ओम राउत की
ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म तानाजी द अनसंग वारियर में, उदयभान सिंह राठौर की नकारात्मक भूमिका के बाद, अभिनेता सैफ अली खान अब कॉमेडी करने जा
रहे हैं। वह नितिन कक्कड़ की फिल्म जवानी
जानेमन में हास्यास्पद परिस्थितियों से गुजरने वाले अमर खन्ना की भूमिका कर रहे
हैं, जो औरतों से फ़्लर्ट करता फिरता है। उसके जीवन में नाटकीय परिस्थितियां उस समय पैदा
हो जाती हैं,
जब एक जवान
लड़की उसकी ज़िन्दगी में आती है। वह उस समय
हास्यास्पद हो जाता है,
जब वह लड़की
उसे बताती है कि वह उसकी बेटी है। इसके बाद, फिल्म एक बेटी और एक पिता की कहानी बन जाती है। लंदन में अपनी बेटी से
सामंजस्य बैठाते हुए, अमर उससे भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है।
रिश्तों के
बीच पिता और पुत्री
हिंदी
फिल्मों में मानवीय सम्बन्ध हमेशा से मायने रखते रहे हैं। कभी प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी, माँ-बाप और बच्चे, कभी बेटा-माँ,
बेटा-पिता, बेटी-माँ, बेटी-पिता और पर भाई-बहन के रूप में सम्बन्ध परदे पर दिखाए जाते रहे
हैं। इन संबंधों का महत्व,
साठ-सत्तर के
दशक की फिल्मों में ज़्यादा नज़र आता था, लेकिन बॉलीवुड फिल्मों में
एंग्री यंग-मैन के छाने के बावजूद, मानवीय सम्बन्ध नज़र आते रहे। मसलन, अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की फिल्म शोले में जय-वीरू दोस्ती थी। अमिताभ बच्चन की एक्शन फिल्मों मे
तो माँ का हमेशा महत्व रहा है। दीवार का 'मेरे पास माँ है' संवाद आज भी लोगों की जुबान पर है। नितिन कक्कड़ की कॉमेडी फिल्म जवानी
जानेमन में बाप और बेटी की रिश्तों का चित्रण हुआ है। इसलिए इस लेख मे एक बाप और
एक बेटी के रिश्तों के भिन्न रंगों पर आधारित फिल्मों पर नज़र डालते हैं।
समलैंगिक
बेटी का पिता
जवानी जानेमन
से पहले, बाप और बेटी के रिश्तों पर आधारित फिल्म, पिछले साल प्रदर्शित अनिल कपूर और सोनम
कपूर की फिल्म एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा थी। इस फिल्म की कहानी स्वीटी के रोमांस
पर फिल्म है। पिता चाहता है कि बेटी शादी
कर ले, चाहे वह मुसलमान ही क्यों न हो ! लेकिन, सम्बन्धो में तनाव और खिंचाव उस समय पैदा
हो जाता है, जब लड़की अपने समलैंगिक संबंधों का खुलासा
करती है। अब यह बात दीगर है कि शैली चोपड़ा धर की फिल्म एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
का कथानक दर्शकों को बिलकुल रास नहीं आया। फिल्म पहले दिन से ही दर्शकों की
नाराज़गी का शिकार हो गई।
बदल रहे हैं पिता
और पुत्री के रिश्ते
यहाँ याद आती
है १९६४ में रिलीज़ एलवी प्रसाद की फिल्म बेटी-बेटे की। यह फिल्म एक विधुर बाप और उसके तीन बच्चों के
संबंधों पर थी। लेकिन सबसे बड़ी बेटी से उसका गहरा भावनात्मक लगाव था। कर्ज में डूबा वह व्यक्ति एक दुर्घटना में अपनी
आँखें खो बैठता है। बच्चों पर बोझ न बनना
पड़े, यह सोच कर वह घर छोड़ कर चले जाता है। बेटी
अपने दोनों भाइयों को पालती और पढ़ाती-लिखाती है। साठ के दशक में ऎसी बहुत सी
फ़िल्में बनाई गई। परन्तु समय के साथ रिश्ते में बदलाव नए शुरू हो गए। रिश्तों में
अब वह घनिष्ठता नहीं रह गई थी। ख़ास तौर पर
बॉलीवुड बहुत बदल गया। उसकी फिल्मों के सम्बन्ध समलैंगिक रिश्तों तक आ पहुंचे। एक
लड़की को देखा तो ऐसा लगा में पिता-पुत्री के समबन्धों के बीच ऐसे रिश्तों की झलक
देखने को मिली थी।
बेटी के लिए पिता
के भिन्न रूप
बॉलीवुड
फिल्मों में पिता के भिन्न रूप नज़र आते हैं।
ज़्यादातर वह बच्चों का संरक्षक है।
वह अपने बच्चों का भला चाहता है। इसके लिए वह कभी सख्त भी हो जाता है। पिता का मित्र रूप तो कई फिल्मों में देखने को मिलता है। करण जौहर और आदित्य चोपड़ा की फिल्मों में पिता
और बेटी के रिश्तों को ख़ास महत्व दिया गया है।
आदित्य चोपड़ा की फिल्म मोहब्बतें में गुरुकुल का प्राचार्य नारायण शंकर को
ऐसा लगता है कि बेटी मेघा को आर्यन से प्रेम नहीं करना चाहिए। वह सख्ती बरतता है।
बेटी आत्महत्या कर लेती है। करण जौहर की
फिल्म कुछ कुछ होता है में बेटी और पिता के सम्बन्ध कुछ अनोखे थे। बेटी, अपने पिता को उसके पुराने प्रेम से मिलाती है। आदित्य चोपड़ा की
पहली फिल्म दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे का पिता अमरीश पूरी अपनी बेटी काजोल के
प्रेम शाहरुख़ खान को नापसंद करता है। सुभाष
घई की फिल्म यादें,
महेश
मांजरेकर की फिल्म पिता,
ओमंग कुमार
की फिल्म भूमि,
आदि जैसी कुछ
फिल्मों का पिता अपनी बेटी के लिए कुछ भी कर सकता है। वह जान दे सकता है और ले भी सकता है। फिल्म पिता और भूमि में संजय दत्त ने और यादें
में जैकी श्रॉफ ने ऐसे ही पिता की भूमिका की थी। कुछ ऐसी फ़िल्में भी बनी, जिनमे पिता और पुत्री के सम्बन्ध अनोखी
डोर से बंधे थे।
आइये जानते
हैं ऐसी कुछ फिल्मों के बारे में-
ख़ामोशी- द
म्यूजिकल - संजय लीला भंसाली की बतौर निर्देशक इस पहली फिल्म में गूंगे-बहरे पिता
जोसफ और बेटी एनी के बीच संगीत का नाता
था। कुछ परिस्थितियां इन दोनो को संगीत से अलग कर देती है। लेकिन फिर मिलाता संगीत
ही है। इस भूमिका को नाना पाटेकर और मनीषा कोइराला ने किया था।
डैडी- महेश
भट्ट की फिल्म डैडी का पिता शराबी है। वह
अच्छा गायक है। लेकिन,
शराब की लत
ने उसकी गायिकी पर बुरा प्रभाव डाला था।
बेटी को जब इस बारे में पता चलता है तो वह पिता की न केवल शराब छुड़ाती है, बल्कि उसे गाने के लिए भी स्टेज पर उतारती
है। पिता-पुत्री की इस भूमिका को अनुपम खेर और पूजा भट्ट ने किया था।
आरक्षण
- प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण, जातिगत आरक्षण के खिलाफ फिल्म थी। इस फिल्म का पिता जातिगत भेदभाव को सही मानता
है। लेकिन, बेटी को एक अनुसूचित जाति के लडके से ही
प्यार है। फिल्म में पिता -पुत्री की भूमिका
अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण ने की थी। पिता कब्ज़ का मरीज और झक्की है। इन
दोनों के सम्बन्ध बेहद मज़ेदार थे।
पीकू- शूजित
सरकार की फिल्म पीकू में एक बार फिर अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण की पिता
-पुत्री जोड़ी बनाई गई थी।
डैडी- महेश भट्ट निर्देशित फिल्म डैडी की कहानी एक
बेटी के अपनी पिता की खोज में नैरोबी पहुँच जाने की कहानी थी। लेकिन, युवा बेटी को देख कर पिता खुश नहीं होता।
क्योंकि, अब उसकी स्वतंत्रता में खलल पड़ेगा। इस
फिल्म की कहानी से मिलती-जुलती कहानी जवानी जानेमन की भी है। डैडी के पिता और
पुत्री अनुपम खेर और मयूरी कांगो थे।
चीनी कम - आर
बाल्की निर्देशित फिल्म चीनी कम एक ६० साल के शेफ और उससे ३० साल जूनियर के बीच
प्रेम की कहानी में,
उस समय
मज़ेदार मोड़ आता है,
जब शेफ लड़की
के पिता से शादी की अनुमति लेने के लिए
मिलने जाता है। फिल्म में पिता
परेश रावल और बेटी तब्बू के बीच का रिश्ता बड़ा दिलचस्प था।
चाची ४२०-
कमल हासन,
खुद की
निर्देशित फिल्म चाची ४२० में एक ऐसे पिता की भूमिका में थे, जो अपनी बेटी से मिलने के लिए औरत बन कर
उसके नाना के घर काम करने लगता है। इस
फिल्म में कमल हासन की बेटी की भूमिका फातिमा सना शेख ने की थी।
क्या कहना -
कुंदन शाह निर्देशित फिल्म क्या कहना में पिता अपनी कुंवारी माँ बनने जा रही बेटी
का साथ देता है। यह भूमिकाएं अनुपम खेर और
प्रीटी ज़िंटा ने की थी।
दंगल- निर्देशक नितेश तिवारी की बायोपिक फिल्म दंगल
का पहलवान पिता,
बेटा न होने
के कारण अपनी दो बेटियों को अखाड़े में उतारता है। उसकी दोनों बेटियां राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगता में पदक जीत कर लाती हैं। पिता और दो बेटियों की भूमिकाएं आमिर खान, फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा ने की
थी।
बॉलीवुड
फिल्मों के पिता अनुपम खेर
अनुपम खेर का
हिंदी फिल्म डेब्यू आगमन फिल्म से हुआ था। महेश भट्ट निर्देशित फिल्म सारांश में
उन्होंने पहली बार एक बूढ़े पिता की भूमिका की थी।
इस फिल्म के बाद,
अनुपम खेर
पिता की भूमिका के लिए सुरक्षित कर लिए गए। दिलचस्प बात यह थी कि अनुपम खेर ने यश
चोपड़ा की फिल्म विजय में,
अपने से सात
साल बड़ी हेमा मालिनी के पिता की भूमिका की थी।
वह इसी फिल्म में १३ साल बड़े राजेश खन्ना के ससुर बने थे। वह उम्र अनिल
कपूर और तीन साल बड़े ऋषि कपूर के नाना बने थे। अनुपम खेर ने हेमा मालिनी के अलावा
दूसरी युवा अभिनेत्रियों और अभिनेताओं के ऑन-स्क्रीन पिताओं की भूमिकाये की हैं।
कहा जाता है कि जिस किसी फिल्म में अनुपम खेर पिता बन जाते हैं, वह हिट हो जाती है।
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