड दिया गया है। इस रिलीज़ में अब तक फाल्के अवार्ड पाई फिल्मों से जुडी तमाम हस्तियों के नाम थे। यहाँ तक कि शशि कपूर का नाम भी था। मुझे समझ में नहीं आया कि इतने बे-टाइम और इतनी जल्दी विवेक को अवार्ड क्यों दिया गया ? क्योंकि, विवेक ओबेरॉय ने फिल्मों, फिल्म इंडस्ट्री या देश के लिए अपनी फिल्मो के जरिये ऐसा कुछ भी नहीं किया है कि उन्हें किसी 'श्री' से भी नवाज़ा जाये। फिर भी चूंकि, वह महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री के दोस्त हैं, इसलिए उन्हें यह पुरस्कार मिल गया (रिलीज़ से ऐसा ही लगता था) । इसके बावजूद, चूंकि, मेरे दिमाग में शंका थी तो मैंने रिलीज़ फॉरवर्ड कर फिर उन पीआर महोदय से इस फाल्के अवार्ड के बारे में पूछा तो उन्होंने बिना किसी सॉरी के दूसरी रिलीज़ भेज दी, जिससे यह स्पष्ट होता था कि विवेक ओबेरॉय को दादा साहेब फाल्के फाउंडेशन अवार्ड्स दिया गया है। दिलचस्प तथ्य यह है कि इस खबर को रिलीज़ करने वाली पीआर फर्म बहुत बड़ी है। इसके पास बॉलीवुड की कई बड़ी हस्तियों और फिल्मों का काम रहता है। जब इस कंपनी में जानकारी का यह हाल है तो बाकी छोटे छोटे पीआर को तो बख्शा ही जाना चाहिए।
अब अगर मैं सचेत न होता तो मैंने लिख मारा होता कि विवेक ओबेरॉय को दादा साहेब फाल्के अवार्ड दिया गया। तो बंधुओं सचेत रहें। पीआर की रिलीज़ को धार्मिक ग्रन्थ मान कर अखबार में न छाप मारे। अन्यथा विवेक ओबेरॉय को दादा साहेब फाल्के अवार्ड तो दिलवा ही दोगे।
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