Sunday 22 October 2017

खलनायकों में कभी न हारने वाले लायन थे अजित

सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है ( फिल्म कालीचरण) 
कुत्ता जब पागल हो जाता है तो उसे गोली मार दी जाती है (ज़ंजीर) 
जिस तरह से कुछ आदमियों की कमज़ोरी बेईमानी होती है... इस ही तरह कुछ आदमियों की कमज़ोरी ईमानदारी होती है (फिल्म ज़ंजीर) 
आओ विजय, बैठो और हमारे साथ एक स्कॉच पियो... हम तुम्हे खा थोड़ी ही जायेंगे....वैसे भी हम वेजीटेरियन हैं (फिल्म ज़ंजीर) 
मेरा जिस्म ज़रूर ज़ख्मी है, लेकिन मेरी हिम्मत ज़ख़्मी नहीं (फिल्म मुगले आज़म) 
राजपूत जान हारता है, वचन नहीं हारता (फिल्म मुगले आज़म) 
लम्हो का भंवर चीर के इंसान बना हूँ...एहसास हूँ मैं वक़्त है के सीने में गड़ा हूँ (फिल्म बेताज बादशाह) 
देख सकता है भला कौन ये प्यारे आंसूं...मेरी आँखों में न आ जाये तुम्हारे आंसूं (फिल्म बेताज बादशाह) 
शाकाल जब बाज़ी खेलता है..तो जितने पत्ते उसके हाथ में होते हैं...उतने ही उसकी आस्तीन में (फिल्म  यादों की बारात) 
मुग़ले आज़म १९६० में रिलीज़ हुई थी। यादों की बरात १९७३ में और बेताज बादशाह १९९४ में रिलीज़ हुई थी ।  इन  फिल्मों के उपरोक्त सभी संवाद अजित खान पर फिल्माए गए थे। प्राण के बाद कोई खान ही इतने दमदार संवाद बोल सकता है, वह भी पूरे तीन दशक तक।  हर दशक में अजित अपनी भारी आवाज़ में खुद के लायन होने का इज़हार करते, दर्शक अमिताभ बच्चन के संवादों से ज़्यादा सीटियां बजाता। यही अजित के अभिनय और दमदार संवाद अदायगी का तक़ाज़ा था कि अजित फिल्म मुगले आज़म में दिलीप कुमार पर, कालीचरण में शत्रुघ्न सिन्हा और यादों की बरात में धर्मेंद्र पर भारी पड़े।  यहाँ तक कि फिल्म बेताज बादशाह में संवादों के महाराजा राजकुमार के सामने अजित टिके रह सके।  

२७ जनवरी १९२२ को जन्मे हामिद अली खान को हिंदी फिल्मों में शोहरत मिली अपने स्टेज के नाम अजित से। उन्होने अपने पांच  दशक लम्बे फिल्म करियर में २०० से ज़्यादा फ़िल्में की।  नास्तिक, बड़ा भाई, बारादरी और मिलान के नायक अजित ने मुगले आज़म और नया दौर से सह भूमिकाएं करनी शुरू कर दी।  अपने संवादों से पूरी फिल्म पर छा जाने वाले अजित को आज भी उनकी दमदार संवाद अदायगी के कारण याद किया जाता है।  २२ अक्टूबर १९९८ को हिंदी फिल्मों के इस लायन ने संसार से  विदा ली।  उन्हें श्रद्धांजलि। 

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