अब तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त का ज़माना नहीं रहा। अँखियों से गोली मारे तो सोचिये नहीं। अब यह सब पुरानी बात हो गई है। अब हिंदी फिल्मों की नायिका इतनी मस्त नहीं रही कि कोई लम्पट उससे छेड़छाड़ कर सकें। अब वह अँखियों से गोली नहीं मारती, चितवन से तीर नहीं चलाती। अब वह सचमुच बन्दूक थाम कर अपने नायक के कंधे से कंधा मिला कर दुश्मनों का सफाया कर सकती है। तीर और तलवार चलाना उसके बांये हाथ का खेल है।
बदलाव के साथ
बॉलीवुड में बड़ी तेज़ी से बदलाव हुआ है। कभी निर्देशक ज्ञान मुख़र्जी की फिल्म किस्मत (१९४३) में फिल्म के नायक शेखर (अशोक कुमार) के चाकू रखने पर संसद में बवाल मच गया था। फिल्म को सिर्फ इसी कारण से वयस्कों वाला सेंसर प्रमाणपत्र मिला था। लेकिन इस फिल्म ने अशोक कुमार की किस्मत के ताले खोल दिए। वह बड़े स्टार बन गए। उस समय भी नायिका छुई मुई और नैनन बाण चलाने वाली ही थी। उसकी किस्मत में ज़्यादातर आंसू बहाना ही लिखा था। इसीलिए, जब सीआईडी (१९५६) में वहीदा रहमान के करैक्टर के कंधे से दुपट्टा सरकाने की कोशिश की गई तो वहीदा रहमान निर्देशक राज खोसला से नाराज़ हो गई। सोलहवां साल (१९५८) में उनका घर से भागना फिल्म को वयस्क प्रमाण पत्र दिला गया।
बदला रूप नायिका का
अब फिल्म की नायिका बिंदास है। वह साठ के दशक की फिल्मों की खलनायिका की तरह छोटे और उघडे बदन वाले कपडे पहन सकती है। बिकिनी से उसे परहेज़ नहीं। चुम्बन के लिए अब दो फूलों को भिड़ाने या पक्षियों के चोंच लड़ाने की ज़रुरत नहीं। नायिका के गाली बकने का सिलसिला तो हेमा मालिनी ने सीता और गीता (१९७२) में ही शुरू कर दिया था। वह हंटर चला रही थी। हालाँकि, मूक युग में हंटर और तीर तलवार और बन्दूक चलाने वाली नायिका वाली फ़िल्में खूब बनी। अपनी हंटर वाली सीरीज की फिल्मों के कारण पर्थ ऑस्ट्रेलिया की मैरी इवांस फीयरलेस नादिया के नाम से मशहूर हुई। लेकिन, फिल्मों में आवाज़ के साथ ही हिंदी फिल्मों की नायिका के कन्धों पर परिवार का बोझ आ गया। परिवार को सम्हालना उसकी ज़िम्मेदारी हो गई। युग थोड़ा बदला भी तो नायिका की किस्मत में ख़ास बदलाव नहीं हुआ। धर्मेंद्र के आने के बाद जो एक्शन फ़िल्में बनी उन में भी नायिका के लिए आधुनिक दिखना नसीब नहीं था।
ज़ीनत अमान और परवीन बाबी का आना
हिंदी फिल्मों में नायिका के कलेवर में बदलाव आया ज़ीनत अमान और परवीन बाबी के आने के बाद। मिश्रित रक्त वाली ज़ीनत अमान ने मॉडलिंग की। मिस इंडिया में हिस्सा लिया। उन्हें ओ० पी० रल्हन ने अपनी फिल्म हंगामा की नायिका बनाया। परवीन बाबी जूनागढ़ के राज घराने से थी। आधुनिकता उनके खून में थी। अहमदाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही बीआर इशारा ने उन्हें अपनी फिल्म चरित्र की नायिका बना दिया। यह दोनों अभिनेत्रियां समकालीन थी। इन अभिनेत्रियों के आने के ठीक बाद अमिताभ बच्चन का सितारा चमका। उनका एंग्री यंगमैन हिंदी सिनेमा पर छा गया। बच्चन की फिल्मों में जो कुछ होता था, नायक ही होता था। नायिका को उसका और दर्शकों का मनोरंजन करना होता था बस । ज़ीनत अमान और परवीन बाबी ने यह काम बखूबी किया। उन्होंने हिंदी फिल्मों की खल नायिका का पत्ता काट दिया। इन अभिनेत्रियों ने हाथों में बन्दूक भी थामी। फिल्म इन्साफ का तराज़ू में ज़ीनत अमान बलात्कारी राज बब्बर के चरित्र को गोलियों से भून देती थी।
बदला लेने के लिए
लेकिन, छिटपुट फिल्मों में यह रातोंरात होता था। पूरी फिल्म में अपने नायक के साथ रोमांस करती, शादी के बाद बच्चे पैदा करती नायिका यकायक क्रोधित हो उठती। उसके पति की हत्या हो जाती या घर में किसी सदस्य के साथ कुछ खराब हो जाता, वह तुरंत बदला लेने के लिए बन्दूक उठा लेती। हिंदी में बनी गर्मागर्म फिल्मों की उत्तेजक हावभाव वाली नायिका अपने साथ बलात्कार का बदला लेने के लिए एक एक कर बलात्कारियों को मारने लगती। सब कुछ रातोरात होता। कोई तैयारी नहीं। कोई ट्रेनिंग नहीं। इन फिल्मों को देख कर ऐसा लगता, जैसे कहानी में नायक के बजाय नायिका को फिट कर दिया गया है। बिलकुल अस्वाभाविक जैसा लगता। क्या अपनी गृहस्थी में रमी और नायक पर निर्भर नायिका रातों रात चोला बदल सकती है ? क्या बिना तैयारियों के वह बन्दूक चला सकती है ? बुरे आदमियों को बेहिचक निशाना बना सकती है ? घोड़े पर सरपट भागती नायिका ने घुड़सवारी कब सीखी ? फिल्मों में ऐसे तमाम सवाल अनसुलझे रह जाते।
एक्शन के लिए तैयार अभिनेत्रियां
इसके बावजूद कुछ हिंदी फ़िल्में तमाम सवालों के जवाब देती भी थी। निर्देशक राकेश रोशन की फिल्म खून भरी मांग में आरती का पति संजय वर्मा उसे मगरमच्छों वाले तालाब में धकेल कर मारने की कोशिश करता है। लेकिन, वह एक बूढ़े आदमी द्वारा बचा ली जाती है। वही बूढा आदमी उसे घुड़सवारी, बन्दूक चलाने और मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग देता है। निर्देशक तनूजा चंद्रा की फिल्म दुश्मन जुड़वा बहनों की कहानी थी। एक बहन का बलात्कार हो जाता है। दूसरी बहन बलात्कारी से बदला लेना चाहती है। इसमें उसकी मदद करता है सेना का एक रिटायर मेजर। इन फिल्मों की पटकथाएं विदेशी कहानी से प्रेरित थी। खून भरी मांग एक ऑस्ट्रेलियाई मिनी सीरीज रिटर्न टू ईडन (१९८३) का रीमेक थी, जबकि दुश्मन हॉलीवुड फिल्म ऑय फॉर ऐन ऑय (१९९६) का रीमेक थी। इसलिए इन दोनों फिल्मों की नायिकाएं अपनी पूरी तैयारी के बाद बदला ले रही थी।
इसके बावजूद को रेखा या काजल एक्शन हीरोइन का तमगा हासिल नहीं कर सकी। ऐसा स्वाभाविक था। फिल्म अभिनेत्रियां नायक प्रधान फिल्मों की नायिका बन कर ही खुश थी। एक्शन फिल्म के लिए तैयारी का मतलब किसी सलमान खान या शाहरुख़ खान की फिल्म से हाथ धोना होता। हिंदी फिल्मों की तमाम अभिनेत्रियां खान एक्ट्रेस बन कर ही मस्त थी। लेकिन बदलाव भी एक तकाज़ा होता है।
हॉलीवुड में देसी नायिका का एक्शन
नायक प्रधान एक्शन फिल्मों से दर्शकों का ऊबना स्वाभाविक था। विदेशी स्टूडियोज और बैंकों आदि द्वारा फिल्म निर्माण में रूचि दिखाने के कारण नायिका को अलग नज़रिये से देखना शुरू कर दिया गया। फिल्मों में अपना मुकाम बनाने के लिए बेकरार अभिनेत्रियों ने भी अपने रोल को रियल लाइफ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन अभिनेत्रियों ने अपनी भूमिकाओं को स्वभाविक बनाने के लिए खूब मेहनत की। प्रियंका चोपड़ा को बेस्ट एक्शन हीरोइन का दर्ज़ा दिया जाता है। वह अमेरिकन सीरीज क्वांटिको में एक्शन कर ही रही थी, हॉलीवुड फिल्म बेवॉच में भी धुंआधार एक्शन कर रही हैं। वह अपने रोल के लिए मेहनत करती है। सुपरहीरो फिल्म द्रोण में वह बॉडीगार्ड के किरदार में थी। इसके लिए उन्होंने सिख हथियार गटका चलाना सीखा। कपोरा और मार्शट आर्ट्स की ख़ास ट्रेनिंग ली। उन्हें लेकर जय गंगाजल और मैरी कॉम जैसी नायिका प्रधान एक्शन फ़िल्में बनाई गई। कैटरीना कैफ अपनी भूमिकाओं के लिए काफी तैयारी करती हैं। एक था टाइगर के लिए उन्होंने कार्डियक और वेट ट्रेनिंग ली, ताकि अपने एक्शन आसानी से कर सकें। वह इस फिल्म के सीक्वल टाइगर ज़िंदा है के लिए कॉम्बैट ट्रेनिंग ले रही है। फिल्म में उनके कई खतरनाक एक्शन दृश्य बताये जा रहे हैं। कंगना रनौत भी बेहद परफेक्ट हीरोइन हैं। उन्होंने कृष ३ में अपनी काया की भूमिका के लिए खुद को तुंब रेडर की लारा क्रॉफ्ट जैसा ढाला ही, अपना वजन काफी घटाया, कराटे, जुडो और ताइक्वांडो की ट्रेनिंग ली। वह रानी लक्ष्मी बाई पर अपनी फिल्म के लिए घुड़सवारी और तलवारबाज़ी भी सीख रही हैं। बिपाशा बासु ने हॉलीवुड फिल्म सिंगुलैरिटी, ऐश्वर्या राय बच्चन ने धूम २ और जोधा अकबर और अपनी हॉलीवुड फिल्म पिंक पैंथर के लिए तलवारबाज़ी सीखी है। दीपिका पादुकोण ने चांदनी चौक टू चाइना के लिए मार्शल आर्ट्स सीखी। उन्होंने बाजीराव मस्तानी के लिए तलवारबाज़ी सीखी।
फिर भी... हॉलीवुड एक्ट्रेस से पीछे
इसके बावजूद बॉलीवुड अभी तक ब्रिगिट निएल्सन (रेड सोन्या और रॉकी), एंजेलिना जोली (तुंब रेडर की लारा क्रॉफ्ट), मिला जोवोविच (रेजिडेंट ईविल सीरीज की एलिस), केट बेकिंस्ले ( अंडरवर्ल्ड सीरीज की सेलेन), सीगोर्नी वीवर (एलियंस की रिप्ले) और जेनिफर लॉरेंस (द हंगर गेम्स सीरीज की कैटनिस एवरडीन) के तोड़ की कोई अभिनेत्री तैयार नहीं कर सका है। हाल ही में अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा को बॉलीवुड की एंजेलिना जोली बताया जा रहा था। क्योंकि, वह अकीरा और फाॅर्स २ में एक्शन कर रही थी। ऐसा लग रहा था कि वह एक्शन स्टार बन कर उभरेंगी। लेकिन, दोनों ही फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम हुई। तापसी पन्नू ने फिल्म बेबी में कुछ एक्शन सीन किये थे। लेकिन, शिवम् नायर की एक्शन फिल्म नाम शबाना में वह एक रॉ एजेंट का केंद्रीय एक्शन किरदार कर रही थी। इसके लिए तापसी पन्नू ने मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग के अलावा कूडो और कर्व मागा भी सीखा। तापसी पन्नू की फिल्म भी असफल हुई।
हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियां खतरनाक एक्शन करने में अपने स्क्रीन साथी से पीछे नहीं। लेकिन, विडम्बना यह है यह कि बॉलीवुड में एक्शन हीरोइन की कोई परम्परा नहीं बन सकी है। वह एक समय में एकाधिक फिल्मों की शूटिंग करती है। जहाँ एक फिल्म में उसे रोमांटिक दिखाना होता है तो अगली फिल्म में एक्शन के अनुरूप ढालना भी होता है। यह आसान नहीं और संभव भी नहीं है। उस पर दर्शक इन नायिका प्रधान फिल्मों को बुरी असफलता देता है। अकीरा और नाम शबाना की असफलता एक्शन हीरोइन का दिल तोड देती है।
बदलाव के साथ
बॉलीवुड में बड़ी तेज़ी से बदलाव हुआ है। कभी निर्देशक ज्ञान मुख़र्जी की फिल्म किस्मत (१९४३) में फिल्म के नायक शेखर (अशोक कुमार) के चाकू रखने पर संसद में बवाल मच गया था। फिल्म को सिर्फ इसी कारण से वयस्कों वाला सेंसर प्रमाणपत्र मिला था। लेकिन इस फिल्म ने अशोक कुमार की किस्मत के ताले खोल दिए। वह बड़े स्टार बन गए। उस समय भी नायिका छुई मुई और नैनन बाण चलाने वाली ही थी। उसकी किस्मत में ज़्यादातर आंसू बहाना ही लिखा था। इसीलिए, जब सीआईडी (१९५६) में वहीदा रहमान के करैक्टर के कंधे से दुपट्टा सरकाने की कोशिश की गई तो वहीदा रहमान निर्देशक राज खोसला से नाराज़ हो गई। सोलहवां साल (१९५८) में उनका घर से भागना फिल्म को वयस्क प्रमाण पत्र दिला गया।
बदला रूप नायिका का
अब फिल्म की नायिका बिंदास है। वह साठ के दशक की फिल्मों की खलनायिका की तरह छोटे और उघडे बदन वाले कपडे पहन सकती है। बिकिनी से उसे परहेज़ नहीं। चुम्बन के लिए अब दो फूलों को भिड़ाने या पक्षियों के चोंच लड़ाने की ज़रुरत नहीं। नायिका के गाली बकने का सिलसिला तो हेमा मालिनी ने सीता और गीता (१९७२) में ही शुरू कर दिया था। वह हंटर चला रही थी। हालाँकि, मूक युग में हंटर और तीर तलवार और बन्दूक चलाने वाली नायिका वाली फ़िल्में खूब बनी। अपनी हंटर वाली सीरीज की फिल्मों के कारण पर्थ ऑस्ट्रेलिया की मैरी इवांस फीयरलेस नादिया के नाम से मशहूर हुई। लेकिन, फिल्मों में आवाज़ के साथ ही हिंदी फिल्मों की नायिका के कन्धों पर परिवार का बोझ आ गया। परिवार को सम्हालना उसकी ज़िम्मेदारी हो गई। युग थोड़ा बदला भी तो नायिका की किस्मत में ख़ास बदलाव नहीं हुआ। धर्मेंद्र के आने के बाद जो एक्शन फ़िल्में बनी उन में भी नायिका के लिए आधुनिक दिखना नसीब नहीं था।
ज़ीनत अमान और परवीन बाबी का आना
हिंदी फिल्मों में नायिका के कलेवर में बदलाव आया ज़ीनत अमान और परवीन बाबी के आने के बाद। मिश्रित रक्त वाली ज़ीनत अमान ने मॉडलिंग की। मिस इंडिया में हिस्सा लिया। उन्हें ओ० पी० रल्हन ने अपनी फिल्म हंगामा की नायिका बनाया। परवीन बाबी जूनागढ़ के राज घराने से थी। आधुनिकता उनके खून में थी। अहमदाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही बीआर इशारा ने उन्हें अपनी फिल्म चरित्र की नायिका बना दिया। यह दोनों अभिनेत्रियां समकालीन थी। इन अभिनेत्रियों के आने के ठीक बाद अमिताभ बच्चन का सितारा चमका। उनका एंग्री यंगमैन हिंदी सिनेमा पर छा गया। बच्चन की फिल्मों में जो कुछ होता था, नायक ही होता था। नायिका को उसका और दर्शकों का मनोरंजन करना होता था बस । ज़ीनत अमान और परवीन बाबी ने यह काम बखूबी किया। उन्होंने हिंदी फिल्मों की खल नायिका का पत्ता काट दिया। इन अभिनेत्रियों ने हाथों में बन्दूक भी थामी। फिल्म इन्साफ का तराज़ू में ज़ीनत अमान बलात्कारी राज बब्बर के चरित्र को गोलियों से भून देती थी।
बदला लेने के लिए
लेकिन, छिटपुट फिल्मों में यह रातोंरात होता था। पूरी फिल्म में अपने नायक के साथ रोमांस करती, शादी के बाद बच्चे पैदा करती नायिका यकायक क्रोधित हो उठती। उसके पति की हत्या हो जाती या घर में किसी सदस्य के साथ कुछ खराब हो जाता, वह तुरंत बदला लेने के लिए बन्दूक उठा लेती। हिंदी में बनी गर्मागर्म फिल्मों की उत्तेजक हावभाव वाली नायिका अपने साथ बलात्कार का बदला लेने के लिए एक एक कर बलात्कारियों को मारने लगती। सब कुछ रातोरात होता। कोई तैयारी नहीं। कोई ट्रेनिंग नहीं। इन फिल्मों को देख कर ऐसा लगता, जैसे कहानी में नायक के बजाय नायिका को फिट कर दिया गया है। बिलकुल अस्वाभाविक जैसा लगता। क्या अपनी गृहस्थी में रमी और नायक पर निर्भर नायिका रातों रात चोला बदल सकती है ? क्या बिना तैयारियों के वह बन्दूक चला सकती है ? बुरे आदमियों को बेहिचक निशाना बना सकती है ? घोड़े पर सरपट भागती नायिका ने घुड़सवारी कब सीखी ? फिल्मों में ऐसे तमाम सवाल अनसुलझे रह जाते।
एक्शन के लिए तैयार अभिनेत्रियां
इसके बावजूद कुछ हिंदी फ़िल्में तमाम सवालों के जवाब देती भी थी। निर्देशक राकेश रोशन की फिल्म खून भरी मांग में आरती का पति संजय वर्मा उसे मगरमच्छों वाले तालाब में धकेल कर मारने की कोशिश करता है। लेकिन, वह एक बूढ़े आदमी द्वारा बचा ली जाती है। वही बूढा आदमी उसे घुड़सवारी, बन्दूक चलाने और मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग देता है। निर्देशक तनूजा चंद्रा की फिल्म दुश्मन जुड़वा बहनों की कहानी थी। एक बहन का बलात्कार हो जाता है। दूसरी बहन बलात्कारी से बदला लेना चाहती है। इसमें उसकी मदद करता है सेना का एक रिटायर मेजर। इन फिल्मों की पटकथाएं विदेशी कहानी से प्रेरित थी। खून भरी मांग एक ऑस्ट्रेलियाई मिनी सीरीज रिटर्न टू ईडन (१९८३) का रीमेक थी, जबकि दुश्मन हॉलीवुड फिल्म ऑय फॉर ऐन ऑय (१९९६) का रीमेक थी। इसलिए इन दोनों फिल्मों की नायिकाएं अपनी पूरी तैयारी के बाद बदला ले रही थी।
इसके बावजूद को रेखा या काजल एक्शन हीरोइन का तमगा हासिल नहीं कर सकी। ऐसा स्वाभाविक था। फिल्म अभिनेत्रियां नायक प्रधान फिल्मों की नायिका बन कर ही खुश थी। एक्शन फिल्म के लिए तैयारी का मतलब किसी सलमान खान या शाहरुख़ खान की फिल्म से हाथ धोना होता। हिंदी फिल्मों की तमाम अभिनेत्रियां खान एक्ट्रेस बन कर ही मस्त थी। लेकिन बदलाव भी एक तकाज़ा होता है।
हॉलीवुड में देसी नायिका का एक्शन
नायक प्रधान एक्शन फिल्मों से दर्शकों का ऊबना स्वाभाविक था। विदेशी स्टूडियोज और बैंकों आदि द्वारा फिल्म निर्माण में रूचि दिखाने के कारण नायिका को अलग नज़रिये से देखना शुरू कर दिया गया। फिल्मों में अपना मुकाम बनाने के लिए बेकरार अभिनेत्रियों ने भी अपने रोल को रियल लाइफ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन अभिनेत्रियों ने अपनी भूमिकाओं को स्वभाविक बनाने के लिए खूब मेहनत की। प्रियंका चोपड़ा को बेस्ट एक्शन हीरोइन का दर्ज़ा दिया जाता है। वह अमेरिकन सीरीज क्वांटिको में एक्शन कर ही रही थी, हॉलीवुड फिल्म बेवॉच में भी धुंआधार एक्शन कर रही हैं। वह अपने रोल के लिए मेहनत करती है। सुपरहीरो फिल्म द्रोण में वह बॉडीगार्ड के किरदार में थी। इसके लिए उन्होंने सिख हथियार गटका चलाना सीखा। कपोरा और मार्शट आर्ट्स की ख़ास ट्रेनिंग ली। उन्हें लेकर जय गंगाजल और मैरी कॉम जैसी नायिका प्रधान एक्शन फ़िल्में बनाई गई। कैटरीना कैफ अपनी भूमिकाओं के लिए काफी तैयारी करती हैं। एक था टाइगर के लिए उन्होंने कार्डियक और वेट ट्रेनिंग ली, ताकि अपने एक्शन आसानी से कर सकें। वह इस फिल्म के सीक्वल टाइगर ज़िंदा है के लिए कॉम्बैट ट्रेनिंग ले रही है। फिल्म में उनके कई खतरनाक एक्शन दृश्य बताये जा रहे हैं। कंगना रनौत भी बेहद परफेक्ट हीरोइन हैं। उन्होंने कृष ३ में अपनी काया की भूमिका के लिए खुद को तुंब रेडर की लारा क्रॉफ्ट जैसा ढाला ही, अपना वजन काफी घटाया, कराटे, जुडो और ताइक्वांडो की ट्रेनिंग ली। वह रानी लक्ष्मी बाई पर अपनी फिल्म के लिए घुड़सवारी और तलवारबाज़ी भी सीख रही हैं। बिपाशा बासु ने हॉलीवुड फिल्म सिंगुलैरिटी, ऐश्वर्या राय बच्चन ने धूम २ और जोधा अकबर और अपनी हॉलीवुड फिल्म पिंक पैंथर के लिए तलवारबाज़ी सीखी है। दीपिका पादुकोण ने चांदनी चौक टू चाइना के लिए मार्शल आर्ट्स सीखी। उन्होंने बाजीराव मस्तानी के लिए तलवारबाज़ी सीखी।
फिर भी... हॉलीवुड एक्ट्रेस से पीछे
इसके बावजूद बॉलीवुड अभी तक ब्रिगिट निएल्सन (रेड सोन्या और रॉकी), एंजेलिना जोली (तुंब रेडर की लारा क्रॉफ्ट), मिला जोवोविच (रेजिडेंट ईविल सीरीज की एलिस), केट बेकिंस्ले ( अंडरवर्ल्ड सीरीज की सेलेन), सीगोर्नी वीवर (एलियंस की रिप्ले) और जेनिफर लॉरेंस (द हंगर गेम्स सीरीज की कैटनिस एवरडीन) के तोड़ की कोई अभिनेत्री तैयार नहीं कर सका है। हाल ही में अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा को बॉलीवुड की एंजेलिना जोली बताया जा रहा था। क्योंकि, वह अकीरा और फाॅर्स २ में एक्शन कर रही थी। ऐसा लग रहा था कि वह एक्शन स्टार बन कर उभरेंगी। लेकिन, दोनों ही फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम हुई। तापसी पन्नू ने फिल्म बेबी में कुछ एक्शन सीन किये थे। लेकिन, शिवम् नायर की एक्शन फिल्म नाम शबाना में वह एक रॉ एजेंट का केंद्रीय एक्शन किरदार कर रही थी। इसके लिए तापसी पन्नू ने मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग के अलावा कूडो और कर्व मागा भी सीखा। तापसी पन्नू की फिल्म भी असफल हुई।
हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियां खतरनाक एक्शन करने में अपने स्क्रीन साथी से पीछे नहीं। लेकिन, विडम्बना यह है यह कि बॉलीवुड में एक्शन हीरोइन की कोई परम्परा नहीं बन सकी है। वह एक समय में एकाधिक फिल्मों की शूटिंग करती है। जहाँ एक फिल्म में उसे रोमांटिक दिखाना होता है तो अगली फिल्म में एक्शन के अनुरूप ढालना भी होता है। यह आसान नहीं और संभव भी नहीं है। उस पर दर्शक इन नायिका प्रधान फिल्मों को बुरी असफलता देता है। अकीरा और नाम शबाना की असफलता एक्शन हीरोइन का दिल तोड देती है।
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