१९६४ में रिलीज़ फिल्म 'यादें' का नाम गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में सबसे कम एक्टरों वाली फिल्म के रूप में दर्ज़ है। इस फिल्म का निर्माण सुनील दत्त की फिल्म निर्माण कंपनी अजंता आर्ट्स के अंतर्गत किया गया था। इस फिल्म का एक मात्र करैक्टर अनिल सुनील दत्त का ही था। इस ११३ मिनट लम्बी फिल्म का निर्देशन सुनील दत्त ने ही किया था। 'यादें' सुनील दत्त की बतौर निर्देशक पहली फिल्म थी। इस फिल्म के बाद सुनील दत्त ने बतौर निर्माता निर्देशक मुझे जीने दो, ये रास्ते हैं प्यार के, रेशमा और शेरा, मन का मीत, रॉकी, नहले पे दहला, दर्द का रिश्ता और ये आग कब बुझेगी बनाई। मुझे जीने दो डाकू समस्या पर फिल्म थी। ये रास्ते हैं
प्यार के मशहूर नानावटी कांड पर फिल्म थी। सुनील दत्त ने अपने भाई सोम दत्त को हीरो बनाने के लिए मन का मीत और बेटे संजय दत्त को हीरो बनाने के लिए 'रॉकी' का निर्माण किया। मुझे जीने दो, रेशमा और शेरा और ये रास्ते है प्यार के जैसी फिल्मों ने उन्हें जो नुक्सान दिया था, उसकी भरपाई के लिए ही उन्होंने मन का मीत जैसी फिल्म का निर्माण किया। इस फिल्म में नायिका लीना चंद्रावरकर ने अंग प्रदर्शन के तमाम कीर्तिमान तोड़ दिए थे। इसीलिए फिल्म समीक्षकों ने इस फिल्म को 'मैन का मीट' बताया। अब यह बात दीगर है कि सुनील दत्त ने बाद में समीक्षकों की इन आलोचनाओ का जवाब कैंसर पर फिल्म दर्द का रिश्ता और दहेज़ हत्या पर ये आग कब बुझेगी बना कर दिया । लेकिन, सुनील दत्त आज भी अद्वितीय हैं अपनी एकल एक्टर फिल्म 'यादें' के कारण। यादें पूरी तरह से प्रयोगात्मक फिल्म थी। सुनील दत्त ने कमर्शियल फिल्मों के दौर में ऐसा जोखिम उठाने का साहस किया। यादें वर्णनात्मक फिल्म थी। फिल्म को संवादों और संगीत के ज़रिये आगे बढ़ाया गया था। फिल्म का एकल किरदार अनिल देर रात घर आता है। वह घर में सन्नाटा पाता है। वह अपने बड़े से घर के हर कमरे, रसोई, डाइनिंग हॉल, आदि में देखता है। उसकी पत्नी और बच्चा घर में नहीं है। उसे लगता है कि उन्होंने (पत्नी और बच्चे ने) उसे छोड़ दिया। क्योंकि, रात की पार्टी के बाद, सुबह ही किसी बात पर अनिल का अपनी पत्नी से बड़ा झगड़ा हुआ था। शायद बीवी छोड़ गई थी अनिल को। यह सोच कर अनिल कुर्सी पर पसर जाता है। अब घेर लेती हों उसे यादें। कैसे, कब क्या हुआ था ! वह एक एक
कर सोचता जाता है। कभी वह खुद से बडबडाता है, घटनाओं को याद करते हुए उसके चहरे पर ख़ुशी, दुःख, क्रोध, निराशा के भाव आते जाते हैं। उसे याद आता है पत्नी से आज का झगड़ा। वह महसूस करता है कि इसमे उसी की गलती थी। वह खुद को नुक्सान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। तभी बाहर से बीवी की आवाज़ आती है, जो उसे ऐसा करने से रोकती है । अनिल बाहर की रोशनी से खिड़की के परदे पर गिर रही पत्नी और बच्चे की परछाई को देखता है । वह खुश हो जाता है। पत्नी और बच्चा वापस आ गए। इसी के साथ फिल्म ख़त्म हो जाती है। फिल्म में निर्देशक सुनील दत्त ने अपनी बात कहने के लिए संवादों, ध्वनि और प्रकाश का बढ़िया उपयोग किया था। अख्तर उल ईमान के संवाद, वसंत देसाई का संगीत (खास तौर पर लता मंगेशकर का गाया 'देखा है सपना कोई' गीत) तथा एस रामचन्द्र का छायांकन और एस्सा एम सुरतवाला की साउंड मिक्सिंग फिल्म की जान थी। सुनील दत्त ने बेहतरीन अभिनय किया था। पूरी फिल्म में सुनील दत्त के अलावा फिल्म के अंत में दो परछाइयाँ ही पत्नी और बेटे की मौजूदगी का एहसास कराती थी। यह परछाइयाँ सुनील दत्त की रियल लाइफ में पत्नी नर्गिस और बेटे संजय दत्त की थी। संजय दत्त उस समय केवल पांच साल के थे।
कुछ लोगों का कहना था कि यादें परिवार के होते हुए भी सुनील दत्त के एकाकी जीवन का परिणाम थी। सुनील दत्त की नर्गिस से शादी १९५८ में फिल्म 'मदर इंडिया' की रिलीज़ के ठीक बाद ही हो गई थी। लेकिन, सुनील दत्त के मुकाबले नर्गिस बड़ी एक्ट्रेस थी। हालाँकि, नर्गिस ने शादी के बाद फिल्मों में काम करना छोड़ दिया। लेकिन, वह सोशल वर्क करती थी। उनका राजनीतिक जीवन भी था। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से उनकी नज़दीकियां थी। शायद इसी वजह से सुनील दत्त ने एकाकीपन महसूस किया हो। बताते हैं कि सुनील दत्त एक बार अपने एकाकीपन से ऊब कर अपनी पत्नी, बेटे संजय और बेटियों नम्रता और
प्रिया को साथ लेकर कही घूमने गए थे। वापस लौटते समय उनके दिमाग में यादें की कहानी उभर आई। श्वेत-श्याम फिल्म 'यादें' को विदेशों में 'मेमोरीज' टाइटल से रिलीज़ किया गया था। यादें के लिए एस रामचन्द्र को बेस्ट सिनेमैटोग्राफर और एस्सा एम सुरतवाला को बेस्ट साउंड रिकार्डिस्ट का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। लेकिन, तत्कालीन दर्शकों को सुनील दत्त का यह वर्ल्ड में पहला और इकलौता प्रयास पसंद नहीं आया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से असफल हुई। सुनील दत्त की श्रेष्ठ कल्पनाशीलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक पार्टी सीक्वेंस बैलून्स के सहारे क्रिएट कर दिया था। बच्चे के खिलौने और पत्नी की पेंटिंग के सहारे वह कहानी कह रहे थे। सुनील दत्त जानते थे कि वह क्या करने जा रहे हैं। इसीलिए फिल्म के क्रेडिट में गर्व के साथ लिखा गया था- वर्ल्ड'स फर्स्ट वन-एक्टर मूवी। हालाँकि, आलोचकों का कहना है कि फिल्म को वन-एक्टर मूवी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि फिल्म के लिए नर्गिस और संजय दत्त की परछाई और आवाज़ का इस्तेमाल किया गया था।
प्यार के मशहूर नानावटी कांड पर फिल्म थी। सुनील दत्त ने अपने भाई सोम दत्त को हीरो बनाने के लिए मन का मीत और बेटे संजय दत्त को हीरो बनाने के लिए 'रॉकी' का निर्माण किया। मुझे जीने दो, रेशमा और शेरा और ये रास्ते है प्यार के जैसी फिल्मों ने उन्हें जो नुक्सान दिया था, उसकी भरपाई के लिए ही उन्होंने मन का मीत जैसी फिल्म का निर्माण किया। इस फिल्म में नायिका लीना चंद्रावरकर ने अंग प्रदर्शन के तमाम कीर्तिमान तोड़ दिए थे। इसीलिए फिल्म समीक्षकों ने इस फिल्म को 'मैन का मीट' बताया। अब यह बात दीगर है कि सुनील दत्त ने बाद में समीक्षकों की इन आलोचनाओ का जवाब कैंसर पर फिल्म दर्द का रिश्ता और दहेज़ हत्या पर ये आग कब बुझेगी बना कर दिया । लेकिन, सुनील दत्त आज भी अद्वितीय हैं अपनी एकल एक्टर फिल्म 'यादें' के कारण। यादें पूरी तरह से प्रयोगात्मक फिल्म थी। सुनील दत्त ने कमर्शियल फिल्मों के दौर में ऐसा जोखिम उठाने का साहस किया। यादें वर्णनात्मक फिल्म थी। फिल्म को संवादों और संगीत के ज़रिये आगे बढ़ाया गया था। फिल्म का एकल किरदार अनिल देर रात घर आता है। वह घर में सन्नाटा पाता है। वह अपने बड़े से घर के हर कमरे, रसोई, डाइनिंग हॉल, आदि में देखता है। उसकी पत्नी और बच्चा घर में नहीं है। उसे लगता है कि उन्होंने (पत्नी और बच्चे ने) उसे छोड़ दिया। क्योंकि, रात की पार्टी के बाद, सुबह ही किसी बात पर अनिल का अपनी पत्नी से बड़ा झगड़ा हुआ था। शायद बीवी छोड़ गई थी अनिल को। यह सोच कर अनिल कुर्सी पर पसर जाता है। अब घेर लेती हों उसे यादें। कैसे, कब क्या हुआ था ! वह एक एक
कर सोचता जाता है। कभी वह खुद से बडबडाता है, घटनाओं को याद करते हुए उसके चहरे पर ख़ुशी, दुःख, क्रोध, निराशा के भाव आते जाते हैं। उसे याद आता है पत्नी से आज का झगड़ा। वह महसूस करता है कि इसमे उसी की गलती थी। वह खुद को नुक्सान पहुंचाने के लिए तैयार हो जाता है। तभी बाहर से बीवी की आवाज़ आती है, जो उसे ऐसा करने से रोकती है । अनिल बाहर की रोशनी से खिड़की के परदे पर गिर रही पत्नी और बच्चे की परछाई को देखता है । वह खुश हो जाता है। पत्नी और बच्चा वापस आ गए। इसी के साथ फिल्म ख़त्म हो जाती है। फिल्म में निर्देशक सुनील दत्त ने अपनी बात कहने के लिए संवादों, ध्वनि और प्रकाश का बढ़िया उपयोग किया था। अख्तर उल ईमान के संवाद, वसंत देसाई का संगीत (खास तौर पर लता मंगेशकर का गाया 'देखा है सपना कोई' गीत) तथा एस रामचन्द्र का छायांकन और एस्सा एम सुरतवाला की साउंड मिक्सिंग फिल्म की जान थी। सुनील दत्त ने बेहतरीन अभिनय किया था। पूरी फिल्म में सुनील दत्त के अलावा फिल्म के अंत में दो परछाइयाँ ही पत्नी और बेटे की मौजूदगी का एहसास कराती थी। यह परछाइयाँ सुनील दत्त की रियल लाइफ में पत्नी नर्गिस और बेटे संजय दत्त की थी। संजय दत्त उस समय केवल पांच साल के थे।
कुछ लोगों का कहना था कि यादें परिवार के होते हुए भी सुनील दत्त के एकाकी जीवन का परिणाम थी। सुनील दत्त की नर्गिस से शादी १९५८ में फिल्म 'मदर इंडिया' की रिलीज़ के ठीक बाद ही हो गई थी। लेकिन, सुनील दत्त के मुकाबले नर्गिस बड़ी एक्ट्रेस थी। हालाँकि, नर्गिस ने शादी के बाद फिल्मों में काम करना छोड़ दिया। लेकिन, वह सोशल वर्क करती थी। उनका राजनीतिक जीवन भी था। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से उनकी नज़दीकियां थी। शायद इसी वजह से सुनील दत्त ने एकाकीपन महसूस किया हो। बताते हैं कि सुनील दत्त एक बार अपने एकाकीपन से ऊब कर अपनी पत्नी, बेटे संजय और बेटियों नम्रता और
प्रिया को साथ लेकर कही घूमने गए थे। वापस लौटते समय उनके दिमाग में यादें की कहानी उभर आई। श्वेत-श्याम फिल्म 'यादें' को विदेशों में 'मेमोरीज' टाइटल से रिलीज़ किया गया था। यादें के लिए एस रामचन्द्र को बेस्ट सिनेमैटोग्राफर और एस्सा एम सुरतवाला को बेस्ट साउंड रिकार्डिस्ट का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। लेकिन, तत्कालीन दर्शकों को सुनील दत्त का यह वर्ल्ड में पहला और इकलौता प्रयास पसंद नहीं आया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से असफल हुई। सुनील दत्त की श्रेष्ठ कल्पनाशीलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक पार्टी सीक्वेंस बैलून्स के सहारे क्रिएट कर दिया था। बच्चे के खिलौने और पत्नी की पेंटिंग के सहारे वह कहानी कह रहे थे। सुनील दत्त जानते थे कि वह क्या करने जा रहे हैं। इसीलिए फिल्म के क्रेडिट में गर्व के साथ लिखा गया था- वर्ल्ड'स फर्स्ट वन-एक्टर मूवी। हालाँकि, आलोचकों का कहना है कि फिल्म को वन-एक्टर मूवी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि फिल्म के लिए नर्गिस और संजय दत्त की परछाई और आवाज़ का इस्तेमाल किया गया था।