Wednesday, 20 May 2015

बॉलीवुड मुंबई से चला पाकिस्तान

'वेलकम टू कराची' एडवेंचर पसंद दो दोस्तों की कहानी है, जो पाकिस्तान में तनाव के बीच कराची में फंस जाते हैं। पर यह एंटी पाकिस्तान फिल्म नहीं। यह एक सोशल कॉमेडी फिल्म है। मगर, फिल्म के टाइटल के अलावा 'वेलकम टू कराची' असल कराची तक नहीं है।  इस फिल्म के तमाम शूटिंग लंदन में हुई है।  वही कराची का सेट खड़ा किया गया था।  यह फिल्म अब तक की पाकिस्तान का जिक्र करने वाले फिल्मों का नमूना है, जिनमे पाकिस्तान हकीकत में नहीं है।  पर कहानी और संवादों के ज़रिये पाकिस्तान दर्शकों के जेहन में आता है।  
नहीं होता था पाकिस्तान का ज़िक्र 
प्रारंभिक (आज़ादी के बाद की) हिंदी फिल्मों में पाकिस्तान का ज़िक्र नहीं पाया जाता।  हालाँकि, उस दौर में विभाजन के बाद के पाकिस्तान से आये कपूर परिवार, दिलीप कुमार, देव आनंद, चेतन आनंद, बलराज साहनी, आदि बहुत से अभिनेता और फिल्मकार बॉलीवुड में सक्रिय थे।  इन अभिनेताओं या फिल्मकारों ने या तो विभाजन की त्रासदी या तो खुद झेली थी या उनके परिवार के किसी सदस्य ने।  इसके बावजूद साथ के दशक तक की हिंदी फिल्मों में पाकिस्तान का ज़िक्र नहीं पाया जाता। पाकिस्तान का पहला ज़िक्र १९६७ में रिलीज़ मनोज कुमार की फिल्म 'उपकार' में हुआ था, जिसमे भारत पाकिस्तान के बीच १९६५ में हुए पहले युद्ध को दिखाया गया था। लेकिन, इस फिल्म में भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया था। पाकिस्तान बॉलीवुड के निशाने पर आया १९७१ के युद्ध के बाद।  पाकिस्तान को निशाने पर रखने के लिहाज़ से पहली उल्लेखनीय थी चेतन आनंद की फिल्म 'हिंदुस्तान की कसम' । इस फिल्म में १९७१ का हिंदुस्तान पाकिस्तान युद्ध था। लेकिन, चेतन आनंद भी पाकिस्तान का सीधा ज़िक्र करने से बचे। 
आया बदलाव 
समय के साथ हिंदी फिल्मों में बदलाव आया।  आम तौर पर युद्ध के दृश्यों के ज़रिये पाकिस्तान का ज़िक्र करने वाली हिंदी फ़िल्में पाकिस्तान का नाम लेने लगी।  राजकपूर की फिल्म 'हिना' में पाकिस्तान की लड़की से हिंदुस्तान के लडके का प्रेम था।  लेकिन, जेपी दत्ता की १९७१ के युद्ध पर बनी फिल्म 'बॉर्डर' में पाकिस्तान को खुले आम दुश्मन देश बताया गया था।  इस फिल्म ने सनी देओल को पाकिस्तान के विरुद्ध देशभक्त साबित होने की शुरुआत कर दी थी । बॉर्डर के बाद सनी देओल फिल्म 'ग़दर एक प्रेमकथा' में पाकिस्तान को जम कर गालियां दे रहे थे।  फिल्म 'माँ तुझ सलाम' में उनका डायलाग 'दूध मांगोगे तो खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे' आज भी युवा हिन्दुस्तानियों का पसंदीदा संवाद है। आमिर खान की फिल्म 'सरफ़रोश' में साफ़ तौर पर सरहद पार के आतंक का उल्लेख किया गया था। सनी देओल की फिल्म 'ग़दर एक प्रेमकथा' तथा अन्य फ़िल्में कारगिल युद्ध और भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के बाद उपजे गहरे अविश्वास और दुश्मनी की भावना के कारण पाकिस्तान को दुश्मन देश ही नहीं साबित कर रही थी, बल्कि लगभग अपमानित कर रही थी ।  यहाँ शाहरुख़ खान की दो फिल्मों का ज़िक्र ख़ास कर करना होगा। उनकी फिल्म 'मैं हूँ न' पाकिस्तान के आतंकवाद की बात तो करती थी, लेकिन, आतंक का सूत्रधार एक हिंदुस्तानी को बताती थी।  इसी प्रकार से वह दूसरी ओर हिंदुस्तान पाकिस्तान रोमांस वाली फिल्म 'वीर-ज़ारा' भी कर रहे थे। उनकी एक अन्य फिल्म 'माय नाम इज़ खान' में केवल खान होने के कारण आतंकवादी समझने को गलत करार दिया गया था । इस फिल्म का कथानक अमेरिका, आदि देशों में शक की निगाह से देखे जा रहे पाकिस्तानियों के सेंटिमेंट के भी करीब थी। 
सब बाजार का मामला है 
पाकिस्तान जैसे जैसे बड़ा बाज़ार साबित होता जा रहा है, बॉलीवुड फिल्मकारों का पाकिस्तान के प्रति रवैया नरम पड़ता जा रहा है।  हालाँकि, दक्षिण से 'कंधार', 'कीर्ति चक्र' और 'विश्वरूपम' जैसी फ़िल्में कोई नरमी नहीं दिखाती।  लेकिन, बॉलीवुड के फिल्मकार करोड़ों के (१०- १५ करोड़ के) पाकिस्तानी फिल्म बाजार के लालच में पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया अपनाने के लिए विवश हैं। यही कारण है कारगिल वॉर के बावजूद फरहान अख्तर की फिल्म 'लक्ष्य' कारगिल वॉर के लिए पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा नहीं करती थी । इसके ठीक उलट टोटल सियापा फिल्म में पाकिस्तान के समाज को समझने की कोशिश की गई थी। पाकिस्तान को भी 'पीके' जैसी फ़िल्में पसंद आती हैं, जो पाकिस्तानियों को विश्वसनीय बताती हैं।  
हिंदी फिल्मों में पाकिस्तान 
बॉलीवुड ने देश विंभाजन, पाकिस्तान और हिन्दू मुस्लमान संबंधों पर बहुत सी फ़िल्में बनाई हैं। देश विभाजन को दिखाने वाली फिल्मों में धर्मपुत्र (१९६१), गरम हवा (१९७३), गांधी (१९८२), आदि फ़िल्में उल्लेखनीय है।  गरम हवा में विभाजन के बाद हिंदुस्तान रह गए मुसलामानों के प्रति अविश्वास का चित्रण था। दीपा मेहता की फिल्म अर्थ (१९९८) में देश विभाजन के दौर में एक पारसी के हिन्दू-मुस्लिम दंगों में फंस जाने की इमोशनल रोमांस कहानी थी । ट्रेन टू पाकिस्तान (१९९८) की कहानी ब्रिटिश इंडिया के बॉर्डर के दो गाँव के बीच पैदा तनाव की कहानी थी। शहीद-ए- मोहब्बत बूटा सिंह (१९९९) हिंदुस्तान के बूटा सिंह की पाकिस्तान की लड़की से प्रेम की कहानी थी। हे राम (२०००) स्वतंत्र संग्राम के दौर की कहानी थी। ग़दर के प्रेम कथा (२००१) का नायक तारा सिंह विभाजन के दौरान दंगों में फांसी एक मुसलमानी लड़की से शादी कर लेता है। खामोश पानी और पिंजर (२००३) भी विभाजन के दौरान की कटुता और अविश्वास की कहानियाँ थी। अमृत सागर की फिल्म १९७१ भारत के छह सैनिकों की कहानी थी, जो पाकिस्तानी युद्ध बंदी थे। पाकिस्तान के द्वारा सीमा पार से खड़े किये गए आतंकवाद और कश्मीर को लेकर हैदर तक ढेरों फ़िल्में बनी हैं, जिनमे कही न कही पाकिस्तान है।   
क्यों बैन हुई पाकिस्तान में यह फ़िल्में 
बेबी- पाकिस्तान विरोधी फिल्म होने के कारण अक्षय कुमार की नीरज पाण्डेय निर्देशित फिल्म 'बेबी' को फिल्म में तीन तीन पाकिस्तानी कलाकार होने के बावजूद बैन का सामना करना पड़ा था। फिल्म में एक आतंकवादी चरित्र की शक्ल हफ़ीज़ मोहमद सईद से भी मिलती जुलती थी।  
हैदर- शाहिद कपूर की फिल्म 'हैदर' को कश्मीर के कुछ विवादित तत्वों को दिखाने के कारण पाकिस्तान में रिलीज़ के योग्य नहीं पाया गया। 
चेन्नई एक्सप्रेस - शाहरुख़ खान और दीपिका पादुकोण की फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस'  ईद के दौरान ८ अगस्त को रिलीज़ हुई थी। लेकिन, इस फिल्म की रिलीज़  पाकिस्तान में ८ अगस्त को नहीं हो सकी, क्योंकि बॉक्स ऑफिस पर ईद का फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान की चार फ़िल्में जोश, इश्क़ खुद, वॉर और मेरा नाम अफरीदी रिलीज़ हो रही थी।  'चेन्नई एक्सप्रेस इन फिल्मों को नुक्सान पहुंचाती।  इसलिए 'चेन्नई एक्सप्रेस' को ईद के बाद किसी दूसरी तारिख को रिलीज़ करने के आदेश दिए गए।  
भाग मिल्खा भाग- मशहूर धावक मिल्खा सिंह पर फरहान अख्तर की फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' को पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड ने कुछ संवादों के कारण पाकिस्तान में प्रदर्शन के अयोग्य पाया था।  इस फिल्म में मिल्खा सिंह को पाकिस्तान जाने से  इस बिना पर इंकार करते हुए दिखाया गया था कि  मिल्खा सिंह के परिवार को पाकिस्तान में क्रूरता से मार डाला गया था। पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड को  मिल्खा सिंह द्वारा बोले संवाद 'मुझसे नहीं होगा।  मैं पाकिस्तान नहीं जाऊंगा' पर ऐतराज था।  
डेविड- बिजॉय नाम्बियार की फिल्म 'डेविड' भी पाकिस्तान में रिलीज़ नहीं हो सकी थी।  क्योंकि, डेविड पाकिस्तान सेंसर बोर्ड द्वारा निर्धारित मानकों पर खरी नहीं उतरती थी।  जब सेंसर बोर्ड से इस फिल्म को रिलीज़ न होने देने की बाबत पूछा गया तो उनका जवाब था कि  फिल्म के साथ कई इशू हैं, लेकिन कुल मिला कर यह फिल्म पाकिस्तान में दिखाए जाने के योग्य नहीं है। 
खिलाडी ७८६ -  पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने पहले अक्षय कुमार और असिन की फिल्म 'खिलाडी ७८६' के ट्रेलर और बाद में पूरी फिल्म को पाकिस्तान में रिलीज़ का सर्टिफिकेट नहीं दिया।  क्योंकि, फिल्म में मुसलमानों के लिए पवित्र संख्या ७८६ का फिल्म के साथ उपयोग किया गया था और यह  'पाकिस्तानी आवाम की धार्मिक भावनाओं को हर्ट कर सकती थी। 
एक था टाइगर- सलमान खान और कैटरीना कैफ स्टारर फिल्म 'जब तक है जान' ईद के दौरान पाकिस्तान में रिलीज़  होने जा रही थी।  इस  फिल्म में सलमान खान रॉ के एजेंट और कैटरीना कैफ आईएसआई की  एजेंट दिखाई गई थी।  इस फिल्म को पाकिस्तान में इस लिए बैन कर दिया गया क्योंकि फिल्म में आईएसआई को आतंकी गतिविधियाँ चलाते दिखाया गया था। 
एजेंट विनोद- सैफ अली खान और करीना कपूर की  फिल्म 'एजेंट विनोद' में पाकिस्तान में अतवकवादियों के अड्डे, आईएसआई और पाकिस्तान के जनरल को तालिबानों और आतंकवा दियों को सपोर्ट करते दिखाया गया था।  ऐसे में एजेंट विनोद के पाकिस्तान में रिलीज़ होने का सवाल ही कहाँ उठता था। 
डर्टी पिक्चर्स- साउथ की फिल्म एक्ट्रेस सिल्क स्मिता की फिल्म 'डर्टी पिक्चर्स' को इसके बोल्ड संवादों और दृश्यों के कारण पाकिस्तान में रिलीज़ के योग्य नहीं पाया गया। 
तेरे बिन लादेन- इस फिल्म में पाकिस्तानी अभिनेता और गायक अली ज़फर मुख्य भूमिका में थे।  इसके बावजूद 'तेरे बिन लादेन' पाकिस्तान में रिलीज़ नहीं हो सकी क्योंकि, फिल्म में बिन लादेन को कॉमिक किरदार में दिखाया गया था।  फिल्म में भद्दे और आपत्तिजनक संवाद,  गालियां और आपत्तिजनक टिप्पणियाँ थी।  फिल्म पाकिस्तान की कानून व्यवस्था से जुडी संस्थाओं की नेगेटिव इमेज दिखाती थी। 
लाहौर- फिल्मकार संजय पूरन चौहान की फिल्म लाहौर किक बॉक्सिंग पर फिल्म थी।  इस फिल्म में भारत और पाकिस्तान को राजनीती और धर्म द्वारा बांटने की बात कही गई थी।  लेकिन, पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड को फिल्म में कुछ संवाद और दृश्य आपत्तिजनक लगे थे।
पटना से पाकिस्तान (भोजपुरी फिल्म)- दिनेश लाल यादव, आम्रपाली और काजल की फिल्म 'पटना से पाकिस्तान' की कहानी पाकिस्तान की हीरोइन और हिंदुस्तान के हीरो की कहानी है।  हीरो एक दरगाह में हुए ब्लास्ट का बदला लेने और अपनी हीरोइन को वापस लेने पाकिस्तान जाता है।  यह फिल्म सुपर हिट साबित हुई थी।  
पाकिस्तानी एक्टर्स 
बॉलीवुड की फिल्मों में कई पाकिस्तानी अभिनेता अभिनेत्रियों ने अपना भाग्य आजमाया।  कुछ बिलकुल असफल रहे।  कुछ प्रारंभिक सफलता के बाद असफल हो गए। पाकिस्तानी एक्टरों को हिंदी फिल्म में मौका दिया, उन्ही मनोज कुमार ने जिन्होंने अपनी फिल्म 'उपकार'  में पहली बार भारत पाकिस्तान युद्ध शामिल किया था। फिल्म थी क्लर्क, जिसमे पाकिस्तान के सुपर सितारे मोहम्मद अली और उनकी पत्नी ज़ेबा। फिल्म बुरी तरह से असफल रही।  पाकिस्तानी एक्टरों का बॉलीवुड पर यह अटैक खाली गया।  सलमा आगा की बीआर चोपड़ा की फिल्म निकाह (१९८२) से ज़बरदस्त शुरुआत हुई थी।  उन्होंने निकाह के गाने भी गाये थे।  इसलिए उन्हें हिंदुस्तान के लिए दूसरी सुरैया माना जा रहा था।  लेकिन, चोपड़ाओं से पंगा ले लेने के कारण उनका  गया। अब यह बात दीगर है कि  उनकी बेटी साशा आगा ने यशराज बैनर की फिल्म 'औरंगज़ेब' से बॉलीवुड में फ्लॉप डेब्यू किया था।  पाकिस्तान से आये अन्य अभिनेता और अभिनेत्रियों में अनीता अयूब प्यार का तराना,  सारा लॉरेन - कजरारे, मर्डर ३ और बरखा, अली ज़फर तेरे बिन लादेन, मेरे ब्रदर की दुल्हन, चश्मे बद्दूर, वीना मालिक ज़िंदगी फिफ्टी फिफ्टी, मुंबई १२५ केएम, मीरा सोनी राज़दान की फिल्म नज़र ,ज़ेबा बख्तियार हिना, जय विक्रांता और स्टन्टमैन, सोमी अली अंत, जावेद शेख चक दे इंडिया, मीशा शफी भाग मिल्खा भाग, मोहसिन खान मैडम एक्स, बंटवारा, घूँघट और साथी, माहिरा खान रईस, फवाद खान खूबसूरत, हुमैमा मालिक राजा नटवरलाल, इमरान अब्बास नक़वी क्रीचर ३ डी  के नाम ख़ास उल्लेखनीय हैं। 
पाकिस्तान से हिंदुस्तान की फिल्म इंडस्ट्री में भाग्य आजमाने वाले पाकी कलाकारों का यह सिलसिला लम्बा चलने वाला है।  हिंदुस्तान के चैनल ज़िन्दगी से प्रसारित हो रहे टीवी सीरियलों से पाकिस्तान की प्रतिभाएं हिंदी फिल्म निरामतों के सामने आ रही हैं। शाहरुख़ खान के साथ फिल्म 'रईस' में उनकी नायिका का रोल करने वाली पाकी अभिनेत्री महिरा खान अकेला उदाहरण नहीं हैं।  


अल्पना कांडपाल 

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