शत्रुघ्न सिन्हा का फिल्म करियर, २०१० में फिल्म रक्त चरित्र २ के साथ ही ख़त्म हो चुका था। २०१४ में लोकसभा चुनाव में वह भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते ज़रूर, लेकिन मोदी भदेली में उनकी दाल नहीं गली। वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान नहीं बना सके। इसके बाद से, वह राजनीति में पटना साहिब से बीजेपी के सांसद की हैसियत रखते हैं और फिल्मों में वह सोनाक्षी सिन्हा के बापू वाली। इसके अलावा दोनों ही जगह उनकी स्थिति शट-अप सिन्हा वाली ही है। लेकिन, केंद्र में मंत्री पद न मिलने की हताशा ने उन्हें बडबडिया सिन्हा बना दिया है। जिस जगह भी मोदी विरोध की ज़रा सी भी गुंजाईश हो सकती है, शत्रुघ्न सिन्हा वहां बोलते नज़र आते हैं। जब पद्मावती विवाद चरम पर था, तब शत्रुघ्न सिन्हा फिर बोले। उन्होंने पद्मावती के संजय लीला भंसाली का समर्थन नहीं किया। पद्मावती रिलीज़ की जोरदार पैरवी नहीं की। दीपिका पादुकोण की नाक काट लेने और संजय लीला भंसाली और दीपिका पादुकोण का सर काट लेने की धमकियों पर शबाना आज़मी जितना स्टैंड भी नहीं लिया। वह हर मौके पर यही कहते रहे कि प्रधान मंत्री क्यों खामोश है। वह कुछ बोलते क्यों नहीं ! उन्होंने अपने इस बोलने से कहीं भी यह आभास नहीं होने दिया कि वह पद्मावती के खिलाफ या कर्णी सेना के विरोधी हैं। वह रस्सी पर चलने वाले नट की तरह बैलेंस साधे रहे। अब जबकि, चुनाव ख़त्म हो चुके हैं। बीजेपी गुजरात और हिमाचल की सत्ता पर शत्रुघ्न सिन्हा के विरोध के बावजूद काबिज हो गई है, शत्रुघ्न सिन्हा फिर मुखर हो गए हैं। वह बिहार में कर्णी सेना की शाखा से रानी पद्मिनी की फोटो भेंट स्वरुप स्वीकार कर रहे हैं। वह यह तो नहीं कह रहे कि पद्मावती रिलीज़ नहीं होनी चाहिए, लेकिन संजय लीला भंसाली की आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने फिल्म कर्णी सेना को दिखाने के बजाय पत्रकारों को क्यों दिखा दी ? जबकि, पद्मावती चुनिंदा पत्रकारों को उस समय तक दिखा दी गई थी, जब शत्रुघ्न सिन्हा प्रधान मंत्री से चुप्पी तोड़ने को कह रहे थे। शत्रुघ्न सिन्हा ने उस समय क्यों नहीं साहस दिखाते हुए भंसाली की आलोचना की। उन से ज़्यादा साहसी तो सेंसर बोर्ड के चीफ प्रसून जोशी हैं, जिन्होंने खुल का नाराज़गी प्रकट की। बहरहाल, शत्रुघ्न सिन्हा को खुल कर सामने आना ही था। उन्हें कर्णी सेना का समर्थन चाहिए। संजय लीला भंसाली से तो उन्हें चरित्र भूमिकाएं ही मिल सकती है। वैसे भी बॉलीवुड में उनकी पैरवी बिटिया कर सकती है। २०१९ के चुनाव के लिए उन्होंने इतने कांटे बटोर लिए हैं कि उन्हें कर्णी सेनाओं जैसी दस बीस सेनाये भी कम पड़ेंगी। शायद भंसाली के खिलाफ मुखर होने का सिन्हा जी का सबब भी राजनीति ही है।
भारतीय भाषाओँ हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, आदि की फिल्मो के बारे में जानकारी आवश्यक क्यों है ? हॉलीवुड की फिल्मों का भी बड़ा प्रभाव है. उस पर डिजिटल माध्यम ने मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है. इसलिए इन सब के बारे में जानना आवश्यक है. फिल्म ही फिल्म इन सब की जानकारी देने का ऐसा ही एक प्रयास है.
Wednesday, 20 December 2017
पद्मावती पर गुलाटी मारते शत्रुघ्न सिन्हा
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Shatrughan Sinha,
हस्तियां
मैं हिंदी भाषा में लिखता हूँ. मुझे लिखना बहुत पसंद है. विशेष रूप से हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की तथा हॉलीवुड की फिल्मों पर. टेलीविज़न पर, यदि कुछ विशेष हो. कविता कहानी कहना भी पसंद है.
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