महेश भट्ट, आनंद पंडित और विक्रम भट्ट की तिकड़ी भयावनी फिल्मों के दर्शकों को अतीत के भूतों का दर्शन कराने जा रहे है। हॉन्टेड 3डी: घोस्ट्स ऑफ़ द पास्ट शीर्षक वाली फिल्म २०११ में प्रदर्शित भयावनी फिल्म हॉन्टेड 3डी की सीक्वल फिल्म है। महाक्षय चक्रवर्ती उर्फ़ मिमोह की मुख्य भूमिका वाली सुपरनैचरल थ्रिलर हॉरर फिल्म हॉन्टेड ३डी घोस्ट्स ऑफ़ डी पास्ट २१ नवंबर २०२५ को प्रदर्शित होने जा रही है। चेतना पांडे को इस सीक्वल में सम्मिलित किया गया हैं।
मूल भयावनी फिल्म हॉन्टेड ३डी भी मिमोह की भयावनी फिल्म थी। इस फिल्म को भारत की पहली 3डी स्टीरियोस्कोपिक हॉरर फिल्म होने का गौरव प्राप्त हुआ था । इस फिल्म में विक्रम भट्ट की प्रिय अभिनेत्री टिया बाजपेई मिमोह की नायिका थी। फिल्म ने 13 करोड़ के बजट में दुनिया भर में 37 करोड़ की कमाई करके बॉक्स ऑफिस पर उल्लेखनीय सफलता हासिल की थी। यद्यपि, समीक्षकों ने महाक्षय के अभिनय की आलोचना की थी और उनकी कमियां गिनाई थी।
हॉन्टेड ३डी घोस्ट्स ऑफ़ द पास्ट, हॉरर फ्रैंचाइज़ी की निरन्तरता बनाये रखने का प्रयास लगती है। क्योंकि, विक्रम भट्ट ने घोस्ट (२०१९) की असफलता के बाद, हॉरर फिल्मों से किनारा कर लिया था। इसीलिए १९२० होर्रोर्स ऑफ़ द हार्ट का निर्देशन उन्होंने स्वयं नहीं किया। किन्तु, २०२३ की इस फिल्म की सफलता के बाद, वह महेश भट्ट और आनंद पंडित की हॉन्टेड टीम के साथ हॉंटेड ३डी की सफलता को भुनाना चाहते है।
देखा जाये तो सुपरनैचुरल हॉरर थ्रिलर फिल्मों का सिलसिला तो बना हुआ है। यह सिलसिला भारतीय लोककथाओं और मिथकों भूत चुड़ैल और शापित वस्तुओं को कहानी में समेटे हुए दिखाई देता है।२०१८ में प्रदर्शित तुम्बाड और स्त्री जैसी फ़िल्मों में पारंपरिक भारतीय लोककथाओं को आधुनिक कथानक के साथ सफलतापूर्वक मिश्रित किया है। इसका परिणाम हुआ है कि हॉरर फ़िल्में अधिक प्रासंगिक और सांस्कृति से जुड़ी बन गई हैं।
भारतीय फिल्मों में हॉरर कॉमेडी लोककथा और भूत चुड़ैलों का मिथ अन्य भाषाओँ में बानी फिल्मों में भी दिखाई देता है। विगत दिनों प्रदर्शित गुजराती फिल्म वश और इसकी सीक्वल भारतीय मान्यताओं में निहित भूत-प्रेत और भूत-प्रेत के विषयों पर आधारित है। मलयालम फिल्म लोका चैप्टर १ चंद्रा भी एक अन्य उदाहरण है। रोचक तथ्य यह है कि ऎसी सभी फिल्मों को दूसरी भाषाओँ का दर्शक भी अपनी भाषा में देखना पसंद कर रहा है।
यहाँ उल्लेखनीय है हॉरर में हास्य। यद्यपि, यह मिश्रण प्रियदर्शन ने अपनी अक्षय कुमार के साथ फिल्म भूल भुलैया में १८ वर्ष पहले ही कर दिया था। किन्तु, यह मिश्रण अब विगत कुछ वर्षों से सफल होता प्रतीत होता है। क्योंकि, भूल भुलैया की सीक्वल फिल्म भूल भुलैया २ को बनने में १५ साल लग गए। इसी मिश्रित शैली में निर्देशक अमर कौशिक ने फिल्म स्त्री भी बनाई थी। स्त्री की सफलता के पश्चात् इस फिल्म का सीक्वल स्त्री २, २०२४ में प्रदर्शित हुई तथा सफल भी हुई। इस सफलता से उत्साहित हो कर निर्माता ने मैडॉक सुपरनैचुरल यूनिवर्स की स्थापना कर भेड़िया, मुँज्या और स्त्री २ जैसी फिल्मों का निर्माण किया। यह सभी फिल्में सफल भी हुई।
हॉरर शैली की फिल्मों को नया आयाम तकनीकी प्रगति और उत्कृष्ट दृश्य प्रभाव के कारण भी मिला। आधुनिक सीजीआई, ध्वनि डिज़ाइन और छायांकन तकनीक का प्रयोग करने से भारतीय हॉरर फ़िल्में अधिक प्रभावशाली और दृश्यात्मक रूप से आकर्षक बन गई हैं। उदाहरण के लिए हॉन्टेड 3डी में 3डी स्टीरियोफोनिक तकनीक का उपयोग कर दिखाया था। इसकी सीक्वल हॉन्टेड 3डी: घोस्ट्स ऑफ़ द पास्ट भी इस तकनीक को स्थापित करने वाली है।
यहाँ २०२४ में प्रदर्शित अजय देवगन और माधवन की हॉरर फिल्म शैतान भी भय के अनुभव को बेहतर और परिष्कृत दृश्य प्रभावों का उपयोग करते हुए दर्शकों को आकर्षित कर पाने में सफल होती थी ।
भारतीय हॉरर फ़िल्में मनोवैज्ञानिक और सामाजिक टिप्पणियां करती भी प्रतीत होती है। ऎसी हॉरर फिल्मों में सामान्य रूप से मनोवैज्ञानिक तत्व और सामाजिक टिप्पणियाँ शामिल होती हैं, जो लिंग, जाति और सामाजिक मानदंडों जैसे मुद्दों को संबोधित करती हैं। निर्देशक और लेखक अन्विता दत्ता की २०२० में प्रदर्शित पीरियड हॉरर फिल्म बुलबुल अलौकिक कथानक के अंतर्गत पितृसत्ता और दुर्व्यवहार के विषयों की पड़ताल करती थी । इसी क्रम में निर्देशक विशाल फुरिआ की नुसरत भरुचा अभिनीत हॉरर फिल्म छोरी सरोगेसी और महिला अधिकारों के मुद्दों को प्रस्तुत करती थी ।
भारत की भयावनी फिल्मों ज़ॉम्बी और विनाश ने भी अपना स्थान बनाना प्रारम्भ कर दिया है। यद्यपि, हॉलीवुड की फिल्मों में यह तत्व प्रारम्भ से ही है। गो गोवा गॉन भारत की पहली ज़ोम्बी फिल्म थी। यह फिल्म इस दृष्टि से मौलिक थी कि ज़ॉम्बी के भय में हास्य का बढ़िया मिश्रण किया गया था। किन्तु, ज़ॉम्बी फिल्मों की निरंतरता नहीं बन सकी। गो गोवा गॉन १२ साल पहले प्रदर्शित हुई थी। इसके सीक्वल की घोषणा अब जा कर हुई है। इस कड़ी में कार्तिक आर्यन की ज़ॉम्बी फिल्म उल्लेखनीय है। इस फिल्म को कार्तिक के लिए शेरशाह के निर्देशक विष्णुवर्द्धन बना रहे है।
यह कहा जा सकता है कि वर्त्तमान में भारतीय हॉरर फ़िल्में पारंपरिक और आधुनिक तत्वों, तकनीकी प्रगति और विविध कथानक पर केंद्रित होगी, जो स्थानीय और वैश्विक दोनों दर्शकों को आकर्षित करती है। सांस्कृतिक समृद्धि, तकनीकी नवाचार और अंतर्राष्ट्रीय रुझानों के प्रभाव से प्रेरित होकर यह शैली निरंतर विकसित हो रही है।

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