Sunday, 8 October 2017

राजनीति पर तीखा व्यंग्य करने वाले कुंदन

कुंदन शाह ! खरा सोना थे कुंदन।  फिल्म को किस प्रकार कला से अमर कलाकृति बनाया जा सकता है, यह कोई कुंदन शाह से सीखे। उनका रुझान कॉमेडी की तरफ था।  हिंदी फिल्मों में आम तौर पर कॉमेडी लाउड हो जाती है, अश्लीलता की हद पार करने लगती है। लेकिन, पुणे फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट से डायरेक्शन का प्रशिक्षण ले कर निकले कुंदन शाह ने बता दिया कि कॉमेडी से व्यंग्य की धार कैसे दिखाई जा सकती है।  फिल्म थी जाने भी दो यारों ! नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन के लिए बनाई गई और १२ अगस्त १९८३ को रिलीज़ इस फिल्म में कुंदन शाह के साथ जुड़े थे बतौर सह पटकथा और कहानीकार सुधीर मिश्र, संवाद लेखक सतीश कौशिक और रंजित कपूर, संगीतकार वनराज भाटिया, सिनेमेटोग्राफर बिनोद प्रधान और एडिटर रेनू सलूजा।  ऎसी प्रतिभाशाली हस्तियों के जुड़ने के बाद फिल्म को मास्टरपीस बनना ही था। सोने पर सुहागा किया कुंदन शाह की कल्पनाशीलता ने।  उन्होंने दो पेशेवर छायाकारों की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को महाभारत की द्रोपदी के चीरहरण पर ख़त्म कर, व्यवस्था पर गहरी चोट की थी।  फिल्म को १९८४ के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में किसी डायरेक्टर की पहली फिल्म का इंदिरा गाँधी अवार्ड दिया गया।  कुंदन शाह की प्रतिभा यहीं ख़त्म नहीं हुई।  उन्होंने भिन्न विषयों पर फिल्म बनाई।  हर फिल्म में उनके प्रकार का व्यंग्य हुआ करता था।  उन्होंने नुक्कड़, वाघले की दुनिया और परसाई कहते हैं जैसी टीवी सीरीज निर्देशित की।  वह पांच साल तक फ़िल्मी दुनिया से दूर रहे।  लौटे तो उनके पास कभी हाँ कभी न की कहानी और पटकथा थी।  उन्होंने इस फिल्म में असफल प्रेमी सुनील के किरदार के लिए शाहरुख़ खान को लिया।  खान की नायिका सुचित्रा कृष्णमूर्ति थी।  यह फिल्म शाहरुख़ खान के श्रेष्ठ अभिनय वाली फिल्म मानी जाती है।  अब फिर सात साल
फिर कुंदन शाह की वापसी हुई।  इस बार उन्होंने प्रिटी जिंटा को बिनब्याही माँ का क्रांतिकारी किरदार दिया था।  इस बोल्ड फिल्म को दर्शकों ने काफी पसंद किया।  उनकी फिल्म दिल है तुम्हारा भी अवैध संतान की कहानी पर थी। यह फिल्म हिट साबित हुई। बॉबी देओल और करिश्मा कपूर के साथ रोमांटिक कॉमेडी  हम तो मोहब्बत करेगा  निराशाजनक फिल्म थी।  उनकी २००४ में रिलीज़ फिल्म एक से बढ़ कर एक का एक किरदार गॉड फादर उपन्यास पढ़ते हुए अपनी वसीयत लिखाते हुए गलती से यह शर्त रख देता है कि उसका वारिस कोई डॉन ही हो सकता है।  मगर यह फिल्म भी फ्लॉप हुई। अपनी आखिरी फिल्म पी से पीएम तक में कुंदन शाह ने राजनीतिक व्यंग्य के ज़रिये एक वैश्या को प्रधान मंत्री के पद तक पहुंचते दिखाया था।  लेकिन इस फिल्म को वह सही तरह से अंजाम तक नहीं पहुंचा सके।  दर्शकों ने इस फिल्म को नकार दिया। शायद यह अपनी प्रतिष्ठा के शिखर तक पहुँच चुके कहानीकार की स्वाभाविक फिसलन थी। अपने ३४ साल के फिल्म करियर में सिर्फ ७ फ़िल्में बनाने वाले कुंदन शाह की फिल्मों में राजनीति और समाज नीति पर हमला करने  की कोशिश नज़र आती है।  वह इस प्रयास में हर बार सफल नहीं होते।  लेकिन, अपनी पहली ही फिल्म जाने भी दो यारों से बड़े बड़े फिल्मकारों को दिखा देते हैं कि तीखा राजनीतिक व्यंग्य कैसे किया जाता है।  ऐसे कुशल फिल्मकार कुंदन शाह का निधन शुक्रवार की रात दिल का दौरा पड़ने से हो गया।

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