अल्ताफ एक जेहादी है। उसे लगता है कि इस्लाम सर्वोच्च है। वह सोचता है कि जेहाद बन्दूक की नाल से, काफिरों को मार कर आता है। लेकिन, उसे नहीं मालूम की जिहाद का असली मतलब खून खराबा नहीं है। इस्लाम भाईचारे की बात करता है, खून बहाने की नहीं। यह अल्ताफ की नासमझी नहीं, ज़्यादातर लोग इस्लाम का सही अर्थ ही नहीं जानते। इस्लाम मानवता का सन्देश देता है। अल्ताफ को समझ में आ जाता है कि जिहाद बाहर लड़ा जाने वाला धर्म युद्ध नहीं। यह आदमी के अंदर लड़ा जाने वाला युद्ध हैं। जिहाद, अपने अंदर की बुराइयों पर विजय पाना है। बन्दूक मौत दे सकती है। अगर तुम ज़िन्दगी दे सकते हो..तो दो ! यही सन्देश है निर्देशक राकेश परमार की फिल्म जिहाद का। जिहाद को राकेश परमार के साथ सुरभि पंड्या और संजय जोशी ने लिखा है। हालाँकि, जिहाद के निर्देशक और लेखक हिन्दू है, लेकिन फिल्म का निर्माण एक मुस्लिम हैदर काज़मी ने किया है। हैदर, जिहाद से पहले पाथ और बॉबी : लव एंड लस्ट का निर्माण और अभिनय कर चुके हैं। वह १२ साल बाद किसी फिल्म में अभिनय कर रहे हैं। जिहाद में वह अल्ताफ का मुख्य किरदार कर रहे हैं। इस फिल्म के लिए हैदर को टोरंटो इंटरनेशनल नॉलीवूड फिल्म फेस्टिवल में श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीता है। हैदर ने अपनी फिल्म का पहला पोस्टर हिंदुस्तान में अयोध्या में रिलीज़ किया था। वह हिन्दू और मुसलमानो को भाइयों की तरह रहने का सन्देश देते हैं। हैदर की फिल्म में अल्फिया, फरहाद अहमद देहलवी, मुज़्ज़म्मिल भवनी, आदि मुख्य भूमिका में हैं। क्या हैदर काज़मी की यह फिल्म हिंदुस्तान में जिहाद की सोच रखने वाले कुछ लोगों को भी बदल पाएगी ?
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