ऑपरेशन सेंसर बोर्ड के बाद पद्मावती का सेक्स
चेंज हो गया। अब वह स्त्री लिंग से पुरुष
लिंग में बदल गई। अब, संजय लीला भंसाली की
रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और शाहिद कपूर की मुख्य भूमिका वाली फिल्म बदले टाइटल के साथ यू/ए
प्रमाणपत्र लेकर रिलीज़ होगी। यानि कि अब
फिल्म पद्मावती नहीं पद्मावत टाइटल के साथ रिलीज़ होगी। लेकिन, इस फिल्म को बच्चे अपने अभिभावकों के साथ ही देख सकेंगे (शायद युद्ध
दृश्यों की वजह से) । लेकिन, यह जुगत पहले क्यों
नहीं भिड़ाई जा सकी ? क्यों नहीं भंसाली और वायाकॉम १८ ने इसे काल्पनिक कथा का डिस्क्लेमर
दिया?
अगर इससे राजपूत समाज का ऐतराज़ ख़त्म होता था तो
देश में इतनी अशांति फ़ैलने देने की स्थिति
को क्यों नहीं रोका गया ? कहीं ऐसा तो नहीं, अब चुनाव ख़त्म हो गए हैं।
सरकार और पार्टियों के बीच स्टैंड लेने के लिए वोट कोई बाधा नहीं है। अब अगर,
बदले टाइटल के साथ भी पद्मावत को कोई विरोध करेगा तो उससे कानून व्यवस्था के नियमों के
अनुसार आसानी से निबट लिया जायेगा। लेकिन, यह पहले भी संभव
था। कई राज्यों के मुख्य मंत्रियों ने
पद्मावती को रिलीज़ नहीं होने देने का जो फतवा दिया था, उसकी ज़रुरत भी नहीं
पड़ती। हालाँकि, किसी भी राज्य के
आधिकारिक आदेश जारी नहीं हुए थे । क्योंकि, फिल्म सेंसर ही कहाँ
हुई थी। अब यह राज्य पद्मावती के लिंग परिवर्तन को आधार बना कर फिल्म रिलीज़ होने
दे सकते हैं। लेकिन, यह चेहरा बचाने की
जुगत ही है। जहाँ तक संजय लीला भंसाली की बात है, उनके लिए पहले विवाद
खड़ा करना, बखेडा बढ़ने देना और फिर टाइटल बदल लेना कोई नई बात नहीं। २०१३ में भी वह, अपनी रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण के साथ फिल्म
राम-लीला को भारी विरोध और कोर्ट में
मुकदमों के बाद गोलियों की रासलीला : राम-लीला में बदल चुके हैं। जिस प्रकार से २०१३ की फिल्म राम- लीला का
गोलियों की रासलीला : राम-लीला बन जाने के बाद न कंटेंट बदला था, न टाइटल से राम-लीला
नाम हटा था, कुछ वैसा ही पद्मावती उर्फ़ पद्मावत के साथ भी हुआ है। क्योंकि, पद्मावती को पद्मावत
करना टाइटल बदलना तो है, लेकिन कंटेंट नहीं बदलता है, जिसके लिए इतना बड़ा हंगामा खड़ा हुआ था। सेंसर बोर्ड के चीफ प्रसून जोशी ने पद्मावती को, जो बकौल संजय लीला
भंसाली मलिक मोहम्मद जायसी के १५४० में लिखे काव्य पद्मावत पर आधारित है, पद्मावत में बदले
जाने की शर्त के साथ फिल्म प्रमाणित करने पर सहमति दी है । अब यह सेंसर का प्रमाणपत्र पाने के बाद
काल्पनिक काव्य पर एक काल्पनिक फिल्म बन जाती है।
शायद, फिल्म के निर्माताओं ने अपने डिस्क्लेमर में इसे साफ़ भी कर दिया होगा।
लेकिन, सवाल यही है कि एक फिल्म को हर तरफ से इतना तूल क्यों दिया गया ? क्यों नहीं फिल्मों
को दर्शकों के निर्णय के लिए छोड़ दिया जाता ?
वह ही तय करें कि फिल्म का टाइटल पद्मावती होना
चाहिए या पद्मावत ?
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Saturday, 30 December 2017
ऑपरेशन सेंसर बोर्ड ! पद्मावती बनी पद्मावत !!
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खबर चटपटी
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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