Thursday, 30 January 2020

Gul Makai सिनेमा नहीं, साहस की किताब है



फ़िल्म 'गुल मकई' मलाला के ज़िंदगी की साहस भरी कहानी पर आधारित है, और डायरेक्टर एच. ई. अमजद ख़ान को इसे पूरी तरह दिखाने के लिए एक बड़े कैनवास की जरूरत थी। सबसे दिलचस्प बात यह है कि एक युवा लड़की, मलाला युसुफ़ज़ई ने हथियारों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करने के साथ-साथ अपनी कलम भी उठाई। गुल मकई एक सिनेमा नहीं है बल्कि यह तो साहस की किताब है, यह बहादुरी और निडरता की मिसाल है।

मलाला की कहानी को पर्दे पर उतारने के लिए, फ़िल्म-मेकर्स ने बिल्कुल उसी तरह का बैकग्राउंड तैयार किया और फ़िल्म को सही मायने में पूरा करने के लिए गुल मकई की टीम ने महीनों तक भारत में इसके लिए एकदम असली दिखने वाले लोकेशन की तलाश जारी रखी। कश्मीर और गांदरबल के अलावा गुजरात में भुज और गांधीधाम के कुछ खास लोकेशन पर इस फ़िल्म की शूटिंग की गई है। मलाला युसुफ़ज़ई का स्कूल, यानी कि 'खुशाल पब्लिक स्कूल' तालिबान के खिलाफ मलाला की लड़ाई का केंद्रबिंदु है। इस फ़िल्म के लिए स्कूल के सेट को कश्मीर के गांदरबल में तैयार किया गया था।

तालिबान और पाकिस्तानी आर्मी के एक्टर्स के बीच के फाइट एवं चेसिंग सीक्वेंस को याद करते हुए, फ़िल्म के डायरेक्टर एच.ई.अमजद ख़ान कहते हैं, “तालिबान की भूमिका निभाने वाले एक्टर्स के चेहरे के हाव-भाव को बिल्कुल असली बनाने के लिए मैंने उनसे यह सच्चाई छुपाई थी कि चेसिंग सीन में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर जमीन में ब्लास्टिंग एलिमेंट्स मौजूद होंगे, ताकि उनका एक्सप्रेशन बनावटी नहीं लगे। इसके अलावा, सीन को हर एंगल से कैप्चर करने के लिए हमने कार पर भी कैमरे लगाए थे, क्योंकि मैं रियल एक्सप्रेशन की तलाश में था। इस तरह चेसिंग और ब्लास्ट के सीन को पूरा किया गया था। कार में बैठे सभी एक्टर्स काफी घबरा गए थे क्योंकि उन्हें ब्लास्ट के बारे में कुछ मालूम ही नहीं था, हालांकि बाद में मैंने उन्हें समझाया कि सभी ब्लास्ट नकली थे, तथा हमने इसके लिए जरूरी सुरक्षा और सावधानी का पूरा ध्यान रखा था।

उन्होंने आगे बताया, "इस फ़िल्म में दिखाई गई हर चीज, हूबहू मलाला की असल ज़िंदगी की तरह ही नज़र आती है। हालांकि, इस फ़िल्म में भयंकर/ दिल दहला देने वाली घटनाओं का केवल 25% हिस्सा ही दिखाया गया है, क्योंकि<span lang="HI" style="font-size:13pt;line-height:150%;font-family:"Arial Unicode MS&

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