शायद, मैंने गलती यह की कि दुर्गामती देखने से पहले भागमती देख ली. परन्तु, अगर आप दुर्गामती देखना चाहते हैं, तो उससे पहले भागमती कतई मत देखे. क्योंकि, अगर आपने भागमती देख ली है तो फिल्म दुर्गामती का आकर्षण और रहस्य ख़त्म हो जाता है. हर रील पूरी तरह से कॉपी है.
प्रमुख चरित्रों के लिए हिंदी दर्शकों के पहचाने अभिनेता अभिनेत्रियाँ लिए गए हैं. भागमती अनुष्का शेट्टी की जगह दुर्गामती भूमि पेढनेकर ने ले ली है. ईश्वर प्रसाद जयराम के बजाय अरशद वारसी बने हैं. सीबीआई अधिकारी की भूमिका में आशा शरद के बजाय माही गिल हैं तथा उन्नी मुकुन्दन के शक्ति दुर्गामती में अक्षय कुमार के साले करण कपाडिया बने हैं. यही चारों एक्टर दुर्गामती को भागमती के मुकाबले कमज़ोर बनाते हैं.
भूमि पेढनेकर जब जब ओवरएक्टिंग करती हैं, ठीक लगती हैं. जैसे ही वह सामान्य होती है, अपना प्रभाव खो बैठती हैं. अक्षय कुमार ने जाने क्या सोच कर अरशद वारसी को ईश्वर प्रसाद की भूमिका में लिया ! शायद जॉली एलएलबी का सीक्वल हड़पने का पश्चाताप किया. माहि गिल को अभी ठीक से हिंदी बोलना तक नहीं आया है. वह संवाद अदायगी में पंजाबीपन पीटती लगती हैं. शक्ति की भूमिका से भागमती को जीतनी शक्ति मुकुन्दन के कारण मिलती थी, उतनी शक्ति करण कपाडिया दुर्गामती भूमि को नहीं दे पाते.
स्पष्ट रूप से इन बॉलीवुड सितारों के अभिनय की तुलना तेलुगु के एक्टरों के मुकाबले कहीं नहीं ठहरती एसीपी की भूमिका के लिए मुरली शर्मा के बजाय जीशुआ सेनगुप्ता को लिया गया है. वह सशक्त कड़ी हैं. लेखक- निर्देशक जी अशोक ने अपनी ही फिल्म भागमती को फ्रेम दर फ्रेम दोहरा दिया है. उन्होंने भागमती की कमजोरियां दुर्गामती में दूर करने की कोई कोशिश नहीं की है. वैसे अगर आपने मूल भागमती नहीं देखी है और देखना भी नहीं चाहते तो दुर्गामती को देख सकते हैं. उकताएंगे नहीं. फिल्म मनोरंजन करेगी.
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