Tuesday 15 December 2020

क्रिकेट की उत्तेजना को भी ठंडा कर देने वाली तोरबाज़ !


निर्देशक गिरीश मलिक की फिल्म तोरबाज़ के ख़त्म होने के बाद, यही सवाल मन में उठता है कि उन्होंने यह फिल्म क्यों बनाई. फिल्म के प्रचार से ऐसा लगता था कि यह फिल्म बच्चों के मानव बम बनाए जाने के कथानक पर है. पर फिल्म में पूरा ध्यान बच्चों के क्रिकेट पर रहा. यह फिल्म @Netflix पर स्ट्रीम हो रही है.


अगर, फिल्मकार की इच्छा क्रिकेट के माध्यम से शरणार्थी अफगानी बच्चो को मानव बम बनने रोकने की थी तो इसे ज़्यादा उभरा जाना चाहिए था. फिल्म देख कर ऐसा लगा  कि फिल्मकार तालिबान से डरा हुआ है. इस कारण से क्रिकेट भी बेजान हो जाता है.


फिल्म में, संजय दत्त ने मेडिकल प्रोफेशनल नासेर की भूमिका की है, जो काबुल में भारतीय दूतावास में तैनाती के दौरान अपने बेटे और बीवी को खो चुका है. नासेर की इस त्रासदी का ख़ास खुलासा नहीं किया गया है. फिल्म में नर्गिस फाखरी एनजीओ चलाने वाली आयशा  की भूमिका में है. राहुल देव और कुछ दूसरे एक्टर आतंकवादी की भूमिका में है. सभी एक्टरों ने अपना फ़र्ज़ निबाहा भर है. कतई प्रभावित नहीं कर पाते.


ढीली पटकथा और प्रभावहीन निर्देशकीय कल्पनाशीलता वाली इस फिल्म के कारण उनका अभिनय बेजान हो जाता है. फिल्म का कोई पक्ष जिक्र करने लायक नहीं है. यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है.

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