Sunday, 15 December 2019

सुपर डुपर हिट फिल्मों और परिवर्तन का दशक


२०१० के दशक को ख़त्म होने में, आज के बाद सिर्फ १६ दिन और दो शुक्रवार बाकी हैं। ट्रेड पंडितों ने, २०१० से २०१९ के बीच प्रदर्शित फिल्मों का लेखाजोखा बांचना शुरू कर दिया है। हिसाब किताब लगाया जा रहा है कि पिछले १० सालों में कितनी फ़िल्में रिलीज़ हुई ? कितनी फिल्में सफल हुई ? इनमे कितनी हिट और सुपर हिट या ब्लॉकबस्टर हिट साबित हुई ? इंडस्ट्री ने कितना खोया, कितना पाया ? ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि २०१० से शुरू इस दशक में बॉलीवुड में कितना और कैसा बदलाव हुआ ! कैसी फ़िल्में बनी ? क्या लीक पीटता रहा बॉलीवुड या कुछ नए प्रयोग हुए ?

वीकेंड का चलन 
हिंदी फिल्मो के बॉक्स ऑफिस पर प्रदर्शन की बात करें तो इस दशक को बेहद उपजाऊ दशक कहना उपयुक्त होगा। बड़ी फ़िल्में रिलीज़ हुई। हॉलिडे वीकेंड का चलन बना। गणतंत्र दिवस वीकेंड, स्वतंत्र दिवस वीकेंड, गाँधी जयंती वीकेंड, होली वीकेंड, ईद वीकेंड, दिवाली वीकेंड, क्रिसमस वीकेंड, पोंगल और किसी भी राष्ट्रीय अवकाश के वीकेंड पर कब्ज़ा जमाने का चलन शुरू हो गया। हालाँकि, हॉलिडे वीकेंड की शुरुआत आमिर खान की फिल्म गजिनी (२००७) से शुरू हो चुकी थी, जब उनकी फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर १०० करोड़ क्लब की स्थापना की। इस कब्ज़े मे सबसे आगे रही बड़े सितारों की फ़िल्में. यह बॉलीवुड के सुपर सितारों का खोखला स्टारडम कहें या असफलता का भय, हॉलिडे वीकेंड पर इन्ही सितारों की फ़िल्में प्रदर्शित हुई। अब यह बात दीगर है कि इसके बावजूद फ़िल्में असफल हुई। यह असफलता इन सितारों की फिल्मों के बड़े बजट का परिणाम थी। इस बड़े बजट में बड़ा हिस्सा इन्ही सितारों के पारिश्रमिक का था। इस लिहाज़ से, अक्षय कुमार एक ऐसे एक्टर साबित हुए, जिन्होंने खुद फिल्म निर्माण में कदम रख कर, अपनी फिल्मों की लागत काफी कम कर दी। वैसे भी अक्षय कुमार का पारिश्रमिक उचित होता है। इतना बड़ा नहीं कि फिल्म औंधे मुंह गिर जाए तो निर्माता बर्बाद हो जाए।

दिलचस्प आंकड़े 
एक वेब साईट द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि अब तक ८६ हिंदी फ़िल्में १०० करोड़ या इससे अधिक का कारोबार कर चुकी हैं। इनमे से एक फिल्म बाहुबली द कांक्लुजन दक्षिण से आई और हिंदी में डब है। इस फिल्म के ५१०.९० करोड़ के कारोबार को कोई भी हिंदी फिल्म अब तक छू तक नहीं सकी है। बाहुबली २ के अलावा ८ हिंदी फ़िल्में ऎसी हैं, जिन्होंने ३०० करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है। उपरोक्त फिल्मों के अलावा १४ फ़िल्में २०० के पार मगर, ३०० करोड़ से नीचे रह गई है। इस प्रकार से लगभग ८६ फ़िल्में १०० करोड़ क्लब में शामिल हैं। यहाँ दिलचस्प तथ्य यह है कि इन ८६ फिल्मों में सिर्फ २ फ़िल्में ३ इडियट्स (२००९) और गजिनी (२००७) ही ऐसी हैं, जो २००० के दशक में प्रदर्शित हुई थी। बाक़ी ८४ फ़िल्में २०१० के दशक की देन हैं। इससे पता लगता है कि हिंदी फिल्मों को, इस दशक में, कितनी ज़बरदस्त सफलता मिली है।

५०० करोड़ ही बाहुबली 
बॉक्स ऑफिस पर ५०० करोड़ से ज्यादा का कारोबार करने वाली फिल्म बाहुबली द कांक्लुजन के अलावा ३०० करोड़ से ज्यादा का कारोबार करने वाली फिल्मों में दंगल, संजू, टाइगर जिंदा है, बजरंगी भाईजान, वॉर, पद्मावत, सुल्तान, धूम ३ के नाम शामिल हैं। दो सौ करोड़ क्लब की फिल्मों में कबीर सिंह, उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक, सिम्बा, कृष ३, किक, चेन्नई एक्सप्रेस, प्रेम रतन धन पायो, भारत, गोलमाल अगेन, मिशन मंगल, हाउसफुल ४ और हैप्पी न्यू इयर के नाम शामिल हैं। एक सौ करोड़ क्लब वाली फिल्मों में एक था टाइगर, २.० (डब), बाजीराव मस्तानी, यह जवानी है दीवानी, रेस ३, बैंग बैंग, बागी २, दबंग २, केसरी, टोटल धमाल, छिछोरे, ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान, तनु वेड्स मनु रिटर्न्स, साहो, बॉडीगार्ड, दिलवाले, सुपर ३०, दबंग, सिंघम रिटर्न्स, ड्रीम गर्ल, गली बॉय, जुड़वाँ २, बधाई हो, रईस, राऊडी राठोर, टॉयलेट एक प्रेम कथा, एम्एस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी, स्त्री, एयरलिफ्ट, रुस्तम, राज़ी, अग्निपथ, रेडी, जब तक है जान, ट्यूबलाइट, रा.वन, जॉली एलएलबी २, बाहुबली द बेगिनिंग, बद्रीनाथ की दुल्हनिया, राम-लीला, जय हो, ऐ दिल है मुश्किल, हाउसफुल २, हॉलिडे, बर्फी, डॉन २, गोल्ड, भा मिल्खा भाग, हाउसफुल ३, सोनू के टीटू की स्वीटी, एबीसीडी २, गोलमाल ३, सन ऑफ़ सरदार, काबिल, २ स्टेट्स, रेड, एक विलेन, दे दे प्यार दे, रेस २, बोल बच्चन, शिवाय, सिंघम और बाला के नाम शामिल हैं। अभी इस लिस्ट में दबंग ३ और गुड न्यूज़ जैसी फ़िल्में भी शामिल हो सकती हैं।

सीक्वल और रीमेक फिल्मों का जलवा 
चालू दशक में रीमेक और सीक्वल फिल्मों का बोलबाला रहा। ऐसी ज्यादातर फ़िल्में सफल हुई। इन फिल्मों ने अपनी पिछली फिल्मों से ज्यादा कारोबार किया। मसलन, हाउसफुल और एबीसीडी फिल्मों की सीक्वल फिल्मों को पहले की फिल्म से ज्यादा सफलता मिली। प्रयोगात्मक फिल्मों का सिलसिला चालू हुआ. स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं और विदेशी स्टूडियोज के आने से इस सिलसिले ने जोर पकड़ा। नायिका प्रधान फिल्मों को सफलता मिली। फिल्मों में श्रेष्ठ तकनीक का उपयोग किया जाने लगा। विदेशी तकनीशियनों के कारण हिंदी दर्शकों को साहो और वॉर जैसी फ़िल्में देखने को मिली। ऐतिहासिक और पीरियड फिल्मों का निर्माण हुआ। द ताशकंद फाइल्स, द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, आदि राजनीतिक फिल्मों का निर्माण भी हुआ।

स्टारडम का दशक 
जहाँ तक स्टारडम की बात है तो वह २०१० के दशक में भी बना रहा। हालाँकि, इस पूरे दशक में खान अभिनेता यानि सलमान खान, शाहरुख़ खान और आमिर खान की फ़िल्में सफल होती रही। बॉक्स ऑफिस पर इनका दबदबा कायम रहा। लेकिन, नए सितारों के उभर ने इन खान अभिनेताओं की रोशनी को मलिन कर दिया। विक्की कौशल, टाइगर श्रॉफ, आयुष्मान खुराना, आदि एक्टरों ने बॉक्स ऑफिस पर खुद की विश्वसनीयता साबित कर दिखाई। संभव है कि २०२० के दशक में इन्ही सितारों का वर्चस्व कायम हो। नए सितारों का भी उदय हो सकता है। विद्या बालन और अलिया भट्ट ने महिला प्रधान फिल्मों को सहारा दिया। इन्हें नायक प्रधान फिल्मों के बराबर खड़ा करने की कोशिश की। 

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