फिर कुंदन शाह की वापसी हुई। इस बार उन्होंने प्रिटी जिंटा को बिनब्याही माँ का क्रांतिकारी किरदार दिया था। इस बोल्ड फिल्म को दर्शकों ने काफी पसंद किया। उनकी फिल्म दिल है तुम्हारा भी अवैध संतान की कहानी पर थी। यह फिल्म हिट साबित हुई। बॉबी देओल और करिश्मा कपूर के साथ रोमांटिक कॉमेडी हम तो मोहब्बत करेगा निराशाजनक फिल्म थी। उनकी २००४ में रिलीज़ फिल्म एक से बढ़ कर एक का एक किरदार गॉड फादर उपन्यास पढ़ते हुए अपनी वसीयत लिखाते हुए गलती से यह शर्त रख देता है कि उसका वारिस कोई डॉन ही हो सकता है। मगर यह फिल्म भी फ्लॉप हुई। अपनी आखिरी फिल्म पी से पीएम तक में कुंदन शाह ने राजनीतिक व्यंग्य के ज़रिये एक वैश्या को प्रधान मंत्री के पद तक पहुंचते दिखाया था। लेकिन इस फिल्म को वह सही तरह से अंजाम तक नहीं पहुंचा सके। दर्शकों ने इस फिल्म को नकार दिया। शायद यह अपनी प्रतिष्ठा के शिखर तक पहुँच चुके कहानीकार की स्वाभाविक फिसलन थी। अपने ३४ साल के फिल्म करियर में सिर्फ ७ फ़िल्में बनाने वाले कुंदन शाह की फिल्मों में राजनीति और समाज नीति पर हमला करने की कोशिश नज़र आती है। वह इस प्रयास में हर बार सफल नहीं होते। लेकिन, अपनी पहली ही फिल्म जाने भी दो यारों से बड़े बड़े फिल्मकारों को दिखा देते हैं कि तीखा राजनीतिक व्यंग्य कैसे किया जाता है। ऐसे कुशल फिल्मकार कुंदन शाह का निधन शुक्रवार की रात दिल का दौरा पड़ने से हो गया।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Sunday, 8 October 2017
राजनीति पर तीखा व्यंग्य करने वाले कुंदन
फिर कुंदन शाह की वापसी हुई। इस बार उन्होंने प्रिटी जिंटा को बिनब्याही माँ का क्रांतिकारी किरदार दिया था। इस बोल्ड फिल्म को दर्शकों ने काफी पसंद किया। उनकी फिल्म दिल है तुम्हारा भी अवैध संतान की कहानी पर थी। यह फिल्म हिट साबित हुई। बॉबी देओल और करिश्मा कपूर के साथ रोमांटिक कॉमेडी हम तो मोहब्बत करेगा निराशाजनक फिल्म थी। उनकी २००४ में रिलीज़ फिल्म एक से बढ़ कर एक का एक किरदार गॉड फादर उपन्यास पढ़ते हुए अपनी वसीयत लिखाते हुए गलती से यह शर्त रख देता है कि उसका वारिस कोई डॉन ही हो सकता है। मगर यह फिल्म भी फ्लॉप हुई। अपनी आखिरी फिल्म पी से पीएम तक में कुंदन शाह ने राजनीतिक व्यंग्य के ज़रिये एक वैश्या को प्रधान मंत्री के पद तक पहुंचते दिखाया था। लेकिन इस फिल्म को वह सही तरह से अंजाम तक नहीं पहुंचा सके। दर्शकों ने इस फिल्म को नकार दिया। शायद यह अपनी प्रतिष्ठा के शिखर तक पहुँच चुके कहानीकार की स्वाभाविक फिसलन थी। अपने ३४ साल के फिल्म करियर में सिर्फ ७ फ़िल्में बनाने वाले कुंदन शाह की फिल्मों में राजनीति और समाज नीति पर हमला करने की कोशिश नज़र आती है। वह इस प्रयास में हर बार सफल नहीं होते। लेकिन, अपनी पहली ही फिल्म जाने भी दो यारों से बड़े बड़े फिल्मकारों को दिखा देते हैं कि तीखा राजनीतिक व्यंग्य कैसे किया जाता है। ऐसे कुशल फिल्मकार कुंदन शाह का निधन शुक्रवार की रात दिल का दौरा पड़ने से हो गया।
Labels:
श्रद्धांजलि
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment