उत्तर प्रदेश
में, २०१७ में शूट हुई कुछ फिल्मों के नामों पर
नज़र डालिये। २०१७ में उत्तर प्रदेश में लखनऊ, मथुरा,
इलाहाबाद, बरेली, आदि शहरों मे बारात कंपनी, मिस्टर कबाड़ी,
बरेली की
बर्फी, बाबूमोशाय बन्दूक्बाज़, टॉयलेट एक प्रेम कथा. लखनऊ सेंट्रल, भूमि, मुल्क,
रेड, आदि फिल्मों की शूटिंग हो चुकी हैं। इस फिल्मों की बदौलत अक्षय कुमार, अजय देवगन, तापसी पन्नू,
इलीना
डिक्रूज़, आयुष्मान खुराना, राजकुमार राव, फरहान अख्तर, आदि अभिनेता उत्तर प्रदेश की सरनामी पर पैर रख चुके हैं।
इन फिल्मों की शूटिंग में राजकुमार गुप्ता, श्री नारायण सिंह, अनुभव सिन्हा,
आदि फिल्म
निर्देशक भीं उत्तर प्रदेश भिन्न शहरों की ख़ाक छान चुके हैं। इन फिल्मों की शूटिंग के बदौलत स्थानीय
प्रतिभाओं को अस्थाई रोजगार के अवसर मिले। संभव है कि इनमे से कुछ बॉलीवुड के बड़े
निर्माताओं की नज़रों में आ जाएँ। तो क्या
इससे यह समझा जाए कि उत्तर प्रदेश में फिल्मों की शूटिंग के मामले में अच्छे दिन आ
गए ? क्या उत्तर प्रदेश सरकार की फिल्म नीति
कारगर साबित हो रही है ?
क्या उत्तर
प्रदेश या ख़ास तौर पर लखनऊ फिल्म वालों का
हब बनता जा रहा है ?
फिल्म बंधू
से जुड़े एक अधिकारी की बात मानी जाए तो लखनऊ फिल्म मेकिंग का हब बनता जा रहा है।
जिस तरह से आये दिन उत्तर प्रदेश के लखनऊ आदि शहरों में फिल्मों की शूटिंग होने
लगी हैं, इससे भी इस बात की पुष्टि होती है। फिल्म बंधू के अंतर्गत इसी साल २१ करोड़ रुपये
का अनुदान दिया जा चूका है। यह शूट फिल्मो को कुछ शर्तों के साथ कर मुक्त भी किया
जा रहा है।गोवा और मुंबई में उत्तर प्रदेश
की फिल्म नीति और इन्वेस्टमेंट के लिए सेमिनार आदि हो चुके हैं।सूत्र बताते हैं कि
लखनऊ ही व्यक्तिगत तौर पर फिल्मों का निर्माण जारी है। मेरठ में तो बाकायदा फिल्म
इंडस्ट्री है,
जो
सिनेमाघरों में रिलीज़ के लिए नहीं, बल्कि सीडी के लिए फिल्मों का निर्माण करते हैं। स्थानीय लोग इसे मॉलीवुड कहते हैं।
यह फ़िल्में स्थानीय उच्चारण से सनी भाषा में होती हैं। इस इंडस्ट्री की फिल्म धाकड़ छोरा को बॉलीवुड की
शोले जैसी कहा जाता है। व्यक्तिगत तौर पर बनाई जा रही फिल्मों को छोड़ दें तो क्या
सरकारी प्रयासों के परिणामस्वरुप उत्तर प्रदेश के फिल्मों का हब बनने की संभावना
की जा सकती है ?
१९६७ में
सुनील दत्त ने उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्माण की संभावना देखी थी। उन्होंने तत्कालीन चंद्रभानु गुप्त सरकार से
अजंता आर्ट्स स्टूडियो के लिए ज़मीन भी ली थी।
लेकिन,
गुप्त सरकार
के गिर जाने के बाद सुनील दत्त के स्टूडियो का पत्थर ही लगा रह गया। फिर १९७५ में वीपी सिंह सरकार में उत्तर प्रदेश
चलचित्र निगम की स्थापना की गई। फिल्म
बनाने वालों को उम्दा उपकरण देने और तीन लाख तक की सब्सिडी देने का ऐलान किया
गया। फिल्मों को कुछ हफ्ते मनोरंजन कर से
छूट भी दी गई। चलचित्र निगम के अधिकारीयों ने नीतियों का दोहन करते हुए महंगे और
उस समय के सबसे आधुनिक कैमरा आदि उपकरण खरीद कर कमीशन कम लिया। उसके बाद यह उपकरण
निगम की गोडाउन में धुल फांकते रहे। अधिकारियों के भ्रष्टाचार ने निगम को घाटे के
गम में डुबो दिया।
ज़ाहिर है कि
सुनील दत्त के कथित स्टूडियो के पचास साल बाद भी उत्तर प्रदेश में कोई इंडस्ट्री
स्थापित नहीं हो सकी है। निजी स्टूडियो ज़रूर हैं।
लेकिन,
इन्हें उत्तर
प्रदेश में फिल्मों के विकास का गम नहीं है।
उत्तर प्रदेश में जो भी फिल्म निर्माता आते हैं, वह काहनियों की मांग पर। अगर उनकी फिल्म में पुरानी इमारतों की ज़रुरत है, स्थापत्य दिखाना है तो लखनऊ, फैजाबाद, आदि जगहे हैं न ! अभी अनुभव सिन्हा की फिल्म मुल्क की शूटिंग भी इसी
वजह से लखनऊ में की गई थी। बकौल, सुनील बत्ता, "माहौल बन रहा है। लेकिन, सब कुछ सरकार की नीतियों पर निर्भर
करेगा।"
लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि आगे कोई सरकार कैसे काम
करेगी ? मनोरंजन कर से फिल्म बंधू को प्रति टिकेट
५० पैसे मिलते थे। फिल्म मनोरंजन कर से मुक्त भी कर दी जाती थी। अब मनोरंजन कर रहा नहीं। सब राहुल गाँधी के गब्बर सिंह टैक्स यानि
जीएसटी में शामिल हो गया है। फिल्म विकास निधि के पैसे कहाँ से आयेंगे ? मनोरंजन कर रहा नहीं। फ़िल्में टैक्स फ्री किस हिसाब से होंगी ? सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के रखरखाव और मल्टीप्लेक्स बनाने के लिए
अनुदान कैसे मिलेगा ?
इन सवालों का
जवाब राज्य सरकार को ढूँढना है। इसके लिए एक बिलकुल नई नीति बनानी होगी। जीएसटी के
नियमों में यथावश्यक संशोधन करने होंगे। पहले तो सरकार बदलने के बाद सब उल्टा
पुल्टा हो जाता था। अब जीएसटी आने से सब उलटा पुल्टा हो गया है। क्या कुछ सुलटा
होगा ?
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