विचारणीय दशक
में, काफी ऐसी फ़िल्में बनी, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाई हो या न पाई हो, कथ्य की विशेषता और भिन्नता दिखाई
दी। इन फिल्मों ने दर्शकों की सोच में
बदलाव किया। फिल्मकारों को नए कथानक वाली फ़िल्में बनाने के लिए प्रेरित किया। आइये जानते हैं दशक के हरेक साल की कुछ ऐसी
ही फिल्मों के बारे में-
२०१० में इश्क़िया- विशाल भरद्वाज ने, जब अभिषेक चौबे को निर्देशन की कमान सौंप कर इश्क़िया का निर्माण किया
तो फिल्म के प्रति उत्सुकता तो पैदा हो चुकी थी।
लेकिन,
विद्या बालन, नसीरुद्दीन शाह और अरशद वारसी की लम्पट
अपराधी तिकड़ी में अनोखापन नज़र आया। इस फिल्म ने, महिला प्रधान फिल्मों के लिए रास्ता बना दिया। अमिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार की फिल्म को मात
दी।
२०१० में लव सेक्स और धोखा- निर्माता एकता कपूर ने ऑनर किलिंग, एमएमएस स्कैंडल और स्टिंग ऑपरेशन पर आधारित तीन कहानियों के निर्देशन
का जिम्मा दिबाकर बनर्जी को सौंपा था।
स्टारकास्ट में उस समय बिलकुल नए
अंशुमान झा, राजकुमार राव, नुसरत भरुचा, आदि को शामिल किया गया था। इस फिल्म ने
निर्माताओं के सामने छोटे बजट में बड़ी कमाई करने का रास्ता खोल दिया।
२०१० में काइट्स - निर्माता राकेश रोशन की अनुराग बासु निर्देशित फिल्म काइट्स ऎसी
बड़ी फिल्म थी,
जिसमे विदेशी
नायिका थी। फिल्म में हृथिक रोशन और कंगना रनौत के साथ स्पेनिश एक्ट्रेस बारबरा
मोरी नायिका की भूमिका में थी। इस फिल्म
को इंग्लिश और स्पेनिश भाषा में भी प्रदर्शित किया गया। काइट्स बॉक्स ऑफिस पर बड़ी
फ्लॉप फिल्म साबित हुई।
२०१० में पीपली लाइव - निर्माता आमिर खान की अनुषा रिज़वी निर्देशित इस फिल्म में गाँव की
दशा, न्यूज़ चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज़ और नेताओं
की कैमरापरस्ती पर व्यंग्य किया गया था। ओमकार दास मानकपूरी, नसीरुद्दीन शाह, राजपाल यादव और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के
साथ इस फिल्म को भी सफलता मिली।
२०१० में कालो- निर्देशक विल्सन लुइस को श्रेय
जाता है कि उन्होंने भारत की पहली डेलाइट क्रीचर हॉरर फिल्म कालो का निर्माण किया।
इस फिल्म को साउथ अफ्रीकन हॉरर फेस्टिवल २०१० में श्रेष्ठ फिल्म और छायांकन
की श्रेणी में पुरस्कृत किया गया।
२०११ में नो वन किल्ड जेसिका- दिल्ली मशहूर बारबाला जेसिका लाल
हत्याकांड पर,
राजकुमार
गुप्ता ने फिल्म नो वन किल्ड जेसिका का निर्माण किया था। इस फिल्म को विद्या बालन और रानी मुख़र्जी के दमदार अभिनय के कारण सराहा भी गया और बॉक्स
ऑफिस पर सफलता भी मिली। इस फिल्म ने यह
साबित किया कि अगर फिल्म दमदार हो तो बॉलीवुड की कुख्यात फर्स्ट फ्राइडे जिंक्स
कोई मायने नहीं रखती।
२०११ में तनु वेड्स मनु- कंगना रनौत के ज़बरदस्त अभिनय और माधवन के सपोर्टिंग अभिनय वाली
कानपूर की लड़की और लंदन के दूल्हे के बीच धीरे धीरे पनपे रोमांस की फिल्म तनु
वेड्स मनु को दर्शकों ने खूब पसंद
किया। उस समय तक स्ट्रेंजरस और थोड़ी लाइफ
थोड़ा मैजिक जैसी फ्लॉप फिल्मों के निर्देशक माने जाने वाले आनंद एल राय यकायक बड़े
निर्देशक बन गए। इस फिल्म को जर्मन भाषा
में डब किया गया और कई भारतीय भाषाओं में रीमेक किया गया।
२०११ में रा.वन- अभिनेता शाहरुख़ खान को इसका श्रेय तो दिया ही जाना चाहिए कि
उन्होंने भारत की पहली सुपरहीरो फिल्म बनाने में १३० करोड़ झोंक दिए। लेकिन, अगर वह एक अच्छी कथा-पटकथा लिखवा कर फिल्म बनाते तो दर्शकों को
अवेंजर्स फिल्मों का इंतज़ार न करना पड़ता।
अनुभव सिन्हा की कचरा कहानी और कल्पनाहीन निर्देशन ने फिल्म को ऊबाऊ बना
दिया।
२०११ में द डर्टी पिक्चर- साउथ की एक सी ग्रेड पोर्न एक्ट्रेस सिल्क स्मिता पर मिलन लुथरिया
की फिल्म द डर्टी पिक्चर ने पूरे देश के दर्शकों को अपील किया। इश्क़िया और नो वन किल्ड जेसिका के बाद विद्या
बालन ने खुद को ऐसी एक्ट्रेस साबित कर दिया, जो अपने कन्धों पर फिल्म सम्हाल सकती है।
२०१२ में विक्की डोनर- शूजित सरकार निर्देशित फिल्म विक्की डोनर ने जॉन अब्राहम को बतौर
निर्माता और आयुष्मान खुराना को बतौर एक्टर बॉलीवुड में स्थापित कर दिया। स्पर्म डोनर की इस कथानक का अनूठापन दर्शकों को
भा गया। फिल्म निर्माताओं को भी समाज के अंदर से इस प्रकार के विषय ढूंढ कर फिल्म
बनाने के लिए प्रेरित किया।
२०१२ में गैंग्स ऑफ़ वासेपुर- निर्देशक अनुराग कश्यप की क्राइम थ्रिलर
फिल्म गैंग्स ऑफ़ वासेपुर पूर्वांचल के अपराधियों की कहानी की श्रंखला थी। इस फिल्म से मनोज बाजपेई और पियूष मिश्रा जैसे
सशक्त अभिनेताओं के सामने नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, ऋचा चड्डा,
हुमा कुरैशी, आदि को चमकने का मौका मिला।
२०१२ में बर्फी- निर्देशक अनुराग बासु की रोमांस कॉमेडी फिल्म बर्फी के गूंगे बहरे
बर्फी, एक खूबसूरत लड़की और ऑटिस्टिक दोस्त की
अनोखी प्रेम कहानी को रणबीर कपूर, इलीना डिक्रूज़ और प्रियंका चोपड़ा के ज़रिये कुछ इतनी खूबसूरती से कहा
गया था कि दर्शक सुधबुध खो बैठे। यह फिल्म ऑस्कर पुरस्कारों में भारतीय प्रविष्टि
के तौर पर भेजी गई थी।
२०१२ में ओएमजी ओह माय गॉड- गुजराती नाटक पर आधारित उमेश शुक्ल निर्देशित फिल्म ओएमजी ओह माय
गॉड में धर्म के पाखण्ड पर चोट तो की गई थी, लेकिन ईश्वर के अस्तित्व को नकारा नहीं गया था। अक्षय कुमार, मिथुन चक्रवर्ती और परेश रावल के सशक्त अभिनय से सजी इस फिल्म ने दूसरे निर्माताओं को ऐसे विषय
पर फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया।
२०१२ में इंग्लिस विंग्लिश- एक गृहणी के अपने इंग्लिश न जानने की कमजोरी के बावजूद विदेश में
तमाम कठिनाइयों का दिलचस्प चित्रण श्रीदेवी के अभिनय के कारण इंग्लिश विंग्लिश को
दर्शकों की पसंदीदा फिल्म बना गया।
२०१३ में जॉली एलएलबी- कोर्ट-कचहरी,
न्याय व्यस्त
और बड़े वकीलों की दबंगई पर सुभाष कपूर का व्यंग्य जॉली एलएलबी दर्शकों को भा
गया। अरशद वारसी की यह सोलो फिल्म ज़बरदस्त
हिट हुई।
२०१३ में रांझना- कोई सामान्य सी प्रेम कथा, ज़बरदस्त अभिनय के बलबूते बॉक्स ऑफिस पर हिट होती ही है, एक साधारण शक्लसूरत के एक्टर को
बॉलीवुड दर्शकों का पसंदीदा हीरो भी बना
देती है। आनंद एल राय निर्देशित, साउथ के सुपरस्टार धनुष की फिल्म
रांझणा इसका प्रमाण थी।
२०१३ में एबीसीडी- फालतू फिल्म से डेब्यू करने वाले निर्देशक रेमो डिसूज़ा की इस डांस
फिल्म ने नई स्टारकास्ट के बावजूद कहानी और नृत्य के बल पर दर्शकों को प्रभावित
किया था। इस फिल्म में प्रभुदेवा और केके मेनन केंद्रीय भूमिका में थे।
२०१४ में हाईवे- इम्तियाज़ अली की रोड मूवी हाईवे में एक लड़की को ट्रक ड्राइवर द्वारा अपहरण किये जाने
के बाद ज़िन्दगी और स्वतंत्र का मतलब समझ में आता है। इस फिल्म में आलिया भट्ट ने बेहतरीन अभिनय किया था।
२०१४ में क्वीन- कंगना रनौत और राजकुमार राव की मुख्य भूमिका वाली फिल्म क्वीन की कहानी अनोखी थी।
एक लड़की,
ऐन शादी के
मौके पर प्रेमी द्वारा इंकार किये जाने के बाद अकेले हनीमून मनाने के लिए निकल
पड़ती है। विकास बहल के इस अनोखे हनीमून ने
कंगना रनौत को श्रेष्ठ अभिनेत्री और फिल्म को श्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार दिलवा
दिया था।
२०१४ में मैरी कॉम- ओमंग कुमार के निर्देशन और प्रियंका चोपड़ा के क्लास अभिनय के
फलस्वरूप मणिपुर की बॉक्सर मैरी कॉम के
जीवन को पूरे देश से परिचित करा दिया। इस
फिल्म के बाद फीमेल सेंट्रिक स्पोर्ट्स
फिल्मों का सिलसिला बन गया।
२०१५ में पीकू - शूजित सरकार ने साबित कर दिया कि वह टैक्सी पर सफर कर रहे एक बाप, बेटी और टैक्सी ड्राइवर के बीच की आपसी
नोकझोंक के बूते मनोरंजक फिल्म में बदल सकते हैं।
इस फिल्म के लिए अमिताभ बच्चन को
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था।
२०१५ में मांझी द माउंटेनमैन- गया बिहार के एक गांव के माउंटेनमैन के नाम से मशहूर दशरथ मांझी
की अकेले बूते पर पहाड़ काट कर रास्ता बनाने की कहानी को केतन मेहता के निर्देशन
में नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी के बेहतरीन अभिनय ने पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया।
२०१६ में नीरजा - १९८६ में आतंकवादियों द्वारा एक जहाज का अपहरण किये जाने और उस
जहाज एयरहोस्टेस नीरजा भनोट के ३५९ यात्रियों की जान बचाने की साहसिक कहानी का
चित्रण निर्देशक राम माधवानी की फिल्म नीरजा में हुआ था। इस फिल्म में मुख्य करने वाले एक्ट्रेस सोनम कपूर का राष्ट्रीय
फिल्म पुरस्कार में विशेष उल्लेख किया गया था।
२०१६ में पिंक- निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी की फिल्म पिंक यह स्थापित करती थी कि
अगर लड़की की मर्जी नहीं है तो उस पर किसी काम को करने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता। यानि न तो न ! इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और
तापसी पन्नू की जोड़ी उभर कर आई थी।
२०१७ में हिंदी मीडियम - साकेत चौधरी की इस फिल्म में मध्यम वर्ग में अपने बच्चों को
इंग्लिश मीडियम के स्कूल में पढ़ाने के लिए सभी हथकंडे अपनाने का बढ़िया चित्रण हुआ
था। इस फिल्म में इरफ़ान खान के साथ
पाकिस्तान की अभिनेत्री सबा कमर ने सधा हुआ अभिनय किया था।
२०१७ में जग्गा जासूस- रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ अभिनीत तथा अनुराग बासु निर्देशित फिल्म
जग्गा जासूस फ्लॉप हुई थी। लेकिन, यह फिल्म बच्चों के मनोरंजन कर पाने में सफल होती थी।
२०१७ में तुम्हारी सुलु- एक गृहणी स्वावलम्बन के लिए
रेडियो जॉकी का काम करने लगती है। लेकिन, इस पेशे के कारण पैदा हुई जटिलताओं से वह
किस प्रकार से अपने पति और परिवार के सहारे पार करती है, इसका बढ़िया चित्रण फिल्म तुम्हारी सुलु
में हुआ था। विद्या बालन ने एक बार फिर
साबित कर दिया था कि नायिका प्रधान फिल्मों के लिए उनसे बढ़िया कोई एक्ट्रेस नहीं।
२०१८ में रेड- राज कुमार गुप्ता और अजय देवगन की जोड़ी बेहद प्रभावशाली साबित होती
थी, सूखे विषय एक इनकम टैक्स रेड पर केंद्रित
फिल्म रेड में। फिल्म निर्देशक, लेखक और अभिनेता की सफलता थी।
सभी एक्टरों ने अच्छा अभिनय किया था।
२०१८ में सुई धागा- शरत कटारिया ने एक दरजी (वरुण धवन) और एक कढ़ाई-बुनाई करने वाली
(अनुष्का शर्मा) के परस्पर प्रेम, विश्वास और समर्पण के जरिये उनके आत्मनिर्भर होने की कहानी का बढ़िया
चित्रण सुई धागा से किया था।
२०१८ में बधाई हो - निर्देशक अमित रविंद्रनाथ शर्मा की फिल्म बधाई हो मध्यम वर्गीय
लोगों के बीच एक अधेड़ महिला के यकायक माँ बनने की खबर से पैदा सनसनी का हास्यास्पद
चित्रण करती थी। इस फिल्म में आयुष्मान खुराना ने इस जोड़े के जवान बेटे की भूमिका
की थी। फिल्म की जान नीना गुप्ता और गजराज
राव की जोड़ी थी।
२०१९ में उरी द सर्जिकल स्ट्राइक- युद्ध के विषय पर देशभक्तिपूर्ण फिल्म
बनाई जाए तो दर्शक ज़रूर मिलेंगे। विक्की
कौशल की फिल्म उरी की बड़ी सफलता इसे प्रमाणित करती थी।
२०१९ में द ताशकंद फाइल्स- भारत के द्वितीय प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में
आकस्मिक और रहस्यपूर्ण मौत की पड़ताल करती विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द ताशकंद फाइल्स गहरी रिसर्च, ईमानदार कोशिश और उपयुक्त चरित्र चित्रण
के कारण दर्शकों की पसंदीदा फिल्म साबित हुई।
यह फिल्म २०१९ की स्लीपर हिट फिल्मों में शुमार है।
२०१९ में सुपर ३०- बिहार के गणितज्ञ आनंद कुमार पर विकास बहल की बायोपिक फिल्म सुपर ३०
अभिनेता हृथिक रोशन के उत्कृष्ट अभिनय की बदौलत दर्शकों की पसंदीदा बन गई।
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