अगर 'ऑथेन्टिसिटी' की बात करें तो फिल्म इज़ ग्रेट। सिक्सटीज का बॉम्बे परदे पर ला दिया अनुराग ने।
अगर फोटोग्राफी की बात करे तो सिनेमेटोग्राफर राजीव रवि ने कमाल कर दिया है।
अगर आर्ट डायरेक्शन, सेट डेकोरेशन, कॉस्ट्यूम, मेकअप, स्पेशल इफेक्ट्स और विसुअल इफेक्ट्स की बात करें तो सब कमाल ही कमाल।
अगर स्टोरी की बात करें तो फिल्म अमिताभ बच्चन की सत्तर के दशक की फिल्मों और गुरु दत्त की पुरानी फिल्म की याद दिलाती है।
अगर अभिनेता रणबीर कपूर की बात करें तो गैंगस्टर फ़िल्में करके अमिताभ बच्चन सुपर स्टार बन गए, रणबीर कपूर का दर्ज़ा भी कुछ गज़ ऊपर हो जायेगा।
अगर अनुष्का शर्मा की बात की जाए तो वह दूसरी हुमा कुरैशी साबित होती है। शाहरुख़ खान और आमिर खान के साथ रोल कर चुकी अनुष्का शर्मा के लिए यह 'गन्दी बात' है।
अगर करण जौहर की बात की जाये तो वह अच्छे विलेन साबित हो सकते हैं अगर उन्हें इसी प्रकार की के एन सिंह टाइप की फ़िल्में मिल जाए। क्योंकि लाउड विलेन में तो उनकी आवाज़ ही फट जाएगी।
अगर मनीष चौधरी की बात जाये तो उन्होंने जिमी मिस्त्री को क्या कंट्रोल्ड प्ले किया है।
अगर सत्यदीप मिश्रा की बात की जाये तो उनका चिमन कमाल करता है। लगे रहो चिमन भाई।
अगर अमित त्रिवेदी की बात की जाये तो पुराना म्यूजिक नया बनाये रहो भैया। अगर अनुराग भैया आगे फिल्म बना सके तो आपकी दूकान चलती रहेगी।
अगर कहानी की बात की जाए तो 'बॉम्बे वेलवेट' ज्ञानप्रकाश के उपन्यास 'मुंबई फैबल्स' पर आधारित है। ज्ञानप्रकाश १९५२ की पैदाइश हैं यानि आज़ादी के पांच साल बाद के पैदा हैं ज्ञानप्रकाश । जबकि उनका उपन्यास आज़ादी के दो साल बाद के बॉम्बे पर है और पुर्तगाल शासित गोवा की। उन्होंने आपने उपन्यास में जो लिखा वह सब पढ़ा हुआ और सुना हुआ ही है। क्योंकि, उन्होंने १९७३ में दिल्ली से डिग्री पाई है। इसीलिए उनकी कहानी में १९७५ में निर्देशित यश चोपड़ा की फिल्म 'दीवार' का अमिताभ बच्चन और परवीन बाबी का रोमांस नज़र आता है।
अगर बॉक्स ऑफिस की बात की जाये तो इतने पुरानेपन वाली फिल्म कौन ससुरा देखने जायेगा। फिर फिल्म में अनुष्का शर्मा के गर्मागर्म चुम्बन और सेक्स सींस गायब है। इसलिए अब तक अपनी फिल्मों में अपने चरित्रों की फाड़ते आ रहे अनुराग कश्यप की भी फटने जा रही है। अस्सी करोड़ तो गए पानी में।
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