शुक्रवार ६
दिसम्बर को, अपनी ऐतिहासिक-पीरियड फिल्मों के लिए
मशहूर निर्देशक आशुतोष गोवारिकर, भव्य ऐतिहासिक युद्ध ड्रामा फिल्म पानीपत के साथ दर्शकों की अदालत, बॉक्स ऑफिस पर होंगे। सदाशिव राव भाऊ के
नेतृत्व में मराठा सेना और अफगान आक्रांता अहमद शाह अब्दाली की सेना के बीच.
पानीपत के मैदान में हुए तीसरे युद्ध पर आधारित इस फिल्म को १०० करोड़ से ज्यादा के
बजट से भव्य सेट्स लगा कर बनाया गया है। फिल्म में, संजय दत्त के अहमद शाह अब्दाली और अर्जुन कपूर के सदाशिव राव भाऊ के
अलावा कृति सेनन,
मोहनीश बहल, पद्मिनी कोल्हापुरे, आदि युद्ध की पृष्ठभूमि में अहम् भूमिकाओं
को कर रहे हैं। इस फिल्म की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि
फिल्म का एक प्रमुख सेट शनिवारवाडा को बनाने में, आर्ट डायरेक्टर नितिन चंद्रकांत देसाई की देखरेख में ५०० डिज़ाइनरों और
कारीगरों ने तैयार किया है। फिल्म के तमाम वस्त्राभूषण, अस्त्र-शस्त्र ख़ास शोध करने के बाद
हू-ब-हू बनाए गए हैं।
हिन्दू
अस्मिता का चित्रण
लेकिन, पानीपत की खासियत सिर्फ इसकी भव्यता नहीं।
पानीपत की खासियत पानीपत के तीसरे युद्ध के दौर को बड़ी रिसर्च के बाद लिखे जाने की
हैं, जिसमे बारीक तथ्यों का ध्यान रखा गया
है। यह फिल्म पानीपत के युद्ध के दौर की
उन घटनाओं को भी उकेरेगी,
जिन्हें
युद्ध का वर्णन करने में इतिहासकारों ने पीछे धकेल दिया। यह फिल्म मराठा सेना की
वीरता का ही बखान नहीं करेगी, बल्कि उस समय की उन घटनाओं का चित्रण भी करेगी, जिनके चलते जीत दर्ज कराती चली आ रही
मराठा सेना अब्दाली की सेना के हाथों खेत रही। यह फिल्म हिन्दू अस्मिता का चित्रण
करने वाली फिल्म भी बन सकती है। आशुतोष गोवारिकर की फिल्म पानीपत, बॉलीवुड की अब तक कि ज़्यादातर ऐतिहासिक
फिल्मों से काफी अलग है। यह फिल्म मर्द मराठा को चित्रित करने वाली फिल्म है। जबकि, अब तक बॉलीवुड के फिल्म निर्माता, जिनमे खुद आशुतोष गोवारिकर भी शामिल हैं, मुस्लिम शासकों की यशोगाथा का वर्णन करने
और उनकी प्रेम कहानियों को भव्यता प्रदान करती रही हैं।
मुग़ल शासकों
पर मुग्ध फ़िल्में
हिंदी-उर्दू
में बनी प्राचीन ऐतिहासिक फिल्मों पर नज़र डालिये। हिंदी फ़िल्में मुग़ल शासकों का
यशोगान करने,
उनके रोमांस
पर मुग्ध होने और उनके भव्य महलों और परिधानों का गुणगान करती नज़र आती है। भारतीय
सिनेमा की शुरुआत दादा साहेब फाल्के की धार्मिक फिल्म राजा हरिश्चंद्र से हुई थी।
दादासाहेब की फ़िल्में हिन्दू धार्मिक और पौराणिक कथाओं पर ही बनी थी। वी शांताराम
की मूक फिल्म उदयकाल (१९३०) मराठा शासक छत्रपति शिवाजी के सैन्य अभियानों पर फिल्म
थी। पहली बोलती फिल्म आलम आरा की कहानी एक मुस्लिम शासक और उसकी दो बेगमों के
षड्यंत्रों पर थी। दरअसल शुरुआती भारतीय सिनेमा पारसी थियेटर से बहुत प्रभावित था।
यही वजह है कि हिंदी सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में पौराणिक और ऐतिहासिक किरदारों
की प्रधानता देखने को मिलती है। धीरे-धीरे यह पारसी थियेटर के प्रभाव से मुक्त हुआ
और सामाजिक मुद्दे इसके केंद्र में आए। लेकिन पौराणिक और ऐतिहासिक किरदार भी इसकी
दृष्टि से कभी ओझल नहीं हुए। रह-रह कर ऐसी फिल्में बनती रहीं और उन्हें दर्शकों का
प्यार भी मिलता रहा।
आलामारा से
शुरुआत
आलमआरा के
बाद, मुस्लिम शासकों की यश गाथा परदे पर उतारने
का सिलसिला शुरू हो गया। गजानन जागीरदार
ने भारत में मुग़ल शासन की स्थापना करने वाले बैरम खान पर फिल्म बनाई। सोहराब मोदी
ने, १९३६ में मिनर्वा मूवीटोन की स्थापना की।
इसके तहत, उन्होंने कई सामजिक मुद्दों को उठाने वाली
फ़िल्में बनाई। इसके बाद वह इतिहास की ओर
आकृष्ट हुए। १९३९ में उन्होंने पुकार बनाई, जो जहांगीर की काल्पनिक न्याय प्रियता का बखान करने वाली फिल्म थी।
क्योंकि, जहांगीर के किले के द्वार पर लटके कथित
घंटे का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। अब यह बात दीगर है कि सोहराब मोदी ने पुकार
बनी तो उनका घंटा इतिहास बन गया। मोदी ने सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध पर फिल्म
सिकंदर (१९४२) बनाई। इसमें पोरस की वीरता से कहीं ज़्यादा सिकंदर की उदारता को
तरजीह दी गई थी। १९४३ में सोहराब मोदी ने कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी की काल्पनिक
पुस्तक पृथ्वी वल्लभ पर इसी नाम के साथ फिल्म बनाई। यह फिल्म राजसी कामुकता, षड़यंत्र और हिंसा का चित्रण करने वाली थी।
इतिहास का
रोमांटिक चेहरा
बॉलीवुड ने
ज़्यादातर इतिहास को रोमांस के नज़रिये से देखा। मुग़ल हो या हिन्दू शासक उनके प्रेम
प्रसंगों को कुछ इस तरह से पेश किया गया, जैसे इन राजाओं-बादशाओं का काम इश्क़ लड़ाना ही था। मुग़ल बादशाह, चाहे वह जहांगीर हो या अकबर, इनके रोमांस परदे पर दमकते नज़र आये। पर बाबर और हुमायूँ पर भी
काल्पनिक-अर्धऐतिहासिक फ़िल्में बनाई गई। अकबर बादशाह की राजकुमारी जोधा के प्रति
कामुकता का चित्रण भी रोमांस बताया गया।
अगर अकबर रोमांस नहीं का रहा था तो उसका बेटा सलीम रोमांस में मुब्तिला
था। तीन- साढ़े तीन घंटे की जंग इस रोमांस
के इर्दगिर्द लड़ी जाती थी। भारत के फिल्मकारों ने तो सलीम-अनारकली की प्रेम कहानी
को फिल्म अनारकली,
मुगले आज़म, आदि फिल्मों के ज़रिये इतिहास बना दिया।
शाहजहां की प्रेम चर्चा में शेख मुख़्तार की फिल्म नूरजहां,किदार शर्मा की फिल्म मुमताज महल (१९४४), ताजमहल (१९४१ और १९६३) और ताजमहल एन इटरनल
लव स्टोरी (२००५) उल्लेखनीय हैं, जो बड़े बजट के साथ बनाई गई।
वीरता नहीं
रोमांस
मगध
साम्राज्य के सम्राट अजातशत्रु पर फिल्म अजातशत्रु के बारे में कोई ख़ास जानकारी
नहीं मिलती। लेकिन,
उनके
आम्रपाली के साथ रोमांस वाली फिल्म आम्रपाली को बड़े बजट के साथ बनाया गया। लेख
टंडन की फिल्म आम्रपाली की कहानी वैशाली के लिच्छवि साम्राज्य की गणिका आम्रपाली
से मगध के सम्राट अजातशत्रु के प्रेम की कहानी थी। शाहरुख़ खान की संतोष सिवन
के निर्देशन में ऐतिहासिक फिल्म अशोका में
इतिहास कम अशोक और राजकुमारी कुरुवाकी का प्रेम प्रपंच ज़्यादा था। फिल्म बागमती, हैदराबाद के राजकुमार मोहम्मद कुली क़ुतुब
शाह और भागमती की प्रेम कहानी थी। संजय लीला भंसाली ने बाजीराव मस्तानी में, मराठा पेशवा बाजीराव और एक नर्तकी मस्तानी
के प्रेम और विवाह को भव्य तरीके से फिल्माया गया था। पद्मावत में रानी पद्मिनी की
वीरता नहीं, उनके सौंदर्य पर ज़्यादा चर्चा की गई थी।
साधारण बजट
वाली फ़िल्में
लेकिन, जहाँ तक हिन्दू राजाओं और रानियों की
वीरता का सवाल है,
भारी बजट और
कलाकारों के साथ कोई मुगले आज़म या रज़िया सुलतान नहीं बनी। हिन्दुओं का यशोगान करने
वाली फ़िल्में या तो कम बनाई गई या स्टंट फ़िल्में बनाने वाले बी ग्रेड के
निर्माताओं द्वारा ही बनाई गई। सन्यासी विद्रोह पर निर्देशक हेमेन गुप्ता की फिल्म
आनंदमठ में अंग्रेज़ों के खिलाफ हिन्दू सन्यासियों के विद्रोह पर मार्मिक फिल्म का
निर्माण किया गया। विशाल भारत राष्ट्र के निर्माता चन्द्रगुप्त और उनके गुरु
चाणक्य पर भी कुछ फिल्मों का निर्माण हुआ। भारतीय फिल्मकारों ने इन ऐतिहासिक
चरित्रों पर चन्द्रगुप्त,
चाणक्य
चन्द्रगुप्त,
चन्द्रगुप्त
चाणक्य, आदि फिल्मों का निर्माण किया। इन फिल्मों
मे ज़रिये मौर्या साम्राज्य की स्थापना का चित्रण किया गया था। अवन्ति के राजा
विक्रम पर विजय भट्ट की फिल्म विक्रमादित्य की कश्मीर की राजकुमारी की आक्रमणकारियों
से बचाने की कहानी थी। तमिल फिल्म
पृथ्वीराजम १९४२ तमिल फिल्म चित्तौड़ रानी पद्मिनी भी पृथ्वीराज चौहान और रानी
पद्मिनी की वीर गाथाये थी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर अब तक सिर्फ दो फ़िल्में ही
बनी है। सोहराब मोदी की झाँसी की रानी और कंगना रनौत अभिनीत मणिकर्णिका द क्वीन ऑफ़
झाँसी ही ऎसी दो फ़िल्में थी।
हिन्दू
राष्ट्रवाद की बात
अब बॉलीवुड
के फिल्म निर्माता हिन्दू राष्ट्रवाद की बात करने लगे हैं । मणिकर्णिका द क्वीन ऑफ़
झाँसी ने इसकी बड़ी शुरुआत की । पद्मावत मे पहली बार किसी मुस्लिम आक्रमणकारी का
महिमामंडन नहीं किया गया था । निर्देशक अनुराग सिंह की फिल्म केसरी में, १८९७ में
पख्तूनों के खिलाफ वीरता प्रदर्शित करने वाले हवालदार ईशर सिंह और उसके साथी
सिपाहियों की वीरता का चित्रण किया गया था । पानीपत में, हिन्दू राजाओं और सैनिकों
की वीरता का चित्रण है । अगले साल के शुरू में, निर्देशक ओम राउत की ऐतिहासिक
युद्ध फिल्म तानाजी : द अनसंग वारियर रिलीज़ होगी । इस फिल्म में छत्रपति शिवाजी के
सेनापति तानाजी मालुसरे के कोंधागढ़ का किला जीतने में दिखाई गई वीरता और साहस का
चित्रण है । अक्षय कुमार, निर्देशक डॉक्टर चंद्रप्रकाश की फिल्म पृथ्वीराज में
अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की भूमिका कर रहे हैं । इस फिल्म में महमूद
गोरी के छल और उसके खिलाफ पृथ्वीराज चौहान की वीरता का चित्रण किया गया है । इस
लिहाज़ से करण जौहर की फिल्म तख़्त काफी अलग है । क्योंकि इस फिल्म के लिए औरंगजेब
और उसके भाइयों के बीच तख़्त के लिए जंग का चित्रण किया जायेगा । दक्षिण के फिल्म
निर्माताओं की ममंगम जैसी कुछ फ़िल्में भी हिन्दू चरित्रों की वीरता का चित्रण करने
वाली फ़िल्में हैं ।
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