संजय लीला भंसाली
की रणवीर सिंह, शाहिद कपूर और दीपिका पादुकोण अभिनीत फिल्म पद्मावत की रिलीज़ के चार
दिन बाद भी लगभग पूरा देश राजपूत आंदोलन की आग में जल रहा था। तमाम टेलीविज़न के न्यूज़ चैनल पद्मावत विवाद में
सुलगते नज़र आ रहे थे। क्या, पद्मावत में ऐसा कुछ आपत्तिजनक है कि किसी ख़ास
समुदाय को अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए हिंसा और आगजनी का सहारा लेना पड़े ?
क्या फिल्म में मेवाड़ रानी पद्मावती और रावल रतन
सिंह के खिलाफ अपमानजनक है ? सच कहा जाए तो ऐसा
कुछ नहीं है और है भी। कुछ इसलिए नहीं है,
क्योंकि, फिल्म कहीं से भी
पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी को आमने सामने लाती है। रावल रतन सिंह का किरदार साहसी, योद्धा और
युद्ध नियम का पालन करने वाला है। तब फिर इतनी अशांति क्यों ? न थमने वाला विवाद क्यों ?
इमेज का शिकार,
बेचारा किरदार
एक शब्द में कहा
जाये तो यह इमेज का मामला है। फिल्म के
किरदारों के लिए कलाकारों का चुनाव करते समय, बॉक्स ऑफिस का ख्याल रखा गया, स्टारडम को तरजीह दी
गई। इसका परिणाम यह हुआ है कि फिल्म कहती कुछ है और महसूस कुछ होता है। संजय लीला
भंसाली ने खिलजी के किरदार में रणवीर कपूर को लेकर, खिलजी को हीरो बना दिया। गोलियों की रासलीला राम-लीला और बाजीराव
मस्तानी से रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की जोड़ी ऑन एंड ऑफ स्क्रीन रोमांटिक बन
गई है। यह रोमांटिक जोड़ा पद्मावत में खिलजी और पद्मावती का किरदार कर रहा था । इस
रियल लाइफ जोड़ी की इमेज के प्रभाव का अंदाजा एक न्यूज़ चैनल के द्वारा पद्मावत की
स्क्रीनिंग के लिए हाथ से हाथ पकडे जाते दीपिका पौद्कों और रणवीर सिंह को पद्मावती
और खिलजी बताने से लगाया जा सकता है । यह राजपूत कौम को ऑफेंसिव लगा। रतन सिंह के किरदार में शाहिद कपूर डीलडौल से
कमज़ोर साबित हुए। रणवीर सिंह की ओवरएक्टिंग शाहिद कपूर के संयत अभिनय पर भारी भी
पड़ी। यानि रतन सिंह एक कमजोर व्यक्तित्व
और राजा लगता था। पद्मावती की भूमिका में
दीपिका पादुकोण का चुनाव भी गलत साबित होता था। उनकी ऑन और ऑफ स्क्रीन इमेज बहुत
अच्छी नहीं है। वह अपने क्लीवेज दिखाने के लिए बदनाम है। उनके बदलते रोमांस की
खबरों के कारण ही, उन्हें लेकर 'जो रोज
बदले शौहर, वह क्या जाने जौहर जैसा जुमला उछला था। बेशक, सभी कलाकार कम ज्यादा बढ़िया काम कर गए थे. लेकिन, जो समुदाय इस पर आपत्ति कर रहा था, उसे यह नागवार गुजरा कि जिस रानी की पूजा वह लोग
करते हैं, उसका रील किरदार एक कई कई रोमांस करने वाली अभिनेत्री करे ।
इमेज के अनुरूप
भूमिका
पद्मावत के निर्माता
स्टूडियो वायकॉम १८ और संजय लीला भंसाली ने ध्यान ही नहीं दिया कि हिंदी सिनेमा के
इतिहास में कभी भी किसी खलनायक को हीरो नहीं बनाया गया और किसी नायक या नायिका को
उनकी इमेज के विपरीत भूमिका नहीं दी गई। १९६३ की फिल्म रानी पद्मिनी में धार्मिक
और ऐतिहासिक फिल्मों की अभिनेत्री अनीता गुहा ने पद्मिनी की भूमिका की थी। राजसी
भूमिकाओं से लोकप्रिय जयराज रावल रतन सिंह बने थे। तब खल भूमिकाएं करने वाले
अभिनेता सज्जन खिलजी बनाये गए थे। यह फिल्म खिलजी को क्रूर भी नहीं दिखाती थी।
इसके बावजूद फिल्म का विरोध नहीं हुआ था। तमिल फिल्म चित्तोड़ रानी पद्मिनी में भी
वैजयंती माला, शिवाजी गणेशन और एमएम नाम्बियार ने क्रमशः
पद्मिनी, रावल रतन सिंह और खिलजी के किरदार किये
थे। नाम्बियार अपने समय के बड़े खलनायक थे. साफ़ तौर पर दोनों पद्मिनी फिल्मों में
आक्रमणकारी खिलजी कोई खल अभिनेता ही बना था, रणवीर सिंह की तरह का कोई रोमांटिक इमेज वाला अभिनेता नहीं। फिल्म
देखने के बावजूद इस समुदाय की बड़ी आपत्ति यही थी।
किरदारों के लिए गलत
चेहरे
निर्देशक जेपी दत्ता
ने अवध की वैश्या उमरावजान पर इसी टाइटल के साथ फिल्म का निर्माण किया तो उमरावजान
उर्फ़ अमीरन की भूमिका लिए ऐश्वर्य राय बच्चन को लिया तथा उनके प्रेमी नवाब सुल्तान
बने। लेकिन, इस रियल लाइफ पति-पत्नी की जोड़ी को देख कर भी दर्शक २५ साल पहले की
अमीरन रेखा और उनके प्रेमी सुल्तान नवाब फारूख शैख़ को दर्शक भूले नहीं थे।
ऐश्वर्या राय बच्चन और अभिषेक बच्चन का चुनाव गलत साबित हुआ। ऐसे रोमांटिक विषय पर फिल्म बनाने के लिए जेपी
दत्ता भी मिसफिट थे। कुछ ऎसी ही गलती गुड्डू धनोआ से भी हुई थी, जब उन्होंने २३ मार्च १९३१ शहीद (२००२) में भगत
सिंह की भूमिका के लिए बॉबी देओल को
लिया। एक्शन फिल्मों के फिल्मकार के तौर
पर पहचान रखने वाले गुड्डू भूल गए कि भगत
सिंह एक बलिदानी किरदार था, एक्शन हीरो
नहीं। बॉबी देओल का कमज़ोर अभिनय भी फिल्म
को ले डूबा। द लीजेंड ऑफ़ द्रोण में केंद्रीय भूमिका में अभिषेक बच्चन पूरी फिल्म
को ले डूबे। प्रियंका चोपड़ा का दमदार किरदार भी बच्चन के गलत चुनाव के कारण फिल्म
को बचा नहीं सका। इसी प्रकार अशोका में सम्राट अशोक के लिए शाहरुख़ खान और
राजकुमारी कौरवाकी के लिए करीना कपूर बिलकुल मिसफिट थे। करीना कपूर राजकुमारी नहीं सेक्स बम लग रही थी।
इमरान हाश्मी का क्रिकटर अज़हरुद्दीन का किरदार अन्थोनी डिसूज़ा की फिल्म अज़हर को ले
डूबा। सूरज बड़जात्या ने, अपने बैनर राजश्री
पिक्चर्स की १९७६ की फिल्म चितचोर को २००३ में मैं प्रेम की दीवानी हूँ के रूप में
रीमेक किया। फिल्म में हृथिक रोशन,
करीना कपूर और अभिषेक बच्चन की भूमिकाएं चितचोर
के अमोल पालेकर, ज़रीना वहाब और
विजयेंद्र घाटगे की तुलना में मिस्कास्ट
साबित हुई।
इमेज के कारण मीना
कुमारी का दायरा
भारतीय फिल्म दर्शक
अपने एक्टर की इमेज की पूजा करता है। वह
क़तई नापसंद करता है कि उसका प्रिय अभिनेता या अभिनेत्री इमेज से हट कर कुछ करे।
मीना कुमार ने कमाल अमरोही निर्देशित फिल्म दायरा में एक ऎसी औरत का किरदार किया
था, जिसके शादी एक बीमार बूढ़े से हो जाती है। वह बूढा उसकी कामोत्तेजना शांत नहीं कर
सकता। लेकिन, उसमे उबाल ज़रूर लाता है। फिल्म के एक सीन में बूढा पति मीना कुमारी के
चरित्र से अपने सर के बाल उसके (पति के) चहरे पर बिखेरने के लिए कहता है। ऐसा करती हुई नायिका कामोत्तेजित हो जाती
है। इस उत्तेजना की शिकार मीना कुमार
भागती हुए शावर के नीचे बैठ जाती है। इस सीक्वेंस में मीना कुमारी का उत्तेजक पक्ष
सामने आया था। उस समय तक मीना कुमारी ने धार्मिक फिल्मों के अलावा बैजू बावरा और
सामाजिक फ़िल्में की थी। दायरा में मीना कुमारी की इस उत्तेजक भूमिका ने उनके प्रशंसकों को इतना ज़्यादा नाराज़
कर दिया कि मीना कुमार को इसके लिए माफ़ी मांगनी पड़ी तथा कभी ऐसी भूमिका न करने का
वायदा भी। तत्कालीन धार्मिक और ऐतिहासिक फिल्मों की अभिनेत्रियों कभी इमेज को लांघ
कर बुरी भूमिकाएं करने की नहीं सोची। निरुपा रॉय,नलिनी चोकर, अनीता गुहा, शाहू मोदक, त्रिलोक कपूर, आदि ने कभी बुरी
भूमिकाएं नहीं की।
राज बब्बर नहीं बन
सके कृष्ण
भारतीय दर्शकों पर
अपने प्रिय एक्टर की इमेज कितना जकड रखती है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब १९८८ में मेगा सीरियल
रामायण में राजबब्बर को कृष्ण की भूमिका में लिए जाने का ऐलान किया तो देश भर में
इसका ज़बरदस्त विरोध हुआ। दरअसल, राजबब्बर ने १९८०
में बीआर चोपड़ा की फिल्म इन्साफ का तराजू में एक बलात्कारी की भूमिका की थी। हिन्दू दर्शकों को मान्य नहीं हुआ कि कोई
बलात्कारी उनके आराध्य श्री कृष्ण के किरदार को परदे पर करे। लोगों के विरोध को
देखते हुए बीआर चोपड़ा को राज बब्बर को कृष्ण के किरदार से हटाना पड़ा। उनकी जगह नीतीश भरद्वाज ने ले ली। इसी प्रकार
का किस्सा रामानंद सागर के सीरियल रामायण में सीता का किरदार करने वाली दीपिका
चिखलिया का भी है। उन्होंने इस इमेज के
सहारे गुजरात में लोकसभा चुनाव तक जीता था।
लेकिन, जब दीपिका ने हॉरर फिल्म रात के अँधेरे
में अंग प्रदर्शन और कामुक हावभाव पेश किये तो उनका ज़बरदस्त विरोध हुआ। वह खुद बताती हैं कि इसके बाद उन्होंने कभी
जींस शर्ट तक नहीं पहनी।
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