Thursday, 14 September 2017

बॉलीवुड में खानदान का सिक्का चलता है मगर.....!

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गलती से मिस्टेक की होगी।  उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया में भारत में डायनेस्टी रूल का ज़िक्र करते हुए बॉलीवुड को भी समेट लिया। इस पर ऋषि कपूर ने अपने ट्विटर अकाउंट से मोर्चा खोल लिया ।  ऋषि कपूर ने लिखा- हिंदी सिनेमा का इतिहास १०४ साल पुराना है, इसमें से ९० साल कपूर परिवार का योगदान है। वह अपने दादा हुज़ूर पृथ्वीराज कपूर का ज़िक्र कर रहे थे, जो मूक सिनेमा के दौर में सेल्युलाइड पर चमके।  तबसे कपूर परिवार की चार पीढ़ियां बॉलीवुड में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं।  इससे लग सकता है कि बॉलीवुड में भी डायनेस्टी रूल करती है।
कुछ समय पहले अभिनेत्री कंगना रनौत ने भी बॉलीवुड में डायनेस्टी रूल का मुद्दा उठा था ।  उस समय फिल्म इंडस्ट्री दो धड़ों में बंट गई थी।  लेकिन क्या सचमुच इंडस्ट्री में खानदान की चलती है ? नाम लें तो पृथ्वीराज कपूर से राज कपूर और फिर ऋषि कपूर और रणबीर कपूर इंडस्ट्री का ऐसा पहला खानदान है।  नरगिस, शोभना समर्थ, देओल, बच्चन, खान, अख्तर, आदि बहुत से खानदान ऐसे हैं, जिनके बच्चों का इस इंडस्ट्री में राज है।  मगर, क्या यह सभी अपने खानदान के बलबूते ही इतनी शोहरत पा सके।  इंडस्ट्री में अपनी जगह बना सके ! पृथ्वीराज कपूर थिएटर से फिल्मों में आये थे। यह भारतीय सिनेमा का शुरूआती युग था।  पृथ्वीराज कपूर अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व और अभिनय क्षमता के बल पर भारतीय सिनेमा के पहले कपूर परिवार की नींव रख पाने में सफल हुए।  लेकिन, उन्होंने अपने बेटों राजकपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर को इंडस्ट्री पर फाॅर्स नहीं किया।  राजकपूर ने क्लैपर बॉय से अपने फिल्म करियर की शुरुआत की।  खुद को हीरो देखने की ललक में निर्देशक किदार शर्मा का चांटा खाया।  इसके बाद ही वह राजकपूर बन पाए।  शम्मी कपूर और शशि कपूर ने भी सफलता पाई।  लेकिन, पृथ्वीराज कपूर के बेटों या राजकपूर के भाइयों की तरह नहीं।  फिल्मों के शुरूआती दौर में नरगिस, शोभना समर्थ, भट्ट, आदि ने सफलता चाहे पा ली हो।  लेकिन, बाद की पीढ़ियों को ऎसी सफलता आसानी से नहीं मिली।
राजकपूर ने बेटे ऋषि कपूर को लेकर पहले मेरा नाम जोकर और फिर बॉबी बनाई।  हीरो बनाने के लिए तो उन्होंने रणधीर कपूर और राजीव कपूर के लिए भी फ़िल्में बनाई।  लेकिन, फिल्म इंडस्ट्री में जगह किसने बनाई।  राजीव कपूर का आज कोई नामलेवा नहीं है।  शशि कपूर के बेटे फ्लॉप हुए, बेटी संजना ने थिएटर में नाम कमाया।  शम्मी कपूर के बेटे का नाम तो कोई भी नहीं जानता होगा।  रणधीर कपूर की बेटियां करिश्मा कपूर और करीना कपूर को इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने में भरपूर मेहनत करनी पड़ी।  रणबीर कपूर बड़ी फ्लॉप फिल्मों के बावजूद आज भी इंडस्ट्री में बने हुए हैं तो केवल अपनी प्रतिभा के बलबूते।  अगर प्रतिभा पैमाना नहीं होती मेगा स्टार अमिताभ बच्चन के पुत्र अभिषेक बच्चन यो बेकार न बैठे होते।  नरगिस के बेटे संजय दत्त अपनी प्रतिभा के कारण ही फिल्मों में बने हुए हैं।  शोभना समर्थ की बेटियां नूतन और तनूजा अपनी प्रतिभा के बलबूते ही इंडस्ट्री में जमी रह सकी । नूतन के बेटे मोहनीश बहल  फिल्मों में  नाकाम रहे।   तनूजा की दो बेटियों में काजोल सफल हुई, जबकि तनिष्ठा को असफलता का मुंह देखना पड़ा।  नानाभाई भट्ट के बेटे महेश भट्ट ने बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाई, लेकिन उनकी एक बेटी पूजा भट्ट को शुरूआती सफलता ही मिली।  आलिया भट्ट अपनी जगह बनाने  कोशिश में हैं।
ज़ाहिर है कि बॉलीवुड में प्रतिभा की पूछ है।  शाहरुख़ खान, प्रियंका चोपड़ा, कंगना रनौत, आदि बहुत से एक्टर इसका प्रमाण है।  इसके बावजूद कपूरों, देओलों, खानों के बेटो बेटियों के फिल्मों में आने की खबरें सुर्ख हैं।  इसे डायनेस्टी रूल नहीं तो क्या कहा जाएगा ? राजनीति के खानदान और फिल्मों के खानदानों में काफी फर्क है।  फिल्मों के खानदानियों को जनता के दिलों में अपनी जगह बनानी होती है।  जो जगह नहीं बना पाता उसे इंडस्ट्री किनारे कर देती है।  इसके बावजूद किसी ख़ास खानदान के बेटे बेटियों के आने का सिलसिला क्यों कायम है? दरअसल, दर्शक खुद चाहता है इन नए चेहरों को देखना।  उन्हें शाहरुख़ खान के बेटे, श्रीदेवी की बेटी और सनी देओल के बेटे का इंतज़ार है।  वह देखना चाहता है कि क्या शाहरुख़ खान का बेटा बाप की ही तरह प्रतिभाशाली है ? क्या श्रीदेवी की बेटी भी माँ की तरह ग्लैमरस और अभिनयशील है ? क्या सनी देओल के बेटे का घूँसा भी ढाई किलो का साबित होगा? इसी तुलना के मद्देनज़र तमाम स्टार संस और डॉटर इंडस्ट्री में आते हैं।  कुछ जगह बना पाते हैं, कुछ देर-सबेर बाहर हो जाते हैं।  

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