Wednesday 7 October 2015

क्या लौट रहा है ऐतिहासिक-कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों का ज़माना !

क्या ऐतिहासिक और कॉस्ट्यूम फिल्मों का दौर शुरू हो रहा है।  ऐसा सोचने के कारण है।  इसके लिए ज़िम्मेदार है साउथ का सिनेमा।  साल के मध्य में 'बाहुबली: द बेगिनिंग' ने पूरी दुनिया में अपनी धाक जमानी शुरू कर दी थी।  इस फिल्म ने चकित किया था बॉलीवुड सिनेमा को।  हालाँकि, बाहुबली को बड़े पैमाने पर रिलीज़ करने वाले करण जौहर थे।  लेकिन, अपने कंटेंट के कारण बाहुबली का जादू दर्शकों के सर पर इस तरह बोला कि सलमान खान की फिल्म 'बजरंगी भाईजान' का जादू वैसा नहीं चढने पाया । अब २ अक्टूबर से तमिल फिल्म 'पुलि' हिंदी में डब हो कर रिलीज़ हो गई है।  इसके बाद, रुद्रमादेवी आएगी।  यह सभी कॉस्ट्यूम ड्रामा या ऐतिहासिक फिल्में है।  दिसंबर में संजयलीला भंसाली  पेशवा बाजीराव की कहानी 'बाजीराव मस्तानी' लेकर आएंगे।  अगले साल बाहुबली का दूसरा भाग 'बाहुबली : द कंक्लूजन' रिलीज़ होगी।  २०१६ में ही आशुतोष गोवारिकर प्रागैतिहासिक काल की पृष्ठभूमि वाली फिल्म 'मोहन जोदड़ो' लेकर हाज़िर होंगे। केतन मेहता भी कंगना रनौत को लेकर रानी लक्ष्मी बाई पर फिल्म बनाएंगे। साफ़ तौर पर ऐतिहासिक और कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों का दौर चलने जा रहा है।
इसमे कोई शक नहीं कि 'बाहुबली : द बेगिनिंग' ने अपने चकित करने वाले फंतासी दृश्यों और झिलमिलाती रंगीन भारी पोशाकों से दर्शकों को आकर्षित किया।  आम तौर पर ऐतिहासिक फ़िल्में हिंदी दर्शकों को रास आती है। दरअसल, दर्शकों को अपना इतिहास देखना अच्छा लगता है। किताबों में पढ़े हुए कुछ ऐतिहासिक चरित्र जब सेलुलाइड पर उतरते हैं तो अपनी भव्यता के कारण दर्शकों को चकाचौंध कर देते हैं।  इनका कथ्य भी प्रभावित करने वाला प्रेरणादाई होता है।  १९२४ में बाबुराव पेंटर ने एक ऐतिहासिक फिल्म 'सति पद्मिनी' निर्देशित की थी।  यह फिल्म १४ वी सदी के चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की थी, जिसकी एक झलक दिल्ली का सुलतान अलाउद्दीन ख़िलजी देख लेता और  उसे पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण कर  देता है। अब  यह बात दीगर है कि ख़िलजी राजपूतों को तो हरा देता है।  लेकिन पद्मिनी उसके हाथ आने से पहले ही जौहर कर लेती है।  इस फिल्म को उस समय इंग्लैंड में बहुत दर्शक मिले।  वेम्ब्ले एग्जिबिशन में इसे प्रदर्शित किया गया। सति पद्मिनी मूक फिल्म थी।  लेकिन, बोलती फिल्मों की शुरुआत ही कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म 'आलमआरा' से हुई थी।  यह एक राजकुमारी की प्रेम कहानी थी। मिनर्वा मूवीटोन के मालिक और अभिनेता निर्देशक सोहराब मोदी की यह मील का पत्थर साबित हुई ।  सोहराब मोदी की अन्य ऐतिहासिक फिल्मों में पुकार, सिकंदर, पृथ्वी बल्लभ और झाँसी की रानी उल्लेखनीय थी।  झांसी की रानी हिंदुस्तान की पहली टैक्नीकलर फिल्म थी। वैसे, बॉलीवुड ने मुग़ल-काल पर फ़िल्में अधिक बनाई।  अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ पसंदीदा करैक्टर साबित हुए।
ऐतिहासिक फिल्मों में महिला किरदारों को ख़ास अहमियत मिली।  अकबर के बेटे जहांगीर की अनारकली से मोहब्बत फिल्म अनारकली और मुग़ल-ए-आज़म में हिट हुई।  अनारकली का काल्पनिक चरित्र सेल्युलाइड पर जीवंत और अमर हो गया।  मुग़ल-ए- आज़म में अकबर और जोधा का टकराव बेटे जहांगीर के कारण होता था। लेकिन, आशुतोष  गोवारिकर ने फिल्म 'जोधा-अकबर में इसे प्रेम कहानी में तब्दील कर दिया।  कमाल अमरोही की  १९८३ में रिलीज़ हेमा मालिनी, धर्मेन्द्र और परवीन बॉबी की फिल्म 'रज़िया सुल्तान' दिल्ली की सुल्तान रज़िया के जीवन पर थी।  इस फिल्म में रज़िया और उसके गुलाम याकूत के प्रेम को ज़्यादा महत्व दिया गया था। इस लिहाज़ से १९६१ में देवेन्द्र गोयल की फिल्म 'रज़िया सुलतान' रज़िया के योद्धा और शासक करैक्टर के साथ न्याय करती थी।  फिल्म में निरुपा रॉय ने रज़िया और कामरान ने याकूत की भूमिका की थी। ताजमहल की मुमताज़ महल शौहर शाहजहाँ द्वारा उसकी याद में बनाये गए ताज के कारण अमर हो गई। शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा पर भी इसी टाइटल के साथ फिल्म बनाई गई थी। सभी ऐतिहासिक फिल्मों में महिला किरदार अपने पुरुष किरदारों की टक्कर के थे।
तलवारबाज़ी की महारथी

ऐतिहासिक फिल्मों की नायिका बनने का मतलब है कि फुटेज ज़्यादा मिलना और तलवार भांजना। रज़िया सुल्तान की हेमा मालिनी के हाथों में शयन कक्ष के अलावा हर समय में  तलवार हुआ करती थी। हेमा मालिनी को युद्ध के मैदान पर तलवार से स्टंट करते दिखाया गया था।   संतोष सिवान की ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म अशोक में तलवारबाज़ी के सीन ज़बरदस्त थे।  यह तलवारबाज़ी अशोक बने शाहरुख खान ने भी की थी और राजकुमारी कौरवाकी की भूमिका में करीना कपूर भी तलवार चला रही थी । गोल्डी बहल की फिल्म 'द्रोण'  में प्रियंका चोपड़ा ने अभिषेक बच्चन की बॉडीगार्ड सोनिया के किरदार में सिख युद्ध अस्त्र गटका  चला कर दर्शकों को चकित कर दिया था । सोहराब मोदी की फिल्म 'झाँसी की रानी' में अभिनेत्री मेहताब ने लक्ष्मीबाई के किरदार में खूब तलवारें भांजी थी। इसी साल रिलीज़ एस एस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली द बेगिनिंग' में महारानी शिवागामी बनी राम्या कृष्णन ने तलवार भांज कर अपनी बाजुओं की ताक़त का प्रदर्शन किया था। अब 'बाहुबली द कनक्लूजन' में अवंतिका के किरदार में तमन्ना भाटिया और देवसेना के किरदार में अनुष्का शेट्टी तलवारबाज़ी करती नज़र आ सकती हैं।  इसी साल दिसंबर में रिलीज़ होने जा रही 'बाजीराव मस्तानी' में दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा ने तलवारबाज़ी की है।  दीपिका पादुकोण ने तो धनुष उठा कर तीर भी छोड़े हैं। अगर कंगना रनौत ने  केतन मेहता की फिल्म छोड़ी नहीं तो वह रानी लक्ष्मीबाई के किरदार में तलवारबाज़ी के हुनर दिखा सकती है।
जॉन अब्राहम १८ वी सदी के एक चर्चित करैक्टर पर एक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म बना रहे हैं। अभी फिल्म का नाम नहीं रखा गया है। यह फिल्म एक पुस्तक पर आधारित है, जिसके फिल्म निर्माण अधिकार निर्माता मधु मोंतेना ने खरीद लिए हैं।  यह कौन सा किरदार होगा, इसका खुलासा जॉन अब्राहम नहीं करते। परन्तु इतना तय है कि वह फिल्म में योद्धा के किरदार में होंगे। इस रोल के लिए उन्हें खुद में चपलता लानी होगी।  चीते जैसी पैंतरेबाज़ी सीखनी होगी।  मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग भी लेनी है।  खुद को १८ वी शताब्दी के उस वंशज में बदल लेना है।  इस फिल्म का निर्देशन जॉन अब्राहम के दोस्त सबल शेखावत करेंगे। यह जॉन अब्राहम की पहली पीरियड फिल्म होगी। जॉन से अलग, ह्रितिक रोशन दूसरी बार कोई पीरियड फिल्म कर रहे होंगे।  आशुतोष गोवारिकर की फिल्म  अकबर में अकबर का किरदार सफलतापूर्वक करने वाले ह्रितिक रोशन के लिए प्रागैतिहासिक काल पर आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'मोहन जोदड़ों' के किरदार से खदु को जोड़ पाना मुश्किल होगा।  ह्रितिक रोशन का लुक काफी आधुनिक है।  जोधा अकबर में उन्हें इसका सामना करना पड़ा था।  लेकिन, भारी कस्टयूम के पीछे उनकी यह कमी छिप गई थी।  क्या वह मोहन जोदड़ो में इस
कमी से निजात पा लेंगे?
बॉलीवुड ने ऐतिहासिक फिल्मों में रोमांस को तरजीह दी है। इन फिल्मों में रोमांस भर देने से गीत-संगीत की अच्छी गुंजाईश हो जाती है।  जहाँ एक तरफ एक्शन होता है, वहीँ रोमांस के फूल भी खिलते है।  इससे इमोशनल दृश्य दर्शकों को विविधता देते हैं। रोमांस के ज़रिये ही दिलीप कुमार सलीम में रूप में आज भी याद किये जाते हैं।  बीना रॉय और मधुबाला अनारकली के रूप में अमर हैं।  ताजमहल का ज़िक्र करते ही फिल्म की मुमताज़ बीना रॉय याद आ जाती हैं।  एक समय माला सिन्हा ने जहाँआरा फिल्म में जहाँआरा के किरदार में अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन किया था।  महताब आज भी लक्ष्मी बाई के नाम से याद की जाती हैं।  अब, जबकि संजयलीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में मोहब्बत के फूल खिल रहे हैं, दीपिका पादुकोण मस्तानी के किरदार के लिए बरसों याद की जाती रहेंगी। 

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